Book Title: Mantra Mahodadhi Granth
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir lain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For private and Personal use only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ मन्त्रमहोदधिग्रन्थस्थविषयानुक्रमणिका प्रारभ्यते। विषयाः प० पृ० प्रथमस्तरंगः१ ग्रंथादौ मङ्गलाचरणम् . Balप्रातरारभ्य मंत्रिकृत्यवर्णनम् B तत्र द्वारपूजाक्रमः ..... प्राणायामविधिः 9 भूतशुद्धिः ........ प्राणप्रतिष्ठा .... .... BA न्यासविधिः .... मतपीठदेवतान्यासः विषयाः प्राणशक्तिभ्यानम् .... .... सप्तार्णमंत्रोद्धारः ........ मातृकान्यासवर्णनम् पीठशक्त्यर्चनम् .... सृष्टयादिन्यासवर्णनम् पुरश्चरणधर्मकथनम्। होमविधिवर्णनम् .... .... वहिनवार्णमन्त्रोद्धारः .... वद्विचतुविशत्यक्षरमन्त्रीद्धारः श्लोकमन्त्राग्निमन्त्रोद्धारः .... .... For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प० पृ० मं.म. अनु० // 1 // 15-1 15-2 15-2 6-1 11-2 विषयाः प० पू० |जिहाबीजोद्धारः .... .... अग्निध्यानम् .... .... .... 10-2 अपर्चनादिवर्णनम् 10-2 अष्टभैरवनामकथनम् 11-1 ब्रह्ममंत्रोद्धारः ..... 11-2 क्युवसंस्कारः ..... 11-2 शक्तित्रयम् .... ..... अग्निषट्संस्कारकरणम् |इष्टदेवपीठपूजनादिकथनम् .... .... 13-2 Salपवित्रप्रतिपत्तिः .... .... .... तर्पणादिकथनम् श्लो०२०६ .... .... .... .... 14-1 द्वितीयस्तरंगः२ गणेशमंत्रकथनम् .... .... .... .... .... .... 14-2 | गणेशषडक्षरमंत्रसाधनकथनम् .... .... गणेशध्यानम् ..... .... .... .... .... .... 14-2 विषयाः. गणेशमंत्रासद्धिविधानम् .... .... गणेशस्यपश्चावरणपूजाविधिः ..... काम्यप्रयोगसाधनम् ........ मंत्रान्तरकथनम् .... .... अभीष्टप्रदायकएकत्रिंशद्वर्णात्मकोमन्त्रः षडक्षरोऽपरोमंत्रः ............. नवाक्षरो मंत्र:.... .... .... .... .... .... .... उच्छिष्टविनायकविधानम् .... .... .... कुलालवल्मीकमृत्तिकादीनांकृताप्रतिमाराज्यादिदात्री भवति .... .... .... .... .... एकोनविंशद्वर्णात्मकोबलिदानमंत्रः .... ... .... द्वादशार्णोऽपरो मंत्रः .... नवार्णमंत्रस्थदशवर्णात्मकंदैविध्यम् .... .... .... एकोनविंशद्वर्णात्मकउच्छिष्टविनायकमंत्रः .... .... धनधान्याद्यतुलयशोदाता सप्तत्रिंशदक्षरात्मक उच्छि टगणनाथमंत्रः .... ............ // 1 // 18-1 For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie विषयाः प० पृ० अस्यमंत्रस्यानुष्ठाननराजसभावल्यादयस्तथा अर्युच्चाट नादयोनानासिद्धयः .... .... .... .... .... 18-2 दात्रिंशद्वर्णात्मकोऽपरोमंत्रः .... .... .... .... 19-2 चतुरक्षरः शक्तिविनायकमंत्रः .... .... .... .... 20-1 अस्यघृताक्तानादिहोमेन अन्नलम्यादिप्राप्तिः .... 20-2 भष्टाविंशत्यर्णात्मको लक्ष्मीगणेशमंत्रः .... ... .... 20-2 अस्यमवस्यसिद्धिकरणविधिः धनवृद्धयादिफलानिच 21-1 त्रयस्त्रिंशद्धात्मकत्रैलोक्यमोहनो गणेशमंत्रः.... .... 21-2 Bअस्यमंत्रस्यकमलकुसुमादिहवनेन राजमंत्र्यादयो वशमायांति .... .... .... .... .... .... 22-1 द्वात्रिंशद्वर्णात्मको हरिद्रागणेशमंत्रः .... .... .... 22-2 माअस्यमंत्रस्प विधानाध्यापुत्रप्राप्यादिनानासिद्धयः श्लोकसं० 135 .... .... .... ............ 23-1 तृतीयस्तरंग: 3 कालिकायाद्वाविंशत्यात्मको मंत्रः .... .... .... 23-2 विषयाः प० पृ० ध्यानं पीठाद्यावरणपूजा पीउदेवता च .... .... .... अस्यमंत्रस्यनानाविधानानिनानाफलदानि ........ अथकालीमंत्रभेदास्तत्र एकविंशत्यात्मको मंत्रः .... चतुर्दशार्णकोमंत्रो नृसुराद्याकर्षणक्षमः .... .... द्वाविशत्यणामंत्रः वशीकरणक्षमः .... .... .... 26-1 पंचदशार्णमंत्रः, पडर्णमंत्रः, पंचार्णमंत्रः, सप्तार्णमंत्रश्च 26-1 दाविशद्वर्णात्मको गायत्रीसुमुखीमंत्रः ध्यानंच .... मंबसिद्धे विधानं प्रयोगफलकथनंच श्लोकसं०७५ .... चतुर्थस्तरंगः४ तारामन्त्रः .... ताराया मंत्रांतरम् .... षडंगन्यासः ........ ग्रहन्यासः .... .... ताराध्यानम् .... .... तारापीठमंत्रः ........ 31-2 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प० पृ० 36-2 36-2 37-1 मं०म० विषयाः प० पृ० | नित्यवलिदानमंत्र: .... .... ........ .... .... 31-2 // 2 // जलग्रहणादिमंत्रोद्धाराः .... भूशोधनविनवारणमत्रकथनम् 322 भूतशुद्धिमंत्रकथनम्। 32-2 भूमिनिमंत्रणमंत्रः .... 32-2 मंडलमंत्रः .... .... 32-2 चित्तशोधनमंत्रः .... .... 33-1 Hal पुष्पशोधनमंत्रः ..... 33-1 अघस्थापनम् .... .... .... मंत्रचतुष्टयेनमहाशङ्खपूजा अर्कमंडलपूजा .... .... 34-2 चंद्रमंडलपूजा .... .... .... 34-2 एकादशार्णमंत्रोद्धारः .... .... 34-2 तर्पणमंत्रः .... .... .... .... .... .... .... 35-1 पीठेशक्तिपूजायांगणेशध्यानादिकथनम्.... 35-1 नित्यपूजांतेबलिदानं द्विपंचाशदर्णमंत्रः .... 36-1 विषयाः तस्यमंत्रस्यप्रयोगान्तरम् .... ......... बलिदानेऽन्यः षोडशार्णमन्त्रः .... .... अस्यमंत्रस्य प्रयोगांतराणि.... .... .... यंत्रकथनं तत्फलानिच श्लोकसं० 124.... पंचमस्तरंगः 5 ब्रह्मोपासितताराविद्याकथनम् .... .... विष्णूपासितताराविद्याकथनम् विष्णूपासिताद्वितीयताराविद्या .... चतुर्मुखोपासितविद्याद्वयकथनम् एकजटाविद्याद्वयम् .... .... .... / नारायणीया ताराविद्या .... .... उक्तानामष्टविद्यानामृष्यादिकथनम् ध्यानवर्णनम् ..... ..........." / प्रयोगवर्णनम्.... .... .... .... / एकजटामंत्रः .... .... ..... 38-1 38-1 8-2 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प० पृ० प० पृ. 43-2 40-1 44-2 40-1 ม ม ม विषयाः नीलसरस्वतीमंत्रः .... .... नीलसरस्वत्याअपरोमंत्रः .... विद्याराज्ञीमंत्रः .... ध्यानवर्णनम् .... .... प्रयोगवर्णनम्.... .... अष्टसिद्धिकथनम् .... .... अष्टभैरवकथनम् .... .... सप्तमातृकाकथनम् .... .... चतुःषष्टिशक्तिकथनम् .... Bal द्वाविंशच्छक्तिकथनंपूजाविधिश्च षोडशशक्तिपूजनम् .... .... Na अष्टसरस्वतीपूजनंमंत्राश्च ... .... डाकिन्यादिषण्णांपूजनम् .... .... परादितिमृणांपूजनम् ........ चतारेशीपूजनफलकथनम् .... .... तारेश्याःसात्विकादित्रिविधध्यानानि विषयाः अस्यमंत्रस्यनानाफलकथनम् श्लोकांकाः 95 .... .... षष्ठस्तरंग:६ छिन्नमस्तामंत्रः .... .... ..... अस्त्रमंत्रः .... .... ......... .... ध्यानवर्णनम् .... .... .... .... अस्यमंत्रस्यप्रयोगकथनम् .... .... पीठस्थनवदेवताकथनंपूजन विधिश्च पीठमंत्रः शिवापूजन विधिरावरणदेवताश्च अस्यविधानस्यनानासिद्धिकथनम् प्रयोगांतरेणफलकथनम् .... .... छिन्नमस्तायाउत्कीलनम् .... .... रेणुकाशबरीविद्यामंत्रः .... .... ध्यानवर्णनंजपादिपूजाविधानंच .... विवाहसिद्धिदास्वयंवरकलामंत्र..... अस्यमंत्रस्यषडंगन्यासप्रकारः .... ม 45-2 40-2 40-2 40-2 40-2 41-1 41-2 41-2 43-1 43-2 43-2 ม 46-2 47-1 ม รับ 48-1 For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंमा अना // 3 // .... م م ب ب ب Ji विषयाः प० पृ० विषयाः प० पू०d ध्यानवर्णनंपूजाविधानंच .... .... 48-1 देव्याःप्रत्यक्षदर्शनादिफलकथनम् समृद्धिपददोमधुमतीमंत्रः .... ...... सर्वसौख्यप्रदोऽपरोयक्षिणीमंत्रः .... .... ध्यानपूजनादिविधिश्च .... .... भूमिगतनिधिदर्शनदोमेखलायक्षिणीमंत्रः / / नानाभोगप्रदोऽपरोमधुमतीमंत्रः .... रोगनाशकोविशालायक्षिणीमंत्रः ..... .... d इष्टप्राप्तिदाप्रमदामंत्रः .... वाराहीमंत्रःशत्रुनिग्रहकरः.... .... ध्यानजपपूजादिविधानंच .... वाराहीध्यानम् .... .... .... .... प्रमोदादर्शनदःप्रमोदामंत्र..... .... धूमावतीविधाने धूमावत्यष्टार्णमन्त्रः .... कारागृहमोक्षणक्षमोबंदीमंत्रः ..... धूमावतीमंत्रस्यर्षिदेवतादिकथनम् ध्यानजपपूजाप्रकारादि ............ धूमावतीमन्त्रफलम्.... .... .... प्रयोगांतरकथनम् .... .... .... .... कर्णपिशाचिनीमन्त्रस्तद्विधानवर्णनम् .... अष्टादशवर्णात्मकःसएवमंत्रः श्लो० 99 50-2 शीतलामन्त्रस्तद्विधानवर्णनम् स्वप्नेश्वरीमंत्रस्तद्विधानवर्णनम् .... .... सप्तमस्तरंगः७ मातंगीमंत्रविधानवर्णनम् .... .... .... सर्वेष्टसिद्धिदोवटयक्षिणीमंत्रः .... .... .... .... 51-1 पीठमन्त्रपीठपूजाविधिवर्णनम् .... .... घडंगन्यासोंगन्यासश्च .... .... .... .... .... 51-1 बाणेशीमंत्रस्तद्विधानवर्णनम् .... .... .... 56-2 ध्यानजपहोमआवरणदेवतादिकथनम् ............ 51-1 / कामेशीमन्वस्तादधानवणनम् श्लाकाकाः५१२... | कामेशीमन्वस्तद्विधानवर्णनम् श्लोकांका:११३.... .... 57-2 و به नम्.... .... 30 an 20 For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प० पू०ini M 65-2 TTT विषयाः प० पृ० अष्टमस्तरंग:८ बालात्रिपुरामन्त्रकथनम् .... 58-1 सन्यासविधिवर्णनम् .... .... 58-1 ध्यानकथनम् .... .... पूजामंत्रवर्णनम् .... Baपीठमंत्रकथनम् .... .... अंगपूजाकथनम् .... .... फलानुसारेण प्रयोगकल्पना अवश्य करतिलककथनम् फलांतरानुरोधाद्धयानभेदानांवर्णनम् सप्तदिव्यौघवर्णनम् .... .... .... पंचसिद्धौघवर्णनम् .... ....... पुराख्ययन्त्रकथनम् .... .... .... बालात्रिपुरागायत्रीमन्त्रोद्धारः .... .... तंत्रांतरगुप्तानांचतुर्दशचालाभेदानां चतुर्दशमंत्रकथनम् 63-2 THATI विषयाः तेषांमंत्राणामृप्यादिकथनम् ध्यानवर्णनम् .... .... .... लघुश्यामामंत्रकथनम् .... न्यासकथनम्............ बाणेशीबीजानि .... .... अष्टमातृकान्यासः .... .... अष्टाप्सरसोनामानिन्यासश्च यक्षादिकन्यान्यासकथनम् .... मातंगीध्यानकथनम् .... ..... प्रयोगकथनम् .... .... .... ..... चतुःषष्टियोगिनीकथनम् .... .... .... .... लघुश्यामायादादशावरण जागायत्रीकथनंच.... .... अस्यविधानस्यनानाफलकथनम् श्लो० 44 .. .. नवमस्तरंगः 9 अन्नपूर्गेश्वरीमंत्रः .... .... .... .... 777 WW 60-2 TTP 68-2 For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Railassagarsuri Gym de www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra . प० पृ० अनु० THAT 00 म०म० विषयाः ध्यानवर्णनम् ................. // 4 // जपहोमपूजादिकथनम् .... ........ शिवबाराहमाधवमंत्रकथनम् .... श्रीबीजभूबीजादिकथनम् मंत्रफलकथनंच Raमाहेश्वरीअन्नपूर्णामंत्रः .... .... अपरोमंत्रः .... .... .... प्रसन्नपारिजातेश्वर्यन्नपूर्णामंत्रः .... प्रसन्नवरदान्नपूर्णामंत्रः .... ... लोक्यमोहनगौरीमंत्रः .... .... षडंगकथनप्रकारोऽपरः .... .... ध्यानजपहोमाद्यनुष्ठानफलकथनंच रविमंडलमध्यस्थदेव्यनुष्ठानंफलंच मंत्रपटककथनम् .... .... .... साध्यनक्षत्रवृक्षेसाध्याकृतिप्रयोगः ज्येष्ठालक्ष्मीमंत्रः .... .... .... मंत्राक्षरन्यासकथनम् .... .... TTTTTT 75-2 विषयाः ध्यानपीठदेवतागायत्र्यादिकथनम् अन्नदमंत्रकथनम् .... .... वैष्णवीयाअष्टपीठशक्तयः .... बलाकादयोऽन्याअष्टशक्तयः / / कुबेरमंत्रोद्धारध्यानादिच.... प्रत्यंगिरामंत्रः .... .... ध्यानप्रयोगादिकथनम् बलिमंत्रपूर्वकंबलिदानम् .... दिक्षुबलिदानप्रकारकथनम् प्रत्यंगिरामालामंत्रः .... .... .... ध्यानजपादिमंत्रसिद्धिकथनम् .... शत्रुनाशकमंत्रः .... .... .... षडंगक्रमेणध्यानवर्णनम् .... .... अस्यमंत्रस्यप्रयोगकथनम् श्लो० 132 .. दशमस्तरंगः 10 बगलामुखीमंत्रः .... .... ... .... .... .... DEducassgccesLUSeOpussssssssUASSESALESEAssicas 71-2 .... 72-1 72-2 72-2 78-2 For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प. पृ० 79-1 / विषयाः ध्यानजपादिविधानम ........ .... अष्टषोडशपीठदेवताकथनम् .... .... | अस्यमंत्रस्यनानाविधानेननानासिद्धयः.... नायबादिसाधनप्रकारः .... .... .... खपवागहीजनवशकरणोमंत्रः .... .... ध्यानजपपीठदेवतादिपूजाकथनम् Baa यंत्रादिप्रयोगसाधनकथनम् .... BOसिद्धिप्रदमहायंत्रकथनम् ........ दिक्पालानांबीजानि ... .... .... वार्तालीमंत्रः ... ......... मध्यानज पपीठदेवतापूजादिकथनम् वाराहीमंत्रकथनम् .... .... योगिनीगणेशादीनांमंत्राः .... .... बटुकस्यबलि.मंत्रः .... .... .... क्षेत्रपालबलिमंत्रकथनम् ..... योगिनीगणेशादीनांवलिमंत्रकथनम् .... ... 82-1 82-1 विषयाः तत्तहेवतानांमुद्राकथनम् .............. एषांमंत्राणांसाधनप्रकारः ..... .... .... ..... .... शकटाभिधमहादेव्यायंत्रम्.... .... .... शत्रवाक्स्तंभनविधानम् श्लो 0119 .. एकादशस्तरंग: 11 मंगल पूर्विकं श्रीविद्याकथनम् ......... आदीमंत्रोद्धारः ..............." कूटत्रयकथनंतत्संज्ञाच .... .... .... षोडशाक्षरीत्रिपुरसुंदरीश्रीविद्याकथनम् मुन्यादिन्यासकथनम् ............ आसनबीजमुद्रादिन्यासकथनम् .... .... वर्णन्यात:वाग्देवतान्यासश्च .... .... सृष्टिन्यासास्थितिन्यासःपंचावृत्तिन्यासश्च टीकायांषोढान्यासकथनम् गणेशम.तृकान्यासः Datestan- POOTOSSSSSSSSSSERTNERNSSSSSSSSSSSSSSSSSS 55555555555591-yatranvastany - - .... .... 83-1 84-1 "TT 84-2 For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir or मं०म० // 6 // विषयाः प० पृ० ग्रहमातृकान्यासः नक्षत्रमातृकान्यासः योगिनीमातृकान्यासः राशिमातृकान्यासः पीठमातृकान्यासः वश्यादिचतमृणांमुद्राणांलक्षणानि .... .... .... 93-2 ध्यानजपपूजादिप्रकार तदंतर्गतमंत्राश्च............ 94-1 धूम्रार्चादीनामग्नेर्दशकलानामर्चनकथनम् .... .... 942 कलशार्चनमंत्रः .... .... .... ........ .... 95-1 तपिन्यादिदादशसूर्यकलाकथनम् .... .... .... 95-1 अमृतादिषोडशचंद्रकलाकथनम् / 95-2 भैरवमंत्रःसुधादेवीमंत्रश्च .... | अष्टवर्णमंत्रकथनम् .... .... .... ज्योतिर्मयीदेव्यायजनप्रकार: 96-2 |मायाकलादितत्वानांकथनम् पीठमंत्रीद्धारः .... .... .... 97-2 विषयाः पप्पांजलिमंत्रः .... .... .... .... .... .... तर्पणध्यानादिकथनम् श्लो० 111 .. .. .. द्वादशस्तरंगः 12 श्रीविद्यायाःपरिवारपूजनप्रकारः पंचदशनित्यादेवीमंत्रास्तेषुकामेश्वरीमंत्र: भगमालिनीमंत्रः नित्यक्किनामंत्रः .... .... .... ..." 99-2 भेरुंडामंत्रः .... .... .... .... .... 100-1 वन्हिवासिनीमंत्रः .... .... .... .... 100-1 महाविद्येश्वरीमंत्रः .... .... .... .... 100-1 शिवदूतीमंत्रः त्वरितामंत्रः कुलसुंदरीमंत्रच 100-2 नित्यानीलपताकिनीविजयानां मंत्राश्च .... .... 101-1 सर्वमंगलाज्वालामालिनीविचित्राणां मंत्राः .... 101-2 आसांमध्येत्रिपुरसुंदर्याःयजनम् .... .... .... .... 101-1 नानाविधगुरुकथनंतेषांपूजनप्रकारश्च .... .... .... 102--1 // 5 // For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 114-2 विषयाः प० पृ० Haआम्रायदेवतायजनम् .... .... .... ..... ....100-2 मी देवतापंचपंचकयजनप्रकारः .... .... 102-2 प्रथमपंचके लक्ष्म्यादिमंत्रदेवताकथनम् 102-2 द्वितीये कोशपंचकेपरंज्योतिर्देवताकथनम् 103-2 तृतीयेकल्पलतापंचके देवताकथनम् 104-1 चतुर्थेकामधेनुपंचके देवताकथनम् 104-2 पंचमेरनपंचके देवताकथनम् .... 105-1 षड्दर्शनयजनप्रकार: .... .... 105-2 नवावरणपूजनविधिः . .... ... 106-1 | होमविधानवटुकादिवलिदानप्रकारः 110--2 साधकाभीष्टसिद्धिदाःप्रयोगाः .... 110-2 Nalटीकायांकूटत्रयस्यद्वात्रिंशद्भेदकथनम् 111-1 गोपालसुंदरीमंत्रः ........ ........ 112-1 Dal अस्यमंत्रस्यन्यासत्रयकथनम् .... .... ध्यानजपादिपीठपूजाविधानम् श्लो० 173 .. .. त्रयोदशस्तरंग: 13 / हनुमन्मवकथनम् ... .... .... ... ........ 113-2 विषयाः प० पृ० हनूमहादशाक्षरमंत्रकथनम् .... .... .... 113-2 तस्यादिजपांतसाधनकथनम् 114-1 फलपरत्वेनप्रयोगविधिवर्णनम् विद्वेषणवश्यादिषुमंत्रयोजना .... 116-1 हनूमद्यंत्रकथनम् ..... ......... 116-2 हनूमन्मालामंत्रकथनम् .... .... 117-1 हनूमन्मंत्रांतरकथनम् .... .... षडङ्गन्यासादिकथनम् .... .... 118-2 हनूमन्मंत्रांतरतद्विधिविविधप्रयोगवर्णनम् 119-1 उदररोगनाशकमंत्रकथनम् ..... 119-2 प्लीहरोगनाशकप्रयोगकथनम् शत्रुविजयकरप्रयोगकथनम् हनूमद्यंत्रकथनम् .... .... .... हनूमष्टाक्षरमंत्रः ............ हनूमन्मालामंत्रः .... ..... अष्टार्णमालामंत्रयोः स्वतंत्रत्वकथनम् श्लो० 221 .. 121-1 120-1 112-2 120-2 120-2 120-2 For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RBI BHO मा मं०म० प० पृ०130 ? - IC 127-1 127-2 128-1 128-2 8-2 विषयाः प० पू० चतुर्दशस्तरंगः 14 विष्णुमंत्रकथनम् .... .... ............ .... 121-1 | नरसिंहकाक्षरमंत्रकथनम् .... ... ..... 121-1 व्यर्णमंत्रद्वयकथनं तदृषिच्छंदआदिकथनंच .... 121-2 उक्तमंत्रप्रयोगावधिवर्णनम् .... .... .... .... 122-1 मन्बप्रभावाद्वैरिमरणे प्रायश्चित्तकथनम्.... 122-2 नृसिंहाष्टाक्षरमंत्रतद्विधिकथनम् .... .... नृसिंहविशदर्णमंत्रतद्विधिकथनम्। 123-1 नृसिंह नवनवत्यक्षरमंवतद्विधिकथनम् .... Balअभयनृसिंहमंत्रकथनम् .... .... .... 124-2 गोपाल दशाक्षरमंत्रकथनम्.... .... .... पंचांगन्यासवर्णन्यासध्यानकथनम् .... 125-1 पीठ पूजाप्रकारकथनम् / .... ....125-1 |फलपरत्वेन प्रयोगांतरकथनम् .... .... ....125-2 द्वितीयगोपालाष्टवर्णमंत्रतद्विधिपीठपूजाप्रकारकथनम् 126-1 122-2 विषयाः स्त्रीवशीकारिगोपालमंत्रकथनम् ... .... गोपालद्धादशाक्षरमंत्रकथनम् तद्विधिश्च अष्टाक्षरगोपालमंवतद्विधिकथनम् ..... चतुरक्षरकृष्णमंत्रतंद्विधिकथनम् .... पुत्रप्रदकृष्णमंत्रतद्विधिवर्णनम् .... .... विषहरोगरुडमंत्रातद्विधिवर्णनम्..... .... पीठदेवतापूजाप्रकारः श्लो० 130 ..... पंचदशस्तरंगः 15 रोगदारिद्यनाशनोरविमंत्रः .... .... .... षडंगाष्टांगपंचांगवर्णमंडलाग्नीषोमहंसग्रहारमका अष्टन्यासाः ... ............ .... ध्यानावरणादिपूजाकथनम् ........ अर्घ्यदानप्रकारवर्णनम् ... .... .... सुतधनप्रदोमंगलमंत्रस्तद्विधिवर्णनम् .... .... पुत्रप्राप्तिकरंभौमव्रतम् .... .... .... 239-2 129-2 0-1 AV AU AU AV AU .... .... 133-2 For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प० पृ० .... 146-1 146-2 146-2 147-2 विषयाः प० पृ० अंगारकगायत्रीवथनम् .... ............. .... 235-2 Halगरुमंत्रस्तांद्वधिकथनच .................... 135-1 शुक्रमंत्रस्तद्विधिश्च .... .... .... .... .... .... 136-1 Baव्यासमंत्रामृत्युंजयपुटितेन सह श्लो० 108 .... .... 136-2 षोडशस्तरंगः 16 महामृत्युंजयमंत्रः (संजीविनी) .... Malमुनिन्यासवर्णादिन्यासविधिकथनम् .... 138-1 | ध्यानवर्णनम् ............ 139-2 दशावरणपूजाप्रकारः .... .... .... 140-1 प्रयोगकथनम् .... ... .... .... .... 141-1 रुद्रजपांगभूतोऽपरोदशार्णमंत्रः .... 141-2 रुद्रविधानेएकविंशतिऋचात्मकन्यासः........... 141-2 अक्षरादिन्यासकथनम् .... .... .... रुद्रपूजनप्रकार:अष्टकानिच .... .... .... .... 144-1 नागानांवर्णजातिफणादिकथनम्.... .... विषयाः कवरमंत्रस्तद्विधिश्च .... .... ........ ..." .... सवदारयनाशनाऽपराकुबरमत्रः .... गंगामंत्रास्तद्विधिश्च .... .... .... .... .... मणिकर्णिकामंत्रौ श्लोकांकाः 136 ...... सप्तदशस्तरंगः 17 अभीष्टसिद्धिदाकार्तवीर्यार्जुनमंत्रः अस्यमंत्रस्यन्यासकथनपूर्वकपूजाप्रकार: दशदलात्मकेयंत्रेबीजादिस्थापनम् नानाप्रयोगसाधनम् .... ............ दशमंत्रभेदानांकथनम् .... .... मंत्रांतरकथनम् .... ......... हतनष्टलाभदोऽन्योमंत्रः .... .... कार्तवीर्यार्जुनगायत्री .... .... .... अखिलेप्सितदीपविधानकथनम् देवानांतोषकराणिनमस्कारादीनि श्लो०११७ JUJUOSINDURINTasses 148-2 149-2 150-2 151-1 151-2 152-2 153-1 153-1 153-1 157 1 | For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनु० 168-2 देत ALLLLLLLLL विषयाः प० पृ० मं०म० अष्टादशस्तरंगः 18 कालरात्रिमंत्रस्तद्विधिकथनंच .... .... .... .... 157-1 पूजायंत्रप्रकाराआवरणदेवताश्च .... .... 158-1 वशीकरणांगत्वेनजलौकापूजनम् ........ स्तंभनकथनमंत्रश्च ............ 160-1 मोहनंतस्यमंत्रश्च .... .... .... 161-1 आकर्षणंतद्विधिकथनंचं .... .... 161-2 | उच्चाटनमंत्रस्तद्विधिकथनंच 162-2 विद्वेषणंतत्प्रयोगश्च.... .... .... 163-1 BHमारणमंत्रःपुत्तलीकरणविधिः .... 164-1 Halअथचंडीविधानम् .... .... .... 164-2 नवार्णमंत्रस्यदेवतादिकथनम् ..... HEसारस्वतायेकादशन्यासास्तेषांफलानिच .... .... 165-1 त्रैलोक्यविजयकरोमातृगणन्यासः .... .... .... 165-2 अन्येन्यासाः तेषांफलानि .... .... ... .... .... 166-1 विषयाः प० पृ० महाकाल्यादितिमृणांध्यानानि .... .... आवरणदेवताकथनंपूजनंच .... चरित्रत्रयनित्यपउनस्यफलम् .... 168-1 शतचंडीविधानम् .... .... .... जपकर्तृणांदेयवस्तूनि ........ 169-1 नवार्णमंत्रजपप्रमाणम् .... .... 169-2 कन्यकापूजनप्रकारस्तासांमंत्राश्च 169-2 पंचमदिनेहवनकृत्यम् .............. शतचंडीविधानस्यफलकथनम् .... .... सहस्रायुतादिचंडीविधानंफलंच श्लो० 212.... .... 171-1 एकोनविंशस्तरंगः 19 कुक्कटमंत्रकथनम् .... .... .... ........ .... 171-2 ध्यानवर्णनंबलिदानप्रकारश्च .... .... नृपवश्यादिफलकथनम् .... .... .... / शत्रूच्चाटनंप्रयोगांतरकथनम् .... L LLLLLLLLLLLLLL // 7 // For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Railassagarsur Gym de www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विषयाः 182-1 182-1 I .... .... प० पृ० प्रयोगांतराणि.... .... .... .... .... ..... 173-2 |शत्रीगोमयमूर्तिकरणप्रयोगः / 174-1 उपासकसमृद्धिदः शास्तृमंत्रस्तद्विधिश्च / 174-2 पार्थिवलिंगविधानं बलगणेश्वरमंत्रश्च .... 175-1 लिंगमानकथनंकुमारमंत्रश्च / 176-1 ध्यानं पूजाविधिः आवरणदेवताश्च .... 176-2 हरादिमंत्रकथनम् ........ .... 177-1 लक्षलिंगपूजाफलकथनम् ........... 177-2 लिंगपूजायानानाफलानि .... .... .... .... .... 178-1 नरकरोधकरोयमधर्ममंत्रः ध्यानादि च.... 178-2 चित्रगुप्तमंत्रस्तदिधिश्च .... .... .... .... .... 179-1 आसुरीमंत्रः ध्यानं तदिधिश्च .... .... ......... 179-2 अस्य मंत्रस्यनानाफलानि .... .... .... .... .... 180-1 ग्रंथकर्तुमचकयनमुपसंहारविषयकप्रार्थना श्लो०१४९ 181-1 विंशस्तरंगः 20 यंत्राणां कथनं तत्र यंत्रसाधारणीक्रिया ... ... ... 181-1 विषयाः प० पृ० यंत्रावयवाः गायत्रीकथनं च .... .... भतलिपिकथनम् .... .... .... वश्यकरयंत्रकथनम् .... .... .... वशीकरणंद्वितीयंतृतीयं यंत्रकथनम् चतुर्थस्तंभनयंत्रकथनम् ........ पंचर्मराजमोहनयंत्रकथनम् .... षष्ठंमृत्युंजययंबकथनम् .... .... 183-2 जयावहंसप्तमयंत्रकथनम्..... 184-1 धनिवश्यकराष्टमयंत्रकथनम् 184-1 दुष्टमोहने नवमयंत्रकथनम् ......... 184-1 जयदंदशमयंत्रकथनम् .... ........ 184-2 एकादशंगणेशयंत्रकथनम् .... .... ..... दादर्शनृपवत्यकरंयंत्रकथनम् .... .... ..... १८५भृत्यवशंकरदुष्टवशंकरे त्रयोदशचतुर्दशे यंत्रे.... .... ललितायंत्रगौरीयंत्रंच .... ............. ..... 186-2 सुंदरीयंत्रमाकर्षणयंत्रं च .... .... .... .... .... 184-2 For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 8 // प० पृ० ..... 190-2 191-2 191-2 अनु० 192-2 193-1 E ARESERSELEISHussueupussemes 194-2 195-2 विषयाः प० पृ० त्रिपुरायंत्रमुखमुद्रणयंत्रंच .... .... एकविंशतिममग्निभयहरंयंत्रम् .... 187-1 विद्वेषणयंत्रकथनम् 187-1 मारणोच्चाटनेयंत्रे 187-2 शांतिकरंपंचविंशतिमयंत्रकथनम् 188-1 शाकिनीनिवर्तकंयंत्रम् .... .... 188-2 ज्वरहरंसप्तविंशंमंत्रम् .... .... 188-2 सर्पभयहरमष्टाविंशतिमंयंत्रम् .... चंधमोक्षकृदेकोनविंशंयंत्रम् .... 189-1 सिद्धयंत्रेषुमातृकादीनांपूजाविधिः .... 189-1 स्वर्णकर्षणोभैरवमंत्रः श्लो० 131 / 189-2 एकविंशस्तरंगः 21 नित्यपूजाविधिकथनम् .... .... .... .... .... 190-1 श्लोकद्धयेनेष्टदेवताप्रार्थनम् ........ .... 190-2 आंतरबहिःस्नानकथनम् .... ................ 190-2 ... ........... 188-2 विषयाः मंत्रस्नानकथनम् .... .... देवमनुष्यपितृतर्पणम् .... .... वैष्णवशैवयोस्तिलकविधिः / मंत्रसंध्याविधिः द्वारपालपूजनम् .... .... पूजागृहप्रवेशोत्तरमासनादिविधिः सुदर्शनमंत्र: ... .... .... ध्यानादिकथनम् .... .... मातृकान्यासकथनम् .... षडंगन्यासः ............ विष्णुध्यानादिकथनम् .... गणशमातृकान्यासः .... गणेशध्यानादिकथनम् .... कलामातृकापडंगन्यासकथनम् विष्ण्वाद्यंगमुद्राकथनम् ........ पीठन्यासकथनम् .... ........ 196-1 197-1 OLLGELCassesmaavar 197-1 198-1 .... 198-1 199-1 // 8 / For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषयाः -2 ans wer 210-2 000 UNNNNNNN ..... NNNNN 0000000 प० पृ० स्वागतायुपचारैर्मानापूजाविधिकथनम् श्लोक 170 200-2 द्वाविंशस्तरंगः 22 नित्यार्चनविधिवर्णनम् .... ..... _.... .... 201-1 घटस्थापनप्रकारवर्णनम् .... .... 201-1 देहमयपीठेऽन्तर्यागकरणविधिः .... .... .... .... 202-2 बाह्यपूजनेपीठादिपूजाविधिवर्णनम् तापीठशक्तिध्यानकथनम् .... .... 3-2 पंचायतनपूजाविधिवर्णनम् .... आवाहनाधुपचारमंत्रमुद्रादिकथनम् 204-1 Bal पाद्यद्रव्यकथनम् .... .... .... 205-1 आचमनीयद्रव्यकथनम् .... .... 205-1 Ba अर्घ्यद्रव्यकथनम् ..... .... 205-1 मधुपर्कद्रव्यकथनम्.... .... .... 205-1 Palनानवस्त्राभरणाद्युपचारकथनम् .... 205-2 विहितनिषिद्धपुष्पपूजाकथनम् .... ...... 206-1 wasaANITEDOMUSICJINASOULSIODIUM unita:4666666551076656 211-1 विषयाः. प० पृ० आवरणपूजाप्रकारप्रयोगकथनम् .... .... 207-1 धूपदीपविधि विशेषकथनम् .... नैवेद्यसमर्पणविधिवर्णनम्.... .... उच्छिष्टभोजिदेवताकथनम् .... आरात्रिकतांबूलाग्रुपचारकथनम्.... देवपरत्वेन प्रदक्षिणासंख्याकथनम् ब्रह्मार्पणमंत्रकथनम् .... ... 1-1 देवस्य संहारमुद्रयाहृदयेस्थापनम् ब्रह्मयज्ञपूवकयोगक्षेमादिकथनम्। पूजाया आवश्यकत्वादिकथनम् .... .... .... साधनाभाविनीत्रासीदौर्बोधीसूतक्यातुरीभेदेनपंचप्रकारपूजाकथनम् श्लो०१७९ .... .... .... .... 212-1 त्रयोविंशस्तरङ्गः 23 पवित्रदमनार्चनविधिवर्णनम् .... .... .... ....212-2 तत्र कामरतिमंत्रकथनम् .... ... .." 203-1 211-2 S For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प० पृ० मं०म० 220-1 अनु० 220-2 220-2 - : विषयाः प० पृ० कामनामकथनम् .... .... .... 213-2 पूजाद्रव्यकथनम् .... ........ 213-2 कामगायत्रीकथनम् .... .... .... दमनेन देवपूजाविधिकथनम् .... 214-1 पवित्रविधिकथनम् .... ........ 214-2 अधिवासनकथनम् .... 215-2 पवित्रकेणभगवदाराधनविधिवर्णनम् .... 216-1 पवित्रधारणविधिकथनम् .. .. .. .. .. 217-1 पवित्रार्पणकालनिर्णयः .. .. .. ... .. 217-1 देवोत्सव विशेषमासकालकथनम् श्लो०१००.. .. 217-2 चतुर्विंशस्तरंगः 24 मंत्रशुद्धिप्रकरणम् .. .. .. .. .. .. 218-2 सिद्धादिचक्रकथनम् .. .. ... ... .. 218-2 सिद्धादिकोष्ठफलकथनम् .. .. .. .. .. 219-2 प्रकारांतरेणसिद्धादिकथनम् .. .. .. .. 219-2 विषयाः अकडमचक्रकथनम् .. .. प्रकारांतरकथनम् .. .. .. नक्षत्रेषुवर्णविभागकथनम् .. .. ऋणधनशोधनवर्णनम् .. प्रकारांतरेणऋणधनशोधनम् पुनःप्रकारांतरवर्णनम् .. . मंत्रस्य ऋणित्वेहेतुकथनम् .. .. प्रकारांतरेण मंत्रशोधनवर्णनम् .. शोधनानपेक्षमंत्रकथनम् .. . अरिमंत्रत्यागप्रकारकथनम् .. .. मंत्रवैविध्यकथनम् .. .. .. बाल्यतारुण्यवार्धकेषुसिद्धिदामंत्राः वर्णानांजलाग्नेयादिसंज्ञाः वर्णानांस्वकुलान्यकुलत्वम् .. .. / पुनमत्रत्रैविध्यकथनम् .. .. .. . ANNrn CLASSOSCUSSESSSSSSONSIDEOSSADS ... 223-2 .. 233-2 224-1 224-3 For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie प० पृ० 228-1 ALLSLCOLLO 228-2 229-1 229-1 ति55555555555555555555 विषयाः प. पृ० विषयाः मंत्रदोषशांत्यर्थमंत्रस्यसंस्कारदशककथनम् .. 224-2 देवता तासां वर्णा ऋतवोदिशश्च .. .. ... .. मंत्रस्यजननम् .. .. .. .. 224-2 कर्मानुरूपदिनासनादिकथनम् . दीपनबोधनताडनाभिषेकविमलीकरणानि .... .. 225-1 विन्यासकथनम् . . . जीवनतर्पणगोपनाप्यायनानि .. .. .. .. 225-2 जलादिमंडलकथनम् . . . . कलौयेसिद्धिप्रदामबास्तेषांकथनम् .. .. 225-2 पद्मादिषण्मुद्राकथनम् . विप्रादित्रिवर्णदेयामंत्राः .. .. .. .. .. 226-1 मृग्यादिहोममुद्राकथनम् .. विप्रक्षत्रिययोदेयामंत्राः .. .. .. .. .. 226-1 कर्मानुरूपवर्णानांकथनम् .... वर्णचतुष्टयदेयामंत्राः .. .. .. .. .. .. 226-1 जातिरूपवर्णकथनम् .. . .. वर्णानुक्रमेणवीजाक्षरदानकथनम् .. .. .. 226--2 भूतोदयकथनंसमित्कथनंच ...... अथसाधारणहोमद्रव्यकथनम् .. .. .. .. 226-2 मालाकथनं मालागणनाप्रकार:मणिसंख्याच | ग्रहणादौसंक्षेपपुरश्चरणप्रकारः श्लो० 131 .. .. 227-1 शांत्यादिकर्मणिअग्निकथनम् .. .. प्रसंगात्काष्ठकथनमग्निजिहापूजनंच .. पञ्चविंशस्तरङ्गः 25 विप्रभोजनसंख्याकथनम् . . . . शांत्यादिषट्कर्मणामुपक्रमः .. .. .. .. .. 237-1 विप्रलक्षणंलेखनद्रव्यंविषाष्टककथनंच .. .. कर्मणांदेवतायेकोनविंशतिपदार्थकथनम् .. 227-2, भूर्जपत्रादिलेखनाधारकथनम् . .. 229-2 229-2 230-1 230-1 230-2 230-2 231-1 231-1 1-2 231-2 Mr . For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प० पृ . 232-1 . 232-1 मनु० विषयाः मंहमाकुडकथनंनुक्खुवादिकथनंलेखनीकथनंच .. शांत्यादीभक्ष्यान्नादिकथनम् .. .. . // 10 // शांत्यादौतर्पणजलंपात्रकथनंच ... आसनप्रकारः .. .. .. .. . काम्यकर्मोपसंहारकथनम् .. .. .. .. निष्कामभजनेफलकथनम् .. .. .. .. वेदोक्तकर्मकरणोत्कृष्टता .. .. .. .. देवतोपास्तिकुर्वताभविष्यद्विचार्यप्रवर्तितव्यम् वाशिर्वमनसिध्यात्वानिद्रांकुर्वतोःस्वप्नप्रकारः शुभस्वप्रकथनम् .. .. .. अशुभस्वप्नकथनम् .. .. .. मंत्रसिद्धेर्लक्षणम् .. .. .. .. .. Balलब्धज्ञानिनःकृतार्थताकथनम् .. ग्रंथसमाप्तीमंगलकरणम् .. .. .. .. aal ग्रंथकर्तुस्तरङ्गानुक्रमणिकाकथनम् विषयाः प० पू० ग्रंथकर्तुःस्ववंशकथनम् .. .. .. .. .. 235-2 | ग्रंथान्तेआशी-कथनम् .. .. .. .. .. 236-1 श्लोकत्रयेणदेवप्रार्थना .. .. .. .. .. 236-1 / ग्रंथनिर्मितिकालकथनम् श्लो० 132 .. .. .. 236-2 अंतेमातृकाकोशकथनम् . .. .. 237-1 WRMANANA Arm ny AY MY OY Y TTTT इति मंत्रमहोदधेरनुक्रमणिका समाप्ता // OD nu an Eng 234-1 .. 234-2 .. 234-2 234-2 पुस्तक मिलनेका ठिकाना खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेंकटेश्वर" छापाखाना-मुंबई. B001 For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुधाबीजं वं भूबीजं लं नभोवीज हं तेनशरीरंसावयवं कुर्यात् // 31 // 32 // चितम्ब्रह्मणःसका सुधाबीजेन(वं)देहोत्थंभस्मसंप्लावयेत्सुधीः॥भूबीजेन(ल)वनीकृत्यभस्मतत्कनकांडवत्॥३१॥ विशुद्ध मुकुराकारंजपवीजविहायसः(हं)।मू‘दिपादपर्य्यतान्यंगानिरचयेत्सुधीः॥३२॥ आकाशादीनिभूता निपुनरुत्पादयञ्चितः॥ सोहंमंत्रेणचात्मानमानयेद्धृदयांबुजे // 33 // कुंडलींजीवमादायपरसंगात्सुधा मयम् // संस्थाप्यहृदयांभोजेमूलाधारगतांस्मरेत् // 34 // भूतशुद्धिविधायैवंप्राणस्थापनमाचरेत्॥ प्राणप्रतिष्ठामंत्रस्यमुनयोजेशपद्मजाः॥ 35 // छंदऋग्यजुषंसामप्राणशक्तिस्तुदेवता / / पाशो(आं)बी जंत्रपा(ह्रीं)शक्तिर्विनियोगोऽसुसंस्थितौ // 36 // शात् // 33 // 34 // 35 // पाशआंत्रपाहीं असुसंस्थितौप्राणस्थापनेविनियोगः // 36 // १चितइति // विलापनव्युत्क्रमणचिदादितोमायादिप्रादुर्भावभावयेत् अहंकारादितआकाशादीनिप्रादुर्भूतानिभावयेदित्यर्थः // 2 // अस्यश्रीप्राणप्रतिष्ठामंत्रस्याजेशपद्मजाऋषयःऋग्यजुःसामानिच्छंदांसिप्राणशक्तिर्देवता आंबीजंह्रींशक्तिःौंकीलकंप्राणस्थापनेविनियोगः॥ SNESSPw For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सटीक त०१ मं०म० मकवर्गेतिक्रमतःपंचममतिप्रयोगः डंकखंघगंआकाशवायुतेजोजलपृथिव्यात्मनेहृदयायनमः वादि // 37 // ऋषीशिरसिवक्रेतछंदांसिहदिदेवताम् // गुह्येवीजपदो शक्तिंन्यस्यकुर्यात्पडंगकम् // 37 // कूवर्ग नभआद्यैर्हच्चशब्दायैःशिर स्मृतम्॥टश्रोत्राद्यैःशिखाप्रोक्तातवर्गायैस्तनुच्छदम्॥३८॥पवक्तव्यादिभि नेत्रमायेनांतरिद्रियैः॥आत्मनेंतान्मनूनंगान्विन्यसे वृदयादिषु // 39 // पंचमंप्रथमंपश्चाद्वितीयंचचतु र्थकम्।।तृतीयमित्थंक्रमतोवर्गवर्णान्समुच्चरेत्॥४०॥यवर्गप्येवमुच्चार्य्यनभः(ह)श्वेतों (पं) तिमो(शं)भृगुः (सं)।विमलश्चेति(लं)चोचार्याक्रमावर्णाःसविंदवः॥४१॥नभोवाय्वग्निवार्भूमिर्नभआदयईरिताः॥शब्द स्पर्शरूपरसगंधा शब्दादयोमताः॥४२॥ श्रोत्रंत्वग्नयनंजिह्वाघ्राणंश्रोत्रादयःस्मृताः॥वापाणी पाद पायूचोपस्थोवागादयःपुनः॥४३॥वक्तव्यादानगमनविसर्गानंदसंज्ञकाः॥ वक्तव्यायाबुद्धिमनोहंकाराश्चि त्तसंयुताः॥४४॥अंतरिद्रियसंज्ञाःस्युरेवमुक्तंपडंगकम्॥नाभेरारभ्यपादांतंपाशवीजप्रविन्यसेत् // 46 // // 38 // 39 // 40 // 41 // 42 // 43 // 44 // 45 // .1 प्रयोगस्तुडंकंखधंगनभोवाय्वग्निवार्भूम्यात्मनेहृदयायनमइत्यादिएवमेवाग्रेपिस्वस्वजातियुक्तंन्यसेत् // 2 // अंचंछंझंजंशब्द स्पर्शरूपरसगंधात्मनेशिरसेस्वाहा ॥२॥णंटठंडंडंश्रोत्रत्वङ्नयनजिद्दामाणात्मनेशिखायैवषट् // 3 // नंतंबंधंदवाक्पाणिपादपायूपस्थात्मने कवचायहुं॥शामपंफंभवक्तव्यादानगमनविसर्गानंदात्मनेनेत्रत्रयायवौषट् // 5 // शेयरंखलंहपंक्षसंलंबुद्धिमनोहंकारचित्तात्मनेअस्त्रायफट।॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शक्तिंहींशणिक्रौं॥४६॥आत्मनेइतिआत्मनेनम इत्यंतानित्वगादीनि हृदि न्यस्येत्यादिवर्णपूर्वाणियंत्वगा त्मनेनम इत्यादि।सद्य ॐकारस्तदन्वितआकाशोहःतदाद्यमोजा होंओजआत्मनेनमःखं हः तदादिकंप्रा6 नणं हं प्राणात्मनेनमः॥४७॥ भृगुःसः॥ तदादिकं जीवं संजीवात्मनेनमायादयोवर्णाश्चंद्रेणानुस्वारेणभूषि नाभ्यंतहृदयाच्छक्ति (ही) हृदंतमस्तकाच्छृणिम् (कौं)॥ त्वंगसृङ्मांसमेदोस्थिमजाशुक्राणि विन्यसे त्॥४६॥आत्मनेहृदयांतानियादिसप्तादिकान्यपिओजःसद्यान्विताकाशपूर्वप्राणंतुखादिकम्॥४७॥ भृग्वादिकंन्यसेज्जीवमेतानहृदयदेशतः // यकाराद्याआयवर्णाःसर्वेस्युश्चंद्रभूषिताः॥ 18 // ततः समस्तमूलेनमूादिचरणावधि // विधायव्यापकन्यासंविन्यसेत्पीठदेवताः॥ 19 // मंडूकश्चाथका लाग्नरुद्रआधारशक्तियुक् // कूम्माधरासुधासिधुश्वतद्वापसुगावपाः॥५०॥ तायुताःकार्याः // 48 // मंडूकइत्यादिपीठदेवताः॥सुधासिंधुरित्यत्रसमुद्रविशेषवक्ष्यति॥विरागतावैराग्यन आदिकाअधर्मायनम इत्यादि // 49 // 50 // 1 यत्वगात्मनेनमारंअसृगात्मनेनमइत्यादि // 2 यरलवंशंषसंहळंक्षमूर्धादिचरणावधिव्यापकंकुर्यात् ॥३ममंडूकायनमः कंकालाग्निरुद्राय होओजात्मने, हं प्राणात्मने संजीवात्मने एवंसर्वत्रधर्मपूर्वेषुचतुर्युनसमासः अंअधर्माय अंअज्ञानाय अंअविरागारवर्यायनमः // 5 // For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक त०१ 51 // 52 // 53 // 54 // 55 // 56 // पीठदेवतानांन्यासस्थानानिबहिर्यागेचपूजास्थानानिएकविंशतरंगेवक्ष्यंते ताः मणिहयेहेमपीठधर्मोज्ञानविरागताऐश्वर्यधर्मपूर्वास्तुचत्वारस्तेनभादिकाः॥५१॥धर्मादयःस्मृताः पादाःपीठगात्राणिचेतरे // मध्येनंतस्तत्वपद्ममानंदमयकन्दकम् // 12 // संवित्रालंततःप्रोक्ताविका रमयकेसराः॥ प्रकृत्यात्मकपत्राणिपंचाशद्वर्णकर्णिका // 53 // सूर्य्यस्येंदो पावकस्यमंडलत्रित यंततःसत्वरजस्तमःपश्चादात्मयुक्तोंतरात्मना ॥५४॥परमात्माथज्ञानात्मातत्वेमायाकलादिके // वि द्यातत्वंपरंतत्वंकथिताःपीठदेवताः॥५५॥ पूजनेसर्वदेवानांपीठेताःपरिपूजयेत्॥न्यासस्थानानिचैता सांशरीरेवहिरर्चने // 56 // पूजातरङ्गेवक्ष्यन्तेसेंद्वाद्यर्णयुताश्चताः // प्राणशक्तस्ततःपूज्याअष्टौपीठ स्यशक्तयः // 57 // हृदयांभोजपत्रेषुनवमीत्वधिकर्णिकम् // जयाख्याविजयापश्चादैजिताचा ऽपराजिता // 18 // मंडूकाद्या सेंद्वाद्यर्णयुताः॥ सानुस्वारप्रथमाक्षरयुताः। ममंडूकाय नम इत्यादि // 57 // हृदयपद्मपत्रेष्वष्टौ नवमीकर्णिकायां ताएवाह। जयति // 58 // १संसविनालायनमः विविकारमयकेसरेभ्योनमः। 2 संसूर्यमंडलाय, चंद्रमं०अग्निमं०।३ मंमायातत्वाय,कलातत्वाय / For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाशादीति॥ आंहींक्रौमितिपीठमंत्रः॥ 59 // 6 // ध्यानमाह / पाशामिति // षड्डस्तादेवीपाशधनुःशूला निवामहस्तेषुरक्तकपालांकुशबाणान्दक्षेषु रक्तमयोयउदन्वान् समुद्रस्तत्रपोतोनौस्तत्ररक्तप-तत्रस्थिताम् / | नित्याविलासिनीदोग्नीघोरामङ्गलांतिमापाशादिवीजत्रितयं(आह्रींौं)प्रोच्यपीठंदिशेत्ततः॥५९॥ एवंदेहमयेपीठध्यायदेवीमसुप्रदाम् // नवयौवनगढियांपीवरस्तनशोभिनीम् // 60 // पा शंचापासृकपालेमृणीषूश्शूलंहस्तैर्बिभ्रतीरक्तवर्णाम् // रक्तोदन्वत्पतिरक्तांबुजस्थांदेवीध्यायेत्प्राणश तिंत्रिनेत्राम् // 6 // अष्टपत्रस्थषट्कोणेध्यात्वैवंपूजयेत्तुताम् // प्रापक्षोवायुकोणेषुब्रह्मविष्णुशिवान्य जेत // 62 // अग्निवारुणशैवेषवाणीलक्ष्मीहिमाद्रिजाः॥ केसरेषुषडंगानिपत्रेष्वष्टौतुमातरः॥६३॥ ब्राह्मीमाहेश्वरीचापिकौमारीवैष्णवीतथा॥ वाराहीचतथेंद्राणीचामुंडासप्तमीमता // 64 // अष्टमीतुम हालक्ष्मी प्रोक्ताविश्वस्यमातरः॥ देवतापूजनेप्राचीमध्येपूजकपूज्ययोः // 6 // इंद्रादयःस्वदिक्ष्वेव पूजनीयादिगीश्वराः // इंद्रकृशानु कीनाशोनिक्रतिवरुणोनिलः॥ 66 // सोमईशाननामाधोनंतऊ तुम्मुखातितइद्राादकाष्ठासुपूज्यादिक्पालहेतयः॥६७॥ // 6 // 6 // 63 // 64 / / 65 // इंद्रादयःप्रसिद्धदिक्ष्वेवााः // अन्यावरणे पूज्यपूजकयोर्मध्येची॥६६॥ 67 // SSSSSSSSSSSUSUJISATTA 1 अग्नीशासुरवायव्यमध्यदिश्वंगपूजनमितिवक्ष्यमाणप्रकारेणेतिभावः॥ २पूर्वेइंद्रायनमःइतिबोध्यम् / अग्नयेनमः वायवेनमः। S For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MC मं०म० सटीक मन्त्रमुद्धरति / पाशमिति // आंद्वींक्रौंयरलवंशंषसं तारान्वितनभः हों सप्ता!वक्ष्यमाण अजपा हंसः वज्रशक्तिर्दडखड्गौपाशोंकुशगदेअपि।त्रिशूलचक्रपद्मानिदशदिक्पालहेतयः॥६८॥एवमिष्ट्वाप्राणशक्तिं पंचावरणसंयुताम्॥ध्यायनहृदिकरधृत्वात्रिर्जपेत्तन्मनुसुधीः॥६९॥वक्ष्येधुनामनोस्तस्योद्धारंध्यातसु खावहम् // पाशं(आं)मायां(ही) सृणि(क्रौं)प्रोच्ययादीन्सप्तेन्दुसंयुतान् // 70 // तारान्वितंनभःसप्तवर्णमंत्रं ततोऽजपाम्॥ममप्राणाइहप्राणाममजीवइहस्थितः॥७॥ममसर्वेन्द्रियाण्युक्त्वाममवाङ्मनईरयेत्॥चक्षुः श्रोत्रघ्राणपदात्प्राणाइहसमीर्य्यच ॥७२॥आगत्यसुखमुच्चार्यचिरंतिष्ठंत्विदंपठेत् ॥वह्निजायां(स्वाहा) चसप्तार्णमंत्रमंतेपुनर्वदेत् // 73 // प्राणप्रतिष्ठामंत्रोयंस्मृतःप्राणनिधापने // ममेत्यस्यपदस्यादौपाशा दीनिसमुच्चरेत् ॥७॥यंत्रेषुप्रतिमादौवाप्राणस्थापनमाचरन् // ममस्थानेतस्यतस्यषष्ठयंतामभिधांव देत् // 75 // सबिंदवोमेरुहंसाकाशाःसर्गीभृगुःपुनः // मायेतिताररुद्धोयमंत्रःसप्ताक्षरोमतः॥ 76 // // 68 // 69 // 70 // 71 // 72 // 73 // 74 // 75 // सप्तार्णमुद्धरति / सबिंदवइति / मेरुःक्षः 1 मंत्रोद्धारः // आंहींक्रौयरलवंशंघसंहोंक्षसंहसाहीहंसाममप्राणाइहप्राणाः // आं०ममजावइहस्थितः // आं०ममसर्वेद्रियाणीह | // 6 // स्थितानि // आंम्ममवाङ्मनश्चक्षुःश्रोत्रघ्राणप्राणाइहागत्यसुखंचिरतिष्ठंतुस्वाहा ॐक्षसंहसःहींॐ॥ For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंसः सः आकाशोहः भृगुःसःमायाहीं ताररुद्धः प्रणवपुटितः तेनॐक्षसंहंसाह्रींओमितिसप्ताः॥ 76 // मातृकामाहाअकाराद्याइति प्रसिद्धा इत्यर्थः॥७॥षडंगमाहापंचेति।क्कीबाऋऋलल तद्धीनाःसानुस्वारायेह एवंप्राणान्प्रतिष्ठाप्यमातृकान्यासमाचरेत्॥अकाराद्याक्षकारांतावर्णाःप्रोक्तातुमातृका।।७७॥प्रजापति मुनिस्तस्यागायत्रीछंदईरितम्॥सरस्वतीदेवतोक्ताविनियोगोऽखिलाप्त।हलोबीजानिचोक्तानिस्वराः शक्तयईरिताः॥७८॥मूविक्रेहदिन्यस्येदृष्यादीनसाधकोतमपंचवगैर्यादिभिश्चपडंगानिसमाचरेत् ॥७९॥कीवहीनशशांकाढयह्रस्वदीर्घातरस्थितैः।सानुस्वारैर्जातियुक्तैर्ध्यायदेवी हृदंबुजे।।८०॥पंचाश दणैरचितांगभागांधृतेंदुखंडांकुमुदावदाताम्॥वराभयेपुस्तकमक्षसूत्रभजेगिरंसंदधतींत्रिनेत्राम्॥८॥ स्वदीर्धास्तदंतरस्थितैःसबिंदुभिःजातयोहृदयायनमइत्यादयस्तद्युक्तैःषड्गैःषडंगं अंकखंगंधंडंआंहृदयायन मइत्यादि // 78 ॥७९॥८॥ध्यानमाह // पंचाशदिति / वर्णरंगरचनान्यासाद्वोध्या वराक्षस्रजोदक्षयोः॥ 1 अव्यक्तंकीलकम् / २मूीत्यादिशक्तिबीजयोरपिपूर्वोक्तस्थानोपलक्षणम् ऑक्षसंहसःहींओं ब्रह्मऋषयेमूनिगायत्रीछंदसेनमःवके सरस्वतीदेवतायैनमो हृदिहंबीजेभ्योनमो गुह्ये स्वरशक्तिभ्योनमः पादयोः // एवमृष्यादि // 3 प्रयोगस्तु / अंकखगघंडंआंअंगुष्ठाभ्यां नमः॥ इंचंपई तर्ज० इत्यादि / अंकं ५आंदृदयायनमः // इत्यादि // नमःस्वाहावषट्चैवहुंचौषटफटकमेणतु॥ For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त० मं०म०पुस्तकाभयेवामयोःगिरंसरस्वतीम् // 8 // पूर्वमीरितामंडूकाद्याः।। 82 // 43 // आसनमंत्रमाह / वियत् हः // ध्यात्वैवंपूजयेत्पीठेदेवताःपूर्वमीरिताः॥ पीठशक्तीस्तदुपरिसरस्वत्यानवार्चयेत् // 82 // मेधाप्रज्ञा // 6 // प्रभाविद्याश्रीधृतिस्मृतिबुद्धयः॥ विद्येश्वरीतिसंप्रोक्तामातृकापीठशक्तयः॥ 83 // वियभृगुस्थमनु युग्विसर्गाढयंचमातृका // योगपीठायनत्यंतोमंनुरासनदेशने // 84 // मूर्तिसंकल्प्यमूलेनतस्यांवा णीप्रपूजयेत् // आदावंगानिसंपूज्यद्वितीयेपूजयेत्स्वरौ॥ 85 // द्रौद्वौतृतीयेवर्गाश्चवर्गशक्तीश्चतुर्थक॥ व्यापिनीपालिनीचापिपावनीकेदिनीपनः॥८६॥धारिणीमालिनीपश्चाद्वंसिनीखिन तथा॥ वर्ग तयइत्युक्ताःपञ्चमेत्वष्टमातरः॥ 87 // षष्ठेशकादयोदेवाःसप्तमेवज्रपूर्वकाः // इत्थंसंपूज्यदेवेशींन्यसे द्वानिजांगके // 88 // ललाटेमुखवृत्तेक्षिश्रवोनासासुगंडयोः // ओष्ठयोर्दतपत्त्योश्चमार्जिवक्रेन्यसे त्स्वरान् // 89 // बाह्वोःसंधिषुसाग्रेषुकचवर्गौन्यसेत्सुधीः // टतवर्गौपदोस्तद्वत्पार्श्वयोःपृष्ठदेश तः॥९०॥ नाभौकुक्षौपवगैचहृदंसंककुदंततःान्यस्ययादिचतुर्वर्णाञ्छादिषट्कंततोन्यसेत् // 91 // भृगुःसःमनुरौतेनहसौःमातृकायोगपीठायनम इति // 84 // 85 // 86 // 87 // 88 // 89 // 90 // 91 / / 1 हसौःमातृकायोगपीठायनमः // 2 यंहदिरंदक्षांगेलंककुदिवंवामांसे // For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Martin Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हृदादीनिकरपादोदरमुखेषुसंबध्यते // 12 // 93 // स्थितिन्यासेध्यानमाह / मृगेति। मृगविद्येवामयोः॥ वराक्ष हेदादिकरयोरंध्योर्जठरेवदनेतथा // सृष्टिन्यासंविधायैवंस्थितिन्योसंसमाचरेत् // 92 // ऋषिश्छंदश्च / पूर्वोक्तंदेवताविश्वपालिनी // उपविष्टांवल्लभांकेध्यायदेवीमनन्यधीः // 93 // मृगवालंवरंविद्यामक्ष सूत्रंदधत्करैः // मालाविद्यालसद्धस्तांवहन्ध्येयःशिवोगिरम् // 94 // एवंध्यात्वाडकाराद्यान्वर्णानं गेषुविन्यसेत् // गुल्फादिजानुपर्यतस्थितिन्यासोयीरितः॥ 95 // न्यासेसंहारसंज्ञेतुऋषिश्छंदश्च पूर्ववत् // संहारिणीसपत्नानांशारदादेवतास्मृता // 96 // अक्षस्रक्टंकसारंगविद्याहस्तांत्रिलोच नाम् // चंद्रमौलिंकुचानम्ररिक्ताजस्थांगिरंभजे // 97 // सूत्रेदक्षयोः॥ देव्यामालाविद्यदक्षवामयोः॥९४ // 95 // 96 // संहारन्यासेध्यानमाह // अक्षेति / मृगविद्ये वामयोः॥ अक्षम्रक्टंकौदक्षयोः॥ टंकःपरशुः॥९७॥ 1 नमःस्वाहेत्यादि / शंषंकरयोः। संह अंध्योःलंक्षवदनेजठरे / हृदयादाविवजठरवदनयोयंसदित्यर्थः / 2 दक्षिणगुल्फादिक्रमे णपूर्वोक्तस्थानेस्थितिन्यासः। ३क्षकारादिअकारांतान्हतिनवस्थानादारभ्यविलोमक्रमेणसंहारन्यासः मालादक्षेविद्यावामे // 4 // लक्षावी शहातशषःमध्येमध्यकोष्ठतथापूर्वोक्तप्रकारेणनवधाविभज्यपूर्वादिक्रमणद्धौद्धीस्वरीलिखेत् / For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मै० म०९८॥नत्यंताः॥ अनमः तारसंपुटाः॥मित्यादि॥९९॥ १००॥१०॥१०२॥१०३॥दीपस्थानमाह / नवति। सटीक जपस्थानभूमिनवधा कृत्वा // पूर्वादिकोष्ठेषुकचटतपयशवर्गान् लक्षइत्यष्टमेविलिख्यमध्यकोष्ठमपि नवधा Baत०१ // 7 // ध्यात्वैवंविन्यसद्वर्णान्क्षाद्यानांतान्विलोमतः // सृष्टिन्यासेतुसीताःसर्गविंद्वंतिकाःस्थितौ // 98 // विद्वताःसंहतोचैषापूर्ववच्चांगपूजने // न्यस्याःसर्वत्रनत्यंतावर्णावातारसंपुटाः // 99 // सृष्टिन्यासं स्थितिन्यासंपुनःकुर्यात्प्रयत्नतः॥ अन्येतु मातृकान्यासाःकथ्याःपूजातरंगके॥ 10 // मंत्रस्नाना दिविधयोगद्यास्तत्रैवतमया। भारतीमेवमाराध्यभजेदिष्टान्मनून्सुधीः॥१॥विष्णुशिवोगणेशोकों दुर्गापंचैवदेवताः // आराध्या सिद्धिकामेनतत्तन्मत्रैर्यथोदितम् // 2 // आदौदेवंवशीकर्तुपुरश्चरणमा चरेत् // तीर्थादौनिर्जनेस्थानेभूमिग्रहणपूर्वकम् // 3 // नवधातांधरांकृत्वापूर्वादिषुसमालिखेत् // कोष्ठेषुसप्तवर्गाश्चलक्षौमध्येतथास्वरान् // 4 // क्षेत्रनामादिमोवोयत्रकोष्ठेभवेत्ततः // उपविश्यजपं कुर्यान्नान्यस्मिन्दुःखदेस्थले // 5 // विधाय तत्र पूर्वादिषुस्वरद्वंद्वक्षेत्रनामादिवर्णोयत्रकोष्ठेतदेवजपस्था सिद्धिदम् // 104 // 105 // // 7 // For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie पुरश्चरणधर्मानाह // आमध्याह्वमिति॥उपांशु शनैर्वोच्चारणं मानसं मनसैव त्रिस्नायीत्रिषवणस्नानशी लः॥१०६॥ अन्यैःसंभाषणमन्यभाषाम् // अंत्यजानामीक्षांदर्शनंत्यजेत् // 107 // 108 // 109 // 110 // होम आमध्याह्नजपंकुर्यादुपांशुंवाथमानसम्॥हविष्यंनिशिभुंजीतविनाय्यभ्यंगवर्जितः॥६॥व्यग्रतालस्य निष्ठीवक्रोधपादप्रसारणम्।।अन्यभाषांत्यजेक्षांचजपकालेत्यजेत्सुधीः ॥७॥स्त्रीशूद्रभाषणनिंदांतांबूलं शयनंदिवा // प्रतिग्रहंनृत्यगीतेकौटिल्यवर्जयेत्सदा // 8 // भूशय्यांब्रह्मचर्यचत्रिकालंदेवतार्चनम् // नैमित्तिकार्चनंदेवस्तुतिविश्वासमाश्रयेत् // 9 // प्रत्यहंप्रत्यहंतावन्नैवन्यूनाधिकंक्वचित् // एवंजपंस माप्यांतेदशांशहोममाचरेत् // 110 // तत्तत्कल्पोदितैर्द्रव्यैस्तद्विधानमुदीर्यते // प्राणायामंषडंगंच कृत्वामूलेनमंत्रवित् // 11 // कुंडेवास्थंडिलेकुर्यात्संस्काराणांचतुष्टयम् // मूलेनेक्षणमस्त्रेणोक्षणं ताडनंकुशैः॥ 12 // वर्मणामुष्टिनासिंच्यलिखेयंत्रंतदन्तरे // वह्निकोणषडस्राष्टदलभूमंदिरात्म कम्॥१३॥मध्येतारपुटीमायांलिखित्वापीठमर्चयेत्॥मंडूकात्परतत्वांतपीठशक्तीर्जयादिकाः॥११॥ विधिमाह / प्राणायाममिति // 111 // अस्त्रंफटवर्मणाहुंकारेण ॥भूमंदिरंचतु:कोणम् // 112 // 113 // 114 // 1 त्रिकालस्नायी। 2 स्त्रीत्यादिअन्यभावेऽन्यस्यैवप्रपंचइतिनपौनरुक्त्यम्। 3 ॐ ह्रीं ॐ / meastLLCOLLLLLLLLLLLLLLL For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०म० सटीक // 8 // // 115 // 116 // 117 // क्रव्यादाशंमांसाशिनोवन्हेर्यस्तत्रभागस्तमस्त्रेण त्यजेत् // 118 // 119 // वन्हिवी वागीशीवागीश्वरयोयोगपीठात्मनेनमः // मायादिकः पीठमंत्रस्तयोस्तेनासनंदिशेत् / / 115 // यजे त्तौतारमायाभ्यांगंधाधैरुपचारकैः॥ लक्ष्मीनारायणौत्वचेद्वैष्णवेहोमकर्मणि // 16 // सूर्यकांतादरणि तःश्रोत्रियागारतोपिवा // पाणपिहितेपात्रेवह्निमानाययेत्ततः॥ 17 // अत्रेणादायतत्पात्रवमणोद्धा टयेत्तुतम् // अस्त्रमंत्रेणनैर्ऋत्येक्रव्यादांशंततस्त्यजेत् // 18 // मूलेनपुरतोधृत्वासंस्कारांश्चततश्चरे त् // वीक्षणाद्यान्पुराप्रोक्तानल्पंप्रोक्षणमाचरन् // 39 // परमात्मानलेनाथजाठरेणापिवह्निना // स्मरनैक्यंवह्निवीजाचैतन्यंयोजयेत्ततः॥१२०॥ तारेणचाभिमंत्र्यानिंसुधयाधेनुमुद्रया // अमृतीकृत्य संरक्षेदत्रमंत्रेणमंत्रवित् // 21 // मुद्रयात्ववगुंठिन्याकवचेनावगुंठयेत् // कुंडोपरिततोवह्निभ्रामये त्रिध्रुवं(ओं)पठन् // 122 // जात् रमितिबीजात् // 120 // सुधया वं बीजेनधेनुमुद्रालक्षणंवक्ष्यते // 121 // अवगुंठिन्याअपि वक्ष्यते / / कवचेनहुँबीजेन विध्रुवं प्रणवम् // 122 // १हींवागीशीवागीश्वरयोयोगपीठात्मनेनमः। 2 ॐ ह्रींलक्ष्मीनारायणाभ्यांनमः / / 1 // 8 // For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 123 // 124 // नवार्णमुद्धरति // अर्धीशऊ // गगनंहः // शेषस्वरूपं // हृदयांतोनमोंतः॥ तेनढुवन्हि / चैतन्यायनमइत्यग्निस्थापनेनवाक्षरोमंत्रः॥१२५॥ विश्राण्यदत्वा // 126 // चतुर्विशतिवर्णमुद्धरति // चि दिति। चित्पिगलहन 2 दह 2 पच 2 सर्वज्ञाज्ञापयस्वाहा। वेद 4 भुजा 2 क्षरश्चतुर्विशतिवर्णः॥ 127 // शय्यागतामृतुस्नातांनीलेंदीवरधारिणीम् // देवेनभुज्यमानांतांस्मृत्वातयोनिमंडले // 123 // ईशरे तोधियावह्निस्थापयेदात्मसंमुखम् // मूलंनवार्णचपठन्जानुस्पृष्टधरातलः // 24 // रेफा(शें / दुसंयुक्तंगगनंवह्निचैततः // तन्यायहृदयांतोयंनवार्णोनिनिधापने // 25 // विश्राण्याचमनंदेवी देवयोर्खालयेद्वसुम् // चतुर्विंशतिवर्णेनमंत्रेणश्रपणादिभिः // 26 // चित्पिगलहनद्वंद्वंदहयुग्मंपच द्वयम् // सर्वज्ञाज्ञापयस्वाहामंत्रोवेद जाक्षरः॥२७॥ प्रदर्यज्वालिनीमुद्रामुत्थायविहितांजलिः // श्लोकरूपेणमंत्रेणापतिष्ठेडुताशनम् // 128 // ज्वालिनीमुद्रालक्षणम् // मणिबंधयुतौकृत्वाप्रसृतांगुलिकोकरौ॥ कनिष्ठांगुष्ठयुगलेमिलित्वांतःप्रसारिते // ज्वालिनीनाममुद्रेयवैश्वानरप्रियंकरीति // 128 // १हूंचहिचैतन्यायनमः / 2 अग्निम् / 3 काण्डादिभिः / For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं० म० | त०१ मश्लोकरूपमंत्रमाह // 129 // अग्निमंत्रमाह // वैश्वानरजातवेदइहावहलोहिताक्षसर्वकर्माणिसाधयस्वाहे ति // 130 // 131 // ठद्वयंस्वाहा // 132 // डेन्ताश्चतुर्थ्यताः // 133 // जिव्हावीजान्युद्धरति // दीपि केति // दीपिकाऊ // अनलोरः॥ वायुर्यः॥ एतेषुस्थिताःसकाराद्याविलोमवर्णाः॥ सपशवलरयेति // सेंदवो अग्निप्रज्वलितवंदेजातवेदंहुताशनम् // सुवर्णवर्णममलंसमिद्धविश्वतोमुखम् // 129 // अथाग्निमंत्र विन्यस्येत्तद्विधानमुदीर्यते // वैश्वानरांतेजाततिवेदांतेस्यादिहावह // 130 // लोहिताक्षपदात्सर्व कर्माण्यतेतुसाधय // वन्हिप्रियांतोमंत्रोयंषड्विंशत्यक्षरान्वितः // 31 // ऋषिश्छंदोदेवतास्यभृगुर्गा यत्रपावकाः॥ रंबीजंठद्वयंशक्तिहवनेविनियोजनम् // 32 // लिंगेपायौमूर्धिवक्रेनसिने।खिलांग // वह्नर्जिबाःस्ववीजाट्यान्यसेन्तानमोन्विताः // 33 // हिरण्यागगनारक्ताकृष्णासुप्रभयान्विता // बहुरूपातिरक्तेतिजिह्वादमुनसोमताः // 34 // दीपिकानलवायुस्थाःसाद्यावर्णाविलोमतः॥ सेन्दवः सप्तजिह्वानांसप्तानांबीजतांगताः // 35 // नुस्वाराद्याइमेसप्तहिरण्यादिजिह्वानांबीजानीत्यर्थः // ततश्च // रुयूंहिरण्यायैनमः॥ स् गगनायैनमः॥ श्āरक्तायैनमः॥ व् कृष्णायैनमः॥ल्āसुप्रभायैनमः॥āबहुरूपायैनमः॥ पूँअतिरक्तायैनमः॥१३४॥१३५॥ 1 अग्नेःसप्तजिहानामानि / 2 स्यूँ ब्यूँ भूभनेजिंदाबीजानि / // 9 // For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीर्वाणादयोजिह्वाधिदेवाजिह्वास्थानेषुन्यस्याः॥ सुरेभ्योनमः लिंगेइत्यादिप्रयोगः॥१३६॥ मस्तकंशिरोमं वः।।१३७११३८।१३९॥१४०॥तारेति॥प्रणवाग्नयेपदपूर्वाः॥डेनमाताओंअग्नयेजातवेदसेनमोमीत्यादि१४१ गीर्वाणपितृगंधर्वयक्षनागपिशाचकाः // राक्षसाश्चेतिजिह्वानांदेवतास्तत्स्थलेन्यसेत् ॥१३६॥न्यांसेर्चने व्युत्क्रमस्याबहुरूपातिरिक्तयोः॥नेत्रेतिरिक्तान्यस्तव्यासर्वांगेबहुरूपिका।३७।सहस्राषेिहृदयंस्वस्ति पूर्णायमस्तकम्।।उत्तिष्ठपुरुषायेतिशिखामंत्रोयमीरितः॥३८॥ धूमतिव्यापिनेवर्मसप्तजिह्वायनेत्रकम्॥ अस्त्रंधनुर्धरायेतिषडंगानिसमाचरेत् // 39 // मूर्धिवासकेपार्श्वकटौलिंगेकटौपुनः॥ दक्षेपार्धेसकेन्य स्येन्मूर्तीरष्टौविभावसोः॥४०॥ताराग्नयेपदाद्यास्ताश्चतुर्थीनमसान्विताः // जातवेदाःसप्तजिह्वोहव्य वाहनइत्यपि // 41 // अश्वोदरजसंज्ञोन्यस्तथावैश्वानराह्वयः॥ कौमारतेजाःस्याद्विश्वमुखोदेवमुखस्त था॥४२॥ ततोन्यसेनिजेदेहेपीठंहाटकरेतसः॥ वह्निमंडलपर्यंतमंडूकादियथोदितम् // 13 // // 142 // हाटकरेतसोवन्हेः॥ मंडलपर्यंतमेवंपीठदेवताः पूज्याः // ततः पीताद्याः पीठशक्तयः॥ 143 // 1 जिहाधिदेवतानामानि / 2 प्रयोगस्तुस्प्रूफ़्यूँव्यूंल्लूपॅहिरण्यायैनमोलिंगेनँगगनायैनमःपायौइत्यादि / 3 धूमव्यापिने कवचायहुम् / 4 अग्नयेजातवेदसेमूर्ध्नि इत्यादि। For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० सटीक // 10 // त०१ // 144 // बीजमिति ॥रंवन्ह्यासनायनमः // इतिपीठमंत्रः // 145 // ध्यानमाह // त्रिनेत्रमिति // वर पीताश्वेतारुणाकृष्णाधूम्रातीवास्फुलिंगिनी॥रुचिरावालिनीचेतिकृशानोःपीठशक्तयः॥१४४॥ बीजं | वन्यासनायेतिहृदंतःपीठमंत्रकः // एवंविन्यस्यपीठांतंपावकंचिंतयेत्तनौ // 45 // त्रिनेत्रमारक्ततनुंसु शुकुवस्त्रंसुवर्णस्रजमग्निमीडे // वराभयस्वस्तिकशक्तिहस्तंपद्मस्थमाकल्पसमूहयुक्तम् // 46 // एवं ध्यात्वार्चनं कुर्यान्मानसंविधिवद्वसोः॥ परिपिंचेत्ततस्तोयै कुंडंस्थंडिलमेववा // 47 // द8ःपरिस्तरेद निंप्रागौरुदगग्रकैः // प्रत्यग्दक्षिणसौम्यासुन्यसेत्रीन्परिधीक्रमात् // 48 // पालाशान्विल्वजांस्तेषु ब्रह्मविष्णुशिवान्यजेत् // वह्नौतत्पीठमभ्यया॑वाहयेत्स्वहृदोनलम् // 49 // गंधादिभिःसमभ्यर्च्यपू जयेत्पावकंवती॥षट्सुकोणेषुमध्येचजिह्वास्तद्देवतायजेत् // 150 // ईशानादिषुवावंतकोणेषुषद्समर्च येत् ॥हिरण्याचतिरक्तांतामध्येतुबहुरूपिणीम् // 51 // केसरेष्वंगपूजास्यादलेष्वष्टसुमूर्तयः॥ मातरो टौदलांतेषुभैरवाःस्युस्तदग्रतः॥ 152 // स्वस्तिकौदक्षयोः॥ अभीतिशक्तीवामयोः॥ आकल्पाआभरणानितत्संघयुतम् // 146 // 147 // 148 // // 149 // // 150 // 15 // 152 // For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 153 // भैरवानाह // असितांगइति // 190 // 199 // 198 // 157 // तीर्थमंत्रेण ॥गंगेचयमुनेचैवगोदाव रिसरस्वति // नर्मदेसिंधुकावेरिजलेस्मिन्सनिधिंकुर्वित्यनेन // सृण्याअंकुशमुद्रया // ऋज्वींमध्यमिका धरापुरेतुशकाद्यावज्राघायुधसंयुताः॥ एवमावरणैर्युक्तंसप्तभिः पावकंयजेत् // 153 // असितांगोरुरुश्चं डक्रोधउन्मत्तसंज्ञकः // कपालीभीषणश्चापिसंहारश्चाष्टभैरवाः॥५४॥ वामकुशानथास्तीर्यतत्रवस्तू निनिक्षिपेत् // प्रणीताप्रोक्षणीपात्रेआज्यस्थालींमुवंचम् // 55 // अधोमुखानिचैतानिहोमद्रव्यंघृतं कुशान् // समिधःपंचपालाशीरन्यदप्युपयोगियत् // 56 // कृत्वापवित्रमूलेनप्रोक्षेत्तानिशुभांभसा // उत्तानानिविधायाथप्रणीतांपूरयेजलैः // 57 // तीर्थमंत्रेणतीर्थानिसृण्यातवाह्वयेत्सुधीः // पवित्रे अक्षतांस्तत्रनिक्षिप्योत्पवनंचरेत् // 58 // अथोदीच्यांनिधायैतांप्रोक्षण्यांतजलंक्षिपेत् // हवनी यंद्रव्यजातमुक्षेत्तोयै पवित्रगैः // 59 // मूलेनमूलगायत्र्यायद्वाहृदयमंत्रतः // दक्षिणेपीठमा साद्यतत्रब्रह्माणमाह्वयेत् / / 160 // कृत्वातर्जनीमध्यपर्वणि // संयोज्याकुंचयेत्किचिन्मुद्रैषांकुशसंज्ञिकेतिलक्षणम् // 158 // 159 // 160 // For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं० म० // 11 // अणिमाद्याअष्टमेवक्ष्यते // ब्रह्ममंत्रमुद्धराति // तारेति // ऑनमोब्रह्मणे इति // 161 // सुक्नुवसं स्कारमाह // हस्ताभ्यामिति // 162 // 163 // शक्तित्रयमाह // इच्छेति // दीर्घत्रयम् आईऊ व्योम अणिमाद्या सिद्धयोष्टौब्रह्मणःपीठदेवताः // तारहत्पूर्वकोडें तोब्रह्मांमंत्रोस्यपूजने // 161 // हस्ताभ्यां त०१ सुनुवौधृत्वातापयेत्रिरधोमुखौ // वामहस्तेनतौधृत्वादभैंर्दक्षेणमार्जयेत् // 162 // संप्रोक्ष्यप्रो क्षणीतोयै प्रतप्यपूर्ववत्पुनः // न्यस्यानोमार्जनान्द स्तयोःशक्तित्रयंन्यसेत् // 163 // इच्छा ज्ञानक्रियासंज्ञाचतुर्थीनमसान्विता // दीर्घत्रयेंदुयुग्व्योमपूर्वकंस्थानकत्रये // 164 // हृदाचिन्यसे च्छक्तिं वेशं ततस्तुतौ // सूत्रत्रयेणसंवेष्टयसंपूज्यकुसुमादिभिः // 165 // कुशोपरिन्यसेदक्षेत यो संस्कारईरितः॥ अस्रोक्षितायामाज्यस्यस्थाल्यामाज्यविनिक्षिपेत् // 166 // वीक्षणादिकसंस्का रसंस्कृतंमूलमंत्रतः // गोमुद्रयामृतीकृत्यषसंस्कारांस्ततश्चरेत् // 167 // हः॥ तत्पूर्वकां हांइच्छाशक्त्यैनमोमूले // हीज्ञानशक्त्यैनमःमध्ये // हूंक्रियाशक्त्यैनमःअंते // 164 // Singan A // 165 ॥१६६॥गोमुद्रा धेनुमुद्रा // 167 // ओनमोब्रह्मणे / 2 नमःशक्यैनमःशंभवे / For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 168 // 169 // 170 // 171 // 172 // 173 // नाडीत्रयमिति // इडापिंगलासुषुम्णाख्या // तृतीयामध्ये कुंडोद्धृतेवायुकोणेस्थितेंगारेविनिक्षिपेत् // हृदेतितापनंप्रोक्तंदर्भयुग्मंप्रदीपितम् // 168 // आज्ये क्षित्वाहृदावन्होपवित्रीकरणक्षिपेत् // 169 // आज्यनीराजयेद्दीप्तदर्भयुग्मेनवर्मणा ॥अभिद्योतनमु / तंतदीप्तंदर्भत्रयंघृते // 170 // दर्शयेदनेणोड्योतेगृहीत्वाघृतपात्रिकाम् // संयोज्यानौतदंगारान्स लिलंसंस्पृशेत्सुधीः // 171 // अंगुष्ठानामिकाभ्यांतुदर्भावादायनिक्षिपेत् // विरग्निसंमुखत्वाज्यमस्त्रे णोत्पवनंत्विदम् // 172 // हृदात्मसंमुखंतद्वदाज्यक्षेपस्तुसंप्लवः॥ नीराजनादिसंस्कारेषनौदर्भान्वि निक्षिपेत् // 173 // दद्वयंग्रंथियुतंघृतमध्यविनिक्षिपेत् // वामदक्षिणयोःपक्षौस्मृत्वानाडीत्रयस्म / रेत् // दक्षिणाद्वामतोमध्याद्धदादायघृतंसुधीः // 174 // अनयग्निप्रियासोमायस्वाहेत्यग्निनेत्रयोः॥ जुहुयादग्रीषोमाभ्यांस्वाहेत्यक्ष्णितृतीयके // 175 // चिंत्या // 174 // हृदा // नमइतिमंत्रेण // अग्नयेस्वाहेतिदक्षनेत्रे // सोमायस्वाहेतिवामे // तदाहु तिचतुष्टयेनाग्नेर्नेत्रमुखप्राकशोभवतीत्यर्थः॥ 175 // For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 0 // 12 // // 176 // 177 // 178 // 179 // अस्याग्नेर्गर्भाधानसंस्कारंकरोमिस्वाहेत्यादि // 280 // al सटीक पंचसमिधांहोमाद्वसोरग्नेः नालापनयनाख्यःसंस्कारः // देवाभिधानेनदेवनाम्राशुष्मणोग्ने मपूर्ववत् // पातयेदाहुतेःशेषमाहुतिग्रहणस्थले।भूयोहृदादक्षभागादादायाज्यंमुखेयजेत् ॥१७६॥अग्नयेस्विष्टकृते तन्नेत्रास्योद्घाटनमतम् // नरसिंहविनाविष्णुमंत्रनेत्रद्वयंयजेत् // 77 // नरसिंहान्यदेवेषुवढ़ेर्नेत्रत्रयं स्मृतम् // महाव्याहृतिभिर्व्यस्तसमस्ताभिश्चतुष्टयम् ॥७८॥आहुतीनांवयंवह्निमंत्रेणैवततश्चरेत्॥ घृताहुतिभिरष्टाभिरेकैकांसंस्कृतिंचरेत् // 79 // ओमस्यागेरसुसंस्कारंकरोम्यमिवल्लभा // इत्थंमनुं जपन्गर्भाधानं पुंसवनंततः॥८० // सीमंतोन्नयनंजातकर्मकृत्वाततश्चरेत् // वह्नौपंचसमिद्धोमानाला पनयनंवसोः॥८॥कुर्यादेवाभिधानेनपूर्ववन्नामशुष्मणः॥नामानंतरमेतस्यपितरौस्वेर्पयेद्ददि॥ 82 // अन्नप्राशंतथाचौलोपनयादारयोजनम् // संस्काराःस्युर्विवाहांतामृत्यंताक्रूरकर्मणि // 183 // घृताहुत्यष्टकेनकुर्यातरामाग्निःकृष्णाग्निरित्यादि।एतस्याग्नेःपितरौवागीशीवागीशाकुंडातस्वहदिन्यसेत् | // 181 // 182 // उपनयनमुपवीतम् / दारयोजनं विवाहः॥ 183 // // 12 // १नरसिंहश्चअन्येदेवाश्चतेषुइत्यर्थः / 2 भूःस्वाहाभुवःस्वाहास्वःस्वाहाभूर्भुवःस्वःस्वाहा / 3 वैश्वानरजातवेदइहावहलोहिताक्षसर्वक र्माणिसाधयस्वाहा। For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie Salu 184 / / 185 // कुसुमंपुष्पम् // 186 // दशधाव्यस्तनविभक्तेन // 187 // तमेवविभागमाह // पूर्वेति // बी जषटकं|बाणा:पंचवर्णाः॥सायका-पंचैव / मुनयःसप्त // मार्गणा:पंच // गणेशमंत्रमाह ॥तारइति।तारओं॥ एकैकामाहुतिंकुर्याद्वन्हेजिह्वांगमूर्तिभिः // इंद्रादिभिश्चवज्राद्यैठिांतैर्जुहुयात्ततः // 184 // वेणाज्यं चतुरंनिधायनुचितांसुधीः॥ अपिधाय वेणैतौगृह्णीयात्करयुग्मतः // 85 // तिष्ठन्मूलंतयो भौ कृत्वाग्रेकुसुमंक्षिपेत् // वामस्तनांतंतन्मूलंकृत्वाग्निमनुनासुधीः // 86 // जुहुयाद्वौपडतेनसंपत्त्यर्थ मतंद्रितः॥ महागणेशमंत्रेणव्यस्तेनदशधाततः॥८७॥ जुहुयाच्चसमस्तेनचतुर्वारंघृताहुतीः // पूर्व पूर्वयुतंबीजपटकंवाणाश्चसायकाः॥८८॥मुनयोमार्गणाश्चेतिविभागस्तन्मनोःस्मृतः॥ तारोलक्ष्मीगिरि सुताकामोभूर्गणनायकः // 89 // चतुर्थ्यतोगणपतिर्वरांतेवरदेतिच // सौतेजनमित्युक्त्वामेवशान्ते तुमानय।।१९०॥स्वाहांतोवसुयुग्मानॊमहागणपतेर्मनुः। एवंकृत्वाग्निसंस्कारंपीठंदेवस्यपूजयेत् 191 // लक्ष्मीःश्रीं।गिरिसुताहीं॥कामक्तीं।भू ग्लौं।गणनायक गं॥इतिबीजषटकं // गणपतयेवरवरदसर्वजनमेवश मानयस्वाहेतिविभागाः पूर्वयुता कार्याः॥ ओं ओंश्रीं // ओंश्रींहीमित्यादि // 188 // 189 // 190 // 191 // १जिहेतिस्वदेवतानामप्युपलक्षणं // 2 ॐ श्रींहीक्लींग्लौंगंगणपतयेवरवरदसर्वजनंमेवशमानयस्वाहा // प्रयोगस्तु // स्वाहा // श्रीस्वाहा // ॐश्रीह्रीस्वाहेत्यादि / For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० cuu0SASAL. 5555 सटीक // 13 // त०१ दिकाअर्वक्तव्याः 192 // पश्चनेत्रसंख्या पंचविंशतिः // 293 // 194 // 195 // 196 तबेष्टदेवमावाह्यमुद्राआवाहनादिकाः।प्रदर्यवह्निरूपस्यदेवस्यवदनेपुनः॥१९२।।मूलेनजुहुयात्पंचने त्रसंख्याघृताहुतीः॥ वकीकरणंत्वग्निर्देवयोस्तेनजायते // 93 // नाडीसंधानसिद्धयथैवह्निदेवतयो स्ततः॥ जुहुयान्मूलमंत्रेणरुद्रसंख्याघृताहुतीः // 94 // इष्टदेवस्यावृतीनामेकैकामाहुतिंचरेत् // तत स्तुमूलमंत्रेणदशधाजुहुयाघृतम् // 95 // ततःकल्पोक्तद्रव्यणदशांशंजुहुयाजपात्॥होमंसमाप्यकु तिपूर्णाहुतिमनन्यधीः // 96 // होमावशिष्टेनाज्येनपूरयित्वानुचंसुधीः // पुष्पंफलंनिधायाग्रेजुवे णाच्छाद्यतांपुनः // 97 // उत्थितोवौषडतेनमूलेनजुहुयाद्वसौ // तद्रव्येणावृतीनांचजुहुयादाहु तिपृथक् // 98 // देवंविसृज्यस्वहदिवन्हेर्जिह्वांगमूर्तिभिः // जुहुयाध्याहृती त्वाप्रोक्षेत्तंप्रोक्षणी जलैः॥ 99 // संप्रार्थ्यानेनमनुनानत्वातंविसृजेद्धादि // भोभोवढेमहाशक्तेसर्वकर्मप्रसाधक // 20 // कर्मातरेपिसंप्राप्तेसान्निध्यंकुरुसादरम् // वह्नौपवित्रेनिक्षिप्यप्रणीतांबुभुविक्षिपेत् // 201 // // 197 // 198 // 199 // 200 // पवित्रादिप्रतिपत्तिमाह // वन्हाविति // विधिब्रह्माणंविसृज्यदक्षिणां दत्वेतिशेषः // सकुशान्परिस्तरणसहितानवसावग्नौ // 201 // | // 13 // For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तर्पणमंत्रमाह // मूलमंत्रान्ते कृष्णंतर्पयामिनमइतितर्पणे // कृष्णमभिषिचामीत्याभिषेके॥२०२॥ जपादशा Hशाद्धोमः तद्दशांशेनतर्पणं तद्दशांशेनाभिषेकः तदशांशेनविप्रभोजनमिति // पंचांगंपुरश्चरणमितिकनी यान्पक्षः // अभिषेकवर्जीमध्यमः॥ तर्पणाभिषेकवर्जरूयंगउत्तमःपक्षः // होमदशांशंद्विजभोजनमिति // विधिविसृज्यसकुशान्परिधीविन्यसेद्वसौ।एवंहोमंसमाप्याथतर्पयेदेवतांजले।२०२॥आवाह्यतदशांशे नतर्पणादभिषेचनम् // तर्पयामिनमश्चेतिद्वितीयांतेष्टपूर्वकम् // 3 // मूलांतेतुपदंदेयसिंचामीत्यभिषे चने // ततोनानाविधैरन्नस्तर्पयेद्विजसत्तमान् // 4 // इष्टरूपान्समाराध्यतेभ्योदयाच्चदक्षिणाम् ॥न्यूनंसं पूर्णतामेतिब्राह्मणाराधनान्नृणाम् // 5 // देवताश्चप्रसीदंतिसंपर्यतेमनोरथाः॥२०६॥ इतिश्रीमहीधर विरचितमंत्रमहोदधौभूतशुद्धयादिकथनंनामप्रथमस्तरंगः॥१॥ // 7 // // // // 7 // किंबहुना // बहुब्राह्मणभोजनेदेवताप्रसादोभवति // 203 // 204 // 205 // 206 // इतिश्रीमहीधर Salविरचितमंत्रमहोदधौनौकायांभूतशुद्धयादिकथनंनामप्रथमस्तरंगः॥१॥ १ब्रह्माणम्॥ For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 14 // आदौसकलविघ्ननिवर्तकस्यश्रीगणेशस्यमंत्रान्वक्तुंप्रतिजानते // गणेशस्यति॥ मनूनमंत्रान् // मन्यतेसर्वे यैरिति मंत्रमुद्धरति / जलंवः॥ चक्रीकः॥ वन्हीरः॥तेनयुतःतेनयुक्तः॥ कामिकातःकर्णेद्वाढ्याउ॥बिंदुयु ता॥ तेनतुं // दीर्घआ॥ तेनयुतोदारकोडः।। वार्युर्यः॥ कवचपश्चिममंतेयस्यसतथा॥वक्रतुंडायहुमितिसवि गणेशस्यमनून्वक्ष्येसर्वाभीष्टप्रदायकान्॥जलं(व)चक्री(क)वह्निर)युतःकर्णेद्वाट्याचकामिका(तुं)॥१॥ दारको(उ)दीर्घसंयुक्तो(आ)वायुः(य)कवच(९)पश्चिमः // पंडक्षरोमंत्रराजोभजतामिष्टसिद्धिदः // 2 // भार्गवोमुनिरस्योक्तश्छंदोनुष्टुबुदाहृतम् // विघ्नेशोदेवतावीजवंशक्तिर्यमितीरितम् ॥३॥षडक्षरैः सवि धुभिःप्रणवाद्यैनमोंतकैः // प्रकुर्याजातिसंयुक्तैःषडंगविधिमुत्तमम् // ४॥भ्रूमध्यकंठहृदयनाभिलिंग पदेषुच // मनोर्वर्णान्क्रमान्यस्यव्यापय्याथोस्मरेत्प्रभुम् // 5 // उद्यदिनेश्वररुचिनिजहस्तपद्मः पाशां कुशाभयवरान्दधतंगजास्यम् // रक्तांवरंसकलदुःखहरंगणेशंध्यायेत्प्रसन्नमखिलाभरणाभिरामम् // 6 // alधुभिःसानुस्वारैः॥ ओवनमःहृदयायनमःइत्यादि // व्यापय्यसर्वमंत्रसर्वशरीरेन्यस्येत्यर्थः॥१॥२॥३॥४॥ Hu५॥ध्यानमाहउद्यदिति // पाशाभयेवामयोः। वरांकुशावन्ययोः॥६॥ | 1 वक्रतुंडायहुं // 2 अस्यश्रीगणेशमंत्रस्यभार्गवऋषिरनुष्टुप्छंदःविग्नेशोदेवतावंबीजयंशक्तिर्ममाभीष्टसिद्धयेजपेविनियोगः // // 14 // For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाडवान्विप्रान् // 7 // द्रव्याष्टकमाह // इक्षवइति // 8 // 9 // पीठमंत्रमाह // गंसर्वशक्तिकमलासना ऋतुलक्षंजपेन्मंत्रमष्टद्रव्यैर्दशांशतः // जुहुयान्मंत्रसंसिद्धयैवाडवान्भोजयेच्छुचीन् // 7 // इक्षवःसक्त वोरंभाफलानिचिपिटास्तिलाः // मोदकानारिकेलानिलाजाद्रव्याष्टकंस्मृतम् // 8 // पीठमाधारश त्यादिपरतत्वांतमर्चयेत् // तत्राष्टदिक्षुमध्येचसंपूज्यानवशक्तयः // 9 // तीवाचचालिनीनंदाभोग दाकामरूपिणी // उग्रातेजोवतीसत्यानवमीविघ्ननाशिनी // 10 // विनायकस्यमंत्राणामेताःस्युः पीठशक्तयः // सर्वशक्तिक्रमांतेतुलासनायहृदंतिकः // 11 // पीठमंत्रस्तदीयेनबीजेनादौसमन्वितः॥ प्रदायासनमेतेनमूर्तिमूलेनकल्पयेत् // 12 // तस्यांगणेशमावाह्यपूजयेदासनादिभिः // अभ्यर्च्य कुसुमैरीशंकुर्यादावरणार्चनम् / / 13 // आग्नेयादिषुकोणेषुहृदयंचशिर शिखां // वर्माभ्याग्रतोनेत्रं दिश्वस्त्रपूजयेत्सुधीः // 14 // द्वितीयावरणेपूज्या प्रागाद्यदैवशक्तयः॥ विद्यादिमाविधात्रीचभोगदा विघ्नघातिनी॥ 15 ॥निधिप्रदीपापापघ्नीपुण्यापश्चाच्छशिप्रभा // दलागेषुवक्रतुंडएकदंष्ट्रोमहोदरः॥ // 16 // गजास्यलंबोदरकौविकटोविनराजकः / / धूम्रवर्णस्तदग्रेषुशकावाआयुधैर्युताः // 17 // यनमः // एतेनासनंदत्वातद्देशेमूलेनमूर्तिकल्पयेत् // 10 // 11 // 12 // 13 // 14 // 15 // 16 // 17 // sessagesapnNSENSED LLLLLLLLLLLLLLL BRasseuanseconoun For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सटीक त०२ Balu 18 ॥प्रयोगानाहब्रह्मेति // 19 // 20 // 21 // 22 // 23 // 24 // मंडलादेकोनपंचाशद्दिनमध्येइष्टंप्राप्नु म०म०यात् // 25 // मंत्रांतरमाह // रायस्पोषेति स्वरूपं भृगुःसः॥ याढयोयकारयुतः॥ मेषोनः // सात्वतोधः॥ // 16 // एवमावरणैःपूज्य पंचभिर्गणनायकः // पूर्वोक्ताचपुरश्चर्याकार्यामंत्रस्यसिद्धये // 38 // ततःसिद्धेमनौ काम्यान्प्रयोगान्साधयन्निजान // ब्रह्मचर्यरतोमंत्रीजपेद्रविसहस्रकम् // 19 // षण्मासमध्याहारियन शयत्येवनिश्चितं // चतुर्थ्यादिचतुर्थ्यतंजपेद्दशसहस्रकम् // 20 // प्रत्यहंजुहुयादष्टोत्तरंशतमतंद्रितः॥ पूर्वोक्तंफलमाप्नोतिषण्मासाद्भक्तितत्परः॥२१॥ आज्याक्तानस्यहोमेनभवेद्धनसमृद्धिमान् // पृथुकै नारिकेलैमिरिचैर्वासहस्रकं // 22 // प्रत्यहंजुह्वतोमासाजायतेधनसंचयः // जीरसिंधुमरीचाक्तैरष्ट द्रव्यैःसहस्रकम् // 23 // जुह्वन्प्रतिदिनपक्षात्स्यात्कुवेरइवार्थवान् ॥चतुःशतं४४४चतुश्चत्वारिंशदा ढयंदिनप्रति // 24 // तर्पयेन्मूलमंत्रेणमंडलादिष्टमाप्नुयात् ॥अथ मंत्रांतरवक्ष्येसाधकानांनिधिप्रदम् // 25 // रायस्पोपभृगुर्याढ्योददितामेपसात्वतौ // सदृशौदोरत्नधातुमात्रशोगगनंरतिः // 26 // तौसदृशौइयुतौ // गगनंहः॥ रतिर्णः॥ ससद्याओंयुताशाीगः॥ खंहः अन्यत्स्वरूपं // षडक्षर-पूर्वोक्तः // यथारायस्पोषस्यददितानिधिदोरत्नधातुमात्ररक्षोहणोवलगहनोवक्रतुंडायहुमित्येकत्रिंशदर्णः॥२६॥ ..musasssssssgusDMASSSSSSदरम्यादा וסררלורפרופורפרהסונטורסונדרווסררמורפררסנוורנסוורת // 16 // For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 27 // 28 // पूर्ववत्षड्वर्णवत् // 29 // मंत्रांतरमाह // पद्मेति // भातुर्मः॥ पद्मनाभए // तद्युत मेधाद्यः॥ // सद्यओं॥ तातालकौलकारककारौ // अनंतमाकारमारूढौ // वायुर्यः // पावकगेहिनीस्वाहा // मेघो ल्कायस्वाहेतिषड्वर्णः॥३०॥ मंत्रांतरमाह // लकुलीति // लकुलीहकारः / / भृगुतौसकारतकारीदृशमारूढौ ससद्यावलशाङ्गीखनोषडक्षरसंयुतः // एकत्रिंशद्वर्णयुक्तोमंत्रोभीष्टप्रदायकः // 27 // सायकैस्त्रिभिर शॉभिश्चतुर्भिःपञ्चभीरसैः // मंत्रोत्थितैःक्रमाद्वर्णैःपडंगंसमुदीरितम् ॥२८॥ऋष्यावर्चाप्रयोगाःस्युः पूर्ववनिधिदोह्ययम् // पद्मनाभयुतोभानुर्मेधासद्यसमन्विता // 29 // लकावनंतमारूढौवायुःपावकगे हिनी // षडक्षरोयमादिष्टोभजतामिष्टदोमनुः // 30 // पूर्ववत्सर्वमेतस्यसमाराधनमीरितम् // लकुली दृशमारूढौभृगुतौलोहितःसहक् // 31 // वकःसदीर्घश्वसाक्षिर्लिखेमंत्र-शिरोंतिमः // नवाक्षरोमनु श्चास्यकंकोल परिकीर्तितः॥३२॥ इकारयुतौतेनस्तिलोहितःपासदृक् इयुतः॥वकाशः॥सदीर्घ आयुतः॥ चस्वरूपं // साक्षीइयुतः // लिखेस्वरू |पंशिरोंतिकःस्वाहांतः॥ हस्तिपिशाचिलिखेस्वाहोतिनवार्णः॥३१॥ 32 // 1 रायस्योषस्यदादितानिधिदोरत्नधातुमानक्षोहणविलगहनोवक्रतुंडायहुं // 2 मेधोल्कायस्वाहा // 3 हस्तिपिशाचिलिखेस्वाहा // For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक // 16 // त० मं०म०पञ्चांगमाह // द्वाभ्यामिति // हस्तिहृदयायनमइत्यादि // 33 // ध्यानमाह // चतुर्भुजमिति // अंकुशमो H विराट्छंदोदेवतातुस्यादुच्छिष्टविनायकः // द्वाभ्यांविभिईयेनाथद्वाभ्यांसकलमंत्रतः // 33 // पं चांगान्यस्यकुर्वीतध्यायेत्तंशशिशेखरम् // चतुर्भुजंरक्ततनुत्रिनेत्रंपाशांकुशौमोदकपात्रदंतौ // करैर्दै धानसरसीरुहस्थमुन्मत्तमुच्छिष्टगणेशमाडे // 34 // लक्षमेकंजपेन्मत्रंदशांशंजुहुयात्तिलैः // पूर्वी तेपूजयेत्पीठेविधिनोच्छिष्टविघ्नपम् // 35 // आदावंगानिसंपूज्यबामाद्यादिक्षुपूजयेत् // ब्राह्मीमाहे श्वरीचैवकौमारीवैष्णवीपरा // 36 // वाराहीचतथेंद्राणीचामुंडारमयासह // ककुप्सुवक्रतुंडाद्यान्दश सुप्रतिपूजयेत् // 37 // वक्रतुंडैकदंष्ट्रोचतथालंबोदराभिधः // विकटोधूम्रवर्णश्चविनश्चापिगजाननः // 38 // विनायकोगणपतिहस्तिदंताभिधोंतिमः // इंद्राद्यानपिवज्राद्यान्पूजयेदावृतिद्वये // 39 // एवंसिद्धमनोमंत्रीप्रयोगान्कर्तुमर्हति // स्वांगुष्टप्रतिमांकृत्वाकपिनासितभानुना // 40 // दकपात्रेदक्षयोः // अन्ययोरन्ये // 34 // 35 // 36 // 37 // 38 // 39 // प्रयोगानाह // स्वेति // कपि नारक्तचंदनेन // सितभानुनाश्वेतार्केणवाप्रतिमाका- // 40 // . 1 गणेशम् // FRONThishE // 16 // For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 41 // 42 // अनावृतोनिर्वस्त्रः॥ 43 // 44 // वल्मीकमृत्तिकाप्रतिमैवपूजितालाभदेति // 45 // 46 // अधि गणेशप्रतिमां रम्यामुक्तलक्षणलक्षिताम् // प्रतिष्ठाप्यविधानेनमधुनानापयेचताम् // 41 // आर भ्यकृष्णभूतादियावच्छुक्लाचतुर्दशी // सगुडंपायसंतस्मैनिवेद्यप्रजपेन्मनुम् // 42 // सहस्रप्रत्यहं तावज्जुहुयात्सघृतैस्तिलैः // गणेशोहमितिध्यायन्नुच्छिष्टेनावृतोरहः // 43 // पक्षाद्राज्यमवाप्नोति नृपजोन्योपिवानरः // कुलालमृत्स्नाप्रतिमापूजितैवंसुराज्यदा // 44 // वल्मीकमृत्कृतालाभमेवमि ष्टाप्रयच्छति॥गौडीसौभाग्यदासैलावणीक्षोभयेदरीन् ॥४५॥निवजानाशयेच्छचून्प्रतिमैवंसमर्चिता // मध्वक्तहोमतोलाजैर्वशयेदखिलंजगत // 46 // सप्तोधिशय्यमच्छिष्टोजपत्रविशंनयेत // कटुतला न्वितैराजीपुष्पैविद्वेषयेदरीन्॥४७॥ द्यूतेविवादेसमरेजप्तोयंजयमावहेत् / / कुवेरोस्यमनोर्जापानिधीनां स्वामितामयात्॥४८॥लेभातेराज्यमनरिवानरेशविभीषणौ // रक्तवस्त्रांगरागाढयस्तांबूलंनिश्यदञ्जपे त् // 49 // यद्वानिवेदितंतस्मैमोदकंभक्षयञ्जपेत् / / पिशितंवाफलंवापितेनतेनवलिंहरेत् // 50 // शय्यमशय्यायाम् // कटुतैलंसर्षपतैलम् // 47 // 48 // अनरिशत्रुहीनम् // 49 // तेनताम्बूलादिना॥५०॥ 1 घृतमधुशर्कराक्तैः॥ For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में०म० // 17 // बलिमंत्रमाहस्मृतिर्ग:सेन्दुस्सातुस्वारः॥ आकाशंहः। तथासानुस्वारः॥ सृष्टिलौककारलकारौ। कीदृशौ सटीक मन्विंद्वाढ्यौऔकारानुस्वारयुतौ // तेनक्लौंपंवांतकशिवीगकारलकारौतद्वन्मन्विद्वाढचौग्लौं // उच्छिष्ट गस्वरूपं // भगान्वित उमाकांतः // एकारयुतोणःणे // सबिंदुर्यःसानुस्वारोयकारः // अन्यत्स्वरूपम् // त.२ मन्त्रीयथा // गहलौंग्लौंउच्छिष्टगणेशायमहायशायायंबलिः // इत्येकोनविंशत्योबलिमंत्रः॥५१॥५२॥ सेंदुःस्मृतिस्तथाकाशंमन्विदाढयौचसृष्टिलौ // पंचांतकशिवौतद्वदुच्छिष्टगभगान्वितः // 51 // उमाकांतःशायमांतेहायक्षायासबिंदुयः // बलिरित्येषकथितोनवेंद्वर्णोवलेमनुः॥५२॥ध्रुवोमायासें दुशाङ्गि/जाढयोनववर्णकः॥ द्वादशा!मनुःप्रोक्त सर्वमस्यनवार्णवत् // 53 // ताराद्यश्चगणेशायो नवार्णोदशवर्णकः // द्विविधोस्योपासनंतुप्रोक्तमन्यनवार्णवत् // 54 // मन्त्रांतरमाह ॥ध्रुवेतिध्रुवओंमायाहीशार्किंगः॥ सेन्दुःअनुस्वारसहितः॥गंत्रिबीजाढयः॥ स्पष्टं यथाओं Bाहींगहस्तिपिशाचिलिखेस्वाहेतिद्वादशार्णः॥५३॥ ताराद्योयथा // हस्तिपिशाचिलिखेस्वाहा // गणे NE17 // शाद्योयथा // गंहस्तिपिशाचिलिखेस्वाहा // 54 // 1058655655Ehbhibitembrowomonal स्य For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्त्रान्तरमाह ॥ध्रुवेति // ध्रुवःप्रणवः॥ हनमः स्वरूपमन्यत् // मन्त्रः॥ॐनमउच्छिष्टगणेशायहस्तिपिशा| चिलिखेस्वाहा / इत्येकोनविंशतिवर्णः // मुन्यादिऋषिच्छंदोदेवता-नवार्णवत् // 55 // षडङ्गमाह // त्रि भिरिति॥अर्चनंपुरापूर्ववदित्यर्थः // 56 // मन्त्रांतरमाह // तारइति // झिंटीशः ए॥चतुराननः कः॥ ध्रवोहदच्छिष्टगणेशायांतेतनवाक्षरः॥ एकोनविंशत्याढयोमनुर्मुन्यादिपूर्ववत ॥६६॥त्रिभिःसप्त भिरक्षिभ्यांत्रिभिाभ्यांद्वयेनच // मंत्रोत्थितैःसुधीर्वणैःकुर्यादंगपुरार्चनम् // 56 // तारोनमोभगवते झिंटीशश्चतुराननः // दंष्ट्रायहस्तिमूच्चार्यखायलंबोदरायच // 17 // उच्छिष्टमवियदीर्घात्मनेपाशों कुशःपरा // सेंदुःशाीभगयुतेद्वेमधेवन्हिकामिनी // 58 // उछिष्टगणनाथस्यमनुरद्रिगुणाक्षरः // गणकोमुनिराख्यातोगायत्रीछंदईरितः॥१९॥ Balदीवियत् // हापाशआं // अंकुशकों॥ पराह्नीं // सेन्दुश्शाीगं // भगयुतेद्वेमधे // एकारयुतघद्वयम् // वन्हिकामिनीस्वाहा॥अन्यत्स्वरूपम् // ओंनमोभगवतेएकदंष्ट्रायहस्तिमुखायलम्बोदरायउच्छिष्टमहात्मने IBE आँक्रोंहींगंधेघेस्वाहा / / अद्रिगुणाक्षर-सप्तत्रिंशदक्षरः॥५७॥ 58 // 59 // 1 अस्यश्रीउच्छिष्टगणपतिमंत्रस्यगणकऋषिःगायत्रीच्छंद उच्छिष्टगणपतिर्देवताममाभीष्टसिद्धयेजपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में०म० सटीक // 18 // MBEत०२ षडंगमाह // सप्तेति // 60 // ध्यानमाह // शरानिति // धनुःपाशौवामयोः // शरांकुशौदक्षयोः // 61 // 62| उछिष्टगणपोदेवोजपेदुच्छिष्टएवतं // सप्तदिग्वाणसप्ताँधिंयुगाणैरङ्गकंमनोः // 60 // शरान्धनुः पाशसृणीस्वहस्तैर्दधानमारक्तसरोरुहस्थम् // विवस्त्रपन्यांसुरतप्रवृत्तमुच्छिष्टमम्बासुतमाश्रयेहम् // | // 61 // लक्षंजपेद्धृतैर्तुत्वातशांशंप्रपूजयेत् // पूर्वोक्तपीठेस्वाभीष्टसिद्धयेपूर्ववद्विभुम् // 62 // कृष्णाष्टम्यादितद्भूतंयावत्तावजपेन्मनुम् // प्रत्यहंसाष्टसाहस्रेजुहुयात्तदशांशतः // 63 // तर्पयेदपिमंत्रोयसिद्धिमेवप्रयच्छति // धनधान्यसुतान्पौत्रान्सौभाग्यमतुलंयशः // 64 // मू र्तिकुर्याद्गुणेशस्यशुभाहेनिम्बदारुणा // प्राणप्रतिष्ठांकृत्वाथतद्ग्रेमंत्रमाजपेत् // 65 // यंध्यात्वा दासवत्सोपिवश्योभवतिनिश्चितम् // नदीजलंसमादायसप्तविंशतिसंख्यया // 66 // मंत्रयित्वामुखं तेनप्रक्षाल्येशसभांवजेत् // पश्येद्यदृश्यतेयेनसवश्योजायतेक्षणात् // 67 // चतुःसहस्रंधत्तूरपुष्पाणि मनुनार्पयेत् // गणेशायनृपादीनांजनानांवश्यताकृते // 68 // सुंदरीवामपादस्यरेणुमादायतवतु // संस्थाप्यगणनाथस्यप्रतिमांप्रजपेन्मनुम् // 69 // तद्भतंकृष्णचतुर्दशीपर्यन्तम् // 63 // 64 // 65 // 66 // 67 // 68 // 69 // / // 18 // For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie N धृतासुका कृतप्राणप्रतिष्ठाम् // 70 // // 71 // 72 // वज्रीस्नुही // 73 // 74 // 75 // तांध्यात्वारविसाहस्रंसासमायातिदूरतः॥ श्वेतार्केणाथनिम्बेनकृत्वामूर्तिधृतासुकाम् // 70 // चतु •पूजयेद्राचौरक्त कुसुमचंदनैः // जप्त्वासहस्रंतांमूर्तिक्षिपेद्रात्रीसरित्तटे // 71 // स्वेष्टंकार्य समाचष्टेस्वप्नेतस्यगणाधिपः // सहस्रनिम्बकाष्ठानांहोमादुच्चाटयेदरीन् // 72 // वज्रिणःसमिधाहो माद्रिपुर्य्यमपुरंत्रजेत् // वानरस्यास्थिसंजप्तंक्षिप्तमुच्चाटयगृहे // 73 // जप्तंनरास्थिकन्यायागृहेक्षिप्त तदाप्तिकृत् // कुलालस्यमृदास्त्रीणांवामपादस्यरेणुना // 74 // कृत्वापुत्तलिकांतस्याहृदिस्त्रीनामसं लिखेत् // निखनेन्मंत्रसंजप्तैनिम्बकाष्ठैःक्षिताविमाम् // 75 // सोन्मत्ताभवतिक्षिप्रमुद्धृतायांसुखं भवेत् // शबोरेवंकृतासातुलशुनेनसमन्विता // 76 // शरावान्तर्गतासम्यक्पूजिताद्वारिविद्विषः॥ निखातापक्षमात्रेणशत्रूचाटनकृत्स्मृता // 77 // विषमेसमनुप्राप्ते सितार्कारिष्टदारुजम् // गणपंपूजितंसम्यक्कुसुमैरक्तचंदनैः // 78 // मद्यभाण्डस्थितंहस्तमात्रेतंनिखनेत्स्थले // तत्रोपविश्यप्रजपेन्मंत्रीनक्तंदिवामनुम् // 79 // // 76 // 77 // अरिष्टोनिम्बः // 78 // 79 // For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir THI मं०म० सटीक 1 त०२ देनेने a0 // 8 // 81 // 8 // हयमारजैःकरवीरोत्थैः॥८॥ मन्त्रान्तरमाहातारइति॥तारःओं॥महात्माङ महात्मने| पाशादियुक्तम् // आत्मभू-क्रीं // मायाह्रीं / वर्महुँ // दहनांगनास्वाहा॥स्वरूपमन्यत् // यथाओंहस्तिमुखा सप्ताहमध्येनश्यंतिसर्वेघोराउपद्रवाः // शत्रवोवशतांयान्तिवर्द्धन्तेधनसंपदः // 80 // दुष्टस्त्री वामपादस्यरजसानिजदेहजैःमलैमूत्रपुरीषाद्यैःकुंभकारमृदापिच // 81 // एतैःकृत्वागणेशस्यप्रतिमां मद्यभांडगाम्॥संपूज्यनिखनेद्भूमौहस्तार्द्रपूरितेपुनः॥८२॥ संस्थाप्यवह्निजुहुयात्कुसुमैर्हयमारजैः॥ सहस्रंसाभवेदासीतन्वाचमनसाधनैः॥ 83 // एवमादिप्रयोगांस्तुनवार्णेनापिसाधयेत् // तारोहस्तिमु खायाथडेन्तोलम्बोदरस्तथा // 84 // उच्छिष्टान्तेमहात्मापाशाङ्कुशशिवात्मभूः॥ मायावर्मचषेधे उच्छिष्टायदहनाङ्गना // 86 // द्वात्रिंशदक्षरोमन्त्रोयजनंपूर्ववन्मतम् // रसेपुंसप्तपट्पट्कनेत्राणैरङ्गमी रितम् // 86 // उच्छिष्टगजवक्रस्यमन्त्रेष्वेषुनशोधनम् // सिद्धादिचक्रमासादे प्राप्तास्तेसिद्धिदागु रोः॥ ८७॥मनवोमीसदागोप्यानप्रकाश्यायत कुतः॥ परीक्षितायशिष्यायप्रदेयानिजसूनवे // 8 // यलम्बोदरायउच्छिष्टमहात्मनेआँक्रोंह्रीं क्लीं ह्रींहुँघेघेउच्छिष्टायस्वाहा // 84 // 85 // द्वात्रिंशदर्णः षडंगमाहर॥सेति // 86 // 87 // 88 // ब. // 19 // anta . . For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उच्छिष्टगणेशाउक्ताशक्तिविनायकसंज्ञं मन्त्रान्तरमाह // मायेति // मायाहीं॥ पश्चान्तकहुताशनौगका ररेफौ // त्रिमूर्तिचन्द्रस्थौ // इकारानुस्वारयुक्तौ // तेनग्रीतारादिशक्तिबीजान्तः // प्रणवादियाबी जान्तः // यथा // ओह्रींनींहींइति चतुर्वर्णः // 89 // देवइतिपूर्वेणसम्बन्धः // मायाशक्तिः // द्वितीयं मायात्रिमूर्तिचंदुस्थौपंचान्तकहुताशनौ // तारादिशक्तिबीजान्तोमंत्रोयंचतुरक्षरः // 89 // भार्ग वस्यमुनिश्छंदोविराटशक्तिगणाधिपः // देवोमायाद्वितीयेतुशक्तिबीजेप्रकीर्तिते // 90 // षड्दी र्घयुद्वितीयेनताराद्यनषडङ्गकम् // विधायसावधानेनमनसासंस्मरेत्प्रभुम् // 91 // विषाणांडशाव क्षसूत्रंचपाशंदधानकरैर्मोदकंपुष्करेणास्वपत्न्यायुतंहेमभूषाभुराव्यंगणेशंसमुद्यदिनेशाभमीडे॥१२॥ एवंध्यात्वाजपेल्लक्षचतुष्कंतदशांशतः॥ अपूपैर्नुहुँयावह्नौमध्वक्तैस्तर्पयेचतम् // 93 // पूर्वोक्तेपूजये त्पीठेकेसरेष्वङ्गदेवता॥ दलेषुवक्रतुण्डाद्यान्ब्राह्मीत्याबादलायगाः॥९४॥ बीजम् // 90 ॥षडङ्गमाह॥षडिंति॥ओंग्राहृत् ॥ओंग्रीशिरइत्यादि // 91 // ध्यानमाह // विषाणेति // अं कुशाक्षसूत्रेदक्षयोः / अन्येवामयोः॥९२ // 93 // 94 // 1 अस्यशक्तिगणाधिपमंत्रस्यभार्गवऋषिः विराट्छंदः शक्तिगणाधिपोदेवताहींशक्तिःग्रीबीजममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः / 2 दन्त / 3 शुंडाग्रेण / For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक ककुप्पालानिन्द्रादीन् // 95 // परमान्नंपायसम् // 96 // वामनेत्रानारी // 97 // मंत्रांतरमाह / तारइति / ममतारः। रमाश्रीं // चन्द्रयुक्तःखान्तःगं // समीरणोयस्तोयंवः // दीर्घोनः // वायुर्यः // पावककामिनी // 20 // ककुप्पालांस्तस्राणिसिद्धएवंभवेन्मनुः॥ घृताक्तमनंजुहुयादावादन्नमान्भवेत् // 95 // परमान्नई तालक्ष्मीरिक्षुदंडैर्नृपश्रियः॥ रम्भाफलैनारिकेलैःपृथुकैर्वश्यताभवेत् // 96 // घृतेनधनमाप्नोतिल वणैर्मधुसंयुतैः // वामनेत्रांवशीकुर्यादपूपैःपृथिवीपतिम् // 97 // तारोरमाचन्द्रयुक्तःखान्तः सौम्यासमीरणः // डेन्तोगणपतिस्तोयंरवरान्तेदसर्वच // 98 // जनमेवशमादीर्घावायुः पावककामिनी // अष्टाविंशतिवर्णोयंमनुर्द्धनसमृद्धिदः // 99 // अन्तर्यामीमुनिश्छंदोगायत्री देवतामनोः // लक्ष्मीविनायकोबीजरमाशक्तिर्वसुप्रिया // 100 // स्वाहा // अन्यत्स्वरूपम् // ॐश्रींगसौम्यायगणपतयेवरदसर्वजनंमेवशमानयस्वाहेति अष्टाविंशत्योल क्ष्मीगणेशोमन्त्रः॥ 98 // 99 // 10 // // 20 // Walअस्यलक्ष्मीविनायकमंत्रस्यअन्तर्यामीऋषिःगायत्रीछंदः। लक्ष्मीविनायकोदेवताश्रीबीजस्वाहाशक्तिः ममाभीष्टसिध्द्यर्थे जपेविनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडङ्गमाह // रमेति॥श्रींगांहृत्॥श्रींगीशरः॥श्रृंगूशिखेत्यादि॥ध्यानमाह // दन्तति // दन्तशङखौदक्षयोः। रमागणेशबीजाभ्यांदीर्घाब्याभ्यांषडङ्गकम् // दन्ताभयेचक्रवरौदधानंकराग्रगस्वर्णघटंत्रिनेत्रम् // घृताब्जयालिङ्गितमब्धिपुत्र्यालक्ष्मीगणेशंकनकाभमीडे // 101 // चतुर्लक्षंजपेन्मंत्रसमिद्भिवल्व शाखिनः॥ दशांशंजुहुयात्पीठेपूर्वोक्तेतंप्रपूजयेत् // 102 // आदावङ्गानिसंपूज्यशक्तीष्टाविमायजे त् // बलाकाविमलापश्चात्कमलावनालिका // 103 // विभीषिकामालिकाचशाङ्करीवसुवालिका॥ शंखपद्मनिधीपूज्यौपार्श्वयोर्दक्षवामयोः॥१०॥ लोकाधिपान्तदत्राणितद्वहिःपरिपूजयेत // एवंसिद्धे मनौमंत्रीप्रयोगान्कर्तुमर्हति // 106 // उरोमात्रेजलेस्थित्वामंत्रीध्यात्वार्कमण्डले // एवंत्रिलक्षंजपतो धनवृद्धिःप्रजायते // 106 // बिल्वमूलंसमास्थायतावजप्तेफलंहितत् // अशोककाष्ठेचलितेवह्ना वाज्याक्ततण्डुलैः॥ 107 // अभयचक्रेवामयोः // शुण्डानेस्वर्णकुम्भः॥२०१॥ 102 // 103 // 104 // 105 // 106 // तावतविलक्षं तत्फलंधनवृद्धिः // 107 // For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०२ मं०म० 108 त्रैलोक्यमोहनगणेशमंत्रमाह॥वक्रेति॥स्वरूपंणांतस्तःकर्णेदुयुकाउबिंदुयुतः॥मन्मथक्लीं।मायाह्रीं। रमाश्रीं // गजमुखोग // भगीहरिः॥ एयुतस्तः॥ बालोवः।। अग्नीरसत्योदः॥रेफारूढजलंवं॥स्थिराजः॥ // 21 // सेन्दुर्मेषानं // उषर्बुधप्रियास्वाहा // स्वरूपमन्यत् // यथा॥ वक्रतुंडैकदंष्ट्रायक्कीह्रीं श्रीगंगणपते वरवरदस होमतोवशयेद्विश्वमर्ककाष्ठशुचावपि // खादिरानौनरपतिलक्ष्मीपायसहोमतः // 108 // वक्रकणे न्दुयुरुणान्तौडैकदंष्ट्रायमन्मथः।मायारमागजमुखोगणपान्तेभगीहरिः // 109 // वरवालाग्निसत्या सरे फारूढंजलंस्थिरा॥ सेन्दुम्म॑षोमेवशान्तेमानयोपर्बुधप्रिया // 110 // स्यात्रयस्त्रिंशदर्णाव्योमनुस्त्रै लोक्यमोहनः // गणकोस्यऋषिश्छंदोगायत्रीदेवतापुनः // 111 // त्रैलोक्यमोहनकरोगणेशोभक्त सिद्धिदः // रविवेदशरोद॑न्वसनेपडङ्गकम् // 112 // गदाबीजपूरेधनुःशूलचक्रेसरोजोत्पले पाशधीन्यायदन्तान् // करैःसंदधानंस्वशुंडाग्रराजन्मणीकुम्भमङ्काधिरूढंस्वपत्न्या // 113 // र्वजनंमेवशमानयस्वाहेतित्रयस्त्रिंशद्वर्णाः॥१०९॥११०॥१११॥ षडंगमाह॥रवीति॥उदन्वन्तश्चत्वारः॥११२॥ ध्यानमाह // गदेति // गदाबीजपूरशूलचक्रपद्मानिदक्षेषुअन्यान्यन्येषु // धान्यायव्रीहिमंजरी // 113 // 1 अस्यत्रैलोक्यमोहनकरगणेशमंत्रस्यगणकऋषिःगायत्रीछंद त्रैलोक्यमोहनकरोगणेशोदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः॥ // 21 // For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किंभूतयापत्न्या॥सरोजन्मनापद्मन // भूषणसमूहेनचक्रमात् // ज्वलन्दीप्यमानोहस्तोज्वलंतीतनुश्चयस्या स्तया // 114 // 115 // 116 // 117 // दीर्घाद्यामातरः // आंबायैनमः // ईमाहेश्वर्यैनमइत्या सरोजन्मनाभूषणानांभरेणोज्वलद्धस्ततन्व्यासमालिङ्गिताङ्गम्॥करीन्द्राननंचन्द्रचूडंत्रिनेत्रंजगन्मोहनं रक्तकान्तिभत्तम् // 114 // वदलक्षजन्मत्रमष्टद्रव्यदेशांशतः॥ हुत्वापूादितपीठेपूजयगणनायकम् ॥११॥अङ्गार्चापूर्ववत्प्रोक्ताशक्ती पत्रेषुपूजयेत्॥वामाज्येष्ठाचरौद्रीस्यात्कालीकलपदादिका।।११६॥ विकरिण्याह्वयातद्वद्धलाद्या प्रमथिन्यपि // सर्वभूतदमन्याख्यामनोन्मन्यपिचाग्रतः॥ 117 // दिक्षुष मोदःसुमुखोदुर्मुखोविघ्ननाशकः // दीर्घाद्यामातर-पूज्याइंद्राद्याआयुधान्यपि // 118 // एवंसिद्धेमनौ कुत्प्रियोगानिष्टसिद्धये // वशयेत्कमलै पान्मन्त्रिणःकुमुदै तैः // 119 // समिद्वरैश्चलदलसमु द्भूतैर्द्धरासुरान् // उदुम्बरोत्थैर्नृपतीन्स टैविशोन्तिमान // 120 // क्षौद्रेणकनकप्राप्तिर्गोप्राप्तिः पयसागवाम् // ऋद्धिर्दनोदनैरन्नंघृतैःश्रीर्वेतसैर्जलम् // 121 // BHIदि // 118 // 119 // चलदलोश्वत्थस्तस्यसमिद्भिर्द्धरासुरान्विप्रानवशयेतप्लक्षसमिद्भिर्वैश्यान्वटजा sal भिरतिमानशूद्वान् विप्रान्वशयेत् प्लक्षसमिद्भिवैश्यान् वटजाभिरंतिमान् शूद्रान् / / 120 // 121 // For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BA/सटीक // 22 // Baत०२ मं०म० हरिद्रागणेशमनुमाह ॥तारइति॥तारओं वर्महुँगणेशोगंभू-लौ लोहितःपः॥ आषाढीतः।सत्योदः॥ तर्ज नीतः। स्वर्णरेतसोवल्लभास्वाहा // स्वरूपमन्यत् // यथा // ओहुंगंग्लौहरिद्रागणपतयेवरवरदसर्वजनहृदयं तारोवर्मगणेशोभूहरिद्रागणलोहितः // आषाढीयेवरवरसत्यःसर्वजतर्जनी // 122 // हृदयं स्तम्भयद्वंद्ववल्लभांस्वर्णरेतसः // द्वात्रिंशदक्षरोमंत्रोमदैनोमुनिरीरितः // 123 // छन्दोनुष्टुब् देवतातुहरिद्रागणनायकः // वेदाष्टशरसप्ताङ्गनेवाणैरङ्गमोरितम् // 124 // पाशाङ्कुशौमोदकमेकंद न्तंकरैर्दधानंकनकासनस्थम् // हरिद्रखण्डप्रतिमंत्रिनेत्रंपीतांशुकंरात्रिगणेशमाडे // 125 // वेदल संजपित्वान्तेहरिद्राचूर्णमिश्रितैः॥ दशांशंतण्डुलैर्तुत्वाब्राह्मणानपिभोजयेत् // 126 // पूर्वोक्तपीठेप्र यजेदङ्गमातृदिशाधवैः॥ एवमाराधितोमंत्रस्सिद्धोयच्छेन्मनोरथान् / / 127 // शुक्लपक्षेचतुर्थ्यांतुक न्यापिष्टहरिद्रया // विलिप्यांगंजलेस्नात्वापूजयेद्गणनायकम् // 128 // स्तंभयर स्वाहेतिद्वात्रिंशद्वर्णः // 122 // 123 // षडंगमाह // वेदेति // 124 // ध्यानमाह // पाशेति // अंकुशमोदकौदक्षयोः॥पाशदन्तावन्ययोः॥रात्रिगणेशोहरिद्रागणपतिः॥ 125 // 126 // 127 // 128 // 1 अस्यहरिद्रागणनायकमंत्रस्यमदनऋषिःअनुष्टुप्छन्द हरिद्रागणनायकोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // 22 // For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie // 129 ॥कुमारीरपीतिभोजयेदित्यनेनान्वेति // 130 // 131 // 132 // 133 // मंत्रांतरमाह // शाङ्गीति // शाींगः॥मांसस्थोलकारस्थः॥ग्लमितिबीजं / हरिद्रागणपतेः पूजनंपूर्ववत् // 134 // 135 // इतिमंत्रमहोदधौ तर्पयित्वापुरस्तस्यप्तहस्रसाष्टकंजपेत्॥शतंहुत्वासाज्यपूपैर्भोजयेद्ब्रह्मचारिणः // 129 // कुमारीरपिसं तोष्यगुरुंप्राप्नोतिवांछित॥लाजैःकन्यामवाप्नोतिकन्यापिलभतेवरम् // 130 // ध्यानारीरजःस्रातापूज यित्वागणाधिपम् // पलप्रमाणगोमूत्रपिष्टा-सिंधुवचानिशाः // 131 // सहस्रमंत्रयेत्कन्याबटून्त्संभो ज्यमोदकैः॥ पीत्वातदोष,पुत्रलभतेगुणसागरम् // 132 // वाणीस्तंभरिपुस्तभंकुर्यान्मनुरुपासितः॥ जलाग्निचौरसिंहास्त्रप्रमुखानपिरोधयेत् // 133 // शाीमांसस्थित सेंदु:जमुक्तंगणेशितुः॥ हरिद्राख्य स्ययजनंपूर्ववत्प्रोदितंमनोः // 134 // प्रोक्ताएतेगणेशस्यमंत्राइष्टमभीप्सता|गोपनीयानदुष्टेभ्योवदनी याःकथंचन // 135 // इतिश्रीमहीधरविरचितमंत्रमहोदधौगणेशमंत्रकथननामद्वितीयस्तरंगः॥२॥ अथकालीमनून्वक्ष्येसद्योवाकसिद्धिदायकान् // आराधितैयःसर्वेष्टंप्राप्नुवंतिजनाभुवि // 1 // नौकायांगणेशमंत्रकथननामद्वितीयस्तरङ्गः॥२॥ // कालीमंत्रान्वक्तुंप्रतिजानीते // अथेति // 1 // DOT हरिद्रा // For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 23 // मंत्रमुद्धरति // क्रोधीशेति // क्रोधीशाकः॥ तस्यत्रयंवहिवामाक्षिविधुभिरेफईकारानुस्वारैर्युतं // तेनक्री सटीक क्रीनी // वराहोहः॥ वामकर्ण ऊं॥ दक्षिणेस्वरूपं // सृष्टिःकः॥ दीर्घाआकारयुता // क्रियालः॥ सहक इयुतालि // चक्रीकः // झिंटीशवमारूढः / एयुतःके // प्रागुक्तं आदावुक्तं बीजानांसप्तकं // वहिपित०३ क्रोधीशत्रितयंवह्निवामाक्षिविधुभिर्युतम् // वराहद्वितयंवामकर्णचन्द्रसमन्वितम् // 2 // मायायुग्मंद क्षिणेचदीर्घासृष्टि सहक्रिया // चक्रीझिंटीशमारूढःप्रायुक्तंबीजसप्तकं // 3 // मंत्रोवह्निप्रियांतोयंदा विंशत्यक्षरोमतः // नचात्रसिद्धसाध्यादिशोधनंमनसापिच // 4 // नयनातिशयःकश्चित्पुरश्चर्यानि मित्तकः॥ विद्याराड्याःस्मृतेरेवसिद्धयष्टकमवाप्नुयात् // 5 // भैरवोस्यऋषिश्छंदउष्णिक्कालीतुदे वता // बीजंमायादीर्घवर्मशक्तिरुक्तामनीषिभिः ॥६॥षदीर्घाट्याद्यबीजेनविद्यायाअंगमीरितम् // मातृकांपंचध भक्त्वावर्णान्दशदशक्रमात् // 7 // यास्वाहा // यथा // क्रीक्रीकी हूँहूँहीहीदक्षिणेकालिकेकीलीकोहूँहूँहीहीवाहेति // 2 // 3 // 4 // दीर्घ वर्महूं // 5 // 6 // षडंगमाह // षडिति // क्रांक्रीमित्यादि॥ मातृकामिति // अंआंइंईउऊंलंलं१० नमोहदि // ए१०दक्षभुजे // १०वामभुजे // णंदक्षपादे // मं 10 वामपादे // इति // 7 // // 23 // 1 अस्यकालीमंत्रस्यभैरवऋषिःउष्णिक्छंदःकालीदेवताहुंबीजंहूंशक्तिःममाभीष्टसिध्द्यर्थेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie Re NEL // 8 // ध्यानमाह // सद्यइति / खड्गवरौदक्षयोः // सद्यश्छिन्नशिरोऽभयेवामयोः // मुक्काणोरोष्ठप्रांतयो हृदयेभुजयोःपादद्वयेमंत्रीप्रविन्यसेत् ॥व्यापकंमनुनाकृत्वाध्यायेच्चेतसिकालिकाम् // 8 // सद्यश्छिन्न शिरःकृपाणमभयंहस्तैरिबिभ्रतीघोरास्यांशिरसांस्रनासुरुचिरामुन्मुक्तकेशावलिम् // सृक्कामुक्प्रवहां श्मशाननिलयांश्रुत्योःशवालंकृतिश्यामांगीकृतमेखलांशवकरैर्देवीभजेकालिकाम् // 9 // एवंध्यात्वा जपेल्लक्षंजुहुयात्तदशांशतः // प्रसूनैःकरवीरोत्थैःपूजायंत्रमथोच्यते // 10 // आदौषट्कोणमार च्यत्रिकोणत्रितयंततः // पद्ममष्टदलंबा भूपुरंतत्रपूजयेत् // 11 // जयाख्याविजयापश्चाद जिताचापराजिता // नित्याविलासिनीचापिदोग्ध्यघोराचमंगला // 12 // पीठशक्तयएताःस्युः कालिकायोगपीठतः॥ आत्मनेहृदयांतोयंमायादिःपीठमंत्रकः॥१३॥ अस्मिन्पीठेयजेदेवीशवरूपशि वस्थिताम् / महाकालरतासक्तांशिवाभिर्दिक्षुवेष्टिताम् // 14 // रसृजोरुधिरस्यप्रवाहोयस्यास्ताम् // श्रुत्योः कर्णयोःशवालंकारयुताम् // 9 // 10 // 11 // 12 // पीठमं त्रमाह // आत्मनइति // हींआत्मनेनमइति // 13 // 14 // 1 इदंयत्रंगौणं // मुख्येतुत्रिकोणपंचकलेखनीयम् // 2 ह्रींकालिकायोगपीठात्मनेनमः // orl Mr For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir La Horon सटाक त मं०म०/5॥ 15 // 16 // 17 // 18 // महदाद्यांमहाभैरवीं // सिंहाद्यांसिंहभैरवीं // धूम्रपूर्विकांधूम्रभैरवीं // अंगानिपूर्वमाराध्यपटपत्रेषुसमर्चयेत् // कालीकपालिनींकुल्लांकुरुकुल्लांविरोधिनीम् / / 15 // विप्रचितां // 24 // | चसंपूज्यनवकोणेषुपूजयेत्।। उग्रामुग्रप्रभांदीप्तांनीलांघनांबलाकिकां॥१६||मात्रांमुद्रांतथामित्रांपूज्याः पत्रेषुमातरः॥ पद्मस्याष्टसुपत्रेषुब्राह्मीनारायणीत्यपि // 17 // माहेश्वरीचचामुंडाकौमारीचापराजि ता॥ वाराहीनारसिंहीचपुनरेतास्तुभूपुरे // 18 // भैरवींमहदायांतासिंहायांधूम्रपूर्विकाम् // भीमोन्म त्तादिकांचापिवशीकरणभैरवीम् // 19 // मोहनाद्यांसमाराध्यशकादीनायुधान्यपि // एवमाराधिताका लीसिद्धाभवतिमंत्रिणाम् // 20 // ततःप्रयोगान्कुर्वीतमहाभैरवभाषितान् // आत्मनोर्थेपरस्याक्षिप्रसि दिप्रदायकान्॥२१॥स्त्रीणांनिन्दांप्रहारंचकौटिल्यंवाप्रियंवचः॥ आत्मनोहितमन्विच्छन्कालीभक्तोवि वर्जयेत्॥२२॥सुदृशोमदनावासंपश्यन्य प्रजपेन्मनुं॥ अयुतंसोचिरादेववाक्पतेःसमतामियात् // 23 // भीमोन्मत्तादिकांभीमभैरवीमुउन्मत्तभैरवींच // 19 // मोहनाद्यां मोहनभैरवीम् // 20 // 21 // H // 22 / / मदनावासंभगं // 23 // 1 अंगार्चनमेकं // काल्याद्याषट्पट्अचयेदितिद्वितीयम् // उग्राद्यानवनवकोणेषुयजेदितितृतीयम् // अष्टपत्रेवाह याद्याअष्टयजेदिति IBIचतुर्थम् // भूपुष्टदिक्षुभैरवाद्याअष्टयजेदितिपंचमम् // // 24 // For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HTempEOSSISESH अधियामिनिरात्रौ // 24 // 25 // 26 // 27 // त्रिगुणाःपंचाराकोणायस्येदृशेपीठेमहाकालेनभा दिगंबरोमुक्तकेशःश्मशानस्थोधियामिनि // जपेद्योयुतमेतस्यभवेयुःसर्वकामनाः // 24 // शावं हृदयमारुह्यनिर्वासा प्रेतभूगतः // अर्कपुष्पसहस्रेणाभ्यक्तेनस्वीयरेतसा // 25 // देवीय पूजयेद्भ त्याजपन्नेकैकशोमनुम् // सोचिरेणैवकालेनधरणीप्रभुतांब्रजेत् // 26 // रजःकीर्णभगनार्याध्यायन्यो युतमाजपेत् // सकवित्वेनरम्येणजनान्मोहयतिध्रुवं // 27 // त्रिपंचारेमहापीठेशवस्यहृदिसंस्थितां॥ महाकालेनदेवेनमारयुद्धप्रकुर्वतीं // 28 // तांध्यायन्स्मेरवदनांविदधत्सुरतस्वयम् // जपेत्सहस्रमपि यःसशङ्करसमोभवेत् // 29 // अस्थिलोमत्वचायुक्तंमांसंमार्जारमेषयोः॥ उष्ट्रस्यमहिषस्यापिबलिंय स्तुसमर्पयेत् // 30 // भूताष्टम्योर्मध्यरात्रेवश्यास्युस्तस्यजंतवः // विद्यालक्ष्मीयशःपुत्रैःसचिरंसुख मेधते // 31 // योहविष्याशनरतोदिवादेवींस्मरन्जपेत्॥नक्तंनिधुवनासक्तोलॉसस्याद्धरापतिः॥३२॥ रक्तांभोज तैमैत्रीधनैर्जयतिवित्तपम् // बिल्वपत्रैर्भवेद्राज्यरक्तपुष्पैर्वशीकृतिः॥३३॥अमृजामहिषा दीनांकालिकांयस्तुतर्पयेत् // तस्यस्युरचिरादेवकरस्थाःसर्वसिद्धयः // 34 // मारयुद्धं सुरतं कुर्वतीम् // 28 // 29 // 30 // 31 // 32 // 33 // 34 // For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Balसटीक त०३ मं० म० // 35 // 36 // 37 // कालीमंत्रभेदानाहामायेति|मायाह्नीं। कूर्चहं // करस्वरूपं ॥शांतिरी॥विधुबिन्दुः॥क्री॥ उक्तबीजानिव्युत्क्रमेण॥ स्वरूपमन्यत् // ओह्रींहींहूँहूँक्रींक्रींक्रीदक्षिणकालिकेक्रीक्रींक्रीहूँहूंहींहीमित्येकवि // 25 // योलॉप्रजपेन्मत्रंशवमारुह्यमंत्रवित्॥ तस्यसिद्धोमनुःसद्यःसर्वेप्सितफलप्रदः // 35 // तेनाश्वमेधप्रमुखै / यांगैरिष्टंसुजन्मना॥दत्तदानंतपस्तप्तमुपास्तेयस्तुकालिकां॥३६॥ब्रह्माविष्णु-शिवोगौरीलक्ष्मीर्गणपती रविः॥पूजिताःसकलादेवायःकालीपूजयेत्सदा॥३७॥अथकालीमंत्रभेदाउच्यतेसिद्धिदायिनः॥ मायायु गंकूर्चयुग्मंकरशांतिविधुत्रयं // 38 // दक्षिणेकालिकेपूर्वबीजानिस्युर्विलोमतः॥ एकविंशतिवर्णात्मा ताराद्यःपूर्ववद्यजिः // 39 // विल्वमूलेशवारूढोवटमूलेतथैवच // लक्षमनुमिमंजप्त्वासर्वसिद्धीश्वरो भवेत् // 40 // कालीकूचैचहल्लेखादक्षिणेकालिकेपठेत् // पुन:जत्रयंवह्निवधूर्मन्वक्षरोमनुः // 41 // यजनंपूर्ववत्प्रोक्तमस्यमंत्रस्यमंत्रिभिः / / विशेषानृसुरादीनामयमाकर्षणेक्षमः // 42 // शत्यर्णाताराद्यःप्रणवाद्यः॥३८॥३९॥४०॥ मंत्रांतरमाह // कालीति // कालीक्रीं // कूर्चहूं // हल्लेखाहीं॥ dवह्निवधूःस्वाहा // यथा // क्रीडूंह्रींदक्षिणेकालिकेकीहूँहीस्वाहति // चतुर्दशाणः // 41 // 42 // // 26 // For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रांतरमाह // कूर्चेति ॥कूर्चहं क्रीं ह्रीं दक्षिणेकालिकेपुनर्बीजानिस्वाहेतिद्वाविंशत्यावशीकृतौक्ष मइतिशेषः॥४३॥ मंत्रांतरमाह // मंत्रराजेइति॥क्री 3 हूंरहींरदक्षिणेकालिकेस्वाहेतिपंचदशार्णः॥४४॥मंत्रां तरं॥ ब्रह्मेति // ब्रह्माकः॥ वामनेत्रेई // क्रीं॥४५॥ षडर्णमाह // बीजमिति // बीजंक्रीं // दीर्घयुतश्चक्री कूर्चयंत्रयंकाल्यामायायुग्मंतुदक्षिणे // कालिकेपूर्ववीजानिस्वाहामंत्रोवशीकृतौ // 43 // मंत्रराजे पुनःप्रोक्तंबीजसप्तकमुत्सृजेत् // तिथिवर्णोमहामंत्रंउपास्तिःपूर्ववन्मता // 44 // ब्रह्मरेफौवामनेत्रचं द्रारूढौमनुर्मतः // एकाक्षरोमहाकाल्याःसर्वसिद्धिप्रदायकः॥ 45 // बीजंदीर्घयुतश्चक्रीपिनाकीनेत्रसं युतः॥ क्रोधीशोभगवान्स्वाहाषडोमंत्रईरितः॥४६॥ कीलीकूर्चतथालज्जाविवर्णोमनुरीरितः॥ हुंफडंतश्चपंचार्णःस्वाहांतःसप्तवर्णकः // 47 // एतेषांपूर्ववत्प्रोक्तंयजनंनारदादिभिः // निग्रहानुग्र हेशक्ताःकालीमंत्राःस्मृताइमे // 48 // dका॥ नेत्रयुतःपिनाकी लि // भगमेकारस्तातःक्रोधीशके // क्रीकालिकेस्वाहेति // 46 // मंत्रांतरं // कालीति // क्रीहूँह्रींहुंफडितिपंचार्णः॥क्रीहूंहींहुंफटस्वाहेतिसप्तार्णः॥४७॥४८॥ 1 हूँहूँक्रीक्रीक्री ह्रींहींदक्षिणकालिकेहूंहूँक्रीकाक्री हहि स्वाहा // 2 क्रीक्रीक्रीहूँहूँहीहींदक्षिणकालिकेस्वाहा // ap For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०३ सुमुखींवक्तुंप्रतिजानीते // अथेति // 49 // मंत्रमुद्धरति // कर्णइति // कर्णउ // सनयनाद्युतिःइयुतश्छः म°मच्छि // जरासनःश्वेतेशः॥ टकारस्थाषः ष्टः // लक्ष्मीश्चः // दीर्घदुसंयुक्ताआबिंदुयुताचां दीघोंनंदी डा // // 26 // सहकूक्रिया इयुतोल लि|समाधवोमेषः इयुतोनः नि॥कर्णोभृगुः उयुतः सः सु // संधिकातंद्री॥ उयुतोमः अथवक्ष्येपरांविद्यासुमुखीमतिगोपिताम् // यांलब्ध्वादेशिकोविद्वानशोचतिकृताकृते // 19 // कर्णों द्युतिःसनयनाश्वेतेशःस्याजरासनः // लक्ष्मीर्दीधंदुसंयुक्तानंदीदीर्घःसहक्रिया // 50 // मेषः समाधवःकर्णोभृगुस्तंद्रीचसेंधिका // खिदेविमवियदीपिशाचिनिहिमाद्रिजा // 51 // नंदजत्रितयं सर्गिद्वाविंशत्यक्षरोमनुः // स्मृताभैरवगायत्रीसुमुखीमुनिपूर्विका // 52 // मुनिरामद्विषट्चंद्रवं यणैरेंगकंमनोः॥ विन्यस्यसुमुखींध्यायेद्भक्तचित्तांबुजस्थितां // 53 // मुखिदेविम॥स्वरूपंदीवियत्॥हा॥पिशाचिनिस्वरूपं॥हिमाद्रिजाह्रीं|सर्गिनंदजत्रितयं॥विसर्गयुक्तंठका रत्रयं // यथा / / उच्छिष्टचांडालिनिसुमुखिदेविमहापिशाचिनिहींठाठाठःद्वाविंशत्यर्णः // मुनिपूर्विका पिछंदोदेवताः॥ 