Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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o beloved as gods ! you are my younger uterine brother. Hence I say that you should not accept consecration after tonsuring your head near Bhagawāna Aristanemi at this time. I shall anoint you with royal coronation in this city Dwārakā in a grand ceremony.
तए णं से गयसुकुमाले कुमारे कण्हं वासुदेवं अम्मापियरो य दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! माणुस्सया कामा खेलासवा असुइ, असासया, वंतासवा जाव विप्पजहियव्या भविस्संति । तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुभेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहओ अरिडणेमिस्स अंतिए जाव पव्वइत्तए । तए णं तं गयकुसुमालं कुमारं कण्हे वासुदेवे अम्मापियरो य जाहे णो संचाएइ बहुयाहिं अणुलोमाहिं जाव आघवित्तए, ताहे अकामा चेव एवं वयासीतं इच्छामो णं ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पासित्तए । णिक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजमित्तए ।
तए णं से गयसुकुमाले अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी। सूत्र २६ :
कृष्ण वासुदेव द्वारा ऐसा कहे जाने पर गजसुकुमाल कुमार मौन रहे । कुछ समय मौन रहने के पश्चात् गजसुकुमाल अपने बड़े भाई कृष्ण वासुदेव एवं माता-पिता से दूसरी-तीसरी बार भी इस प्रकार बोलेहे देवानुप्रियो ! वस्तुतः मनुष्य के काम-भोग एवं देह अपवित्र, अशाश्वत, क्षणविनाशी और मल-मूत्र-कफ-वमन-पित्त-शुक्र एवं शोणित आदि अशुद्धि के भण्डार हैं । यह मनुष्य शरीर और ये उससे सम्बन्धित काम-भोग अस्थिर हैं, अनित्य हैं, एवं सड़न-गलन तथा नाशमान होने के कारण आगे-पीछे कभी न कभी अवश्य नष्ट होने वाले हैं।
अष्टम अध्ययन
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