Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरे णयरे, सिरीवणे उज्जाणे । तत्थ णं पोलासपुरे णयरे विजए णामं राया होत्था । तस्स णं विजयस्स रण्णो सिरी णामं देवी होत्था, वण्णओ । तस्स णं विजयस्स रण्णो पुत्ते सिरीए देवीए अत्तए अइमुत्ते णामं कुमारे होत्था सुकुमाले । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाय सिरीवणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई, जहा पण्णत्तीए जाव पोलासपुरे णयरे उच्च-णीय जाव अडइ ।
अतिमुक्तकुमार सूत्र ३३ :
श्री जम्बू स्वामी ने पूछा- हे भगवन् ! चौदह अध्ययनों का भाव मैंने सुना । अब पन्द्रहवें अध्ययन में प्रभु ने क्या भाव कहा है, कृपा कर बतलाइये । आर्य सुधर्मा स्वामी कहते हैं-हे जम्बू ! उस काल, उस समय में पोलासपुर नामक नगर था । वहां श्रीवन नामक उद्यान था । इस नगर में विजय नाम का राजा था, उनकी श्रीदेवी महारानी थी जो वर्णनीय थी । महाराजा विजय का पुत्र और श्रीदेवी का आत्मज “अतिमुक्त' नाम का एक कुमार था, जो बड़ा सुकुमार, सुन्दर और दर्शनीय था । उस काल, उस समय, श्रमण महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति, (उनका भगवती सूत्र में जैसे षष्ठ भक्त के पारणे के लिए भगवान से पूछकर भिक्षार्थ जाने का वर्णन किया गया है वैसे ही यहां भी समझना चाहिए यावत्) उस पोलासपुर नगर में छोटे-बड़े कुलों में सामूहिक भिक्षा हेतु भ्रमण करने लगे ।
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अन्तकृद्दशा सूत्र : षष्ठम वर्ग
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