Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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तयाणंतरं च णं तच्चे संघाडए उच्च-णीय जाव पडिलाभेइ । पडिलाभित्ता एवं वयासीकिण्हं देवाणुप्पिया ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवईए णयरीए दुवालसजोयण-आयामाए णवजोयण-वित्थिण्णाए पच्चक्खं देवलोगभूयाए समणा णिग्गंथा उच्च-णीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणा भत्तपाणं णो लभंति ? जण्णं ताई चेव कुलाई भत्तपाणाए, भुज्जो भुज्जो अणुप्पविसंति ।
दूसरा संघाटक सूत्र १0 :
प्रथम संघाटक के लौट जाने के पश्चात् उन छः सहोदर साधुओं के तीन संघाटकों में से दूसरा संघाटक भी द्वारका के उच्च-नीच-मध्यम आदि कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करता हुआ महारानी देवकी के प्रासाद में आया । देवकी ने प्रथम संघाटक की भाँति दूसरे मुनि संघाटक को भी प्रसन्न मन से सिंह केसर मोदकों का प्रतिलाभ देकर विसर्जित किया ।
तीसरा संघाटक
द्वितीय संघाटक के लौट जाने के पश्चात् उन मुनियों का तीसरा संघाड़ा भी द्वारका नगरी के ऊँच-नीच-मध्यम कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करता हुआ महारानी देवकी के प्रासाद में प्रविष्ट हुआ । देवकी ने पहले आये दो संघाटकों के समान उस तीसरे संघाटक को भी प्रसन्न मन से सिंह केसरमोदकों का प्रतिलाभ दिया । प्रतिलाभ देकर आश्चर्य चकित होकर महारानी देवकी इस प्रकार बोलीहे देवानुप्रियो ! क्या कृष्ण वासुदेव की इस बारह-योजन लम्बी, नव योजन चौड़ी, प्रत्यक्ष देवलोक के समान, द्वारका नगरी में श्रमण निर्ग्रन्थों को उच्च-नीच एवं मध्यम कुलों के गृह समुदायों से, भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए
अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग .
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