Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
grass, wood, fuel, water and flowers, fruits etc. If any body goes out of the city, it is possible that his body may be destroyed i.l., le may be murdered. ( beloved as gods ! Thus announce this declaration twice and thrice in whole city and report to me soon. Then those chamberlains announced the royal mandate twice and thrice wandering in the whole city and reported
to the king that his order had been carried out. सूत्र ११:
तत्थ णं रायगिहे णयरे सुदंसणे णामं सेट्ठी परिवसइ; अड्ढे जाव अपरिभूए । तए णं से सुदंसणे समणोवासए यावि होत्था । अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे जाव विहरइ । तए णं रायगिहे णयरे सिंघाडग जाव महापहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-जाव एगस्स वि आयरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स
सवणयाए किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? सूत्र ११:
उस राजगृह नगर में सुदर्शन नाम के एक सेठ रहते थे जो बहुत धनाढ्य यावत् अपराभूत थे । वे श्रमणोपासक थे और जीव-अजीव आदि नव तत्वों के ज्ञाता, यावत् श्रमणों को निर्दोष आहार आदि का प्रतिलाभ देने वाले थे । उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी विहार करते हुए राजगृह नगर में पधारे और बाहर उद्यान में ठहरे । । भगवान के आगमन का समाचार सुनकर राजगृह नगर के शृंगाटक, राजमार्ग आदि स्थानों में बहुत से नागरिक लोग परस्पर इस प्रकार वार्तालाप करने लगे-(हे देवानुप्रियो) श्रमण भगवान महावीर स्वामी यहां
पधारे हैं, जिनके नाम गोत्र के सुनने मात्र से भी महान पुण्य फल होता . १८४ .
अन्तकृद्दशा सूत्र : षष्ठम वर्ग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org