Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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births. By this remembrance he raged up in fury and murmured-Oh this is the same Gaja Sukumāla desirous of undesirable-wisher of death, shameless and devoid of fortunes; who abandoning my matured, faultless daughter Somā (horn from the womb of my wife Somasri) without any cause became an ascetic.
विवेचन
गजसुकुमाल मुनि को ध्यानस्थ देखकर सोमिल के मन में अचानक इतना प्रचण्ड भीषण क्रोध क्यों उपज आया ? इसके पीछे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष कई कारण हो सकते हैं । प्रत्यक्ष कारण तो यहां स्पष्ट बताया गया है कि-पुत्री सोमा के साथ गजसुकुमाल का पाणिग्रहण होने वाला था । वासुदेव श्रीकृष्ण ने उसकी याचना करके उसे कन्याओं के अन्तःपुर में रखवाया, अब गजसुकुमाल उस कन्या को मंझधार में छोड़कर मुनि बन गये । इस कारण सोमिल को क्रोध आ गया ।
दूसरा परोक्ष कारण भी है जिसका संकेत आगम में दो वाक्यों में किया गया है-तं घेरं सरइ ..... वैर का स्मरण करके तथा “अणेग भव-सय सहस्स संचियं कम्मं उदीरेमाणेणं-लाखों भवों के संचित कर्मों की उदीरणा करते हुए। इस स्थान पर गजसुकुमाल एवं सोमिल के अतीत जन्मों की वैर परम्परा की एक कथा प्रसिद्ध है जो इस प्रकार है
गजसुकुमाल का जीव अनेकानेक भवों के पूर्व भव में एक राजा की रानी के रूप में था । उसकी सौतेली रानी के पुत्र होने से सौतेली रानी राजा को बहुत प्रिय हो गई । इस कारण, उसे सौतेली रानी से द्वेष हो गया और चाहने लगी कि किसी भी तरह से उसका पुत्र मर जाए ।
संयोग की बात है कि पुत्र के सिर में फोड़ा-गुमड़ी हो गई और वह पीड़ा से छटपटाने लगा । विमाता ने कहा-मैं इस रोग का उपचार जानती हूँ । अभी ठीक कर देती हूँ । इस पर रानी ने अपने पुत्र को विमाता को दे दिया । उसने उड़द की जाड़ी रोटी गर्म करके बच्चे के सिर पर बांध दी। वालक को भयंकर असह्य वेदना हुई । वह छटपटाने लगा और कुछ ही क्षणों में मर गया ।
कालान्तर में बालक का जीव सोमिल और विमाता का जीव गजसुकुमाल के रूप में उत्पन्न हुए । वेराणुबंधीणि महब्भयाणि-वैर के अनुबंध भयंकर होते हैं । अतः इस पूर्व वैर का स्मरण होने पर सोमिल को तीव्र क्रोध उत्पन्न हुआ और बदला चुकाने के लिये ध्यानस्थ मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांधकर खैर के धधकते अंगारे रख देने की भावना जागी । और पूर्व वैर वश इतना क्रूर पैशाचिक कृत्य कर डाला । (अन्तकृद्दशा सूत्र-आचार्य आत्मारामजी म. कृत हिन्दी टीका पृष्ठ १८ से)
अष्टम अध्ययन
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