50 // 51 // 52 // षडंगमाह // मुनीति // 53 // 1 अस्यसुमुखीमंत्रस्य भैरवऋषिर्गायत्रीछंदः सुमुखीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः // | // 26 // For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्दुशेखरांनानाभूषणाढ्यांस्मरन्यसेत् // द्वितीयन्तुग्रंहन्यासंकुर्यात्तांसमनुस्मरन् // 10 // विवीजस्खरपूर्वतुरतंसूर्यदिन्यसेत् // तथायवर्गपूर्वतुसोमंशुकुंभ्रुवोर्द्वयोः // 11 // कवर्गपूर्वरक्ताभं मंगलंलोचनत्रये // चवर्गाढयंबुधश्यामन्यसेद्वक्षःस्थलेबुधः // 12 // टवर्गाढयंपीतवर्णकंठकूपेबृहस्प तिम्।।तवर्गाढयंश्वेतवर्णवंटिकायांतुभार्गवम्॥१३॥नीलवर्णपवर्गाढयंनाभिदेशेशनैश्चरम्॥शवर्गाढयंधू म्रवर्णध्यात्वाराहुंमुखेन्यसेत्॥१४॥लक्षाढयंधूम्रवर्णाभंकेतुंनाभौपुनर्यसेत्।।त्रिवीजपूर्वकश्चैवंग्रहन्यासः समीरितः॥१॥तृतीयंलोकपालौनांन्यासंकुर्यात्प्रयत्नतःगामायादिवीजत्रितयपूर्वकंसर्वसिद्धये // 16 // // 10 // 11 // 12 // 13 // 14 // 15 // 16 // 1 ह्रींचीहुंअंआईईउऊकंलंलएऍओंआअः रक्तवर्णसूर्यदृदि // 1 // ह्रींत्रीहुंयरलवंशुक्लवर्णसोमंध्रुवोर्द्धये // 2 // ह्रींचीहुंकखंगंचं डंरक्तवर्णमंगलंलोचनत्रये // 3 // होत्रीहुंचंछंजंझंजेश्यामवर्णवुधवक्षस्थले // 4 // ह्रींत्री हुँटंठंडंढणपीतवर्णबृहस्पतिकंठकूपे // 5 // वहाँत्रीहुंतंर्थदंधनंश्वेतवर्णभार्गवंघटिकायां // 6 // ह्रींचीहुंपंफंभमनीलवर्णशनैश्चरंनाभिदेशे // 7 // ह्रींचीहुंशंघसंहधूम्रवर्णराहुंमुखे // 8 // ABहोत्राईलंक्षंधूम्रवर्णकेतुंनाभौ // 9 // इतिग्रहन्यासः // 2 ह्रींत्रीहूंअंइउंलंएंओंअंललाटपूर्वइन्द्रायनमः // 1 // हावाहूंआईऊंलं ऐऔंः ललाटाग्नेय्यांदिशिअग्नयेनमः // 2 // हाँत्रीहूंकखगघङललाटदक्षिणेयमायनमः ॥३॥हींत्री हंचछजंझंजेललाटानत्यादिशि निर्ऋतयेनमः॥४॥हींत्री हूंटंठंडंढणंललाटपश्चिमायांदिशिवरुणायनमः // 5 // हाँत्रीहूं तथंधनललाटवायव्यांदिशि वायवेनमः // 6 // ह्रींत्री हूंपर्फवंभंमललाटोत्तरस्यांदशिसोमायनमः // 7 // ह्रींचीहूंयरलंवललाटैशान्यांदिशिईशानायनमः // 8 // ह्रींत्रींहूंशंघसंहललाटोवायांदि| शिब्रह्मणेनमः // 9 // ह्रींबाहूलंक्षललाटाधोदिशिअनंतायनमः // 10 // इतिदिक्पालन्यासः॥ TaihemaDeoaaoracalennoneRDER For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir lain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मटीक मम // 29 // त०४ स्वमस्तकेललाटादौदशदिश्वधऊर्ध्वतः // ह्रस्वदीर्घकादिकाष्टवर्गपूर्वानन्दिशाधिपान् // 17 // शिवशत्यभिधंन्यासंचतुर्थतुसमाचरेत् // त्रिवीजपूर्वकान्यस्येत्षशिवानशक्तिसंयुतान् // 18 // आधारादिषुचकेषुचक्रस्थवर्णपूर्वकान् // ब्रह्माणंडाकिनीयुक्तंवादिसांतार्णभूषितम् // 19 // मूलाधारे प्रविन्यस्येच्चतुर्दलसमन्विते // श्रीविष्णुराकिनीयुक्तंवादिलांताणपूर्वकम् // 20 // स्वाधिष्टाना भिधेचकेलिंगस्थेषड्दलेन्यसेत् // रुद्रंतुलाकिनीयुक्तंडादिफांतार्णपूर्वकम् // 21 // 17 // 18 // 19 // 20 // 21 // ह्रींचीहूंवंशंषसंदाकिनीयुतब्रह्माणंचतुर्दलसमन्वितमूलाधारेन्यसेत्॥१॥हींत्रीहूंबंभमयरलराकिनीयुतश्रीविष्णुलिंगस्थषदलेस्वाधिष्ठा मनचक्रेन्यसेत्॥२॥हींत्रीहूंडंढणंतर्थदंधनंपर्फराकिनीयुतरुद्रंदशदलचक्रेनाभिस्थेमणिपुरकेन्यसेत् // 3 // ह्रींत्रीहूंकखगघंङचंछंजंझंत्रंटठंकाकि नीयुतमीश्वरंअनाहतेद्रादशदलेचक्रेहदिन्यसेत् ॥शाहीवीहूं अंआईईउऊंऋऋलंलएऐओंऔंअंअःशाकिनीयुतसदाशिवंविशुद्धाख्यषोडशदले कंठस्थेविन्यसेत् // 5 // ह्रींचीहूंहक्षंदाकिनीयुतंपरशिवमाज्ञाचक्रेमनोहरेभ्रूमध्यसंस्थितेप्रविन्यसेत् // 6 // इतिषट्चक्रन्यासः // // 29 // For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir iSOISSEDEOSsssssssssesusususpenseasESSAs चक्रेदशदलेन्यस्येन्नाभिस्थेमणिपूरके // ईश्वरंकादिठांतापूर्वकंकाकिनीयुतं // 22 // विन्यसेवा दशदलेहृदयस्थेत्वनाहते॥सदाशिवंशाकिनींचषोडशस्वरपूर्वकम् // 23 // कंठस्थेषोडशदलेविशुद्धा ख्येप्रविन्यसेत्॥आज्ञाचक्रेपरशिवंहाकिनीसंयुतंजपेत्॥२४ालक्षार्णपूर्वभ्रूमध्येसंस्थितेतिमनोहरे।तारा दिपंचमंन्यासंकुर्यात्सर्वेष्टसिद्धये॥२६॥अष्टौवर्गान्स्वरद्वंद्रपूर्वकान्वीजसंयुतान् // पूर्वप्रयोज्यताराद्यान्य स्तव्याअष्टमूर्तयः॥२६॥ताराउमामहोग्रापिवत्राकालीसरस्वती॥कामेश्वरीचचामुण्डाइत्यष्टातारिकाः स्मृताः॥२७॥ ब्रह्मरन्ध्रेललाटेचभ्रूमध्येकंठदेशतः॥ हदिनाभौलिंगमूलेमूलाधारकमान्यसेत्॥२८॥ H // 22 // 23 // 24 // 25 // 26 // 27 / / 28 // al १हाँत्रीहूंअंआंकखंगंधंडं तारायैनमोब्रह्मरंधे // हौवाहूंइंईचंछंजझंजंउग्रायैनमोललाटे // हाँत्रीहूँ उऊंटंठडढणमहोग्रायैनमोभ्रूमध्ये // होत्रींहूं–तथंदंधनवज्रायैनमोकंठदेशे // ह्रींत्रीहूंलंलंपंर्फबभमहाकाल्यैनमोहदि // ह्रींत्रीहूंएंऐयरलवंशंसरस्वत्यैनमोनाभौ // हौवींहूंओं औंशंघसंहंकामेश्वर्यैनमोलिंगमूले // हवींहूंअंअलंक्षेचामुंडायैनमोलिंगमूले // इतितारादिन्यासः // For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माला मं०म० सटीक // 30 // षष्ठंन्यासंततःकुर्यात्पीठाख्यंसर्वसिद्धिदम् // आधारेकामरूपाख्यह्रस्ववीजाणपूर्वकम् // 29 // हृदिजालंधरंपीठंदीर्घपूर्वप्रविन्यसेत् // ललाटेपूर्णागर्याख्यंकवाढयंन्यसेत्सुधीः // 30 // उड्डियानंचवर्गाद्यकेशसंधौप्रविन्यसेत् ॥ध्रुवोराणसीपीठंटवर्गाद्यसमाहितः // 31 // तवर्ग पूर्विकांन्यस्येदवंतींनयनद्वये // पवर्गपूर्वकमायापुरीपीठंमुखेन्यसेत् // 32 // कण्ठेतुमथुरापी ठंयवर्गाद्यप्रविन्यसेत् // अयोध्यापीठकंनाभौशवर्गादिकमुत्तमम् // 33 // कटयोःकांचीपुरीपीठंद शमंतुप्रविन्यसेत् // पोढान्यासस्तुतारायाःप्रोक्तास्तेष्टप्रदायकाः // 34 // // 29 // 30 // 31 // 32 // 33 // 34 // DO 30 1 ही 3 अंइंउंलंएंओंअंकामरूपपीठायनमआधारे // ह्रीं 3 आईऊं लंऔंअंजालंधरपीठायनमोहदि // ही 3 कखगघडंपूर्णगिरिपी ठायनमोललाटे // ही 3 चंछंजं झंत्रंउड्डियानपीठायनम केशसंधौ। ह्रीं 3 टंठंडंढणंवाराणसिपीठायनमोधुवोःहीं 3 तथंदंधनंअवंतिपीठायन मोनयनद्धये // ह्रीं 3 पंचभमंमायापुरीपीठायनमःमुखे // ह्रीं 3 यरलवंमथुरापीठायनमोकंठे // ह्रीं 3 शंघसंहअयोध्यापीठायनमोनाभौ // ही 3 // लंक्षकांचीपुरीपीठायनमःकट्योः।। इतिपीठन्यासः॥ For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org Sal // 35 // 36 // 37 // 38 // ध्यानमाह // विश्वेति // खड्गनीलसरोजदक्षयोः // कींकपालेवामयोः // श्वेतो हृदिश्रीमदेकजटांतारिणीशिरसिन्यसेत् // वज्रोदकांशिखायांतुउग्रतारांतुवर्मणि // 35 // महाप रिसरेनेत्रेपिंगोग्रैकजटेस्र॥षदीर्घयुक्तमायाद्याएतान्यस्याःपडंगके // 36 // अंगुष्ठादिष्वंगुलीषुपूर्ववि न्यस्ययनतः॥तर्जनीमध्यमाभ्यांतुकृत्वातालत्रयंततः॥३७॥छोटिकामुद्रयाकुर्यादिग्बंधंदेवतांस्मरन्॥ विद्ययातारपुटयाव्यापकंसप्तधाचरेत्।।उग्रतारांततोध्यायेत्सद्योवाक्सिद्धिदायिनीम्॥३८॥विश्वव्यापक वारिमध्यविलसच्छेतांबुजन्मस्थितांक खड्गकपालनीलनलिनैराजत्करांनीलभाम् ॥कांचीकुंडलहार कंकणलसत्केयूरमंजीरतामाप्तै गवरैविभूषिततनूमारक्तनेत्रत्रयाम्॥३९॥पिंगोकजटांलसत्सुरसनांदं ट्राकरालाचननर्मिद्वैपिवरंकटौविदधतींश्वेतास्थिपट्टालिकाम् // अक्षोभ्येणविराजमानशिरसंस्मराननां भोरुहांतारांशावहृदासनांदृढकुचामंबांत्रिलोक्याःस्मरेत् // 40 // ऽस्थिपट्ठोऽलिकेललाटेयस्यास्ताम् // अक्षोभ्योमंत्रद्रष्टामुनिस्तेनशोभितमस्तकम् // 39 // 40 // 1 हाँत्रांहाएकजटायै हृदयायनमः // 1 // हावाहांतारिण्यै शिरसेस्वाहा // 2 // हांबांहांवोदकायै शीखायैवषट् // 3 // हाँवाँहाँउग्रतारायै कवचायहुं॥ 4 // हाँत्राहाँमहापरिसरायनेत्रत्रयायवौषट् // 5 // १हाँबांहाएकजटायै अंगुष्ठाभ्यांनमः २हाँबांहांतारिण्यै तर्जनी भ्यांस्वाहा 3 हाँत्रांहांवोदकाय मध्यमाभ्यांवषट् 4 हाँवाँहाँउग्रवारायअनामिकाभ्यांहुँ 5 हाँवाँहाँमहापरिसराय कनिष्ठिकाभ्यांवौषट् // ... For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक म. म.lu४॥महाशंखकपालम् // 42 // 43 // 44 // 45 // 46 // पीठमंत्रमुद्धरति // भृग्विति // भृगुम NE न्विंदुसंयुक्तंसकारः // औंबिंदुयुतंमेघवर्त्महः // हार्देनमः // स्वरूपमन्यत् // हौंसरस्वतीयोगपीठात्म // 3 // |नेनमइति // 47 // 48 // 49 // नित्यबलिदानमंत्रमाह // तारइति // तारप्रणवः॥ मायाहीं॥भगमेकारः॥ial त० | एवंध्यायन्नदन्भक्ष्यमनेकंदधिमध्वपि // मधुमांसंचतांबूलंजपेल्लक्षचतुष्टयम् // 41 // दशांशंजुहुया द्रक्तपक्षीराज्यलोलितैःस्थापयित्वामहाशंखंजपस्थानेजपंचरेत्॥४२॥नारीपश्यन्स्पृशनुगच्छन्म हानिशिवलिंददेत् // नकार्यःसुभ्रुवांद्वेषोयत्नात्ताःपूजयेत्सदा॥४३॥जपेनकालनियमोनस्थितौसर्वदाज पेत्॥श्मशानशून्यसदनेदेवागारेथनिर्जने // 44 // पर्वतेवनमध्येवाशवमारुह्यमंत्रवित्॥समरेशत्रुनिहतं यद्वापाण्मासिकशिशुम् // 46 // विद्यांसंसाधयेच्छीघंसाधितैवंप्रसिध्यति // मेधाप्रज्ञाप्रभाविद्याधीधृति स्मृतिबुद्धयः॥४६॥विद्येश्वरीतिसंप्रोक्ताःपीठस्यनवशक्तयः॥भृगुमन्विदुसंयुक्तमेघवर्त्मसरस्वती॥४७॥ योगपीठात्मनेहार्दपीठस्यमनुरीरितः॥४८॥दत्त्वानेनासनंमूर्तिमूलमंत्रेणकल्पयेत्॥पूजयेद्विधिवद्देवींत द्विधानमथोच्यते॥४९॥तारोमायाभगंब्रह्माजटेसूर्यःसदीर्घखम्॥यक्षाधिपतयेतंद्रीमोपनीतंबलिंततः५० // 31 // ब्रह्माकः॥ जटेस्वरूपं // सूर्योमः॥ सदीर्घखंहा // तंद्रीमः॥ शिवाहीं। स्वरूपमन्यत् // यथा ॥ॐहीएकजटे महायक्षाधिपतयेममोपनीतंबलिंग्रहगृहहीं स्वाहेति // अनेननित्यंनिशीथेबलिंदद्यात् // 50 // ברמירסרהמסדרמוומרהמומדממורמררמורמררמהסרסון For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 5 // जलग्रहणादिमंत्रानुद्धरति ॥ध्रुवइति ॥ॐवजोदकेहुंफडितिजलग्रहणमंत्रः॥५२॥ तारइति // ॐहीं स्वाहेतिपादक्षालनमंत्रातारइति|कर्णीभृगुः॥ उयुतःसः॥श्वेतःषः॥नेत्रयुतजलं॥वि // स्वरूपमन्यत् ॥ॐहीं सुविशुद्धधर्मसर्वपापानिशाम्याशेषविकल्पानपनयस्वाहेत्याचमनमंत्रः॥५३॥ 54 // ध्रुवइति // अक्षियुतो गृहयुग्मंशिवास्वाहावलिमंत्रोयमीरितः॥ दद्यान्नित्यंबलिंतेनमध्यरात्रेचतुष्पथे // 51 // जलादाना दिकंमंत्रैर्विदध्यादशभिस्ततः॥ ध्रुवोवबोदकेवर्मफट्सप्ताणैर्जलग्रहः // 52 // ताराद्यावह्निजायां तामायांत्रिक्षालनेस्मृता // तारोमायाभृगुःकर्णीविशुद्धधर्मवर्णतः // 53 // सर्वपापानिशाम्याशे श्वेतोनेत्रयुतंजलम् // कल्पानपनयस्वाहापड्रिंशत्यक्षरोमनुः // 54 / / अनेनाचमनंकुर्याछवो मणिधरीतिच // वजिण्यक्षियुतोमृत्युःस्वरिनेत्रयुतारतिः // 55 // सर्वातेववक सेंदुःकरिण्यंते शिरोर्षिखम् // अस्त्रवह्निप्रियामंत्रस्त्रयोविंशतिवर्णवान् // 56 // मृत्युः॥शि॥ नेत्रयुतारतिः॥णि // वकः॥शः॥ शिरः कं // अर्धी // खं // बिंदुयुतोहः॥ हुँ / अस्त्रंफट् // वहिप्रिया // स्वाहा // स्वरूपमन्यत् // यथा मणिधरिवजिणिशिखरिणिसर्ववशंकरिणिहुंफदस्वाहेतिशि खाबंधनमंत्रः॥ 55 // 56 // For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० म० सटीक // 32 // त०४ प्रणवइति // दीर्घवर्महूं // अस्त्रंफट् // ठद्वयंस्वाहा ॥रक्ष 2 हूंफट्स्वाहेतिभूशोधनमंत्रः॥ तारेति // ॐसर्वविघ्नानुत्सारयहूंफट्स्वाहेतिविघ्नवारणमंत्रः // 57 // 58 // 59 // भूतशुद्धिमाह // मायेति // 60 // 61 // तुरीयमितिहूं // 62 // तारइति // अ(शेन्दुयुवियत् // ऊ // बिंदुयुतोहःहूं॥ ॐप | शिखाबंधप्रकुर्वीतमंत्रेणानेनमंत्रवित् ॥प्रणवोरक्षयुगलंदीर्घवर्मास्त्रठद्वयम् // 17 // नववर्णेनमंत्रेणकुर्या द्भूमिविशोधनम्॥तारान्तेसर्वविघ्नानुत्सारयेतिपदंततः॥२८॥हुंफट्स्वाहागुणेद्वर्णोमनुर्विघनिवारणे // अनेनविघ्नानुत्सार्यभूतशुद्धिमथाचरेत्॥१९॥मायावीजंजपापुष्पनि नाभौविचिंतयेत् // तदुत्थेनाग्नि नादेहंदहेत्साईस्वपाप्मना॥६०॥ताराबीजंसुवर्णाभंचिंतयेद्धृदिमंत्रवित्॥पवनेनतदुत्थेनपापभस्मक्षिपे द्भुवि // 61 // तुरीयचंद्रकुंदा बीजंध्यात्वाललाटतः॥ तदुत्थसुधयादेहेरचयेद्देवतानिभम् // 62 // अनयाभूतशुद्धचातुदेवीसादृश्यमाप्नुयात् // तारः पवित्रवज्रतिभूमे(शेंदुयुग्वियत् // 63 // वह्निपि यामनुप्रोक्तोरुद्राोभूमिमंत्रणे // तारोनंतोभृगुःकर्णीपद्मनाभयुतोवली // 64 // खेवज्ररेखेकोधाख्यं बीजंपावकवल्लभा॥ द्वादशार्णेनमंत्रणरचयेन्मंडलंशुभम् // 6 // Balवित्रवजभूमेहंस्वाहेतिभूमिनिमंत्रणमंत्रः // 63 // तारइति // अनंतआ // कर्णीभृगुः // सु // पद्मनाभ युतोबली // एयुतोरः॥रे॥क्रोधबीजं // हूं ॥ॐआसुरेखेवजरेखेहूंस्वाहेतिमंडलमंत्रः // 64 // 65 // // 32 // For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारइति // सहनिद्रा॥इयुतोभः॥ भि॥भृगुःसः॥विषमः॥ सदीर्घमायुतं॥स्मृतिरोगकाररेफो|साक्षौइ युतौग्नि // भगान्वितोमहाकालः॥ एयुतोमः॥क्रोधोडं। अस्त्रंफट् ॥ॐयथागताभिषेकसमाग्निमेहुंफडितिपु प्पशोधनमंत्रः॥ तारइति // पाश // पराहीं // ॐआह्वीस्वाहेतिचित्तशोधनमंत्रः // 66 // 67 // अर्घस्था पनमाह // सेंदुभ्यामिति // मांसंलः॥ तोयंवः // सबिंदुभ्यांमाभ्यांभूमिसंशोध्यपूर्वोक्तेनमंडलमंत्रेणवृत्तत्रि तारोयथागतानिद्रासहक्षेकभृगुर्विषम् // सदीर्घस्मृतिरौसाक्षीमहाकालोभगान्वितः // 66 // क्रोधोत्रं मनुवर्णोयंमनुःपुष्पादिशोधने // तार पाशपरास्वाहापंचार्णश्चित्तशोधने॥६॥मनवोदशसंप्रोक्ताअर्ध्य स्थापनमुच्यते // सेंदुभ्यांमांसतोयाभ्यांभुवंसंमृज्यभूगृहम् // 68 // कोणचतुष्कोणात्मकंमंडलंकुर्यात् // तत्राधारशक्तिकूर्मशेषान्संपूज्य // ॐहींफडितिमंत्रेणााधारंस्थाप येत् // मंवहिमंडलायनमइतितत्संपूज्य // वामकर्णेदुयुक्तेनऊबिंदुयुतेनफडतेनविहायसा हकारेण // हुंफ डितिमंत्रेणप्रक्षालितंमहाशंखनरकपालं // दंडित्रिमूर्तीदुयुतंथईबिंदुयुक्तंभृगुंसकारं // स्थीमितिबीजंपठन् स्थापयदित्यन्वयः॥ 68 // कपालं // दंडित्रिमा विद्युतेनफडतेनविहायमा योधारस्थाप। For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक // 33 // त०४ // 69 // 70 // 71 // ततोमंत्रचतुष्टयेनमहाशंखपूजा // मंत्रचतुष्टयमाह // दीति // दीर्घत्रयं // | आईऊ // तद्युतामाया // सृष्टिःकः // सदीर्घय या // प्रतिष्ठाआकारस्तातंमांसलः // ला // a पवनोयः॥ हृदयनमः॥ हाह्रींहूँकालीकपालायनमःइत्येकोमंत्रः॥ 72 // 73 // हंसइति // हंसःसः॥ हरि / वृत्तंत्रिकोणसंयुक्तंकुर्यान्मंडलमंत्रतः // यजेत्तत्राधारशक्तिकच्छपनागनायकम् // 69 // आधार स्थापयेत्तत्रताराद्यस्त्रांगमायया // वह्निमंडलमभ्यय॑महाशंखनिधापयेत् // 70 // वामकर्णेन्दुयुक्ते नफडंतेनविहायसा // प्रक्षालितंभगंदंडित्रिमूर्तीन्दयुतंपठन // 71 // ततोर्चयेन्महाशंखजपन्मंत्रच तुष्टयम् // दीर्घत्रयान्वितामायाकालीसृष्टि सदीर्घयः॥७२॥प्रतिष्ठासंयुतंमांसंपवनोहृदयंततः॥ एकाद शार्ण प्रथमोमहाशंखार्चनेमनुः॥७३॥ हंसोहरिभुजंगेशयुतोदीर्घत्रयेंदुयुक्॥तारिण्यंतेकपालायनमोंतो द्वादशाक्षरः॥७॥खंदीर्घत्रयबिंदाढयमेषोवामहगन्वितः // लाकपालायहृदयंतृतीयोयंशिवाक्षरः७५ भुजंगेशोतरौ // ताभ्यांयुतः॥ तथादीर्घत्रयबिंदुयुतश्च॥स्वरूपमन्यत् ॥स्त्रास्त्रींबूँतारिणीकपालायनम इति द्वितीयः॥ 74 // खमिति // खंहः॥ दीर्घत्रयबिंदुयुतः॥ वामगन्वितोमेषः॥ ईयुतोनानी॥स्वरूपमग्रे // हाँहींहूँनीलाकपालायनमइतितृतीयः // 75 // // 33 // For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थमाह // मायेति // मायाह्नीं // स्त्रीबीजस्त्रीं // अर्धीदुयुतखंहूं // स्वर्गस्वरूपं // खादिमः // Valकः // पालायेत्यादिस्वरूपं // सर्वसर्वोद्भवःसर्वशुद्धिमयइतिपदत्रयंचतुर्थ्यतं // स्वरूपमग्रे // दीर्घारतिः॥णो // वायुः॥ यः॥ शुभ्रास्वरूपं // अनिलोयकारः ॥सुराभाजनायस्वरूपं // भगीसत्यः॥ एयुतोदादे॥वीत्यादिस्वरूपं॥हन्नमः॥यथा॥ह्रींस्त्रींहूस्वर्गकपालायसर्वाधारायसर्वायसर्वोद्भवायसर्वशुद्धिम मायास्त्रीबीजमदुयुतंखस्वर्गखादिमः // पालायसर्वाधारायसर्वःसर्वोद्भवस्तथा // 76 // सर्वशुद्धिम यश्चेतिउताःसर्वासुरांततः॥ रुधिरारुरतिर्दीर्घावायुःशुभ्रानिलःसुराः // 77 // भाजनायभगीसत्योवी कपालायहन्मनुः॥ तुर्योरमेषुवर्णोयंमहाशंखप्रपूजने // 78 // तत्रार्कमंडलंचेष्ट्रासलिलंमलमंत्रतः॥ प्रपूरयेत्सुधाबुद्ध्यागंधपुष्पाक्षतानक्षिपेत् // 79 // यायसर्वासुररुधिरारुणायशुभ्रायसुराभाजनायदेवीकपालायनमइतिचतुर्थोमंत्रः॥रसेषुवर्णः॥ षट्पंचाशद क्षरः // एभिर्मत्रैर्महाशंखसंपूज्यअंसूर्यमंडलायनम इत्यर्कमंडलंसंपूज्यमूलमंत्रपठन्सुधाबुद्धचातोयंसंपू र्यतत्रगंधपुष्पाक्षताक्षिपेत्॥सुधासुरात्रेतिरहस्यम् // 76 // 77 // 78 // 79 // For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०४ मं०म० त्रिखंडांमुद्रांबवा // ॐसोममंडलायनमइतितोयेचंद्रमंडलंसंपूज्यैकादशाणेनमंत्रेणाष्टवारंजलंमंत्रयेत् // त्रिखंडालक्षणयथा // परिवर्त्यकरौस्पष्टावंगुष्ठौकारयेत्समौ // अनामांतर्गतेकृत्वातर्जन्योकुटिलाकृती // // 34 // कनिष्ठिकेनियुंजीतनिजस्थानेमहेश्वरि // त्रिखंडेयंसमाख्यातात्रिपुराह्वानकर्मणीति // एकादशार्णमाह // वागिति // वाऐं // शक्ति ह्रीं // पद्माश्रींरेफानुग्रहबिंदुयुक्गगनं ॥रेफ औबिंदुयुतोहः॥ हौं।मूलमंत्र पूर्वो क्तःपंचार्णः॥हंसमनुसर्गसमन्वितंवियत् // सऔ॥विसर्गयतोहाहसौदीपिकेंद्वाढयोवराहः ऊ॥ बिंदुयुतो मुद्रां त्रिखंडांसंदर्यपूजयेचंद्रमंडलम् // वाकशक्तिपद्मागगनरेफानुग्रहबिंदुयुक् // 80 // मूलमंत्रो वियद्धंसमनुसर्गसमन्वितम् // वराहोदीपिकेंद्राव्योमनुरेकादशाक्षरः॥ 81 // अष्टकृत्वोमुनामंत्रीमं त्रयेत्प्रयतोजलम् // माययामदिरांक्षित्वाशंखयोनिचदर्शयेत् // 82 // हः॥ हूं।यथा // ह्रींश्रीं ह्रौं ॐ द्वांत्रीहूंफदहसौमिति // 80 // 81 // ततोह्रींबीजेनतोयेसुरांप्रक्षिप्यशं खयोनिमुद्रदर्शयेत् // तयोर्लक्षणंयथा // वामांगुष्ठंतुसंगृह्यदक्षहस्तस्यमुष्टिना // कृत्वोत्तानंतथामुष्टिमं Silगुष्ठंतुप्रसारयेत् // वामांगुल्यस्तथाशिष्टाःसंयुताःसुप्रसारिताः // दक्षिणांगुष्ठकेलग्नामुद्राशंखस्यभूति देतिशंखमुद्रालक्षणम् // मिथःकनिष्ठिकेबद्भातर्जनीभ्यामनामिके // अनामिकोर्श्वसंश्लिष्टदीर्घमध्यमयो रधः॥ अंगुष्ठानद्वयंन्यस्येद्योनिमुद्रेयमीरितेतियोनिमुद्रालक्षणम् // 82 // For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ar तवार्घजलेवृताष्टषट्कोणरूपंयंत्रविचिंत्यध्यानोक्तादेवींचस्मृत्वामूलेनार्चयेत् // 83 // ततोंगुष्ठयुताभिस्तर्ज न्याद्यंगुलीभिरय॑जलेमूलेनतांतर्पयेत् // 84 // खमिति // खंहः॥ मनुरौ // भृगुःसः॥ तथाहकारएवभृग्वा तत्रवृत्ताष्टपटकोणंध्यात्वादेवी विचिंतयेत् // पूर्वोक्तांपूजयित्वैनांमूलेनाथप्रतर्पयेत् // 83 // तर्जनी मध्यमानामाकनिष्ठाभिर्महेश्वरी // सांगुष्ठाभिश्चतुरिंमहाशंखस्थितेजले // 84 // खरेफमनु बिंदाढयंभृगुमन्विदुयुक्तथा ॥ध्रुवायेननमोतेनतादानंदभैरवम् // 85 // ततस्तेनार्घतोयेनप्रोक्षे त्पूजनसाधनम् // योनिमुद्रांप्रदाथप्रणमेद्भवतारिणीम् // 86 // विधानमध्येसंप्रोक्तंसर्वसिद्धिप्रदा यकम् // पूर्वोक्तेपूजयेत्पीठेप पट्कोणकर्णिके // 87 // धरागृहावृतेरम्येदेवीरम्योपचारकैः // मही गृहचतुर्दिक्षुगणेशादीन्प्रपूजयेत् // .88 // पाशांकुशौकपालंचत्रिशूलंदधतंकरैः॥ अलंकारचयोपेतं गणेशंपाकसमर्चयेत् // 89 // दियुतः॥ध्रुवॐ॥ यथा ॥ॐहौंहसौंनमइत्यानंदभैरवंतर्पयेत् // 85 // 86 // इत्यर्घविधिकृवापूर्वोक्तमे धादिनवशक्तिकेपीठेतांपूजयेत् // 87 // 88 // गणेशादिध्यानमाह // पाशेति // अंकुशत्रिशूलेदक्षयोः // पाशकपालेवामयोः॥ अलंकाराणांचयःसमूहस्तद्युतम् // 89 // For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir On म०म० सटीक त०० बटुकस्यदक्षे शूलं // 90 // क्षेत्रपालस्यासिशूलेदक्षयोः // 91 // योगिनीनांपाशलिंगेदक्षयोः // 9 // अक्षोभ्यवजपुष्पंप्रतीच्छस्वाहेतिमुनिमंत्रः॥९३॥ 94 // 95 // सबिंदुनामादिवर्णआद्योयासाईदृश्यासंबो कपालशूलेहस्ताभ्यांदधतंसर्पभूषणम् // श्वयूथवेष्टितरम्यंबटुकंदक्षिणेर्चयेत् // 90 // असिशूलक पालानिडमरूंदधतंकरैः // कृष्णंदिगंबरंकरंक्षेत्रपंपश्चिमेयजेत // 91 // कपालंडमरुंपाशलिंगं संविभ्रतीकरैः // त्राकल्पारक्तवस्त्रायोगिनीरुत्तरेयजेत् // 92 // अक्षोभ्यप्रयजेन्मूर्तीिदेव्याम ऋषिशुभम् // अक्षोभ्यवज्रपुष्पंचप्रतीच्छानलवल्लभा॥ 93 // अक्षोभ्यपूजनेमंत्रषट्कोणेषुपडं गकम् // वैरोचनंचामिताभंपद्मनाभाभिधंतथा // 94 // शंखपांडुरसंज्ञंचदिग्दलेषुप्रपूजये त् // लामकांमामकांचैवपांडरांतारकांतथा // 95 // विदिग्गताब्जपत्रेषुपूजयेदिष्टसिद्धये // सबिंदुनामाद्यर्णाद्याःसंबुध्यतास्तथाभिधाः // 96 // धनांताप्रणवाद्यावजाचंताअभिधानामान्येववैरोचनादिमंत्राः॥ यथा // ॐवैरोचनवजपुष्पंप्रतीच्छस्वा हा // ॐअंअमिताभवजः॥ॐपंपद्मनाभः॥ ॐशंशंखपांडुरः॥ ॐलांलामकेवजः // ॐमांमामकेवजइत्या दि॥ पद्मांतकादिपूजायामप्येवमेवमंत्राः॥ 96 // // 36 // For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TWEETSsscopesabuse // 97 // 98 // 99 // नित्यपूजांतेबलिदानमंत्रमाह // तारइति // तार ॐ॥ मायाहीं / वालोवः॥ सनेत्रयुतः वि // गदीखः॥ कूर्मश्चकारः॥ दी?ग्निारा|मेरुरक्षः॥भृगुःसः॥ रमाश्रीं // मायाहीं॥ अस्त्रंफट् // अग्निप्रि वज्रपुष्पंप्रतीच्छाग्निप्रियांता प्रणवादिकाः॥ वैरोचनादिपूजायांमनवःपरिकीर्तिताः॥९७॥ भूगृहस्यच तुवि॒पद्मांतकयमांतको // विघ्नांतकाभिधंपश्चानरांतकभिधान्यजेत् // 98 // शकादीश्चापिवत्रादी नपूजयेत्तदनंतरम् // एवंसंपूजयेद्देवींपांडित्यंधनमद्धतम् // 99 // पुत्रान्पौत्रान्सुखंकीर्तिलभतेजन वश्यताम् // तारोमायाश्रीमदेकजटेनीलसरस्वति // 10 // महोग्रतारेदेवालःसनेत्रोगदियुग्मकम् // सर्वभूतपिशाकूमोंदी!ग्निर्मेरुसान्ग्रसः // 1 // प्रभृगुर्ममजाड्यंचच्छेदयद्वितयंरमा // मायास्त्रा ग्निप्रियांतोयंद्विपंचाशल्लिपिर्मनुः // 2 // अनेननित्यपूजांतेऽन्वहंदेव्यैवलिंहरेत् // एवंसिद्धेमनौ मंत्रीप्रयोगान्विदधीतच // 3 // जातमात्रस्यबालस्यदिवसत्रितयादधः // जिह्वायांविलिखेन्मंत्रं मध्वाज्याभ्यांशलाकया // 104 // यास्वाहा // स्वरूपमन्यत् // यथा॥ ॐह्रीं श्रीमदेकजटेनीलसरस्वतिमहोग्रतारेदेविखखसर्वभूतपिशाचरा क्षसान्ग्रसर ममजाड्यंछेदय२ श्रीह्रींफट्स्वाहेतिद्विपंचाशदर्णः // 100 // 101 // 102 // 103 // 104 // For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक 105 // प्रयोगांतरमाह // उपरागइति // ग्रहणेतडागेतरत्काष्ठंदतादंतेनानीयतेनलेखनींकृत्वातै। लमधुसुराभिःपद्मिनीपत्रेतयामनुमालिख्यवर्णैःसंवेष्टयकुंडंनिखायतदुपर्यग्निंप्रतिष्ठाप्यगोदुग्धाक्तेनरक्तपद्म सहस्रेणतत्रहुत्वाषोडशार्णेनमांसोमांतेबलिंदत्त्वामध्यरात्रेपूर्वोक्तमंत्रणबलिंदद्यात् // एवंकृतेउक्तफल सुवर्णकृतयायदामंत्रीधवलदूर्वया // गतेष्टमेन्देवालोसौजायतेकविराटुवम् // 5 // तथापरैरजेयो पिभूपसंधैर्धनार्चितः // उपरागेदतानीयतरदारुसरोजले // 6 // निर्मायकीलकंतेनतैलमध्वमृतैलिखे त् // सरोजिनीदलेमंत्रवेष्टयेन्मातृकाक्षरैः // 7 // निखायतद्दलंकुंडेचतुरस्रेसमेखले // संस्थाप्य पावकंतत्रजुहुयान्मनुनाऽमुना // ८॥सहस्ररक्तपद्मानांधेनुदुग्धजलाप्लुतम् // होमांतिविविधैरन्नैःपलैर पिवलिंहरेत् // 9 // बलिमंत्रेणविधिवलिमंत्र प्रकाश्यते॥तारपद्मयुगंतंद्रीवियद्दीचलोहितः॥११०॥ अत्रिविपभगारूढोवदेत्पद्मावतीपदम् // झिंटीशाब्योनिलःस्वाहापोडशा!बलेर्मनुः // 111 // सिद्धिः॥ 106 // 107 // 108 // 109 // षोडशार्णमाह // तारइति // तंद्रीमः // दीर्घवियत् // हा // लोहितःपः // विषभगारूढोत्रिः॥म एयुतोदः // ने // अनिलोझिंटीशाढ्यायएयुतम्ये // यथा // ॐप 2 महापद्मपद्मावतीयेस्वाहेति // 110 // 111 // 1 ॐपोप महापद्मपद्मावतीयस्वाहोतिषोडशार्णः॥ // 36 For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 112 // अलिकेललाटेधरेत् // तिलकंकुर्यादित्यर्थः // 113 // 114 // 115 // विरोधिन शत्रूनुच्चाटयति // निष्कासयति ॥क्षाराठ्ययानिशा // सैंधवयुक्तयाहरिद्रया // 116 // 117 // यंत्रमाह // षडिति ॥षट्को ततोनिशीथेपिबलिंपूर्वोक्तमनुनाहरेत् // एवंकृतेपंडितानामजेयःकविराड्भवेत् ॥१२॥निवासोभारती लक्ष्म्योर्जनतारंजनक्षमः॥ शताभिजप्तायोमंत्रीरोचनामलिकेवरेत् // 13 // सयंपश्यतितस्यासौदास वजायतेक्षणात् ॥श्मशानांगारमाहत्यशर्वर्याकुजवासरे // 14 // कृष्णांवरणसंवेष्टयनिबद्धरक्ततं तुभिः // शताभिजप्तमूलेननिक्षिपेद्वैरिवेश्मनि // 15 // उच्चाटयतिसप्ताहात्सकुटुंबाविरोधिनः // क्षाराठ्ययानिशामंत्रंलिखित्वापौरुषेस्थिनि // 16 // रविवारेनिशीथिन्यांसहस्रमभिमंत्रयेत् // त त्क्षिप्तंशत्रुसदनेमंडलाझंशकंभवेत् // 17 // क्षेत्रेक्षिप्तंसस्यहान्यजवहृत्तुरगालये // षट्कोणमध्ये प्रविलिख्यमूलंसाध्यान्वितंकेसरगस्वराव्यम् // कायष्टवर्गान्वितपत्रमब्जंलिखेदहिभूमिपुरेणवी तम् // 18 // यंत्रमेतल्लिखेद्भूर्जेरसेनजतुजन्मना // पीतांवरेणसंवेष्टयवधीयात्पीतसूत्रतः // 19 // साध्यान्वितंमूलममुकंरक्षरक्षेतियुक्तंमूलमंत्रंविलिख्याष्टदलकेसरेषुअंआमित्यादिस्वराणांयुग्मपत्रेषुक चटतपयशलेतिवर्गानविलिख्यबहिश्चतुष्कोणेनवेष्टयेत् // 118 // जतुजन्मनालाक्षोत्थेनरसेन // 119 // For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir re सटीक त०५ // 37 // BEI // 120 // 121 // 122 // 123 // तारागोप्या // अहंतदुपासकइतिकस्याप्यग्रेनप्रकाशयेत् // 124 // इतिश्रीमंत्रमहोदधिनौकायांतारामंत्रनिरूपणचतुर्थस्तरङ्गः // 4 // ताराभेदानाह // ब्रह्मोपासितांता शिशूनांकंठतोबद्धंरक्षकभूतभीतितः // वामवाहौतुनारीणांपुत्रदंसुभगत्वकृत् // 120 // दक्षबाही नृणांबद्धंनिर्द्धनानांधनप्रदम् // ॥ज्ञानदंज्ञानमिच्छूनांराज्ञातुविजयप्रदम् // 21 // एतद्यपुराधृ त्वागौतमाद्यामहर्षयः // लेभिरेमोक्षसंसिद्धिसाम्राज्यंभूमिनायकाः // 22 // किंभूरिणानृणामे तद्वांछितांयच्छतिश्रियम् // कवित्वराजमानंचकीर्तिमायुररोगताम् // 23 // नैवतारासमाकाचिद्दे वतासर्वसिद्धिदा // कलौयुगेततोगोप्यावांछितांसिद्धिमीप्सुना // 24 // इति श्रीमंत्रमहोदधौतारामं त्रोक्तिश्चतुर्थस्तरंगः // 4 // // ताराभेदाअथोच्यतेशीघ्रसिद्धिप्रदायिनः॥ वहिवामाक्षिबिंद्वाठ्याका मिकाभुवनेश्वरी // 1 // भुवनेशीवर्मरुद्धाफडंताप्रणवादिका।सप्ताक्षरीमहाविद्याविरंचिसमुपासिता॥२॥ वदाह // वहिरिति // रेफईबिंदुयुताकामिकातकारस्त्रीं // वर्मरुद्धाभुवनेशीवर्मद्वयमध्यगतेत्यर्थः // यथा // ॐत्रींहींहुंहींहुंफडिति // 1 // 2 // // 37 // For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीकीसी डितिशाच पंचमेबीजेता वर्मोग्रतारवा विष्णूपासितामाह // वागिति // कामः॥ कीं // अनुग्रहसर्गवान् // हंसः // औविसर्गयुतःसासौः // यथा // ऐंह्रीं श्रीं क्लींसौ हुंउग्रतारेहुंफडिति ॥३॥द्वितीयांविष्णूपासितामाहातारेति॥शिवाह्रीं।भृगुःसः // यथा // ॐहुंहींकींसो हुँफडिति॥शाचतुर्मुखोपासितमंत्रद्वयमाह।एतयोरिति॥एतयोरनंतरोक्तयोविष्णूपासितयो दशाक्षरीसताक्षरयोविद्ययोःपंचमेबीजेसौरूपेयदिआदौहकारः॥अंतेरेफः॥तदातदेवविद्याद्वयंचतुर्मुखसे वाक्शक्ति कमलाकामोहंसोनुग्रहसर्गवान् // वर्मोग्रतारेवर्मास्त्रंविष्ण्वाद्वादशाक्षरी // 3 // तारवर्म शिवाकामामनुसर्गयुतोभृगुः // वर्मास्त्रमेषासप्तार्णासिद्धिदाविष्णुसेविता // 4 // एतयोःपंचमेवीजेसका रोहादिरांतिमः॥ तदाविद्याद्वयंप्रोक्तंचतुमुर्खसमर्चितम् // 5 // तारोमायावर्ममायावर्मास्त्रंचरसाक्षरी॥ हरिरग्नित्रिमूर्तीदुयुग्वर्मपुटितादिजा // 6 // अस्त्रांतापंचवर्णीयंप्रोक्तमेकजटाद्वयम् // रेफशांती दुयुग्णांतोवर्मास्त्रंकामवाग्भवम् // 7 // व्यंह आदौयस्यर अंतिमोयस्यसम्हादिरांतिमः॥यथा॥ ऐंहींश्रीक्लींहसौहुंउग्रतारेहुंफडित्याद्या ॥ॐडंहीं क्लींहूसौ हुंफडितिद्वितीया // 6 // एकजटाद्वयमाह // तारइति // अग्नित्रिमूर्तीदुयुक्हरिरईबिंदुयुक्तका रस्त्रीं // स्पष्टमन्यत् // यथा ॥ॐहींहुंह्रींहुंफटइतिप्रथमां // त्रींहुंह्रीं हुंफडितिद्वितीया // नारायणीयामाह॥ रेफेति // रेफर शांतिईकारः॥ अनुस्वारयुक्तोणांतस्तः॥ यथा // त्रीहुंफटक्लींऐमिति // 6 // 7 // - For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 38 // त०५ उक्तानामष्टविद्यानामृष्याद्याह॥अमूषामिति ॥८॥गायत्रीछंदः॥ तारादेवता॥पूर्ववतषड़दीर्घाढयमायाबी जेनहांहीमित्यादि ॥९॥ध्यानमाह // श्वेतेति // कर्वीदक्षे // 10 // प्रयोगानाह॥मध्विति // 11 // 12 // 13 // नारायणोपासितेयंपंचासर्वसिद्धिदा // अमूषामष्टविद्यानामृषि शक्तिर्वसिष्ठजः॥८॥गायत्रीतारकेछं दोदेवतेपरिकीर्तिते॥न्यासंतुपूर्ववत्कृत्वाध्यायेत्तारांहृदंबुजे ॥९॥श्वेतांबरांशारदचन्द्रकांतिंसद्भूषणांचं द्रकलावतंसाम् // कींकपालान्वितपाणिपद्मांतारांत्रिनेत्रांप्रभजेखिल. // 10 // जपपूजादिकंसर्व मासांपूर्ववदाचरेत् // मधुयुपरमान्नेनहोमाद्विद्यानिधिर्भवेत् // 11 // रक्तांवश्येस्वर्णवर्णास्तंभने मारणेसिताम् // उच्चाटनेधूम्रवर्णीशांतोश्वेतांस्मरेदिमाम् // 12 // भूरिणाकिमिहोक्तेनविद्याएताःप्रसा धिताः॥ पूरयत्यखिलंनृणांमनोरथमिहध्रुवम् // 13 // मायाहृद्भगवत्येकजटेममजलंस्थिरा। वह्नया सनगतापुष्पंप्रतीच्छानलवल्लभा // 14 // एकजटामाह // मायेति // जलंवः // वह्नयासनगतास्थिरा // रेफयुतोजज // यथा // ॐहींनमोभगवत्येकज टेममवज्रपुष्पंप्रतीच्छस्वाहेति // 14 // 1 अष्टविद्यानांवसिष्ठऋषिःगायत्रीछंदतारकादेवताममाभीष्टसि द्धयर्थजपेवि० // // 38 // For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org // 15 // 16 // नीलसरस्वतीमाह // रमेति // व्यापिन्यारूढौऔयुतौ // नीलस्वरूपं // भृगुःसः॥रस्वत्यै स्वरूपं ॥ठद्वयं॥ स्वाहा // यथा ॥*श्रींहींहूसौहुंफट्नीलसरस्वत्यैस्वाहा।।मनुवर्णश्चतुर्दशार्णः॥१७॥१८॥ द्वाविंशत्यक्षरोमंत्रस्तारादिःसर्वसिद्धिदः // ऋषिःपतंजलिश्छंदोगायत्र्येकजटापुनः // 15 // दे वतादीर्घषट्काढयमाययास्यात्पडंगकम् // ध्यानार्चनप्रयोगांस्तुकुर्यात्पूर्वोक्तमंत्रवत् // रमां मायाहसौव्यापिन्यारूढौसर्गसंयुतौ // वर्मास्त्रंनीभृगुरस्वत्यैठद्वयमीरितम् // 17 // प्रणवाद्योमनुः सर्वसिद्धिदोमनुवर्णकः // ऋष्यांद्याब्रह्मगायत्रीतथानीलसरस्वती // 18 // नेत्रचंद्रेदुनेत्रांगनेत्रीणैरं गकल्पना // मंत्रोत्थितैरथोध्यायेद्देवींसर्वेष्टसिद्धिदाम् // 19 // घंटाशिरःशूलमसिंकरात्रै संविभ्रती चंद्रकलावतंसाम् // प्रमश्नतींपादतलेपशुंतांभजेमुदानीलसरस्वतीशाम् // 20 // षडंगमाह // नेत्रेति // नेत्रशब्देनार्णद्वयंचंद्रएकः // अंगानिषट् // 19 // ध्यानमाह // घंटामिति // शुलासीदक्षयो॥घंटाशिरसीवामयोः // 20 // 1 अस्यश्रीमदेकजटामंत्रस्यपतंजलिर्ऋषिःगायत्रीछंदःएकजटादेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // 2 अस्यनीलसरस्वतीमंत्रस्य ब्रह्माऋषिःगायत्रीछंदानीलसरस्वतीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० म० सटीक // 39 // त०५ // 21 // मंत्रांतरमाह॥मायेति // सामायाअनंतसंयुता॥आकारसंयुता॥हांडेयुतातारा।तारायै।सामहा पदाद्या // महातारायै ॥भृगुःसः॥ब्रह्माकः॥अनलांतिमोल॥स्पष्टमन्यत्॥तथाताराद्या॥त्रीबीजाद्या॥यथा॥ ॐत्रींह्रींहांहुंनमस्तारायैमहातारायैसकलदुस्तरांस्तारयरतर२स्वाहेति // 22 // 23 // द्वात्रिंशदर्णाविद्याराज्ञी माह // वागिति // मनोजन्माक्लीं // अनुग्रहबिंदुयुक्हंसास-सौ // ला(शबिंदुयुक्फांतःलऊबिंदुयुतोवः जपपूजादिकंसर्वमस्याःपूर्ववदीरितम् // विशेषाजयदावादेविद्येयंसाधितानृणाम् // २१॥मायासानं तसंयुक्तावर्महन्डेयुतापुनः // तारामहापदाद्यासाभृगुब्रह्मानलांतिमः // 22 // दुस्तरांस्तारयद्वंद्वत रयुग्मंचठद्वयम् // द्वात्रिंशदर्णाताराद्यापूजास्याःपूर्ववन्मता // 23 // विद्याराज्ञीमथोवक्ष्येसुरेंद्रस्या पिदुर्लभाम् // लब्ध्वायांमानवाःस्वेष्टसाधयंत्यर्चनेरताः // 24 // वामायाश्रीमनोजन्माहंसोनुग्रह निंदुयुक् // काम शक्तिश्चवाग्वीजफांतोला(शविंदुयुक् // 25 // ब्लू // स्त्रीबीजंस्त्रीसरेफोरेफयुक्तौ // शेषवामाक्षिसंयुतौ // क्रमतआईसंयुतौ // अत्रीदकारौसानुस्वारौद्रां द्रीमिति // कामबीजंक्की॥ मांसा/बिंदुयुग्लऊबिंदुयुक्तःफांतोबब्लू // सर्गीभृगुःसः॥हल्लेखाह्रीं // यथा // ह्रींश्रीक्लींसौंक्लींहींऐंब्लूस्त्रीनीलतारेसरस्वतिद्रांद्रींक्लींब्लूसाह्रींश्रींकीसौ-सौह्रींस्वाहेति // 24 // 25 // // 39 // For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ne // 26 // 27 // 28 // षडंगमाह // पंचेति // 29 // ध्यानमाह / शवेति // क:त्रिशूलेदक्षयोः // 30 // स्त्रीबीजनीलतारेस्यात्संबुद्धयंतासरस्वती।।अत्रीसरेफौक्रमतःशेषवामाक्षिसंयुतौ॥२६॥ सानुस्वारौका मवीजफांतोमांसार्षिबिंदुगः॥सर्गीभृगुर्वागहल्लेखारमाकामोथसौद्वयम्॥२७॥सर्गातंभुवनेशानीस्वाहाद्वा त्रिंशदक्षरा ॥महाविद्यासमाख्यातासेविताभोगमोक्षदा // 28 // ब्रह्मानुष्टुप्सरस्वत्योमुन्याद्याअंगकल्प ना॥पंचपंचाष्टंपंचेषुयुगाणैर्मत्रसंभवैः॥२९॥शवासनांसर्पविभूषणाढ्यांक/कपालंचषकंत्रिशूलम्॥ क रैर्दधानांनरमुंडमालांत्र्यक्षांभजेनीलसरस्वतीताम् // 30 // चतुर्लक्षंजपेद्विद्याकिंशुकैर्मधुरान्वितैः।।दशां शंजुहुयावह्नौश्रद्धापूर्वमतंद्रितः॥३१॥ पूर्वोक्तेपूजयेत्पीठेवक्ष्यमाणेनवर्त्मना // आदौत्रिकोणषट्को णमष्टषोडशपत्रके // 32 // द्वात्रिंशत्पत्रमन्जस्याचतुःषष्टिदलंततः॥ त्रिरेखाढयंधरागेहंचतुरस्त्र मतःपरम् // 33 // एवंयंत्रसमालिख्यवाह्यतःपूजनंचरेत् // चतुरस्रस्याग्निकोणेविनेशंपरिपूजयेद३४ किंशुकैःपलाशपुष्पैः॥३१॥ 32 // 33 // 34 // BHI 1 ऍट्वीश्रीक्लींसोक्लीहान्लूस्त्रीनीलतारेसरस्वतिद्रांक्लीन्लूसाह्रीं श्रीक्लींसौःह्रींस्वाहा॥ 2 अस्यमहाविद्यामंत्रस्यब्रह्माऋषिःअनुष्टुप्छंदः॥ Nसरस्वतीदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // TERISESossessusampummenter LLLLLLLLLGsLama For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० वायुकोणेक्षेत्रपालमैशान्येभैरवंतथा // नैर्ऋतयोगिनी सर्वावामभागेगुरुयजेत् // 35 // भूगृहस्या सटीक घरेखायामणिमालधिमातथा // महिमाचेशितापूज्यावशिताकामपूरणी // // 40 // त०५ रित्येताःपूज्या:पूर्वादिदिक्कमात् // धरागृहस्यरेखायांद्वितीयायांतुभैरवाः // 37 // असितांगो रुरुश्चंड क्रोधोन्मत्तकपालिनः // भीषणश्चाथसंहारएतेष्टौभैरवाःस्मृताः // 38 // भूमिगेहेतृती यायांरेखायांमातरःपुनः // ब्राह्मीमाहेश्वरीचैवकौमारीवैष्णवीतथा // 39 // वाराहीद्राणिकाचै वचामुंडासप्तमीस्मृता // महालक्ष्मीस्तथेयोस्तापूर्वादिषुयथाक्रमम् / / 40 // इत्थमायावृतिचेष्ट्वा योनिमुद्रांप्रदर्शयेत् // चतुःषष्टिदलेप शक्तीरर्चेचतावतीः // 11 // कुलेशीकुलनंदाचवागीशीभैर वीतथा // उमाश्री शांतयाचंडाधूम्राकालीकरालिनी // 42 // महालक्ष्मीश्चकंकालीरुद्रकालीसर स्वती // वाग्वादिनीचनकुलीभद्रकालीशशिप्रभा // 43 // प्रत्यंगिरासिद्धलक्ष्मीरमृतेशीचचंडिका // खेचरीभूचरीसिद्धाकामाक्षीहिंगुलाबला // 44 // जयाचविजयाचाप्यजितानित्यापराजिता // विला Sane // सिनीतथाघोराचित्रामुग्धाधनेश्वरी॥४५॥ NE| // 35 // 36 // 37 // 38 // 39 // 40 // योनिमुद्रोक्ता // 41 // 42 // 43 // 44 // 45 // For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 46 // 47 // 48 // चतुःषष्टिदलेतावतीःशक्तीरभ्यर्च्यखेचरीमुद्रादर्शयेत् // तल्लक्षणंयथा // सव्यंदक्षिण हस्तेतुसव्यहस्तेतुदक्षिणम् // बाहूकृत्वामहादेविहस्तौसंपरिवर्त्यच // कनिष्ठनामिकेदेवियुक्तातेनक्रमे सोमेश्वरीमहाचंडाविद्याहसीविनायिका // वेदगर्भातथाभीमाउयाद्याचसद्गतिः // 46 // उग्रेश्वरी चंद्रगर्भाज्योत्स्नासत्यायशोवती // कुलिकाकामिनीकाम्याज्ञानवत्यथडाकिनी // 17 // राकिनीला किनीचाथकाकिनीशाकिनीत्यपि // हाकिनीतिचतुःषष्टिशक्तयःसिद्धिदायिकाः // 48 // दर्शयेत्खे चरीमुद्रांद्वितीयावरणेचिंते // द्वात्रिंशत्पत्रमध्येतुपूज्याएतास्तुशक्तयः // 49 // किरातायो गिनीवीरावेतालायक्षिणीहरा // ऊर्ध्वकेशीचमातंगीमोहिनीवंशवर्दिनी // 50 // मालिनीललितादूती मनोजापद्मिनीधरा // वर्वरीछत्रहस्ताचरक्तानेत्राविचिका // 51 // मातकादरदर्शीचक्षेत्रेशीरंगिनी नटी // शांतिप्तिावज्रहस्ताधूम्राश्वेतासुमंगला // 52 // णतु // तर्जनीभ्यांसमाक्रांतेसर्वोर्ध्वमपिमध्यमे // अंगुष्ठौतुमहादेविसरलावपिकारयेत् // इयंसाखेचरी नाममुद्रासर्वोत्तमोतमेति // 49 // 50 // 51 // 52 // For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक तृतीयावरणसंपूज्यबीजमुद्रादर्शयेत् // तल्लक्षणंयथा // परिवर्त्यकरौस्पष्टावर्द्धचंद्राकृतीप्रिये // तर्जन्यां मंमगुष्ठयुगलंयुगपत्कारयेत्ततः। अधःकनिष्ठावष्टब्धेमध्यमेविनियोजयेत् // तथैवकुटिलेयोज्येसर्वाधस्तादना मिके // बीजमुद्रेयमुदितासर्वसिद्धिप्रदायिनीति // 53 // 54 // षोडशपत्रसंपूज्यसृणिमुद्रामंकुशमुद्रांदर // 41 // इष्ट्वातृतीयावरणवीजमुद्रांप्रदर्शयेत् // ततःपोडशपत्रेषुपूज्या पोडशशक्तयः // 53 // मुग्धाश्रीः कुरुकुल्लाच त्रिपुरातोतलाक्रिया // रतिःप्रीतिस्तथाबालासुमुखीश्यामलावीला // 54 // पिशाची चविदारीचशीतलावज्रयोगिनी // सर्वेश्वरीतिसंपूज्यसृणिमुद्रांप्रदर्शयेत् // 55 // अष्टपत्रेस्वस्वमंत्र यजेदष्टसरस्वतीः॥ तारोहल्लोहितःसत्योवैकुंठानंतसंयुताः // 56 // भृगुर्ने शब्दरूपेवाग्मायाकामो वदद्वयम् // वाग्वादिन्यग्निकांकातोमंत्रोवेदाक्षिवर्णवान् // 17 // येत् // सापूर्वमुक्ता // 55 // अष्टपत्रेसरस्वत्यष्टकंस्वमंत्रैर्यजेदित्युक्तंतासांमंत्रान्क्रमेणवदन्नादौवागीश्वरीमं त्रमाह॥तारइति॥लोहितःपः वैकुंठानंतसंयुतःसत्यःम // आमयुतोदःद्मा // भृगुःसः॥ स्पष्टमन्यत् // यथा // ॐनमःपद्मासनेशब्दरूपेऐंह्रींनींवद२ वाग्वादिनीस्वाहेति // वेदाक्षिवर्णवान् चतुर्विशत्यर्णः॥५६॥ 57 // // 41 // For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्रेश्वरीमंत्रमाह // वराहति // वराहहंसचक्रींद्रसंयुताभुवनेश्वरी // हसकलह्रीं // 58 // वदर चित्रेश्वरीस्वाहेति // प्रथमंषट्कूटयथाक्लींवद २चित्रेश्वरीऐंस्वाहा // वहौअग्निकोणे // 59 // कुलजाम अनेनमनुनापूर्वपत्रेवागीश्वरीयजेत् // वराहहंसचक्रींद्रसंयुताभुवनेश्वरी // 58 // वदयुग्मंचचित्रेश्व रिवाग्वीजानलप्रिया // द्वादशानुनमनुनावह्नौचित्रेश्वरीयजेत् // 59 // वाग्बीजंकुलजेवाक्चसर स्वत्यनलांगना // एकादशार्णमनुनाकुलजांदक्षिणेर्चयेत् // 60 // वाङ्मायाश्रींवदद्वंद्वंकीर्तीश्वरिवसु प्रिया // त्रयोदशार्णेनयजेनैर्ऋत्येकीर्तिनायिका // 61 // वाङ्मायाचांतरिक्षांतेसरस्वतिचठद्वयम् / / रव्यर्णेनयजेत्प्रत्यगंतरिक्षसरस्वतीम् // 62 // TROLanvaadamil त्रमाह॥वागितिकुलजेऐंसरस्वतिस्वाहेति // 60 // कीर्तीश्वरीमंत्रमाह॥वागितिहींश्रींवद 2 कीर्तीश्वरी स्वाहेति // वसुरनिः॥ 61 // अंतरिक्षसरस्वतीमंत्रमाह // वागिति // ऐहींअंतरिक्षसरस्वतीस्वाहेति॥६२॥ For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० रस्वतीमंत्रमाह // एवविकारः // कीदृशीलकुलता // सबिंदु // 42 // घटसरस्वतीमंत्रमाह // एवंविधायोनिरेकारः॥कीदृशीवराहहंसचंडीशजनार्दनकृशानुयुक्॥ हसखफरयुता / सेंदुःसबिंदुश्च // कूटमिदंमनुरोकारः // कीदृशोलकुलीभृगुवह्नींदुयुक्हसरबिंदुयुतः ॥शांतिरीअरुणादि| युता // अरुणाहः // भृगुःसः॥ शिखीफः // अग्नीरः एतैर्युता // सबिंदुश्चवाकूऐंमाहींश्रीश्रीः॥ इषुबीजा निबाणबीजानि // द्रांद्रींक्लींब्लूसइति // प्रीमितिस्वरूपं // टायुतातृतीयांतारुद्राज्ञा // कृष्णवर्त्मनो वराहहंसचंडीशजनार्दनकृशानुयुक् // सेंदुर्योंनिश्चल कुलिभृगुवह्नींदुयुग्मनुः // 63 // अरुणाभृगु शिख्यग्निसंयताशांतिरिंदयक॥ वाङ्मायाश्रीषवीजानिधींघटांतेसरस्वतीम // 64 // घटेवदतरद्वंद्वं रुद्राज्ञाटायुतामम // अभिलाषंकुरुद्वंद्वप्रेयसीकृष्णवर्त्मनः // 65 // गुणवेदाणेनयजेद्वायोघटस रस्वतीम् // भूधरेंद्रयुतो(शोबिंद्वाट्योवेंवदद्वयम् // 66 // / नेप्रेयसीस्वाहा // यथा // हसष्फ्रेंहसौंःष्फीऐंह्रींश्रींद्रांहींनींब्लूसनींघटसरस्वतीघटेवदर तर२ रुद्राज्ञयाम माभिलाषंकुरुकुरुस्वाहेति // 63 // 64 // 65 // गुणवेदाणस्त्रिचत्वारिंशदक्षरानीलामंत्रमाह // भूधरेति॥ अर्धीशऊ // भूधरोबः॥ इन्द्रोलः॥ ताभ्यांयुतःबिंदुयुतश्चब्लू॥वेंवदवदस्वरूपं॥यथाब्र्वेंवद२ वींहुंफडिति॥ // 42 // For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किणिमंत्रमाह // वाग्बीजमिति // अधराक्रांतोनकुलीऐंयुतोहः // शांतिचंद्राढयमाकाशंई बिंदुयुतो हः॥ सदृक्जलंवि भगाक्रान्तंकूर्मद्वंद्वंऐयुतंचंद्रद्वंद्वंचयथा // ऐंहींकिणि 2 विच्चेइति // 66 // 67 // 68 // एवंसरस्वत्यष्टकंसंपूज्य // क्षोभमुद्रादर्शनं // तल्लक्षणं // मध्यमामध्यमेकृत्वाकनिष्ठांगुष्ठरोधिते // तर्ज त्रीहुंफट्नवाणेननीलामञदुदग्दिशि // वाग्वीजमधराक्रांतोनकुलीबिंदुमान्पुनः // 67 // शांतिचं द्राढयमाकाशंकिणिद्वंद्वंसहग्जलम् ॥कूर्मद्वंद्वंभगाक्रांतनवाणेनामुनायजेत् // 68 // मंत्रणेशानदिग्भागे किणिसंज्ञासरस्वतीम् // पंचमावृत्तिमाराध्यक्षोभमुद्रांप्रदर्शयेत् // 69 // डाकिन्याद्याःपूर्वमुक्ताः षट्कोणेषट्प्रपूजयेत् // दर्शयेद्राविणीमुद्रांषष्ठावरणपूजने // 70 // न्यौदंडवत्कृत्वामध्यमोपर्यनामिके॥क्षोभाभिधानामुद्रेयंसर्वसंक्षोभकारिणीति // 69 // डाकिन्याद्या पूर्वो ताः // डाकिनीराकिनीलाकिनीकाकिनीशाकिनीहाकिन्यः // द्राविणीमुद्रालक्षणं यथा क्षोभमु SHIPालक्षणमुत्कोक्तम् / / एतस्याएवमुद्रायामध्यमेसरलेयदा॥क्रियतेपरमेशानितदाविद्राविणीमतेति॥ 70 // For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie // 43 // पराबालाभैरवीतिस्वस्वमंत्रैः॥ ह्रींपरायैनमः // ऐक्लींसौम्बालायैनमः // हसैंहक्लींहसौभैरव्यैनमइति // सटीक आकर्षिणीमुद्रालक्षणं यथा // मध्यमातर्जनीभ्यांतुकनिष्ठानामिकेसमे // अंकुशाकाररूपाभ्यांमध्यमे परमेश्वरि // इयमाकर्षिणीमुद्रात्रैलोक्याकर्षणेक्षमेति // 71 // 72 // 73 // 74 // सात्विकध्यानमाह // मात०५ परावालाभैरवीतिपूजनीयास्त्रिकोणकेसप्तमावृत्तिपूजायांमुद्रांकुर्याच्चकर्षिणीम्॥७१॥इत्थंसंपूज्यतारे शीमनोभीष्टमवाप्नुयात्।।गणेशक्षेत्रपालाभ्यांयोगिन्यैभैरवायच॥७२॥तारायैचापिवितरेद्धलिंनित्यंचतु प्पथे // मांसमाषानशाकाज्यपायसापूपकादिकम्॥७३॥बलिद्रव्यसमाख्यातंतेनेष्टंसाप्रयच्छति।तस्य ध्यानंत्रिधावच्मिसत्वांदिगुणभेदतः // 74 // श्वेतांबराब्यांहंसस्थांमुक्ताभरणभूषिताम्।।चतुर्वक्रामष्ट भुजैर्दधानांकुंडिकांबुजे।।७५ ॥वराभयेपाशशक्तीअक्षत्रपुष्पमालिके // शब्दपाथानिधौध्यायेत्सृष्टि ध्यानमुदीरितम्॥७६॥रक्तांवरांरक्तसिंहासनस्थांहेमभूषिताम् ॥एकवनांवेदसंख्यैर्भुजैःसंविभ्रतीक्रमात // 77 // अक्षमालांपानपात्रमभयंवरमुत्तमम्॥श्वेतद्वीपस्थितांध्यायत्स्थितिध्यानमिदंस्मृतम् // 78 // // 43 // श्वेतेति // कमंडलुवराक्षम्रपुष्पमालादक्षेषु // इतराणिवामेषु // 75 // 76 ॥राजसध्यानमाह // रक्तेति // अक्षमालावरौदक्षयोः // अन्ययोरन्ये // 77 // 78 // For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir antonLOLLOLL तामसंध्यानमाह // कृष्णेति॥ परशुदर्वीखड्गमुशलकीशूलवज्रपाशगदादक्षेषु॥शेषाणिवामेषु // 79 // 80 // कृष्णांबराठ्यांनौसंस्थामस्थ्याभरणभूषिताम् // नववक्रांभुजैरष्टादशभिर्दधतींवरम् // 79 // अभयं परशुंद:खड्गपाशुपतंहलम् // भिडिंशुलंचमुसलंक शक्तिंत्रिशीर्षकम् // 80 // संहारास्त्रं वज्रपाशौखट्रांगंगदयासह // रक्तांभोधौस्थितांध्यायेत्संहारध्यानमीदृशम् // 81 // कर्मसुक्कू रसौम्येषुध्यायेन्मंत्रीयथातथा।एवंसिद्धेमनौमंत्रीगिरावाचस्पतिर्भवेत् // 82 // दूर्वोत्थयातुलेखन्यारो चनारसयुक्तया // बालस्याच्छिन्ननालस्यजिह्वायांविलिखेन्मनुम् // ८३॥संप्राप्तेचाष्टमेवर्षेसर्वशास्त्रज्ञ तामियात् // अयुतंमंत्रसंजप्तांवचांबालस्यकंठतः॥ 8 ॥वनीयात्पूर्वसंप्रोक्तंवलिंदत्वाविधानतः॥ द्वादशेवत्सरेप्राप्तेभक्षितासाकवित्वकृत् // 85 ॥ज्योतिष्मतीभवतैलंकर्षमात्रंसुमंत्रितम् // उपरागे जलस्थोयोऽश्नीयाद्वाचस्पतिर्भवेत् // 86 // चतुष्पथेश्मशानेवाहित्वालजाभयंतथा // जपे च्छवंसमारुह्यविद्यातत्परमानसः // 87 // शृणोत्यसावमुंशब्दंनिशीथेजपतत्परः // पारगोभव विद्यानांसीसिद्धिमवाप्नुहि // 88 // ॥८॥क्रूरेषुमारणे॥तामसध्यानम्॥उच्चाटनवश्यादौरक्त॥शांतीपुष्टौश्वेतम्॥८२॥८३॥८४॥८५॥८६॥८७॥८८॥ WA C ASTLabe For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० // 44 // त०६ // 89 // उभावपिशिशूनैयायिकवेदांतिनीभूत्वाविवादंकुति // 90 // 91 // 92 // 93 // निर्वा सानमः॥विशिखोमुक्तकेशः॥ कृष्णभूताहे // कृष्णपक्षचतुर्दश्याम् // 94 // 95 // इति श्रीमंत्रमहोदधि विद्वत्कुलसमुद्भूतमष्टवर्षशिशुद्धयम्॥ उपवेश्यतयोर्मूर्षिकरौदत्वाजपेन्मनुम् // 89 // वेदांतन्यायसं युक्त्याविवदेतेउभावपि // यःकौतुकीसआश्चर्यविद्याया पश्यतुध्रुवम्॥९०॥विधायवेदिकांरम्यांविजने कदलीवने।।तत्रासीनोजपेद्विद्यामर्कलसंविधानतः॥९१॥दासीचालितदोलायामारूढांसुस्मिताननाम्॥ पुन्नागचंपकाशोकरंभाविपिनसंस्थिताम् // 92 // एवंध्यायन्भगवतींवलिंदद्याजपांततः // एवंकुर्व नरःसर्वमभीष्टलभतेचिरात् // 93 // निर्वासाविशिख-प्रेतभूमिस्थोयोजपेन्मनुम् // अयुतंकृष्णभूताहे सवाक्सिद्धिमवाप्नुयात् // 94 // विद्यांसौख्यंधनंपुष्टिमायुःकीर्तिवलंस्त्रियः॥ रूपंकामयमानेनतारासे व्यानिरंतरम् // 95 // इति श्रीमन्मंत्रमहोदधौतारामंत्रभेदकथनंनामपंचमस्तरंगः // 5 // छिन्नम स्तामनुंवक्ष्येशीघ्रसिद्धिविधायिनम् // पद्मासनाशिवायुग्मभौतिक शशिशेखरः॥१॥ नौकायांताराभेदोनामपंचमस्तरंगः॥५॥॥ छिन्नमस्तामंत्रमाह // पझेतिपद्मासनाश्रीं // शिवाह्रीं ॥भौ तिकऐंसबिंदुः॥ पद्मनाभयुतःसदागतिःएयुतोयः॥ यथा॥ॐश्रींहींहींऐवजवैरोचनीयेहींहींफट्स्वाहेति // 1 // // 44 // For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 3 // 4 // अस्त्रमंत्रमाह // विसर्गइति // अवसुरक्ष 2 ह्रीं२ अस्त्रायफडिति // 5 // सर्वेस्वाहांताः॥ वज्रवैरोचनीपद्मनाभयुक्त सदागतिः // मायायुगास्त्रदहनप्रियांतःप्रणवादिकः // 2 // मंत्रःसप्त दशा!यभैरवोस्यमुनिर्मतः // सम्राट्छंदश्छिन्नमस्तादेवताभुवनेश्वरी // 3 // आंखड्गायदा ख्यातमीखड्गायशिरःस्मृतम् // ॐवज्रायशिखाप्रोक्ताऐंपाशायतनुच्छदम् // 4 // ओमंकुशायने स्याद्विसोवसुरक्षयुक् // मायायुग्मंचास्त्रमंगमनवःप्रणवादिकाः // 5 // स्वाहांताःप्रोदिता एवमंगेविन्यस्यतांस्मरेत्॥भास्वन्मंडलमध्यगांनिजशिरश्छिन्नविकीर्णालकं स्फारास्यंप्रपिबद्गलात्स्व रुधिरंवामेकरविभ्रतीम् // याभासक्तरतिस्मरोपरिगतांसख्यौनिजेडाकिनीवर्णिन्यौपरिदृश्यमोदकलितां श्रीछिन्नमस्तांभजे // 6 // ध्यात्वैवंप्रजपेल्लक्षचतुष्कंतदशांशतः // पालाशैबिल्वजैर्वापिजुहुयात्कुसु मैःफलैः // 7 // आधारशक्तिमारभ्यपरतत्वांतपूजिते // पीठेजयाख्याविजया जिताचाप्यपराजिता॥८॥ नित्याविलासिनीषष्ठीदोग्ध्यघोराचमंगला // दिक्षुमध्येचसंपूज्यानवपीठस्यशक्तयः॥ 9 // ध्यानमाह // भास्वदिति // याभोमैथुनंतदासक्तरतिकामोपरिस्थिताम् // 6 // 7 // 8 // 9 // 1 अस्यशिरच्छिन्नामंत्रस्यभैरवऋषिः सम्राट्छंदः छिन्नमस्ताभुवनेश्वरीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं० म० // 46 // त०६ पीठमंत्रमाह // सर्वेति // सहभृगुः॥ सिः॥सभौतिकः॥खड्गीशःऐयुतोवावै॥भगए।यथा॥ॐसर्वबुद्धिप्रदेवर्ण नीयेसर्वसिद्धिप्रदेडाकिनीयेॐवनवैरोचनीयेएह्येहिनमः॥वेदरामाक्षरश्चतुस्त्रिंशदर्णः // 10 // 11 // 12 // 13 // सर्वबुद्धिप्रदेवर्णनीयेसर्वभृगुःसहक्॥धीप्रदेडाकिनीयेचतारोवज्रसभौतिकः॥१०॥खड्गीशोरोचनीयेतेभ गोहिनमोतिकः॥तारादिःपीठमंत्रोयंवेदरामाक्षरोमतः॥११॥ समासनमेतेनतत्रसंपूजयेच्छिवाम्॥ त्रिकोणमध्यषट्कोणपद्मभूपुरमध्यतः॥ 12 // बाह्यावरणमारभ्यपूजयेत्प्रतिलोमतः॥ भूपुराबाह्य भागेषुवज्रादीनिप्रपूजयेत् // 13 // तदंतःसुरराजादीन्पूजयेद्धरितांपतीन् // भूपुरस्यचतुर्दार्पद्वार पालान्यजेदथ // 14 // करालविकरालाख्यावतिकालस्तृतीयकः // महाकालश्चतुर्थःस्यादथपझे टशक्तयः॥१५॥एकलिंगायोगिनीचडाकिनीभैरवीतथा॥ महाभैरविकेंद्राक्षीत्वसितांगीतुसप्तमी॥१६॥ संहारिण्यष्टमीचेतिषट्कोणेष्वंगमूर्तयः॥ त्रिकोणगच्छिन्नमस्तापार्शयोस्तुसखीद्वयम् // 17 // डाकि नीवर्णिनीसंज्ञतारवाग्भ्यांप्रपूजयेत् // एवंपूजादिभिःसिद्धमंत्रमंत्रीमनोरथान् // 18 // सुरराजादीन् इन्द्रादीन् // हरितादिशांपतीन् // 14 // 15 // 16 // 17 // तारवाग्भ्यांॐऐंडाकिन्यैनमः // 18 // // 4 // For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie // 19 // 20 // करवीरस्यकुसुमैःपुष्पैः // प्रसूनंकुसुमसुममित्यमरोक्तेः // 21 // रक्तैःकरवीरैरितिपूर्वेण संबंधः॥ तत्संख्ययालक्षम् // 22 // गोमायुःशृगालः॥ तामेवलक्ष्मीमेव // पायसांधसापायसान्नेन // 23 // प्राप्नुयानिखिलान्सद्योदुर्लभांस्तत्प्रसादतः॥श्रीपुष्पैर्लभतेलक्ष्मीतत्फलैःस्वसमीहितम् // 19 // वाक्सि दिमालतीपुष्पैश्चंपकैर्हवनात्सुखम् ॥घृताक्तंछागमांसंयोजुहुयात्प्रत्यहंशतम् // 20 // मासमेकंतुवश गास्तस्यस्युःसर्वपार्थिवाः // करवीरस्यकुसुमैःश्वेतैर्लक्षंजुहोतियः // 21 // रोगजालंपराभूयसुखी जीवेच्छतंसमाः॥ रक्तैस्तत्संख्ययाहुत्वावशयेन्मंत्रिणोनृपान् // 22 // फलैर्तृत्वाप्नुयालक्ष्मीमुदुंबर पलाशजैः॥ गोमायुमांसैस्तामेवकवितापायसांधसा // 23 // वंधूककुसुमैर्भाग्यंकर्णिकारैःसमीहित म् // तिलतंडुलहोमेनवशयेन्निखिलाअनान् // 24 // नारीरजोभिराकृष्टिगमांसैःसमीहितम् // स्तं भनंमाहिरैमासैःपंकजैःसघृतैरपि // 25 // चिताग्नौपरभृत्पक्षैर्जुहुयादरिमृत्यवे // उन्मत्तकाष्ठदी तेनौतत्फलंवायसच्छदैः॥ 26 // d // 24 // नार्यारजोभिर्ऋतुकालनिर्गतरुधिरैराकर्षणं // सघृतैःपंकजैरपिस्तंभनमेव // 25 // परभृत्कोकिलः॥ उन्मत्तोधत्तूरः॥ तत्काष्ठज्वलितेऽग्नौकाकप:होमात्फलमरिमृत्युरेवस्यात् // 26 // For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 46 // // 27 // 28 // 29 // 30 // 31 // 32 // 33 // 34 // 35 // 36 // प्रयोगांतरमाह॥उषसीति॥कविंशुक्राचार्यम् // 3 // द्यूतेवनेनृपद्वारेसमप्रवैरिसंकटे // विजयलभतेमंत्रीध्यायन्देवींजपन्मनुम् // 27 // भुक्तौमुक्तौ " सटीक सितांध्यायेदुच्चाटेनीलरोचिषम् // रक्तांवश्यमृतौधूम्रांस्तंभनेकनकप्रभाम् // 28 // निशिदद्याद लिंतस्यैसिद्धयेमदिरादिना // गोपनीय प्रयोगोथप्रोच्यतेसर्वसिद्धिदः // 29 // भूताहेकृष्णपक्ष स्यमध्यरातमोघने // स्नात्वारक्तांबरधरोरक्तमाल्यानुलेपनः // 30 // आनीयपूजयेन्नारीछि नमस्तास्वरूपिणीम् // सुंदरीयौवनाक्रांतांनरपंचकगामिनीम् // 31 // सस्मितांमुक्तकवरीभूषादाना तोषिताम् // विवस्त्रांपूजयित्वैनामयुतंप्रजपेन्मनुम् // 32 // बलिंदत्वानिशांनीत्वासंप्रेष्यधनतो पिताम् // भोजयेद्विविधैरन्नैाह्मणान्देवताधिया // 33 // अनेनविधिनालक्ष्मीपुत्रान्पौवान्यशः सुखम् // नारीमायुश्चिरंधर्ममिष्टमन्यदवाप्नुयात् // 34 // तस्यांरात्रौत्रतंकार्यविद्याकामेनमंत्रिणा // मनोरथेषुचान्येषुगच्छेत्तांप्रजपन्मनुम् // 35 // किंबहूक्तेनविद्यायाअस्याविज्ञानमात्रतः॥ शास्त्रज्ञा नंपापनाशःसर्वसौख्यंभवेधुवम् // 36 // उषस्युत्थायशय्यायामुपविष्टोजपेच्छतम् // षण्मासाभ्यंत bilu46 // रेमंत्रीकवित्वेनजयेत्कविम् // 37 // For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारपुटामायां // ह्रीं ओमिति // 38 // 39 // रेणुकाशबरीमाह // प्रणवइति // कमलाश्रीं / मायाहीं॥ सृणिःक्रों // इंदुयुतोऽधरः ऐं // मंत्रोयथा // ॐश्रींहींकोंऐं // षडंगमाह // पंचेति // स शिवेनकीलिताविद्यातदुत्कीलनमुच्यते // मायांतारपुटांमंत्रीजप्यादृष्टोत्तरंशतम् // 38 // मंत्रस्यादौतथैवांतेभवेत्सिद्धिप्रदातुसा // एषनूनविधिर्गोप्यासिद्धिकामेनमंत्रिणा // 39 // उ दिताछिन्नमस्तेयंकलौशीघ्रमभीष्टदा // रेणुकाशबरीविद्यातादृश्येवोच्यतेधुना // 40 // प्रणवः कमलामायासृणिरिंदुयुतोधरः // पंचाक्षरीमहाविद्याभैरवोस्यमुनिर्मतः // 41 // पंक्तिश्छंदोरे णुकाख्याशवरीदेवतोदिता // पंचवर्णैःसमस्तेनकुतिमनुनांगकम् // 42 // हेमाद्रिसानावुद्याने नानाद्रुममनोहरे॥ रत्नमंडपमध्यस्थवेदिकायांस्थितांस्मरेत् // 43 // गुंजाफलाकल्पितहाररम्यां श्रुत्योभशखंडंशिखिनोवहंतीम् // कोदंडवाणौदधतींकराभ्यांकटिस्थवल्कांशवरीस्मरेयम् // 44 // ध्यात्वैवंप्रजपेल्लक्षपंचकंतदशांशतः॥ फलैविल्वैःप्रजुहुयात्तत्काष्ठरेधितेनले // 15 // मस्तेनास्त्रम् // 40 // 41 // 42 ॥ध्यानमाह // हेमाद्रीति॥मेरुशिखरे // 43 // शिखिनोमयूरस्यपिच्छंकर्णयो शार्दधतीं॥कोदंडंधनुर्वामे // बाणोदक्षे // 44 // // 45 // 1 अस्यरेणुकाशवरीमंत्रस्यभैरवऋषिःपंक्तिच्छंदारेणुकाशबरीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः / / 11 // 42 ॥ध्यानमा 4 // // 45 // सिद्धयर्थेजपेविनियो For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म०पूर्वोदितेजयादिके // 46 // 47 // 48 // 49 // 50 // 51 // स्वयंवरकलामाह // तारेति // निद्रा सटीक पूर्वोदितेर्चयेत्पीठेषडंगावृतिरादिमा // द्वितीयावरणेपूज्या शवाअष्टशक्तयः // 46 // हुंकारी // 47 // त०६ खेचरीचाथचंडास्याच्छेदनीतथा // क्षेपणास्त्रीचहुंकारीक्षेमकारीतथाष्टमी // 47 // तृतीयेदशदि क्पालावज्राद्यानिचतुर्थके // एवंसिद्धंमर्नुसम्यकार्येकर्मणियोजयेत् // 48 // मल्लीपुष्पैर्जनावश्या इक्षुखंडैर्धनाप्तयः॥ पंचगव्यैर्धेनवःस्युरशोककुसुमैस्सुताः // 49 // इंदीवरैःकृतहोमेनृपपत्नीवशंवदा॥ अन्नासिरनै सकलंमधूकीछितंभवेत् // 50 // प्रोदिताशबरीविद्याकलौत्वरितसिद्धिदा // अथोच्यते विवाहाप्त्यैस्वयंवरकलाशिवा // 51 // तारोमायायोगिनीतिद्वयंयोगेश्वरीद्वयम् // योगनिद्रायंकरि स्यात्सकलस्थावरेतिच // 12 // जंगमस्यमुखंप्रोच्यहृदयंममसंपठेत्॥वशमाकर्षयाकर्षपवनोवह्निसं दरी॥५३॥ पंचाशद्वर्णविद्यायामुनिरस्या-पितामहः॥ छंदोतिजगतीदेवीगिरिपुत्रीस्वयंवरा // 54 // भकारः॥ पवनायः॥ वह्रिसुन्दरीस्वाहा / / स्वरूपमन्यत् // यथा ॥ॐहींयोगिनि 2 योगेश्वरि 2 योगभयं Dalmg7 // करिसकलस्थावरजंगमस्यमुखहृदयंममवशमाकर्षयाकर्षयस्वाहेति // 52 // 53 // 54 // 1 अस्यस्वयंवरामंत्रस्यब्रह्माऋषिःजगतीछंदः देविगिरिपुत्रीस्वयंवरादेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडंगमाह // जगत्रयेति // तारमायादिकाः // वश्यमोहिन्यैपदंपश्चिममन्तर्वतियेषामीदृशाः॥ षडंगमन्त्राइ जगत्रयेतिहृदयंत्रैलोक्यतिशिरोमतम्।।उरगतिशिखासर्वराजतिकवचंतथा // 55 // सर्वस्त्रीपुरुषेत्यक्षि सर्वेत्यांसमीरितम् // तारमायादिकावश्यमोहिन्यैपदपश्चिमा // 56 // पंडंगमंत्राउद्दिष्टामूलेनव्या पकंचरेत् // ध्यायेद्देवींमहादेवंवरीतुंसमुपागताम् // 17 // शंभुंजगन्मोहनरूपपूर्णविलोक्यलज्जाकुलि तांस्मिताब्यम् // मधूकमालांस्वसखीकराभ्यांसंविधतीमद्रिसुतांभजेयम् // 18 // एवंध्यात्वाजपेल्लक्ष चतुष्कंतदशांशतः॥ पायसान्नेनजुहुयात्पीठेपूर्वोदितेयजेत् // 59 // त्रिकोणचतुरस्रांगकोणाष्टदल दिग्दलम् ॥दिकलादतपत्राणिचतुःषष्टिदलंपुनः॥६०॥ वृत्तवयंचतुरयुक्तंधरणिकेतनम् // पूजा यंत्रप्रकुर्वीततत्रसंपूजयेदिमाम् // 61 // त्युक्तत्वात // ॐह्रींजगत्रयवश्यमोहिन्यहृदयायनमः॥ ॐहीत्रैलोक्यवश्यमोहिन्यशिरः॥ ॐहूंउरगवश्यमो हिन्यशिखेत्यादिबोध्यम् // मायात्रदीर्घषट्कयुताकार्या // 55 // 56 // 57 // 58 // 59 // 60 // 61 // / 1 ॐहीजगत्रयवश्यमोहिन्यहृदयायनमः // ॐ ह्रीत्रैलोक्यवश्यमोहिन्यै शिरसेस्वाहा // ॐहीउरगवत्यमोहिन्यशिखायैवषट् // ॐ ह्रींसर्व 8 राजवश्यमोहिन्यैकवचायतुं // ॐ ह्रींशवस्त्रीपुरुषवश्यमोहिन्यै नेत्रत्रयायवौषट् ॐ ह्रींसर्ववश्यमोहिन्यैअस्त्रायफट् / / For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LinSoni ar सटीक // 48 // 62 // 63 // कलापत्रेषोडशदले // ताराद्येनरमान्तेनश्रीबीजेन ॐश्रीश्रीमितिमनुनाश्रियंयजेत् // द्विरामारे द्वात्रिंशदले॥पाशमायांकुशैः॥ आंहींक्रौंशिवायैनमइतिद्वात्रिंशद्वारतायजेत् // 64 // वेदांगपत्रे | त्रिकोणेपार्वतीमिष्ट्वाचतुरोर्चयेदिमान।मेधाविद्यांपुनर्लक्ष्मीमहालक्ष्मीचतुर्थिकाम् // 62 // षट्कोणे पुषडंगानिस्वरानष्टदलेचयेत् // दिग्दलद्वितयेदेवानिंद्रादीनायुधानिच // 63 // तारायेननमोन्ते नश्रीबीजेनरमायजेत्।।कलापत्रेद्विरामारेपाशमायांकुशैशिवा // ६४॥वेदांगपत्रेत्रिपुटांश्रीमायामदनै र्यजेत् // वृत्तत्रयेमहालक्ष्मीभवानीपुष्पसायकाम् // 66 // चतुरस्रंचतुर्दाघुविनेटक्षेत्रेशभैरवान् // यो गिनी पूजयेदित्थंनवावरणमर्चनम् // 66 // एवंयोभजतेदेवींवश्यास्तस्याखिलाजनाःगलाजैत्रिमधुरो पेतैर्जुहुयादयुतंतुयः॥६॥लभतेवांछितांकन्यांधनमानसमन्विताम् // एवंस्वयंवराप्रोक्ताप्रोच्यतेमधुम त्यथ॥ 68 // नारायणोविंदुयुतोहल्लेखांकुशमन्मथाः॥दीर्घवर्मध्रुवोवह्निप्रेयसीवसुवर्णवान् // 69 // चतुःषष्टिदले // श्रीमायामदनैः। श्रीह्रींकींत्रिपुरायैनमइतितांयजेत् // 65 // 66 // 67 // मधुमतीमाह // नारायणेति // बिंदुयुतोनारायणः आं // हल्लेखाहीं // अंकुश क्रौं॥ मन्मथ कीं // दीर्घवर्महूं // ध्रुवः *ॐ // वह्निप्रेयसीस्वाहामंत्रोयथा // आंहींक्रौंक्कीहूंॐस्वाहा // 68 // 69 // aa a be // 48 // O ar For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 70 // स्वाहान्तप्रणवेमास्त्रम् // 71 // ध्यानमाह // अहीति // नागवल्लीदलंदक्षेनीलपञवामे // 72 // मुनिरस्यमधुश्छन्दास्त्रिष्टुप्मधुमतीतिच // मुन्याद्या पंचभिर्वीज पंचांगानिप्रकल्पयेत् // 70 // अस्त्रं स्वाहांततारेणकृत्वादेवींस्मरेद्बुधः // नानाद्रुमलताकीर्णेकैलासगतकानने // 71 // अहिलतादलनी लसरोजयुक्करयुगांमणिकांचनपीठगाम् // अमरनागवधूगणसवितांमधुमतीमखिलार्थकरींभजे // 72 // प्रजप्यवसुलक्षतद्दशांशंजुहुयाद्दलैः // विल्वोत्थैःपूजयेत्पीठेजयादिनवशक्तिके // 73 // कर्णिकायां षडंगानिशक्तयोवसुपत्रके // निद्राच्छायाक्षमातृष्णाकांतिरार्याश्रुतिःस्मृतिः // 74 // शकादयस्त दस्त्राणिपूज्यान्यतेसुखाप्तये // यइत्थंसेवतेदेवींससमृद्धःपदंलभेत् // 75 // रक्तांभोज तैमंत्रीभूपती वश्यतांनयेत् // नानाभोगान्पायसेनतांबूलैमिलोचनाम् // 76 // दामोदरोबिंदुयुक्तोमधुमत्याः परोमनुः // पूर्ववद्यजनंचास्यध्यायेद्देवीकुमारिकाम् // 77 // कोटिरदजपंकुर्वन्विद्यापारंगमो भवेत् // मधुमत्यासमानान्यानानाभोगसुखप्रदा // 78 // an73 // 74 // 75 // 76 // मन्त्रान्तरमाह // दामोदरइति॥ दामोदरएकारः॥ 77 // 78 // 1 अस्यमधुमतीमंत्रस्यमधुर्ऋषिःत्रिष्टुप्छन्दःमधुमतीदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सटीक // 49 // alत.६ प्रमदामंत्रमाह ॥मायेति // वड्यासनःशूरमारेफयुतःपाप // मदेस्वरूपं // पावकसुंदरीस्वाहा // मंत्रोयथा // हींप्रमदेस्वाहेतिषडणः॥ 79 ॥८०॥ध्यानमाह // केयूरेति। केयूरमंगदोवरोदक्षे / / संक्रंदन इंद्रः // तदाद्यै मायावह्नयासनःशूरोमदेपावकसुंदरी ॥षडोमनुराख्यातोमुनिःशक्तिःसमीरितः॥७९॥ गायत्रीछंद्य आख्यातंदेवताप्रमदाभिधा // षडंगानिप्रकुर्वीतदीर्घषट्काव्यमायया // 80 // केयूरमुख्याभरणा भिरामांवराभयेसंदधतींकराभ्याम् // संक्रंदनाद्यामरसेव्यपादांसत्कांचनाभांप्रमदांभजामि // 81 // रसलक्षंजपेन्मंत्रंदशांशंजुहुयाघृतैः // पूर्वोक्तेपूजयेत्पीठेपडंगाशाधवायुधैः // 82 // निर्जनेकानने रात्रावयुतंनियतंजपेत् // सहस्रंपायसान्नेनहुत्वाशयनमाचरेत् // 83 // त्रिसप्तदिवसंयावदेवमाचरतो निशि // देवीदृग्गोचरीभूयदद्यादिष्टानिमंत्रिणे // 84 // मायाप्रमोदेठद्वंद्वंपडोमनुरुत्तमः॥ ऋष्या धर्चनपर्यंतंप्रमदावदुदीरितम् // 85 // देवैःसेव्यौपादौयस्याः॥ 81 // आशाधवादिक्पालाः॥८२ // 83 // 84 // प्रमोदामाह // मायेति // ठद्वयंस्वाहा // मंत्रीयथा // ह्रींप्रमोदेस्वाहेतिषडर्णः // 85 // // 49 // For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ERSTARTERESTER an86 // बंदीमंत्रमाह // तारइति // हिलि 2 बंदीदेव्यैनमइत्येकादशाक्षरः॥ 87 // 88 // ध्यानमाह // सरितोनिर्जनेतीरेमंडलेचंदनैःकृते // जपहोमौविधायोक्तीप्रमोदांपश्यतिध्रुवम् // 86 // तारोहि लियुगंबंदीदेवीङन्तानमोतिकः // एकादशाक्षरोमंत्रीभैरवत्रिष्टुभौपुनः // 87 // बन्दीमुन्यादयः प्रोक्ताएकेनद्वंद्वशोङ्गकम् // विधायसंस्मरेद्वंदीरत्नसिंहासनस्थिताम् // 88 // सतोयपाथोदसमानकां तिमंभोजपीयूषकरीरहस्ताम् // सुरांगनासेवितपादपद्मांभजामिवंदीभवबंधमुक्त्यै // 89 // लक्षयु ग्मंजपेन्मंत्रीपायसान्नैर्दशांशतः॥ हुत्वापूर्वोदितेपीठपूजयेद्वंधमुक्तये // 9 // अंगपूजाकेसरेषुश क्तयःपत्रमध्यगाः // कालीताराभगवतीकुब्जाह्वाशीतलापिच // 91 // त्रिपुरामातृकालक्ष्मीर्दिगी शाआयुधान्यपि // एवमाराधिताबंदीप्रयच्छेदीप्सितंनृणाम् // 92 // एकविंशतिघस्रांतमयुतंप्रत्यह जपेत् // ब्रह्मचर्यरतोमंत्रीगणेशार्चनपूर्वकम् // 93 // सतोयेति // सजलमेघश्यामापीयूषकरीरोऽमृतकुंभासदक्षे // 89 // 90 // 91 // 92 // घस्रोदिनम् // 93 // 1 अस्यबंदीमन्त्रस्यभैरवऋषिःत्रिष्टुप्छंदःबंदीदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः / REEEEEEEERTAISASUSESEAsaree T For Private and Personal Use Only R Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 50 // सटीक प्रयोगांतरमाह // चतुरस्रइति॥ अपूपोपरिघृतेनचतुरस्रांतर्वतिठकारंविलिख्यतत्रामुकंमोचयेतिलिखेत् // दिक्षुमायाबीजंच // अष्टादशार्णमंत्रेणतंवेष्टयित्वातत्रदेवीमावाह्याभ्यर्यकारागृहस्थायाऽपूपंदद्यात् // सचतजग्ध्वाबंधनान्मुच्यते // 94 // 95 // अष्टादशार्णमाह // वागिति ॥केशवःअकारः // ठद्वयंस्वाहा // कारागृहनिबद्धस्यमोक्षएवंकृतेभवेत् // चतुरस्रेठकारांतरपूपोपरिसंलिखेत् // 94 // साध्यनामघृते नैवमायावीजंचदिक्ष्वपि // मनुनाष्टादशार्णेनचतुरस्रप्रवेष्टयेत् // 95 // वाग्बीजभुवनेशानीरमाबंदीच केशवः / मुष्यबंधन्ततोमोक्षंकुरुयुग्मंचठद्वयम् // 96 // वसुचंद्राणमंत्रोयंक्षिप्रबंधविमोक्षदः॥ तस्मि नपूसंपूज्यबंदीमावरणान्विताम् // 97 // कारानिकेतनस्थायमित्रायप्रददीततम् // सशुद्धोवाग्यतो भूत्वाभक्षयेत्तमपूपकम्॥९८॥तस्मिन्संभक्षितेबद्धोमुच्यतेबंधनाद्रुतम् // एवंसंप्रोदिताबंदीस्मरणाद्वं धमुक्तिदा // 99 // इति श्रीमन्महीधरविरचितेमंत्रमहोदधौछिन्नमस्तादिमंत्रकथनंनामषष्ठस्तरंगः॥६॥ स्वरूपमन्यत् // स्पष्टंच // यथा // ऐंह्रीं श्रींबंदिअमुच्यबंधमोक्षंकुरु 2 स्वाहेति // 96 // वसुचंद्रार्णोऽष्टाद शार्णः॥९७॥९८॥ 99 // इतिमंत्रमहोदधिनौकायांछिन्नमस्तादिकथनंनामषष्ठस्तरंगः // 6 // // 500 For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथवट्यक्षिणीमाह // पद्मनाभइति // पद्मनाभए // झिंटीशस्थोवियद्वायूएस्थिताहकारयकारोह्ये // सहवियाहि // 1 // यक्षीत्यादिस्वरूपं // सनासिकंतोयंऋतुयुतोवः // वृक्षेत्यादिस्वरूपस्पष्टम् // यथा // ऐोहियक्षियक्षिमहायक्षिवटवृक्षनिवासिनिशीघ्रमेसर्वसौख्यंकुरुकुरुस्वाहा // द्वात्रिंशदर्णः // अथसर्वेष्टसंसिद्धयैप्रवक्ष्येवटयक्षिणी // पद्मनाभोवियद्वायूझिंटीशस्थौसहकवियत् // 1 // य क्षियक्षिमहायक्षिवटतोयंसनासिकम् // क्षनिवासिनिशीघ्रमेसर्वसौख्यंकुरुद्वयम् // 2 // स्वाहाद्वात्रिं शदोयमंत्रोऽखिलसमृद्धिदः॥ ऋषिःस्याद्विश्रवाश्छंदोनुष्टुब्देवीत्यक्षिणी ॥३॥वह्निभि श्रुतिभिर्वेदे सुभिःसप्तंभीरसैः // प्रकुर्वीतपडंगानिमंत्रवर्णान्यसेत्तनौ // 4 // मस्तकेनेत्रेयोर्वकेनासोकांसंयुग्म तः॥ स्तनयो पार्श्वयोर्द्वन्द्वे«दिनाभौशिवोदरे // 5 // कैटयूरुनाभिजघांसुजानोमणिबंधयोः // ह स्तैयोर्मूभिविन्यस्यध्यायेद्देवींवटस्थिताम् // 6 // अरुणचंदनवस्त्रविभूषितांसजलतोयदतुल्यतनूरु चाम् // स्मरकुरंगदृशांवटयक्षिणींक्रमुकनागलतादलयुक्कराम् // 7 // // 2 // 3 // 4 // वर्णन्यासमाह // मस्तकइति // नेत्रयोौ // नासाकर्णासस्तनपार्श्वकटयूरुजंघाजानुमणि बंधहस्तेषुद्वौद्वौ // अन्यत्रैकः ॥शिवलिंगम् ॥५॥६॥ध्यानमाह // अरुणेति॥ क्रमुकंपूगीफलंदक्षे॥७॥ 1 अस्ययक्षिणीमंत्रस्यविश्रवाऋषिरनुष्टुपूछंदःयक्षिणीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थेजपविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० म० सटीक // 51 // Hlnd॥९॥१०॥११॥१२॥१३॥१४॥१५॥१६॥१७॥पद्मति॥पद्माद्वयंश्रीश्रीं। यक्षिणीस्वरूपं॥सचंद्रंगगनत्रयंहहहं // लक्षद्वयंजपेन्मंत्रंबंधूकैस्तदशांशतः॥ हुत्वापीठेयजेदेवीमुच्यतेपीठशक्तयः // 8 // कामदामानदा नक्तामधुरामधुरानना // नर्मदाभोगदानंदाप्राणदापीठशक्तयः // 9 // मनोहराययक्षिण्यायोगपी ठायहन्मनुः // पीठस्योक्तस्तत्रदेवीपूजयेद्वटयक्षिणीम् // 10 // कर्णिकायांपडंगानिपत्रेष्वेतायजे त्पुनः // सुनंदाचंद्रिकाहासासुलापामदविह्वला // 11 // आमोदाचप्रमोदापिवसुदेत्यष्टशक्तयः // इंद्रादीनथवज्रादीन्संपूज्यलभतेसुखम् // 12 // एवमाराधितोमंत्र प्रयोगेषुक्षमोभवेत् // निर्मनुष्ये वनेगत्वान्यग्रोधाधस्तलेजपेत् // 13 // प्रतिपस्रतमस्विन्यांसहस्रंनियोंद्रियः // सप्तमेदिवसेप्राप्ते कृत्वाचंदनमंडलम् // 14 // तत्राज्यदीपंकृत्वास्मिन्पूजयेद्वटयक्षिणीम् // तदरोग्रजपेन्मंत्रमानिशी थंसमाहितः // 16 // शृणोतिनूपुरारावंमंत्रीगीतध्वनिततः // श्रुत्वैवप्रजपेन्मवीतत्रासश्चतांस्मरे तु // 16 // ततःप्रत्यक्षतोदेवीमीक्षतेसुरतार्थिनीम् // तत्कामपूरणात्सातुददातीष्टानिमंत्रिणे // 17 // किंबहूक्तेनसर्वेष्टपूरणीवटयपक्षिणी // पद्माद्वयंयक्षिणीतिसचन्द्रंगगनत्रयम् // 18 // 1 मनोहराययक्षिणियोगपीठायनमः // areemannastasiacLLOLLL // 6 // For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैश्वानरप्रियास्वाहा // 18 // 19 // चंपकानांकांतारेवने // 20 // 21 // 22 // मंत्रांतरमाह // क्रोधीशेति // वैश्वानरप्रियांतोयंदशवर्णोमनुमतः॥ऋषिःपूर्वोदितश्छंदःपंक्तिर्देवीतुयक्षिणी // 19 // चंद्रेकत्रित्रियु ग्मेनैसर्वेणांगक्रियामता // स्मरेच्चपककांताररत्नसिंहासनस्थिताम् // 20 // सुवर्णप्रभारत्नभूषाभिरामां जपापुष्पसच्छायवासायुगाढ्याम्॥चतुर्दिक्षुदासीगणैःसेवितांघिभजेसर्वसौख्यप्रदायक्षिणीताम् // 21 // एवंध्यात्वाजपेल्लभैजपापुष्पैर्दशांशतः // जुहुयात्पूर्ववत्पीठेपूर्वोक्तेप्रयजेदिमाम् // 22 // क्रोधीशवह्नी मन्विन्दुयुक्तोमदनमेखले // हृदयानिप्रियातायंताराद्योद्वादशाक्षरः // 23 // अस्येज्यापूर्ववत्सवी मेखलायक्षिणीत्वियम् // चतुर्दशाहपर्यंतंमधूकावनिरुइतले // 24 // प्रजपेदयुतनित्यंसहस्रं ह्वनचरेत् // मधूकपुष्पैर्मध्वक्तैस्तत्काष्ठेश्चहुताशने // 25 // संतुष्टैवंकृतेदेवीप्रयच्छेदजनंशुभम् // येनाक्तनयनामंत्रीनिधिपश्यद्धरागतम् // 26 // मन्विदुयुक्तौ // औबिन्दुयुक्तौ // क्रोधीशवह्वीकरेकौतेनक्रौं // मदनमेखलेस्वरूपं // हृदयंनमः // अग्नि प्रियास्वाहा // 23 // मधूकावनिरुतले // मधूकवृक्षाधस्तात् // 24 // 25 // 26 // १श्रीश्रींयक्षिणीहहहस्वाहेतिदशार्णः।। 2 अस्यवटयक्षिणीमंत्रस्यविश्रवाऋषिःपङ्क्तिछंद यक्षिणीदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः।। 3 क्रौंमदनमेखलेनमःस्वाहेतिद्वादशार्णः // For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० मंत्रान्तरमाह॥प्रणवइति॥वाऐं // विशालेस्वरूपं|मायाहीं॥पद्माश्रीं॥मनोभवालीं // ठद्वयंस्वाहा // 27 // al ॥२८॥२९॥वाराहीमाह // वागिति // मनुस्थितीचंद्रशेखरौशामपिनाकीशौ॥ औबिंदुयुतौगलौ // ग्लौं // // 52 // त०७ प्रणवोवाग्विशालेचमायापद्मामनोभवः।।ठद्वयांतोदशा!यविशालायक्षिणीमनुः // 27 // मुन्यादिपूजा पर्यतंपूर्ववत्समुदीरितम् // चिंचातरोरधःस्थित्वाशुचिर्लक्षंजपेन्मनुम् // 28 // शतपत्रैर्दशांशेन जुहुयात्तोषिताततः॥ रसंददातियेनासौनीरोगायुरखाप्नुयात् // 29 // वाक्चंद्रशेखरौशाङ्गीपिनाकी शौमनुस्थितौ // लांगलित्रितयंसेंदुवर्मदीर्घशुचिप्रिया // 30 // वस्वक्षरमनो शत्रुघातिनःकपिलोमुं निः॥ छन्दोनुष्टुप्चवाराहीवार्तालीदेवतोदिता // 31 // द्विचंद्रभूमिचंद्रेकयुग्माणैरंगकल्पना ॥वारा हींचेतसिध्यायेच्छत्रुनिग्रहकारिणीम् // 32 // सेंदुलांगलित्रयं ठत्रयं ठंठंठं // दीर्घवर्महूं // शुचिप्रियास्वाहा // 30 // 31 // 32 // विशालेह्रीं श्रींक्लीं स्वाहेतिदशार्णः // 2 ऍग्लौंठठंठहूँस्वाहा // 3 अस्यशत्रुघातिनःमंत्रस्यकपिलोऋषिःअनुष्टुपूछन्दवाराही SEवार्तालीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // // 52 // For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानमाह // विद्युदिति।पाशमुद्गरौदक्षयो|अंकुशशक्तीवामयोरूर्वाधस्थयोः॥ नेत्रजैर्वीतिहोत्रैरग्निभिर स्माकमरिसमूहंनाशयतु // 33 // वसुलक्षमष्टलक्षहयारिजैःकरवीरैः // हृयादित्याशीलिङ्॥३४॥ दिगि विद्युद्रोचिर्हस्तपāर्दधानापाशशक्तिमुद्गरंचांकुशंच // नेत्रोद्भूतवीं तिहोत्रिनेत्रावाराहीन शत्रुवर्गक्षिणो तु // 33 // वसुलक्षंजपित्वांतेविल्वपत्रैईयारिजः॥धात्रीफलै गराजैःकुशैहूयाद्दशांशतः॥३४॥ पूर्वोदितेयजेत्पीठेषडंगैर्दिगिनायुधैः // एवंसिद्धमनुमंत्रीयोजपेत्शनिग्रहे // 35 / / सृणिनाशत्रुमानी यवद्धापाशेनतंदृढम् // मुद्रेणन्नतीमूनितांस्मरन्नयुतंजपेत् // 36 // जुहुयादयुतंशुबैर्वनशुष्कैस्तुगो मयैः // प्रक्षिपेद्धोमजंभस्मवापीकूपादिपाथसि // 37 // तत्पानीयस्यपातारोम्रियतेरिपोध्रुवम् // निर्यातिहित्वास्थानवाविद्विपंतःपरस्परम् // 38 // शत्रुनिग्रहणेदशास्मरणादपिमंत्रिणाम् // प्रकीर्तितेयंवाराहीधूमावत्यधुनोच्यते // 39 // सात्वतत्रितयंसार्पितत्राोचन्द्रशेखरौ // वैकुंठोऽ नन्तसंयुक्तोजलंनेत्रयुतोहरिः॥४०॥ नादिक्पालाः॥३५॥ मुणिनांकुशेन॥ ३६॥पाथसिजले // 37 // 38 // 39 // ज्येष्ठामंत्रमाह // सात्वतेति // साघिउयुतं // सात्वतत्रितयं धत्रयं // तेषुद्वौसबिंदू // *** // अनंतसंयुतोवैकुंठः ॥आयुतोमः॥ मा॥ज लंवः॥ नेत्रयुतोहरिः // इयुतस्तः // 40 // For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०म० सटीक वह्रिजायास्वाहा ॥४१॥४२॥४३॥४४॥४५॥रुषा॥अक्षमा // 46 // 4 // क्षपाशनोरात्रिभोजी // 48 // 49 // अष्टार्णोवह्निजायान्तोमंत्र शत्रुविनाशनः // पिप्पलादोनिज्ज्येष्ठामुनिश्छंदोस्यदेवता // 41 // आयबीजद्वयांतस्थैःषड्वर्णैरंगमीरितम् // श्मशानेसंस्थितांध्यायेज्ज्येष्ठांवायससंस्थिताम् // 42 // अत्युच्चामलिनांवराखिलजनोद्वेगावहादुमनारूक्षाक्षित्रितयाविशालदशनासूर्योदरीचंचला // प्रस्वेदां बुचिताक्षुधाकुलतनु कृष्णातिरूक्षप्रभाध्येयामुक्तकचासदाप्रियकलिधूमावतीमंत्रिणा // 43 // एवं ध्यात्वाजपेल्लऐश्मशानविगतांबरः।। निशाभोजीदशांशेनतिलैहवनमाचरेत // 44 // पूर्वोक्तेपूजये त्पीठेज्येष्ठांशत्रुविनष्टये // केसरेषुपडंगानिपत्रस्थाअष्टशक्तयः // 45 // क्षुधातृष्णारतिनिद्रानिक्र तिर्दुर्गतीरुषा॥ अक्षमतिततोदेवाइंद्राद्याआयुधानिच // 46 // एवंज्येष्ठांसमाराध्यसिद्धमत्रःप्रजायते॥ उपोष्यकृष्णभूताहेनग्नोमुक्तशिरोरुहः // 47 // शून्यागारेश्मशानेवाकांतारेभूधरेथवा // प्रत्यहं प्रजपेनिर्भीया॑यन्देवीक्षपाशनः // 18 // एवंलॉजपन्मंत्रीनाशयेदचिरादरिम् // जुह्वतालवणो पेतांराजिकांनिशितत्फलम् // 49 // 1 धूवूधूमावतिस्वाहेत्यष्टार्णः // 2 अस्यधूमावतीमंत्रस्पपिप्पलादऋषिःनीवृच्छंदःज्येष्ठादेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः // | // 53 // For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SADUDDISEMEE कर्णपिशाचिनीमाह // तारइति // तारॐ॥मायाह्रीं। कर्णपिशास्वरूपं // कूर्मधांतिमौचनौ॥ सहशो इयुतौ॥ चिनि // कर्णेमेस्वरूपं ॥विधिकः // दंडीथः / इरोयः॥ ठद्वयंस्वाहा // 50 // षडंगमाह / एकेति // तारोमायाकापशासहशौकूर्मधांतिमौ॥कर्णेमेविधिदंडीरोठद्वयंषोडशार्णकम्॥५०॥मनुष्यादिपूर्वो तंदेवतातुपिशाचिनी // एकैकांगाग्निरामाक्षिवर्णैरंगमनोमतम्॥५१॥चितासनस्थांनरमुंडमालांविभूषि तामस्थिमणीनकराजैः॥प्रोतांनरात्रैर्दधतींकुवस्त्रांभजामहेकर्णपिशाचिनीताम्॥५२॥श्मशानस्थःशव स्थोवाजपेल्लसँसमाहितः॥ दशांशंजुहुयावह्नौविभीतकसमिद्वरैः॥ 53 // यजेत्पूर्वोदितपीठेषडंगा मरहेतिभिः // सिद्धमंत्रजपंकुर्यादधस्ताददरीतरोः॥५४॥अशुचिर्लक्षसंख्यातंतेनतुष्टापिशाचिनी // परचित्तस्थितांवाताभाविनीचवदेत्श्रुतौ // 55 ॥ध्रुवःशिवारमाशीतलायैहार्दनवाक्षरः॥ उपमन्युश्च बृहतींशीतलामुनिपूर्विका // 56 // अंगानिषट् // अग्नयस्त्रयोरामाश्च // 51 // 52 // 53 // 54 // 55 // शीतलामाह // ध्रुवइति // ध्रुवॐ॥ शिवाहीं // रमाश्रीं // शीतलायैस्वरूपं // हार्दनमः // 16 // / १ॐहींकर्णपिशाचिनिकणेमेकथयस्वाहेतिषोडशार्णः॥ 2 अस्यकर्णपिशाचिनीमंत्रस्यपिप्पलादऋषिःनीवच्छंदःकर्णपिशाचिनीदे मावताममाभीष्टसिद्धार्थेजपविनियोगः। 3 ॐहीश्रीशीतलायैनमइतिनवार्णः // अस्यशीतलामंत्रस्यउपमन्युऋषिःबृहतीछंदःशीतलादेवता ममाभीष्टसिद्धयर्थेजपावनियोगः // Latestanyasatssexy29395 5 9 For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त ar ANA मै० म०पडंगमाह // अडिति // ह्रीं श्रींहृत् // ह्रीं श्रींशिरइति // ध्यानमाह // दिगिति // मार्जनीदक्षे // शूर्पवामे // पदीर्घयुशिवालक्ष्मी:जाभ्यास्यात्पडंगकम् // दिग्वाससंमार्जनिकाचसूर्यकरद्वयेसंदधतींधना भाम्॥श्रीशीतलांसर्वरुजार्तिनष्टौरक्तांगरागस्रजमर्चयामि // 17 // अयुतंप्रजपेन्मंपायसेनसहस्रक म् // जुहुयात्पूर्ववत्पीठेस्फोटानांनाशिनीत्वियम् // 58 // नाभिमात्रेजलेस्थित्वायःसहस्रंजपेन्मनुम्॥ तेनसंमार्जितास्तीवास्फोटानश्यतितत्क्षणात् // 59 // प्रणवःकमलास्वनेश्वरिकार्यचमेवदः // स्वाहात्रयोदशाोयमंत्रोमुन्यादिपूर्ववत् // 60 // अक्षिवेदाक्षि युग्मनेत्राणैरंगकंमनोः॥ विन्यस्यदे वतांध्यायेत्स्वप्नेशीमिष्टसिद्धये // 61 // वराभयेपद्मयुगंदधानांकौश्चतुर्भिःकनकासनस्थाम् // सितांबरांशारदचंद्रकांतिस्वप्नेश्वरींनौमिविभूषणाढ्याम् // 62 // // 57 // 58 // 59 // स्वप्नेश्वरीमाह // प्रणवइति // प्रणवॐ // कमलाश्रीं // स्वरूपमन्यत् // 60 // 61 // ध्यानमाह / वरेति ॥वरोदक्षे // 6 // 1 ॐश्रीस्वप्नेश्वरिकार्यमेवदस्वाहेतित्रयोदशाणः // // 5 // an For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिदशाइंद्रादयः॥ 63 // 64 // 65 // मातंगीमाह // तार इति // तारॐ मायाह्रीं / वाऐं // लक्ष्मीः श्रीं॥ हृतनमः॥ निद्राभः॥ स्मृतिर्गः॥ लांतिमोवः // सनेत्रोहरि ति // उच्छिष्टचांडास्वरूपम् // नेत्रयुता लक्षंजपेद्विल्वपत्रैर्जुहुयात्तदशांशतः॥ पूर्वोदितेयजेत्पीठेषडंगत्रिदशायुधैः॥ 63 // रात्रौसंपूज्यदे वेशीमयुतंपुरतोजपेत् // शयीतब्रह्मचर्येणभूमौदर्भास्थिताजिनः॥ 64 // देव्यैनिवेद्यस्वंहाईसास्वप्ने वदतिध्रुवम् // यक्षिण्याद्याइतिप्रोच्यमातंगीगद्यतेधुना॥६५॥ तारोमायाचवाग्लक्ष्मीनिंद्रास्मृति लांतिमाः॥ सनेत्रोहरिरुच्छिष्टचांडानेत्रयुताक्रिया॥६६॥श्रीमातंगेश्वरिपदंसर्वशूलीनलांतशम्।।करिव ह्निप्रियामंत्रोद्वात्रिंशद्वर्णवानयम्॥६॥मतंगोमुनिरस्योक्तोनुष्टुप्छंदस्तुदेवता॥मातङ्गीसर्वजनतावशी करणतत्परा॥६॥चतुर्भिःषभिरंगैश्चर्षडष्टनयनैरपि।मंत्रोस्यवर्णैरंगानिन्यस्यदेवी विचिंतयेत्॥६९॥ क्रियालि // श्रीमातंगेश्वरिसर्वेतिस्वरूपम् // शूलीजः॥ नस्वरूपम् // लांतोवः // शंस्वरूपम् // करिस्वरूप पम् // वहिप्रियास्वाहा // 66 // 67 // 68 // 69 // / 1 ह्रीश्रींनमोभगवतिउच्छिष्टचांढालिश्रीमातंगेश्वरिसर्वजनवशंकरिस्वाहा // अस्पमंत्रस्यमतंगऋषिरनुष्टुपूछंदोमातंगीदेवताममा भीष्टसिद्ध्यर्थेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सटीक मं० म० // 5 // त०७ // 70 // 71 // 72 // मातङ्गयंताइमाः // विभूत्यैमातंग्यैनमइत्यादि // 73 // पीठमंत्रमाह // सर्वेति // घनश्यामलांगीस्थितारनपीठेशुकस्योदितंशृण्वतीरक्तवस्त्राम् // सुरापानमत्तांसरोजस्थितांश्रींभजे वल्लकीवादयंतीमतंगीम् // 70 // जपोयुतंसहस्रंतुहोमःपुष्पैर्मधूकजैः // मध्वक्तैःपूजयेत्पीठेवक्ष्यमाण विधानतः // 71 // त्रिकोणाष्टदलद्वंद्वंकलास्रचतुरस्रकम् // पीठंकृत्वायजेत्तस्मिन्पीठशक्तिर्न वेष्टदाः // 72 // विभूतिरुन्नतिःकान्तिःसृष्टिः कीर्तिश्चसन्नतिः॥ व्युष्टिरुत्कृष्टिऋद्धीचमातंग्यता:समी रिताः॥७३॥ सर्वशक्तिकर्मणांतेलासनायहृदंतिकः॥तारमायांवाग्रमाद्यापीठमंत्रःकलार्णकः // 7 // विश्राण्यासनमेतेनपाद्यादीनिप्रकल्पयेत् // मूलेनपुष्पपूजांतेकुर्य्यादावरणार्चनम् // 75 // त्रिकोणेष्वर्चयेत्तिस्रोरतिप्रीतिमनोभवाः // केसरेषुपडंगानिमातृश्चदलमध्यगाः // 76 // द्वितीयेष्टद लेपूज्याअसितांगादिभैरवाः // पोडशाख्येतुवामाख्याज्येष्ठारौद्रीप्रशांतिका // 77 // श्रद्धामाहेश्वरी चापिक्रियाशक्तिश्चसप्तमी। सुलक्ष्मीःसृष्टिमोहिन्यौप्रमथाश्वासिनीतथा // 78 // विद्युल्लताचचिच्छ क्तिःसुंदरीनंदयासह // नंदबुद्धिःषोडशीतपूजनीया प्रयत्नतः॥७९॥ ॐहींऐंश्रीसर्वशक्तिकमलासनायनमइति // 74 // विश्राण्यदत्त्वा / / 75 // 76 // 77 // 78 // 79 // For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामहादिकामहामातंगी // 80 // 81 // ध्रुवइति / आवरणदेवतानामादौधुवादीन् // अंतेमातंगीपदचयो चतुरस्रेचतुर्दिामातंगीसामहादिका // महालक्ष्मीस्तथासिद्धपुनर्वह्नयादिकोणतः // 80 // विनेशदुर्गा बटुकक्षेत्रेशादिग्धवास्ततःवित्राद्याःपूजनीयाःस्युरित्यंसिद्धिर्मनोभवेत् // 8 // ध्रुवंभवानीवाग्वीजरमा मादौप्रयोजयेत्॥सर्वावरणदेवानांमातंगीपदमंततः॥८२॥ मल्लिकाकुसुमैर्होमाद्भोगोराज्यंचबिल्वजैः॥ पत्रैःफलैर्वावश्यास्याजनताब्रह्मवृक्षजैः।।८३॥ रोगनाशोमृताखंडैनिवैःश्रीस्तंडुलैरपि।आकृष्टिलवणैर्वि द्यात्तगरे।तसर्जलम् ॥८॥लवनिम्बतैलाक्तै शत्रुनाशोधसाशनम्॥निशाचूर्णयुतैोणे)मात्स्यात्स्तं भनंनृणाम् // 85 // रक्तचंदनकर्च्रमांसीकुंकुमरोचनाः॥ चंदनागुरुकर्पूरगंधाष्टकमुदीरितम् // 86 // एतद्धोमाजगद्वश्यंजायतेमंत्रिणोध्रुवम् // एतत्पिष्ट्वाशतंजावातिलकेनजगत्प्रियः // 87 // कदलीफ लहोमेनसर्वेष्टंसमवाप्नुयात् // किंबहूक्तेनमातंगीपूजिताकामदानृणाम् // 88 // जयेत् ॥ॲहींऐंश्रीरत्यैमातंग्यैनमइत्यादि // 82 // 83 // अमृताखंडैर्गुडूचीशकलैः॥ 84 // अंधसान्नेनहुते नाशनमन्त्रप्राप्यते // 85 // 86 // 87 // 88 // For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक त०७ // 56 // // 89 // 90 // 91 // बाणेशीमाह // सत्यइति // सत्योदः // अग्नियुक्तोरेफयुतः // अनंतेंदुसंयुतः॥ आबिंदुयुतश्चतेनद्रामित्यादिबीजं // सएवरेफयुतोदः // आस्थानेशांतिरीतेनयुतोद्रीं // इंद्रशांति मध्वक्तलोणरचितांपुत्तलींदक्षिणांघ्रितः॥ हूयादृष्टोत्तरशतंखादिरानौवशंनिशि॥८९॥शालिपिष्टमयींतां तुभक्षयेत्स्त्रीवशीकृतौ।कृष्णभूतनिशिध्वांक्षोदरेक्षित्वासमुद्रजम् // 90 // नीलसूत्रेणसंवेष्टयचिताग्नौपद हेदमुम्॥सहस्रजप्ततद्गमयस्मैदद्यात्सदासवत्॥९॥सत्योगियुक्तो तेंदुसंयुक्तबीजमादिमम् ॥एतस्या नंतसंस्थानेशांतियुक्तोद्वितीयकम् // 92 // ब्रह्मेन्द्रशांतिविद्वाव्यस्तृतीयंवजिमीरितम् // भूधरोवसुधा पीशचंद्राढयस्तत्तुरीयकम्।।९३॥सर्गीहंस पंचम स्यात्पंचवीजात्मकोमनुः।ऋषिःसम्मोहनश्छन्दोगा यत्रीदेवतापुनः॥९॥वाणेशीव्यस्तवर्णेनमंत्रेणोक्तंपडंगकम्।।मूर्भिपादेमुखेगुह्येहृदयेपंचदेवताः॥९॥ न्यस्तव्याःपंचवीजाद्याद्राविणीक्षोभिणीपुनः॥ वशीकरण्याकर्षण्यौसंमोहिन्यपिपंचमी // 96 // बिंद्वाढयोब्रह्मालईबिंदुयुतःकाक्लीं // वसुधाीशचंद्राढ्योलउ // बिंदुयुतोभूधरोवः // ब्लू // सर्गीहं। सःसः॥९२॥९३॥९४॥ व्यस्तसर्वेणपंचबीजैःपंचांगानिसर्वेणास्त्रम् // पञ्चबीजाद्याद्राविण्याद्यादेवतामूद्धा दौन्यस्याः॥ द्रांद्राविण्यैनमोमूीत्यादि // 95 // 96 // १द्रांद्रीक्लींब्र्सः 5 अस्यबाणेशीमंत्रस्यसंमोहनऋषिःगायत्रीछंदः बाणेशीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org ध्यानमाह // उद्यदिति // बाणांकुशोदक्षयोः // 97 // 98 // 99 // 100 // 101 // अनंगाद्याकुसुमा उद्यद्भास्वत्संनिभारक्तवस्त्रानानारत्नालंकृतांगीवहंती // हस्तैःपाशंचांकुशंचापबाणौवाणेशीन काम पूर्तिविधत्ताम् // 97 // एवंध्यात्वाजपेल्लक्षपंचकंतदशांशतः // हुत्वाबाणेश्वरीदेवीपूजयेद्विधि पूर्वकम् // 98 // मोहिनीक्षोभिणीवासीस्तंभिन्याकर्षिणीतथा // द्राविण्याह्लादिनीक्किन्नाकेदिनीपीठशक्त यः॥९९॥वाणेशीयोगपीठायनमोमूलादिकोमनुः॥ दत्त्वातेनासनमंत्रीतस्मिन्देवीप्रपूजयेत्॥१०॥ आदौषडंगान्याराध्यदिश्वग्रेद्राविणीमुखाः॥ दलेष्वनंगरूपास्यादनंगमदनातथा // 1 // अनंग मन्मथानंगकुसुमामदनापरा // अनंगाद्यातथानंगशिशिरानंगमेखला // 2 // अनंगदीपिकेत्यष्टौ शक्राद्याआयुधान्यपि // एवंसिद्धमनुमंत्रीकाम्येषुविनियोजयेत् // 3 // दधियुक्तैरशोकस्यपुष्पोंदि वसत्रयम् // सहस्रंजुहुयात्तस्यवश्याःस्युःप्राणिनोखिलाः॥४॥लाजैदेधियुतोमान्मंत्रीकन्यामवाप्नु HI यात् // कन्यापिवरमाप्नोतिमासद्वितयमध्यतः // 5 // पराअनंगकुसुमेत्यर्थः // 102 // 103 // 104 // 105 // For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०म०ससंपातमआहुतिशेषस्यपात्रांतरेप्रक्षेपःसंपातः॥ तद्युतंहुत्वासंपाताज्यंस्त्रियैदद्यात् // किंभूतायै // विश्रा सटीक णितश्रियैदत्तदक्षिणायै॥दक्षिणामादावादायपश्चादाज्यंदद्यादित्यर्थः।अन्यथाफलाभावात् // 106 // 107 // // 57 // कामेशीमाहामायेतिमायाह्रीं।मन्मथः क्लीं।वाग्बीजऐं।ब्लू॥स्त्रीस्वरूपं॥१०८॥ध्यानमाह॥पाशेक्षुचापेवा गव्याज्येनससंपातंहुत्वासाष्टशतंनरः॥ आज्यसंपातितंदद्यातस्त्रियविश्राणितश्रिये // 6 // सातदाज्यं निजंकांतंभोजयित्वावनियेत् // सुगंधकुसुमैर्तुत्वाधनमाप्नोतिवांछितम् // 7 // मायामन्मथवाग्बी जे स्त्रीपंचाक्षरोमनुः // ऋषिश्छंदश्चपूर्वोक्तेकामेशीदेवतास्मृता // 8 // पाशांकुशाविक्षुशरासवाणौ करैवहतीमरुणांशुकाभ्याम् // उद्यत्पतंगाभिरुचिमनोज्ञांकामेश्वरीरत्नचितांप्रणौमि // 9 // भूतलक्षंज पित्वैनामर्द्धलक्षंपलाशजैः।।कुसुमैर्जुहुयात्पीठेपूर्वोक्तेपूजयेदिमाम्॥११०॥आदावंगानिसंपूज्यदिक्षुमध्ये मनोभवम्॥मकरध्वजकंदौमन्मथंकामदेवकम् // 11 // ततोह्यनंगरूपाद्याइंद्राद्यस्त्राणितहिः / / एवं सिद्धमनुमंत्रीपूर्वोक्तयोगमाचरेत् // 12 // इतिमंत्रमहोदधौयक्षिण्यादिमंत्रकथनंनामसप्तमस्तरङ्गः // 7 // मयो।उद्यन्यासहस्रांशुरादित्यस्तत्समकांतिरत्नश्चितांव्याप्तांप्रणौमिप्रकर्षेणस्तौमि॥१०९॥भूतलक्षपंचलक्ष ११०॥कामदेवमध्ये॥११॥योगं प्रयोग॥११२॥इतिमंत्रमहोदधिनौकायांयक्षिण्यादिकथनंसप्तमस्तरंगः 7 // Nan7 // 1 ह्रीक्लीऍब्लूंनीं // इतिपंचाणः / / अस्यकामेशीमंत्रस्यसंमोहनऋषिःगायबीछंदःकामेशीदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 1 // बालामंत्रमाह // दामोदरइति // दामोदरऐ॥ चंद्रयुतीबिंदुयुतः॥वागितिसंज्ञास्य // विधिःकः / / वासवशांतीदुयुतः॥ लईबिंदुयुताक्लीं।भृगुःसः॥ संकर्षणऔ॥ तेनविसर्गेणचयुतःसौः॥२॥३॥ मध्यां अथवालांप्रवक्ष्यामिमंत्रीसंसेव्ययांद्रुतम् // बृहस्पतिःकुबेरश्चजायतेविद्ययाधनैः॥१॥ दामोदरश्चंद्रयुत आयवाग्वीजमीरितम् // विधिर्वासवशांतीदुयुक्तंकामाभिधपरम् // 2 // संकर्षणविसर्गाढयोभृगुस्तार्ती यमीरितम्॥त्रिबीजीगदितावालाजगत्रितयमोहिनी॥३॥दक्षिणामूर्तिपंक्तीचमुनिश्छंदःक्रमावस्मृतम् // देवतात्रिपुरावालामध्यांतेशक्तिवीजके // 4 // नाभेरापादमागंतुनाभ्यांतंहृदयात्परम् / / मूर्ध्निहृदं तंतार्तीयंक्रमादेहेप्रविन्यसेत् // 6 // आवामकरेदक्षकरेन्यदुभयोःपरम् // पुनर्बीजत्रयंन्यस्येन्मूर्ध्निगुह्ये चवक्षसि // 6 // नवयोन्यभिधेन्यासेनवकृत्वोमनुंन्यसेत् // कर्णयोश्चिबुकेन्यस्येच्छंखयोर्मुखपंकजे॥७॥ तेमध्यंशक्तिः अंतेबीजम् // 4 // नाभेः पादांतमाद्यंबीजंन्यस्येत् // एवमपि // 5 // दक्षकरेऽन्यद्वितीयं // परंतृतीयंतूभयोःकरयोर्त्यसेत् // 6 // काँचिबुकमित्याद्यवयवानांत्रिकोणाकारत्वाद्योनिन्यासोयम् // 7 // 1 ऐक्कीसौः // इतित्रिवर्णः / 2 अस्यबालामंत्रस्यदक्षिणामूर्तिर्ऋषिःपंक्तिछंद त्रिपुराबालादेवतामध्यंक्लीशक्तिःअंतेसौःबीजममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक | त०८ मं०म० an८॥९॥वागिति॥ऐं रलौनमोगुह्ये // अंत्यादिकां // सौःप्रीत्यैनमोहदि // क्लींमनोभवायैनमोधूमध्ये // 10 // पुनर्वाक् // अंत्यकामाद्याअमृतेशीयोगेशीविश्वयोनीःएप्वेवगुह्यहृद्भूमध्येषुन्यसेत् // ऐंअमृतेश्यै // 18 // नेत्रयो सिकायांचस्कंधयोरुदरेतथा // न्यसेत्कूपरयो भौजानुनोर्लिंगमस्तके // 8 // पादयोरपिगुह्ये चपार्श्वयोर्हदयपुनः॥स्तनयो कंठदेशेचवामांगादिप्रविन्यसेत्॥९॥वाग्भवाद्यारतिंगुह्येप्रीतिमत्यादिका हृदि।कामवीजादिकांन्यस्येद्भूमध्येतुमनोभवा // 10 // पुनर्वागत्यकामाद्यास्तिस्रएष्वेवविन्यसेत् // अमृतेशीचयोगेशीविश्वयोनितृतीयकाम् // 11 // मूभिवक्रेहदिन्यस्येद्द्व चरणयोरपि // कामेशी पंचवीजाद्यान्स्मरान्मनोभवादिकान् // 12 // नमइत्यादि // 11 // मूर्तीति // कामेशीपंचबीजानि ह्रींक्तींऐब्लूस्त्रीमित्युक्तानि // तदाद्यान्मनोभवा दिकान् // मनोभवमकरध्वजकंदर्पमन्मथकामदेवाख्यान्स्मराशिरोमुखद्गुह्मपत्सुन्यसेत् // ह्रींमनो भवायनमइत्यादि॥१२॥ // 5 // १ह्रींमनोभवायनमःशिरसि / क्लीमकरध्वजायनमःमुखे / ऐंकंदर्पायनमाहृदि / ब्लूमन्मथायनमःगुह्ये // स्त्रींकामदेवायनमाचरणयोः॥ For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिरइति ॥बाणेशीबीजानि // द्रांद्रींक्तींब्लूसइति // तत्पूर्वाद्राविण्याद्याद्राविणीक्षोभणीवशीकरण्याक र्षणीसंमोहनीसंज्ञा-बाणदेवता शिरःपादमुखगुह्यहृत्सुन्यसेत् // द्रांद्राविण्यैनमःशिरसीत्यादि // 13 // षडंगमाह // तार्तीयेति // तार्तीयंसौः // वाऐं // तन्मध्यगतेनदीर्घाढयेनकामेनषडंगम् // सौः शिरःपन्मुखगुह्येषुहृदयेपंचदेवताः // द्राविण्याद्याक्रमान्यसेदाणेशीबीजपूर्विकाः // 13 // तार्ती यवागमध्यगेनकामेनस्यात्पडंगकम् // पदीर्घस्वरयुक्तेनततोदेवीं विचिंतयेत् // 14 // रक्तांबरांचं द्रकलावतंसांसमुद्यदादित्यनिभांत्रिनेत्राम् // विद्याक्षमालाभयदानहस्तांध्यायामिनालामरुणांबुज स्थाम् // 16 // लक्षत्रयंजपेन्मंत्रंदशांशंकिंशुकोद्भवैः॥ पुष्पैर्हयारिजापिजुहुयान्मधुरान्वितैः॥१६॥ नवयोन्यात्मकंयंत्रंबहिरष्टदलावृतम् // भूगृहेनपुनरूतपूजनायलिखेत्सुधीः // 17 // मध्ययोनौतुतार्ती यमष्टयोनिषुमन्मथम् // केसरेषुस्वरान्यस्येद्वर्गानष्टौदलेष्वपि // 18 // दलाषुत्रिशूलानिपमं मातृकयावृतम् // एवंविलिखितेयंत्रेपीठशक्तीःप्रपूजयेत् // 19 // इच्छाज्ञानक्रियाचैवकामिनी कामदायिनी // रतीरतिप्रियानंदामनोन्मन्यपिचांतिमा॥२०॥ कीऍहत् // सौक्कीऍशिरः॥ सौक्लूऐशिखेत्यादि // १४॥ध्यानमाह // रक्तेति // विद्याभयेवामयोः // अन्ययोरन्ये // 15 // 16 // पूजायंत्रमाह // नवेति॥स्पष्टम् // 17 // 18 // 19 // 20 // For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ET मोक मं०म० तपीठमंत्रमाह // व्योमहः तत्पूर्वतृतीयं // हसौ सदाशिवमहाप्रेतपद्मासनायनमइति // 21 // 22 // अं गपूजामाह // योनीति // मध्येयोनिमध्येएवाग्निनिक्रतिवाय्वीशानेषुहृच्छिर-शिखावाणिसंपूज्याग्नेनेत्रं // 19 // पीठशक्तीरिमाइष्ट्वापीठतमनुनादिशेत् // व्योमपूर्वतुतार्तीयसदाशिवमहापदम् // 21 // प्रेतपद्मासनं डेतनमोतःपीठमंत्रकः // षोडशार्णस्ततोमूतॊक्तायांमूलमंत्रतः // 22 // आवाझ्पूजयेदे॒वीमुपचा रैःपृथग्विधैः // देवीमिष्ट्वामध्ययोनौत्रिकोणेरतिपूर्विकाः // 23 // वामकोणेरतिदक्षेप्रीतिमओमनोभ वाम् // योन्यंतर्वह्निकोणादावंगानिपरिपूजयेत् // 24 // मध्ययोनेहिःपूर्वादिक्षुचाग्रेस्मरानपि // बाणदेवीस्तद्वदेवशक्तीरष्टसुयोनिषु // 25 // सुभगाख्याभगापश्चात्तृतीयाभगसर्पिणी // भगमाली तथानंगानंगायाकुसुमापरा // 26 // अनंगमेखलानंगमदनेत्यष्टशक्तयः // पद्मकेसरगाब्राह्मीमुखाःपत्रे पुभैरवाः॥२७॥दीर्घाद्यामातरःपूज्याह्रस्वाद्याश्चाष्टभैरवाः // दलागेष्वष्टपीठानिकामरूपाख्यमादिमम् ॥२८॥मलयंकोल्लगिर्याख्यंचौहाराख्यंकुलांतकम् // जालंधरंतथोड्यानंकोट्टपीठमथाष्टमम् // 29 // दिश्वस्त्रयजेत् // 24 // मध्ययोनेर्बहिर्भागेदिक्षुचतुरा-पंचममग्रेएवंकामान्यजेत् बाणदेवीद्राविण्याद्यास्तद्व तकामवतादिश्वग्रेचशक्ती:सुभगाद्या दीर्घाद्यामातरःआंब्रायैनमइत्यादिहस्वाद्याभैरवा-अंअसितांगायन मइत्यादि // 25 // 26 // 27 // 28 // 29 // For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशदिक्षुहेतुकादयोगणाः॥३०॥शकाद्यानस्वस्वदिश्वित्युक्तेःपूर्वावरणानिकल्पितदिक्ष्वेव॥एवंसर्वत्र॥३१॥ विदिशासु // अग्न्यादिषु // वस्वादयः // वसुभ्योनमइत्यादि // 32 // 33 // नंद्यावर्तस्तगरः॥ 34 // 35 // भूगृहेदशदिक्ष्वद्धैतुकंत्रिपुरांतकम् // वेतालमग्निनिर्बाचकालांतककपालिनौ // 30 // एकपादं भीमरूपंमलयंहाटकेश्वरम् // शकाद्यानायुधैसा स्वस्वदिक्षुसमर्चयेत् // 31 // तद्वहिर्दिा बटुकंयोगिनीक्षेत्रपालकम् // गणेशंविदिशास्वर्चेद्रसून्सूर्यानशिवांस्ततः॥ 32 // भूतांश्चेत्थंभजे दालानीशःस्याद्धनविद्ययोः // रक्तांभोजैर्हतेनार्योवश्या स्युःसर्षपैर्नृपाः // 33 // नंद्यावतराजवृक्षैः कुंदैःपाटलचंपकैः॥पुष्पैविल्वफलैर्वापिहोमाल्लक्ष्मी स्थिराभवेत् // 34 // अपमृत्युंजपेन्मंत्रीगुडूच्या दुग्धयुक्तया // पयोक्तदूर्वाहोमात्तुनीरोगायुःसमश्नुते // 35 // ज्ञानंकवित्वलभतेचंद्रागुरुपुरै तैः॥ द्विजेन्द्रावश्यतांयांतिकुसुमेरपराजितैः // 36 // कहारैःक्षत्रियाकर्णिकारजैक्षितिपांगनाः // कोरंट कुसुमैवैश्या पादजाःपाटलैहुतैः॥३७॥ चंद्रःकर्पूरः // पुरंगुग्गुलु // अपराजितायोन्याकारपुष्पवल्लीतदीयान्यपराजितानितैः // 36 // 37 // For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MH मं०म० सटीक त०८ Jur salसारघंमधु // 38 // तिलकमाह // रक्तेति // मांसीजटामांसी // 39 // भागानाह // भूमिरेकः // नं दानव // अब्धयश्चत्वारः॥ दिशोदश // निगमाश्चत्वारः॥रक्तचंदनमेकभागमित्यादि // एतान्येकीकृत्य पालाशपुष्पैर्वासिद्धिरनाप्तिरन्नहोमतः // सारघक्षीरदध्यक्तान्लाजान्हुत्वारुजोजयेत् // 38 // रक्तचंदनकर्पूरकरागुरुरोचनाः॥ चंदनंकेसरंमांसीक्रमाद्भागैनियोजयेत् // 39 // भूमिचंद्रेकनंदाधैिं दिकसप्तनिगमोन्मितैः // श्मशानेकृष्णभूतस्यनिशिनीहारपाथसा // 40 // कुमार्यापेषयेत्तानिमंत्रे णाप्यभिमंत्रयेत् // विदधेत्तिलकंतेनदर्शनाद्वशयेजनान् // 11 // गजसिंहादिभूतानिराक्षसान्छा किनीपि // प्रयोगेष्वेषुकथ्यतेकमायानानिसिद्धये // 42 // मातुलिंगपयोजन्महस्तांकनकस निभाम् // पद्मासनगतांबालांलक्ष्मीप्राप्तौविचिंतयेत् // 43 // वरपीयूषकलशपुस्तकाभीतिधारिणी म् // सुधांसवंतीज्ञानाप्तौब्रह्मरंध्रवेचिंतयेत् // 44 // शुक्लांबरांशशांकाभांरोगनाशेस्मरेच्छिवाम् // | अकारादिक्षकारांतवर्णावयवरूपिणीम् // 45 // .. कृष्णचतुर्दशीरात्रौ कुमार्यासंपेप्यमूलेनाभिमंन्यतिलकंकुर्यात् // वशयेदितिशाकिन्यतानित्यर्थः॥ 40 // // 41 // 42 // ध्यानभेदानाह॥मातुलिंगेति // मातुलिंगंबीजपूरंतदक्षे // 43 // रोगनाशध्याने // वरामृत कुंभौदक्षयोः // 44 // 45 // For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BOSS वशीकरणध्यानेऽकुशोदक्षे // 46 // बीजानामितित्रयाणामित्यर्थः // 47 // वाग्बीजध्यानमाह॥विद्येति // सृणिपाशधरादेवीरनालंकारभूषिताम्॥प्रसन्नामरुणांध्यायेद्वशीकरणसिद्धये // 46 // अथप्रत्येकमंत्रस्य / जपध्यानविधिब्रुवे॥ शापोद्धारप्रकारंचवीजानांदीपिनीरपि॥४७॥विद्याक्षमालासुकपालमुद्राराजत्करां कुंदसमानकांतिम् // मुक्ताफलालंकृतिशोभितांगीवालांस्मरेद्वाङ्मयसिद्धिहेतोः ॥४८॥ध्यात्वैवंवाग्भवं लक्षवयंशुक्लांबरावृतः॥शुलचंदनलिप्तांगोमौक्तिकाभरणान्वितः॥४९॥जपित्वातदशांशेनपालाशकुसुमै नवैः // जुहुयान्मधुराक्तैर्यःसकविर्युवतिप्रियः // 50 // भजेत्कल्पवृक्षाधउद्दीप्तरत्नासनेसन्निषण्णांमदा धूर्णिताक्षीम् // करैर्वीजपूरंकपालेषुचापंसपाशांकुशंरक्तवर्णीदधानाम् ॥५१॥ध्यात्वादेवींजपेल्लक्षत्रयं योमध्यवीजकम् // रक्तवस्त्रावृतोरक्तभूषणोरक्तलेपनः // 52 // दशांशंमालतीपुष्पैश्चंद्रचंदनलोलि तैः॥ जुहुयात्तस्यवश्याःस्युस्त्रिलोकीजनताःक्षणात् / / 53 // अक्षमालाज्ञानमुद्रेदक्षयोः॥४८॥ 49 // 50 // कामबीजध्यानमाह // कल्पति॥बीजपूरबाणांकुशादक्षेषु // कपालचापपाशावामेषु // निषण्णांस्थिताम् // षडस्तेयम् // 51 // 52 // 53 // HREERIESsss. S For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०८ मं०म० तृतीयबीजध्यानमाह // व्याख्यानेति // व्याख्यानमुद्राक्षस्रजौदक्षयोः // 54 // 55 // 56 // 57 // शापोद्धारप्रकारमाह // योजपेदिति // आद्येएतान् योजपेत् // वाराहोहः॥भृगुःसः // पावकोरः॥ तेनह्रौं // 6 // व्याख्यानमुद्रामृतकुंभविद्याअक्षस्रजंसंदधीकराग्रैः॥ चिद्रूपिणीशारदचंद्रकांतिवालांस्मरेन्मौक्तिकभू पिताङ्गीम् // 54 // ध्यात्वैवंचरमंबीजंजपेल्लक्षवयंसुधीः॥ सितवस्त्रानुलेपाढ्यमात्मानंदेवतांस्मरे त् // 55 // मालतीकुसुमैर्हत्वाचंदनाक्तैर्दशांशतः // लक्ष्मीविद्यासुकीर्तीनामाधारोजायतेचिरात् // 56 // देव्याशप्ताकीलिताचविद्येयंतन्त्रसिद्धिदा // शापोद्धारमथोत्कीलंविधायजपमाचरेत् // 5 // योजपेदादिमेवीजेवराहभृगुपावकान् // मध्यमादौनभोहंसौमध्यमांतेनपावकम् // 58 // आदावते चतार्तीयकमात्खंधूमकेतनम् // एवंजप्ताशतविद्याशापहीनाफलप्रदा // 59 // यद्वाद्येचरमेबीजेनैव रेफनियोजयेत् // शापोद्धारेप्रकारोन्योयद्वायंकीर्तितोबुधैः // 60 // द्वितीयस्यादौ॥ नमोहंसौहसौ // अंतेरेफः॥ तेनहसकलरीमितिकूटम् // तृतीयस्यादौ॥ खंहः॥ अंतेधूम केतनोरेफः॥ तेनहूसौः॥ एवंभैरवीजाता // अस्यांशतंजप्तायांबालाशापहीनास्यात् // 58 // 59 // यद्वा तत्रैवायेंत्येचबीजेरेफयोगाभावः॥ तेनहसौः॥ मध्यमंतेदेवः॥६० // 9229222249999999990HQuotestaram For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DO शापोद्धारेप्रकारांतरम् // नवार्णजपमाह॥आद्यमिति ॥ऐऐसौक्लीं क्लीं ऐंसौःक्लीं क्लीं एवंनवार्णः॥ शतंजप्तः शापनिवर्तकः // 61 // 62 // चेतनीमंत्रमाह // त्रीति // अधरणें // शांतिरी / अनुग्रहऔ // एतेत्रयः स्वराः॥केवलाश्चेतनीमंत्रः // शतंजप्तोबालांनिष्कीलांकरोति // आह्वादिनीमंत्रमाह // तारादीति // आद्यमायंचतार्तीयंकामःकामोथवाग्भवम् // अंत्यमंत्यमनंगचनवार्णःकीर्तितोमैनुः // 61 // जप्तोयं शतधाशापंबालायाविनिवर्तयेत् / चेतन्याह्नादिनीमंत्रौजप्तौनिष्कीलताकरौ // 62 // त्रिस्वराश्चेतनी मंत्रोधार शांतिरनुग्रहः!! तारादिहृदयांतःस्यात्कामआह्लादिनीमनुः // 63 // तथात्रयाणांबीजानां दीपनैर्मनुभिस्त्रिभिः // सुदीप्तानविधायादौजपेतानिष्टसिद्धये // 64 // वदयुग्मंसदीर्घावुस्मृ तिबालावनंतगौ // सत्यःसनेत्रोनस्तादृग्वाग्नवार्णाद्यदीपिनी // 65 // क्लींनमइति // अयमप्युत्कीलनकरः॥ 63 // 64 // वाग्बीजस्यदीपनीविद्यामाह // वदेति // सदीर्घा बुवा // अनंतगौस्मृतिबालौ। आस्थितौगवौ // तेनग्वा // सनेत्रःसत्योदि // तादृग्नानिः // वाक् ऐं // इयमाद्यस्यबीजस्यदीपनीप्रकाशकीं // 6 // १ऐऐसौलीकीऍसौःसौःक्लीं // इतिनवाणः / 2 वदवदवाग्वादिनिएँ / For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org To1 // 6 // कामबीजस्यदपिनीमाह // क्लिनेइति।स्वरूपम् // वैकुंठोमः॥ दीर्घखंहा॥अंतिमाक्षः॥ सद्यगाओगतः॥ क्षोसटीक सचंद्रानिद्राभंकुरुस्वरूपं // शिवार्णएकादशवर्णामध्यबीजस्यदीपनी // 66 // तारइति // तार-प्रणवः // क्लिन्नेक्लेदिनिवैकुंठोदीर्घखसद्यगोंतिमः // निद्रासचंद्राकुर्वताशिवार्णामध्यदीपिनी // 66 // तारो त०८ मोक्षंचकुर्वतापंचा'त्यस्यदीपिनी // दीपिनीमंतरावालाराधितापिनसिध्यति // 67 // इदंरह स्यनाख्येयंकृतघ्नेकितवेशठे // परीक्षितायदातव्यमन्यथादातृदोपदम् // 68 // वागंत्यकामानप्रजपे दरीणांक्षोभहेतवे / कामवागंत्यवीजानित्रैलोक्यस्यवशीकृतौ // 69 // कामांत्यवाणीवीजानिमुक्तये नियतोजपेत् // पूजाविधौतुबालायास्त्रिविधानर्चयेद्गुरून् // 70 // Dalमोक्षंकुर्वितिस्वरूपम् ॥अंत्यस्यबीजस्यदीपिनी // उक्तांदीपिनीम् // अंतराविना॥आराधितापिबालान सिद्धयति॥ 67 // 68 // जपभेदातकामभेदेनाह // वागिति // ऐसौंक्लीमित्यरिनाशाय // क्लींऐसौरितिवशी करणे // 69 // क्लींसौः ऐमितिमुक्त्यै // 70 // // 2 // १किन्नेक्लेदिनिमहाक्षोभंकुरु // 2 ॐमोक्षंकुरु // For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिव्यौघानाह // परप्रकाशइति आनंदपदपश्चिमाइतिवक्ष्यमाणत्वात्परप्रकाशानंदायनमइत्यादिप्रयोगः // 71 // 72 // सिद्धौघानाह // ईशानाख्यइति // यंत्रमाह // नवेति॥गायत्र्यास्त्रिपुरागायत्र्यावक्ष्यमाणा दिव्यौपश्चेतिसिद्धौधोमानवौघइतित्रिधा // परप्रकाशःपरमेशानःपरशिवस्तथा // 71 // कामे श्वरस्ततोमोक्षःषष्ठःकामोमृतोंतिमः // एतेसप्तैवदिव्यौघाआनंदपदपश्चिमाः॥ 72 // ईशानाख्यस्त त्पुरुषोघोराख्योवामदेवकः // सद्योजातइमपंचसिद्धौघाख्याःस्मृताबुधैः // 73 // मानवौष प्रविज्ञ यःस्वगुरो संप्रदायतः॥ नवयोन्यात्मकेयंत्रंविलिखेन्मध्ययोनितः // 74 // प्रादक्षिण्येनबीजानित्रिवार साधकोत्तमः // त्रीस्त्रींन्वर्णास्तुगायत्र्याअष्टपत्रेषुसंलिखेत् // 75 // बहिर्मातृकयावेष्टयतदहि भूपुरद्वयम् // कामवीजलसत्कोणंव्यतिभिन्नंपरस्परम् // 76 // यंत्रंत्रैपुरमाख्यातंजप्तसंपातसा धितम् // बाहुनाविधृतंदद्याधनंकीर्तिसुखंसुतान् // 77 // यावर्णत्रयंप्रतियंत्रलिखेत् // 73 // 74 // 75 // भूपुरद्वयंचतुष्कोणद्वयम् // कीदृशंपरस्परंव्यतिभिन्नम्॥एकवि दिगातकोणम् // अपरंदिगातकोणमित्यर्थः॥ 76 // संपातसाधितम् // आहुतिशेषघृतेनसंयोजितम् // 7 // For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 63 // त०८ गायत्रीमुद्धरति // कामेति // कामकीं // भगिएयुतविषमामे // बकाशः // खगीशंवकारमारूढःश्वः॥ सनेत्रःअग्निारि // स्वरूपमन्यत् // 78 // 79 // बालाभेदेप्रथममंत्रांतरमाह // मायोति|मायाहीं॥ काम की कामांतेत्रिपुरादेविविद्महेकाविषभगि // बकःखड्गीशमारूढःसनेत्रोनिश्चधीमहि // 78 // तन्नः किन्नेप्रचोदांतेयादताकीर्तिताबुधैः // गायत्रीत्रैपुरसिर्वसिद्धिदासुरसेविता // 79 // अथवक्ष्यामि बालायाभेदानागमगोपितान् ॥मायाकामोंवरारूढंतार्तीयंत्र्यक्षेरोमनुः॥८०॥ अनुलोमप्रतिलोमाभ्यां वालामंत्रःपडक्षरः॥ बालाश्रीकामहल्लेखासंपुटोयनवाक्षरः॥ 81 // तार्तीयंसौः॥