Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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पच्चोरुहित्ता जेणेव सए वासघरे, जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता, सयंसि सयणिज्जसि णिसीयइ ।
१५ : तव उस देवकी देवी ने अरिहंत अरिष्टनेमि के मुखारविन्द से इस प्रकार रहस्य उदघाटित करने वाली बात सुनकर हृदयंगम की । संतुष्ट एवं प्रसन्न चित्त होकर अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान को वन्दन नमस्कार किया और वन्दन नमस्कार करके वे छहों मुनि जहाँ विराजमान थे, वहाँ आई । आकर उसने उन छहों मुनियों को वन्दन किया । वन्दन नमस्कार करके देवकी छहों अणगारों को अपलक देखने लगी । उन अणगारों को देखकर उसके हृदय में, पुत्र-प्रेम उमड़ पड़ा । उसके स्तनों से दूध झरने लगा । हर्ष के कारण उसकी आँखें विकसित हो गयीं
और खुशी के आँसू भर आये । अत्यन्त हर्ष के कारण शरीर फूलने से उसकी कंचुकी की कसं टूट गईं और भुजाओं के आभूषण तथा हाथ की चड़ियाँ तंग हो गईं । जिस प्रकार वर्षा की धारा पड़ने से कदम्ब पुष्प एक याथ विकसित हो जाते हैं, उसी प्रकार उसके शरीर के सभी रोम-रोम पुलकित हो गये । वह उन छहों मुनियों को निर्निमेष दृष्टि से देखती हुई चिरकाल तक निरखती ही रही । फिर स्वयं को संभालकर उसने छहों मुनियों को वन्दन नमस्कार किया । वन्दन नमस्कार करके वह जहाँ भगवान अरिष्टनेमि विराजमान थे, वहाँ आई और आकर अहँत् अरिष्टनेमि को तीन बार प्रदक्षिणा करके वन्दन नमस्कार किया । वन्दन नमस्कार करके उसी धार्मिक श्रेष्ट रथ पर आरूढ़ हुई । रथारूढ़ हो, जहाँ द्वारका नगरी है, वहाँ आयी और वहाँ आकर द्वारका नगरी में प्रविष्ट हुई। देवकी द्वारका नगरी में प्रवेश कर जहां अपने प्रासाद के बाहर की उपस्थानशाला अर्थात वैठक थी वहाँ आयी, वहाँ आकर धार्मिक रथ से
अष्टम अध्ययन
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