Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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उवागच्छित्ता थंडिलं पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता उच्चार-पासवण भूमिं पडिलेहेइ पडिलेहित्ता ईसिं पब्भारगएणं काएणं जाव दो वि पाए साहट्ट एगराइयं
महापडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । महाप्रतिमा-धारण सूत्र २७ :
दीक्षित होने के पश्चात् गजसुकुमाल मुनि जिस दिन दीक्षित हुए, उसी दिन के पिछले भाग (तृतीय प्रहर) में जहां अरिहंत अरिष्टनेमि विराजमान थे, वहां आये। वहां आकर उन्होंने भगवान अरिष्टनेमि को तीन बार प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके इस प्रकार निवेदन कियाहे भगवन् ! आपकी अनुमति प्राप्त होने पर मैं महाकाल श्मशान में एक रात्रि की महाप्रतिमा धारण कर विचरना चाहता हूँ। प्रभु ने कहा-हे देवानुप्रिय ! जिससे तुम्हें सुख प्राप्त हो वही करो । गजसुकुमाल मुनि ने अरिहंत अरिष्टनेमि की आज्ञा मिलने पर भगवान अरिष्टनेमि को वंदन नमस्कार किया। वंदन नमस्कार कर अर्हत् अरिष्टनेमि के पास से चलकर सहस्राम्रवन उद्यान से निकले, और जहां महाकाल श्मशान था, वहां आये । महाकाल श्मशान में आकर प्रासुक स्थण्डिल भूमि (जीव-जन्तु रहित निर्दोष स्थान) की प्रतिलेखना-देखभाल करते हैं । इसके पश्चात् उच्चार- प्रस्रवण (मल-मूत्र त्याग) के योग्य भूमि का प्रतिलेखन करते हैं । इसके पश्चात् एक स्थान पर खड़े हो, अपनी देह यष्टि को किंचित् झुकाये हुए (दोनों हाथों को घुटनों तक लम्बा करके) एक पुद्गल केन्द्र पर दृष्टि जमाकर दोनों पैरों को (चार अंगुल के अन्तर से) सिकोड़ कर एक रात्रि की
महाप्रतिमा अंगीकार कर ध्यान में लीन हो गये । Acceptance of Special Vow of Mahāpratimā Maxim 27 :
After consecration, Gaja Sukumāla sage, in the first part of afternoon (third prahara of the day), the same day on
अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग
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