अंबरारुढंहयुतंहसौः प्रथमः // 80 // मंत्रांतरमाह // अनुलोमेति // ऐक्कीसौसौकींऐं द्वितीयः॥ मंत्रांतरमाह / / बालोत // श्रींक्कीह्रींऐंक्कींसोह्रींक्तींश्रीमितितृतीयः॥ 81 // 1 क्लींत्रिपुरादेविविद्महेकामेश्वरीधीमहितन्न-क्लिन्नेप्रचोदयात् / 2 हाँक्लीहसौः // इतित्र्यक्षरः। 3 श्रीक्लोहाऐं क्लींसोंह्रींक्लीं श्रीं / For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रांतरमाह // बालेति // ऐक्कीसौबालत्रिपुरेस्वाहेतिचतुर्थः // पंचममाह // वागिति // वाऐं // कामाक्लीं // व्योमभृग्विदुयुग्मतुम्हसबिंदुयुतऔं। हूसौं। दीर्घभूधरःवा पिनाकीला // स्वरूपमन्यत् // षष्ठमाह // मायेति // मायाह्नीं // लक्ष्मी श्रीं // मनोजन्माक्लीं ॥ठद्वयंस्वाहा स्वरूपमन्यत् // सप्तम माह // कमलेति // कमला श्रीं // पार्वतीह्रीं // कामातीं // स्वरूपमन्यत् // अष्टममाह // भृग्विति // भृगुः बालांतेवालत्रिपुरेस्वाहांतोदशवर्णवान् ॥वाकामोव्योमभृग्विन्दुयुग्मनुर्दीर्घभूधरः॥८॥पिनाकीत्रिपुरे सिद्धिदेहिहन्मनुवर्णवान् // मायालक्ष्मीमनोजन्मात्रिपुरांतेतुभारती // 83 // कवित्वंदेहिठद्वंद्वषो डशार्णोमनुस्मृतः॥ कमलापार्वतीकामस्त्रिपुरांतेचमालती // 84 // मासुखंततोदेहिस्वाहासप्तद शाक्षरः // भृगुब्रह्मक्रियावह्नियुक्ताशांतिस्सरात्रिपा // 85 // सः॥ ब्रह्माकः॥ क्रियालः॥ वहीरः॥ एतैर्युक्ताशांतिरीकारः॥ सरात्रिपा // सबिंदुः // स्कीं // दहनोरः / / अंत्याक्षः॥ महाकालोमः // भुजगोरः॥ पुरुषोत्तमोयः॥ एतेमन्व(शेंदुसंयुक्ताऔ // उबिंदुयुताः // तेन क्षमयौं / वाग्बीजंऐं // हृतनमः॥ स्वरूपशेषम् // वह्रिप्रियास्वाहा // 82 // 83 // 84 // 85 // 1 ऍक्लींसौःबालात्रिपुरेस्वाहा॥ 2 ऍक्लींसौंबालत्रिपुरेसिद्धिदेहिनमइतिचतुर्दशाणः / ३ह्रीश्रीक्लींत्रिपुराभारतिकवित्वंदेहिस्वाहेतिषोडशार्णः। For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 6 // ar // 86 // 87 // नवममाह // हृल्लेखति / हल्लेखात्रितयंहीं३ // अनंतआ स्वरूपमपरम् // 88 // दशममाह // मायति // मायाह्रीं ॥रमाश्रीं // मन्मथाक्लीं // स्वरूपशेषम् // 89 // एकादशमाह // हल्लेखेति // हल्लेखाहीं॥ दहनांत्यमहाकालभुजंगपुरुषोत्तमाः॥ मन्वर्षीशंदुसंयुक्ताद्वितीयंबीजमीरितम् // 86 // वागवीजत्रिपु रेसर्ववांछितंदेहिहत्ततः॥ वह्निप्रियासप्तदशवर्णोयंकीर्तितोमनुः // 87 // हल्लेखात्रितयंप्रौढत्रिपुरेनं तरोग्यम॥श्वर्य्यदेहिप्रियावह्नर्मनुरष्टादशाक्षरः॥८८॥मायारमामन्मथांतेत्रिपुरामदनेपदम्।।सर्वशुभंसा धयाने प्रियान्तोष्टादशाक्षरः॥८९॥ हृल्लेखाकमलानंगोवालांतेत्रिपुरेपदम्।।मदायत्तांततोविद्यांकुरुहृद्ध ह्निवल्लभा // 90 // मंत्रोविंशतिवर्णोयंमायापद्मामनोभवः॥ परापरेंतेत्रिपुरेसर्वमीप्सितमुच्यताम्॥९१॥ कमलाश्रीं // अनंगः क्लीं॥ हृत्नमः॥ वहिवल्लभास्वाहाशेषस्वरूपम् // 9 // द्वादशमाह // मायेति // मायाहीं॥पद्माश्रीं // मनोभवानी // 6 // 1 स्क्तींक्षम्यौऐत्रिपुरेसर्ववांछितंदेहिनमःस्वाहेतिसप्तदशार्णः // 2 ह्रींह्रींहीप्रौढत्रिपुरेआरोग्यमैश्वर्यदेहिस्वाहेत्यष्टादशार्णः॥ 3 ह्रींश्रीक्लीं। त्रिपुरामदनेसर्वशुभंसाधयस्वाहेत्यष्टादशाक्षरः। 4 ह्रींश्रींकींवालत्रिपुरेमदायत्तांविद्यांकुरुनमःस्वाहेतिविंशत्यर्णः / For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनलकांतास्वाहा // अन्यत्स्वरूपं॥त्रयोदशमाह॥कामेति // कामद्वंद्वंक्तींश्रमायुग्मंश्रींशामायायुक्हीं२॥ त्रिपुराललितेमदीप्सितायोषितंदेहिवांछितंकुरुस्वरूपंज्वलनकामिनीस्वाहा // 91 // 92 // 93 // साधयानलकांतायमन्योविंशतिवर्णकः // कामद्वंद्वरमायुग्मंमायायुकत्रिपुरापदम् // 92 // ललितेते / मदीप्सीतिनामंतेयोषितंपदम् // देहिवांछितमित्युक्त्वाकुरुज्वलनकामिनी // 93 // अष्टाविंशतिवर्णो यमनुरिष्टप्रियाप्रदः॥कामपद्माद्रिपुत्रीणांप्रत्येकंत्रितयंवदेत्॥९४॥त्रिपुरांतेसुंदरीतिसर्वजगदिनद्वयम् // वशंकुरुद्वयंमचंबलंदेह्यनलांगना॥९॥सर्वाभीष्टप्रदोमंत्रउक्तोवाणगुणाक्षरः॥चतुर्दशानामतेषांमनूनामृ पिरीरितः॥९६॥दक्षिणामूर्तिसंज्ञस्तुच्छंदोगायत्रमुच्यते॥त्रिपुरादेवतावालापडंगमातृकासमम् // 17 // चतुर्दशमाह // कामेति // कामपद्माद्रिपुत्रीणांप्रत्येकंत्रयम् // क्ली३श्रींहीं३इनद्वयं // मद्वयंमम // अनलां |गनास्वाहा॥स्वरूपमपरम् // 94 // 95 // एतेचतुर्दशबालाभेदातेषामृष्याद्याहादक्षिणेति // 96 // 97 // 1 ह्रींश्रीक्लीपरापरेत्रिपुरेसर्वमीप्सितंसाधयस्वाहेतिविंशत्यर्णः // 2 क्लीं क्लीं श्रीं ह्रींत्रिपुराललितामदीप्सितायोषितंदेहिवांछितंकुरुस्वा हेत्यष्टाविंशत्यर्णः // 3 क्लींकीकी श्रीश्रीश्राहीहीहींत्रिपुरसुंदरिसर्वजगत्ममवशंकुरुकुरुमांबलंदोहस्वाहेतिपंचत्रिंशदर्णः / 4 अस्यवालामंत्र | स्यदक्षिणामूर्तिऋषिःगायत्रीछंद:त्रिपुरावालादेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IRDP m URI सटीक मं०म० ध्यानमाह॥पाशेति॥अंकुशाक्षसूत्रेदक्षयोः॥९८॥हयारिकरवीर सायकैःपंचबाणदेवताभिः॥९९॥ दिगधी शास्वैरिति / दिशामीशैस्तदस्त्रैश्चेत्यर्थः।।१००॥बालामुक्त्वालघुश्यामामाह॥वाग्बीजमिति / वाग्बीजऐं। // 66 // पाशांकुशौपुस्तकमक्षसूत्रकरैर्दधानासकलामराया॑ // रक्तात्रिनेत्राशशिशेखरेयंध्येयाखिलद्धबैंत्रिपुरा त्रबाला।९८॥जपेल्लशंदशांशेनहोम-पुष्पैर्हयारिजैः // पूजापूर्वोदितपीठेगैरत्याद्यैश्चसायकैः // 99 // मातृभिर्दिगधीशास्त्रैःप्रयोगापूर्ववन्मताः॥ लघुश्यामामथोवक्ष्येस्मरणादिष्टदायिनीम् ।।१००॥वाग्वी जंहृदयंकर्णएकनेत्रःसनेत्रकावृषोमुकुंदमारूढोकूर्मोदीर्धेदुसंयुतः॥३॥ नंदीदीपोलिमातंगिसर्वातेस्या द्वशंकरि॥वैश्वानरप्रियांतोऽयमंत्रोविंशतिवर्णवान्॥२॥मदनोस्यमुनिःप्रोक्तोगायत्रीनिन्दादिका॥छंदो देवीलघुश्यामावीजवागवह्निवल्लभाशक्तिरुक्ताखिलाभीष्टसाधनेविनियोजनम् // 3 // हृदयंनमः // कर्णऊ॥सनेत्रएकत्र इयुतश्छछि / मुकुंदमारूढोवृषः॥ टस्थितःपाष्ठ // दीर्घन्दुसंयुतःकूर्मःचः॥ चां // 1 // दी?नंदी॥ डालिमातंगिसर्ववशंकरिस्वरूपम्॥वैश्वानरप्रियास्वाहा॥२॥ऐंबीजंस्वाहाशक्तिः॥३॥ BAL 1 ऐनमउच्छिष्टचांडालिमातंगिसर्ववशंकरिस्वाहतिविंशत्यर्णः। 2 अस्यलघुश्यामामंत्रस्यमदनऋषिःनिवृद्गायत्रीछंदादेवीलघुश्या AAIमादेवताएँबीजंस्वाहाशक्तिःममाखिलाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // // 6 // For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66065-65165 न्यासानाहावागितिारत्यैनमःमूनि // ह्रींप्रीत्यैनमोहृदि / क्लींमनोभवायैनमः पादयोः॥ इच्छेतिएँइच्छा शक्तयैनमोमुखे // ह्रींज्ञानशक्त्यैनमःकंठे ॥क्लींक्रियाशक्त्यैनमोलिंगे // 4 // 5 // बाणेशीबीजानि // द्रांद्रीं क्लींब्लूसःइति // तत्पूर्वकान् ॥द्रावणाद्यान्वाणान् // कास्यहृद्गुह्यपादेन्यसेत् ॥द्रांद्रावणबाणायनमइत्या , दिकंशिरःआस्यंमुख॥६॥७॥षडङ्गमाह॥रामति॥मातृकान्यासमाह॥इति // दीर्घस्वराआद्यायस्येदृशंवि वाक्पूर्विकारतिमूर्ध्निप्रीतिमायादिकांहृदि॥४॥ पादयोर्विन्यसेन्मंत्रीकामपूर्वामनोभवाम् // इच्छाशक्तिं ज्ञानशक्तिक्रियाशक्तिंक्रमान्यसेत् // 5 // वाङ्मायाकामवीजाबामुखेकंठेशिवेतथा॥द्रावणंशोषणवाणं तापनंमोहनाभिधम् // 6 // उन्मादनक्रमातपंचवाणेशीबीजपूर्वकान् // कास्यहृद्गुह्यपादेषुन्यस्यकुऱ्या त्पडङ्गकम् // 7 // रॉमाग्निगुणरामांगनेत्रवर्मनूत्थितैः // नमोंतकन्यकांताबाहयाद्याअष्टमा | तरः॥८॥ दीर्घस्वराधदीर्घाक्षाद्यष्टकाद्याविलोमतःविन्यस्यमूनिवामांसंवामपार्थेषुनाभितः॥९॥ लोमतोदीर्घक्षादीनामष्टकमाद्यंयासांतामातरोमूर्द्धादिषुन्यस्याः॥ तथाकीदृश्योमातरः॥डेनमतकन्यका ताः॥चतुर्थीनमोतंकन्यकापदमंतेयासांताायथा।आंक्षांब्राह्मीकन्यकायैनमोमूनि // ईलांमाहेश्वरीकन्यका यैनमोवामांसे॥ऊहांकौमारीक वामपाधै|सवैिष्णवीक नाभौलंषांवाराहीक|दक्षपाऐंशांइंद्राणीक० दक्षांसे॥औंवांचामुंडाकन्यकायैककुदि॥अलांमहालक्ष्मीकन्यकायैहदि // सिद्धिन्यासमाहातारेति // 8 // 9 // 270700 For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटी // 66 // 20 // 11 // अष्टसिद्धायनमोमूर्षीत्यादि / सिद्धार balत०८ मं०म०ऐअणिमासिद्धिकन्यकायैनमोमूर्तीत्यादि // सिद्धयइतिअनुपदंवक्ष्यमाणाः // अलिकललाटं ॥'चिल्लियूं: // 110 // 11 // अष्टसिद्धीराह|अणिमेत्यादि ॥१२॥अप्सरोन्यासमाह॥कामाद्याइति॥क्कीउर्वशीकन्यकायै नमोमूनिइत्यादि // नेत्रयोद्वै॥ कर्णयोद्वै॥ 13 // अप्सरसआह // उर्वशीति // 14 // कन्यान्यासमाह // दक्षपार्श्वेदक्षिणांसेककुद्धृदययोरपि // तारवागादिकाअष्टौसिद्धयःकन्यकांतिमाः // 110 // चतुर्थी नमसायुक्तान्यस्याःकालिकचिल्लिषु // कंठेचहृदयेनाभावाधारेलिंगमूर्द्धनि // 11 // अणिमामहिमाचा पिलघिमागरिमशिता // वशिताचाथप्राकाम्यंप्राप्तिरित्यष्टसिद्धयः // 12 // कामाद्या कन्यकाप्री ताअष्टावप्सरसोन्यसेत् // केभालेनेत्रयोर्वक्रेकर्णयोःककुदेपिच // 13 // उर्वशीमेनकारंभाताची पुंजिकस्थला // सुकेशीमंजुघोषाचमहारंगवतीरिताः // 14 // यक्षगंधर्वसिद्धानांकन्यकानरनागयोः॥ विद्याधर किंपुरुषःपिशाचानामपहिताः॥ 15 // अंसयोर्हृदयेन्यस्येत्स्तनयोर्जठरेक्रमात् // गुह्ये प्याधारदेशेचनमोंतामदनादिकाः // 16 // मायक्षेति // 15 // नमोंतामदनादिकाः // कामबीजाद्यायक्षादीनांकन्यका अंसादिषुन्यसेत् // अंसयोढे जस्तनयो?एकैकान्यत्र / क्लीयक्षकन्यकायैनमोदक्षांसे॥क्लींगंधर्वकन्यकायैनमोवामांसे॥इत्यादिप्रयोगः॥१६॥ SHASSSSSSSSSAus JIE For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्णन्यासमाह // तारेति // प्रणवाद्यान् // नमोंतान्सबिंदुकान् // मंत्रवर्णान्॥करपादसंधिषुसाग्रेषुन्यसेत् // ॐक्तींनमोदकैसे // ॐनमोदक्षकूर्परेइत्यादि // 117 // सुरार्णवस्यांतरीपंद्वीपंतत्रयद्रत्नमंदिरंतन्मध्यगे ताराद्यान्नमसायुक्तान्मूलवर्णान्सबिंदुकान् // न्यसेत्संधिषुसाग्रेषुकरयोःपादयोरपि // 17 // न्यासानेवंवि धान्कृत्वामातंगीमासनेस्मरेत् // सुराणवांतरीपस्थरत्नमंदिरमध्यगे // 18 // माणिक्याभरणान्वितां स्मितमुखीनीलोत्पलाभांवरांरम्यालक्तकलिप्तपादकमलांनेत्रत्रयोल्लासिनीम् // वीणावादनतत्परांसुर नतांकीरच्छदश्यामलांमातंगींशशिशेखरामनुभजेत्तांबूलपूर्णाननाम् // 19 // लक्षंजपेन्मधूकोत्थैर्जुहु यादयुतंशुभैः // मातंगीप्रोदितेपीठेलघुश्यामाप्रपूजयेत् // 120 // त्रिकोणपंचकोणाष्टदलपोडशप के // वेदद्वारधरागेहावृत्तेयंत्रेविधानतः॥ 21 // देव्याअग्रेपार्श्वयोश्चतिस्रोचेंद्रतिपूर्विकाः // इच्छा ज्ञानक्रियाशक्ती कोणेष्वग्रादिषुत्रिषु // 22 // वाणान्पंचसुकोणेषुकेसरेष्वंगदेवताः // ब्राहयाद्याअष्ट पत्रेषुपत्राग्रेष्वणिमादिकाः॥२३॥ सिंहासनेस्थितांध्यायेत् // 118 // माणिक्येति // कीरच्छदश्यामलांशुकपिच्छनीलाम् // 119 // 120 // 12 // रतिपूर्विकारतिप्रीतिमनोभवाः॥ 122 // 123 // For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सटीक मं०म० उर्वश्याद्याअष्टौ // कन्याअष्टौयक्षादीनांन्यासवत्प्रयोगान् ॥न्यासेयथाप्रयोगास्तथापूजायामपि // 124 // | यजेत्षोडशपत्रेपूर्वश्याद्याःकन्यकाअपि // प्रयोगान्यासवत्कुर्याद्रत्यादीनांप्रपूजने // 24 // // 67 // त०८ भूगृहस्यचतुर्दिक्षुयोगिनी परिपूजयेत् // गजाननासिंहमुखीगृधास्याकाकतुंडिका // 25 // उष्ट्रग्रीवाहयग्रीवावाराहीशरभानना // उलूकिकाशिवारावामयूरीविकटानना // 26 // अष्टवका कोटराक्षीकुब्जाविकटलोचना // समर्चयेदिशिपाच्यामेताःषोडशयोगिनीः // 27 // शुष्को दरीललजिह्वाश्वदंष्ट्रावानरानना // ऋक्षाक्षीकेकराक्षीचबृहत्तुंडासुराप्रिया // 28 // कपालह स्तारक्ताक्षीशुकीश्येनीकपोतिका // पाशहस्तादंडहस्ताप्रचंडेत्यपिषोडश // 29 // पूज्याकीनाश दिग्भागेप्रतीच्यांचंडविक्रमा // शिशुनीपापहंत्रीचकालीरुधिरपायिनी // 30 // वसाधयागर्भभक्षाश वहस्तांत्रमालिनी // स्थूलकेशीबृहत्कुक्षिःसर्पास्याप्रेतवाहना // 31 // दंदशूककराक्रौंचीमृगशीर्षे BHI तिषोडश ॥संपूज्याउत्तरस्यांतुषोडशेववृषानना // 32 / / योगिनीराह // गजाननेत्यादि // 125 // प्रतिदिशंषोडशयथार्थनाम्न्यःसर्वाः // 126 // 127 // 128 // 129 // BA67 // कीनाशदिग्भागेदक्षिणस्याम् // 130 // 131 // 132 // For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - // 133 // 134 // 135 // स्वस्वमंत्रेणेति // बटुकादीनांमंत्राउक्ताः // 136 // 137 // 138 // तद्गायत्रीमाह॥ व्यात्तास्याधूमनिःश्वासाव्योमैकचरणोर्द्धदृक् // तापनीशोषणीदृष्टिःकोटरीस्थूलनासिका // 33 // विद्युत्प्रभावलाकास्यामार्जारीकटपूतना अट्टाहासाकामाक्षेत्यर्चनीयाअभीष्टदाः // 34 // नश्यं तिभूतशाकिन्यआसांनामश्रुतेरपि // भूमंदिरस्यकोणेषुवढ्यादिषुयजेत्क्रमात् // 35 // स्वस्वमंत्रे णबटुकंगणेशंक्षेत्रपालकम् // दुर्गातहिरिंद्रादीन्वज्रादीनपिपूजयेत् // 36 // भूगृहस्यचतु दिक्षुचतुर्वाद्यानिपूजयेत् / / तत्तत्संज्ञंचविततंधनंचसुपिराभिधम् // 37 // द्वादशावरणैरेवंलघुश्यामा यजेत्तुयः॥ सर्वासांसंपदापात्रमचिराजायतेसना // 38 // वाणीशुकप्रियाताविद्महेमीनकेतनः // कामेश्वरीधीमहीतितनश्यामाप्रचोदयात् // 39 // एषोदितातुमातंगीगायत्रीसर्वसिद्धिदा // अनया यागवस्तूनिप्रोक्षेत्तस्याःसमर्चने // 140 // मातंगीमंत्रसंप्रोक्ताःप्रयोगाअत्रकीर्तिताः // राजानो राजपुत्राश्चसुदृशोमदमंथराः॥४१॥ वाणीति // वाणीऐं // शुकप्रियाता शुकप्रियायै // मीनकेतनाकीं // स्वरूपंशेषम् // 139 // 140 // 141 // 1 शुकप्रियायैविद्महेक्लीकामेश्वरीधीमहि / तन्नःश्यामाप्रचोदयात् // - - - For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक I68 त०९ 142 // 143 // 144 // इति श्रीमंत्रमहोदाधनौकायांबालाश्यामानिरूपणमष्टमस्तरंगः // 8 // अन्नपूर्णे श्वरीमंत्रवक्तुंप्रतिजानीते // फलंकथयन् मंत्रमुद्धरत // वेदादिरितिवेदादिःप्रणवः॥गिरिजाह्रीं।पद्माश्रीं // दासामनोवचःकायैर्भवंत्यस्याउपासितुः॥ शाकिनीप्रेतभूताश्चर्षितुंतनशक्युः॥४२॥भूरिणाकिमिहो केनदेवीयमखिलेष्टदायन्मनुस्मरणादेवनरोदेवोपमोभवेत्॥४३॥देव्याउपासकैःपुंभिःस्त्रियोनिद्यानजा तुचित् // देवीवन्माननीयास्तामनोभीष्टमभीप्सुभिः॥४४॥ इति श्रीमहीधरविरचितेमंत्रमहोदधौबाला लघुश्यामानिरूपणमष्टमस्तरंगः॥८॥अन्नपूर्णेश्वरीमंत्रवक्ष्येभीष्टप्रदायकम्।।कुबेरोयामुपास्याशुलब्धवा निधिनाथताम् // 1 // शंभो सख्यंदिगीशत्वकैलासाधीशतामपि // वेदादिगिरिजापद्मामन्मथोहृदयं भग // 2 // वतिमाहेश्वरीप्रांतेन्नपूर्णेदहनांगनाप्रोक्ताविंशतिवर्णोयंविद्यास्याद्राहिणोमुनिः॥३॥ मन्मथाक्लीं // हृदयनमः॥ भगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वरूपं // दहनांगनास्वाहा // द्रुहिणोब्रह्मा॥१॥२॥३॥ 1 ॐहीश्रीक्लीनमःभगवतिमाहेश्वारअन्नपूर्णेस्वाहा 20 // अन्नपूर्णामंत्रस्यद्रुहिणऋषिःकृति छंदःअन्नपूर्णेशीदेवताममाखिलसिद्धयर्थे जपेविनियोगः॥ Dal For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 4 // 5 // भूमीत्यादितद्वर्णसंख्या // 6 // ध्यानमाह // दर्वीदक्षे स्वर्णपात्रंवामे // 7 // कृतिःछंदोत्रपूर्णेशीदेवतापरिकीर्तिता // षड्दी_ब्येनहल्लेखाबीजेनस्यात्पडंगकम् // 4 // मुखनासा क्षिकर्णाधुगुदेषुनवसुन्यसेत् // पदानिनवतद्वर्णसंख्येदानीमुदीर्यते // 5 // भूमिचंद्रधरैकाक्षिवेदब्धियु गवांहुभिः॥ पदसंख्यामितैर्वर्णैस्ततोध्यायेत्सुरेश्वरीम् // 6 // तप्तस्वर्णनिभाशशांकमुकुटारत्नप्रभाभासु रानानावस्त्रविराजितात्रिनयनाभूमीरमाभ्यांयुता // दहिाटकभाजनंचदधतीरम्योचपीनस्तनीनृत्यं तंशिवमाकलय्यमुदिताध्येयान्नपूर्णेश्वरी // 7 // लक्षंजपोयुतंहोमश्चरुणाघृतसंयुता // जयादिनवश क्याढयेपीठेपूजासमीरिता // ८॥त्रिकोणवेदपत्राष्टपत्रपोडशपत्रके // भूपुरेणयुतेयंत्रेप्रदद्यान्मायया सनम् / / 9 / / अन्यादिकाणावतयाशववाराहमाधवान् / / अचयत्स्वस्वमत्रस्तुप्रांच्यतमनवस्तुत 10 प्रणवोमनुचंद्राव्यंगगनंहृदयशिवा // मारुतःशिवमंत्रोयंसप्ताण-शिवपूजने // 11 // // 8 // 9 // 10 // शिवमंत्रमाह !! प्रणवपम् इति // गगनंहकारः॥ मनुचंद्राढयमऔबिंदुयुतंहीहृदया यनमाशिवास्वरूपम् // मारुतोय // 11 // 1 ॐहौंनमःशिवायेतिसप्तार्णः / For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०९ मं०म० वराहमंत्रमाह // तारइति // तारॐनमोभगवतेवराहस्वरूपम्॥अर्धेशयुग्वसुः॥ उयुतोरः॥रूपायभूर्भुवः स्वरूपम् ॥सर्गिजलंवः॥ स्वःस्वरूपम् // शूरम्पः॥कामिकातयेभूपतित्वंमेदेहिददापयस्वरूपम् // शुचिपि // 69 // तारंनमोभगवतेवराहार्षीशयुग्वसुः॥ पायभूर्भुवंर्जलंसर्गिस्वःशूरःकामिकाचये // 12 // भूपतित्वंचमे देहिददापयशुचिप्रिया // त्रयस्त्रिंशद्वर्णमंत्र प्रोक्तोवाराहपूजने // 13 // प्रणवोहृदयनारायणाय वसुवर्णकः॥ नारायणार्चनेमंत्र-षडंगानिततोर्चयेत् // 14 // धरांवामेस्वमनुनादक्षभागेश्रियंतथा // अन्नमह्यन्नमित्युक्त्वामेदेयन्नाधिपार्णका // 15 // तयेममानप्राणांतेदापयानलसुंदरी॥ द्वाविंशत्यक्षरो मंत्रोभूमीष्टौभूमिसंपुटः // 16 // यास्वाहा // 12 // 13 // नारायणमंत्रमाह। प्रणवइति // हृदयंनमः // नारायणायस्वरूपम् // वसुवर्णों ऽष्टार्णः॥ 14 ॥धराश्रियोर्मत्रमाह // अन्नमिति॥अन्नमह्यनंमेदेह्यन्नाधिपतयेममानंप्रदापयस्वरूपम्।अनलसुं Hदरीस्वाहा // अयमंत्रोभूमीष्टौभूमिपूजनेभूमिबीजेनसंपुटः // 15 // 16 // Bal ॐनमोभगवतेवराहरूपायभूर्भुवःस्वःपतयेभूपतित्वमेदेहिददापयस्वाहेतिनयस्त्रिंशद्वर्णः / / 2. ॐनमोनारायणायेत्यष्टार्णः // 3 ग्लौंअन्नंम ह्यनंमेदेह्यन्नाधिपतयेममान्नंप्रदापयस्वाहालौमितिद्वाविंशत्यर्णः // // 69 // For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie श्रीपूजायांश्रीबीजेनसंपुटितः।भूबीजमाह // स्मृतिरिति / / स्मृतिर्गः॥ लमतुचंद्रयुक् // लऔबिंदुयुतः // ग्लौं // एतद्भुवोबीजम् // श्रीबीजमाह // वहीति // रेफई // बिंदुयुतोबकः शः // श्रींइतिश्रियोबी जम् // 17 // वेदानेचतुरस्रमंत्राद्यचतुर्तीजाद्याश्चतस्रःशक्ती पूजयेत् // ताएवाह // परेति // परायै लक्ष्मीपुटस्तत्पूजायांस्मृतिर्लमनुचंद्रयुक् // भुवोवीजंवह्निशांतिविंदुयुक्तोवकःश्रियः // 17 ॥मंत्रादि स्थचतुर्बीजपूर्विकापरिपूजयेत् // शक्तीश्चतस्रोवेदानेपराचभुवनेश्वरी // 18 // कमलाशुभगाचेति बाहयाद्याअष्टपत्रगाः // षोडशारेमृताचैवमानदातुष्टिपुष्टयः॥ 19 // प्रीतीरातेह्रींःश्रीश्चापिस्वधास्वा हादशम्यथ // ज्योत्स्नाहैमवतीछायापूर्णिमासहनित्यया // 20 // अमावास्येतिसंपूज्यामंत्रशेषार्ण पूर्विकाः // भूपुरेलोकपालाःस्युस्तदत्राणितदग्रतः॥ 21 // नमः॥हींभुवनेश्वर्यै // 18 // श्रींकमलायै // क्लींसुभगायै // मंत्रस्यशेषायेवर्णाःचतुर्वीजव्यतिरिक्ताः // तत्पूविकाअमृताद्याः षोडशदलेपूज्याः॥ अंअमृतायैनमः ॥मांमानदायैइत्यादि॥ 19 // 20 // 21 // For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir hrir सटीक त०९ मं०म० मंत्रांतरमाह // अयमिति // अयंविंशत्यर्णः॥ श्रीकामहीनः॥ षडंगमाह // द्वीति // 22 // 23 // मंत्रांतरमाह पूर्वोक्तेति // विंशत्यर्णेमन्वर्णाञ्चतुर्दशाक्षरात // माहेश्वरीत्यंते॥ममाभिमतमन्नंदेहिदेहीतिवर्णानुच्चारयेत्॥ // 7 // अन्नपूर्णेस्वाहेत्यंतेऽस्त्येव // ततएकगुणार्णवान्एकत्रिंशदर्णः॥ 24 // षडंगमाह / / युगेति // मंत्रांतरमाह // इत्थंजपादिभिःसिद्धमंत्रेस्मिन्धनसंचयैः।।कुबेरसदृशोमंत्रीजायतेजनवंदितः // 22 // अयंरमाकामवी जरहितोष्टादशाक्षरः // द्विनत्रवेदवेदाधिनत्राणैरंगमीरितम् // 23 // पूर्वोक्तमंत्रमन्वर्णान्ममा भिमतमुच्चरेत् // अनंदेहियुगंचापिभवेदेकगुणार्णवान् // 24 // युगांगवेद॑सप्ताँब्धिपडणैरंगकल्प नम् ॥प्रणवःकमलाशक्तिनमोभगवतीतिच // 25 // प्रसन्नपारिजातेश्वर्यन्नपूर्णेनलांगना // चतु विंशतिवर्णात्मामंत्रःसर्वेष्टसाधकः // 26 // राँमाक्षिवेदनिधिभिव्यर्णैःषडंगकम् // तारश्रीश क्तिहृदयंभगांभ-कामिकासदृक् // 27 // प्रणवइति॥कमलाश्रीं।शाक्ताहीं॥अनलांगनास्वाहा // 25 // 26 // षडंगमाह ॥रामेतिनिधयोनव // मंत्रां तरमाह // तारेति // तारॐ॥श्री श्रीं ॥शक्ति ह्रीं // हृदयंनमः॥भगस्वरूपं॥अंभोवासकामिकाति॥२७॥ 1 ॐहीनमःभगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहेत्यष्टादशार्णः // 2 ॐद्वीश्रीक्लीनमःभगवतिमाहेश्वरिममाभिमतमन्नदेहिदेहिअन्नपूर्णेस्वाहेत्येक Bal त्रिंशदर्णः / 3 ॐ श्रींहींनमोभगवतिप्रसन्नपारिजातेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहेतिचतुर्विंशत्यर्णः॥ // 7 // For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie अग्निपत्नीस्वाहा // स्वरूपमन्यत् // 28 // षडंगमाह // रामेति // अन्यत्तुध्यानपूजाप्रयोगःपूर्ववत् // 29 // माहेश्वरीप्रसन्नेतिवरदेपदमुच्चरेत् // अन्नपूर्णेग्निपत्नीतिपंचविंशतिवर्णवान् // 28 // रॉमर्पड्युंगपइवेदने | वार्णैःस्यात्पडंगकम् // एषांचतुर्णामंत्राणामन्यत्सर्वतुपूर्ववत् // 29 // त्रैलोक्यमोहनोगौरीमंत्रःसंकी य॑तेधुना ॥मायानमोंतेब्रह्मश्रीराजितेराजपूजिते // 30 // जयेतिविजयेगौरीगांधारीतिवदेत्पदम् // त्रिभुतोयमेषवशंकरिसर्वससद्यलः // 31 // कवशंकरिसर्वस्त्रीपुरुषांऽतेवशंकरि // सुद्वयंदुद्वयंढे | युग्वायुग्मंहरवल्लभा // 32 // स्वाहांतएकषष्टयोमंत्रराजःसमीरितः // अजोमुनिर्निचूतछंदो गौरीत्रैलोक्यमोहिनी // 33 // गौरीमंत्रमाह // मायेति ॥मायाह्रीं // 30 // तोयंवः // मेषोनः // ससद्यलः // लो॥ 31 // सुदुघेवाएषां युग्मंसुरदुरघेरवारहरवल्लभाह्रीं // स्वरूपशेषम् // 32 // अजोब्रह्मा // 33 // 1 ॐश्रीह्रींनमःभगवतिमाहेश्वरिप्रसनवरदेअन्नपूर्णेस्वाहेतिपंचविंशत्यर्णः // 2 ह्रींनमोब्रह्मश्रीराजितेराजपूजितेजयविजयेगौरिगांधा भरित्रिभुवनशंकरिसर्वलोकवशंकरिसर्वस्त्रीपुरुषवशंवकरिसुसुदुदुघेघेवावाहीस्वाहत्येकषष्टयर्णः॥ 3 ॐअस्यमंत्रस्यअजऋषिःनिनृत्गायत्री छंदःगौरीत्रैलोक्यमोहिनीदेवताहींबीजंस्वाहाशक्तिःममाखिलकामसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobarth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० सटीक // 7 // त०९ षडंगमाह // चतुर्दशेति // दीर्घषट्कयुक्तैश्चतुर्दशाद्यक्षरैषडंगम् / / 34 ॥३॥ध्यानमाह // गीर्वाणेति // गीर्वा णादेवास्तत्समूहै पूजितंपादपद्मयस्याः / / अंकुशंदक्षे // 36 // गौर्यामंत्रांतरमाह // नभइति // नभोहकारः // देवतावीजशक्तीतुमायास्वाहापदेक्रमात् // चतुर्दशदशाष्टॉप्टंदशैकादशवर्णकैः // 34 // दीर्घा ढयमाययायुक्तैः षडंगानिसमाचरेत् // मूलेनव्यापकंकृत्वाध्यायत्रैलोक्यमोहिनीम् // 35 // गी णिसंघार्चितपादपंकजारुणप्रभावालशशांकशेखरा॥ रक्तांबरालेपनपुष्पयुमुदेसृणिसपाशंदधतीशि वास्तुवः॥३६॥ अयुतंप्रजपेन्मंत्रसहस्रंघृतसंयुतैः॥ पायसर्जुहुयात्पीठेपायुक्तेगिरिजांयजेत् // 37 // केसरेष्वंगमाराध्यबाहयाद्या पत्रमध्यगाः।। लोकेश्वरास्तदस्त्राणितद्वहिःपरिपूजयेत् // 38 // इत्थमारा धितादेवीप्रयच्छेत्सुखसंपदः // तंदुलैस्तिलसंमिश्रेलवणैर्मधुरान्वितैः // 39 // कीहक्नभाहसानलयुत॥हसासअनलोराताभ्यांयुतम्॥ऐस्थंबिंदुयुतंतिनह।तोयंव।कीहक्वायुर्यः।। अग्नीरः॥ कर्णउः॥ इंदुर्बिदुः॥ तैर्युतं / / व्यू // स्वरूपमन्यत् // मायाहीं ॥रमाश्रीं // आत्मभूःक्कीं॥ अन्यत् स्वरूपम् // 37 // 38 // 39 // |71 // For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 40 // 41 // 42 // 43 // वहिप्रियास्वाहा // 44 // 45 // 46 // अंगमंत्राषट्रदीर्घयुकमायाबीजंपरये फलैरम्यैरक्तपद्मर्जुहुयायोदिनत्रयम् ॥तस्यविप्रादयोवर्णावश्याःस्युर्मासमध्यतः॥४०॥रविमंडलमध्य स्थादेवींध्यायन्जपेन्मनुम्।।अष्टोतरशतंतावद्धुत्वाग्नीवशयेजगत्॥४१॥नभोहंसानलयुतमैकारस्था शशांकयुक् // तोयंवाय्वग्निकर्णेन्दुयुतंराजमुखीतिच॥४२॥राजाधिमुखिवश्यांतेमुखिमायारमात्मभूः।। देविदेविमहादेविदेवाधिदेविसर्वच // 43 // जनस्यचमुखंपश्चान्ममवशंकुरुद्वयम् // वह्निप्रियांतोमंत्रोष्ट चत्वारिंशल्लिपिमतः // 44 // ऋषिश्छंदोदेवतास्तुपूर्ववत्परिकीर्तिताः॥ हृदेकादशभिःप्रोक्तंशिरःस्या त्सप्तवर्णकैः॥ 45 // शिखावर्मापिवेदाणैःपचंभिर्नेत्रमीरितम् // अस्त्रंसप्तदशाणैःस्यादयानजप्या दिपूर्ववत् // 46 // अङ्गमंत्रास्तुदीर्घाज्यभुवनेशीपरामताः॥ एवंसिद्धमनुमंत्रीप्रयोगान्कर्तुमर्हति४७ कुर्यात्सर्वजनस्थानेमनोःसाध्याभिधानकम् // जपेहोमेतर्पणेचवशीकरणकर्मणि // 48 // ससंपातं घृतंहुत्वासहस्रंसप्तवासरम् // संपाताज्यंतुसाध्यस्यप्राशितंवश्यकारकम् // 49 // षामीदृशाः // 47 // मनोर्मत्रस्यसर्वजनस्थानेसर्वजनस्येतिपदस्थानेसाध्याभिधानकंसाध्यनामोच्चरेत् देवदत्तस्यमुखमित्यादि // 48 // 49 // रहदैव्यूराजमुखिराजाधिमुखिवश्यमुखिह्रीं श्रींदविदेविमहादेविदेवाधिदेविसर्वजनस्यमुखममवश्यंकुरुकुरुस्वाहेत्यष्टचत्वारिंशदर्णः // बtauraLuaTRILOLLLLLLLLLLLL For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० मा सटीक // 72 // त०९ प्रयोगान्तरमाह // साध्यनक्षत्रति // साध्यस्ययनक्षत्रम् // जन्मनक्षत्रंतत्संबंधीयोवृक्षस्तेनसाध्याकृति साध्यप्रतिमांकुर्यात् // तत्रप्राणान्प्रतिष्ठाप्य // तामंगणेखात्वातदुपर्यग्निंनिधायरक्तचन्दनाक्तैर्जपापुष्पैः सहस्रंहुत्वातांनिष्कास्यनदीतटेनिखनेत् // सदास स्यात् // नक्षत्रवृक्षाःयथा // कारस्करोथधात्रीस्यादुदुं बरतरुःपुनः // जंबूःखादिरकृष्णाख्यौवंशपिप्पलसंज्ञको॥ नागरोहिणनामानौपलाशप्लक्षसंज्ञको // अंबष्ठ साध्यनक्षत्रवृक्षेणकुर्यात्साध्याकृतिशुभाम् // तस्याममून्प्रतिष्ठाप्यप्रांगणेनिखनेञ्चताम् // 50 // तत्रानलंसमाधायरक्तचंदनसंयुतैः // जपापुष्पैनिशीथिन्यांजुहुयात्सप्तवासरम् // 53 // सहस्रप्रत्यहं पश्चात्तांनिष्कास्यसरित्तटे // निखनेत्साधकस्तस्यसाध्योदासोभवेध्रुवम् // 52 // ज्येष्टलक्ष्मी महामंत्रःप्रोच्यतेधनवृद्धिदः॥ वाग्वीजभुवनेशानीश्रीरनंतोद्यलक्ष्मिच // 53 // बिल्वार्जुनाख्यविकंकतमहीरुहाः // बकुलःसरलःसर्जीवंजुलापनसार्कको // शमीकदंबनिंबाम्रमधूकावृक्ष शाखिनः॥ इतिशारदोक्ताः॥५०॥५१॥ 12 // ज्येष्ठालक्ष्मीमंत्रमाह // वागिति // वाग्बीजंऐं // भुवने शानींहीं // श्री श्रीं // अनंतआद्यलक्ष्मीः // 53 // // 72 // For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Top51 स्वयंभुवेस्वरूपं // शंभुजायाहीं॥ज्येष्ठायैस्वरूपं॥हृदयनमः॥५४॥ श्रीशक्तिः॥ ह्रींबीज॥पदोन्मितिःपदवर्णसं स्वयंभुवेशंभुजायाज्येष्ठायेहृदयान्तिकः॥ मनुःसप्तदशाोयंमुनिब्रह्मास्यकीर्तितः॥५४॥छंदोष्टि ज्येष्ठलक्ष्मीस्तुदेवताशक्तिबीजके // श्रीमायेमूलतोहस्तौप्रमृज्यांगसमाचरेत् // 55 // रॉमवेदैर्युगे कत्रिनेत्राणैर्मनुसंभवैः॥ पदानामष्टकंन्यस्येच्छिरोभ्रूमध्यवकके // 56 // हृन्नाभ्याधारकेजानुपादयो स्तत्पदोन्मितिः // भूचंद्रेकचतुर्वेद मिरामाक्षिवर्णकैः // 57 // उद्यद्भास्करसन्निभास्मितमुखी रक्ताम्बरालेपनासत्कुंभंधनभाजनंसृणिमथोपाशंकरैर्बिभ्रती // पद्मस्थाकमलेक्षणादृढकुचासौंदर्य्यवारां निधिर्ध्यातव्यासकलाभिलाषफलदाश्रीज्येष्ठलक्ष्मीरियम् // 58 // लक्षंजपेत्पायसेनजुहुयात्तद्दशा शतः॥ आज्याक्तनयजेत्पीठेवक्ष्यमाणेमहाश्रियम् // 19 // ख्याभूरित्यादिवर्णैज्ञेया॥५५॥५६॥ 57 // ध्यानमाह // उद्यदिति // धनपात्रांकुशौदक्षिणयोः // कुंभपा शौवामयोः॥५८॥ 59 // 1 पट्ठीश्रीज्येष्ठालक्ष्मिस्वयंभुवेह्रींज्येष्ठायैनमइतिसप्तदशाणः // 2 अस्यज्येष्ठालक्ष्मीमंत्रस्यब्रह्माऋषिःअष्टिश्छंदःज्येष्ठालक्ष्मीदेवताश्रीं शक्ति ह्रींबीजममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 73 // पीठशक्तीराह // लोहिताक्षेति // 60 // 61 // गायत्रीमाह // प्रणवइति स्पष्टम् // 62 ॥६३॥लोकेशाइन्द्राद सटीक यः॥ हेतयोवजाद्याः // 64 // अन्नदमन्त्रमाह // अथेति // योमन्त्रःअन्नपूर्णावरणपूजनेभूमिश्रियो पूजने l लोहिताक्षीविरूपाचकरालीनीललोहिता // समदावारुणीपुष्टिरमोघाविश्वमोहिनी // 60 // तत्पी ठशक्तयःप्रोक्तादिक्षुमध्येचतायजेत् // प्रयच्छेदासनंतस्यैगायत्र्यावक्ष्यमाणया // 61 // प्रणवो रक्तज्येष्ठायैविद्महेपदमंततः // नीलज्येष्ठापदंपश्चाद्यैधीमहिततःपदम् // 62 // तन्नोलक्ष्मी पदंप्रोच्यचोदयादितिचोचरेत् // गायत्र्येषासमाख्याताकेसरेष्वंगपूजनम् // 63 // मातरःपत्रमध्ये पुबाह्यलोकेशहेतयः॥ इत्थंजपादिभिःसिद्धोमनुर्दद्यादभीप्सितम् // 64 // अथानमनोर्वक्ष्येसाधनंयः पुरोदितः॥ अन्नपूर्णावृतौभूमिश्रीयागेद्वियमाक्षरः // 65 / / तारभूश्रीपुटोजेप्योमुनिरस्यचतुर्मुखः // छन्दोनिवृतिराख्यातंदेवतेवसुधाश्रियौ // 66 // द्वियमाक्षरोद्वाविंशत्यर्णःपुराकथितः सोन्नदोमतुः // अन्नमह्यमेदेवनाधिपतयेममान्नंप्रदापयस्वाहे तिसप्रणवभूबीजश्रीबीजसंपुटोष्टाविंशतिवर्णः // 65 // 66 // // 73 // ॐरक्तज्येष्ठायैविद्महेनीलज्येष्ठायैधीमहि / / तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात् // 2 भूठौं श्रीअन्नमान्नंमेदेवनाधिपतयेममानंप्रदापयस्वाहाश्रींग्लौंऔ| मित्यष्टाविंशत्यर्णः॥ अस्यज्येष्ठालक्ष्मीमंत्रस्यब्रह्माऋषिःनिन्द्रायत्रीछन्दःवसुधाश्रीदेवताग्लौंबीजश्रीशक्तिःममाभीष्टप्राप्तीजपेविनियोगः॥ C . For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir षडङ्गमाह // अनंमहीति // षडंगमन्त्राः // ध्रुवादिकाःप्रणवाद्याः // दीर्घयुक्तेभूश्रीबीजेअन्तयेषांते // विनेबानेत्रहीना:पश्चैव // पश्चांगानिमनोर्यत्रतत्रनेत्रमनुत्यजेदित्युक्तेः // ॐअन्नमहिग्लांश्रीं भूवीजंबीजमस्योक्तश्रीबीजंशक्तिरीरिता // अन्नमहीतिहृदयमन्मेदेहिमस्तकम् // 67 // शिखा त्वन्नाधिपतयेममान्नंचप्रदापय // वर्मोक्तं स्वाहयाचाखमंगमंत्राधुवादिकाः॥ 68 // षड्दीर्घारूढभू मिश्रीबीजांता परिकीर्तिताः॥ विनेत्राअपदुग्धाब्धौस्वर्णदीपेतुतेस्मरेत् // 69 // कल्पद्रुमाधोम णिवेदिकायांसमास्थितेवस्त्रविभूषणाढये // भूमिश्रियौवांछितवामदक्षेसंचिंतयेद्देवमुनींद्रवंद्ये // 70 // लक्षमेकंजपेन्मत्रंतदशांशंघृततैः॥ अन्नैर्तुत्वायजेत्पीछेवैष्णवेवसुधाश्रियो // 71 // विमलोत्कर्षिणी ज्ञानाक्रियायोगाभिधातथा // प्रह्वीसत्यातथेशानानुग्रहापीठशक्तयः॥७२॥ हृत् // ॐअन्नदेहिग्लीश्रीशिरइत्यादि // 67 // 68 // 69 // 70 // 71 // वैष्णवीपीठशक्तीराह // विमलति // 72 // For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 7 // त०९ पीठमंत्रमाह // तारमिति // ॐनमोभगवतेविष्णवेसर्वभूतात्मसंयोगपद्मपीठात्मनेनमः॥७३॥७४॥७॥७६॥ तारंनमोभगवतेविष्णवेसर्ववर्णकाः।भूतात्मसंयोगपदंयोगपद्मपदंततः // 73 // पीठात्मनेनमोंतोयंपी ठस्यमनुरीरितःौदद्यादासनमेतेनमूलेनावाहनादिकम्॥७॥अङ्गानीवार्चयेदिक्षुभूवह्निजलमारुतान्॥ निवृतिंचप्रतिष्ठांचविद्यांशांतिविदिक्षुच // 75 // अष्टशक्तीलाकाचविमलाकमलातथा // वनमाला विभीषाचमालिकाशांकरीपुनः॥ 76 // पूर्वादिदिक्षुप्रयजेदष्टमीवसुमालिका // शकाद्यानायुधैर्युक्ता स्वस्वदिक्षुसमर्चयेत् // 77 // इत्थंसपरिवारेयोधरालक्ष्म्योजपादिभिः // आराधयेत्सलभतेमहती मन्नसंपदम् // 78 // आज्याक्तैश्चतिलैबिल्वसमिद्भिर्जुहुयाच्छ्रिये // साज्येनपायसेनापिफलैःपत्रैश्च बिल्वजैः॥ 79 // जपतामुमहामंत्रहोमःकार्योंदिनदिने // दशसंख्यैःकुबेरस्यमनुनेमैटोद्भवैः॥८॥ तारोवैश्रवणायाग्निप्रियांतोष्टाक्षरोमः // होमकालेकुबेरंतुचिंतयेदग्निमध्यगम् // 81 // // 77 // 78 // 79 // इध्मैस्समिद्भिः॥८०॥ कुबेरमन्त्रमाह॥ तारइति // तारॐअग्निप्रियास्वाहा॥८१॥ 1 ॐवैश्रवणायस्वाहेत्यष्टार्णः // // 7 // For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुबेरध्यानमाह॥धनति // रत्नकरण्डोदक्षे // 82 // 83 // 84 // प्रत्यंगिरामाह॥दीर्घेति // मरुत्यकारः॥दी घेन्दुयुक् // आबिन्दुयुतःयां // ब्रह्माकः // लोहितः यः॥ तत्संस्थंमांसंलः॥ल्पयंतिनोरयः॥ क्रूरांकृत्यांवधू धनपूर्णस्वर्णकंभंतथारत्नकरंडकम // 8 // हस्ताभ्यांविप्लतंखर्वकरपादंचतंदिलम // वटाधस्तादनपी ठोपविष्टंसुस्मिताननम्॥८३॥एवंकृतहुतोमंत्रीलक्ष्म्याजपतिवित्तपम् // अथप्रत्यंगिरांवक्ष्येपरकृत्यावि मर्दिनीम् // 84 // दीर्घन्दुयुग्मरुद्ब्रह्मामांसलोहितसंस्थिताम् // यंतिनोरयउच्चार्यक्रूरांकृत्यांसमु चरेत् // 85 // वधूमिवपदंपश्चात्तांब्रह्मातेसदीर्षणः॥ अपनिर्गुमइत्यंतेप्रत्यकर्तारमृच्छतु // 86 // तारमायापुटोमंत्रःस्यात्सप्तत्रिंशदक्षरः // ब्रह्मानुष्टुप्मुनिश्छंदोदेवीप्रत्यांगरेरिता // 87 // मिवतांब्रह्मस्वरूपम् // सदीर्घोणःणा // अपनिर्णद्मइतिस्वरूपम् // प्रत्यकर्तारमृच्छतुस्वरूपम् // प्रणवमा याबीजसंपुटः॥८५॥८६॥८७॥ १ॐ ह्रींयांकल्पयंतिनोरयःकरांकृत्यांवधूमिवहांब्रह्मणाअपनिणुनःप्रत्यकर्तारमृच्छतुह्रींओमितिसप्तत्रिंशदक्षरः // 2 अस्यप्रत्यंगिराम चस्यब्रह्माऋषि-अनुष्टुपूछन्द देविप्रत्यंगिरादेवताओंबीजंह्रींशक्तिःममाखिलावाप्तयेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 7 // षडङ्गमाह // अष्टभिरिति // तोयनिधिभिश्चतुर्भिः॥ दीर्घयुक्पार्वतीमायाबीजपरयेषां ॥प्रणवआद्योयेषां // जातयोहृदयायनमइत्यादयस्तत्संयुतैरष्टादिवर्णैःषडङ्गम् // 88 // पदन्यासमाह // शिरइति॥प्रणवमायासं पुटानिचतुर्दशपदानिशिरआदिषुन्यसेत् // तेषांवर्णसंख्याक्रमात् // एकचतुरेकत्रिद्विद्विद्विद्यकत्रिपञ्चद्वित०९ बीजशक्तीतारमायेकृत्वानाशेनियोजनम् // अष्टभिस्तोयनिधिभिःयुगदेपंभिः // 88 // वसुभिर्म वजैर्वर्णैर्दीर्घयुक्पार्वतीपरैः॥प्रणवाद्यैःषडंगानिकल्पयेजातिसंयुतैः॥८९॥शिरोभ्रूमध्यवक्रेषुकंठेवाहुद्वये हृदि // नाभावूर्वोर्जानुनोश्चपदानिपदयोन्यसेत् // 90 // चतुर्दशकमान्मंत्रीतारमायापुटान्यपि ॥आ शांचरामुक्तकचाघनच्छवियेयासचर्मासिकराहिभूषणा // दंष्ट्रोग्रवकाग्रसिताहितान्वयाप्रत्यंगिराशंक रतेजसेरिता // 91 // ध्यायन्नेवंजपेन्मंत्रमयुतंतदशांशतः // अपामार्गेध्मराज्याज्यहविर्जुिहुया त्ततः॥ 92 // अन्नपूर्णासनेचाचेदंगलोकेश्वरायुधः // एवंसिद्धमनुमंत्रीप्रयोगेषुशतंजपेत् // 93 // त्रिंत्रिवर्णोध्या ॥ॐहींयांहींशिरसीत्यादि // 89 // 90 ॥ध्यानमाह // आशेति // आशांवरानना घनच्छ विर्मेघश्यामा प्रसितोऽहितानांरिपूणामन्वयोवंशोयया // असिदक्षिणे // 91 // 92 // 93 // // 7 // For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलिमन्त्रमाह // योमइति // ॐयोमेपूर्वगतःपाप्मापापकेनेहकर्मणाइन्द्रस्तंदेवराजोभञ्जयतुअंजयतुमो हयतुनाशयतुमारयतुकलिन्तस्मैप्रयच्छतुकृतंममाशिवंममशान्ति स्वस्त्ययनंचास्तु // इतिबलिमन्त्रः // अनेनप्राच्यांबलिंदद्यात् // 94 // 95 // 96 // 97 // अस्मिन्मन्त्रे // पूर्वेत्यस्यस्थानेअग्न्यादिपदम् // इन्द्र जुहुयाचशतंदिक्षुदशमत्रैहरेद्धलिम्॥योमेपूर्वगतःपाप्मापापकेनेहकर्मणा।९४।इंद्रस्तदेवउच्चार्यराजांतेभं जयत्विति ॥अंजयत्वितिचोचार्यमोहयत्वितिचोच्चरेत्॥९॥नाशयतुपदंपश्चान्मारयत्वित्यतोबलिम्॥ तस्मैप्रयच्छतुकृतंममांतेचशिवमम // 96 // शांतिःस्वस्त्ययनंचास्तुबलिमंत्रउदाहृतः // प्रणवायो षष्टयर्णस्तेनैववितरेदलिम् / / 97 // अस्मिन्मंत्रपूर्वपदस्थानेग्न्यादिपदंवदेव // अग्निरित्यादिचपठे दिन्द्रइत्यादिकेस्थले // 98 // एवंतुदशमंत्राःस्युस्तैस्तत्तदिग्वलिहरेत् // इत्थंकृतेशत्रुकृताकृत्या क्षिप्रविनश्यति // 99 // इत्यस्यस्थानेअग्निरित्यादि // देवराजइत्यत्रतेजोराजइत्यादिऊहानकृत्वादशमन्त्राविधेयास्तैस्तस्यां तस्यादिशिबलिंदद्यात् // यथा // योमेग्निगतःपाप्मापापकेनेहकर्मणाअग्निस्तंतेजोराजोभञ्जयत्वित्या दियोमेदक्षिणगतम्यमस्तंप्रेतराजइत्यादि // 98 // 99 // For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० // 7 // त०९ प्रत्यंगिरामालामंत्रमाह // तारइति // तार प्रणवः॥मायाहीं॥ सजलं। इयुतोवः वि // 100 // 101 // // 102 // 103 // 104 // शरसूर्याक्षरः॥ पश्चविंशित्यधिकशतार्णः // ॐह्रींनम कृष्णवाससेशतसहस्रहि अथप्रत्यंगिरामालामंत्रसिद्धःप्रकीर्त्यते // तारोमायानमकृष्णंवाससेशतवर्णकाः // 100 // सहस्त्र हिंसिनिपदंसहस्रवदनेपुनः॥ महाबलेपदंपश्चादुच्चरेदपराजिते॥१॥प्रत्यंगिरेपरसैन्यपरकर्मसदृग्गज लम् // ध्वंसिनीपरमंत्रोत्सादिनिसर्वपदंततः // 2 // भूतांतेदमनिप्रांतेसर्वदेवानसमुच्चरेत् // बंधयुग्मं सर्वविद्याछिधियुरुक्षोभयद्वयम् // 3 // परयंत्राणिसंकीर्त्यस्फोटयद्वितयंपठेत् // सर्वातेशृंखलाउ तात्रोटयद्वितयंज्वलत्॥ 4 // ज्वालाजिह्वेकरालांतेवदनेप्रत्यमुच्चरेत् // गिरेमायानमोंतोयंशरसूर्या क्षरोमनुः // 5 // ऋष्यादिकंपूर्वमुक्तंमाययास्यात्पडंगकम् // ध्यायेत्प्रत्यंगिरांदेवींसर्वशत्रु विनाशिनीम् // 6 // सिनिसहस्रवदनेमहाबलेअपराजितेप्रत्यंगिरेपरसैन्यपरकर्मविध्वंसिनिपरमन्त्रोत्सादिनिसर्वभूतदमनिसर्व देवान्बन्धबन्धसर्वविद्याछिंधिरक्षोभय २परयन्त्राणिस्फोटयरसर्वशखलास्त्रोटयत्रोटयज्वलज्ज्वालाजिहे करालवदनेप्रत्यंगिरेहींनमइति // 105 // 106 // // 76 For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानमाह // सिंहेति // खडोदक्षिणे // 107 // 108 // 109 // शत्रुनाशकमंत्रमाह // प्रणवइति // प्रणवःॐ सेन्दुःकेशवः // अं // सेन्दवःपंचवर्गाद्याकंचंटतपं // चन्द्रान्वितंवियतहं ॥रान्तंलः // सद्योजातः॥ शशां भकोबिन्दुस्ताभ्यांयुक्तालों // मायाहीं॥ कर्णचंद्राढ्याउ // बिन्दुयुतोऽत्रिर्दुः। सर्गीभृगुःसः॥वर्महुँ॥फट्स्वाहा सिंहारूढातिकृष्णांत्रिभुवनभयकृद्रुपमुग्रंवहंतीज्वालावत्रावसानानववसनयुगंनीलमण्याभकांतिः // शूलंखड्गंवहंतीनिजकरयुगलेभक्तरक्षकदक्षासेयंप्रत्यगिरासंक्षपयतुरिपुभिनिर्मितंबोभिचारम् // 7 // अयुतंप्रजपेन्मंत्रसहस्रंतिलराजिकाः // हुत्वासिद्धममुंमंत्रप्रयोगेषुशतंजपेत् // 8 // ग्रहभूतादिका विष्टंसिंचेन्मंत्रजपालैः // विनाशयेत्परकृतंयंत्रमंत्रादिकर्मणाम् // 9 // मंत्रविरोधिशमकंप वक्ष्येषोडशाक्षरम् // प्रणव केशव सेंदुर्वर्गाद्या पंचसेंदवः॥ 110 // वियचंद्रान्वितरांतसद्योजातःश शांकयुक् // मायात्रिकर्णचंद्राव्योभृगुःसर्गीसवर्मफट् // 11 // स्वरूपम्॥विधाताब्रह्मा // महापूर्वाःपर्वतादयः // महापर्वतमहासमुद्रमहाग्निमहावायुमहापृथ्वीमहाका शाःषदेवताः // 110 // 111 // For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म०पार्वतीह्रीं // माययादीर्घाढययाषडङ्गम् // षडङ्गक्रमेण ध्यानान्याहनानेति // 112 // 113 // 114 // स्वाहांतःषोडशाोयमंत्र-शत्रुविनाशनः॥ विधाताष्टिऋषिश्छंदःपर्वताध्यग्निवायवः।।१२॥धराकाशौ | // 77 // महापू देवताःपरिकीर्तिताः // हुंबीजंपार्वतीशक्तिर्माययातुषडंगकम् // 13 // नानारत्नाचिराक्रां तंवृक्षांभःस्रवणैर्युतम् ॥व्याघ्रादिपशुभिर्व्याप्तंसानुयुक्तंगिरिस्मरेत् // 14 // मत्स्यकूर्मादिवीजाव्यं नवरत्नसमन्वितम् // घनच्छायंसकल्लोलमकूपारंविचिंतयेत् // 15 // ज्वालावतीसमाक्रांतजगत्रितयम द्रुतम् // पीतवर्णमहावह्निसंस्मरेच्छत्रुशांतये // 16 // धरासमुत्थरेण्वौषमलिनरुद्धभूदिवम् // पवनसंस्मरेद्विश्वजीवनंप्राणरूपतः॥१७॥ नदीपर्वतवृक्षादिकलिताग्रामसंकुला।आधारभूताजगतोध्ये यापृथ्वीहमंत्रिणा॥३८॥सूर्यादिग्रहनक्षत्रकालचक्रसमन्वितम् ॥निर्मलंगगनंध्यायेत्प्राणिनामाश्रयप्रदम् // 19 // एवंषड्देवताध्यात्वासहस्राणितुषोडश // जपेन्मंत्रंदशांशेनषद्रव्योममाचरेत् // 120 // अकूपारंसमुद्रम् // 115 // 116 // प्राणरूपेणविश्वंजीवयतीतिविश्वजीवनम् // 117 // 118 // 119 // 120 // 1 ॐअंकंचंटतपहलोंह्रीहंसाहुंफट्स्वाहेतिषोडशाणः // 2 अस्यमंत्रस्यब्रह्माऋषिःअष्टि छंदःमहापर्वतमहाब्धिमहाग्निमहावायुमहाधरा महाकाशापट्देवता हुंबीजंहीशक्तिःममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // // 77 // For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यथाभागसप्तषष्टयधिकंशतद्वयंप्रत्येकं // 121 // प्रयोगमाह // अकारमिति // 122 // 123 // 124 // तदग्रिमंचकारंयाम्येदक्षिणस्यां // रब्धआरब्धोजगद्दाहोयेनलंकृतेतिवापाठः // 125 // तृतीयेतिटं // 126 // बीहयस्तंदुलाआज्यंसर्षपाश्चयवास्तिलाः // एतैर्तुत्वायथाभागंपीठेपूर्वोदितेयजेत् // 21 // अङ्गदिक्पा लवज्राद्यैरेवंसिद्धोभवेन्मनुः // शत्रूपद्रवमापनोयुंज्यात्तत्रष्टयेमनुम् // 22 // अकारंपर्वताकारंधावतंश त्रुसन्मुखम् ॥पतनोन्मुखमत्युग्रंपाच्यांदिशिविचिंतयेत् // 23 // ककारंक्षुब्धकल्लोलंप्लाविताखिलभूतल म् // समुद्ररूपिणंभीमंप्रतीच्यांदिशिसंस्मरेत्॥२४॥वर्णतदाग्रिमज्वालासंघव्याप्तनभस्तलम् / / याम्ये रब्धजगदाहस्मरेत्प्रलयपावकम् // 25 // तृतीयवर्गप्रथमप्रकंपितजगत्रयम् // युगांतपवनाकारमुत्तर स्यांदिशिस्मरेत् // 26 // तुरीयंपंचमाद्यााँपृथ्वीगगनरूपिणौ // शत्रुवर्गवाधमानौचिंतयेनियता त्मवान् // 27 // तदग्रिमंवर्णयुगंशत्रोनिःश्वासपद्धतिम् // निरंधानंस्मरेन्मंत्रीविदधद्रिपुमाकुलम् // 28 // मायादिवर्णत्रितयंशत्रोर्नेत्रश्रुतीमुखम् // प्रत्येकंतुनिरंधानं चिन्तयेत्साधकोत्तमः // 29 // तुरीयेति // चतुर्थपञ्चमवर्गयोरादिमागुतपं / / 127 // तदग्रिमवर्णयुगंद्वयम् हलोमिति // 128 // मायादि वर्णत्रितयंहींहुंसइति // 129 / / For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वा DH // 7 // वर्मणाहुंकारेणक्षोभितमस्त्रंफटकारंरिपोराधारादाग्निमुत्थाप्यरिपुदेहंदहतंस्मरेत् // 130 // मंडलमेकोनपं सटीक चाशद्दिनानि // 131 // मारणंकुर्वतःप्रायश्चित्तमाह // एवमिति // 132 // इतिमंत्रमहोदधिनौ कायामन्नपूर्णादिनिरूपणंनवमस्तरंगः॥ 9 // बगलामुखीमाह // प्रणवइति // गगनंहः // पृथ्वीलः॥ त०१० | वर्मसंक्षोभितत्वस्त्रंरिपोराधारदेशतः॥ उत्थाप्यवह्नितदेहंप्रदहन्समनुस्मरेत् // 130 // एवंवर्णान्स्म रन्मंजपेन्मंत्रीसहस्रकम् // मंडलत्रितयादर्वाग्मारयत्येवविद्विषम् // 31 // एवंय कुरुतेकर्मप्राणा यामजपादिभिः।।संशोधयित्वास्वात्मानंस्वरक्षायैहरिस्मरेत् // 132 // // इति श्रीमंत्रमहोद्घौअन्नपूर्णा दिमंत्रप्रकाशनंनामनवमस्तरंगः॥९॥ // अथप्रवक्ष्येशत्रूणांस्तंभिनीवगलामुखी॥प्रणवोगगनंपृथ्वी शांतिविंदुयुतंवग // 1 // लामुसाक्षोगदीसर्वदुष्टानांवाहलींदुयुक् // मुखपदंस्तंभयांतेजिह्वांकीलयवर्ण काः॥२॥ बुद्धिविनाशयांतेतुबीजंतारोग्निसुन्दरी // पत्रिंशदक्षरोमंत्रोनारदोमुनिरस्यतु // 3 // शांतिईबिंदुश्चतैर्युतंहीं // बगलामुस्वरूपं // गदीखः // साक्षइयुतःखि // सर्वदुष्टानांवास्वरूपं // इंदुयुक्हलीचं // मुखपदमित्यादिस्वरूपं // बीजंहीं // तारॐ // अग्निसुंदरीस्वाहा // 1 // 2 // 3 // BA78 // / १ॐट्ठींबगलामुखिसर्वदुष्टानांवाचंमुखंपदस्तंभयजिहांकीलयबुद्धिविनाशयहीं स्वाहेतिषट्त्रिंशदर्णः // 2 अस्यश्रीबगलामुखीमंत्रस्य नारदऋषिःबृहतीछंदःबगलामुखीदेवताममाखिलावाप्तयेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LLBILELCOLLLLL षडंगमाह // नेत्रेति // अक्षाणिपंच // ४॥ध्यानमाह // सौवर्णेति // मुद्गरवज्रौदक्षयोः॥ पाशरिपुजिह्वेवाम छंदोपिबृहतीज्ञेयंदेवतावगलामुखी|नेत्राशंसायकनैवपंचकाष्ठाभिरंगकम्॥४॥ सौवर्णासनसंस्थितांत्रिन यनांपीतांशुकोल्लासिनीम् // हेमाभांगरुचिंशशांकमुकुटांसच्चंपकस्रग्युताम् // हस्तैर्मुद्गरपाशवज्ररस नाःसंविभ्रतीभूषणैाप्तांगीं बगलामुखींत्रिजगतांसंस्तंभिनीचिंतयेत् // 5 // एवंध्यात्वाजपेल्लक्षमयुतं चंपकोद्भवैः॥ कुसुमैर्जुहुयात्पीठेपूर्वोक्तेपूजयेदिमाम् // 6 // चन्दनागुरुचंद्राद्यैःपूजार्थयंत्रमालिखेत् // त्रिकोणषड्दलाष्टास्रषोडशारधरापुरम् // 7 // मध्येसंपूजयेद्देवीकोणेसत्वादिकान्गुणान् // षट्कोणे षुपडंगानिमातृभैरवसंयुताः॥८॥ संपूज्याष्टदलेप पोडशारेयजेदिमाः॥ मंगलास्तंभिनीचैवभिणी मोहिनीतथा // 9 // वश्याचलावलाकाचभूधराकल्मषाभिधा // धात्रीचकलनाकालकर्षिणीभ्रामिका पिच // 10 // मंदगमनाभोगस्थाभाविकाषोडशीस्मृता // भूगृहस्यचतुर्दिक्षुपूर्वादिषुयजेत्क्रमा त्॥ ११॥गणशबटुकचापियागिनाक्षत्रपालकम् // इदादाश्चतताबाह्यानजायुधसमान्वतान् // 12 // योः॥५॥६॥७॥८॥भैरवसंयुतामातरष्टदलेसंपूज्यषोडशदलेइमामङ्गलाद्यायजेत् // 9 // 10 // 11 // 12 / / ต้องการความ For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie मं०म० | सटीक // 79 // त०१० // 13 // 14 // 15 // 16 // 17 // गरुतःपक्षान् // 18 // 19 // 20 // 21 // 22 // 23 // 24 // इत्थंसिद्धमनमैत्रीस्तंभयहेवतादिकान // पीतवस्त्रस्तदासीन पीतमाल्यानुलेपनः॥१३॥ पीतपुष्प र्यजेदेवीहरिद्रोत्थरजाजपन् // पीतांध्यायन्भगवतीप्रयोगेष्वयुतंजपेत् // 14 // त्रिमध्वाक्ततिलहोमो नृणांवश्यकरोमतः॥ मधुरत्रितयाक्तैःस्यादाकर्षोलवणैध्रुवम् // 15 // तैलाभ्यक्तैर्निवपत्रैहोमोविद्वेष कारकः // ताललोणहरिद्राभिद्विषांसंस्तंभनंभवेत् // 16 // अंगारधूमंराजीश्चमाहिषंगुग्गुलंनिशि // शमशानपावकेहुत्वानाशयेदचिरादरीन् // 17 // गरुतोगृध्रकाकानांकटुतैलंबिभीतकम् // गृहधूम चितावह्नौहुत्वाप्रोच्चाटयद्रिपून् // 18 // दुर्वागुडूचीलाजान्योमधुरत्रितयान्वितान् // जुहोतिसोखिलारो गानशमयेदर्शनादपि // 19 // पर्वताओमहारण्येनदीसंगेशिवालये // ब्रह्मचर्य्यरतोलॉजपेदखिलसिद्ध ये // 20 // एकवर्णगवीदुग्धशर्करामधुसंयुतम् // त्रिशतंमंत्रितंपीतंहन्याद्विषपराभवम् // 21 // श्वेतपालाशकाष्टेनरचितेरम्यपादुके / अलक्तरंजितेलक्षेमंत्रयेन्मनुनामुना // 22 // तदारूढःपुमान् गच्छेत्क्षणेनशतयोजनम् // पारदंचशिलांतालूपिष्टंमधुसमन्वितम् // 23 // मनुनामंत्रयेल्लक्षलिपे तेनाखिलांतनुम् // अदृश्यःस्यान्नृणामेषआश्चर्यदृश्यतामिदम् // 24 // // 79 // For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie यंत्रमाह॥षट्कोणइति // धतूररसाक्तहरिद्राचूर्णेनषट्कोणेऽमुकंस्तंभयेतिवर्णयुतंहीमितिबीजंविलिख्यमं वशेषाणैःसंवेष्टयोपरिचतुरस्रेणवेष्टितंपीतसूत्रवीतंकृत्वा भ्रमत्कुंभकारचक्रस्थमृदारचितवृषोदरेप्रक्षिप्यहरि षट्कोणेविलिखेद्रीजंसाध्यनामान्वितंमनोः॥हरितालनिशाचूर्णैरुन्मत्तरससंयुतैः॥२५॥शेषाक्षरैःसमावी / तंधरागेहविराजितम् // तयंत्रस्थापितप्राणपीतसूत्रेणवेष्टयेत् // 26 // भ्राम्यत्कुलालचक्रस्थांगृही / त्वामृत्तिकांतया // रचयेदृषभंरम्यंयंत्रंतन्मध्यतःक्षिपेत् // 27 // हरितालेनसंलिप्यवृषप्रत्यहमर्च | येत् // स्तंभयद्विद्विषांवाचंगतिकार्यपरंपराम् // 28 // आदायवामहस्तेनप्रेतभूमिस्थखर्परम् // अंगारेणचितास्थेनतत्रयंत्रसमालिखेत् // 29 // मंत्रितंनिहितंभूमौरिपूणांस्तंभयेद्गतिम् // प्रेतवस्त्रेलिखेयंत्रमंगारेणैवतत्पुनः // 30 // मंडूकवदनेन्यस्येत्पीतवस्त्रेणवेष्टितम् // पूजितंपी तपुष्पैस्तद्वाचंसंस्तंभयेद्विषाम् // 31 // तालेनसंलिप्यवृषंप्रत्यहंपूजयेत् स्तम्भनफलम् // 25 // 26 // 27 // 28 // 29 // 30 // 31 // For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१० मं०म०/वृषाआटरूषकः // 32 // 33 // 34 // स्वप्नवाराहीमाह // वेदादीति // वेदादिॐ॥ मायाहीं // हृत्नमः॥ जलवः॥ पावकोरः॥ तौदीर्घोवारा // सदृक्खंहाहि // मेधाघः॥ सद्ययुकूओयुताघो // रेस्वनस्वरूपं // स // 8 // यद्भूमौभवितादिव्यंतत्रयंत्रसमालिखेत् // मार्जितंतदृषापत्रैदिव्यस्तंभनकृद्भवेत् // 32 // इंद्रवारुणि कामूलंसप्तशोमनुमंत्रितम् // क्षिप्तंजलेदिव्यकृतांजलस्तंभनकारकम् // 33 // किंभूरिणासाधकेनमंत्रः सम्यगुपासितः॥शत्रूणांगतिबुद्धयादेस्तंभनोनात्रसंशयः॥३४॥उच्यतेस्वप्नवाराहीजनतावशकारिणी॥ वेदादिवीजमायाचहृद्दी!जलपावकौ॥३५॥खंसहक्सद्ययुग्मेधारेस्वप्नंसर्गिणीचठौ।कृशानुवल्लभांतोयं मंत्रःपंचदशाक्षरः॥३६॥ ईश्वरोजगतीस्वप्नवाराहीमुनिपूर्वकाः // तारोवीजचहल्लेखाशक्तिष्ठौकीलकं मतम् // 37 // द्विपंचनेत्रहस्तांक्षियुग्माणैरंगकंमनोः॥पादलिंगकटीकंठगंडाक्षिश्रुतिनासिके // 38 // | |गिणौठौ / ठाठः // कृशानुवल्लभास्वाहा // 35 // 36 // 37 // वर्णन्यासमाह // पादेति // लिङ्गेकंठकमूर्ध्नि एकैकः॥ अन्यत्रद्वौ 2 // 38 // ॐट्ठींनमोवाराहिघोरेस्वप्नंठाठःस्वाहेतिपंचदशाणः // 2 अस्यस्वप्नवाराहीमंत्रस्यईश्वरऋषिःजगतीछंदःस्वप्नवाराहीदेवताॐबीजंहीशक्तिः ठाठ-कीलकममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // NA80 // For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानमाह // मेघेति // कोलास्यांवराहवदनाम् // दंष्ट्रातलेवर्तमानयावसुधयाशोभिताम् ॥असिलतांकुशौ विन्यस्यमंत्रजान्वर्णानचिंतयेत्परदेवताम् // मेघश्यामरुचिमनोहरकुचानेत्रत्रयोद्भासितांकोला स्यांशशिशेखरामचलयादंष्ट्रातलेशोभिनीम् // विभ्राणांस्वकरांबुजैरसिलतांचर्मापिपाशंसृणिवाराही मनुचिंतयेद्धयवरारूढांशुभालंकृतिम् // 39 // लक्षंजपेदशांशेननीलपद्मस्तिलैःशुभैः // जुहुयात्पूर्व संप्रोक्तपीठेसंपूजयेदिमाम् // 40 // त्रिकोणेतांसमाराध्यषट्कोणेष्वङ्गदेवताः // षोडशारेयजेच्छ क्तिर्वक्ष्यमाणास्तुषोडश // 41 // उच्चाटनीतदीशीचशोषणीशोषणीश्वरी // मारणीमारणीशीचभी पणीभीषणीश्वरी // 42 // त्रासनीत्रासनीशीचकंपनीकंपनीश्वरी // आज्ञाविवर्तिनीपश्चादाज्ञाविवर्तिनी श्वरी॥४३॥वस्तुजातेश्वरीवाथसर्वसंपादनीश्वरी // एताःपूज्याश्चतुर्थ्यताःप्रणवाद्यानमोन्विताः // 4 // यजेदष्टदलेप मातृभैरवसंयुताः॥