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षष्ठम वर्ग
सूत्र १ :
जइ णं भंते समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंतगडदसाणं पंचमस्स वग्गस्स अयमढे पणत्ते, छट्ठस्स णं भंते ! वग्गस्स के अटे पणत्ते ? एवं खलु जंबू' समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स छट्ठस्स वग्गस्स सोलस अज्झयणा पण्णत्ता । तं जहामंकाई किंकमे चेव मोग्गरपाणी य कासवे । खेमए धितिधरे चेव केलासे हरिचन्दणे ॥१॥ वारत्त सुदंसण पुण्णभद्दे सुमणभद्दे सुपइटे मेहे ।
अइमुत्ते य अलक्खे अज्झयणाणं तु सोलसयं ॥२॥ सूत्र १:
आर्य जम्बू-हे भगवन् ! मैंने अष्टम अंग अंतकृद्दशा के पांचवें वर्ग का भाव सुना, अब कृपया बताएँ कि छठे वर्ग में श्रमण भगवान् महावीर ने क्या भाव कहे हैं ? श्री सुधर्मा स्वामी हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने छठे वर्ग के सोलह अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं१. मंकाई, २. किंकम, ३. मुद्गरपाणि, ४. काश्यप, ५. क्षेमक, ६. धृतिधर, ७. कैलाश, ८. हरिचन्दन, ९. वारत्त, १०. सुदर्शन, ११. पूर्णभद्र, १२. सुमनभद्र, १३. सुप्रतिष्ठ, १४. मेघ गाथापति, १५. अतिमुक्त कुमार एवं १६. अलक्ष्य कुमार । आर्य जम्बू-हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने छठे वर्ग के १६ अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ?
प्रथम अध्ययन
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