Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Rajkumar Jain, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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तस्स णं भद्दिलपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तर-पुरस्थिमे दिसिभाए सिरीवणे णाम उज्जाणे होत्था, वण्णओ । जियसत्तू राया । तत्थ णं भद्दिलपुरे णयरे णागे णामं गाहावई होत्था, अड्ढे जाय अपरिभूए। तस्स णं णागस्स गाहावइस्स सुलसा णामं भारिया होत्था, सुकुमाला जाव सुरूवा । तस्स णं णागस्स गाहावइस्स पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए अणीयसेणे णामं कुमारे होत्था । सुकुमाले जाव सुरूवे । पंच धाई परिक्खित्ते । तं जहा-खीरधाई, (मज्जणधाई, मंडणधाई, कीलावणधाई, अंकधाई) जहा दढपइण्णे जाव गिरिकंदर-मल्लीणेव चंपकवरपायवे सुहंसुहेणं
परिवड्ढई। अनीकसेन कुमार सूत्र २ :
श्री सुधर्मा स्वामी-हे जम्बू ! उस काल उस समय में भदिलपुर नाम का नगर था । वह नगर उत्तम नगरों के सभी गुणों से युक्त, धन धान्यादि से परिपूर्ण, भय रहित एवं भवन-उपवन आदि से समृद्ध, वर्णन करने योग्य था । उस भदिदलपुर नगर के बाहर ईशान कोण में श्रीवन नाम का उद्यान था। वहां जितशत्रु नामक राजा थे । उस भदिलपुर नगर में नाग नामक गाथापति रहता था । वह ऋद्धि सम्पन्न एवं अपराभूत-किसी वात से हार मानने वाला नहीं था । उस नाग नामक गाथापति के सुलसा नामक पत्नी थी । वह सुकुमार एवं रूपवती थी । उस नाग गाथापति एवं सुलसा पत्नी के अनीकसेन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । वह भी सुकुमार एवं रूपवान था । पांच धायों के द्वारा उसका पालन-पोषण किया गया । पाँच धायमाताएं इस प्रकार थीं
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अन्तकृद्दशा सूत्र : तृतीय वर्ग
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