Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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सूत्र ३३ :
तब अर्हत् अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव को उत्तर दिया- हे कृष्ण ! वस्तुतः कल के दिन अपराह्न काल के पूर्व भाग में गजसुकुमाल मुनि ने मुझे वन्दन - नमस्कार किया । वन्दन नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन कियाहे प्रभु ! आपकी आज्ञा हो तो मैं महाकाल श्मशान में एक रात्रि की महाभिक्षु प्रतिमा धारण करके विचरना चाहता हूँ । मेरी अनुज्ञा प्राप्त होने पर वह गजसुकुमाल मुनि महाकाल श्मशान में जाकर भिक्षु की महा - प्रतिमा धारण करके ध्यानस्थ खड़े हो गये ।
इसके बाद उन गजसुकुमाल मुनि को एक पुरुष ने देखा और देखकर वह उन पर बहुत क्रुद्ध हुआ ।" इत्यादि समस्त घटनाक्रम सुनाकर भगवान कहा- हे कृष्ण ! उन गजसुकुमाल मुनि ने अपना प्रयोजन सिद्ध कर लिया, अपना आत्मकार्य सिद्ध कर लिया ।
यह सुनकर कृष्ण वासुदेव भगवान अरिष्टनेमि से इस प्रकार पूछने लगेहे पूज्य ! वह अप्रार्थनीय का प्रार्थी अर्थात् मृत्यु को चाहने वाला निर्लज्ज पुरुष कौन है जिसने मेरे सहोदर लघु भ्राता गजसुकुमाल मुनि का असमय में ही प्राणहरण कर लिया ?
तब अर्हत् अरिष्टनेमि कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोले- हे कृष्ण ! तुम उस पुरुष पर द्वेष मत करो, क्योंकि उस पुरुष ने सुनिश्चित रूप से गजसुकुमाल मुनि को अपना आत्महित एवं अपना प्रयोजन सिद्ध करने में सहायता प्रदान की है ।
Maxim 33 :
Then Arhat Ariṣṭanemi replied to Kṛṣṇa Vasudeva-O Krsna Verily Gaja Sukumāla bowed down to me yesterday in the first part of afternoon and then said-O Lord if you permit me I intend to accept and observe monk's twelfth special resolution (Bhiksu-Mahāpratimā) of one night in Mahākāla cemetry. Getting my permission Gaja Sukumala went to Mahākāla cemetry, accepted
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अन्तकृदशासूत्र : तृतीय वर्ग
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