लोकपालान्दशदलेद्वितीयेहेतिसंयुतान् // 45 // एवंसिद्धंमनुमंत्री काम्यकर्मणियोजयेत् // तर्पयेन्नारिकेलोत्थैर्जलैस्तीर्थोद्भवैरपि // 46 // दक्षयोः // 39 // 40 // 41 // 42 // 43 // 44 // 45 // 46 // For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० सटीक // 8 // त०१० कृष्णपक्षइत्यारभ्यवशगाध्रुवमित्यंतएकोवश्यार्थप्रयोगः॥ 47 / / नृकाकाजानांनरवायसमेषाणाममुजारु मानयेतरुणीवर्गानसर्वकामार्थसिद्धये // कृष्णपक्षेष्टमीपस्रभूताहेवाकृतव्रतः // 47 // चतुष्प थानदीकूलद्वयात्कौलालवेश्मनः // मृदमानीयधत्तूररससंयुक्तयातया // 18 // रचयेत्पुत्तली रम्यांसाध्यासुस्थापनान्विताम् // ततःप्रेतांबरेयंत्रनुकाकाजासृजालिखेत् // 49 // चितांगारयु जायोनिषट्कोणंभूपुरान्वितम् // तदंतमंत्रमालिख्यवेष्टयेन्मनुनामुना // 50 // साध्यमुच्चाटययुगं शापयद्वितयंततः // मारयद्वितयंचाथभीषयद्वितयंततः // 51 // नाशयद्वितयंपश्चातशिरः कम्यययुग्मकम् // ममाज्ञावर्तिनपश्चात्कुरुसर्वाभिमार्णकाः // 52 // तवस्तुजातंशब्दांतसंपादययुगं ततः॥ सर्वकुरुयुगंस्वाहामुनिसप्ताक्षरोमनुः // 53 // धिरेण // 48 // 49 // 50 // वेष्टनमंत्रमाह // साध्यमिति // 51 // शिरःस्वाहा स्पष्टमन्यत् // 52 // मुनिसप्ताक्षरः॥ सप्तसप्तत्यर्णः॥५३॥ १साध्यमुच्चाटयउच्चाटयशापयशोषयमारयमारयभीषयभीषयनाशयनाशय शिरःकंपयकंपयममाज्ञावतिनंकुरुकुरुसर्वाभिमतवस्तुजातं संपादयसंपादयसबकुरुकुरुस्वाहा // 7 // H // 8 // For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie उक्तमार्गतः पूर्वोक्तविधिना // 54 // 55 // 56 // 57 // यंत्रमाह // कृत्वेति // कामाकीं // वाग्भवंऐं // पाशंआं // मायांहीं // सृर्णिक्रौं / श्रियंश्रीं // दीर्घकवचंहूं // 58 // 59 // 60 // पूर्वोक्त उच्चाटनाद्याः॥ 61 // अनेनवेष्टितंयंत्रंकृतंदेवीप्रतिष्ठितम् // पुत्तल्यादिविन्यस्ययजेत्तामुक्तमार्गतः॥ 54 // तदप्रजपे न्मंत्रंराबावेकांतमाश्रितः // सहस्रसाष्टकंभूयःपूजयेत्तांसमाहितः // 55 // एवंकृतेनरानार्योराजानो राजवल्लभाः॥ सिंहागजामृगाराभवेयुर्वशगाध्रुवम् // 56 // चित्तेच्यात्वानिजंकायंशयीतविजने व्रती॥यथाभावितथादेवीस्वमेवदतिमंत्रिण।जाअर्थतस्यामहायंत्रप्रवक्ष्येसिद्धिदंनृणाम्॥कृत्वात्रिको णषट्कोणंषोडशारंवसुच्छदम् // 58 // दशारद्वितयंपंचदशानभूपुरद्वयम् // त्रिकोणेकामबीजस्थं वाग्भवंविलिखेत्पुनः॥५९॥ षट्सुकोणेषुवाग्बीजंपाशंमायांसृणिश्रियम् // दीर्घचकवचंपश्चाद्विलिखे त्षोडशच्छदे // 60 // शक्ती शोडशपूर्वोक्ताबाहयाद्याअष्टपत्रके // भैरवैःसंयुतान्यस्येद्दशारेदिक्पती क्रमात्॥६॥स्वस्वबीजादिकान्वीजसमूह कथ्यतेऽधुना॥मांसंरक्तंविषमेरुजलवायु गुर्वियत्॥२॥ एतानिशशियुक्तानिपाशोमायांतिमोमतः॥ वज्राद्यानविलिखेदसम्यकपंक्तिपत्रेद्वितीयके // 63 // दिक्पालबीजान्याह // मांसमिति // मांसंलः॥रक्तरः // विषमः॥ मेरुरक्षः॥ जलंवः॥वायुर्यः॥ भृगुस्सः वियतहः // एतानिशशियुक्तानिबिंदुयुतानि // पाशंआं // अंतिमाचरमामायाह्नीं // 62 // 63 // For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक तिथिपत्रेपंचदशदले // गायव्यर्णैवैदिकगायत्रीवर्गः॥ भूमीति // चतुरस्रद्वयकोणेषुवाय्वनीयरेफौलिखेत्॥ // 64 // 65 // वार्तालीमाह // वागिति // भूमिग्लौ // सावाग्बीजेनपुटिता // तन्मध्यस्थऐंग्लौंऐमिति // // 82 // तिथिपत्रमूलवर्णान्गायत्र्यणैःप्रवेष्टयेत् // वाय्वग्नीविलिखेद्भूमिमंदिरद्वितयात्रिषु // 64 // भूर्जादौ यंत्रमालिख्यजपंसंपातसाधितम् // बाह्यादौविधृतंदद्यान्नृणांकीर्तिधनंसुखम् // 66 // बहुनाकि मिहोक्तेनवाराहीष्टंप्रयच्छति // वाग्वीजपुटिताभूमिनमोंतेभगवत्यथ // वार्तालिवारागगनसहक्वारा हिवापदम् // 66 // राहमुखिततोवीजत्रयंपूर्वोदितंवदेत् // अंधेअंधिनिहृदयरुंधेरुधिनिहत्तथा // 6 // जंभेभिनिहृत्पश्चान्मोहेमोहिनिहत्पुनः॥ स्तंभेस्तंभिनिहादौतेपुनर्बीजत्रयंवदेत् // 68 // सर्वदुष्ट प्रदुष्टानांसर्वेषांसवाक्पदम् // चित्तचक्षुर्मुखगतिजिह्वास्तंभंकुरुद्वयम् // 69 // सदृगगनहि। पूर्वोदितंबीजवयं // ऐंग्लौऐमिति॥हृदयनमः॥ हन्नमः॥ हाईनमः॥बीजत्रयाऐंग्लौंऐमिति॥ For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिबीजी // ऐंग्लौंऐमिति // सर्गाढ्यं ठचतुष्टयं // ठठाठाठः // वेदरुद्राक्षरः // चतुर्दशोत्तरशतार्णः // शीघ्रंवश्यंकुरुद्वंद्वंत्रिवीजीठचतुष्टयम् // सर्गाव्यंवर्मफट्स्वाहावेदैरुद्राक्षरोमः॥ 70 // प्रणवादिमु | निश्छंदःशिवोतिजगतीतथा // वार्तालीदेवताप्रोक्तावालिहृदयंस्मृतम् // 71 // वाराहीति शिरःप्रोक्तंशिखावाराहमुख्यपि // अंधेअंधिनिवोक्तंरुंधेरुधिनिनेत्रकम् // 72 // जंभेजभिनिचास्त्रं स्यात्ततोध्यायेत्तुदेवताम् // रक्तांभोरुहकर्णिकोपरिगतेशावासनेसस्थितांमुंडस्रपरिराजमानह दयांनीलाश्मसद्रोचिषम् // हस्ताजैर्मुशलंहलाभयवरान्संबिभ्रतींसत्कुचांवार्तालीमरुणांबरांत्रिनयनां वंदेवराहाननाम् // 73 // सप्तदशसहस्राणिप्रजपेत्तदशांशतः॥ तिलैबधूककुसुमैर्जुहुयान्मधुरान्वितैः॥ // 74 // पूजायंत्रमथोवक्ष्येजपादिनवशक्तिकम् // स्वर्णेरुप्येतथातानेभूर्जपत्रेथदारुणि // 75 // // 70 // 71 // 72 // ध्यानमाह ॥रक्तेति / / मुसलवरौदक्षयोः॥ 73 // 74 // 7 // 1 ॐऐंग्लौंऐनमाभगवतिवार्तालिवाराहिवाराहिवाराहमुखिऐंग्लौंअंधेअंधिनिनमोरुंधेरुधिनिनमोजभेजभिनिनमामोहेमोहिनिनमोस्त भेस्तंभिनिनमोऐंग्लासर्वदुष्टप्रदुष्टानांसर्वेषांसर्ववाक्पदचित्तंचक्षुर्मुखगतिजिह्वास्तंभकुरुकुरुऐंग्लौंऐंठ ठाठ ठहुंफट्स्वाहा 114 // 2 अस्य 38 |श्रीवातालीमंत्रस्यशिवऋषिःजगतीछंदःवार्तालीदेवताममाखिलावाप्तयेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१० मं०म०रात्रिहरिद्रा॥पूजायंत्रमाह॥योनीति॥योनिस्त्रिकोणं // 76 // भूबिंबंचतुरस्त्रं // 77 // तदग्र्यादिषु तस्यादे व्याअभ्यादिषु अग्निनिर्ऋतिवाय्वीशानाग्निदिशासु // अंगकं // षडंगानियजेदितिपूर्वेणान्वयः // 78 // // 83 // लिखेगोरोचनारात्रिचंदनागुरुकुंकुमैः॥ योनिपंचास्रषट्कोणाष्टपत्रशतपत्रकम् // 76 // सहस्रदलभू विंबसंवीतद्वारसंयुतम् // कैलासाचलमध्यस्थंपीठमेतद्विचिंतयेत् // 77 // तत्रावाह्ययजेदेवीमुपचारै मनोहरैः // त्रिकोणमध्येदेवेशीतदग्न्यादिषुचांगकम् // 78 // वार्तालीचापिवाराहीपूज्यावाराह मुख्यपि // त्रिकोणेष्वथपंचास्रष्वधिनीरुधिनीतथा // 79 // जमिनीमोहिनीचापिस्तंभिनीज्यातुपं चमी // षट्कोणेषुपुनःपूज्याडाकिनीराकिनीतथा // 80 // लाकिनीकाकिनीचापिशाकिनीहाकिनी पुनः॥ षट्कोणपार्श्वयोःपूज्यंस्तभिनीकोधिनीद्वयम् // 81 // मुशलेष्टकरात्वाद्याकपालहलभृत्परा // | षट्काणाग्रयजच्चंडोचंडंतस्याःसुतोत्तमम् // 82 // // 79 // 80 // 81 // स्तंभिनीध्याने // इष्टोवरोदक्षे // मुसलवामे // पराक्रोधिनी // कपालहलभृत् कपालंद क्षे॥ देवीसुतायचंडोच्चंडायनमइतिसुतपूजा // 82 // Ball BA on For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सुतध्यानमाह // शूलमिति // डमरुकपालेदक्षयोः॥शूलनागौवामयोः // 83 // वार्तालीमुखं वार्ताल्या दि॥ देव्यष्टकमनंतरोक्तं वार्तालीवाराहीवाराहमुख्यधिनीसँधिनीजंभिनीमोहिनीस्तंभिनीसंज्ञक // रुद्रा एकादश वीरभद्रादयः॥ अर्काद्वादश धात्रादयः ॥वसवोष्टौधरादयः // अश्विनौनासत्यदस्रो // 84 // शूलंनागंचडमरुंकपालंदधतंकरैः।।इन्द्रनीलनि नग्नजटाभारविराजितम् // 83 // अष्टपत्रेषुवार्तालीमुखं देव्यष्टकंयजेत्॥शतपत्रेषुसंपूज्यारुद्राकौवसवोश्विनौ // 84 // त्रिरेकैकोत्यपत्रेतुभिनीस्तीभनीयुता॥ शतकोणाग्रतःपूज्यःसिंहोमहिपसंयुतः // 86 // सहस्रपत्रेवाराहीपूजयेत्तुसहस्रशः // अंकुशोडेंतवाराही नमोंतस्तन्मनुःस्मृतः // 86 // भूपुरद्वारदेशेतुबटुकंक्षेत्रपालकम् // योगिनींगणनाथंचतत्तन्मत्रैः प्रपूजयेत् // 87 // फांतःसविंदुर्बटुको.तोहत्सप्तवर्णकामेरु शशियुतःक्षेत्रपालायनमसान्वितः // 88 // पकैकापत्रबिके पूज्यः॥ एवंनवनवतिः // चरमपत्रेतुजंभिनीस्तीभनीभ्यांनमइति // 85 // वाराहीमंत्रमा ह॥अंकुशइति // क्रौंवाराखैनम इतिमंत्रेणसहस्रवारंवाराहीमेवपूजयेत् // 86 // 87 // बटुकमंत्रमाह॥फांतइ ति // फांतोबः // बंबटुकायनमइति॥क्षेत्रपालमंत्रमाह॥मेरुरिति॥मेरुःक्षः॥क्षक्षेत्रपालायनमःइति // 88 // ma RAN For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१० मं०म० योगिनीमंत्रमाह // शेषेति // वायुर्यः॥ शेषयुक्आयुतः॥ सचंद्रोबिंदुयुतश्च // यांयोगिनीभ्योनमइति // गणेशमंत्रमाह / खांतइति // खांतोगः॥ गंगणपतयेनमइति // 89 // 90 // 91 // बटुकस्यबलिमंत्रमाह // // 8 // एहीति // सहजलमियुतोवः॥ वि॥ वहिपत्नीस्वाहा // स्वरूपमपरं // शरपंचाक्षरः॥ पंचपंचाशदर्णः॥ अष्ट्राणःशेषयुग्वायुःसचन्द्रोयोगिनीपदम्।।भ्योनमोंतःसप्तवर्णःखांतश्चंद्रान्वितोगणः।।८९॥पतयेहच्चाष्ट वर्णाप्रोक्तास्तेमनवक्रमात् // दिक्पालानायुधैर्युक्तादिक्षुसंपूजयेत्ततः॥ 90 // पूजांतेवटुकादिभ्यो बलिमत्रैवलिंहरेत् / / बलिदानोचितामंत्रा कीत्यतेखिलसिद्धिदाः॥ 91 // एह्येहीतिपदंप्रोच्यदेवीपुत्रेति कीर्तयेत् // बटुकांतेनाथकपिलजटाभारभासुर // 92 // त्रिनेत्रज्वालाशब्दांतेमुखसर्वजलंसहक् // नान्नाशययुगंसर्वोपचारसहितंबलिम् // 93 // गृह्णयुग्मंवह्निपत्नीशरपंचाक्षरोमनुः // बटुकस्यवलिंद द्यादननश्रद्धयान्वितः // 94 // मेरुःषड्दीर्घयुगवर्मस्थानक्षेत्रपदंवदेत् // पालेशसर्वकामंचपूरयान | लवल्लभा॥९॥त्रयोविंशतिवर्णाढयक्षेत्रपालमनुमतः॥ योगिनीनामथोमंत्र पद्यरूपःप्रपठ्यते // 16 // VI // यथा // एोहिदेवीपुत्रंबटुकनाथकपिलजटाभारभासुरत्रिनेत्रज्वालामुखसर्वविघ्नान्नाशय 2 सर्वोपचा वारसहितंबलिंगृह 2 स्वाहेति // 92 // 93 // ९४॥क्षेत्रपालबलिमंत्रमाह। मेरुरिति / / मेरुाक्षः // षड्दीर्घ युक् // क्षांक्षीभृक्षौंक्षः // इंस्थानेक्षेत्रपालेशसर्वकामंपूरयस्वाहेति // 95 // 96 // 8 For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगिनीबलिमंत्रमाह // ऊर्ध्वमित्यादि // 97 // स्वाहांतःस्वरूपमेव // भूमिनन्दाक्षरः // एकनवति वर्णः // 98 // गणेशबलिमंत्रमाह // दीर्घइति // शाीगः // दीर्घत्रयेंदुयुक् // गांगींगू॥ सेंदुर्ग / मारुती उब्रह्मांडतोवादिविगगनतलेभूतलेनिष्कलेवापातालेवानलेवासलिलपवनयोर्यत्रकुत्रस्थितावा // क्षेत्रे | पीठोपपीठादिषुचकृतपदाधूपदीपादिकेनप्रीतादेव्यःसदानःशुभवलिविधिनापातुवीरेंद्रवंद्याः // 97 // यांयोगिनीभ्यःस्वाहांतोभूमिनंदाक्षरोमनुः॥ योगिनीनांबलिंदद्यादनेनविधिपूर्वकम् // 98 // दीर्घ त्रयेंदुयुक्सेंदुःशाीगणपतार्णकाः॥ मारुतोभगवांस्तोयंरवरांतेदसर्वच // 99 // जनमेवशमानां तेयःसर्वोलोहितोहली ॥दीर्घोरसहितंप्रांतेवलिंगृह्णयुगशिरः॥ 10 // गणेशवलिमंत्रोयंगगनश्रुतिवर्ण वान् // एवंतेभ्योवलिंदत्त्वास्वस्वमुद्रांप्रदर्शयेत् // १॥अंगुष्ठंतर्जनीयुक्तंदर्शयेद्बटुकेवलौ // अंगुष्ठाना मिकेवामक्षेत्रपालवलोमता // 2 // यः // भगवान्एयुतः // ये // तोयंवः // 99 // लोहितःपः // दीर्घोहलीचा // शिरःस्वाहा // 100 // गगनश्रुतिवर्णवान् // चत्वारिंशदर्णः ॥यथा॥ ॐगांगींगूंगंगणपतयेवरवरदसर्वजनंमेवशमानयसर्वोपचारस हितंबलिंग्रह 2 स्वाहेति // 101 // 102 // For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 8 // त०१० // 103 // 104 // 105 // 106 // 107 // तापिच्छंनामतमालपुष्पं // लाजानांचूर्णयुतैस्तिलैःखरमे षरुधिरयुतैः // 108 // सपत्नसदनंशत्रुगृहमेतस्मैपिंडाय // 109 // 110 // 111 // यंत्रमाह // किंचिद्वक्रीकृतामध्यागणनाथवलौस्मृता // अनामामध्यमांगुष्ठायोगिनीनांवलौपुनः // 3 // एवं संपूज्यसंस्तुत्यनत्वात्मन्युपसंहरेत् // सिद्धमंत्र प्रकुर्वीतप्रयोगानशिवभाषितान् // 4 // हरिद्रया चन्दनेनलाक्षयागुरुणापिच // पुरेणविविधैर्मीसैर्जुहुयादिष्टसिद्धये // 5 // हरिद्रामालयाकुर्याजपः स्तंभनकर्मणि // स्फाटिकैःपद्मवीजैश्चरुद्राक्षैःशुभकर्मणि // 6 // स्वर्णादिपावैःसुरयाबंधूककुसुमैस्ति लैः॥ वाराहीतर्पयेत्सम्यक्कामसंपूर्तयेनरः // 7 // चतुःशतंततापिच्छैर्जुहुयातस्तंभनेच्छया // लाज चूर्णतिलै कुर्यात्खरमेपासृजान्वितैः॥ 8 // पिंडंमनोहरंतंतुपूजयेत्तर्पयेदपि // सपत्नसदनंसांगमेत स्मैविनिवेदयेत् // 9 // कुंडपिंडंनिधायामुंजुहुयात्तत्रचायुतम् // एकविंशतिरात्रीषुलाजैरक्तसमन्वि तैः॥ 110 // एवंकृतेवैरिदंभक्ष्यतेयोगिनीगणैः॥ अथयंत्रमहादेव्याःप्रोच्यतेशकटाभिधम् // 11 // विलिख्यतारेसाध्याख्यंभूवीजेनप्रवेष्टयेत् // उकारेणचसंवेष्टयभूपुरंपरितोलिखेत् // 12 // विलिख्येति // तारेप्रणवे // साध्याख्यंसाध्यनाम // भूबीजेन ग्लौमितिबीजेन // 112 // For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मसमन्वितम् // अमुकमुच्चाटयेतिक्रियायुतम् // 113 // धराबीजंतदेव // अंकुश क्रौं // झिंटीशः एकारः॥ 114 // नूत्नेनवीने // 115 // रात्र्याहरिद्रया // पाषाणेलिखित्वाग्नौनिक्षिप्ततापकारि // 116 // अष्टवजान्वितंवज्रपांतेप्रणवमालिखेत् // वज्रमध्येसाध्यनामलिखेत्कर्मसमन्वितम् ॥१३॥धराबीजेनसंवे घ्यभूपुरंमूलविद्यया // बहिरंकुशसंवीतंझिंटीशेनप्रवेष्टयेत् // 14 // एतद्यसमालिख्यनूनेकौलाल खपरे // कृष्णपुष्पैःसमभ्यय॑निक्षिपेत्त्वरिवेश्मनि // 15 // रिपुमुच्चाटयेच्छीघ्रंस्थितंवर्षशतान्यपि // वादित्रेयंत्रमालिख्यवादयेत्समरांतरे॥१६॥ श्रुत्वातद्रवसंत्रस्ताःपलायंतेविरोधिनः॥ पाषाणेलिखितं राव्यापीतपुष्पेषुनिक्षिपेत् // 17 // संपूजितमधोवकंवाचंसंस्तंभयेद्विषाम् // तापकार्यग्निनिक्षिप्तंजले दोषप्रदंभवेत् // 18 // साध्यक्षतरुगर्भस्थंशत्रूणांदुःखदायकम् // किंबहूक्तेनसर्वेष्टंसाधयेत्साधितंनृ णाम् // 119 // // इति श्रीमहीधरविरचितेमंत्रमहोदधौवगलादिमंत्रकथनंनामदशमस्तरंगः॥१०॥ Ram 117 // 118 // साध्यक्षतरवः // साध्यस्ययजन्मनक्षत्रंतस्यवृक्षमध्येक्षिप्तंतेषांदुःखदं // तेचपूर्वमुक्ताः॥ साधितंसंपातादिनाप्रतिष्ठितमेतद्यंत्रसर्वेष्टंसाधयेत् // 119 // इति श्रीमंत्रमहोदधिनौकायांबगलादिनिरू पणंदशमस्तरंगः।। 10 // SASHANAapessagessespurESENSUSHAUSSAIJADAasss 3300RRRORMEREShiTERTISMENThilwsna For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ०म० श्रीविद्यांवक्तुंमंगलमाचरति // त्रिनेत्रमिति // मंत्रनायिकाम् // त्रिलोकीवर्तिनासर्वमंत्राणांस्वामिनी | सटीक मुत्पादिकामित्यर्थः // 1 // अपरीक्षितायशिष्यायतांविद्यानदद्यात् // आत्मादेयःशिरोदेयंनदेयाषी // 86 // डशाक्षरीतिवचनात् // 2 // मंत्रमुद्धरति // तारमिति // तार ॐ॥ मायाहीं // कमलाश्रीं // एतद्वीजत्रयं त०११ कूटत्रयादौपठेत् // आद्यकूटमाह // ब्रह्मेति // ब्रह्माकः // झिंटीशए // गोविंदई // धरालः // मा त्रिनेत्रंकमलाकांतनृसिंहचंद्रशेखरम् // नत्वासंक्षेपतोवक्ष्ये श्रीविद्यामंत्रनायिकाम् // 1 // अपरीक्षित शिष्यायतांनदद्यात्कदाचन // यदुच्चारणमात्रेणपापसंघःप्रलीयते // 2 // तारंमायांचकमलामा दौबीजत्रयंपठेत् // ब्रह्मझिंटीशगोविंदधरामायेतिचादिमम् // 3 // आकाशभृगुचक्राभ्रमांसमायाद्विती यकम् // हंसधातृक्षमामायातृतीयंबीजमीरितम् // 4 // Salu6 // येति // प्रथमंकूटं / कएईलहीमिति // द्वितीयमाह // आकाशेति // आकाशोहः // भृगुःसः // चक्रीकः॥ अभ्रंहः॥ मांसंलः॥ मायेतिद्वितीयंकूटम् // हसकहलहीमिति // तृतीयमाह // हंसेति // हंसःसः ॥धाता कः॥क्षमालः / / मायाचेतितृतीयंकूटम् // सकलहीमिति // 3 // 4 // For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कूटत्रयस्यसंज्ञाआह // वागिति // प्रथमंवाग्बीजं // द्वितीयंकामबीजं // तृतीयंशक्तिबीजं // श्री श्री बीजं // मायाहीं // कामाक्लीं // वाऐं // शक्तिःसौः॥ एतैःपंचबीजैःक्रमोत्क्रमाभ्यांसंपुटापूर्वोक्तषडर्णा षोडशाक्षरीश्रीविद्याभिधामहाविद्या // 5 // 6 // भृगुःसः // औःस्वरूपं // तेनसौःशक्तिः // कामबी वाकामशक्तिसंज्ञंतुक्रमाद्वीजयंभवेत् // इयंषडर्णाश्रिमायाकामवाशक्तिसंपुटा // 5 // अनेकपु ण्यासंप्राप्याश्रीविद्याषोडशाक्षरी // मुनिःस्यादक्षिणामूर्तिःपंक्ति छंदःसमीरितम् // 6 // देवताज गतामादिश्रीमत्रिपुरसुंदरी // बीजमैं गुरौःशक्ति कामबीजंतुकीलकम् ॥७॥मू स्यहृद्ब्रह्मपादेनाभौ मुन्यादिकान्यसेत् // न्यासजालंप्रकुर्वीतमायाश्रीवीजपूर्वकम् // 8 // जंक्लीं // 7 // न्यासानाह // मूर्धेति // दक्षिणामूर्तयेनमोमूर्ध्नि // पंक्त्यैनमोमुखे // त्रिपुरसुंदर्यैनमोहदि ऐंबीजायनमोगुह्ये // सौःशक्तयेनमःपदयोः॥ क्लींकीलकायनमोनाभौ // इतिमुन्यादिन्यासः // 8 // 1 श्रीह्रींक्लीएसौःह्रीश्रीकएइलहींहसकहलह्रींसकलहोंसौऐक्कीह्रीं श्रीमितिषोडशाक्षरी // 2 अस्यत्रिपुरसुंदरीमंत्रस्यदक्षिणामूर्तिर्ऋषिः | पंक्तिःछंदःश्रीमत्रिपुरसुंदरीदेवताएँबीजंसौःशक्तिक्लींकीलकंममाभीष्टसिध्यर्थे जपेविनियोगः / / For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०११ मं०म० अन्यान्यासानाह / मध्यति // इमान् श्रीकंठादिनमीताद्विारद्वयंमध्यानामिकाकनिष्ठांगुष्ठतर्जनीतलपृ Aष्ठेषुन्यसेत् // 9 // इमान्कानित्यतआह // श्रीति // श्रीकंठोकारः॥ अनंतआकारः॥ सौस्वरूपम् // क्रमा // 87 // द्विंद्वादियुतान् // अआएतौसबिंदू // सौसर्गी // यथा // मायाश्रीबीजपूर्वकमिति सर्वन्यासेषुसंबद्धयते // माहींश्रीअंमध्यमाभ्यांनमः॥हीं श्रींआंअनामिकाभ्यांनमः॥ ह्रींश्रीसौ कनिष्ठिकाभ्यांनमःहीं श्रींअंअंगुष्ठाभ्यां मध्यानामाकनिष्ठासुज्येष्ठयोस्तर्जनीद्वयोः // तलेपृष्ठेचकरयोविन्यसेद्दिष्क्रमादिमान् // 9 // श्रीं कंठानंतसौवर्णानबिंदुसर्गसमन्वितान् // नमोंतानकरशुद्धयाख्योन्यासोयंपरिकीर्तितः // 10 // देव्यासनंचप्रथमंतथाचक्रासनंक्रमात् // सर्वमंत्रासनंसाध्यसिद्धासनमितिन्यसेत् // 11 // उनमोतं चबीजाव्यंपजंघाजानुलिंगके // मायांकामशक्तिबीजप्रथमासनपूर्वकम् // 12 // वियदारूढवाक् कामशक्तिबीजानिपूर्वतः // द्वितीयेसंप्रयोज्यानिसहपूर्वाणितत्परे // 13 // नमः॥ह्रींश्रींआंतर्जनीभ्यांनमः॥ह्रीं श्रींसौःकरतलकरपृष्ठाभ्यांनमः॥अयंकरशुद्धिन्यासः॥१०॥आसनन्यास माह // देवीति॥देव्यासनाद्यासनचतुष्कं ॥डेनमोतंचतुर्थीनमोतंबीजाद्यंमायामित्यादिवश्यमाणप्रातिस्वि कबीजपूर्वपज्जंघाजानुलिंगेषुन्यसेत्॥प्रथमासनबीजान्याह॥मायामिति ॥शक्तिःसौचक्रासनबीजान्याह॥ वियदिति // वियतहः // तद्युतानिवागादीनितत्परेतृतीयासनेसहपूर्वाणिवागादीनि // 11 // 12 // 13 // ||87 // For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थासनबीजान्याह ॥मायामिति // फातमांसेवलौ // भगेऽद्वाढचेएबिंदुयुतेतेनल्बे // यथा // ह्रींश्रीह्रीं क्लीं सौ.देव्यासनायनमःपादयोः॥ ह्रींश्रींहँसक्तींहसौःचक्रासनायनमःजंघयोः // ह्रीं श्रींहसैंहसलींहसौःसर्व मंत्रासनायनमःजानुनोगह्रीं श्रींह्रींक्कील्वेसाध्यासिद्धासनायनमोलिंगेइत्यासनन्यासः॥ 14 // षडंगमाह // ततइति // श्रीह्रींकींऐसौहृदये ॥ॐह्रीं श्रींशिरः॥ आद्यकूटेनशिखा // मध्यकूटेनकवचं // तृतीयकूटेननेत्र। मायाकामफांतमांसेभगेंदाढयेप्रयोजयेत्॥तुरीयासनपूर्वाणीत्यासनन्यासईरितः॥३४॥ ततःषडंगकुर्वी तपंचभिस्त्रिभिरेकतःएकेनकेनपंचामंत्रस्यक्रमतःसुधीः // 15 // मूलविद्यांसमुच्चार्यप्रणवादिनमों तिकाम् // मध्यमानामिकाभ्यांतुब्रह्मरंधेप्रविन्यसेत् // 16 // सुधांसवंतींवर्णेभ्यःप्लावयंतीनिजांतनुम् // प्रदीपकलिकाकारांमहासौभाग्यदांस्मरेत् // 17 // मुद्रांकृत्वावामकर्णेपरसौभाग्यदंडिनीम् // वाममूर्दादिपादांतंतथामूलंप्रविन्यसेत् // 18 // सौपेक्लींहींश्रीअस्त्रम् // इतिषडंगन्यासः॥१५॥ मंत्रवर्णेभ्योऽमृतक्षरंतीतेननिशरीरमाप्लावयंतींदीपाकारा ब्रह्मरंध्रस्थांसौभाग्यदादेवींध्यायंसतारादिनमोंतमूलमध्यमानामिकाभ्यांशिरसिन्यसेत् // 16 // 17 // पुनर्वामकर्णेपरसौभाग्यदंडिनीमुद्रांकृत्वावामपाधैमूर्धादिपादांतंतारादिनमोतंमूलंन्यसेत् // 18 // For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म० 88 रिपुजिह्वाग्रहांमुद्रांदर्शयन्सर्वशत्रूनिगृहामीतिसंचिंत्यपादमूलेतारादिनमोतंमूलंन्यसेत् // सकललो सटीक ककर्ताहमितिबीजविचिंत्यत्रिखंडयामुद्रयाललाटेतारादिनमोतंमूलंन्यसेत् // 19 // 20 // मुखेसंवे Hष्टयंस्तारादिनमोंतमूलंन्यसेत् दक्षकर्णतोवामांतकंठान्मुखांतमेवमेवन्यसेत् // 21 // पुनःप्रणवपुटां त०११ त्रिखंडयामुद्रयातुभालेमूलंन्यसेत्तथा // त्रैलोक्यस्याखिलस्याहंकतॆतिस्वंविचिंतयेत् // 19 // रिपुजिह्वाग्रहांमुद्रांदर्शयन्सर्वविद्विषः // निगृह्णामीतिसंचिंत्यपादमूलेतथान्यसेत् // 20 // मुखे / संवेष्टयन्यस्येत्पुनर्दक्षिणकर्णतः // विन्यस्यवामकर्णातकंठावंततोन्यसेत् // 21 // तारसं पुटितांविद्यासागेविन्यसेत्पुनः // योनिमुद्रांमुखेबद्धानमेत्रिपुरसुंदरीम् // 22 // ब्रह्मरंध्रुहस्तमूले भालेविद्यांप्रविन्यसेत् // अंगुष्ठानामिकाभ्यांतुन्यासःसम्मोहनाभिधः // 23 // A B BIIICCII विद्यांसोगेन्यसेत् // मुखेयोनिमुद्रांबद्धातथैवदेवींन्यसेत् // 22 // अयंजगद्वशीकरणन्यासः // देवी कात्यांविश्वरक्तध्यायनंगुष्ठानामिकाभ्यांब्रह्मरंध्रेमणिबंधेललाटेविद्यांन्यसेदितिसंमोहनोन्यासः // 23 // For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परसौभाग्यदंडिनीमुद्रोक्ता॥तल्लक्षणंयथा। वामेमुष्टिंदृढबद्धातर्जनीप्रविसारयेत् // भ्रामयेद्वामकर्णातंमुद्रां सौभाग्यदंडिनीति // रिपुजिह्वाग्रहणमुद्रालक्षणंतु॥अंगुष्ठगर्भितंमुष्टिंबनीयादक्षपाणिना // रिपुजिह्वाग्रहा ख्येयंमुद्रोक्ताशत्रुनाशिनीति॥मुद्रावामपादतलेकृतति त्रिखंडालक्षणंतारातंत्रउक्तं // 24 // अक्षरन्यासंसंहा राख्यमाह पादयोरिति॥२५॥ पादादिष्वेकैकमक्षरंन्यसेत्॥कर्णवेष्टःकर्णशष्कुली॥श्रींनमःपादयोः॥हींनमो जगवश्यकराख्योयंन्यासःसंकीर्तितोमया // संस्मरन्नरुणीमूलंसुंदरीप्रभयाजगत् // 24 // पादयोर्जघयो य॑स्येजानुनो कटिभागयोः // लिंगपृष्ठेनाभिदेशेपार्श्वयोस्तनयोरपि // 25 // अंसयोःकर्णयोब्रह्म रंधेवकेचनेत्रयोः॥ कर्णयोःकर्णवेष्टेपिमूलस्यैकैकमक्षरम् // 26 // संहारन्यासक्तोयंततोवाग्देवतां न्यसेत् // तासांबीजानिनामानिन्यासस्थानानिचब्रुवे // 27 // अग्निभूधरमांसाढयो(शोबीजंशशां कयुक् // षोडशस्वरवीजाठ्यांवशिनीशिरसिन्यसेत् // 28 // जंघयोरित्यादिप्रयोगः // 26 // अयंसंहारन्यासः॥२७॥वाग्देवतान्यासमाह॥अनीति||अग्नीरेफ।भूधरोवः॥ मांसंलः॥ एतैर्युतो(शऊकार शशांकयुक् // बिंदुयुतः // तेनब्लू // षोडशस्वरपूर्वकं तद्वीजपूर्वावशिनी शिरसिन्यसेत् // यथा // अंआइईउऊलंलएऐओंऔंअंब्लूवशिनीवाग्देवतायैनम:शिरसि // 28 // For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 89 // त०११ क्रोधीशेति // क्रोधीशकः // मांसंलः // एताभ्यांयुतामायाह्रीं // कवर्ग:पूर्वोयस्येदृशमेतत्बीजमाद्यं यस्यास्तांकामेश्वरीभालेन्यसेत् // यथा। कंखंगंधंडंक्लीं ह्रींकामेश्वरीवाग्देवतायैनमोललाटे // 29 // दीर्घेति॥ दी?नकारः॥ खड्गीशोवः॥रांतोलः॥ एतैर्युताशांतिरीकारः॥ बिंदुयुतातेनन्ब्लीं॥चवर्गणतद्वीजेनचयुतां मोहिनीभ्रूमध्येन्यसेत्॥यथा|चंछंजंझंन्ब्लींमोहिनीवाग्देवतायैनमोभ्रूमध्ये॥३०॥अर्धीशेति॥अर्धीशऊ // क्रोधीशमांसयुग्मायाद्वितीयंवीजमीरितम् // कवर्गपूर्ववीजाठ्यांभालेकामेश्वरींन्यसेत् // 29 // दीर्घा खड्गीशरांताढ्याशांतिबिंदुसमन्विता // चवर्गतद्वीजयुतांभ्रूमध्येमोहिनींन्यसेत् // 30 // अर्षी शोवायुमांसस्थोविंदाढयस्तत्तुरीयकम् // टवर्गवीजपूर्वातुविमलांविन्यसेद्गले // 31 // शूलीवैकुंठरे फस्र्थवामनेत्रंसविंदुतत् // तवर्गवीजसंयुक्तांविन्यसेदरुणांहदि // 32 // कीदृशः॥ वायुमासस्थः // यलोस्थितौयस्मिन् // बिंदुयुतस्तत्तुरीयंचतुर्थवाग्देवताबीजं // तेनय्लूं // टवर्ग स्तद्वीजंचपूर्वयस्यास्तांविमलांकंठेन्यसेत् ॥यथा। टंठंडंटणंय्लूविमलावाग्देवतायैनमाकंठे ॥३१॥शूलीति॥ वामनेत्रमी // कीदृशं // शूलीजः॥ वैकुंठोमः॥ रेफस्तस्थितायत्रतत्॥सबिंदुच // ईदृशंतद्वीजतेनज्मीं॥ तवर्गबीजाभ्यांयुतामरुणांहदिन्यसेत् // यथा // तथंदंधनंज्धीअरुणावाग्देवतायैनमोहदि // 32 // ||89 // For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वामेति // वियतहः // हंसःसः // मांसंलः // वालोवः // अनिलोयः // इंदुर्विदुः // एतैर्युक्तोवामकर्ण ऊकारः॥ तेनहूस्ल्यूपवर्गएतद्वीजंचपूर्वयस्यास्तांजयंतींनाभौन्यसेत् // यथा // पंफंभमंहरव्यूंजयिनी वाग्देवतायैनमोनाभौ // 33 // पाशीति // दीपिकाऊकार // कीदृशीपाशी // पाशीझातंद्रीमः॥ रेफः // वायुर्यः // तैःसंयुताइंदुयुक् // तेन इम्यूं // पवर्गोबीजंचाद्यंयस्यास्तांसर्वेश्वरीमूलाधारेन्यसेत् // वामकर्णेवियद्वंसमांसवालानिलेंदुयुक्॥ यवर्गतद्वीजपूर्वाजयिनीनाभितोन्यसेत् // 33 // पाशीतंद्री | रेफवायुसंयुतादीपिकेंदुयुक् // यवर्गवीजाद्यांमूलाधारेसर्वेश्वरींन्यसेत् // 34 // संवर्तकमहाकालरे फस्थाशांतिरिंदुयुक् // कौलिनीशादिवीजाद्यांन्यसेत्पादांतमूलतः ॥३५॥वाग्देवतायैहादीतनामां तेप्रोच्चरेत्पदम् // उक्तोवाग्देवतान्यासःसृष्टिन्यासमथाचरेत् // 36 // जयथा // यरलवंइम्यूसर्वेश्वरीवाग्देवतायैनमोमूलाधारे // 34 // संवर्तकेति // संवर्तकाक्षः // महा कालोमः॥रेफः॥ एतैर्युताबिंदुयुताचशांतिई॥तेनक्ष्मी॥शादयोबीजंचाद्ययस्यास्तांकौलिनीमूर्वादिपादां तंन्यसेत् // शंषसंहलक्ष्मीकौलिनीवाग्देवतायैनमऊर्वादिपादांतम् // 35 // वागिति // हार्दनमः॥ वाग्दे वितायैनमइतिपदम् // नामांतेवशिन्यादिनामांतेप्रोच्चरेत् तत्प्रयोगेषुलिखितम् // 36 // For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक त०११ सृष्टिन्यासमाह // ब्रह्मरंध्रइति॥ब्रह्मरंध्रादिप्वेकैकंवर्णन्यसेत॥आद्यंब्रह्मरंधे॥द्वितीयंललाटे // तृतीयंदृशोः चतुर्थकर्णयोः // पंचमनसोः॥ षष्ठंगंडयोः॥ सप्तमंदंतेषु // अष्टममोष्ठयोः॥ नवमंजिह्वायां // दशमंमुखम ध्ये // एकादशंपृष्ठे // 37 // द्वादशंसर्वांगे ॥त्रयोदशंहदि।चतुर्दशस्तनयोगापंचदशंकुक्षौ॥षोडशंलिंगे॥३८॥ ब्रह्मरंध्रेललाटेचनेत्रयोःकर्णयोर्नसोः॥ गंडदंतोष्ठजिह्वासुमुखकूपेचपृष्ठतः॥ 37 // सर्वाङ्गेहृदयेन्य स्येतस्तनकुक्षिध्वजेषुच // एकैकार्णमथोमूनिसर्वेणव्यापकंचरेत् // 38 // सृष्टिन्यासंविधायैवंस्थिति न्यासमथाचरेत् // करांगुष्टायंगुलीषुब्रह्मरंध्रेमुखेहृदि // 39 // नाभ्यादिपादपर्यंतंनाभ्यंतकंठदेश तः॥ ब्रह्मरंध्राच्चकंठांतंपादांगुलिषुपंचवा ॥४०॥अथपंचविधंन्यासंवक्ष्येसर्वेष्टसिद्धिदम् // मंत्रपंचा वृत्तिरूपयेनतद्रूपतांब्रजेत् // 41 // मूर्ध्निवक्रेडशो श्रुत्योर्नसोगंडोष्ठयोरपि // वक्रमध्येदंतपंत्योद नेविन्यसेत्क्रमात् // 42 // स्थितिन्यासमाह॥करेति // पंचकरांगुलीषु / / षष्ठंब्रह्मरंध्रे॥सप्तमंमुखे // अष्टमंहदि // 39 // नवमंनाभ्यादि पादांत।दशमंकंठादिनाभ्यंतं // एकादशंब्रह्मरंध्रात्कंठांतं // पंचपादांगुलीषु॥४०॥४१॥पंचावृत्तिन्यासमाह। मीति // दृशोद्वै // श्रुत्यो· // नसोद्वै // गंडयोर्द्व // ओष्ठयोद्धे // दंतयो॥शेषेष्वेकैकम् // 42 // INUTSIDIODSEUSINESS // 9 // For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir THI an द्वितीयमाह॥शिखति // शिखाशिरोभालधूनासामुखेषुषट् // 43 // दक्षकरसंध्यग्रेषुपंचएवंवामपंच // तृती यमाह॥शिरोभालनेत्रास्यजिह्वासुषट् // 44 // दक्षपादसंध्यग्रेषुपंच॥वामपादेपंच // चतुर्थमाह // स्वरेति // एकैकवर्णविद्यायाइत्येकोन्यासईरितः॥ शिखाशिरोललाटंभूर्घाणवक्रेषडर्णकान् // 43 // करसं धिषुसाग्रेषुदशेतिस्याद्वितीयकः // शिरोललाटनेत्रास्येजिह्वायांषड्न्यसेत्पुनः // 44 // पादसं धिषुसाग्रेषुदशेतिस्यात्तृतीयकः // स्वरस्थानेचतुर्थस्तुललाटेचगलेहदि // 45 // नाभौचमू लाधारपिब्रह्मरंध्रेमुखेगुदे // आधारहृद्ब्रह्मरंधेकरयोः पादयोहदि // 46 // एवंपंचविधंकृत्वाविद्या प्रणवसंपुटाम् // सर्वस्मिन्व्यापयेदंगेनमोंतांतांहदिन्यसेत् // 47 // मातृकान्यासेस्वरस्थानान्युक्तानि॥तेषुषोडशबीजानिन्यसेत्॥पंचममाह // ललाटइति॥४॥करयो१॥पाद योद्वै // अन्यत्रैकैकम् // ४६॥प्रणवपुटितांविद्यासर्वांगेन्यसेत् // नमोंतांहदिच // 47 // 1 स्वरस्थानमंत्रवर्णान्यसेदित्यर्थः॥ For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०११ मं०म० षोढान्यासादयोविस्तरभयान्नोक्तास्तेउच्यते॥ गणेशग्रहनक्षत्रयोगिनीराशिपीठलक्षणाःषोढान्यासागणे शमातृकामंत्रस्यदक्षिणामूर्तिर्ऋषिः गायत्रीछंदःश्रीमातृकासुंदरीदेवताममोपास्यश्रीविद्यांगत्वेनषोढान्या // 91 // सेविनियोगः॥ अंकं५ आंऐंहृत् // इंच 5 ईक्लींशिरः॥ उंटे 5 ऊँसौशिखाएतं 5 ऐसौ.कवचम्॥ॐपं५औंक्तीं| नेत्रम्॥अंयं१० अअस्त्रं॥ध्यानम्॥उद्यत्सूर्यसहस्राभांपीनोन्नतपयोधरां रक्तमालांबरालेपरक्तभूषणभूषितां॥ पाशांकुशधनुर्बाणभास्वत्पाणिचतुष्टयां।।रक्तनेत्रत्रयांस्वर्णमुकुटोद्भासिचंद्रिकम् // एवंध्यात्वान्यसेद्वीजपूर्व गंअंविघ्नेशह्रींभ्यांनमः॥ गंआंविघ्नराजश्रीभ्यांनमः।इत्यादिमातृकास्थलेन्यसेत्॥गणेशा शक्तियुक्ताएकवि शेतरंगेमूलेग्रंथकारेणैवोक्ताः // इतिगणेशमातृकान्यासः॥१॥अथग्रहमातृकामंत्रस्यदक्षिणामूर्तिऋषिरित्या | षोढान्यासादयोन्यासाःकार्याःसौभाग्यवांछया॥नोच्यतेविस्तरभयानवचावश्यकाश्चते॥४८॥ दिपूर्ववत् षडंगच // ग्रहरूपिणीसुंदरीदेवताध्यानं // रक्तश्वेतंतथारक्तश्यामंपीतंचपांडुरम्॥धूम्रकृष्णंचधूनंच धूमधूम्रविचिन्तयेत् ॥रविमुख्यान्कामरूपानसर्वाभरणभूषितान् // वामोरुन्यस्तहस्तांश्चदक्षिणेनवरप्रदा मन् // एवंध्यात्वामातृकापूर्वान्ग्रहान्यसेत् / / अं 16 सूर्यायरेणुकांबायनमःहृदि // 1 // यं 4 चंद्रायाम तांबायैनमःभूमध्ये // 2 // कं 5 मंगलायधामांबायैनमोनेत्रयोः॥३॥चं 5 बुधायज्ञानरूपांबायैनमोहदि // 4 // BE 5 बृहस्पतयेयशस्विन्यंबायैनमोहृदयोपरिभागे // 5 // तं 5 शुक्रायशांकर्यबायैनमाकंठे // 6 // पं 5 शनैश्चरायशक्त्यंबायैनमोनाभौ // 7 // शं 4 राहवेकृष्णांबायैनमोमुखे // 8 // लंक्षकेतवे // 9 // For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Balधूम्रांबायैनमोगुदे // 9 // इतिग्रहमातृकान्यासः // 2 // नक्षत्रमातृकामंत्रस्यदक्षिणामूर्तिर्कषिर्गायत्रीछं दोनक्षत्ररूपिणीसुंदरीदेवताश्रीविद्यांगत्वेनन्यासेविनियोगः // ध्यानम् // ज्वलत्कालाग्निसंकाशा:सर्वा भरणभूषिताः॥नतिपाण्योऽश्विनीमुख्यावरदाभयपाणयः॥एवंध्यात्वामातृकापूर्वनक्षत्राणिन्यसेत् // यथा॥ अंआंअश्विन्यैनमोललाटे // 1 // इंभरण्यैनमोदक्षनेत्रे // 2 // ईउंऊकृत्तिकायैनमोवामनेत्रे // 3 // लंलंरो हिण्यैनमोदक्षनेत्रे॥४॥ एमृगशिरसेनमोवामकणे // 6 // ऐंआर्द्रायैनमोदक्षनसि ॥६॥औपुनर्वसवेनमो वामनसि॥७॥कंपुष्यायनम:कंठे // 8 // खंगंआश्लेषायैनमोदक्षस्कंधे॥९॥घडंमघायैनमोवामस्कंधे॥१०॥चंपूर्वा फाल्गुन्यैनमोदक्षकूर्परे // 11 // छंजंउत्तराफाल्गुन्यैनमोवामकूपरे // 12 // झंअंहस्तायनमोदक्षमणिबंधे // 13 // टंटचित्रायैनमोवाममणिबंधे ॥१४॥डंस्वात्यैनमोदक्षहस्ते // 15 // ढंणविशाखायैनमोवामहस्ते // 16 // तथंद अनुराधायैनमोनाभौ // 17 // धंज्येष्ठायैनमोदक्षकटौ // 18 // नंपंर्फमूलायनमोवामकटौ // 19 // बंपूर्वा षाढायैनमोदक्षोरौ॥ 20 // भंउत्तराषाढायैनमोवामोरौ // 21 // मंश्रवणायनमोदक्षजानुनि // 22 // यर धनिष्ठायैनमोवामजानुनि // 23 // लंशतभिषायैनमोदक्षजंघायाम् // 24 // वंशंपूर्वाभाद्रपदायैनमोवाम घायाम् ॥२५॥षसंहं उत्तराभाद्रपदायैनमोदक्षपादे // 26 // क्षंअंअरेवत्यैनमोवामपादे // 27 // इतिनक्षत्रमातृ काः॥३॥सर्वेषुन्यासेष्वादौमायाश्रीबीजेयोज्ये // न्यासान्सर्वान्प्रकुर्वीतमायाश्रीबीजपूर्वकानित्युक्तत्वात् // योगिनीन्यासस्यमुनिच्छंदसीपूर्वोक्ते // योगिनीरूपासुंदरीदेवताश्रीविद्यांगत्वेनन्यासेविनियोगः॥ध्यानं // For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०११ मं०म० सितासितारुणाबधूचित्रापीताश्चचिंतयेत् // चतुर्भुजाःसमैर्वःसर्वाभरणभूषिताः // एवंध्यात्वान्यसेत् // हीश्रींडांडीडं मलवर पूंडाकिन्यैनमः॥अं१६ ममत्वचंरक्ष 2 त्वगात्मनेनमाकंठदेशेविशुद्धौ ॥१॥हींश्रीराँ // 92 // सरंमलवरयूंपूंराकिन्यैनमः१२ममरक्तंरक्ष 2 अमृगात्मनेनमः हृद्यनाहते॥२॥ लीलीलंमलवर पूंलाकिन्यै नमःगाडं१०मममांसंरक्ष 2 मांसात्मनेनमः नाभौमणिपूरे // 3 // कांकीकंमलवरयूंपूंकाकिन्यैनमः॥वं.६ मममे दोरक्ष 2 मेदआत्मनेनमालिंगमूलेस्वाधिष्ठाने ॥४॥शांशीशमलवरयूंपूशाकिन्यैनमः॥वं४ ममास्थिरक्षर अ स्थ्यात्मनेनमःगुदेमूलाधारे॥५॥ हाहीहंमलवरयूंपूंहाकिन्यैनम हंक्षमममजारक्ष 2 मजात्मनेनमोभ्रूमध्ये आज्ञाचक्रे॥६॥ यांयींयंमलवरयूंपूंयाकिन्यैनमअंममशुक्ररक्ष२ शुक्रात्मनेनमःब्रह्मरंध्रे // 7 // इतियोगिनी मातृकाः॥४॥राशिमातृकामंत्रस्यमुनिच्छंदसीपूर्वोक्ते ॥राशिरूपासुंदरीदेवता श्रीविद्यांगत्वेनन्यासेविनि योगः // ध्यानं // रक्तश्वेतहरिद्वर्णपाडचित्रासितास्मरेत् // पिशंगपिंगलौवभूक,राशितधूम्रभान् // एवं ध्यात्वान्यसेत् // अंआंइंईमेषायनम दक्षपादगुल्फे॥१॥ उंऊवृषायनमादक्षजानुनि // 2 // लंलंमिथु नायनमादक्षवृषणे // 3 // एंऐकायनमादक्षकुक्षौ॥४॥ओंऔसिंहाय दक्षस्कंधे॥५॥अंअशंघसंहकन्यायैनमः Bal दक्षशिरोभागे॥६॥ कखगघंडं तुलायैनमोवामशिरोभागे // 7 // चंछंजंझंगंवृश्चिकायनमःवामस्कंधे // 8 // adlठंडढंणंधन्विने वामकुक्षौ॥८॥ तथंदधनंमकरायनमः वामवृषणे॥९॥ पंफंबंभमंकुंभायनमः वामजानु नि // 10 // यरलवंक्षं मीनायनमोवामगुल्फे // 12 // इतिराशिमातृकाः॥५॥ पीठमातृकामंत्रस्यमुनिच्छं दोंगानिपूर्ववत् // पीठरूपिणीसुंदरीदेवताश्रीविद्यांगत्वेनन्यासेविनियोगः // ध्यानम् // सितासिता PASSESDDESSpasssssssssssssssage // 92 // For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रुणाश्यामाहरित्पीतान्यनुक्रमात् // पुनरेतत्क्रमाद्देवीपंचाशत्स्थानसंचये॥ पीठानीहस्मरेद्विद्वान्सर्वकामा र्थसिद्धये // एवंध्यात्वामातृकास्थानेषुमातृकावर्णपूर्वाणिपीठानिन्यसेत् // तानियथा ॥हींश्रींअंकामरूप पीठायनमः॥ 1 // आंवाराणसीपीठायनमः॥२॥ इंनेपालपीठायनमः॥३॥ ईपौंड्रवर्धनपी०॥४॥ उंका मीरपी० // 5 // ऊंकान्यकुब्जपी० // 6 // कंपूर्णगिरिपी० // 7 // अर्बुदाचलपी० // 8 // लंआम्रातकेश्वरपीठा० // 9 // लंएकाम्रपीठा० // 10 // एंत्रिस्रोतःपीठा० // 11 // ऐंकामकोटपीठा० // 12 // ॐकैलासपीठा०॥ 13 // औंभृगुपी०॥ 14 // अंकेदारपी० // 15 // चंद्रपुरपीठा० // 16 // कंश्रीपी० // 17 // खंॐकारपी० // 18 // गंजा aलंधरपी०॥ 19 // घंमालवपी० // 20 // डंकुलांतपी० // 21 // चंदेवीकोट्टकपी० // 22 // छंगोकर्णपी०॥२३॥ जं मारुतेश्वरपी० // 24 // झंअट्टहासपी०॥२५॥ अंविरजपी० // 26 // टंराजगृहपी० // 27 // ठंमहापथपी०॥२८॥ डंकोल्लगिरिपी० // 29 // ढंगलापुरपी० // 30 // शंकालेश्वरपी० // 31 // तंजयंतीपी०॥३२॥थं उजयिनीपी // 33 // दंचरित्रपी० // 34 // धंक्षीरिकापी०॥३५॥ नंहस्तिनापुरपीठा० // 36 // पंउडीशपी० // 37 // फंप्रयागपी०॥३८॥ बंषष्ठीशपी० // 39 // भंमायापुरपी० // 40 // ममलयपी० // 41 // यंश्रीशैलपी० // 42 // रंमेरुपी० // 43 // लंगि Malरिपी० // 44 // वंमाहेंद्रपी०॥४५॥ शंवामनपी०॥४६॥ हिरण्यपुरपी०॥४७॥ संमहालक्ष्मीपी०॥४८॥ हिंउडियाणपीठायनमः॥४९॥ लंछायापी०॥५०॥क्षक्षत्रपुरपी० // 51 // // इतिपीठमातृकाः॥६॥ इतिषोढा न्यासः॥ आदिशब्दात्काममातृकादयोज्ञेयाः॥४८॥ san For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० म०एवंन्यासान्कृत्वामुद्रा प्रदर्शयेदित्याह // मुद्राइति // नवानांमुद्राणांमध्येसंक्षोभद्रावणाकर्षाखेचरीबीजा Balसटीक ख्यानांपंचानांलक्षणमुक्तम् // चतसृणामुच्यते // तत्रवश्यमुद्रालक्षणायथा // पुटाकारौकरीकृत्वातर्जन्यावं // 13 // कुशाकृती॥परिवय॑क्रमेणैवमध्यमेतदधोगते॥क्रमेणदेवितेनैवकनिष्ठानामिकादयः॥संयोज्यनिबिडा-सर्वा त०११ अंगुष्ठावग्रदेशतः॥मुद्रेयपरमेशानीसर्ववश्यकरीमतति।उन्मादमुद्रालक्षणंयथासंमुखौतुकरौकृत्वामध्यमा मध्यमेनुजे॥अनामिकेतुसरलेतदधस्तर्जनीद्वयम्॥दंडाकारौततोगुष्ठीमध्यमानस्वदेशगौमुद्रषोन्मादिनी मुद्राःप्रदर्शयेत्कृत्वापडङ्गंप्राणसंयमम्।।संशोभद्रावणाकर्षवश्योन्मादमहांकुशाः // 19 // खेचरीबी जयोन्याख्यामुद्रादेवीप्रियानव // ततोध्यायेद्भगवतीश्रीमत्रिपुरसुंदरीम् // 50 // नामक्लेदिनीसर्वयोषितामिति // महांकुशमुद्रालक्षणंयथा // अस्यास्त्वनामिकायुग्ममध कृत्वांकुशाकृति॥ तर्जन्यावपितेनैवक्रमेणविनियोजयेत् ॥इयंमहांकुशामुद्रासर्वकामार्थसाधिनीति // योनिशब्देनाबमहायो। निमुद्रा॥तल्लक्षणंयथा॥मध्यमेकुटिलेकृत्वात न्युपरिसंस्थिते॥अनामिकामध्यगतेतथैवाहिकनिष्ठिके॥सर्वा एकत्रसंयोज्याअंगुष्ठपरिपीडिताएषातुप्रथमामुद्रामहायोन्यभिधामतेति॥मुद्राएवंप्रदर्यध्यायेता४९।५०॥ Bal 1 कनिष्ठानामिकादयइतिकनिष्ठानामिकापदंदक्षहस्तकनिष्ठानामिकापरम् // आदिपदेनवामहस्तकनिष्ठानामिकापरिग्रहः / अंगुष्ठावन | // 13 // देशइति / अंकुशाकारयोस्तयोस्तर्जन्योरग्रदेशेऽगुष्ठीयोजयेदितिशेषः // 2 अनुजेकनिष्ठे // दशिणहस्तकनिष्ठांवामहस्तमध्यमयाबढ़ावाम हस्तकनिष्ठांदक्षिणहस्तमध्यमयाबढातायो खदेशयोरंगुष्ठीनिक्षिपेदित्यर्थः // For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानमाह ॥बालेति॥नानालंकृतयोविविधाभरणानितैराजमानंशोभमानंवपुर्यस्यास्ताम् // बालउडुराट्चं द्रशेखरेयस्यास्ताम् / / मृणिमंकुशं॥सुमशरंपुष्पबाण।बाणांकुशोदक्षयोगाइक्षुधनु:पाशीवामयोः॥ श्रीचक्रं वक्ष्यमाणं // तत्रस्थितांसुंदरींत्रिपुरसुंदरीध्यायेत् // 51 // हयमारस्करवीरः॥ 52 // श्रीचक्रमाह // श्री बालार्कायुततेजसांविनयनारक्तांचरोल्लासिनींनानालंकृतिराजमानवपुषवालोडुराट्शेखराम् ॥हस्तैरिक्षु धनुःसृर्णिसुमशरंपाशंमुदाविभ्रतींश्रीचक्रस्थितसुंदरीत्रिजगतामाधारभूतांस्मरेत् // 51 // लक्षमेकंजपे न्मंत्रंदशांशंहयमारजैः / पुष्पैत्रिमधुरोपेतैर्जुहुयात्पूजितेनले // 52 // श्रीचक्रस्योद्धृतिवक्ष्येतत्रपूजन सिद्धये // बिंदुगर्भत्रिकोणंतुकृत्वाचाष्टारमुद्धरेत् // 53 // दशारद्वयमन्त्रस्राष्टारषोडशकोणकम् // त्रिरे खात्मकभूगेहवष्टितंयंत्रमालिखेत्॥५४॥तत्रपूजांप्रवक्ष्यामिपावस्थापनपूर्वकम्॥वहन्नाडीस्थहस्तेनस्वा ग्रतोयंत्रमालिखेत्॥२५॥त्रिकोणमध्यपट्कोणवृत्तभूमंडलात्मकम्।।वालयापूजयेन्मध्यंतरी कोणकत्र यम्॥५६॥अनुलोमविलोमैस्तैःषट्कोणान्पूजयेत्ततः॥ अस्त्रप्रक्षालितंमध्येपात्राधारंनिधापयेत्॥५॥ चक्रस्यति // 53 // मन्वनचतुर्दशारम् // 54 // पात्रस्थापनमाह // वहदिति॥वहंतीयानाडीदक्षावामावात द्धस्तेनस्वात्रिकोणादियंत्रमालिख्य // तत्रास्त्रक्षालितंपात्राधारंस्थापयेत् // 55 // 56 // 57 // For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मटीक मं०म० // 9 // 51950999999999191AHARIHANSARSHIRIT एकत्रिंदशक्षरमंत्रेणाधारंपूजयेत् // तमाह / / वह्निरिति।वहीरेफः।।दीर्घत्रययुक्तः ॥रांरीरूं ॥रस्वरूपम् // भी तोमःलवरस्वरूपम्॥अनिलोयः॥एतेवामकर्णंदुसंयुताः॥ ऊबिंदुयुताः॥वायुर्यः।कलात्माङसमन्वितश्चतुर्थ्य तः॥ वाग्बीजऐं // पवनोयः॥ स्वरूपमन्यत् // यथा ॥ॐारीसरमलवरयूंरंअग्निमंडलायधर्मप्रददशकला त०११ त्मनेऐंकलशाधारायनमः / / 58 // 59 // 60 // प्रादक्षिण्यादिति // तदुपरिपात्राधारोपरिआग्नेयीदशकला एकत्रिंशाणमनुनातमाधारसमर्चयेत् // वह्निदीर्घत्रयेद्वाब्योरभातलवरानिलाः // 58 // वामकर्णे दुसंयुक्तार सेंदुरग्निमंडला // वायुर्धर्मप्रददशकलात्मासमन्वितः // 29 // वाग्वीजंकलशाधारापवनो नमसान्वितः॥तारादिरीरितोमंत्रोभाजनाधारपूजने॥६०॥प्रादक्षिण्यादशाग्नेयीस्तदुपर्य्यर्चयेत्कलाः॥ धूम्राचिरूष्माज्वलिनीज्वालिनीविस्फुलिंगिनी // 61 // सुश्रीःसुरूपाकपिलाहव्यकव्यादिकावहा // सबिंदुर्यादिवर्णाद्यादशारीरिताःकलाः // 62 // कलाश्रीपादुकांपूजयामीतिपदमुच्चरेत् / / नानामते ततस्तासांप्राणस्थापनमाचरेत् // 63 // अर्चयेत्ताएवाह ॥धूम्राचिरिति // 61 // हव्यकव्यादिकावहा // हव्यवहाकव्यवहाच // कीदृश्यस्ताः॥स 58 RA9 // |बिंदवोयादिदशवर्णाआद्यायासाम् // 62 // कलेति // नाम्नांधूम्रर्चिरित्यादिनानामतेकलेत्यादिपदमुञ्चरेत्॥ यंधूम्रार्चिः कलाश्रीपादुकांपूजयामि // रंऊष्माकलाश्रीपादुकांपूजयामीत्यादिप्रयोगः // 63 // For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वर्णादिनिर्मितंकलशम् / / अस्त्रायफडितिप्रक्षाल्यतत्राधारेन्यसेत् // तंत्रिंशद्वर्णमंत्रेणार्चयेत् // तमुद्धरति॥ वियदिति ॥वियतहकारः॥ दीर्घत्रयाढचं // हांहींहूं // हमस्वरूप।मांसंलः // वरस्वरूपं॥अनिलोयः॥६॥ अर्धीशऊसेंदुखं // सबिंदुहः॥ वायुर्यः॥६५॥ मन्मथाकीं // स्पष्टमन्यत // यथा // अँहाहीहूंहमलव्यूंहंसू स्वर्णादिपात्रमस्त्रेणक्षालितंतत्रविन्यसेत् // वियदीर्घत्रयेंद्राव्यंहममांसंवरानिलः // 64 // अर्षी / शपिंदुसंयुक्त सेंदुखंसूर्यमंडला // वायुर्वसुप्रदांतेस्यावादशांतेकलात्मने // 6 // मन्मथः कलशायेतिनमोतःप्रणवादिकः // त्रिंशद्वर्णात्मकोमंत्र-कलशस्यार्चनेमतः // 66 // कलाद्वा दशसूर्य्यस्यकलशोपरिपूजयेत् // तपिनीतापिनीधूम्रामरीचिालिनीरुचिः // 67 // सुषुम्राभोग | दाविश्वाबोधिनीधारिणीक्षमा॥ अनुलोमविलोमाभ्यांकादिभाधणयुग्युताः॥६८ // र्यमंडलायवसुप्रदद्वादशकलात्मनेकींकलशायनमइति // 66 // सूर्यकलाआह // तपिनीति // कीदृश्यस्ताः॥ अनुलोमेति // क्रमोक्रमाभ्यांयेकादयोभादयश्चवर्णाः तेषांयुजोयुग्मानितैर्युताः // कंभंतपिन्यैनमः // खंबंतापिन्यनमः॥ गंफंधूम्रायैनमः॥ इत्यादि / 67 // 68 // For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०११ // 9 // पूर्ववत् // तपिनीकलाश्रीपादुकांपूजयामीतिप्रयोगः॥ 69 // दंताक्षरेणद्वात्रिंशदक्षरेण // तमेवोद्धरति // भृगुरिति // भृगुःसः // दीर्घत्रययुतः॥ सांसींसूं // अंबुवः // अग्नीरः॥ वायुर्यः॥ एतेअर्धीशेंदुयुताः॥ ऊबिं दुयुताः॥ डेयुतश्चतुर्थ्यतः // भृगुःसानुरौ॥ डेयुतंकलशामृतं // कलशामृताय // तारादिहृदयांतः॥ प्रण पूर्ववत्ता समापूज्याकलशेपूरयेजलम्॥उच्चरन्मातृकावर्णान्मूलविद्यांचमंत्रवित्॥६९॥दंताक्षरेणमनुना कलशोदकमर्चयेत् // भृगुर्दीघद्वाठ्यःसमलांबग्निवायवः // 70 // अर्षीशेंदुयुता सेंदुहंसांतेसो ममंडला // यकामप्रदपोडांतेशकलात्मातुङयुतः॥ 71 // भृगुर्मनुर्विसर्गाढयोडे युतंकलशामृतम् // तारादिहृदयांतोयंमनुःपानीयपूजने // 72 // चांद्री कलाःस्वरायास्तुयजेत्षोडशतजले // अमृ तामानदापूषातुष्टिपुष्टीरतिधृतिः॥७३॥ शशिनीचंद्रिकाकांतिर्योत्स्नाश्रीप्रीतिरंगदा / पूर्वापूर्णामृताचे तिपूजनंपूर्ववन्मतम् // 74 // वादिनमातः // सांसींतूंसमल'संसोममंडलायकामप्रदषोडशकलात्मनेसौः कलशामृतायनमः // मंत्रोयंजलार्चने // 70 // 71 // 72 // षोडशस्वराद्याश्चांद्रीकलास्तजलेर्चयेत् // ताआह॥अमृतेति // 73 // 74 // // 9 // For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भैरवमंत्रमाह // हसेति // हसक्षमलेतिस्वरूपं // पानीयंवः॥ वहीरः ॥ईरोयः॥ अर्धीशऊ॥बिन्दुश्च // एतैर्यु तंबीजं // स्वरूपमन्यत् // यथा // हसक्षमल!आनंदभैरवायवौषट् // दशार्णः // सुधादेवीम त्रमाह // हसयोरिति // पूर्वोक्तबीजेहसयोर्वेपरीत्यम् // सहक्षमल सुधादेव्यैवौषट् // मुन्यक्षर सप्तार्णः॥ मत्स्यति // मत्स्यमुद्रालक्षणं यथा // वामोपरिष्टात्संस्थाप्यदक्षहस्तंप्रसारयेत् // अंगुष्ठीयुतयोः पार्धमत्स्य भैरवंचसुधादेवीस्वमंत्राभ्यांयजेजले // हसक्षमलपानीयवह्नीरा(शविंदुमत् // 75 // बीजमानं दभैरवांतेवायुरुषड्मनुर्मतः // हसयोर्वैपरीत्येनबीजपूर्वोदितंसुधा // 76 // देव्यैवौषट्तयोमंत्री दशमुन्यक्षरौक्रमात् // ततोमत्स्यास्त्रकवचधेनुमुद्राःप्रदर्शयेत् // 77 // संरोधिन्यासंनिरुध्यम शलंचक्रसंज्ञकम् // महामुद्रांयोनिमुद्रांकुर्यात्कुंभामृतेपुनः // 78 // मुद्रेयमीरितेति // अस्त्रकवचमुद्रेवक्ष्येते // धेनुमुद्रोक्ता // 75 // 76 // 77 // संरोधिनीवक्ष्यते // मुशलमुद्रा यथा // मुष्टीकृत्वातुहस्ताभ्यांवामस्योपरिदक्षिणम् / / कुर्यान्मुशलमुद्रेयंसर्वविघ्ननिवारिणीति // चक्रमुद्रा यथा // हस्तौतुसंमुखौकृत्वासंलग्नौसुप्रसारितौ // कनिष्ठांगुष्ठकौलग्नौमुद्रैषाचक्रसंज्ञितेति // महामुद्राव क्ष्यते // योनिमुद्रोक्ता // 78 // For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०११ मं०म०॥७९॥अर्घ्यइतिआदयःषोडशस्वरा|कादयोणांताथादयोसांतारिय॑त्रिकोणसंचिंत्य॥काहशाहक्षा भ्यांमध्येशोभित // तत्र ॥ऐक्कीसौरितिबालांसंपूजयेत् // 80 // अष्टवर्णमाह // तारइति // तारॐ // मा // 16 // एवंकलशमास्थाप्यतस्यदक्षिणदेशतः॥शंखंचापिविशेषायस्थापयेत्पूर्वववक्रमात् // 79 ॥अध्ये त्रिकोणसंचिंत्याकथादिषोडशाक्षरैः // हक्षाभ्यांशोभितंमध्येतत्रबालांप्रपूजयेत् // 8 // अष्टवणे नमंत्रणदेवींज्योतिर्मयीयजेत् // तारोमायेंदुयुग्व्योमभृगुसर्गीससद्यसः // 81 // वराहोविंदुयुक्स्वाहा वसुवर्णःस्मृतोमनुः // मूलंत्रिरभिजप्याथकुर्य्यान्मुद्राःसमीरिताः॥८२ // शंखार्घ्यस्थापनेकार्यऊहः कलशनामनि // एवंपात्राणिसंस्थाप्यगृहीत्वार्योदकंततः // 83 // पूजावस्तूनिचात्मानंप्रोक्षेन्मूलमर्नु स्मरन् // विधायमानसीपूजांपीठपूजामथाचरेत् // 84 // याह्रीं // इंदुयुग्व्योमहं // सर्गीभृगुःसः॥ ससद्यः॥ औयुतःसः // सौ // 81 // बिंदुयुगवराहोहः // 6 // स्वाहास्वरूपं / समीरितामुद्रामत्स्याद्यानवमुद्राकुर्यात् // 82 // शंखस्थापनेऽर्घ्यपात्रस्थापनेचकलशना निऊहः शंखपदमर्थ्यपदंचप्रयोज्यम् // 83 // 84 // | // 16 // For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पीठपूजामाह // मंडूकमिति // कालवहीशंकालाग्निरुद्रं // 85 // स्वर्णाद्रिर्मेरुः // 86 // धर्मवारणंछत्रं // धर्मादिकान् // धर्मज्ञानवैराग्यैश्वाणि // 87 // नपूर्वान्धर्मादीन् // 88 // तारमात्रात्रयाद्यं // अंउंमंपूर्व | सूर्यसोमाग्निमंडलं // गुणान्सत्वरजतमांसिस्ववर्णाद्यान् // संसत्वायनमइत्यादि॥ आत्मानमित्यादीन् / मंडूकंकालवह्नीशंतन्मूलप्रकृतियजेत् // आधारशक्तिंकूर्मचशेषवाराहमेदिनीः // 85 // सुधा ब्धिरत्नद्वीपंचस्वर्णाद्रिनंदनवनम् // दृष्ट्वाकल्पतरून्मध्येविचित्रानंदभूमिकाम् // 86 // श्रीरत्नमं दिररत्नवेदिकांधर्मवारणम् // रत्नसिंहासनंतस्यपादान्धर्मादिकान्यजेत् // 87 // गात्राणितांश्चन पूर्वान्पमंचानंदकंदकम् // ज्ञाननालंकर्णिकांचसूर्यासोमाग्निमंडलम् // 88 // तारमात्रात्रयाय त्तत्स्ववर्णाद्यानगुणान्यजेत् // मात्रात्रयाघमात्मानमंतरात्मानमेवच // 89 // तृतीयंपरमात्मानं ज्ञानात्मानंपरादिकम् // मायातत्त्वंकलातत्त्वविद्यातत्त्वंचपूजयेत् // 90 // मात्रात्रयादीनअंआत्मने // ऊंअंतरात्मने // 89 // मंपरमात्मने // परादिकंमायाबीजाद्यं // ज्ञानात्मानं // ह्रीं ज्ञानात्मने // मायातत्त्वादीनिस्ववर्णाद्यानि // मामायातत्त्वायनमइत्यादि // 9 // For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Hoम. // 97 // ब्रह्मविष्णुरुद्रेश्वरसदाशिवान्प्रेतशब्दांतान् // ब्रह्मप्रेतायनमइत्यादि // 91 // काष्ठासुदिक्षु // पीठशd सटीक तीराह // इच्छेति // 92 // 93 // 94 // पीठमंत्रमुद्धरति // वागिति // वाऐं // केशवः // 95 // परतत्त्वस्ववर्णायब्रह्मविष्णुशिवांस्ततः॥प्रेतांतानीश्वरंतुर्यपंचमंचसदाशिवम् // 91 // सुधार्णवासनं त०११ पश्चाद्यजेत्प्रेतांबुजासनम् // दिव्यासनंचक्रासनंसर्वमंत्रासनंततः // 92 // साध्यसिद्धासनंपाऱ्या चक्रराजंप्रपूजयेत् // पीठशक्तीस्ततःकाष्ठास्विच्छाज्ञानक्रियातथा // 93 // कामिनीकामदायिन्यौरती रतिप्रियापुनः॥ नंदामनोन्मनीचेतिवराभयकरास्तुता // 94 // ततआसनमंत्रणपूजयेच्चक्रनायकम् // वाक्परायैकेशवोऽथपरायैचपरापरा // 95 // वालीदामोदरारूढस्तातीयंचसदाशिव // महाप्रेतं पठेत्पद्मासनायहृदयांतिकः // 96 // एकोनत्रिंशदाढयोमनुरासनसंज्ञकः // एवंपीठंसमभ्यर्च्य दद्यात्पुष्पांजलिंततः॥ 97 // वालीयः॥ दामोदरारूढःऐयुतः॥ यै // तार्तीयंहसौः॥ हृदयांतिकः // नमोंतः // स्वरूपमन्यत् // यथा // // 97 // परायअपरायै परापरायैहसौःसदाशिवमहाप्रेतपद्मासनायनमइति // 96 // 97 // For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुष्पांजलिमंत्रमाह // प्रकटेति // नेत्रयुक्मेषःनि // 98 // 99 // मायारमादिकः // यथा // ह्रींश्रीप्रक: टगुप्तगुप्ततरसंप्रदायकुलनिगर्भरहस्यातिरहस्यपरापररहस्यसंज्ञकश्रीचक्रगतयोगिनीपादुकाभ्योनमइति // प्रकटांतंगुप्तगुप्ततरांतेसंप्रदायच // कुलांतेनेत्रयुग्मेषोगर्भरेतिततःपठेत् // 98 // हस्यांतेतिरहस्यार्णा परापररहस्यच // संज्ञक श्रीचक्रगतोयोगिनीपादुकापदम् // 99 // भ्योनमोंतोधरावाणवों मायारमादिकः॥ मंत्रपुष्पांजलेर्दानेसर्वसिद्धिप्रदायकः // 10 // मुद्रांत्रिखंडांकृत्वाथपुष्पाण्यादाय चांजलौ // ध्यात्वापूर्वोदितादेवींमूलविद्यांसमुच्चरेत् // 1 // चैतन्यहृत्कमलतोनासिकारं धनिर्गतम् // ब्रह्मरंध्रस्यमार्गेणयोजितंकुसुमांजलौ // 2 // महापद्मवनांतस्थेकारणानंदविग्रहे // सर्वभूतरतेमातरेह्येहिपरमेश्वरि // 3 // महःपूजाभचैतन्यसंयुक्तकुसुमांजलिम् // श्रीचक्रराजेसंयोज्य ततःश्लोकद्वयंपठेत् // 4 // देवेशिभक्तिसुलभेसर्वावरणप्तयुते // यावत्त्वांपूजयिष्यामितावत्त्वंसुस्थि Bal राभव // 5 // इदमावाहनंप्रोक्तंततःस्थापनमाचरेत् // भैरवीमंत्रमुच्चार्यश्रीमत्रिपुरसुंदरि // 6 // धराबाणवर्णः / एकपंचाशदक्षरः // 100 // 101 // त्रिखंडामुद्रोक्ता // आवाहनमंत्रमाह // चैतन्य मिति // 102 // 103 // 104 // 105 // 106 // For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 98 // स्थापनाद्यामुद्रावक्ष्यते // 107 // 108 // 109 // 110 // 111 // इतिमंत्रमहोदधिनौकायामका सटीक दशस्तरंगः // 11 // // श्रीविद्यायाआवरणार्चनंवक्तुंप्रतिजानीते // श्रीविद्यायाइति ॥