Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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(2) Samudra Kumāra, (3) Sāgara Kumāra (4) Gambhira Kumāra (5) Stimita Kumāra, (6) Acala Kumāra, (7) Kampilya Kumāra (8) Aksobha Kumāra (9) Prasenajita, and (10) Visnu Kuināra The subject matter of all these chapters is like monk Gautama. Thus these ten chapters are said.
[Chapters 2 to 10 concluded]
[First Section completed]
विवेचन
भिक्षु प्रतिमा
गौतम अणगार ने महामुनि स्कन्धक के समान भिक्षु की बारह प्रतिमाएँ धारण की प्रतिमाओं का संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है
पहली प्रतिमा का धारक साधु एक महीने तक एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की (दाता द्वारा दिये जाने वाले अन्न और पानी की अखण्ड धारा एक दत्ति कहलाती है) लेता है । एक से लेकर सात प्रतिमाओं का समय प्रत्येक का एक-एक मास बढ़ता जाता है । पहली एक मासिकी, दूसरी दो मासिकी, तीसरी त्रैमासिकी, चौथी चार मासिकी, पाँचवी पंच मासिकी, छठी षटमासिकी और सातवीं सप्तमासिकी कहलाती है । पहली प्रतिमा में अन्न पानी की एक-एक दत्ति, दूसरी में दो, तीसरी में तीन, यावत् क्रमशः सातवीं में सात दत्ति, अन्न की और सात दत्ति ही पानी की ली जाती हैं । आठवीं प्रतिमा का काल सात अहोरात्रि का है । और नवमी प्रतिमा का भी सात दिन रात है । आठवीं, नवमी, दसवीं प्रतिमा में चौविहार उपवास किया जाता है । ग्यारहवीं प्रतिमा का समय एक दिन रात का है और चौविहार वेला करके आराधना की जाती है । बारहवीं प्रतिमा का समय एक रात का है और चौविहार तेने से इसकी आराधना की जाती है ।
भिक्षु प्रतिमाओं का विस्तृत वर्णन अन्तकृद्दशा महिमा (परिशिष्ट) में देखिए । • रैवतक पर्वत को उज्जयन्त, ऊर्जयन्त, गिरीणाल और गिरनार भी कहा जाता है । महाभारत
आदि में भी इस रैवतक पर्वत का वर्णन आता है । • जिसमें भिन्न-भिन्न जाति के वृक्ष हों वह वन खण्ड कहलाता है । -ज्ञाता १ टीका
२-१० अध्ययन
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