Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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के चरण वन्दन के लिए शीघ्रतापूर्वक आये । तव कृष्ण वासुदेव देवकी माता के दर्शन करते हैं । दर्शन कर देवकी के चरणों में वन्दन करते हैं । उन्होंने अपनी माता को उदास और चिन्तित देखा तो चरण वन्दन कर देवकी देवी से इस प्रकार पूछने लगेहे माता ! इससे पहले तो मैं जब-जव आपके चरण वन्दन के लिए आता था, तब-तब आप मुझे देखते ही हर्ष से पुलकित एवं आनन्दित हो जाती थीं, पर माँ आप आज उदास, चिन्तित तथा आर्तध्यान में निमग्न सी क्यों दिखाई दे रही हो ? हे माता ! इसका क्या कारण है ? कृपा करके वताइये । कष्ण द्वारा इस प्रकार का प्रश्न पूछे जाने पर देवकी देवी कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहने लगी हे पुत्र ! वस्तुतः बात यह है कि मैंने एक समान आकार, एक समान रंग-रूप वाले सात पुत्रों को जन्म दिया, परन्तु मैंने उनमें से किसी एक का भी बाल्यकाल अथवा वाल-लीला का अनुभव नहीं किया । पुत्र ! तुम भी छ: छ: महीनों के अन्तर से मेरे पास चरण वन्दन के लिए आते हो । इसीलिए में ऐसा सोच रही हूँ कि वे माताएँ धन्य हैं, पुण्यशालिनी हैं, जो अपनी संतान को स्तनपान कराती हैं, यावत् उनके साथ मधुर आलाप करती हैं, और उनकी वाल-क्रीड़ा के आनन्द का अनुभव करती हैं । मैं अधन्य हूँ, अकृत-पुण्य हूँ । यही सब सोचती हुई मैं उदासीन होकर
इस प्रकार का आर्तध्यान कर रही हूँ । Maxim 17 :
Thus Devaki was sitting sad-minded. At the same time Krsna Väsudeva, bathed (until) decorated his body with clothes and ornaments, came quickly to mother Devaki for reverence of her feet. Then Vasudeva Krisna saw and howed down at the feet of Devaki. When he saw his mother sad and worried he enquiredO mother! Formerly whenever I came to touch your feet, you always became glad on seeing me; but O mother !
अष्टम अध्ययन
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