Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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सूत्र १0 : .
तए णं सा पउमावई देवी धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ । दुरूहित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ । उवागंच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ : पच्चोरुहइ; पच्चोरुहित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव अंजलिं कटु कण्हं वासुदेवं एवं वयासीइच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुन्भेहिं अब्भनुण्णाया समाणी अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए मुंडा जाव पव्वयामि । (कण्हे-) अहासुहं देवाणुप्पिया ! तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुबिए पुरिसे सद्दावेइ; सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! पउमावईए देवीए महत्थं णिक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह; उवट्ठवित्ता एवं आणत्तियं पच्चप्पिणह ।
तए णं ते कोडुंबिया जाव पच्चप्पिणंति । सूत्र १0:
उसके बाद पद्मावती देवी धार्मिक श्रोष्ट रथ पर आरूढ़ होकर द्वारका नगरी में अपने भवन पर आई, धार्मिक रथ से नीचे उतरी और जहां कृष्ण वासुदेव थे वहां आकर दोनों हाथ जोड़कर कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार निवेदन कियाहे देवानुप्रिय ! अर्हत् अरिष्टनेमि का उपदेश सुनकर मेरा मन संसार से विरक्त हो गया है, अतः आपकी आज्ञा हो तो मैं अर्हत् अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूँ। कृष्ण ने कहा हे देवानुप्रिये ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो । तब कृष्ण वासुदेव ने अपने आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार आदेश दिया
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अन्तकृद्दशा सूत्र : पंचम वर्ग
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