Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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अदिण्णादाणं, सव्वं मेहुणं, सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए । सव्वं कोहं जाव मिच्छादसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए । सव्वं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं चउविहं पि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए । जइ णं एत्तो उवसग्गाओ मुच्चिस्सामि तो मे कप्पइ पारेत्तए । अह णं एत्तो उवसग्गाओ न मुच्चिस्सामि तओ मे तहा पच्चक्खाए चेव त्ति कटु सागारं पडिमं पडिवज्जइ ।
सुदर्शन का सागारी प्रतिमा ग्रहण सूत्र १४:
उस समय उस क्रुद्ध मुद्गरपाणि यक्ष को अपनी ओर आता देखकर सुदर्शन श्रमणोपासक वहीं ठहर गये । मृत्यु की संभावना को जानकर भी किंचित् भी-भय, त्रास, उद्वेग अथवा क्षोभ को प्राप्त नहीं हुए । उनका हृदय तनिक भी विचलित अथवा भयाक्रान्त नहीं हुआ । उन्होंने निर्भय होकर अपने वस्त्र के अंचल से भूमि का प्रमार्जन किया । फिर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैठे । बैठकर बाएं घुटने को ऊँचा किया और दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि पुट रखा । इसके बाद इस प्रकार बोले-नमस्कार हो
अरिहन्त भगवान यावत् मोक्ष प्राप्त सिद्धों को । नमस्कार हो श्रमण यावत् भविष्य में मुक्ति पाने वाले प्रभु महावीर को । मैंने पहले श्रमण भगवान महावीर के पास स्थूल प्राणातिपात का आजीवन त्याग (प्रत्याख्यान) किया, स्थूल मृषावाद का त्याग किया, स्थूल अदत्तादान का त्याग किया, स्वदार-सन्तोष और इच्छा-परिमाण रूप स्थूल परिग्रह विरमण व्रत जीवन-भर के लिये ग्रहण किया, अब उन्हीं भगवान महावीर स्वामी की साक्षी से संपूर्ण प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और सम्पूर्ण परिग्रह का सर्वथा आजीवन त्याग करता हूँ । क्रोध, मान, माया, लोभ यावत् मिथ्यादर्शन शल्य तक १८ पापस्थानों का भी सर्वथा आजीवन त्याग करता हूँ । सब प्रकार का अशन, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ !
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अन्तकृददशा सूत्र : षष्टम वर्ग
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