Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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फिर कृष्ण वासुदेव पद्मावती महारानी को आगे करके भगवान अरिष्टनेमि के पास आये और तीन बार प्रदक्षिणा करके वंदन नमस्कार किया । वंदन नमस्कार करके इस प्रकार बोलेहे भगवन् ! यह पद्मावती देवी मेरी पटरानी है, यह मेरे लिए इष्ट, कान्त, प्रिय एवं मनोज्ञ है, और मन के अनुकूल चलने वाली है, अभिराम (सुन्दर) है । हे भगवन् ! यह मेरे जीवन में श्वासोच्छ्वास के समान मुझे प्रिय है, मर हृदय का आनन्द देने वाली है । इस प्रकार की स्त्री-रत्न उदुम्वर (गूलर) के पुष्प के समान सुनने के लिये भी दुर्लभ है, तब देखने की तो बात ही क्या है ! हे देवानुप्रिय ! मैं एसी अपनी प्रिय पत्नी की भिक्षा शिष्यणी के रूप में आपको देता हूँ । आप इसे स्वीकार करें । कृष्ण वासुदेव की प्रार्थना सुनकर भगवान अरिष्टनेमि बोले- 'देवानुप्रिय ! तुम्हें जिस प्रकार सुख हो वैसा करो ।” तव उस पद्मावती देवी ने ईशान कोण में जाकर स्वयं अपने हाथों से अपने शरीर पर धारण किये हुए सभी आभूषण एवं अलंकार उतारे और स्वयं ने ही अपने केशों का पंचमुष्टिक लोच किया । फिर भगवान अरिष्टनेमि के पास आकर वंदना की । वंटन नमस्कार करके इस प्रकार वाली-हे भगवन् ! यह संसार जन्म, जरा, मरण आदि दुःख रूपी आग में जल रहा है, प्रदीप्त हो रहा है, अतः इन दुःखों की आग से छुटकारा पाने और जलती हुई आग से अपनी आत्मा को बचाने के लिए आप से संयम धर्म की दीक्षा अंगीकार करना चाहती हूँ । अतः कृपा करके मुझे प्रव्रजित
कीजिये यावत् चारित्र धर्म की शिक्षा प्रदान कीजिए । Consecration Ceremony Maxim 11:
Then Krsna Vāsudeva got seated Padıāvati Deri on a special seat and she was bathed with water from one hundred eight pitchers of gold and conronated for consecration. Then, she was decorated with al: kinds of ornaments, and was seated in the palanquin, which was
प्रथम अध्ययन
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