Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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इसलिये हे देवानुप्रिय ! मैं चाहता हूँ कि आपकी आज्ञा मिलने पर भगवान अरिष्टनेमि के पास प्रव्रज्या (श्रमण-दीक्षा) ग्रहण कर लूँ । तब उस गजसुकुमाल कुमार को कृष्ण वासुदेव और माता-पिता जब बहुत सी अनुकूल और स्नेह भरी युक्तियों से भी समझाने में समर्थ नहीं हुए तब निराश होकर अनचाहे ही श्रीकृष्ण एवं माता-पिता इस प्रकार बोलेयदि ऐसा ही है तो हे पुत्र ! हम एक दिन की तुम्हारी राज्यश्री (राज की शोभा) देखना चाहते हैं । इसलिये तुम कम से कम एक दिन के लिये तो राजलक्ष्मी को स्वीकार करो । माता-पिता एवं बड़े भाई के इस प्रकार अनुरोध करने पर गजसुकुमाल मौन रहे । 'मौनं सम्मति लक्षणं' मानकर बड़े समारोह के साथ १०८ स्वर्ण रजत आदि के कलशों से उनका राज्याभिषेक किया गया । गजसुकुमाल के राजगद्दी पर बैठने पर माता-पिता ने उससे पूछा-हे पुत्र ! अब तुम क्या चाहते हो? बोलो, तुम्हारी क्या इच्छा है ? गजसुकुमाल ने उत्तर दिया-मैं दीक्षित होना चाहता हूँ । तब गजसुकुमाल की इच्छानुसार दीक्षा की सभी सामग्री मंगाई गई । गजसुकुमाल सहस्र पुरुष वाहिनी शिविका में बैठ कर विशाल शोभा यात्रा पूर्वक भगवान अरिष्टनेमि के समवसरण में पहुँचे । माता-पिता ने भगवान को शिष्य भिक्षा दी । गजसुकुमाल ने स्वयं सभी आभरण उतारे, पंचमुष्टि लोच किया, फिर भगवान से प्रार्थना की-हे भन्ते ! अब आप ही स्वयं मुझे मुंडित करें, मुनि-वेष प्रदान करें और आचार धर्म का बोध देवें । प्रभु ने चरणसत्तरी, करणसत्तरी आदि का उपदेश दिया । अब वह गजसुकुमाल अणगार हो गये । ईर्यासमिति वाले यावत् गुप्त ब्रह्मचारी बन
गये । Maxim 26 :
Gaja Sukumāla remained silent hearing these words of Krsna Vāsudeva. After some times Gaja Sukumāla
अन्तकृदशा सूत्र : तृतीय वर्ग ।
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