Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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कर संसार के भय से उद्विग्न एवं जन्म-मरण से भयभीत हो मुण्डित होकर श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण की है । हमने जिस दिन दीक्षा ग्रहण की थी, उसी दिन अरिहंत अरिष्टनेमि को वन्दन नमन किया और वन्दन नमस्कार कर इस प्रकार का अभिग्रह धारण करने की आज्ञा चाही । “हे भगवन् ! आपकी अनुमति प्राप्त होने पर जीवन पर्यन्त बेले-बेले की तपस्यापूर्वक अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरना चाहते हैं ।' तब प्रभु ने कहा-"देवानुप्रियो ! जिससे तुम्हें सुख हो, वैसा करो, प्रमाद मत करो ।' हे देवानुप्रिये ! उसके बाद अरिहंत अरिष्टनेमि की अनुज्ञा प्राप्त होने पर हम जीवन भर के लिए निरंतर बेले-बेले की तपस्या करते हुए विचरने लगे । तो इस प्रकार आज हम छहों भाई बेले की तपस्या के पारणा के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करने तथा द्वितीय प्रहर में ध्यान करने के पश्चात् तृतीय प्रहर में प्रभु अरिष्टनेमि की आज्ञा प्राप्त कर तीन संघाटकों में भिक्षार्थ उच्च-मध्य्यम एवं निम्न कुलों में भ्रमण करते हुए तुम्हारे घर आ पहुँचे
तो देवानुप्रिये ! ऐसी बात नहीं है कि जो पहले दो संघाटकों में मुनि तुम्हारे यहाँ आये थे, वे हम ही हैं । वस्तुतः हम दूसरे हैं । उन मुनियों ने देवकी देवी को इस प्रकार कहा, और यह कहकर वे जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा की ओर लौट गये ।
Maxim 11 :
This question of Devaki was answered by the sages in these words-O beloved as gods ! The position is not like this, that sages could not get food and water from high-lowmiddle-class houses of this city of Krsna Vāsudeva, which is like heaven abode nor ihe sages go over and again () the same house for their nei:! of food and water.
अष्टम अध्ययन
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