Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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सूत्र ३४ :
यह सुनकर कृष्ण वासुदेव ने पुनः आश्चर्यपूर्वक प्रश्न किया-हे भगवन् ! उस पुरुष ने गजसुकुमाल मुनि को सहायता दी, यह कैसे ? अर्हत अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार स्पष्ट उत्तर दिया-हाँ कृष्ण ! निश्चय ही उसने सहायता की । यथा-मेरे चरण वन्दन हेतु शीघ्रता पूर्वक आते समय तुमने द्वारका नगरी में एक वृद्ध पुरुष को देखा और उसके घर के बाहर राजमार्ग पर पड़ी ईंटों की विशाल राशि में से तुमने एक ईंट उस वृद्ध के घर में ले जाकर रख दी। तुम्हें एक ईंट रखते देखकर तुम्हारे साथ के सब पुरुषों ने भी उन ईंटों को उठा-उठाकर उस वृद्ध पुरुष के घर में पहुंचा दिया और ईंटों की वह विशाल राशि इस तरह तत्काल राज-मार्ग से उठकर उस वृद्ध के घर में चली गई । इस तरह तुम्हारे इस सहकार से उस वृद्ध पुरुष का उस ढेर की एक-एक ईंट उठाकर ढोने का कष्ट दूर हो गया । हे कृष्ण ! वास्तव में जिस तरह तुमने उस पुरुष का कष्ट दूर करने में सहायता की, उसी तरह उस पुरुष ने भी अनेकानेक लाखों (शत-सहस्र) भवों के संचित कर्म की राशि की उदीरणा करने में संलग्न गजसुकुमाल मुनि को उन कर्मों की सम्पूर्ण निर्जरा करने में सहायता प्रदान की है। यह सुनकर कृष्ण वासुदेव ने अर्हत अरिष्टनेमि से इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! मैं उस पुरुष को किस प्रकार पहचान सकूँगा ? भगवान् अरिष्टनेमि कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोले-हे कृष्ण ! यहाँ से लौटते समय जब तुम द्वारका नगरी में प्रवेश करोगे, उस समय तुम्हें देखकर जो पुरुष भयभीत हो उठेगा और वहीं खड़े-खड़े ही आयूष्य पूर्ण हो जाने से मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। तुम समझ लेना कि निश्चयरूपेण
यही वह पुरुष है । Maxim 34 :
Hearing this Srikrsna Vāsudeva was non-plussed again and asked-O Bhagawan ! That person became helpful to monk Gaja Sukuāla (attaining his end). How is it so ?
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अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग
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