Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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भगवान अरिष्टनेमि एवं वासुदेव श्रीकृष्ण आदि का जन्म सुप्रसिद्ध हरिवंश में हुआ था । इस वंश में शौर्यपुर के स्वामी शूरसेन नाम के प्रसिद्ध राजा हुए । शूरसेन के पुत्र का नाम शूरवीर था । शूरवीर के दो पुत्र थे-अंधक और वृष्णि । इन दोनों भाइयों के नाम से यह कुल अंधक-वृष्णि कुल नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(उत्तराध्ययन वृत्ति. २२) • उत्तर पुराण (७0) के अनुसार शूरवीर के दो पुत्र थे अंधकवृष्णि और नम्वृष्णि ।
अंधकवृष्णि के दस पुत्र थे जो दशार्ह कहलाते थे-१. समुद्रविजय, २. अक्षोभ्य, ३. स्तिमित, ४. सागर, ५. हिमवान, ६. अचल, ७. धरण. ८. पूरण, ९. अभिचन्द्र, १0. वसुदेव ।
(अभयदेवकृत अन्तकृदशावृत्ति ।) • ईश्वर-सचित्र अर्धमागधी कोष के अनुसार 'ईसर' शब्द का प्रयोग-युवराज, मांडलिक राजा, अमात्य, श्रीमंत, श्रेष्ठी आदि के लिए किया जाता था ।
(स.अ. को. भाग-२, पृष्ठ १५८) महावल का वर्णन भगवती सूत्र शतक-११, उद्देशक ११ में आया है जिसका संक्षेप में हिन्दी भावार्थ अन्तकृदशामहिमा में दिया गया है । दाय-दात-कन्या के विवाह के पश्चात् दी जाने वाली वस्तु (ज्ञाता-वृत्ति) देवानुप्रिय-प्राचीन काल में यह एक मधुर सम्मानजनक सम्बोधन था । टीका ग्रन्थों में इस शब्द के दो अर्थ मिलते हैं-(१) देवों के समान प्रिय और (२) सरल आत्मन् । यह शब्द मुख्य रूप से जैन ग्रन्थों में ही मिलता है । वैसे यह सम्वोधन एक आम सम्बोधन था । पिता, पुत्र, गुरु, शिष्य, पति, पत्नी आदि सभी के लिए इसका प्रयोग ता था । सामान्य व्यक्ति के लिए भी 'देवानुप्रिय' शब्द का प्रयोग किया जाता था । वौद्ध साहित्य में 'देवानांप्रिय' शब्द मिलता है । मेघकुमार का वर्णन ज्ञातासूत्र अध्ययन १ के अनुसार संक्षेप में अन्तकृद्दशा महिमा में दिया गया है । संलेखना के विषय में विशेष स्पष्टीकरण अन्तकृदशा महिमा में देखें ।
Elucidation
Special Resolution of Monk (Bhikṣu Pratimā)
Ascetic Guutama had practised 12 Bhiksu Prutiinās (Special resolution of a monk) like great monk Skandhaka. The conception of Bhiksa Pratimās is as following
अन्तकृद्दशा सूत्र : प्रथम वर्ग
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