Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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तए णं सुदंसणे सेट्ठी अम्मापियरं एवं वयासी
किणं अहं अम्मयाओ ! समणं भगवं महावीरं इहमागयं इह पत्तं इह समोसढं इह गए चेव बंदिस्सामि णमंसिस्सामि ? तं गच्छामि णं अहं अम्मयाओ !
तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंदामि जाव पज्जुवासामि ।
सूत्र १२ :
उस दिन बहुत से नागरिकों के मुख से राजगृह में भगवान् के पधारने का समाचार सुनकर उस सुदर्शन सेठ के मन में इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ
निश्चय ही, श्रमण भगवान महावीर नगर में पधारे हैं, और बाहर गुणशीलक उद्यान में विराजमान हैं, इसलिये मैं जाऊँ और उन श्रमण भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार करूँ ।
ऐसा सोचकर सुदर्शन अपने माता-पिता के पास आये और हाथ जोड़कर इस प्रकार बोले- हे माता-पिता ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी नगर के बाहर उद्यान में विराज रहे हैं, अतः मैं चाहता हूँ कि उनकी सेवा में जाऊँ और उन्हें वन्दन नमस्कार करूँ ।
सुदर्शन के मुख से यह बात सुनकर माता - पिता ने इस प्रकार कहा - हे पुत्र ! इस नगर के बाहर अर्जुनमाली छह पुरुष और एक स्त्री इस तरह सात व्यक्तियों को नित्य प्रति मारता हुआ घूम रहा है । इसलिए है पुत्र ! तुम श्रमण भगवान महावीर को वंदन करने के लिए नगर के बाहर मत निकलो । नगर के बाहर निकलने से संभव है, तुम्हारे शरीर को कोई हानि हो जाये इसलिये यही अच्छा है कि तुम यहीं से श्रमण भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार कर लो ।
तब सुदर्शन सेठ अपने माता-पिता से इस प्रकार बोले
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अन्तकृद्दशा सूत्र : षष्ठम वर्ग
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