येनमनोरथाधि चक्रेस्मिन्कुरुसान्निध्यनमोंतःस्थापनेमनुः // दर्शयेत्स्थापनीमुद्रांसनिधिसन्निरोधनम्॥७॥संमुखीकर | त०१२ णंतत्तन्मुद्राभिर्मत्रविच्चरेत् // न्यसेत्पडंगंदेव्यंगेसकलीकरणंत्विदम् // 8 // अवगुंठामृतीकारपरमीकर णानिच // ततन्मुद्राभिराराध्यमूलेनत्रिप्रपूजयेत् // 9 // ततःपाद्यादिकान्सम्यगुपचारान्प्रकल्पये / त् // मूलमंत्रेणपुष्पांतानपुनःसंतर्पयेत्रिधा // 11 // पुष्पांजलिंविधायाथध्यात्वादेवीयथाविधि // अनुज्ञांप्रार्थयेन्मंत्रीपरिवारसमर्चने // 111 // इति श्रीमन्महीधरविरचितेश्रीमंत्रमहोदधौश्रीविद्याकथनं नामैकादशस्तरंगः॥१३॥श्रीविद्यायाअथोवक्ष्येपरिवारप्रपूजनम् // कृतेनयेनमंत्रज्ञोलभतेवांछिताधि कम् // 1 // शुक्लपक्षेयजेन्नित्याःकामेश्वर्यादिषोडश // कृष्णपक्षेविचित्राद्याःकामेश्वर्य्यवसानकाः॥२॥ कमाप्नोति // 1 // शुक्लपक्षेकामेश्वर्यादिविचित्रांतांबिंदुपरितःकल्पितेत्रिकोणेप्रतिपार्श्ववामावर्तेनपंचपं चसंपूज्यबिंदोषोडशीमूलेनपूजयेत् // कृष्णपक्षेतुविचित्राद्या.कामेश्वर्यताः स्वमंत्रेणतथैव संपूज्यम // 98 // ध्येषोडशीयजेत् // 2 // For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्रविधिमाह // एकैकमिति // एकैकंस्वरमुक्त्वावक्ष्यमाणमेकैनित्यामंत्रंचप्राच्यनित्यानामांते अमु कनित्याश्रीपादुकांपूजयामीतिदक्षहस्तेन पुष्पचंदनाक्षतानितर्पयामीतिवामहस्तेनजलंचार्पयेत् // 3 // Ran4 // 5 // जलेआईकंप्रास्यमितिकचित् // 6 // नित्यामंत्रेषुकामेश्वरीमंत्रमाह // बालेति // बा षोडशींचयजेन्मध्येवक्ष्येतद्यजनक्रमम् // ऐकैकंस्वरमुच्चार्यानित्यामंत्रसमुच्चरेत् // 3 // कामेश्वर्या दिनामांतेनित्याश्रीपादुकांपठेत् // पूजयामितर्पयामिहृदयंप्रोच्यपूजयेत् // 4 // बिंदूंपरितआकल्प्य त्रिकोणेविंदुतोंतिमम्।।दक्षहस्तेनपुष्पादिवानांभोविनिक्षिपेत् ॥किचिदाहुरिहाचार्याआईकेणजलं क्षिपेत् ॥वामावर्तेनसंपूज्या कोणपार्थेषुपंचशः॥६॥ नित्यामंत्राःप्रवक्ष्यतेस्मृताःसर्वेष्टसिद्धिदाबाला तारोनमःकामेश्वरिहरदीर्घजादिमः॥॥कामफलप्रदेसर्वसत्ववांतेतुशंकरि॥सर्वातेतुजगद्वर्णाक्षोभणांते करीतिच॥८॥वर्मत्रयंपंचवाणा प्रतिलोमाकुमारिका कामेश्वरीम प्रोक्तः षट्चत्वारिंशदर्णवान् // 9 // लापूर्वोक्ता // तारःप्रणवः॥ दृक् // दीर्घश्चासौजादिमश्च // 7 // वर्महुं॥ पंचबाणाः॥द्रांद्रींनींब्लूसाइति॥ कुमारिकाबालाप्रतिलोमा // सौ.कींऐंकामेश्वरीनित्याश्रीपादुकांपूजयामितर्पयामिनमइति // 8 // 9 // 1 ऑऐक्लींसौःॐनमःकामेश्वरिइच्छाकामफलप्रदेसर्वसत्ववशंकरिसर्वजगत्क्षोभणकरिहुंहुंहुंद्रांट्रीक्लींब्लूसासोक्लॉऐ४६ कामेश्वरिनित्याश्री पादुकांपूजयामितर्पयामिनमः // एवंप्रयोगः // For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक | त०१२ मं०म० भगमालिनीमाह॥वागिति॥वाग्बीजऐं // कर्णाढयानिद्राउयुतोभाभुः // 10 // सदीपिकःअग्निः॥ उयुतोरः रूः॥ दीर्घास्मृतिःगा // अग्नीरफः॥ 12 // सझिंटीशःपावकः // एयुतोर रे॥केशवाः // 13 // वाऐं // 14 // // 99 // मारुतोयः॥ 15 ॥मायाहीं ॥स्वरूपमन्यत् // अंगत्रिभूवर्णाषत्रिंशदुत्तरशतार्णाभगमालिनी // यथा // आऐंभगभुगेभगिनिभगोदरिभगमालेभगावहेभगगुह्येभगयोनेभगनिपातिनिसर्वभगवशंकरिभगरूपनित्यक्ति वाग्वीभगकर्णाव्यानिद्रागेभगिनीतिचभिगोदरीतिवर्णातेभगमालेभगावहे // 10 // भगगुह्येभगातेस्या योनेभगनिपातिनि / सौतेभगशब्दांतेवशंकरिभगेतिच // 11 // रूपेनित्यपदंक्किन्नेभगस्वाग्निःसदीपि कायेसर्वभस्मृतिर्दी|निमेह्यानयवाग्नयः।।१२॥देरेतेसुसझिंटीश पावकस्तेभगार्णकाः॥किन्नेकिनवे केदमद्रावयचकेशवः॥१३॥मोवेभगांतेविच्चेचक्षुभक्षोभयसर्वच।।सत्वान्भगेश्वरिप्रांतेवायलूंजब्लूच में पुनः॥१४॥ ब्लूमोलूहेंपुनन्लूहक्किनेसर्वाणिभाक्षरम् // गानिमेवशमानतिमारुतःस्त्रीहतिच // 16 // ब्लेमायांगत्रिभूवर्णाप्रोदिताभगमालिनी॥नित्यक्किन्नेमदद्रतिपद्मनाभयुतंजलम् // 16 // प्रभगस्वरूपेसर्वभगानिमेह्यानयवरदेरेतेसुरतेभगक्किन्नक्किन्नद्रवेक्केदयद्रावयअमोघेभगविच्चक्षुभक्षोभयसर्वस त्वान्भगेश्वरिऐंडलूंजंब्लूमेंब्लूमौंब्लूहेंब्लूहेंक्लिन्नेसर्वाणिभगानिमेवशमानयस्त्रींहरल्वेंहींभगमालिनीनित्या श्रीपादुकांपूजयामिनमः॥ नित्यक्तीनामंत्रमाह // नित्येति / / पद्मनाभयुतंजलम // एयुतोवावे // 16 // |99 // For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie Salमायाह्नीं तदाद्या // अग्निप्रियास्वाहा तदंता॥ शिवाक्षरएकादशार्णः॥ यथा ॥इंहींनित्यक्किन्नेमदद्वेस्वा हा // नित्यक्किन्नानित्याश्रीपादुकांपूजयामि ॥भेरुंडामंत्रमाह // बांतइति // बातोभः॥रेफयुतः // तारसं युतःकारसंयुतः॥भ्रों। सकीदृशः॥ अंकुशसंपुटः॥ क्रोमितिबीजेनादावतेयुतः // 17 // चवर्गस्यचत्वा रोवर्णाः॥ वह्निमन्विदुसंयुतारऔबिंदुयुताः। ब्रौंछौंजौंझौंस्वाहांतःप्रणवाद्योदशवर्णः // यथा ॥ईओंकों मायाद्याग्निप्रियांतेयंनित्यक्किन्नाशिवाक्षरः ॥वांतोरेफासनस्तारसंयुतोंकुशसंपुटः // 17 // चवर्गवर्णा श्चत्वारोवह्निमन्विदुसंयुताः॥ वह्निप्रियांतस्ताराद्योभेरुंडायादशाक्षरः // 18 // मायांतेवह्निवासिन्यै प्रणवाद्योनमोतिकः॥ मंत्रोयंवह्निवासिन्यानववर्णःसमीरितः // 19 // तारोमायाशिखीवह्निपद्मनामें दुसंयुतः॥सविसर्गोभृगुनित्यक्किन्नेपश्चान्मदवे // 20 // धोक्रोंत्रौंछौंजौंझौंस्वाहा ॥भेरुंडानित्याश्रीपादुकांपूजयामि // 18 // वह्निवासिनीमंत्रमाह // मायेति // स्पष्टं // यथाहींवहिवासिन्यैनमः॥ वह्निवासिनिनित्याश्रीपादुकांपू०॥ 19 // महाविद्येश्वरीमंत्रमाह। तारइति // तारॐामायाह्रीं शिखीफः॥ वहिपद्मनाभंदुसंयुतः॥रएबिंदुयुतः / सविसर्गोभृगुःसः॥२०॥ For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मटीक मं०म० // 10 // त०१२ मनुवर्णश्चतुर्दशार्णः॥ यथा // ॐहींफ्रेंस:नित्यक्किन्नेमदद्रवेस्वाहा // महाविद्येश्वरीनित्याश्रीपाकांपू०॥२१॥ शिवदूतीमंत्रमाह // शिवेति // यथा ॥ॐहींशिवदूत्यैनमः॥ शिवदूतीनित्याश्रीपादुकांपू० // त्वरितामंत्र माह // तारइति // तारॐआपराहीं॥ वर्महुं॥ खेचछेक्षास्त्रीस्वरूपं // वामकर्णयुक् // 22 // शशियुतंचगगनं // ऊबिंदुयुतोहः // हूं // मेरुक्षः // भगएतद्युतः // क्षे॥ अद्रिजाह्रीं // यथा // *हींहुंखेचछेक्षःस्त्रींहूंक्षेह्रींफट् स्वाहांतोमनुवर्णोयंमहाविद्येश्वरीमनुः // शिवदूतीचतुर्थ्यतामायाद्याहृदयांतिकाः // 21 // शिवदूती मनुःप्रोक्तःसप्तवर्णोखिलेष्टदः // तार परावर्मखेचछेक्ष-स्त्रीवामकर्णयुरु // 22 // गगनशशिसंयुक्तंमे रुभंगयुतोद्रिजा // फडंतोद्वादशा!यंत्वरितायामनुर्मतः // 23 // दामोदरोबिंदुयुतःकलौशांती दुसंयुतौ // भृगुमनुविसर्गाद्यख्यक्षराकुलसुंदरी // 24 // त्वरितानित्याश्रीपादुकांपू० // 23 // कुलसुंदरीमंत्रमाह // दामोदरेति / / दामोदर ऐबिंदुयुतःऐं // कलौशा तीदुसंयुतौ इबिंदुसंयुतौ // कीं // मनुविसर्गाढयोभृगुःसासर्गयुतःसौः॥ यथा // लंऐंक्लींसौकुलसुंदरीनि त्याश्रीपादुकांपू० // 24 // // 10 // For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie नित्यामंत्रमाह // भैरवीति // प्राक्क्रमात्पश्चिमादुक्रमातंबालयायुतात्रिपुरभैरवी // ततःपंचबाणवी जानि // एषामन्वक्षरचतुर्दशार्णानित्येरिता // यथा // लंऐंक्लींसौम्झौं० // सक्तींहस्रौंसौक्लींऐंद्रींक्लींब्लूस नित्याश्रीपादुकांपू० // 25 // नीलपताकिनीमंत्रमाह ॥तारइति // तारॐ // मायाह्रीं // फांतरेफौफरौ। तौझिंटीशशशिसंयुतौ // एबिंदुयुतौ // फ्रें // हंसःसः॥ अन्य(शबिंद्वाढयाइऊबिंदुयुतः॥ हृल्लेखाहीं॥ भैरवीवालयायुक्ताप्रापश्चाच्चक्रमोत्क्रमात्।।तदंतपंचवाणाःस्युनित्यामन्वक्षरेरिता // 25 // तारो मायाफांतरेफौझिंटीशशशिसंयुतौ // हंसोग्य(शविद्वाढ्योहल्लेखांकुशनित्यमः॥२६॥ दद्वेवर्मशृं ण्यंताप्रोक्तानीलपताकिनी // चतुर्दशाक्षरासर्वत्रैलोक्याकर्षणक्षमा // 27 // वराहहंसचंडीशजनार्दन कृशानवः॥ पद्मनाभेदुसंयुक्ताविजयायैनमोतिकः // 28 // अंकुशकों॥ नित्यमदद्वेस्वरूपं // वर्महुँ // सृणिःक्रों // यथा // ऐंहींफ्रेंवहींक्रोंनित्यमदद्रवेहुंक्रोनी लपताकिनीनित्याश्रीपादुकांपू० // 26 // 27 // विजयामंत्रमाह // वराहेति // वराहोहः // हंसासः // चं डीशःखः॥ जनार्दनःफः॥ कृशानूरः॥ एतेपद्मनाभेंदुसंयुक्ताः // एबिंदुयुताः॥ एतत्कूटम् // स्वरूपमन्यत्॥ यथा // ऐंहूस्ख्यविजयायैनम:विजयानित्याश्रीपादु०॥२८॥ For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त. सर्वमंगलामंत्रमाह // ताराढचाविति // भृगुखड्गीशौसवौ // ताराढयौयुतौस्वों // डेंताचतुर्येकवचनां ता // यथा // ॐस्वोंसर्वमंगलायैनमःसर्वमंगलानित्याश्रीपा० // 29 // ज्वालामालिनीमंत्रमाह // तारइ // 10 // ति // तारॐ॥ स्वरूपमग्रे // 30 // कवचंहुं॥ पावकद्वंयंयथा ॥रं // वर्मास्त्रांताहुंफडंता॥ अष्टयुगाक्षरा // अष्टाचत्वारिंशदर्णा // ज्वालामालिनीउदिता // यथा // ॐनमोभगवतिज्वालामालिनिदेविसर्वभूतसं विजयायामनुःप्रोक्तःसप्तवर्णोखिलार्थदः // ताराढ्यौभृगुखड्गीशौ.तास्यात्सर्वमंगला // 29 // नमोतोमनुराख्यातोनवार्णःसर्वमंगलः // तारोनमोभगवतिज्वालामालिनितत्परम् // 30 // देव्यं तेसर्वभूतातेसंहारांतेतुकारिके // जातवेदसिवर्णांतेज्वलंतिप्रज्वलंतिच // 31 // ज्वलद्वयंप्रज्वलां तेकवचंपावकद्वयम् // वर्मास्त्रोतोदिताज्वालामालिन्यष्टयुगाक्षरा // 32 // कूर्म-क्रोधीशमन्विदुःसं Sal युतोह्येकवर्णकः // विचित्रायामनुश्चैतानित्यापंचदशोदिताः॥३३॥ हारकारिकेजातवेदसिज्वलंतिप्रज्वलंतिज्वलज्वलप्रज्वलहुंररहुंफट्ज्वालामालिनीनित्याश्रीपा० // 32 // विचित्रामंत्रमाह // कूर्मेति // कूर्मश्चकारः // क्रोधीशमन्विदुयुतः // औबिंदुयुतः // कीं // अत्रप्रथ नीनित्याशीपा // 32 मश्चकारः। यथा // अंच्कौंविचित्रानित्याश्रीपा०॥एतापंचदशनित्याः॥३३॥ 10 // For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एतास्त्रिकोणेपंचदशसंपूज्यबिंदौमूलेनषोडशीयजेत् // यथा // अंमूलंमहात्रिपुरसुंदरीनित्याश्रीपादुका पूजयामितर्पयामिनमः // बिंदुत्रिकोणयोर्मध्येत्रिभंगीभिःपंक्तित्रयेणगुरून्यजेत् // 34 // तेत्रिवि मूलेनषोडशींमध्येयजेत्रिपुरसुंदरीम् // विदुत्रिकोणयोर्मध्येत्रिभंगीभिर्युरून्यजेत् // 34 // दिव्यौपाश्चा पिसिद्धौघामानवौघास्त्रिधाहित॥परप्रकाश प्रथमस्ततःपरशिवाभिधः॥३६॥ परशक्तिश्चकौलेश शुक्ला देवीकुलेश्वरः॥ कामेश्वरीतिसप्तैवदिव्यौघागुरवःपराः // 36 // भोगःक्रीडश्चसमयःसहजश्चपरावराः // सिद्धौघगुरवश्चैतेचत्वार परिकीर्तिताः॥ 37 // गगनोविश्वविमलौमदनोभुवनस्तथा // लीलास्वात्मा प्रियेत्यष्टौमानवाअपरामताः॥३८॥ आनंदनाथाशब्दांताःपुरुषागुरवःस्मृताः // अंबांतास्तुस्त्रियः कार्याःसर्वसिद्धिप्रदायिकाः // 39 // प्रधाइत्याह / / दिव्यौघाइति // दिव्यौघानाह // परप्रकाशइति // 35 // 36 // सिद्धौघानाह // भोगइति // मानवौधानाह० // मगनइति // पुमांसोगुरवआनंदनाथशब्दांता:कार्याः // स्त्रियोगुरवस्तुअंबाश BAब्दांताः // 37 // 38 // 39 // Layou For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मटीक मं०म० // 10 // कतिस्त्रियःकतिनराइत्यत्राह // परशक्तिरिति // दिव्यगुरुषुपरशक्तिशुक्कादेवीकामेश्वर्यस्तिस्रास्त्रि यश्चत्वारोन्येपुमांसः // मानवगुरुषुप्रियालीलेद्वेस्त्रियौ // षडन्येनराः // सिद्धगुरुषुचत्वारोपिपुमां सएव // तथाचप्रयोगः // परप्रकाशानंदनाथश्रीपादुकांपूजयामिनमः // परशक्त्यंबाश्रीपादुकांपूजयामी त०१२ परशक्तिस्तथाशुक्लादेवीकामेश्वरीतिच ॥तिस्रःस्त्रियस्तुदिव्येषुप्रियालीलेतिमानवे ॥४०॥श्रीपादुकां पूजयामीत्यंतेसर्वत्रयोजयेत् // ततोविंदोश्चतुर्दिक्षुयजेदामायदेवताः // 41 // पूर्वदक्षिणमामायंप श्चिमंचोत्तरंतथा // ततःप्रपूजयेदिक्षुमध्येचपंचपंचिकाः // 42 // आद्यांमध्येचतस्रोन्या पूर्वाद्याशा सुपूजयेत् // पंचस्वपिगणेष्वत्र श्रीविद्याद्या प्रकीर्तिताः // 43 // श्रीविद्याचतथालक्ष्मीमहालक्ष्मी स्तृतीयकाः // त्रिशक्ति सर्वसाम्राज्या पंचलक्ष्म्यःप्रकीर्तिताः // 14 // त्यादि // 40 // बिंदो प्रागादिदिक्षुपूर्वाम्मायदेवताश्रीपादुकांपू० // 41 // दक्षिणाम्रायदेवताइत्यादि चतुरआनायान्पूजयेत् // ततःपंचपंचिकाःपूजयेत् // 42 // आद्यांमूलेनमध्यद्वितीयाद्यादिक्षुस्वस्वमंत्रैः // Balm102 एवमन्या:पंचिकाः॥ 43 // तासुप्रथमपंचिकामाह // श्रीविद्येति॥ आद्यपंचकंलक्ष्मीसंज्ञम् // 44 // For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वितीयपंचकंकोशसंज्ञं // 45 // तृतीयंपंचकंकल्पलतासंज्ञं // 46 // चतुर्थपंचकंकामधेनुसंज्ञं // 47 // पंचमपं Balचकंरत्नसंज्ञकं // 48 // तासांक्रमान्मंत्रान्वदति // तत्राद्यपंचके // मूलेनश्रीविद्यामध्ये पूज्या // दिक्षुलक्ष्म्या श्रीविद्याचपरंज्योतिःपरनिष्कलशांभवी // अजपामातृकाचेतिपंचकोशाइमेस्मृताः // 45 // श्रीवि द्यात्वरिताचैवपारिजातेश्वरीपुनः॥ त्रिपुटापंचबाणेशीपंचकल्पलताइमाः॥ 46 // श्रीविद्यामृतपीठे शीसुधाश्रीरमृतेश्वरी // अन्नपूर्णेतिविख्याता पंचैताःकामधेनवः॥४७॥ श्रीविद्यासिद्धलक्ष्मीश्चमातं गीभुवनेश्वरी // वाराहीचस्मृतंचैतन्मुनिभीरत्नपंचकम् // 48 // श्रीविद्यांमूलमंत्रेणमध्येसंयोज्यपूज येत् // क्रमतोन्याश्चतुर्दिक्षुतासांमंत्रानुक्रमाब्रुवे // 49 // बकेशोवह्निमारूढोवामनेत्रंदुसंयुतः॥ लक्ष्मीमंत्रोयमेकार्णस्तेनलक्ष्मीपूजयेत् // 50 // rwasnawaLLOLLELateNasex द्याः॥ 49 // तत्रलक्ष्मीमंत्रमाह // बकेशइति // बकेशःशः॥ वहीरेफस्तद्युतंवामनेत्रमीइं // दुर्बिदुस्तातच तेन // श्रीलक्ष्मीश्रीपादुकांपू०इतिपूर्वे // 50 // For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // तारेति॥ तार"श्री श्रीवशक्तिमंत्रमा स्वरूपशेष // // 51 // पश्चिमे // 53 सटीक त०१२ मं०म०महालक्ष्मीमंत्रमाह / / तारेति॥ तारॐ॥ पद्माश्रीं॥शक्तिहीं॥पद्माश्रीं // लक्ष्मी श्रीं॥मायाहीं॥ पद्माश्रीं। ध्रुवॐ // स्वरूपशेषं // यथा // ॐश्रींहीं श्रींकमलेकमलालयेप्रसीद 2 श्रीह्रीं श्रींॐमहालक्ष्यैनमः ॥१०३|महालक्ष्मीश्रीपाइतिदक्षिणे // 51 // 52 // त्रिशक्तिमंत्रमाह // लक्ष्मी-श्रीं // मायाहीं // मनो| जन्मातीं // यथा // श्रीह्रींकींत्रिशक्तिश्रीपा पश्चिमे // 53 // सर्वसाम्राज्यामंत्रमाह // भृग्विति // तारपद्माशक्तिपद्माकमलेकमलालये // प्रसीदयुगलंलक्ष्मीर्मायापद्माध्रुवोमहा // 51 // लक्ष्म्यैनमोंतो मंत्रोयमष्टाविंशतिवर्णवान् // पूज्यानेनमहालक्ष्मीःश्रीविद्यादक्षिणेस्थिता // 52 // लक्ष्मीर्मायामनो जन्मात्रिशक्तिर्मनुरीरितः॥ त्रिवर्णोनेनसंपूज्यात्रिशक्ति पश्चिमेस्थिता // 53 // भृग्वाकाशकलामा यारूढापद्मालयापुटाः // त्रिवर्णाःसर्वसाम्राज्यातायजेदुत्तरस्थिताम् // 54 // तारोमायाततोहंसःसो हंवह्निप्रियांतिमः // अष्टवर्णःपरंज्योतिर्मनुस्तांपूर्वतोयजेत् // 55 // भृगुःसः॥ आकाशोहः॥ कलाएतेमायास्थिताः // कूटं // पद्मालयाश्रीं // तेनपुटाः // यथा // श्रीसहकल Bहींश्रीसर्वसाम्राज्याश्रीपा उत्तरे // 54 // द्वितीयपंचकेपरज्योतिर्मत्रमाह // तारइति // तारॐ॥मायाहीं॥ // यथा ॥ॐहींहंसःसोहंस्वाहापरंज्योतिःश्रीपा पूर्वे // 55 // 3511090 For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie परनिष्कलशांभवीमंत्रमाह // तारइति // प्रणवस्तन्मंत्रः॥ यथा // ॐपरनिष्कलशांभवीश्रीपा० दक्षिणे // 58 अजपामाह // नभइति // नमोहः // भृगुःसः // यथा // हंस अजपाश्रीपा०पश्चिमे // 56 // आदिक्षा प्रतवर्णास्तुमातृकाः॥ अंआंइंई०क्षमातृकाश्रीपा उत्तरे // कल्पलतापंचकेत्वरितामंत्रमाह // प्रणवइति॥ भुवनेशीह्रीं // 57 // मेरुरक्षासझिंटीशःएयुतःक्षे // यथा // *हींहुंखेचछेक्षःस्त्रींहुंक्षेहींफट्त्वरिताश्री तारस्तुनिष्कलादेवीतेनतांदक्षिणेयजेत् // नभःसबिंदुसर्गाच्योभृगुवर्णाजपास्मृताः // 16 // अकारादिक्षकारांतावर्णाःप्रोक्तातुमातृकाः // प्रणवोभुवनेशीहुंखेचछेक्षःपदंपुनः // 17 // स्त्रीहुँमेरुः सझिंटीशोमायात्रंद्वादशाक्षरः॥ त्वरितायामनुःप्रोक्तस्तेनतांपुरतोर्चयेत् // 58 // आकाशहंसक्रोधी | शपिनाकीशहराधराः // ॐदवस्तारमायाभ्यांसंपुटाश्चसरस्वती॥५९॥ .तोहृदंतोमंत्रोयंप्रोक्तएकाद शाक्षरः॥ अनेनपारिजातेशींदक्षिणस्यांप्रपूजयेत् // 6 // पा०पूर्वे // 58 // पारिजातेश्वरीमंत्रमाह // आकाशेति // आकाशोहः॥ हंसासक्रोधीशाकः // पि नाकीशोलः // हरस्वरूपम् // अधरऐ॥ एतेसबिंदवः॥ कूटं // तारमायासंपुटं // यथा // ॐहींहसकलहँह्रीं *सरस्वत्यैनमःपारिजातेश्वरीश्रीपादक्षिणे // 59 // 60 // For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० चबाणेशी श्रीपालपादुका०पर्वे सुहानी // 62 // 63 सटीक // 10 // त्रिपुटामंत्रमाह // रमेति // मनोभूतीं // यथा // श्रीह्रींक्लींत्रिपुटाश्रीपा पश्चिमे // द्रांद्रींनींब्लूस:पं चबाणेशी श्रीपा उत्तरे // 61 // कामधेनुपंचके अमृतपीठेशीमंत्रमाह // वागिति // यथा // ऐंक्तींसोः अमृतपी ठेशीश्रीपादुका पूर्वे सुधाश्रीमंत्रमाह // नभइति // नमोहः // भृगुःसः // अग्नीरः // भीत०१२ एतेवामनेत्रंमीकारस्तातास्सबिंदवश्चहीं॥ 62 // 63 // साद्याभुवनेशानीहस्रीं // श्रीकलाद्याभुवनेश्वरी रमामायामनोभूमिस्त्रिवर्णात्रिपुटोदिता // तांयजेत्पश्चिमेभागेबाणेशीमुत्तरेपुनः // 61 // द्रांद्रीकी ब्लूभृगुःसर्गीसोदितापंचवर्णका // वाक्कामौभृगुरौसर्गयुक्तोमंत्रस्त्रिवर्णकः // 62 // प्रोदितोऽमृतपीठे स्यास्तेनतांपूर्वतोयजेत् // नभोभृग्वग्नयोवामनेत्राट्याश्चंद्रभूषिताः // 63 // सार्णाद्याभुवनेशीश्री कलाद्याभुवनेश्वरी // सुधाश्रीमंत्रउदितोवेदार्णस्तांयजेदवाक् // 64 // सकारोनुग्रहीसर्गीकामोवागभ्र पूर्विका // त्रिवर्णमनुनापश्चात्पूजयेदमृतेश्वरीम् // 6 // कीं // वेदार्णश्चतुर्वर्णोयंसुधाश्रीमंत्रः // तेनतामवाक्दक्षिणेयजेत् // यथा // हसौंस्ह्रीं श्रींक्लींसुधाश्री पा० // 64 // अमृतेश्वरीमाह // सकारइति // अनुग्रहीऔयुतः // अभ्रपूर्विकावाक् // हयुतंवाग्बीज Salu यथा // सौक्लीं हैं अमृतेश्वरीश्रीपा०पश्चिमे // 65 // For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नपूर्णानवमेतरंगेउक्ता तेनोत्तरेतायजेत् // यथा // ॐहीं श्रींक्तींनमोभगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णस्वाहाअन्न पूर्णाश्रीपादुकांपू०उत्तरे // 66 / / रत्नपंचकेसिद्धलक्ष्मीमंत्रमाह // वाणीति // वाणीबीजऐं // कामबीज क्लीं // वराहहंसाग्निवर्णाहसराः ॥औसर्गयुताइस्क्रौः // स्वरूपमन्यत् // यथा // ऐंक्लिनेकींमदद्वेकुले Bहसौःसिद्धलक्ष्मीश्रीपा पूर्वे // 67 // दक्षिणेमात्तंगीं // 68 // तन्मन्त्रमाह // वागिति // वाऐं // | विंशत्यर्णान्नपूर्णोक्तातरंगेनवमेमया // तन्मत्रेणोत्तरस्यांतुपूजयेदन्नदायिनीम् // 66 // वाणीवी | ततःक्किन्नेकामवीजमदद्रवे // कुलेवराहहंसाग्निवर्णाऔसर्गसंयुताः // 67 // एकादशाक्षरोमंत्रः सिद्धलक्ष्म्याःसमीरितः // तेनतांपूजयेत्पूर्वेमातंगींदक्षिणेपुनः // 68 // वाक्कामःसौःपुनर्वाणीमा यालक्ष्मीधुंवोनमः॥ भगवंतोतिमातंगीश्वरिसर्वजनार्णकाः // 69 // मनोहरिपदंप्रोच्यसर्वराजवशंकरि॥ सर्वातेमुखरंजिनीमेषोनेत्रसमन्वितः // 70 // सर्वस्त्रीपुरुषान्तेतुवशंकरिपदंवदेत् // सर्वदुष्टमृगप्रां तेवशंकरिपुनःपदम् // सर्वलोकवशंपश्चातकरिमायांरमांगजः // 71 // कामाक्लीं // वाणीऐं / मायाह्नीं // लक्ष्मीःश्रीं॥ध्रुवॐ॥६९॥नेत्रसमन्वितोमेषोनानी॥ रमाश्रीं // अंगजाकीं। स्वरूपमन्यत् // यथा // ऐक्लींसौःऐंहीश्रींॐनमोभगवतिमातंगीश्वरिसर्वजनमनोहरिसर्वराजवशंकरिसर्व मुखरंजिनिसर्वस्त्रीपुरुषवशंकरिसर्वदुष्टमृगवशंकरिसर्वलोकवशंकरिहीं श्रींक्तींऐंमातंगीश्रीपा०॥ 70 // 7 // For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 10 // भुवनेश्वरीमाह // गगनमिति // गगनंहः // वह्निनारेफेणवामनेत्रंदुभ्यांइबिन्दुभ्यांयुतम् // यथा // ह्रींभुवने सटीक श्वरीश्रीपादुकांपू०पश्चिमे // 72 // दशमेतरंगेवेदरुद्राक्षरश्चतुर्दशोत्तरशता!वाराहीमतुरुक्तस्तेनतामुत्तरे यजेत् // ॐऐंग्लौऐनमोभगवतिवार्तालिवाराहिवाराहिवाराहमुखिऐंग्लौंऐंअंधेअंधिनिनमरूंधेरुंधिनिनमः। त०१२ जंभेजभिनिनमःमोहेमोहिनिनमःस्तंभेस्तंभिनिनमःऐंग्लौंऐंसर्वदुष्टप्रदुष्टानांसर्वेषांसवाकचित्तचक्षुर्मुखगति वात्रिसप्ततिवर्णोयमातंग्याउदितोमनुः // गगनंवह्निनावामनेत्रदुभ्यांसमन्वितम् // भुवनेशीमनुःप्रो क्तस्तेनतांपश्चिमेयजेत् // 72 // तरंगेदशमेप्रोक्तोवेदरुद्राक्षरोमनुः // वाराह्यास्तेनतादेव्यावामभागे समर्चयेत् // 73 // पंचिकाएवमाराध्यदर्शनानियजेचषट् // आयमध्येचतुर्दिक्षुचत्वारिपुरतोंति मम् / / 74 // शैवंशाक्तंतथाब्राह्मवैष्णवंसौरसौगतम् // दर्शनान्येवमाराध्यालेनवि प्रतर्पयेत् // 7 // अंगुष्टानामिकाभ्यांतांयच्छेत्पुष्पंतुमुद्रया // ज्ञानाख्ययासाचांगुष्टतर्जनीयोगतोमता // 76 // एवंसं पूज्यबिंदुस्थांश्रीमत्रिपुरसुंदरीम् // ततोंगाद्यावृतीनांतुपूजनंसम्यगाचरेत् // 77 // जिह्वास्तंभंकुरु 2 शीघ्रंवशंकुरु २ऐंग्लौऐंठ ठाठ ठाहुंफट्स्वाहावाराहीश्रीपादु०उत्तरे // 73 // एवंपंचपंचि काःसंपूज्यदर्शनानियजेत् // अस्पष्टम् / / 74 // शिवदर्शनश्रीपा० // इत्यादि // 7 // ज्ञानमुद्रामाह ॥सा चेति // अंगुष्ठतर्जनीयोगेज्ञानमुद्रा // 76 // 77 // For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूबिंबमारभ्यबिंदुपर्यतं ॥प्रतिलोमेननवावरणपूजाआवरणदेवतानामादौमायाश्रीबीजे // अंतेतुश्रीपादु कांपूजयामीतिप्रयोगः // 78 // आग्नेयेहृदेशेशिरः ॥नैर्ऋत्येशिखा // वायौकवचं // पुरोनेत्रं // विश्वस्त्रं // यथा ॥श्रीह्रीं क्लींऐसौ हृदयंवाग्देवताश्रीपा० // 79 // त्रिरेखंभूगृहमस्ति // यस्याधररखायामष्टदिक्षुऊर्ध्व भूबिंबादिदुपर्यतनवावृत्तिसमर्चनम् // मायाश्रीबीजपूर्वाणांनानामंतेनियोजयेत् // 78 // श्रीपादुकां पूजयामीत्येतद्वर्णाश्चसर्वतः॥ अग्नीशासुरवायव्यपुरोदिक्ष्वंगपूजनम् // 79 // भूविवस्याऽऽद्यरेखायां दिशूधिक्रमाद्यजेत् // सिद्धीर्दशाणिमात्वाद्यामहिमालघिमेशिता // 8 // वशित्वसिद्धिःप्राका म्याभुक्तिरिच्छाष्टमीपुनः // प्राप्तिश्चसर्वकामाख्यासिद्धयोदशकीर्तिताः // 81 // तप्तहेमसमानाभाः पाशांकुशधराःशुभाः // साधकेभ्यःप्रयच्छंतिरत्नौवंताविचिंतयेत् // 82 // भूपुरेमध्यरेखायांप श्चिमाद्यर्चयेदिमाः // ब्राह्मीमाहेश्वरींचापिकौमारीवैष्णवीमपि // 83 // मधश्चाणिमाद्यादशसिद्धीर्यजेत् // ह्रींश्रींअणिमासिद्धिश्रीपादुकांपूजयामीत्यादिप्रयोगः // 80 // 81 // तासांध्यानमाह // दक्षंकुशधरावामेपाशधराः // साधकेभ्योरत्नसमूहान्ददती // 82 // भूगृहद्वितीयरे खायांपश्चिमादिब्राझ्याद्याअष्टमातृर्यजेत् // ह्रींश्रींब्राह्मीमातृकाश्रीपादुकांपूजया इत्यादि // 83 // For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१२ में०म० #तासांध्यानमाह // इमाइति // 84 // क्रमाद्विद्यादीन्यायुधानिदधतीः // 85 // तस्यभूपुरस्यतृती यरेखायांदिक्षुऊर्ध्वमधश्चदशसंक्षोभणाद्यादशमुद्रायजेत् // ह्रीं श्रींक्षोभणमुद्राश्रीपा० // 86 // मुद्राणां. // 106 // लक्षणान्युक्तानि // एवंप्रथमावरणमाराध्य // 87 // त्रैलोक्यमोहनेचक्रे // इमा-प्रकटयोगिन्यापूजितास्त | वाराहींचतथेंद्राणींचामुंडामथसप्तमीम् // महालक्ष्मीमिमाध्यायेत्सर्वाभरणसंयुताः // 84 // विद्यांशूलंशक्तिचक्रेगदांवज्रहिदंडकम् // पद्मंक्रमेणदधती सर्वाभिष्टप्रदायिकाः // 85 // तस्यतृतीयरेखायांदशमुद्राःप्रपूजयेत् // क्षोभणद्रावणाकर्षवश्योन्मादमहांकुशाः // 86 // खेचरी वीजयोनीचत्रिखंडेतिस्मृताइमाः॥ एवंभूविमाराध्यक्षोभमुद्रांप्रदर्शयेत् // 87 // त्रैलोक्यमोहने चक्रेयोगिन्य प्रकटाइमाः॥ पूजितास्तर्पिताःसंतुस्वेष्टदाइतिप्रार्थयेत् // 88 // विंदौपुष्पांजलिंदत्त्वा मूलेनान्यावृतियजेत् // षोडशारेपश्चिमादिविलोमेनक्रमादिमाः // 89 // पिताइष्टदाःसंत्वितिप्रार्थ्यमूलेनबिंदौपुष्पांजलिंदद्यात् // ततःषोडशारेविलोमेनपश्चिमादिषोडशकामा कर्षणाद्या शक्ती पूजयेत् // ह्रींश्रींकामाकर्षणीशक्तिश्रीपा इत्यादि // एवंद्वितीयावरणसंपूज्य सर्वा शापूरकेचक्रेएताःषोडशगुप्तयोगिन्यापूजितास्तर्पिता-संत्वित्युक्त्वा // 88 // 89 // // 10 For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RREEME ORDITORETTERREN // 90 // 91 // 92 // 93 // 94 // द्राविणीमुद्रादर्शयेतसागदिता // 95 // अष्टवर्गान्वितेष्टारपूर्वा धनुलो मनानंगकुसुमाद्याःपूजयेत् // ह्रींश्रीअनंगकुसुमाश्रीपा०॥९६॥ एवंतृतीयावरणसंपूज्यसर्वसंक्षोभणेचक्रे कामाकर्षणिकात्वाद्यावुयाकर्षणिकाततः॥अहंकाराकर्षिणीचशब्दाकर्षणिकापुनः॥९॥स्पर्शाकर्ष णिकातद्वद्रपाकर्षणिकापिच // रसाकर्षणिकाचान्यागंधाकर्षणिकातथा // 91 // चित्ताकर्षणिकाचा पिधैर्याकर्षणिकापरा // नामाकर्षणिकाचापिवीजाकर्षणिकातथा॥९२॥अमृताकर्षणीचान्यास्मृत्या कर्षणिकातथा // शरीराकर्षणीचैवमात्माकर्षणिकापरा॥९३॥सर्वाशापूरकेचक्रेषोडशस्वरसंयुते॥गुप्ता एतास्तुयोगिन्यःपूजिता संत्विदंवदेत् // 94 // दर्शयेद्राविणींमुद्रांद्वितीयावरणार्चने // काद्यष्टवर्ग संयुक्तेष्टारपूज्याइमाःपुनः // 95 // पूर्वादिष्वनुलोमेनबंधूककुसुमप्रभाः // अनङ्गकुसुमात्वाद्याद्वि तीयानंगमेखला // 96 // अनङ्गमदनातद्वदनंगमदनातुरा // अनंगरेखाचानंगवेगानंगांकुशापुनः९७॥ अनंगमालिनीत्यष्टौपाशांकुशलसत्कराः॥ सर्वसंक्षोभणेचक्रेदेव्योगुप्ततराभिधाः // 98 // पूजिताः संत्वितिप्रोच्याकर्षमुद्रांप्रदर्शयेत् // चतुर्दशारेसंपूज्या कादिढांतार्णराजिते // 99 // एताअष्ट्रौगुप्ततरयोगिन्यापूजिताःसंतु // इत्युक्त्वाकर्षणमुद्रादर्शयेत् // ततश्चतुर्थावरणेचतुर्दशारेका दिचतुर्दशार्णयुते // 97 // 98 // 99 // For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० // 10 त०१२ इंद्रगोपेत्यायुक्तरूपादर्पणपाशधरवामकराः // पानपात्रांकुशधरदक्षकराः // 100 // सर्वसंक्षोभण्याद्या चतुर्दशशक्तयः // शक्तिपदादिकाःपश्चिमादिविलोमतःपूज्याः // ह्रींश्रीसंक्षोभणीशक्तिश्रीपाइत्यादि // 101 / / 102 // 103 // 104 // एवंचतुर्थावरणमाराध्यसर्वसौभाग्यदेचक्रेइमाश्चतुर्दशसंप्रदाययोगिन्यः इंद्रगोपनिभारम्यामदोन्मत्ताःसभूषणाः // विभ्रत्योदर्पणंपानपात्रंपाशांकुशावपि // 100 // पश्चि मादिविलोमेनचतुर्थावरणस्थिताः॥सर्वसंक्षोभणीपूर्वासर्वविद्रावणीपरा // 1 // सर्वाकर्षणिकाचान्यास हादकरीपुनः॥सर्वसंमोहनीचापिसर्वस्तंभनकारिणी॥२॥सर्वजभनिकानामाष्टमीसर्ववशंकरी // सर्वरंज निकाचापिसर्वोन्मादनिकातथा // 3 // सर्वार्थसाधनीचाथसर्वसंपत्तिरूपिणी // सर्वमंत्रमयीचांत्यास द्वंद्वक्षयंकरी॥४॥ मूलेपुष्पांजलिंदत्त्वावश्यमुद्रांप्रदर्शयेत् // सर्वसौभाग्यदेचक्रेसंप्रदायाभिधा इमाः // 5 // योगिन्य पूजितास्तृप्तामंगलानिदिशतुमे // संप्रायतिदशारेऽथणादिभाताणभूषिते // 6 // संपूज्यादशयोगिन्योजपापुष्पसमप्रभाः॥ स्फुरन्मणिविभूषाढ्या पाशांकुशलसत्कराः // 7 // पश्चि मादिविलोमेनसाधकाभीष्टसिद्धिदाः // सर्वसिद्धिप्रदापूर्वासर्वसंपत्प्रदाततः॥८॥ पूजितासंत्वित्युक्त्वावश्यमुद्रादर्शयेत् // णादिदशवर्णयुतेदशारेपश्चिमादिव्युत्क्रमेणसर्वसिद्धिप्रदाद्यादे वीपदाद्यादशपूजयेत् // ह्रींश्रीसर्वसिद्धिप्रदादेवीश्रीपा० // 105 // 106 // 107 // 108 // // 107 // RE For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवंपंचमावरणसंपूज्यसर्वार्थसाधकेचक्रेइमादशकुलयोगिन्यापूजितासंत्वित्युक्त्वोन्मादमुद्रादर्शयेत् 109 // सर्वप्रियंकरीचान्यासर्वमंगलकारिणी // सर्वकामप्रदापश्चात्सर्वदुःखविमोचनी // 9 // सर्वमृत्युप्रशमनी सर्वविघ्ननिवारिणी // सर्वांगसुंदरीचान्यासर्वसौभाग्यदायिनी // 110 // विंदौपुष्पंसमाथोन्माद मुद्रांप्रदर्शयेत् // सर्वार्थसाधकेचक्रेपंचमेसर्वतःस्थिताः // 11 // पूजिताःकुलयोगिन्यःसंतुमेभीष्टसि द्धिदाः // इतिसंप्रार्थ्यसंपूज्यमादिक्षांतविभूषिते // 12 // परेदशारेयोगिन्यउद्यद्भास्करसंनिभाः // ज्ञानमुद्राटंकपाशवरधारिकरांबुजाः // 13 // सर्वज्ञासर्वशक्तिश्चसर्वैश्वर्यफलप्रदा // सर्वज्ञानमयी पश्चात्सर्वव्याधिविनाशिनी // 14 // सर्वाधारस्वरूपाचसर्वपापहरापरा // सार्वानंदमयीदेवी सर्वरक्षास्वरूपिणी // 15 // // 110 // 111 // ततोपरेदशारेमाद्यर्णयुतेज्ञानमुद्रावरदक्षकराटंकपाशवामकराउद्यद्रविनिभाःसर्वज्ञाद्यादे व्याद्यादशपूजयेत् // ह्रीं श्रींसर्वज्ञादेवीश्रीपा०॥ 112 // 113 // 114 // 115 // For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 108 // एवंषष्ठमावरणमभ्यय॑सर्वरक्षाकरेचक्रेइमादशनिगर्भयोगिन्यापूजितासंत्वित्युक्त्वांकुशमुद्रादर्शयेत् // RE ततोष्टारेरक्तवस्त्रबाणवरदक्षकराधनुर्विद्यावामकरान्यासोक्ताअष्टवशिन्याद्याउक्तबीजपूर्विकायजेत् // त०१२ सर्वेप्सितार्थफलदापश्चिमादिविलोमगाः // पुष्पमूलेनदत्त्वाथोकुर्यान्मुद्रांमहांकुशाम् // 16 // सर्व रक्षाकरेचक्रेनिगर्भा-पूजिताइमाः॥ योगिन्यस्तर्पिता संतुममाभीष्टफलप्रदाः // 17 // संप्रायवमथा | टारेदाडिमीपुष्पसंनिभाः॥ रक्तांशुकाधनुर्वाणविद्यावरलसत्कराः॥१८॥ अकारायष्टवर्गाद्यापश्चिमादि विलोमतः॥ पूजयेत्पूर्वसंप्रोक्तावीजाद्याअष्टदेवताः॥ 19 // वशिनीचापिकौमारीमादिनीविमलारुणा॥ जयिनीचापिसर्वेशीकौलिनीत्युदिताःपुरा // 120 // सर्वरोगहरेचक्रेरहस्याःपूजितामया // तर्पिताः पूजिताःसंतूत्वैवंदद्यात्सुमांजलिम् // 21 // खेचरीदर्शयेन्मुद्रांसुंदरीतुष्टयेत्ततः // त्रिकोणेत्वकथाद्य र्णरचितेपश्चिमादितः // 22 // हीश्रींअंआंअम्ब्र्व शिनीवाग्देवताश्रीपा० // 116 // 117 // 118 // 119 // 120 // एवंसप्तमावरणमिष्ट्वासर्व // 10 रोगहरचक्रेइमाअष्टारहस्ययाोगन्यापूजितासंत्वित्युक्त्वाखेचरीमुद्रांदर्शयेत् // 121 // 122 // For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततोऽकथादिवर्णरचितेत्रिकोणेपश्चिमाद्यनुलोमेनचतुर्दिास्वस्वबजिपूर्वकान् जंभमोहवशस्तंभविशेषणवि शिष्टान्कामेश्वरकामेश्वर्योर्बाणधनुःपाशांकुशान्पूजयेत् // बीजान्याह // बाणेति // बाणादौपंचबाणबी जानि // चापादौसबिंदुमीनकृष्णौधकारथकारौ // पाशमायेआह्रीमितिपाशादौ // अंकुशस्यादौत्वंकुशं क्रोमिति // हेतिदेवताआयुधदेवताः // 123 // 124 // 125 // तासांध्यानमाह // नानति // स्वस्वायुधा यजेत्कामेशकामेश्योर्वाणाश्चापंचपाशकम् // अंकुशंचानुलोमेनचतुर्दिक्षुसमाहितः // 23 // मुंभमोहवशस्तंभपदायान्वीजपूर्वकान् // वाणवीजानिवाणादौमीनकृष्णौसविंदुकौ // 24 // चापादौ पाशकस्यादौपाशमायेनियोजयेत् // अंकुशंत्वंकुशस्यादौस्मर्तव्याहेतिदेवताः॥२५॥ नानारत्नवि भूपाट्या स्वस्वायुधसमन्विताः // विद्युद्दामसमानांग्योयौवनोन्मदमंथराः // 26 // निबाणादीनि // बाणदेवताबाणधराइत्यादि // प्रयोगोयथा // लांवांसांद्रांद्रींक्तींब्लूसाकामेश्वरकामे श्वरीजभणबाणश्रीपा०पश्चिमे // धंधकामेश्वरकामेश्वरीमोहनधतु:श्रीपा उत्तरे // आंहींकामेश्वरकामे श्वरीवशीकरणपाशश्रीपा०पूर्वे / क्रोंकामेश्वरकामेश्वरीस्तंभनांकुशश्रीपा दक्षिणे // 126 // For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IMinik मं०म० // 109 // अग्नीति // अग्निदक्षिणवामकोणेषुकूटवयंपूर्वे // रुद्रविष्णुब्रह्मणांशक्तयश्चतिनकामेश्वरीवज्रेश्वरीभगमा सटीक लिनीसंज्ञाःपूज्याः॥ 127 // तासांध्यानान्याहश्लोकत्रयेण // कामेति // वामयोःपुस्तकाभये // वरा क्षमालेदक्षयोगा उद्यन्मार्तडोभानुस्तेनसमानाप्रभायस्याः॥ वरपुष्पबाणौदक्षयोगाइक्षुधनुरभयोवामयोः। त०१२ भगेति // हाटकंकनकंतत्तुल्यकांतिः॥ ज्ञानमुद्रावरौदक्षयोः॥ पाशांकुशौवामयोः॥ 128 // 129 // 130 // अग्न्यादिकोणत्रितयेपूज्या कूटबयादिकाः।कामेश्वरीचवज्रेशीतृतीयाभगमालिनी // 27 // कामेश्वरी रुद्रशक्ति शरच्चंद्रशतप्रभा // स्मर्त्तव्यादधतीहस्तैःपुस्तकाऽभीवरस्रजः॥२८॥ वज्रेश्वरीविष्णुशक्ति रुद्यन्मार्तडसप्रभा॥ इक्षुचापवराभीतिपुष्पवाणलसत्करा // 29 // भगमालाब्रह्मशक्तिस्तप्तहाटक सप्रभा // ज्ञानमुद्रांवरंपाशमंकुशंदधतीकरैः॥१३०॥ एवंत्रिकोणसंपूज्ययच्छेत्पुष्पाञ्जलिंततः॥ बीज मुद्रांप्रदाथप्रार्थयेत्सुंदरीमिदम् // 31 // सर्वसिद्धिप्रदेचक्रेयोगिन्यापूजितामया // दिशंत्वतिरह स्याख्यामंगलमेनिरंतरम् // 32 // प्रयोगोयथा // कएईलह्रींकामरूपपीठेकामेश्वरीरुद्रशक्तिश्रीपा०॥ हसकलहींपूर्णगिरिपीठेवजेश्वरीविष्णुश Ba क्तिश्री० // सकलह्रींजालंधरीपीठेभगमालिनीब्रह्मशक्तिश्रीपा० // एवमष्टमावरणमिष्ट्वासर्वसिद्धिप्रदेचक्रे BE // 109 // इमाअतिरहस्ययोगिन्यापूजिताःसंत्वित्युक्त्वामूलेनपुष्पांजलिंदत्त्वाबीजमुद्रादर्शयेत् // 131 // 132 // For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ततोमूलविद्यापठित्वाध्यात्वाविंदौश्रीमत्रिपुरसुंदरीपादुकांपूजयामीतियजेत् // 133 // एवंनवमावरण माराध्यसर्वकामप्रदेचक्रेसर्वाभीष्टदायिनीपरापररहस्ययोगिनीश्रीमत्रिपुरसुंदरीपूजितास्त्वित्युक्त्वायोनि बिन्दौसंपूजयेत्पश्चात्श्रीमत्रिपुरसुंदरीम् // मूलविद्यांसमुच्चार्याध्यात्वापूर्वोक्तवर्मना // 33 // सर्वानं दमयेचक्रेसर्वाभीष्टविधायिनीम् // परापररहस्याख्यायोगिनीपूजितास्तुमे // 34 // योनिमुद्रां प्रदर्याथतर्पणंत्रिःसमाचरेत् // धूपंदीपंचनैवेद्यमन्नैर्नानाविधैर्दिशेत् // 35 // वह्निसंपूज्यपूर्वोक्तवि धिनातत्रसुंदरीम् // आवाह्यजुहुयाद्र्व्यपंचविंशतिसंख्यया // 36 // ईशानाग्नेयनैर्ऋत्यवायुको णेषुचक्रमात् // श्रीचक्रस्यवलिंदद्याद्धृतशेषेणसंयुतः // 37 // बटुकस्यचयोगिन्या क्षेत्रेशग णनाथयोः // निजैर्मत्रैःस्वमुद्राभिःपूर्वसंकीर्तितेमया // 38 // नती प्रदक्षिणा कृत्वामूलविद्या | ततोयजेत् // एवं श्रीसुंदरींनित्यपूजयविजितेंद्रियः // 39 // मुद्रांप्रदर्यत्रिस्तर्पयित्वाधूपदीपादीनिदत्त्वाअग्नावावाहुत्वोद्वासयेत् // 134 // 135 // 136 // // 137 // ततईशानादिकोणेषुहुतशेषेणबटुकयोगिनीक्षेत्रपालगणेशभ्यःपूर्वोक्तैःस्वस्वमंत्रैस्तत्तन्मुद्रादर्श नपूर्वकंबलिंदद्यात् // 138 // नतीनमस्कारान् // 139 // PUTEJUNGJAUSSDJ.SSSSSSSS For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में०म० सटीक // 11 // त०१२ नवावृत्तियुतानवावरणैरुक्तैर्युताम् // 140 // प्रयोगानाह०॥ नवेति // 141 // चंद्राकर्पूरम् // कामाधिको भवेद्रूपेणोतिशेषः // 142 // 143 // दधीति // दनारोग्यम् // आज्येनसंपदम् // दुग्धेनग्रामम् // मधुना नवावृत्तियुतांसर्वान्कामानिष्टानवाप्नुयात् // अथप्रयोगावक्ष्यतेसाधकाभीष्टसिद्धिदाः // 140 // नवलक्षजपेनास्यरुद्ररूपोनरोभवेत् // मल्लिकामालतीपुष्पैहोमाद्वागीशतामियात् // 41 // करवीरैर्ज पापुष्पैोमान्मोहयतेजगत् // चन्द्रकुंकुमकस्तूरीहोमात्कामाधिकोभवेत् ॥४२॥चंपकै पाटलैविश्वं वशमानयतेऽचिरात् // लाजाहोमोराज्यदायीमधुनोपद्रवक्षयः॥४३॥ निशिच्छागपलेहोमोरिपुसैन्य विनाशकृत् // ध्याज्यदुग्धमधुभिःक्रमादोमादवाप्नुयात् // 44 // आरोग्यसंपदंग्रामंधनं शर्करयासु खम् // कमलैर्धनसंपत्तिर्दाडिमैराजवश्यताम् // 45 // क्षत्रियामातुलिंगैस्तुवैश्यानारंगजैःफलैः॥ शूद्राःकूष्मांडसंभूतैर्वश्याःस्युरचिराद्भुतैः // 46 // धनमितिक्रमः // 144 // राजवश्यतामवाप्नुयादितिपूर्वेणसंबंधः // 145 // मातुलिंगै/जपूरैहुतैःक्ष त्रियावश्याः // एवमपि // 146 // // 11 // For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धराभूमिवंशातत्स्थाप्राणिनोवश्यास्युरित्यर्थः // 147 // 148 // 149 // 150 // 151 // 152 // मध्येमंत्रमध्येयत्कूटत्रयंतत्रान्यद्वर्णयोगात्कुबेरोपासितयोभत्रिंशद्भेदास्तेग्रंथगौरवभीत्यानोक्ताः // अ नयैवोपासितयासर्वेष्टसिद्धेश्चमुख्यषैवकामराजविद्या / तेभेदायथा॥ हसकलएईलहीं हसकलएईलहीं सह पनसानांलक्षहोमादश्यास्स्युश्चक्रवर्तिनः // द्राक्षाफलैरिष्टसिद्धिरंभाभिमंत्रिणोवशाः // 17 // नारिकेलैस्तुसंपत्तिस्तिलै सर्वेष्टसिद्धयः // गुग्गुलेदुःखनाशःस्यात्सर्वेष्टशर्करागुडैः // 18 // पायसैर्धनधान्याप्तिर्वधूकै प्राणिनोवशाः // पक्कैचूतफलैर्होमालक्षमात्राद्धरावशा // 19 // लवणैराजिकायुक्तोमाइष्टविनाशनः // कर्पूरहोमाल्लभतेवापतित्वनरोऽचिरात् // 150 // करं जफलहोमेनभूतप्रेतादयोवशाः // बिल्वैःस्यादतुलालक्ष्मीरिक्षुदंडैःसुखाप्तयः // 51 // धृतहोमा दीप्सिताप्तिःशांतिःस्यात्तिलतंडुलैः // किंबहूक्तेनदेवेशिसर्वेष्टसाधितानृणाम् // 52 // मध्येकूटत्रिके भेदावर्णान्तरनियोजनात् // बहवोन्येनगदिताग्रंथगौरवभीतितः॥ 53 // कएईलही हसकहएईलही सहकहएईलहीं कहकहएईलह्रीं // एतत्कौबेरीद्वयंकूटद्वयंकामराजीयम् / / सहस कलह्रींसहसकलहीं हसकहलह्रींसकलहीं। एतद्वयमगस्त्योपासितम्॥ हसकलहींअंतेकामराजीयेआद्यद्ध For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie 4०म० यंकामराजीयं सहसकलहीं॥ एतद्वयंलोपामुद्रोपासितम् हसकएईलह्रींसहएकईलहींहसकएईलहीं। हस- S! सटीक कएईलह्रीं सहकएईलहीं तृतीयमीदृशमेव // चान्द्रींद्वयमेतत् // सकलहीं। सकलहलह्रीं / हसकलहहीं॥ कएईलहसकहलहीह्रींहींहीलसकहलह्रींएतद्द्वयंदुर्वासार्चितम् // तदुक्तंज्ञानार्णवे // कामराजाख्यवि त०१२ द्यायास्त्रिकूटेषुवरानने // यास्थिताभुवनेशानीद्विधाकुरुमहेश्वरि // बिंदुहीनानादहीनादुर्वासोपा सिताभवेत् // संहितायांच // वाग्भवस्थंचतुष्कंचकामराजस्थपंचकम् // शक्तिकूटंत्रिकायचकामरा जस्यसंलिखेत् // मायास्थानेहरीवर्णयुगलंचक्रमाल्लिखेत् // दुर्वाससापूजितेयंपुरुषार्थप्रदायिनीति // कएईलहरीहसकहलहरीसहलहरीएतद्वयंदुर्वाससोचितम् ॥आद्याकामराजतुल्या॥ सहकलह्रीं अंत्येएता शेएव // ऐंद्रीद्वयमेतत् // सएईलहीं हकहकहलहीं सकलह्रीं // सहसकलह्रींसहसकलकहलहींआद्यमे वतृतीयम् // नंदिविद्याद्वयमेतत् // हसकहलह्रीं // सकहसकलह्रींसहकहलहीं॥ १५॥हसएकलहींद्वयमेत देवस्कांदीद्वयमेतत् // 16 // कहएईलहींहकएईलहींसकएईलहीं // 17 // मानवी // कएकलहींहकहलहीं सहकलह्रीं // 18 // धर्मराजी॥ आद्यंकामराजीयं // द्वितीयेतृतीयेधार्मराजीये // 19 // एषावारुणी॥ कस कलह्रींहसकलह्रींसकलरह्रीं // 20 // आग्नेयी // हसकलहींहसकलह्रींतृतीयमाग्नेयम् // 21 // एषाशैषी। कए रलरह्रींहकलरहलहींसरकलरहीं // 22 // वायवीयम् // कएईरलहींहकहलह्रींसहकलरह्रीं // 23 // सौमीयम् // 10111 // For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहलहींहकहललरह्रींसकलह्रीं // 24 // ऐशीयम् // कएकलहीअन्तेकामराजीयम् // 25 // शाक्तीयम् // आ l_कामराजद्वयम् / अन्त्यसकलहीमिति // 26 ॥रतिपूजिता // हसकलह्रींहकहसरहींआद्यमेवतृतीयम् // H // 27 // जैवीयम् // आद्यंकामराजीयं / / हकहसरहींहसकलह्रीं // 28 // ब्राह्मीयं // सहलह्रींसहकलहलहीं // 29 // वैष्णवीयम् // आद्यंकामराजीयं॥ हकहलह्रींहसकलह्रीं॥३०॥ उन्मनीयं // हसकलह्रींसहसकलह्रीं | अपरीक्षितायशिष्यायनदेयेयंकदाचन // पुत्रायवासुशिष्यायदत्त्वाभीष्टप्रदायिनी ॥५४॥गोपालसुं दरीवक्ष्येभोगमोक्षप्रदायिकाम् // मायारमाचित्तजन्माकृष्णायेतिपदंततः // 55 // आद्यवाकमुच्चा र्यगोविंदायपदंवदेत् // द्वितीयंतुततःकूटंगोपीजनपदंततः॥ 56 ॥वल्लभायपदान्तेतुतृतीयंकूटमुच्च रेत् // स्वाहांतावह्नियुग्मा'स्मृतागोपालसुंदरी // 17 // विद्यायाद्वौमुनीउक्तौविधावानंदभैरवो // | छंदस्तुदैवीगायत्रीदेवतासुंदरीयुता // 58 // ... कलह्रींसकलहलहीं॥३१सौरी|एतभेदा॥एषांश्रीबीजादिभिःसंपुटिताकामराजवदेवउपासनमपि।।गोपालसुं दरीवदिति॥१५३॥१५॥मायेति|मायाहीं॥रमाश्रीं।चित्तजन्माक्कीकृष्णाय॥१५॥प्रथमकूटागोविंदाय // द्वितीयंकूटं // 156 // गोपीजनवल्लभाय // तृतीयं // स्वाहा // ववियुग्मार्णात्रयोविंशतिवर्णा॥१५॥१८॥ 1 अस्यगोपालसुंदरीमंत्रस्यविधात्रानंदभैरवौऋषीदेवीगायत्रीछंदःगोपालसुंदरीदेवतालीबीजंस्वाहाशक्तिःममाभीष्ट० // For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie में०म० // 112 // षडंगमाह मायेति // 159 // 160 // वर्णन्यासमाह // मूीति // हृदादिबातास्थितिन्यासः // पादा सटीक दिमूर्द्धातःसंहारन्यासः॥ एवंन्यासत्रयंकृत्वा // पुनःसृष्टिस्थितिन्यासोकुर्यात् // 161 // 162 // 163 // | त०१२ गोपालोमन्मथोबीजंशक्ति पावकवल्लभा // मायाश्रीमन्मथैर्हत्स्यात्कृष्णायशिरईरितम् // 59 // गोविंदायशिखागोपीजनेतिकवचंमतम् // वल्लभायस्मृतंनेत्रमस्त्रंपावकभार्यया // 160 // मू भिंभालेभुवोरक्ष्णोःकर्णयो सयोर्मुखे // चिबुकेचगलेबाह्वोर्हृदयेजठरेन्यसेत् // 61 // नाभी लिंगेगुदेसक्योर्जानुनोर्जघयोरपि // गुल्फयो पादयोर्वर्णान्कूटत्रयविवर्जितान् // 62 // सृष्टिन्यासोऽ यमुदितोहृदाद्यसांतिकास्थितिः // संहारोंघ्यादिमूर्धातःपुनःसृष्टिंस्थितिंचरेत् // 63 // करशु ध्यासनन्यासौन्यासंवाग्देवताभिधम् // कृत्वापूर्वोदितान्कूटत्रयंकास्यादन्यसेत् // 6 // कूटत्रयद्विरावृत्त्याषडंगपुनराचरेत् // कमलावसुधायुक्तंध्यायेत्श्रीचक्रगंहरिम् // 65 // U112 // करशुद्धिन्यासासनन्यासवाग्देवतान्यासान्सुंदर्युक्तान्कृत्वामूर्धमुखहृत्सुकूटवयंन्यसेत् // 164 // 165 // For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ध्यानमाह / / क्षीरेति॥क्षीरसमुद्रस्यकल्पदुमवनेविलसत्रनयुक्योमंडपस्तदंतःप्रोद्यत्यत्श्रीपीठंतत्रस्थित मष्टकरंपद्मचक्रबाणवेणुदक्षकरंचापपाशांकुशवीणावामकरमवनिमाभ्यांधरालक्ष्मीभ्यांशोभितंब्रह्मादिसु क्षीरांभोधिस्थकल्पद्रुमवनविलसद्रनयुग्मंडपांतः प्रोद्यश्रीपीठसंस्थं करधृतजलजारीक्षुचापांकुशे पुम् ॥पाशंवीणांसवेणुंदधतमवनिमाशोभितरक्तकांतिध्यायेद्गोपालमीशंविधिमुखविबुधैरीडयमानसमं तात्॥६६॥एवंध्यात्वाजपेल्लक्षंदशांशंपायसांधसा॥जुहुयाद्वैष्णवेपीठेपूजयेत्सुंदरीहरिम्॥६॥आदावं गानिसंपूज्यप्रागाद्याशासुपूजयेत् // वासुदेवंसंकर्षणंप्रद्युम्नमनिरुद्धकम् // 68 // पूज्यावह्नयादिको णेषुशांति श्रीश्चसरस्वती // रतिःपुनर्दिक्षुपूज्यारुक्मिणीसत्यभामिका // 69 // कालिंदीजांबुवत्याख्या मित्रविदासुनंदया // सुलक्षणानानिजितीततोनिधयोपिच // 170 // महापद्मश्चपद्मश्चशंखोमक प्रयोगानपितत्रोक्तान्कुर्यादिष्टप्रसिद्धये // 72 // रेस्तूयमानगोपालंध्यायेत् // 166 // 167 // 168 // 169 // 170 // विधीनाह // महापद्मइति // 171 // ततःसुंदरीमंत्रोक्तानिनवावरणानियजेत् // 172 // For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 113 // ब्रह्मणःसायुज्यंब्रह्मरूपंप्राप्नोति // 173 // इतिश्रीमंत्रमहोदधिनौकायांसुंदरीपूजनंनामद्वादशस्तरंगः॥१२॥ सटीक // श्रीहनुमतोमंत्रान्वक्तुंप्रतिजानीते // अथेति // मंत्रमुद्धरति // इंद्रेति // वराहोहः // इंद्रस्वरऔदि| दुस्ताभ्यांयुतःहौं / हसफस्वरूपम् // अग्नीरः // 1 // एतेझिंटीशबिंदुयुताः॥ एबिंदुयुताः // तेनहस्कें / त०१३ एवंयोभजतेनित्यंश्रीमद्गोपालसुंदरीम् !! सर्वान्कामानवाप्यतेसायुज्यंब्रह्मणोव्रजेत् // 173 // इतिश्री महीधरविरचितेमंत्रमहोदधौत्रिपुरसुंदरीगोपालसुंदरीपूजनंनामद्वादशस्तरंगः // 12 // अथोच्यते हनुमतोमन्त्राःसर्वेष्टसिद्धये // इन्द्रस्वरेंदुसंयुक्तोवराहोहसफामयः // 1 // झिंटीशबिंदुसंयुक्ताद्विती यंबीजमीरितम् // गदीपांताग्निरुदेंदुसंयुतःस्यात्तृतीयकम् // 2 // हसरामनुचंद्राढ्याश्चतुर्थहसखाः फराः // शिवेंद्वाट्या पंचम स्यादसौमन्विदुगौपरम् // 3 // गदीखः॥ पांताग्निरुतेंदुयुतः॥ पांतःफः॥ अग्नीरः॥ रुद्रए // इंदुर्बिदुस्तैर्युतः // ख्कें // 2 // हसरा मनुची द्राढ्याः॥ औबिंदुयुताः॥ हस्तौं // हसखफराः // शिवेंद्वाढयाः // एबिंदुयुताः॥ तेन // हूस्ख्कें / हसौ // 13 // मन्विदुगौऔबिंदुयुतौ // हसौः॥ परस्पष्टम् // 3 // For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डेयुतीहनुमानहनुमते ॥हार्दनमः। यथा॥ हौंहस्फ्रेंख्फ्रेंहसौंस्फेंहस्रीहनुमतेनमः॥४॥ षष्ठंहसौमितिबीजं // द्वितीयं // हल्फेमितिशक्तिः // 5 // ह्रौंहृत् // हस्केंशिरः // केंशिखा // इत्यादि // वर्णन्यासमाह // ड्युतोहनुमान्हार्दमंत्रोचंद्वादशाक्षरः // रामचंद्रोमुनिश्चास्यजगतीछंदईरितम् // 4 // हनुमान्देव ताबीजंषष्ठंशक्तिद्धितीयकम् // पंड्बीजैरंगषट्कंस्यान्मूर्ध्निभालेदृशोर्मुखे // 5 // कंठेचवाद्वितये हृदिकुक्षौचनाभितः॥ लिंगेजानुद्वयेपावयेवर्णानक्रमान्यसेत् // 6 // पवीजानिपदद्वंद्वेमूर्षिभाले मुखेहदि // नाभावूर्वोर्जघयोश्चपादयोर्विन्यसेत्क्रमात् // 7 // बालार्कायुततेजसंत्रिभुवनप्रक्षोभकंसु न्दरंसुग्रीवादिसमस्तवानरगणैःसंसेव्यपादाम्बुजम् // नादेनैवसमस्तराक्षसगणान्संत्रासयंतंप्रभुश्रीमद्रा मपदांबुजस्मृतिरतंत्र्यायामिवातात्मजम् // 8 // एवंध्यात्वाजपेदकसहस्रजितमानसः // दशांशं जुहुयाद्रीहीन्पयोदध्याज्यसंयुतान् // 9 // मूनीति // एकैकंसर्वत्र०॥६॥ पदन्यासमाह // षडिति // पदद्वंद्वंहनुमतेनमइति // 7 // ध्यानमाह // बालेति // वातात्मजंहनुमंतम् // 8 // 9 // BAI 1 अरूपहनुमन्मंत्रस्यरामचंद्रऋषिःजगतीच्छंद-हनुमान्देवताहस्रोंबीजंहस्–शक्तिर्ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir The मं०म० सटीक ali.13 // 11 // PRIOUTUBE दलेषुतदाह्वयान् // हनुमन्नामानि // 10 // तानाह // रामभक्तायइत्यादि // 11 // 12 // 13 // 14 // 15 // विमलादियुतेपीठपूजाकार्याहनूमतः // केसरेष्वंगपूजास्यादलेष्वन्यास्तदाह्वयान् // 10 // रामभ तोमहातेजाकपिराजोमहाबलः // द्रोणाद्रिहारकोमेरुपीठिकार्चनकारकः // 11 // दक्षिणाशा भास्करश्चसर्वविघ्ननिवारकः // एवंनामानिसंपूज्यदलाषुचवानरान् // 12 // सुग्रीवमगदंनीलंजां ववंतनलंतथा // सुषेणंद्विविदमैदपूजयेदिक्पतीनपि // 13 // एवंसिद्धेमनौमंत्रीस्वपरेष्टंप्रसाधये त् // कदलीवीजपूराम्रफलैर्तुत्वासहस्रकम् // 14 // द्वाविंशतिब्रह्मचारिविप्रान्संभोजयेदथ // एवं कृतेमहाभूतविषचौराद्युपद्रवाः // 15 // नश्यतिक्षणमात्रेणविद्वेषिग्रहदानवाः // अष्टोत्तरशतंवारिमं वितंविषनाशनम् // 16 // रात्रौनवशतमंत्रजपेद्दशदिनावधि // योनरस्तस्यनश्यतिराजशत्रूत्थभी तयः॥ 17 // अभिचारोत्थभूतोत्थज्वरेतन्मंत्रितै लैः // भस्मभिःसलिलैर्वापिताडयेज्ज्वरिणः क्रुधा // 18 // दिनत्रयाज्ज्वरान्मुक्तःससुखलभतेनरः // तन्मंत्रितौषधंजग्ध्वानीरोगोजायतेध्रुवम् // 19 // तन्मंत्रितपय पीत्वायोढुंगच्छेन्मनुजपन् // तज्जप्तभस्मलिप्तांग शस्त्रसंधैर्नबाध्यते // 20 // // 16 // 17 // 18 // शस्त्रक्षतादयोवारत्रयमंत्रितेनभस्मनामार्जिताअचिरात्शुष्यंतिनश्यति // 19 // 20 // // 11 // For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir H // 21 // 22 // 23 // देहचंदनंदेहेधृतंयच्चंदनंतेनयुतं // भस्मांबुचमंत्रितंयस्मैदेयंसवश्यास्यात् // 24 // ईशानेत्यादितद्गृहंचिरमित्यंतएकाप्रयोगः // भूतांकुशतरोःकरंजस्य // अरिष्टस्यईशानदिशिस्थिते शस्त्रक्षतंत्रण शोफोलूतास्फोटोपिभस्मना // त्रिमंत्रितेनसंस्पृष्टाःशुष्यंत्यचिरतोनृणाम् // 21 // सूर्यास्तमयमारभ्यजपेत्सूर्योदयावधि // कीलकंभस्मचादायसप्ताहावधिसंयुतः // 22 // निखने द्भस्मकीलौतौविद्विषांद्वार्यलक्षितः // विद्वेषंमिथआपन्नाःपलायंतेऽरयोऽचिरात् // 23 // अभिमंत्रि तभस्मांबुदेहचंदनसंयुतम् / खाद्यादियोजितंयस्मैदीयतेसचदासवत् // 24 ॥राश्चजंतवोनेनभवं तिविधिनावशाः // ईशानदिक्स्थमूलेनभूतांकुशतरोःशुभाम् // 25 // अंगुष्ठमात्रांप्रतिमांप्रविधायह नूमतः॥ प्राणसंस्थापनंकृत्वासिंदूरैःपरिपूज्यच // 26 // गृहस्याभिमुखीद्वारेनिखनेन्मंत्रमुच्चरन् / भूताभिचारचौराग्निविषरोगनृपोद्भवाः // 27 // संजायंतेगृहेतस्मिन्नकदाचिदुपद्रवाः // प्रत्यहं धनपुत्रायेरेधतेतद्गृहंचिरम् // 28 // नमूलेनांगुष्ठमितांहनुमत्प्रतिमांकृत्वाप्राणान्संस्थाप्यसिंदूरैरभ्यर्च्यतद्गृहद्वारिनिखन्यततत्रसर्वोपद्रवना शस्तबृद्धिश्च // 25 // 26 // 27 // 28 // For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त०१३ Salm29 // 30 // 31 // शिवावितं शिवेनापिरक्षितं // शत्रुमेवंकुर्वन्हन्यात् // अर्द्धचंद्रेत्यादिरिपुमु तमित्यंतएकोमारणप्रयोगः॥ उन्मत्तोपत्तूरः // श्लेष्मातकश्चिकणफलोवृक्षः॥अक्षोबिभीतकस्तदुत्थसमि // 11 // निशिश्मशानभूमिस्थोभस्मनामृत्स्नयापिवा // शत्रो प्रतिकृतिकृत्वाहदिनामसमालिखेत् // 29 // कृतप्राणप्रतिष्ठांतांभिंद्याच्छस्त्रैर्मनुंजपन् // मंत्रांतेप्रोवरेच्छवोनामछिंधिचभिंधिच // 30 // मारये तिचतस्यांतेदंतैरोष्ठनिपीड्यच // पाण्योस्तलेप्रपीडयाथत्यत्वातीसदनंबजेत् // 31 // एवंसप्त दिनंकुन्हिन्यातशत्रुशिवावितम् // अर्द्धचंद्राकृतौकुंडेस्थंडिलेवाहुतंचरेत् // 32 // मुक्तकेशः श्मशानस्थोलवणैराजिकायुतैः // उन्मत्तफलपुष्पैश्चनखरोमविपैरपि // 33 // काककौशिक] धाणांपोःश्लेष्मातकाक्षजैः // समिद्वरैश्चत्रिशतंदक्षिणाशामुखोनिशि // 34 // सप्तघस्रांनिदंकुर्व न्मारयद्रिप्रमद्धतम् // शतषटकंजपेद्रात्रौश्मशानदिवसत्रयम् // 35 // ततोवेतालउत्थायवदेद्भाविशु भाशुभम् // उदितंकुरुतेसर्वकिंकरीभूयमंत्रिणः // 36 // द्भिश्चहुतंचरेवजुहुयात् // सप्तधनान् दिवसान् // 32 // 33 // 34 // 35 // 36 // D // 11 // For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BSEEEEEEEED // 37 // 38 // पराधीनोबद्धोनिगडावशंखलातोमुच्यते // विद्वेषणादीनिविद्वषमारणोच्चाटान्तत्कृतपल्लवंलि खन्नेवमेवकुर्यात् // अमुकंद्वेषय 2 इतिद्वेष्येमारय 2 इतिमारणे // इत्यादिपल्लवलेखनं // 39 // 40 // कुबे हनुमत्प्रतिमां मौविलिखेत्तंपुरोमनून्।