Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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द्वारका के दग्ध हो जाने पर कृष्ण वासुदेव और बलराम वहां से जाने की तैयारी करने लगे । इसी बात को “सुर-दीवायण-कोवनिदढाए'' इस पद से अभिव्यक्त किया है ।
आगम का दूसरा वाक्य है-"अम्मा-पिइनियग-विष्पहूणे"-अम्बापितृ-निजकविप्रहीण :-अर्थात् माता-पिता और अपने सम्बन्धियों से रहित । कथाकारों का कहना है कि जव द्वारका नगरी जल रही थी तब कृष्ण वासुदेव और उनके बड़े भाई बलराम दोनों आग बुझाने की चेष्टा कर रहे थे, पर जव वे सफल नहीं हुए तव अपने महलों में पहुँचे और अपने माता-पिता को बचाने का प्रयत्न करने लगे । बड़ी कठिनाई से माता-पिता को महल से निकालने में सफल हुए । इनका विचार था कि माता-पिता को रथ में विठा कर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाए । अपने विचार की पूर्ति के लिए श्रीकृष्ण जब अश्वशाला में पहुंचे तो देखते हैं, अश्वशाला नष्ट हो चुकी है । वे वहां से चले, रथशाला में आए। रथशाला में आग लगी हुई थी, किंतु एक रथ उन्हें सुरक्षित मिल गया । वे तत्काल उसी को बाहर ले आये, उस पर माता-पिता को बैठाया । घोड़ों के स्थान पर दोनों भाई स्वयं जुत गये पर जैसे ही सिंहद्वार को पार करने लगे और रथ का जुआ और दोनों भाई द्वार से बाहर निकले ही थे कि तत्काल द्वार का ऊपरी भाग टूट पड़ा और माता-पिता उसी के नीचे दब गए । उनका देहान्त हो गया । वासुदेव कृष्ण तथा बलराम से यह मार्मिक भयंकर दृश्य देखा नहीं गया । वे माता-पिता के वियोग से अधीर हो उठे । जैसे-तैसे उन्होंने अपने मन को संभाला, माता-पिता तथा अन्य सम्वन्धियों के वियोग से उत्पन्न महान् संताप को धैर्यपूर्वक सहन किया ।
द्वारका नगरी के दग्ध हो जाने पर कृष्ण बड़े चिन्तित थे । उन्होंने बलराम से कहा-औरों को शरण देने वाला कृष्ण आज किस की शरण में जाये ?
इसके उत्तर में बलराम कहने लगे-पाण्डवों की आपने सदा सहायता की है, उन्हीं के पास चलना ठीक है ।
उस समय पाण्डव हस्तिनापुर से निर्वासित होकर पाण्डुमथुरा में रह रहे थे । उनके निर्वासन की कथा ज्ञाताधर्मकथा से जान लेनी चाहिए ।
बलराम की बात सुनकर कृष्ण बोले-जिनको सहारा दिया हो, उनसे सहारा लेना लज्जास्पद है, फिर सुभद्रा (अर्जुन की पत्नी) अपनी बहन है । वहन के घर रहना भी शोभास्पद नहीं है ।
कृष्ण की तर्कसंगत बात सुनकर बलराम कहने लगे-भाई ! कुन्ती तो अपनी बुआ है, बुआ के घर जाने में अपमान की कोई बात नहीं ।
अन्त में कृष्ण की अनिच्छा होने पर भी बलराम कृष्ण को साथ लेकर दक्षिण समुद्र तट पर बसी पांडवों की राजधानी पाण्डुमथुरा की ओर चल दिए ।
सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में जो "दाहिणवेयालिं अभिमुहे पंडुमहुरं संपत्थिए" ये पद दिये हैं ये उक्त कथानक की ओर ही संकेत कर रहे हैं ।।
प्रथम अध्ययन
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