Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हे भद्दिलपुरे णयरे णागस्स गाहावइस्स पुत्ता सुलसाए भारियाए अत्तया छ भायरो सहोदरा सरिसया जाव णलकुब्बर-समाणा अरहओ अरिगुणेमिस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म संसार भयउव्विग्गा भीया जम्म-मरणाओ मुण्डा जाव पव्वइया । तए णं अम्हे जं चेव दिवसं पव्वइया तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठणेमिं वंदामो णमंसामो; बंदित्ता णमंसित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हामोइच्छामो णं भंते ! तुभेहिं अब्भणुण्णाया समाणा । जाव अहासुहं ! देवाणुप्पिए ! तए णं अम्हे अरहया अरिडणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छटुं छटेणं जाव विहरामो । तं अम्हे अज्ज छट्ठक्खमण पारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेत्ता जाव अडमाणा तव गेहं अणुप्पविट्ठा । तं णो खलु देवाणुप्पिए ते चेव णं अम्हे । अम्हे णं अण्णे !
देवइं देविं एवं वय? वइत्ता, जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। सूत्र ११:
देवकी द्वारा इस प्रकार का प्रश्न पूछे जाने पर वे मुनि देवकी देवी से इस प्रकार बोले-हे देवानुप्रिये ! ऐसी बात तो नहीं है कि कृष्ण वासुदेव की इस यावत् प्रत्यक्ष देवलोक के समान द्वारका नगरी में श्रमण निर्ग्रन्थों को उच्च-नीच-मध्यम कुलों में भ्रमण करते हुए आहार पानी प्राप्त नहीं होता है । और न मुनिजन आहार-पानी के लिए उन घरों-कुलों में दूसरी-तीसरी बार जाते हैं । हे देवानुप्रिये ! वास्तव में बात इस प्रकार है । भद्दिलपुर नगर में हम नाग गाथापति के पुत्र और उनकी सुलसा भार्या के आत्मज छः सहोदर भाई हैं । पूर्णतः समान आकृति एवं समान रूप वाले नलकूबर के समान हैं । हम छहों भाइयों ने अरिहंत अरिष्टनेमि का उपदेश सुनकर और उसे धारण
अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग
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