Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अमेयचन्द्रिका टीका श० ५ १० १ सू०४ लषणसमुद्रवक्तव्यतानिरूपणम् ७९ __छाया- लवणे खलु भदन्त ! समुद्रे सूर्ण उदीची-प्राचीनम् उद्गत्य० ? या एव जम्बूद्वीपस्य वक्तव्यता भाणता, सा एव सर्वा अपरिशेषिका लवणसमुद्रस्पापि भणितव्या, नवरम्-अभिलापोऽयं ज्ञातव्यः- यदा र लु भदन्त ! लवणे समुद्रे दक्षिणाधे दिवसो भवति, रदेव यादत तदा लणस्स्द्रे पोसत्य-पश्चिमे रात्रिर्भवति, एतेन अभिलापेन ज्ञातव्यम् , यदा खलु भदन्त ! लवणसमुद्रे दक्षि.
लवणसमुद्रादि की विशेषवक्तव्यता(लवणेणं भंते ! समुद्दे ) इत्यादि। सूत्रार्थ-(लवणेणं भंते ! समुद्दे सूरिया उदीचि पाईणमुग्गच्छ) हे भदत! समुद्र में सूर्य ईशान दिशा में उदित होकर आग्नेय दिशातरफ जाते हैं क्या ? (जच्चेव जंबुद्दीवास वत्तव्वया भणिया ) हे गौतम ! जंबूद्वीप में जैसी वक्तव्यता सूर्यों के विषय में कही गई है वैसी ही पूर्ण वक्तव्यता यहां पर कहनी चाहिये । (नवरं) परन्तु उसकी अपेक्षा जो यहां की वक्तव्यता में अन्तर आता है वह इस प्रकार से है कि (अभिलावो इमो णेयच्चो) यहाँ पर अभिलाप इस प्रकार से बोलना चाहिये ( लवणे समुद्दे दाहिणढे दिवसे भवइ ) हे भदन्त ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्ध में दिवस होता है (तं चेव जाव तया णं लवणसमुद्दे पुरथिमपच्चस्थिमे णं राई भवइ, एएणं अभिलावेण णेयव्वं ) उस समय उत्त. रार्ध में भी दिवस होता है इत्यादि रूप से जंबूद्वीप की वक्तव्यता में जैसा पहिले कहा जा चुका है वह सब प्रकरण यहां पर ग्रहण कर लेना
-सपा समुद्राहिनी विशेष १४०यता
-(लवणे ण भंते ! समुहे) त्याहसूत्राथ-(सवणेण भंते ! समुद्दे सूरिया उदोचि-पाईण मुग्गच्छ. ) उमहन्त ! લવણ સમુદ્રમાં સૂર્ય ઈશાન દિશામાં ઉદય પામીને શું અગ્નિ દિશા તરફ तय छ ? ( जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया) गौतम! दीपमा સૂર્યોના વિષયમાં જેવી પ્રરૂપણ કરવામાં આવી છે, એવીજ સંપૂર્ણ પ્રરૂપણ અહીં ५४४ ४२वी नेणे, (नवर) ५ ते पाणुन ४२di 241 १ नमनीय प्रभाए ३२१२ समय। ( अभिलायो इमो णेयव्वो ) मी २॥ प्रमाणे २८५४ मनाने से ( लवणे समुद्दे दाहिणढे दिवसे भवइ ) महन्त! यारे समुद्रना हक्षिामा हिवस थाय छे (तंचेव जाव-तयाण लवणसमुद्दे पुरथिमपच्चत्थिमे ण राई भवइ, एएण अभिलावेण णेयव्व ) त्यारे तेन। उत्तराभा ५५Y શું દિવસ થાય છે? ઈત્યાદિ જે કથન જંબુદ્વીપની વક્તવ્યતામાં પહેલાં કરાયું
श्री.भगवती सूत्र:४