Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ग्रहण किया, उसको पूर्ण कर वे अर्जुन अणगार यावत् सिद्ध, बुद्ध और
मुक्त हो गये । Maxim 21 :
Then Sramana Bhagawāna Mahāvīra went out of Gunaśīlaka garden and began to wander in other areas. Then that extremely fateful Arjuna mendicant completed his six months' period of sagehood exercising himself the noble abundant zealous, specially beneficial penances fully well; and then adopted a fast penance of half-month i.e., a fortnight, avoided thirty meals, accepted samlekhanā and attained the purpose for which he had accepted consecration, i.e, became beatified and salvated.
विवेचन
श्रेणिक चरित्र आदि ग्रंथों में लिखा है कि अर्जुनमाली के शरीर में मुद्गरपाणि यक्ष का पाँच मास १३ दिनों तक प्रवेश रहा । उससे उसने ११४१ व्यक्तियों का प्राणान्त किया । इसमें ९७८ पुरुष
और १६३ स्त्रियाँ थीं । इससे स्पष्ट प्रमाणित होता है कि वह प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करता रहा ।.
यहाँ एक आशंका होती है कि जिस व्यक्ति ने इतना बड़ा प्राणिवध किया और पाप कर्म से आत्मा का महान् पतन किया, उस व्यक्ति को केवल छह मास की साधना से कैसे मुक्ति प्राप्त हो गई ?
उत्तर यह है कि तप में अचिन्त्य, अतयं एवं अद्भुत शक्ति है। आगम कहता है "भवकोडिसंचियं कम्मं तवसा निजरिज्जई ।" अर्थात् करोड़ों भवों से संचित किये-बांधे कर्म भी तपश्चर्या द्वारा नष्ट किए जा सकते हैं ।
जब तीव्रतर तप की अग्नि प्रज्वलित होती है तो कर्मों के दल के दल सूखे घास-फूस की तरह भस्मसात् हो जाते हैं ।
इसके अतिरिक्त प्रस्तुत प्रसंग में यह भी कहा जा सकता है कि अर्जुनमालाकार द्वारा जो वध किया गया, वह वस्तुतः यक्ष द्वारा किया गया वध था। अतएव मनुष्यवध योग्य कषाय परिणामों की तीव्रता उसमें संभव नहीं है । अर्जुन का हृदय सरल, मंदकषायी प्रतीत होता है, किन्तु यक्षावेश के कारण वह क्रोध में हत्यारा बन बैठा ।
(तृतीय अध्ययन समाप्त)
तृतीय अध्ययन
.२०५.
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