Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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तए णं सा धारिणी । सीहं सुमिणे, जहा गोयमे णवरं सुमुहे णामं कुमारे, पण्णासं कण्णाओ । पण्णासंओ दाओ, चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ । वीसं वासाइं परियाओ । सेसं तं चेव जाव सेत्तुंजे सिद्धे । निक्वेवओ।
(नवमं अज्झयणं समत्तं) सूत्र ३७ :
आर्य सुधर्मा से पुनः जम्बू स्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने अंतकद्दशांग सूत्र के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन के जो भाव कहे वे मैंने आपसे सुने। हे भगवन ! अव आगे नवमें अध्ययन में उन्होंने क्या भाव फरमाये हैं ? सो कृपा कर वतावें । आर्य सुधर्मा स्वामी ने कहा-हे जम्बू ! उस काल, उस समय में द्वारका नाम की नगरी थी जिसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है । एक दिन भगवान् अरिष्टनेमि विहार करते हुए उस नगरी में पधारे । द्वारका नगरी में वलदेव नाम के राजा थे । उनकी धारिणी नाम की रानी थी । वह अत्यन्त सुकोमल, सुन्दर एवं गुण सम्पन्न थी । एक समय सुकोमल शय्या पर सोई हुई धारिणी देवी ने रात को सिंह का स्वप्न देखा (स्वप्न देखकर वह जाग गई । उसी समय अपने पति के पाय जाकर स्वप्न का वृत्तान्त उन्हें सुनाया । यावत् स्वप्न पाटकों से स्वप्न फल पूछकर गर्भ की देखभाल करती रही। गर्भ समय पूर्ण होने पर स्वप्न क अनुसार उनके यहां एक पुण्यशाली पुत्र का जन्म हुआ) उसके जन्म, वाल्यकाल आदि का वर्णन गौतम कुमार के समान समझना चाहिए । विशेष में, उस बालक का नाम सुमुख रखा गया। युवा होने पर पचास कन्याओं से साथ उसका पाणिग्रहण संस्कार हुआ । विवाह में पचास-पचास करोड़ सोनैया आदि का प्रीतिदान उसे मिला । भगवान अरिष्टनेमि के किसी समय वहां पधारने से उनका धर्मोपदेश सुनकर सुमुख कुमार उनके पास दीक्षित हो गया । दीक्षित होकर चौदह
अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग
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