साध्यनामद्वितीयांतविमोचयविमोचय॥३७॥तत्सर्वमार्जयेद्वा महस्तेनाथपुनर्लिखेत् // एवमष्टोत्तरशतंलिखित्वामार्जयेत्पुनः॥ 38 // एवंकृतेपराधीनोमुच्यतेनि गडात्क्षणात् // एवंविद्वेषणादीनिकुर्यात्तत्पल्लवंलिखन् // 39 // वश्यार्थेसर्षपै)मोविद्वेषेकरवीर जैः // कुसुमैरिध्मकाष्ठेर्वाजीरकैमरिचैरपि // 40 // ज्वरेदूर्वागुडूचीभिर्दनाक्षीरेणवाघृतैः॥ शूलेहोमः कुबेराक्षेरेरंडसमिधातथा // 41 // तैलाक्ताभिश्चनिर्गुडीसमिद्भिर्वाप्रयत्नतः॥सौभाग्येचंदनैश्चद्वैरोचने लालवंगकैः // 42 // सुगंधपुष्पैर्वस्त्राप्त्यैस्तत्तद्धान्यैस्तदाप्तये // तत्पादरजसाराजीलवणाक्तेनमृत्य al वे // 43 // किंबहूक्तैर्विषेव्याधौशांतौमोहेचमारणे // विवादेस्तंभनेद्यूतभूतभीतौचसंकटे // 44 // वश्येयुद्धेनृपद्वारेसमरेचौरसंकटे // मंत्रोयंसाधितोदद्यादिष्टसिद्धिंधुवनृणाम् // 45 // राक्षासूक्ष्मकणस्तिक्तापविशेषः // 41 // 42 // यद्धान्यहोमस्तदाप्तिः // राजीलवणयुतेनयत्पादरजसा हूयतसम्रियते // 43 // 44 // 45 // NER25 1 SEE For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DH H मं०म०मार मंत्रमाह // वलयोति।पुच्छाकारंवलयत्रयविलिख्यमध्येआमितिबीजेनवेष्टितंसाध्यनामलिखेत् // तदुपर्य सटीक ष्टदलेषुहुमिति // 46 // 47 // बहिरेकवलयंकृत्वोपरिचतुरस्रंकृत्वातदग्राणिसंवर्ध्यतत्रत्रिशूलानिकृत्वा // 116 // वक्ष्येहनुमतोयंत्रसर्वसिद्धिप्रदायकम् // वलयत्रितयंलेख्यंपुच्छाकारसमन्वितम् // 46 // साध्यनाम त०१३ लिखेन्मध्येपाशबीजप्रवेष्टितम् // उपर्यष्टदलंकृत्वावर्मपत्रेषुसंलिखेत् // 47 // वलयंबहिरालिख्यत दहिश्चतुरस्रकम्।।चतुरस्रस्यरेखाग्रेत्रिशूलानिसमालिखेत् ॥४८॥भूपुरस्याष्टवत्रेषुहसौबीजंलिखेत्ततः॥ कोणेष्वंकुशमालिख्यमालामंत्रेणवेष्टयेत // 49 // तत्सर्ववेष्टयेयंत्रवलयत्रितयेनच // वस्त्रशिलायां फलकेताम्रपात्रेथकुड्यके // 50 // भूर्जेवाताडपत्रेवारोचनानाभिकुंकुमैः // यंत्रमेतत्समालिख्यत्य क्ताशोब्रह्मचर्य्यवान् // 51 // कपेःप्राणान्प्रतिष्ठाप्यपूजयेत्तं यथाविधि // सर्वदुःखनिवृत्त्यैतद्यं त्रमात्मनिधारयेत् // 52 // ज्वरमार्याभिचारनंसर्वोपद्रवशांतिकृत् // योषितामपिवालानां धृतंजनमनोहरम् // 53 // त्रिशुलेषुक्रोमिति // वजेषुहसौमिति // विलिख्यतन्मालामंत्रेणवक्ष्यमाणेनसंवेष्टयतत्पुनर्वलयत्रयेणवेष्टेय al त् // 48 // ४९॥५०॥नाभिःकस्तूरीत्यक्ताशउपवासी // 51 // 52 // 53 // OLOGovernmentar For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मालामंत्रमाह // प्रणवइति // वाऐं // हरिप्रियाश्रीं // मायादीर्घत्रयान्विता // बांहीं // पूर्वो मालामंत्रमथोवक्ष्येप्रणवोवारहरिप्रिया // दीर्घत्रयान्वितामायापूर्वोक्तंकूटपंचकम् // 14 // तारोनमोहनुमतेप्रकटांतेपराक्रम // आक्रांतदिझंडलतोयशोवीतिचतानच // 55 // धवलीकृतवर्णाते जगत्रितयवज्रच // देहवलदग्निसूर्यकोट्यंतेतुसमप्रभ // 56 // तनूरुहपदंरुद्रावतारपदमीरयेत् // लंकापुरीदहांतेनोदधिलंघनवर्णकाः // 17 // दशग्रीवशिरःपश्चात्कृतांतकपदंततः // सीताश्वा सनवाद्यतेसुतशब्दमुदीरयेत् // 58 // अंजनीगर्भसंभूतश्रीरामांतेतुलक्ष्मणा // नंदकांतेरकपिचसै न्यप्राकारवर्णकाः॥२९॥ सुग्रीवसख्यकावारणवालिनिवर्हण // कारणद्रोणपर्वातेतोत्पाटनपदंव देत् // 60 // अशोकवनवीत्यंतेदारणाक्षकुमारक // च्छेदनांतेवनपदंरक्षाकरसमूहच // 6 // विभंजनांतेब्रह्मास्त्रब्रह्मशक्तिग्रसेतिन // लक्ष्मणांतेशक्तिभेदनिवारणपदंपुनः // 62 // विशल्यौपधि वीतेसमानयनवर्णकाः // बालोदितांतेभान्वंतेमंडलग्रसनेतिच // 63 // मेघनादेतिहोमांतेविध्वं सनपदंवदेत् // इंद्रजिद्वधकारांतेणसीतारक्षकेतिच // 64 // मूलमंत्रस्थम् // 54 // 55 // 56 // 57 // 58 // 59 // 60 // 61 // 62 // 63 // 64 // g For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मै० म० | सटीक // 117 // त०१३ // 65 // 66 // 67 // 68 // 69 // 70 // 71 // 72 // 73 // 74 // 75 // 76 // राक्षसीसंघवतेविदारणचकुंभच // कर्णादिवधशब्दांतेपरायणपदंवदेत् // 65 // श्रीरामभक्तिश ब्दांतेतत्परेतिसमुद्रच // व्योमदुमलंघनेतिमहासामर्थ्यमेतिच // 66 // हातेजःपुंजवीत्यंतेराजमा नपदंपुनः॥ स्वामिवचनसंपादितार्जुनांतेचसंयुग // 67 // सहायांतकुमारेतिब्रह्मचारिन्पदंवदेत् // गंभीरशब्दोऽत्रिर्युदक्षिणाशापदंपुनः // 68 // मार्तडमेरुशब्दांतेपर्वततिपदंवदेत् // पीठिकार्चन शब्दांतसकलेतिपदंपुनः॥६९ // मंत्रागमाचार्य्यममसर्वग्रहविनाशन // सर्वज्वरोच्चाटनेतिसर्वविषवि नाशन // 70 // सर्वापत्तिनिवारणसर्वदुष्टेतिसंपठेत् // निवर्हणपदंसर्वव्याघ्रादिभयतत्परम् // 71 // निवारणसर्वशत्रुच्छेदनेतिपदंमम // परस्यचत्रिभुवनपुंस्त्रीनपुंसकात्मकम् // 72 // सर्वजीवपद्पश्चात जातंवशययुग्मकम् // ममाज्ञाकारकंपश्चात्संपादयपदद्वयम् // 73 // नानानामपदंधेयान्सर्वानाज्ञः ससंपठेत्॥परिवारान्ममेत्यंतसेवकान्कुरुयुग्मकम् // 74 // सर्वशस्त्रास्त्रवीत्यंतेषाणिविध्वंसयद्वयम् // मायादीर्घत्रयोपेताहात्रयंचहियुग्मकम् // 75 // विलोमपंचकूटानिसर्वशत्रून्हनद्वयम् // परदांतेला निपरसैन्यानिक्षोभयद्वयम् // 76 // 17 // For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्रिर्दवायुर्यः॥ स्वरूपमन्यत् ॥७७॥७८॥७९॥चतुर्विशतिश्लोकैनिष्पन्नोमालामंत्रो यथा ॥ॐनमोहनुमते प्रकटपराक्रमआक्रांतदिङमंडलयशोवितानधवलीकृतजगत्रितयवजदेहज्वलदग्निसूर्यकोटिसमप्रमतनूरुह रुद्रावतारलंकापुरीदहनोदधिलंघनदशग्रीवशिरस्कृतांतकसीताश्वासनवायुसुतांजनीगर्भसंभूतश्रीरामल क्ष्मणानंदकरकपिसैन्यप्राकारमुग्रीवसख्यकारणवालिनिबर्हणकारणद्रोणपर्वतोत्पाटनाशोकवनविदारणा | क्षकुमारकच्छेदनवनरक्षाकरसमूहनिभंजनब्रह्मास्त्रब्रह्मशक्तिप्रसनलक्ष्मणशक्तिभेदनिवारणविशल्यौषधिस ममसर्वकार्य्यजातंसाधयद्वितयंततः // सर्वदुष्टदुर्जनांतेमुखानिकीलयद्वयम् // 77 // घेत्रयंहात्रयं वर्मत्रितयंफट्नयंततः // वह्निप्रियांतोमंत्रोयंमालासंज्ञोखिलेष्टदः // 78 // अष्टाशीत्युत्तराःपं चशतवर्णामनोःस्मृताः // महोपद्रवसंपातेस्मृतोयंदुःखनाशनः // 79 // मानयनबालोदितभानुमंडलप्रसनमेघनादहोमविध्वंसनइंद्रजिद्वधकारणसीतारक्षकराक्षसीसंघविदारणकुं भकर्णादिवधपरायणश्रीरामभक्तितत्परसमुद्रव्योमद्रुमलंघनमहासामर्थ्यमहातेजःपुंजविराजमानस्वामिव चनसंपादितार्जुनसंयुगसहायकुमारब्रह्मचारिन्गंभीरशब्दोदयदक्षिणाशामार्तडमरुपर्वतपीठिकार्चनसक लमंत्रागमाचार्यममसर्वग्रहविनाशनसर्वज्वरोच्चाटनसर्वविषविनाशनसर्वापत्तिनिवारणसर्वदुष्टनिबर्हणस For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक // 118 // त०१३ मं०म० व्याघ्रादिभयनिवारणसर्वशत्रुच्छेदनममपरस्यचत्रिभुवनपुंस्त्रीनपुंसकात्मकंसर्वजीवजातंवशयरममाज्ञा कारकंसंपादयश्नानानामधेयान्सर्वानाज्ञःसपरिवारान्ममसेवकान्कुरु 2 सर्वशस्त्रास्त्रविषाणिविध्वंसयर महांहींहूहां 3 पाहिहसौंहस्ख्हसौंख्हस्हौंसर्वशत्रून्हन 2 परदलानिपरसैन्यानिक्षोभय श्ममसर्वकार्य जातंसाधय 2 सर्वदुष्टदुर्जनमुखानिकीलय 2 घे 3 हा 3 हुं 3 फट 3 स्वाहामालामंत्रोयमष्टाशीत्यधिक द्वादशाणेतिमान्वर्णानुपट्त्यक्त्वैकंतथादिमम् // पंचकूटात्मकोमंत्रोनिखिलाभीष्टसाधकः // 8 // मुनीरामोथगायत्रीछंदोदेवःकपीश्वरः // पंचवीजैःसमस्तेनषडंगंमुनिभिःस्मृतम् // 81 // रामदूतो लक्ष्मणांतेप्राणदातांजनीसुतः // सीताशोकविनाशोथलंकाप्रासादभंजनः // 82 // हनूमदाद्याः पंचैतेबीजाद्यासमन्विताः॥ पडंगमंत्राःसंदिष्टाध्यानपूजादिपूर्ववत् // 83 // चशतवर्णः॥५८८॥ मंत्रांतरमाह // द्वादशेति // द्वादशाक्षरस्यांतिमानषड्वर्णान् // हनुमतेनमइतिप्रथम मेकं // हौमितित्यक्त्वाशेष:पंचा!मंत्रः॥ हस्फेख्हस्रौंहस्ख्फ्रेंहस्रौमिति ॥८॥८॥षडंगमाह ॥रामदूत इति // हनुमदाद्याश्चतुर्थ्यताबीजपूर्वाःषडंगमंत्राः॥ यथा // ह्स्फ्रेंहनुमतेहृत् // स्पॅरामभक्तायशिरः // हस्त्रौंलक्ष्मणप्राणदात्रेशिखाइत्यादिपूर्ववद्वादशवर्णवत् // 82 // 83 // 1 अस्यहनुमत्पंचकूटमंत्रस्यरामचंद्रऋषिःगायत्रीछंदःकपीश्वरोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // // 118 // For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SINGटमा मंत्रांतरमाह // तारइति // तारॐ॥ वाऐं / कमलाश्रीं // मायादीर्घत्रयाद्या ।हांहीं५ // पंचकूटानिच इदानीमुक्तानि // रुद्रार्णएकादशाक्षरः॥ 84 // मंत्रांतरमाह // हृदयमिति // तद्वत् / / डेंतोनमोभगवते तारोवाक्कमलामायादीर्घत्रयसमन्विताः // पंचकूटानिमंत्रोयंरुद्रार्णोऽभीष्टसिद्धिदः // 84 // अर्च नापूर्ववच्चास्यपरोमंत्रोभिधीयते // हृदयंभगवान्डतआंजनेयमहावलौ // 85 // तद्वह्निप्रियांतोयं मनुरष्टादशाक्षरः॥ मुनिरीश्वरएवास्यानुष्टुप्छंदःसमीरितम् // 86 // हनूमानदेवताबीजंहुंशक्तिर्व ह्निवल्लभा // आंजनेयोरुमूर्तिर्वायुपुत्रस्तथैवच // 87 // अग्निगर्भोरामदूतोब्रह्मास्त्रविनिवारणः // एतैतैःषडंगानिकृत्वाध्यायेत्कपीश्वरम् // 88 // दहनतप्तसुवर्णसमप्रभंभयहरंहृदयविहितांजलिम्॥ श्रवणकुंडलशोभिमुखांबुर्जनमतवानरराजमिहाद्भुतम् // 89 // अयुतंप्रजपेन्मंत्रंदशांशंजुहुयात्तिलैः।। वैष्णवेपूजयेत्पीठेपूर्ववत्कपिनायकम् // 90 // जितेंद्रियोनक्तभोजीप्रत्यहंसाष्टकंशतम् // जपि त्वाक्षुद्ररोगेभ्योमुच्यतेदिवसत्रयात् // 9 // आंजनेयायमहाबलायस्वाहेति // षडंगमाह // आंजनेयइति // आंजनेयायहत् // रुद्रमूर्तयेशिरइत्या दि।। 85 // 86 // 87 // 88 // ध्यानमाह // दहनेति // 89 // 90 // प्रयोगानाहजितद्रियइति // 91 // | 1 ॐऐश्रीहाँह्रींहूँइकेंहस्रौंहूसहस्रोंः॥ For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१३ BORO // 92 // 93 // 94 // 95 // 96 // 97 // 98 // उदररोगनाशकमंत्रमाह // पवनेति // सद्योजातओंकार स्तातंपवनद्वयंयोयो॥ हनुस्वरूपं // शशांकाढयोमहाकालः // सबिंदुर्मः मंकामिकातः // फलफलस्व // 119 // भूतप्रेतपिशाचादिनाशायैवंसमाचरेत् // महारोगनिवृत्त्यैतुसहस्रप्रत्यहंजपेत् // 92 // यताशनोऽ युतनित्यंजपन्ध्यायनकपीश्वरम् // राक्षसौघविनिनंतमचिराजयतिद्विषम् // 93 // सुग्री वेणसमंरामसंदधानंस्मरन्कपिम् // प्रजप्यायुतमेतस्यसधिंकुविरुद्धयोः॥ 94 // लंकादहंतंतच्या यन्नयुतंप्रजपेन्मनुम्॥शत्रूणांप्रदहेद्वामानचिरादेवसाधकः॥९॥प्रयाणसमयेध्यायन्हनूमंतमजपन् / योयातिसोऽचिरावस्वेष्टंसाधयित्वागृहंव्रजेत्॥९६।।यःकपीशंसदागेहेपूजयेजपतत्परः॥आयुर्लक्ष्म्यौप्रव द्वैतेतस्यनश्यंत्युपद्रवाः।९७शार्दूलतस्करादिभ्योरक्षेन्मनुरयंस्मृतः॥प्रस्वापकालेचौरेभ्योदुष्टस्वप्नाद पिध्रुवम्॥९८॥पवनद्वितयंसद्योजातयुक्तंहनूपदम् ॥महाकाल शशांकाड्यःकामिकाफलकक्रिया९९॥ Baसनेत्राणांतमीनोगसात्वतोगितआयुरा॥ पलोहितंरुडाहतिवेदनेत्राक्षरोमनुः॥ 10 // रूपं // सनेवाक्रिया / इयुतोलालि // णांतस्तः // मीनोधः॥ गस्वरूपं // सात्वतोधः // गितआयुराषस्वरू पं // लोहितं षः॥ रूडाहस्वरूपं // वेदनेत्राक्षरः॥ चतुर्विशत्यर्णः॥ यथा ॥योयोहनुमंतफलफलितधगधगि // 119 // For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org तःआयुराषरूडाहेति // 99 // 100 // प्लीहरोगःउदररोगः॥ तन्नाशकप्रयोगमाह // प्लीहेति // आरण्यप्रस्त रोत्पन्नेवनपाषाणान्निष्काशितेग्नौवदर्युत्थायष्टिंसप्तधामूलमंत्रेणतापयेत् // तयोदरस्थितेवंशखंडेताडितेरो प्लीहरोगहरश्चास्यमुन्याापूवन्मतम् ॥प्लीहयुक्तोदरेस्थाप्यंनागवल्लीदलंशुभम्।।तदुपर्यष्टगुणितवस्त्र माच्छादयेत्ततःविंशजंशकलंतस्योपरिमुंचेत्कपिंस्मरन् ॥२॥आरण्यप्रस्तरोत्पन्नेवह्नौयष्टिंप्रतापयेत्॥ बदरीतरुसंभूतांमंत्रेणानेनसप्तशः॥३॥ तयासंताडयेद्वंशंशकलंजठरस्थितम् // सप्तकृत्वःप्लीहरोगो नश्यत्येवनृणांक्षणात् // 4 // पुच्छाकारेसुवसनेलेखिन्याकोकिलोत्थया // अष्टगंधैलिखेद्रूपंकपिराज स्यसुंदरम् ॥५॥तन्मध्येष्टादशार्णतुशत्रुनामयुतंलिखेत् // तेनमंत्राभिजप्तेनशिरोबद्धनभूमिपः॥६॥ जयत्यरिगणंसर्वदर्शनादेवनिश्चितम् // युद्धजिगीषु पतिःपूर्वोक्तलेखयेद्ध्वजे // 7 // ध्वजमादायो परागेसंस्पर्शान्मोक्षणावधि // मातृकांजापयेत्पश्चादशांशेनचहावयेत् // 8 // गोनश्यति॥१०१॥१०२॥१०३॥१०४॥प्रयोगांतरमाह॥ पुच्छेति ॥पुच्छाकारेवस्त्रकोकिलापिच्छलेखिन्याऽष्टगं| धैर्हसुमद्रूपंकृत्वातदुदरेऽष्टादशार्णविलिख्याधिमंत्रितेनशिरोबद्धेनतेनारीजयति // 105 // 106 // 107 // 108 // For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्र०म० विदिति // अवयदिति // विवजकाय // 120 // // 109 // यंत्रमाह // लिखोदति // अष्टार्णमालामंत्रौवक्ष्यमाणौ // दुरोदरेद्यूते // 110 // | सटीक // 111 // 112 // 113 // 114 // अष्टार्णमाह // वियदिति // वियतहः॥ अग्नीरः॥ यथा // हाह्रींहूहौं। हःओमित्यष्टाणः // 115 // मालामंत्रमाह // वजेति // यथा // वज्रकायवजतुंडकपिलपिंगलऊर्ध्व | त०१३ सर्षपस्तिलसंमित्रैःसंस्पर्शान्मोक्षणावधि // गजस्थंध्विजंदृष्ट्वापलायंतेऽरयोऽचिरात्॥९॥अथोहनुमतो यंत्रवक्ष्येरक्षाविधायकम् // लिखेदष्टदलंपद्मसाध्याख्यायुतकर्णिकम् // 110 // दलेष्वष्टार्णमालिख्यमा लामंत्रेणवेष्टयेत् // तदहिर्माययावेष्टयप्राणस्थापनमाचरेत् // 11 // लिखितंस्वर्णलेखिन्यादलेभूर्ज तरोःशुभारोचनाकुंकुमाभ्यांतुवेष्टितंकनकादिभिः // 12 // संपातसाधितंयंत्रभुजेवामूनिधारयेत् // रणेजयमवाप्नोतिव्यवहारेदुरोदरे // 13 // ग्रहैविघ्नविषैःशस्त्रैश्चौरैनैवाभिभूयते // रोगान्सर्वानपाकृत्य चिरंजीवतिभाग्यवान् // 14 // वियदग्मियुतंदीर्वषट्काद्यतारसंपुटम्।।अष्टा!मंत्रआख्यातोमालामंत्रोऽ थकथ्यते // 16 // वज्रकायवज्रतुंडकपिलेत्यपिंगल // ऊर्द्ध केशमहावर्णवलरक्तमुखेतिच // 16 // केशमहाबलरक्तमुखतडिजिह्वमहारौद्रद्रष्टोत्कटकहहकरालिनेमहादृढप्रहारिन्लंकेश्वरवधायमहासेतुबंध 120 // महाशैलप्रवाहगगनेचरएोहिभगवन्महाबलपराक्रमभैरवाज्ञापयए हिमहारौद्रदीर्घपुच्छेनवेष्टयवैरिणंभंज 30003SDESIDENMAGESकामना For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MH य 2 हुंफट् // 116 // 117 // 118 // 119 // 120 // बाणनेत्रंदुवर्णः॥ पंचविंशत्युत्तरशतार्णः // अष्टार्णमा लामंत्रीस्वतंत्रावितिसूचयन्नाह // अष्टाणेति॥ 121 // 122 // // इतिश्रीमंत्रमहोदधिनौकाटीकायांत्रयो तडिजिह्वमहारौद्रदंष्ट्रोत्कटकहद्वयम् // करालिनेमहादृढप्रहारित्रितिवर्णकाः // 17 // लंकेश्वरवधायां तेमहासेतुपदंततः॥ बंधांतेचमहाशैलप्रवाहगगनेचर // 18 // एयहिभगवन्नंतेमहाबलपराक्रम // भैरवा ज्ञापयोहिमहारौद्रपदंपुनः॥१९॥ दीर्घपुच्छेनवातेवेष्टयांतेतुवैरिणम् // जयद्वितयंहुंफट्प्रणवादिस मीरितः // 20 // वाणनेत्रंदुवर्णोयंमालामंत्रोखिलेष्टदः॥युद्धेजप्तोजयंद्याव्याधौव्याधिविनाशनः॥२१॥ अष्टार्णमालामन्वोस्तुमुन्याद्यर्चातुपूर्ववत् // भूरिणाकिमिहोक्तेनसर्वदद्यात्कपीश्वरः // 122 // इतिश्रीमंत्रमहोदधीहनुमन्मंत्रकथनंनामत्रयोदशस्तरंगः॥१३॥ ॥अथवक्ष्येमहाविष्णोर्मत्रान्सर्वार्थसा धकान् // ब्रह्मायायानसमाराध्यससृजुर्विविधाःप्रजाः॥१॥ मेरु कृशानुसंयुक्तोऽनुग्रहेंदुसमन्वितः // एकाक्षरोनरहरेमैत्रःकल्पद्रुमोनृणाम् // 2 // दशस्तरंगः // 13 // विष्णुमंत्रानुवक्तुंप्रतिजानीते // अथेति // 1 // मंत्रानाह // मेरुरिति // मेरुक्षः॥ ISI कृशानूरः॥ अनुग्रहऔ॥ इंदुर्विदुः॥ तेनक्षु // 2 // १क्षरौमित्येकार्णः॥ For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० B सटीक // 121 // त०१३ मायाहीं॥ तत्संपुटः॥प्रणवसंपुटश्चेति // द्वौच्यौँ // 3 // 4 // ध्यानमाह // तपनति // सुद्वग्मिनेत्रं // घनेति // घनविराम शरत्तत्रयोहिमांशुश्चंद्रस्ततुल्यकांतिः॥ घनसमानगलमितिपाठेनीलकंठं // शशि त्र्यक्षर संपुटप्रोक्तोमाययाप्रणवेनंच // ऋषिरत्रिश्चगायत्रीछंदोदेवोनृकेसरी // 3 // पड़दीर्घयुक्तवीजे | नषडंगानिसमाचरेत् // त्र्यपूर्णेमायापुटेनैवतारसंपुटितेनवा // 4 // तपनसोमहुताशनलोचनंधनविरा महिमांशुसमप्रभम् // अभयचक्रपिनाकवरान्करैर्दधतमिदुधरनृहरिंभजे // 6 // लक्षमेकंजपेन्मंत्रंदशां शंघृतपायसैः॥जुहुयात्पूजयेत्पीठेविमलादिसमन्विते // 6 // केसरेष्वंगपूजास्यादिग्दलेषुखगेश्वरम् // शंकरंशेषनागंचशतानंदंप्रपूजयेत् // 7 // श्रियंह्रियंकृतिपुष्टिकोणपत्रेषुसाधकः // द्वात्रिंशत्पत्रमध्ये पुनृसिंहांस्तावतोर्चयेत् // 8 // सप्रभं // शशिनासमानाप्रभायस्यतम् // ऊर्ध्वयोर्दक्षवामयोश्चक्रपिनाके // अधस्थयोर्वराभये // इंदुधरं / शशिशेखरम् // 5 // विमलादयउक्ताः॥६॥शतानंदंब्रह्माणम् // 7 // तावतोद्वात्रिंशत्संख्याकान् // 8 // 18 // 21 // 1 हाँक्नौंहींइतित्र्यक्षरः // 2 ॐनौं इतित्र्यक्षरः // For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RANELESHOKangaroozers PERIMENTS RESEARMER #GHTTENERAL तानाह // कृष्णइति // 9 // 10 // 11 // 12 // 13 // प्रयोगानाह॥ सहस्रति // शतपर्वादूर्वा // 14 // 15 // 16 // कृष्णोरुद्रोमहाघोरोभीमोभीपणउज्ज्वलः // करालोविकरालश्चदैत्यांतोमधुसूदनः // 9 // रक्ताक्षःपिंग लाक्षश्चांजनसंज्ञस्त्रयोदशः // दीप्ततेजाःसुघोणश्चसुहनुःषोडशःस्मृतः॥ 10 // विश्वाक्षोराक्षसांतश्च विशालोधूम्रकेशवः // हयग्रीवोधनस्वरोमेघनादस्तथापरः // 11 // मेघवर्णःकुंभकर्ण कृतांतकइती H! रितः॥ तीव्रतेजाअग्निवर्णोमहोग्रोविश्वभूषणः॥ 12 // विघ्नक्षमोमहासेनःसिंहोद्वात्रिंशदीरिताः॥ई द्रादीन्वमुख्यांश्चपूजयेचतुरस्रके // 13 // एवंसंसाधितोमंत्र प्रयोगेषुक्षमोभवेत् // सहस्राष्टकसंख्यातः शतपर्वात्रिकैस्तुयः // 14 // जुहुयादुदकेतस्थसर्वेनश्यंत्युपद्रवाः // महोत्पातहरोप्येपहोमःसर्वे टदोनृणाम् // 15 // संस्थाप्यविधिवत्कुंभंजपेदष्टसहस्रकम् // अभिषिचेद्विपाक्रांतविषजार्तिनिवृत्त ये // 16 // विचरन्तिपिनेचौरव्याघ्रसाकुलेनरः॥ जपन्नमुंमंत्रवरंनभयंप्रतिपद्यते // 17 // ईक्षिते निशिदुःस्वप्नेजपन्मंत्रनिशांनयेत् // अवशिष्टांस्वप्नफलंसम्यगादिशतिध्रुवम् // 18 // कर्णनेत्रशिरः कंठरोगान्मंत्रोविनाशयेत् // अभिचारकृतांपीडांमनमंत्रितभस्मच // 19 // // १७॥निशि दुःस्वप्नेदृष्टे मंत्रजपन्नवशिष्टांनिशांनयेत् // सदुःस्वप्नःसुस्वनस्यैवफलंददाति // 18 // 19 // For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० // 122 // SUB SUSDSupessagessagapugasOTOSDOS // 20 // 21 // प्रसंगान्मारणप्रायश्चित्तमाह॥प्रजपेदिति // अभिचारजातपापनिवृत्त्यैअयुतंजपेत् // 22 // पुत्र BA सटीक जीवेद्धवहौपुत्रजीवतरुकाष्ठदीप्तेनौतत्फलैःपुत्रजीवफलैःपुत्राप्त्यैजुहुयात् // 23 // 24 // 25 // मंत्रांतरमाह आत्मानंनृहरिंध्यात्वावैरिणमृगवालकम्।।आदायप्रक्षिपेद्यस्यांदिशितस्यांसगच्छति ॥२०॥स्वकुटुंबंप त०१३ रित्यज्यनचैवावर्त्ततेपुनः॥नृसिंहसंस्मरन्वादेरिपुंतस्यविनष्टये॥२१॥प्रजपेदयुतमंत्रमारणोत्थापनष्टये॥ प्रसूनैर्विल्ववृक्षोत्थैःफलैस्तत्काष्टसंभवैः // 22 // सहस्रंजुहुयाह्नौवांछितश्रीसमृद्धये // पुत्रजीवेद्धवह्नौ तुतत्फलैःपुत्रसंपदे // 23 ॥ब्राह्मींवचांवामंत्रेणमंत्रितांशतसंख्यया // संवत्सरमदन्प्रातर्विद्यापारंगमो भवेत् // 24 // किंबहूक्तेननृहरिःसर्वेष्टफलदोनृणाम् // अथोच्यतेनरहरिभीतिहारीष्टसाधकः॥२५॥ जयद्वयंश्रीनृसिंहेत्यष्टा!मनुरीरितः॥ ऋषिब्रह्मास्यगायत्रीछंदोदेवोनृकेसरी // 26 // शक्तिनेत्रवियद्वी जमुभेचंद्रसमन्विते // वियतादीर्घयुक्तेनचंद्राव्येनषडंगकम् // 27 // जयेति // यथा // जयरश्रीनृसिंहेति // 26 // नेत्रइंशक्तिः // वियवहाबीजम् // उभेशक्तिबीजेबिंदुयुते // दीर्घयुतेनसबिंदुनावियताहेनषडंगं हांहृत् // हींशिरइत्यादि // 27 // // 122 // 1 जयजयश्रीनृसिंहेत्यष्टार्णः // अस्यजयसिंहमंत्रस्यब्रह्माऋषि गायत्रीछंदानृसिंहोदेवताइंशक्तिःहंबीजंममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेवि० // For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यानमाह // श्रीमादति // साम्राराजाईशः // यद्वासामसुराजतेप्रकाशतेससामराजः // सामगानेकृते प्रत्यक्षाभवतीत्यर्थः // तीव्रकरोरविः // पिनाकपाणेइत्युपलक्षणंवराभयचक्राणां वामोर्ध्वादिदक्षोर्वातं पिनाकाभयवरचक्रधरइत्यर्थः // 28 // अस्यपूजादि // पूजाप्रयोगादिएकार्णवत् // 29 // मंत्रांतरमाह // श्रीमन्नृकेसरितनोजगदेकबंधोश्रीनीलकंठकरुणार्णवसामराज // वह्नींदुतीव्रकरनेत्रपिनाकपाणेशीतांशु शेखररमेश्वरपाहिविष्णो // 28 // एवंध्यात्वाजपेल्लक्षाष्टकंतस्यदशांशतः॥ जुहुयात्पायसेनानौपूजाद्य स्यतुपूर्ववत्॥२९॥तार पद्माचहल्लेखाजयलक्ष्मीप्रियायच॥नित्यप्रमुदितांतेतुचेतसेपदमीरयेत् // 30 // लक्ष्मीश्रिताईदेहायरमामायेनमःपदम् // एकाधिकत्रिंशदोमनुःपद्मभवोमुनिः // 31 ॥छन्दोऽ तिजगतीप्रोक्तंदेवःश्रीनरकेप्सरी // बीजरमाद्रिजाशक्ति श्रीबीजेनषडंगकम् // 32 // तारइति ॥तारॐ॥ पद्माश्रीं // हल्लेखाहीं॥रमामायेति // श्रींहीं॥ स्वरूपमन्यत् // यथा ॥ॐश्रीह्रींजयल क्ष्मीप्रियायनित्यप्रमुदितचेतसेलक्ष्मीश्रितार्धदेहायश्रींह्रींनमः॥ पद्मभवोब्रह्मा // 30 // 31 // अद्रिजाहीं॥ श्रीबीजेनषड्दीर्घयुक्तेनश्राश्रीश्रूमित्यादि // 32 // 1 अस्यश्रीलक्ष्मीनृसिंहमंत्रस्यपद्मभवोऋषिःअतिजगतीछंदाश्रीनरकेसरीदेवताश्रींबीजंद्वीशक्तिःममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१३ मं० म ध्यानमाह // क्षीराब्धाविति // क्षीरसमुद्रगतश्वेतद्वीपेवस्वादिदेवोधैरनादियथातथावेष्टितः // अग्रे वसुभिः॥ दक्षेरुद्रैः। पश्चिमेआदित्यैः॥ वामेविश्वदेवरित्यर्थः // अधोवाम दक्षयोःस्वचक्रे // ऊर्ध्वयोर्ग // 123 // क्षीराब्धौवसुमुख्यदेवनिकरैरग्रादिसंवष्टितः शंखचक्रगदांवुनिजकरविभ्रंस्त्रिनेत्रासितः // साधीश फणातपत्रलसितःपीतांबरालंकृतो लक्ष्म्याश्लिष्टकलेवरोनरहरिस्तानीलकंठोमुदे // 33 // एवंध्या वाजपेल्लक्षत्रयंपष्टिसहस्रकम् / / मध्वक्तैर्मल्लिकापुष्पैर्जुहुयाजातवेदसि // 34 // षट्शतंत्रिसहस्राणिपी ठेपूर्वेदितेयजेत् // प्रथमावरणगानिपरशक्तिरिमाःपुनः // 35 // भाल्वतीभास्करीचिंताद्युतिरुन्मी लिनीतथा // रमाकांतीरुचिश्चेतिशकाद्याहेतिसंयुताः॥३६॥ इत्थंसिद्धेमनौमंत्रीनिग्रहानुग्रहक्षमः॥ मल्लिकाकुसुमैोमादिष्टसिद्धिमवाप्नुयात् // 37 // प्रणवोनहरे/जनमोभगवतेपदम् // नरसिंहायतार श्ववीजंमत्स्येतिकीर्तयेत् // 38 // रूपायतारोवीजंचकूर्मरूपायवर्णकाः // तारवीजेवराहार्णारूपायता खीजके // 39 // नृसिंहरूपायांतेतुतारोवीजंचवामनम् // रूपायविस्तारखीजेरामायेतिपदंवदेत्॥४०॥ दापछे / सितश्चंद्रवर्णः शेषफणाएवातपर्वतेनलसितोदीप्तः। ईदृड्नृसिंहोममनुदेहर्षायस्तात्भूयात् // 33 // BE34 // 35 // 36 // 37 // मंत्रांतरमाह // प्रणवइति // नृहरे/जंक्षरौं // 38 // त्रिस्त्रिवारंतारबीजे // 39 // 40 1 घृतमधुशर्करायुक्तैःमालतीपुष्पैः // EmpssssssssssNSESIRESSEMINERNET SERestoneareshREoKnearbanemabhiesreal 12 For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सनेवादी_इयुतोनानि // डतिमश्चतुर्थ्यतः // नवनवत्यर्णएकोनशताक्षरः // मंत्रोयथा // ॐक्षुरौं नमोभगवतेनरसिंहायक्ष मत्स्यरूपायॐक्षरौंकूर्मरूपायॐ वराहरूपायॐक्ष नृसिंहरूपायॐक्षरौं वामनरूपाय क्षॐक्षरौंॐक्षरौंरामायॐक्ष कृष्णायॐक्षरौंकल्किनेजयजयशालग्रामनिवासिनेदिव्यसि तारोवीजंचकृष्णायतारोवीजंचकल्किने // जयद्यंततःशालग्रामदीर्घासनेत्रका // 41 // वासिनेदिव्य सिंहायस्वयंभूडेंतिमःस्मृतः॥ पुरुषायनमस्तारोवीजमित्युदितोमनुः॥४२॥ हरेर्नवनवत्योमुनिरविः किलास्यतु // छंदोतिजगतीदेवोनृकेस-वतारवान् // 43 // बीजंपूर्वोदितंशक्तिराद्यावीजेनचांगकम् // कृत्वापदीर्घयुक्तेनध्यायेत्क्षीरोदधिस्थितम् // 44 // सहस्रचंद्रप्रतिमोदयालुर्लक्ष्मीमुखालोकनलो लनेत्रः॥ दशावतारैःपरितःपरीतोनृकेसरीमंगलमातनोतु // 45 // जपोयुतंदशांशेनहवनंपायसेनतु // पीठेपूर्वोदितेपूर्वमंगानिपरिपूजयेत् // 46 // दशावतारान्मत्स्यादीदिक्पालानायुधान्यपि // प्रयोगाः पूर्ववत्प्रोक्ताःसर्वसिद्धिप्रदेमनौ // 17 // हायस्वयंभुवेपुरुषायनमःक्षरौं॥४१॥४२॥अवतारवान्दशावतारयुतोनृसिंहोदेवता॥४३॥ॐ बीजम् // आद्येतिशक्तिमारांक्षरीमित्याद्यंगम् // 44 // 45 // 46 // 47 // 1 अभयोनारसिंहोदेवतार्रौंबीजमायेतिशक्तिःममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 12 // मंत्रांतरमाह // तारइति // हन्नमः // 48 // व कलत्रं स्वाहा // 49 // बीजंक्षरौं // यथा // सटीक अनमोभगवतेनरसिंहायनमस्तेजस्तेजसेआविराविर्भववज्रनखवज्रदंष्टकर्माशयानरंधय 2 तमोग्रस 2 स्वा58 ॥अथाभयनृसिंहमंत्रः।।तारोनमोभगवतेनरसिंहायहचते॥जस्तेजसेआविरादिर्भववज्रनखांततः॥४८॥ त०१३ वज्रदंष्ट्रचकर्मातेत्वाशयाबंधयद्वयम् // तमोग्रसद्वयंवह्नकलत्रमभयंपुनः॥ 19 ॥आत्मन्यतेचभूयिष्ठा स्तारोवीजमनुस्मृतः॥ द्विषष्टयणःशुकःप्रोक्तोमुनिश्छंदस्तुपूर्ववत् // 50 // अभयोनारसिंहस्तुदे वतान्यत्तुपूर्ववत् // अथगोपालमनवप्रोच्यतेस्वेष्टसाधकाः॥५१॥ गोपीजनपदस्यांतेवल्लभायाग्निसुं दरी // दशाक्षरोमनुः प्रोक्तोमनोरथफलप्रदः // 52 // नारदोस्यविराकृष्णोमुनिपूर्वा समी रिताः॥ बीजशक्तीतुविज्ञेयेक्रमातकामानलप्रिये // 53 // हाअभयमात्मनिभूयिष्टाक्षरौमिति // 50 // अन्यत्पूजादि॥५१॥ गोपालमंत्रमाह // गोपीति॥ अग्निसुं दरीस्वाहा // यथा // गोपीजनवल्लभायस्वाहा // 52 // विराट्छंदः // कींबीजं // स्वाहाशक्तिः // 53 // 1 अस्यदशावतारमंत्रस्यअत्रिऋषिःजगतीछंदनृकेसर्यवतारवान्देवताक्षरौंवीजमायेतिशक्तिःममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // अस्य // 12 // अभयनरसिंहमंत्रस्यशुकऋषिःजगतीछंदः // 2 अस्यगोपालमंत्रस्य नारदऋषिः विराट्छंद कृष्णोदेवता क्लीं बीजंस्वाहाशक्तिः ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः। For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie . |पंचांगमाह // आचक्रायहृत् // विचक्रायशिरः॥ सुचक्रायशिखा // त्रैलोक्यरक्षणचक्रायकवचम् ॥असुरां तकचक्रायअस्त्रम् // 54 // 55 // वर्णन्यासमाह // मस्तकइति // 56 // तारपुटानि // ॐगों ॐनमःमस्तके आचकायहृदाख्यातंविचक्रायशिरोपिच // सुचक्रायशिखापश्चात्रैलोक्यरक्षणंततः // 54 // चक्रायक वचंप्रोक्तमसरांतकशब्दतः॥ चक्रायास्त्रमिदंकुदिंगानांपंचकंमनोः॥५५॥ सर्वांगेत्रिमनुंन्यस्यवर्ण न्याससमाचरेत् ॥मस्तकेनेत्रयोःश्रुत्योर्नसोक्रेहदंबुजे // 56 // जठरेलिंगदेशेचजानुनोःपादयोरपि // वर्णीस्तारपुटान्यस्येद्विंद्वात्यानमसायुतान् // 27 // वृंदारण्यगकल्पपादपतलेसदनपीठेबुजेशोणाभे वसुपत्रकेस्थितमजंपीतांबरालंकृतम् // जीमूताभमनेकभूषणयुतंगोगोपगोपीवृतंगोविंदस्मरसुंदरंमुनि युतंवेणुंरणंतंस्मरेत्॥१८॥ एवंध्यात्वाजपेल्लशंदशांशंसरसीरुहैः॥ जुहुयात्पूजयेत्पीठेवैष्णवेनंदनंदनम् ॥१९॥अग्यादिकोणेष्वभ्यर्यहृदाचंगचतुष्टयम् // दिशास्वत्रंदलेष्वष्टोमहिषी परिपूजयेत्॥ 60 // // 57 ॥ध्यानमाह // वृंदेति // वृंदावनगतकल्पवृक्षतलेमणिपीठेरक्ताष्टपत्रेस्थितंध्यायेत् // जीमूता मे घश्यामस्मरादपिसुंदरम् // 58 // 59 // 6 // For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie म०म० // 12 // अर्कजाकालिंदी॥६१॥६२॥गोपांश्चगोपिकाच॥६३॥६४॥६५॥६६॥६७॥मंचात् स्रस्तश्चासौगतप्राणश्चासौकृष्ट सटीक रुक्मिणीसत्यभामाचनग्नजित्तनयार्कजा // मित्रविंदालक्ष्मणाचजांववत्यासुशीलका // 61 // महिष्योष्टौसुवर्णाभाविचित्राभरणरजः // दलावसुदेवंचदेवकीनंदगोपतिम् // 62 // यशो I दांबलभद्रंचसुभद्रांगोपगोपिकाः // इंद्रादीनपिवज्रादीन्पूजयेत्तदनंतरम् // 63 // इत्थंसिद्धेमनौ मंत्रीसाधयेत्स्वमनीषितम् // गुडूचीशकलैरनौजुहुयाज्ज्वरशांतये // 64 // कृष्णद्वेपंप्रकुर्वतंबलदेव स्यरुक्मिणः॥यूतासक्तस्यसंचिंत्यगोमयोद्भवगोलकान्॥६६॥जुहुयाद्वेषसिद्ध्यर्थनरयोःसुहृदोर्मियः॥ पिचुमंदफलोत्पन्नतैलाभ्यक्तैःसमिद्वरैः // 66 // अक्षजैर्जुहुयाद्रात्रावयुतंशत्रुशांतये // अयुतंप्रजपेन्म त्रमात्मानंसंस्मरन्दरिम // 67 // मंचम्रस्तगतप्राणाकष्टकंसरिसुधीः // शवजन्मक्षवृक्षोत्थसमि द्भिरयुतनिशि // 68 // जुहुयादित्थमुग्रोपिसपनोनिधनंत्रजेत् // पलाशकुसुमै संविद्यासिद्धयेजुहो तुना // 69 // तंदुलैःसितपुष्पाबैराज्याक्तै प्रत्यहंनरः॥ हुत्वासप्तदिनांतेतद्भस्मभालेचमूर्द्धनि॥७॥ ad||126 // श्वासोकंसश्चतथाभूतंरिपुंस्मरन् // रिपुजन्मनक्षत्रवृक्षसमिद्भिर्जुहुयात् // नक्षत्रवृक्षाउक्ताः // 6 // 69 // 70 // For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - तच्चयौवतं युवतिसमूहापुरुषान्वशयेत् // 71 // 72 // 73 // 74 // मंडलमेकोनपं चाशद्दिना नितन्मध्येवांछितंप्रियंप्राप्नोति // 75 // 76 // 77 // मंत्रांतरमाह // कामइति // कामाक्लीं // विय धारयन्वशयेत्सद्योयौवतंतचपूरुषान् // पुष्पंवासांजनंवापितांबूलमथचंदनम् // 71 // सहस्रंमनुना जप्तंदद्याद्यस्मैनरायसः॥ वशमेत्यचिरादेवसपुत्रपशुवांधवः // 72 // वृंदावनस्थंगायतंगोपीभिःसं स्मरन्हरिम् // अपामार्गसमिद्भियोजुहुयादशयेजगत् // 73 // रासक्रीडागतंकृष्णध्यायन्योयुतमाज पेत् // षण्मासाद्वांछितांकन्यामुग्रहेक्तितत्परः॥७४ // जपेत्सहस्रध्यायंतीयाकदंवस्थितंहरिम् // कन्यकावांछितनाथमंडलांतर्लभेतसा॥७२॥पत्रैःफलैःसमिद्भिर्वाबिलोत्थैर्मधुसंयुतैः॥ कमलैःशर्करा युक्तहोमालक्ष्मीपतिर्भवेत्॥७॥बहुनाकिमिहोक्तनकृष्णःसर्वार्थदोनृणाम्।।अथमंत्रांतरंवच्मिगोविंदस्ये ष्टदनृणाम्।।७७॥कामोविय।चिकाव्यपीतावामाशिसंयुता // चक्रीझिटीशमारूढोबकोनंतान्वितोमरुत् // ७८॥हृदयांतोमनुश्रेष्टोवसुवर्णोखिलेष्टदः॥ मुनिःसम्मोहनायोस्यनारदःपरिकीर्तितः // 79 // वहः॥ रेचिकाढचंऋयुतं ह ॥पीताषः॥ वामाक्षिसंयुता ॥ईयुताषी।चक्रीकः॥ झिंटीशए // तदारुढाके॥ बकाशः। अनंतान्वितः। आयुतःशा / / मरुत्यः॥ हृदयंनमः। यथा // क्लींहृषीकेशायनमः॥ 78 // 79 // Ba 1 भस्यसंमोहनमंत्रस्यनारदऋषिःगायत्रीछंद त्रैलोक्यमोहनदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie 100 त०१३ लेटलेटर मं० म015 षडंगमाह॥कामेति // कांहृत // कींशिरइत्यादि ॥८॥ध्यानमाह // कल्पेति // कल्पवृक्षमूलस्थितगरुडा सटीक सनं // बाणपद्मांकुशशंखादक्षेषु / अन्यान्यन्येषु // 81 // सूर्यलक्षद्वादशलक्षम् / / 82 // ठद्वयंस्वाहा // 83 // // 12 // गायत्रीछंदइत्युक्तंदेवस्त्रैलोक्यमोहनः // कामबीजेनषड्दीर्घयुक्तेनांगसमाचरेत् // 80 // कल्पानो कहमूलसस्थितवयोराजोन्नतांसंस्थितं पौष्पंवाणमथेक्षुचापकमलेपाशांकुशेविभ्रतम् // चक्रशं खगदेकरैरुदधिजासंश्लिष्टदेहंहरिं नानाभूषणरक्तलेपकुसुमंपीतांबरंसंस्मरेत् // 81 // एवं ध्यात्वाजपेत्सूर्यलक्षत्रिमधुरप्लुतैः // पलाशपुष्पैर्जुहुयात्तत्सहस्रेहुताशने // 82 // तर्पयेत्सलिलै स्तावत्पठिपूर्वोदितयजेत् // पक्षिराजायठद्वंद्वमनेनगरुडार्चनम् // 83 // मुकुटंशिरसीट्वाथकर्णयोः कुंडलेयजेत् // करेषुचक्रावस्त्राणिश्रीवत्संकौस्तुभंहृदि // 84 // वनमालांगलेश्रोणीदेशेपीतांबरंथि यम् // वामांगेभ्यर्च्यवह्नयादिदिग्विदिक्ष्वंगपूजनम् // 85 // दिक्षुप्रपूज्यचतुरोबाणान्कोणेषुपं चमम् // लक्ष्म्याद्या शक्तयःपूज्या शकाद्याआयुधान्यपि // 86 // लक्ष्मी-सरस्वतीचापिरतिःप्रीतिश्चतु र्थिका // कीर्तिःकांतिस्तुष्टिपुष्टीइतिलक्ष्म्यादयोमताः॥ 87 // Ram126 // 84 // 85 // 86 // 87 // SHARE For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - // 88 // 89 // मंत्रांतरमाह // कामेति // क्लीमिति // गोपालमनुः॥ तत्पूजाष्टार्णवत् // अयंस्त्रीवशीकारी // 90 // मंत्रांतरमाह ॥रमेति ॥रमाश्रीं // भवानीह्रीं // कंदर्पःक्कीं // कृष्णाकीस्मृतिर्गः॥ ओयुतागो // विजयापुष्पसंयुक्तजलैःसंतपयच्छतम्॥प्रातःप्रत्यहमेतस्यवांछितंमासतोभवेत् // 88 // अयुतंतुघृतेना गौहत्वासंपातजंघृतम्।।तावजप्तंप्रियाकांतभोजयेदशमेतिसः॥८९॥ कामवीजेणिविन्यापरिचर्योक्तमं त्रवत्।विशेषात्कामिनीवर्गमोहकोमनुनायकः॥९॥रमाभवानीकंदर्पःकृष्णायस्मृतिरोयुता॥विदाय वह्निजायांतोद्वादशा!मनुःस्मृतः॥९१॥ मुनिब्रह्मास्यगायत्रीछंदःकृष्णोस्यदेवताधरकचंद्ररामाब्धि नेत्राणैरंगमीरितम् // 92 // उपासनास्यमंत्रस्यपूर्ववत्परिकीर्तिता॥अथवक्ष्येषोडशा!मनुलोकविमो हुनम् // 93 // अथरुक्मिणीवल्लभमंत्रातारोहद्भगवतेंतेरुक्मिणीतवल्लभः॥ द्विांतःषोडशाोयंना रंदोमुनिरस्यतु॥९॥छन्दोनुष्टुब्देवतातुरुक्मिणीवल्लभोहरिएकद्वियुगसप्ताक्षिवर्णैःपंचांगमीरितम्९५ यथा // श्रींह्रींकीकृष्णायगोविंदायस्वाहेति // 91 // षडंगमाह // धरेति // धराएकः॥ 92 // 93 // मंत्रांतर माह // तारइति // ॐनमोभगवतेरुक्मिणीवल्लभायस्वाहेति // 94 // पंचांगमाह // एकेति // 95 // 1 अस्यद्धादशार्णगोपालमंत्रस्यब्रह्माऋषिःगायत्रीछंदःकृष्णोदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // 2 अस्यषोडशार्णगोपालमंत्रस्य नारदऋषिरनुष्टुपछंदःरुक्मिणीवल्लभोहरिई वताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० // 127 // ध्यानमाह // चिंतति // चिंतामणियुतनिजहस्तेनालिंगिताकांतायेनतम् // सपद्महस्तयापल्यालिंगितं 5 स्वर्णयष्टियुतदक्षकरम्॥९६॥ अंगै रदादिभिः॥ इंद्रादिभिः॥ वजादिभिः॥९७ // 98 // मंत्रांतरमाह॥ कामइति // कींगोवल्लभायस्वाहेति // गायत्रीछंदः // कृष्णोदेवता // ब्रह्माऋषिः॥ 99 // पंचांगमाह // चिंताश्मयुक्तनिजदो परिरब्धकांतमालिंगितंसजलजेनकरेणपत्न्या // सौवर्णवेत्रयुतहस्तमनेकभूषं पीतांबरंभजतकृष्णमभीष्टसिद्धये // 96 // लक्षंजपेदशांशेनपर्लाहोमसमाचरेत् // अंगेर्ना रवृत्रारिवज्रायैःपूजयेद्धरिम् // 97 // नारदंपर्वतंजिष्णुंनिशठोद्धवदारुकान् // विष्वक्सेनंचशेने यदिश्वग्रेविनतासुतम् // 98 // अथाष्टाक्षरी // कामोगोवल्लभोडेंतःस्वाहांतोष्टाक्षरोमनुः // गायत्री कृष्णधातार छंदोदेवर्षयोमताः // 99 // वर्णयुग्मै समस्तेनपंचांगविधिरीरितः // हरिपंचवर्षबजे धावमानस्वसौंदर्यसंमोचितंस्वर्गयोषम्।।यशोदासुतंत्रीगणैर्दृष्टकेलिभजेभूषितंभूषणैर्नूपुराद्यैः॥१०॥ अष्टलक्षंजपेदष्टसहस्रंब्रह्मवृक्षः॥ समिरै प्रजुहुयादंगा दिग्विदिश्वथ // 1 // वर्णेति // कींगोहत् // वल्लशिरः // भायशिखा // स्वाहावर्म॥ सर्वेणास्त्रम् // ध्यानमाह // पंचेति // निजसौंदर्यमोहिताप्सरसम् // 100 // ब्रह्मवृक्षजैः पलाशोत्थैः॥ 101 // 1 अस्याष्टाक्षरिकृष्णमंत्रस्पब्रह्माऋषिगायत्रीछंदःकृष्णोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // // 127 // For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |संक्रंदनादयइंद्रादयः॥ 102 // 103 // मंत्रांतरमाह // कामेति॥क्कीकृष्णक्कीमितिवेदाक्षरश्चतुर्वर्णः॥१०॥ वासुदेव संकर्षणः प्रद्युम्नश्चानिरुद्धकगारुक्मिणीसत्यभामाचलक्ष्मणाजांबवत्यपि // 2 // संक्रंदनादयः पूज्यावज्राद्यान्यायुधानिच।।एवंसिद्धेमनौमंत्रीसंपदामालयोभवेत् // 3 // कामसंपुटितंकृष्णपदंवेदाक्षरो मनुः // गायत्रीनारदःकृष्णश्छंदोमुनिरधीश्वरः॥४॥ दीर्घारूढेनकामेनषडंगन्यासमाचरेत् // कल्प द्रुमूलसंरूढपद्मस्थंचिंतयेद्धरिम् // 5 // कल्पद्रोरतिरमणीयपल्लवेभ्यप्रोद्भूतैर्मणिनिकरैःप्रसिक्तमी शम् // ध्यायेयंकनकनिभांशुकेवसानं जानंदधिनवनीतपायसानि // 6 // चतुर्लक्षंजपेन्मंत्रंदशांशं बिल्वसंभवैः॥ फलै प्रजुहुयादग्नौयजेदंगानिपूर्ववत् // 7 // महाप-तथाप शंखमकरकच्छपौ // मुकुंदकुंदनीलाश्चनिधीनदिक्षुसमर्चयेत् // 8 // इन्द्रादीनवज्रपूर्वीश्वप्रयजेत्तदनंतरम् // इत्थंजपा दिभिःसिद्धोमंत्रोनिधिरिवापरः॥९॥ ध्यानमाह // कल्पेति // कल्पद्रो कल्पवृक्षस्यप्रसिक्तमभिषिक्तम् // 105 // 106 // 107 // 108 // 109 // 1 अस्यकृष्णमंत्रस्यनारदऋषिःर्गायत्रीछंदःकृष्णोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पनि // यथा ॥देवकीसूतगोविनायुतोंबुधिमध्यात्तनयान 110 // देव सटीक मं०म० त०१४ // 128 // ॥११०॥मंत्रांतरमाहादेवकीति // यथा // देवकीसुतगाोविंदवासुदेवजगत्पते॥देहिमेतनयंकृष्णत्वामहंशरणं गतइति॥१११॥११२॥११३॥ध्यानमाहाविजयेनेति // अर्जुनेनयुतोबुधिमध्यात्तनयानानीयविप्रायददध्ये | मंत्रेष्वेषुदशाणोक्तान्प्रयोगानविदधीतच // अथपुत्रप्रदंवच्मिकृष्णमंत्रमनुष्टुभम् // 110 // देवकी सुतवीतेगोविंदपदमुच्चरेत् // वासुदेवपदंप्रोच्यसंबुद्धयंतंजगत्पतिम् // 11 // देहिमेतनयंप्रोच्यकृ ष्णत्वामहमीरयेत् / / शरणंगतइत्युक्तोमंत्रोद्वात्रिंशदक्षरः॥ 12 // नारदोमुनिरस्योक्तोनुष्टुप्छंदःसमी रितम्॥ देवःसुतप्रद कृष्ण पादैःसर्वेणचांगकम्॥१३॥विजयेनयुतोरथस्थितःप्रसमानीयसमुद्रमध्यतः॥ प्रददत्तनयाद्विजन्मनेरस्मरणीयोवसुदेवनंदनः॥१४॥लॉजपायुतंहोमस्तिलैर्मधुरसंयुतैः // अर्चापूर्वो दिताचैवंमंत्रःपुत्रप्रदोनृणाम्॥१५॥नृसिंहोमाधवारूढोलोहितोनिगमादिमः॥कृशानुभा-पंचाोमनु विषहरःपरः॥१६॥अनंतपंक्तिपक्षीद्रामुनिश्छंदश्चदेवता।तावह्निप्रियेवीजशक्तीमंत्रस्यकीर्तिते॥१७॥ यः॥ 114 // 115 // हरिप्रसंगात्तद्वाहनस्यगरुडस्यमंत्रमाहू // नृसिंहइति // नृसिंहाक्षः // माधवारूढः इयुतःक्षि // लोहितःयः॥ निगमादिमॐ॥ कृशानुभार्यास्वाहा॥ 116 // 117 // 1 अस्यगोपालमंत्रस्यनारदऋषिःअनुष्टुप्छंदःसुतप्रदःकृष्णोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेवि०॥२ क्षिपओस्वाहेतिपंचार्णः॥ 3 अस्यगरुडम वस्यअनंतऋषि पंक्तिश्छंदःपक्षीन्द्रोदेवताबीजंस्वाहाशक्तिःममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः / // 128 // For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org षडंगमाह // ज्वलेति // ज्वलरमहामतिस्वाहाहृत् // गरुडचूडाननस्वाहाशिरः // गरुडशिखेस्वाहा शिखा // गरुडप्रभंजयरप्रभेदय 2 वित्रासयरविमर्दयरस्वाहावर्म // 118 // उग्ररूपधरसर्वविषहरभी Nषय 2 सर्वदहरभस्मीकुरुरस्वाहानेत्रम् // अप्रतिहतबलाप्रतिहतशासनहुंफट्स्वाहाअस्त्रम् // वर्णन्यास ज्वलज्वलमहामतिस्वाहाहृदयमीरितम् // गरुडेतिपदस्यांतेचूडाननशुचिप्रिया // 18 // शिरोमं बोगरुडतःशिखेस्वाहाशिखामनुः // गरुडार्णानुदित्वांतेप्रभंजययुगंवदेत् // 19 // प्रभेदययुगंपश्चा द्वित्रासयविमर्दय // प्रत्येकंद्विस्ततःस्वाहाकवचेमनुरीरितः॥१२०॥ उग्ररूपधरांतेतुसर्वविषहरेतिच॥ भीषयद्वितयंप्रोच्यसर्वदहदहेतिच // 21 // भस्मीकुरुकुरुस्वाहानेत्रमंत्रोयमीरितः // अप्रतिहतवर्णी तेवलाप्रतिहतेतिच // 22 // शासनांतेतथाईफट्स्वाहास्त्रमनुरीरितः॥ पादेकटौहदिमुखेमूर्ध्निवर्णा नप्रविन्यसेत् // 23 // तप्तस्वर्णनिभंफणींद्रनिकरैःकृप्तांगभूपंप्रभुस्मर्तृणांशमयंतमुग्रमखिलंनृणांवि पंतत्क्षणात्॥चंच्वग्रप्रचलढुजंगमभयंपाण्योर्वरंविभ्रतंपक्षोच्चारितसामगीतममलंश्रीपक्षिराजभजे॥२४॥ माह // पादइति // 119 // 120 // 121 // 122 // 123 / / ध्यानमाह // तप्तति // स्मर्तृणांनणामुग्रं विषततक्षणाच्छमयति // दक्षेवरम् ॥पक्षाभ्यामुच्चारितासाम्राबृहद्रथंतरादीनांगीतयोयेनतम्॥ वृहद्रथंतरे पक्षावितिश्रुतेः // 124 // For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 129 // // 125 // 126 // 127 // पक्षिराजायस्वाहेतिपीठमंत्रः // गरलद्वयंविषद्वयंस्थावरजंगमाख्यम् // सटीक // 128 // 129 // धरणीधवैर्भूपतिभिःसेवितश्विरम् // जीवित्वात्तनुक्षयेहरिसायुज्यंप्राप्नोति // 130 // पंचलसंजपेन्मंत्रंदशांशंजुहुयात्तिलैः // पूजयेन्मातृकाप गरुडंवेदविग्रहम् // 25 // चतुर्थ्यतःप त०१६ क्षिराजःस्वाहापीठमनुःस्मृतः // इष्ट्वांगकर्णिकामध्येनागान्पत्रेषुपूजयेत् // 26 // अनंतवासुकिंचा पितृतीयंतक्षकंपुनः॥ कर्कोटकंतथाप महापद्मसमर्चयेत् // 27 // शंखपालंचकुलिकमिंदादी नवज्रसंयुतान्॥एवं सिद्धेमनौमंत्रीनाशयेद्गरलद्वयम्॥२८॥विष्णुभक्तिपरोनित्यंयोभजेत्पक्षिनायकम् // शत्रून्सर्वान्पराभूयसुखीभोगसमन्वितः // 29 // जीवेदनेकवर्षाणिसेवितोधरणीधवैः // कलेवरांते श्रीनाथसायुज्यलभतेतुसः // 130 // इतिमंत्रमहोदधौविष्णुमंत्रनिरूपणनामचतुर्दशस्तरंगः॥१४॥ Edu129 // अथवक्ष्येरवेर्मत्रंरोगदारिद्रयनाशनम् // प्रणवोभुवनेशानीमेधारेचिकयान्विता // 1 // इतिश्रीमंत्रमहोदधिनौकाटीकायांहरिमंत्रकीर्तनंनामचतुर्दशस्तरङ्गः॥ 14 // ॥रविमंत्रमाह // प्रणव इति॥प्रणव आभुवनेशानीहीं।मेधाघः॥रेचिकयान्विताऋयुता // 1 // For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्षियुकूहयुतःसर्गीचउमाकांतोणाणिः // सूर्यआदित्यस्वरूपम् // इंदिराश्रीं // 2 // 3 // षडंगमाह // सत्येति // सत्यतेजोज्वालामणेहुंफट्स्वाहाहृत् // ब्रह्मतेजाशिरः // विष्णुतेज शिखेत्यादि // 4 // भूयइति॥शिवाश्रियोः॥हीश्रीबीजयोर्मध्यस्थितैःषडणैःपुनःषडंगकृत्वा // शेषवर्णैश्चतुर्थ्यतोदरपृष्ठयोय॑से उमाकांतोक्षियुक्सर्गीसूर्यआदित्यइंदिरा॥दशवर्णोमनुर्दैवभागोस्यमुनिरीरितः // 2 // गायत्रीछं दउद्दिष्टंदेवतादिवसेश्वरः // मायावीजरमाशक्तिनियोगोऽभीष्टसिद्धये // 3 // सत्येतिहृदयंब्रह्म शिरोविष्णुशिखास्मृता // रुद्रवर्माग्नेि–स्यात्सर्वैत्यत्रमुदीरितम् // 4 // तेजोज्वालामणेहुँ फट्स्वाहांतामनवोंगजाः॥ भूयःषडंगंषड्वर्णैःकृत्वांतःस्थैः शिवाश्रियोः // 5 // शेषाणैर्जठरेपृष्ठेडेंतं नाम्रातयायसेत् // आदित्यंचरविंभानुभास्करमूर्यमेवच // 6 // // यथा॥हींॐश्रींहृत् ॥हींधूश्रींशिरःहींजिंश्रीशिखा॥ हींसूश्रींवर्म॥हींयंश्रीनेत्रम् // हींआंश्रीअस्त्रम्॥ हीदिश्रीउंदरायनमः उदरे // ह्रींत्यंश्रींपृष्ठायनमःपृष्ठेइत्यष्टांगम्॥५॥पंचमूर्तिन्यासमाहा|आदित्यमिति॥६॥ | 1 *हींघृणि सूर्यदित्यश्रीमितिदशार्णः // अस्पसूर्यमंत्रस्यभृगुर्ऋषि गायत्रीछंदःदिवाकरोदेवताहींबीजंत्रीशक्तिःममाभीष्टसाधनेजपे विनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०म० 130 // सद्यओंकारस्तदादिविलोमेनपंचह्रस्वाः एउइंअंएतदाद्यान्डेनमोंतानादित्यादीन्मूर्धादिषुन्यसेत् // यथा ॥ॐआदित्यायनमोमूर्ध्नि // एरवयेनमोमुखे // उंभानवेनमोहृदि / इंभास्करायनमोलिंगे // अंसूर्या यनमःपादयोः॥७॥वर्णन्यासमाह / / मायेति॥नमोन्वितानित्यपिबोध्यम्॥यथा ॥ॐहींॐश्रींनमोमूनि मूर्ध्निवस्त्रेहदिशिवपादयोश्चप्रविन्यसेत् // सद्यादिपंचह्रस्वाद्यान्चतुर्थीनमसान्वितान् // 7 // मायार मागतानष्टौवर्मान्मूर्धिमुखेगले // हृत्कुक्षिनाभिजंघासुपादयोश्चप्रविन्यसेत् // 8 // स्वरान्सविंदूनुच्चा र्यडेतंशीतांशुमंडलम् // शिखादिकंठपर्यंतंविन्यसेत्संस्मरविधुम् // 9 // स्पर्शानसेंदून्समुच्चा र्यडेंतंभास्करमंडलम्॥कंठादिनाभिपर्यंतंन्यसेद्ध्यायन्प्रभाकरम् // 10 // अहींधूश्रींनमोमुखे॥अँहीणिश्रींनमोगले॥ॐहींतूंश्रींनमोहदि ॥ॐवीयश्रींनमाकुक्षौ॥हींआं श्रींनमो नाभौ // ॐहींदिश्रींनमोलिंगे॥ॐहीत्यं श्रींनमःपादयोः // 8 // मंडलन्यासमाह ॥स्वरानिति // विधुचंद्र स्मरन्चंद्रमंडलंन्यसेत् // यथा ॥अं१६सोममंडलायनमःशिखादिकंठांतम् // 9 // स्पर्शान्कादीन्मांतान / यथाकं२५सूर्यमंडलायनमाकंठादिनाभ्यंतम् // 10 // For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यादीनिति // यं 10 वह्निमंडलायनमोनाभ्यादिपादांतम्॥ 11 ॥अग्नीषोमन्यासमाह // अकारादीनिति // RATE28 सोममंडलायनमोमूर्धादिहृदयांतम्॥ १२॥इति / / डं २३वह्निमंडलायनमोहृदादिपादांतम्॥१३॥ // 14 // हंसन्यासमाह // सबिंदूनिति // अं५१ हंसापुरुषात्मनेनमः सर्वांगे // 15 // ग्रहन्यासमाह // अष्टा यादीन्सेंदूश्चतुर्थ्यतंवह्निमंडलमुच्चरन् // नाभ्यादिपादपर्यंतविन्यसेत्पावकंस्मरन्॥११॥मंडलत्रयवि न्यास प्रोक्तस्तेजोविधायकः॥अकारादिठकारांतवर्णाव्यंसोममंडलम्॥१२॥उनमोतंन्यसेन्मंत्रीमूर्धादिच रणावधि।।उकारादिक्षकारांतवर्णावह्निमंडलम् ॥१३॥हृदादिपादपर्यंतविन्यसेन्डेनमोन्वितम् // अ ग्रीषोमात्मकोन्यासःकथितःसर्वसिद्धिदः।।१४॥सबिंदूनमातृकावर्णानजपांपुरुषात्मने।नमोतंव्यापकंन्य स्येद्धंसन्यासोऽयमीरितः॥१६॥अष्टावष्टौस्वान्पंचपंचशःशेषवर्णकान्॥उत्कादित्यमुखान्यस्येचतुर्थ्य तान्ग्रहान्नव॥१६॥आधारलिंगनाभीहृत्कंठेषुमुखमध्यतः।।भ्रूमध्येभालदेशेचब्रह्मरंधेकमान्यसेत्१७॥ विति // अं८आदित्यायभगवतेनमः आधारे॥ लं 8 सोमायभगवतनमालिंगे॥कं 5 अंगारकाय भनाभौ // |चं 5 बुधाय भ० हृदि // टं 5 बृहस्पतये भ०गले // तं 5 शुक्राय भ मुखमध्ये // 55 शनैश्चरायभ भ्रूम ध्ये // यं 4 राहवेभ० भाले ॥शं 4 केतवेभ ब्रह्मरंध्रे / खेचराग्रहास्तन्नामांतेभगवतेनमः इतिपदंवदेत् // हातच्चप्रयोगेलिखितम् // 16 // 17 // For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मं०म० // 13 // हंसेति // अहन्यासानंतरंहंसाग्रीषोममंडलसंन्यासत्रयंपुन कुर्यात् // प्रथमकरणाद्वैपरीत्येनेत्यर्थः॥१८॥ सटीक ध्यानमाह // शोणेति // रक्तपद्मस्थांवेदत्रयीत // सैषात्रय्येवविद्यातपतीतिश्रुतेः॥ ऊर्ध्वयोः पद्मद्वयम् // अधोवामदक्षयोरभयदाने // 19 // पीठपूजायांधर्मादिकाष्टस्थानेषुपंचैवपूज्याः॥ प्रभूताय०॥विमलाय॥ त०१६ वदेतखेचरनामांतेपदंभगवतेनमः // हंसाख्यमग्नीषोमाख्यंमंडलवयसंज्ञकम् // पुनासत्रयंकुऱ्या न्मूलेनव्यापकंचरेत् // 18 // शोणांभोरुहसंस्थितंत्रिनयनवेदत्रयीविग्रहम् // दानांभोजयुगाभया निधतंहस्तैःप्रवालप्रभम् // केयूरांगदहारकंकषधरंकर्णोल्लसत्कुंडलंलोकोत्पत्तिविनाशपालनकर सूर्यगुणान्धिभजे // 19 // एवंध्यायञ्चपेल्लक्षदशकंतदशांशतः // पद्मस्तिलैर्वाजुहुयात्तर्पयो जयेद्विजान् ॥२०॥प्रयजेत्पीठपूजायांधर्माद्यष्टस्थलेष्विमान् // प्रभूतंविमलंसारंसमाराध्यविदिश्वथ // 21 // परमादिसुखान्मध्येनंतादीनपूर्ववद्यजेत् // सोमाग्निमंडलेप्रोच्यरविमंडलमर्चयेत् // 22 // ततोऽष्टदिक्षुमध्येचपीठशक्तीरिमानव // दीप्तासूक्ष्माजयाभद्राविभूतिर्विमलातथा // 23 // सारायः॥समाराध्यायेति अग्यादिषुसंपूज्य // परमसुखायनमाइतिमध्येच // पुनरनंतादीनपूर्ववत् // BAR131 // प्रथमतरंगोक्तवत् // तेचाष्टावेव // ततःसोममंडलाय०॥ वह्निमंडलायेत्यभ्यर्च्य // सूर्यमंडलायनमइति यजेत् // एतावदेव पीठदेवानिष्ट्वापीठशक्तीर्यजेत् // ताआह / / दीप्ताइति // 21 // 22 // 23 // For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तासांबीजान्याह // द्वस्वति // द्वस्वत्रयम् अइड // क्लीबाऋऋलल // एतद्वयतिरिक्तारेफबिंदुयुताः // स्वराक्रमात् // तासांबीजानि // तत्पूर्वास्तायजेत् // सरीसरेंरैंरों रंरः॥ इति ॥रांदीप्तायैनमः॥ रीसूक्ष्मायैइत्यादि // 24 // पीठमंत्रमाह // ब्रह्मेति // स्मृतिर्गः // ॐब्रह्मविष्णुशिवात्मकायसौराय योगपीठात्मनेनमइति // 25 // मूर्तिकल्पनेमंत्रमाह // तारइति // तारॐसेंदुवियत्हं // बिंदुयुतस्तद्र अमोघाविद्युतासर्वतोमुखीपीठशक्तयः // ह्रस्वत्रयक्लीवहीनस्वरान्वह्नींदुसंयुतान् // 24 // बीजानिपीठशक्तीनांतदाद्यास्ताप्रपूजयेत् // ब्रह्मविष्णुशिवात्मांतेकायसौराययोस्मृतिः // 25 // पीठात्मनेनमस्तारपूर्व-पीठमनुःस्मृतः // तारसेंदुवियत्कांतौबिंदुमद्विन्दुवर्जितौ // 26 // खो ल्कायहृदयमंत्रोनवार्णोमूर्तिकल्पने // अनेनमूततॊकृप्तायांयजेत्प्रद्योतनंप्रभुम् // 27 // प्राग्वत्पडंगं | संपूज्यदिश्वष्टांगंप्रपूजयेत् ॥आदित्यंमध्यतोभ्यर्च्यविभानुंचभास्करम् // 28 // माहितश्चति // द्वौकांतोखो ॥खंखः॥ खोल्कायस्वरूपं // हृदयंनमः॥ 26 // 27 // प्रागिति // षडंगान्यन्या दिषुसंपूज्यदिश्वष्टांगानि न्यासोक्तानियजेत् // आदित्यादीन्पंचमध्यदिक्षुचन्यासवत् // ॐकारादिपंच हस्वाद्यान् // उषामिति // आद्यर्णाद्याः // उंउषायैनमइत्यादि // अष्टम्यामातुःस्थानेरुणमेवयजदि त्यर्थः॥ सोंसामायेत्यादिपूर्ववत् // आद्यर्णाद्याः रविपार्षदेभ्योनमइत्यादि॥२८॥ For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 132 // // 29 // 30 // 31 // अर्घविधिमाह // प्राणेति // 32 // प्रस्थंषोडशपलानि // 33 // मूलंविलोममेव सटीक सूर्यदशासुसद्यादिपंचह्रस्वादिकान्यजेत् // उषांप्रज्ञांप्रभांसंध्यामाद्यांद्याविदिक्ष्वपि // 29 // ब्राहयाद्यादिग्दलेष्वर्चेन्महालक्ष्मीस्थलेरुणम् // सोमंबुधंगुरूंशुक्रंदिक्ष्वाद्यर्णादिकान्यजेत्॥३०॥अंगात०१५ रकंशनिराहुँकेतुकोणेषुपूजयेत् // इंद्राद्यानायुधैर्युक्तान्पार्षदानत्रयेद्रवेः // 33 // इत्थंसिद्धेमनौ दद्याद्भानवेध्येचतदिने / प्राणायामंषडंगंचकृत्वान्यासानपुरोदितान् ॥३२॥स्वमंडलेयजेदर्कमानसैरु पचारकैः।सुताम्रघटितंप्रस्थतोयग्राहिमनोहरम्॥३३॥मंडलेस्थापयेत्पात्ररक्तचंदननिर्मितम्।।विलोमां मातृकांमूलविलोमंचपठअलैः // 34 // रविमंडलनिर्गच्छत्सुधाबुद्धिविभावितैः // त्रयोदशैववस्तूनिष क्षिपेन्मूलमुच्चरन् ॥३५॥तिलतंडुलदर्भागशालिश्यामाकराजिकाहयारिकुसुमंरक्तचंदनंरक्तचंदनम् // 36 // गोरोचनंकुंकुमंचजयांवणुयवानिति // तजलेपीठमभ्यर्च्यवाह्यभार्नुस्वमंडलात् // 37 // अखिलैरुपचारस्तंपूजयेदावृतीरपि // प्राणायामत्रयंकृत्वाषडंगंन्यासमाचरेत् // 38 // सूर्यमंडलान्निगच्छद्यदमृतंतद्धियाचिंतितैः / / 34 // 35 // वस्तून्याह / / तिलेति // रक्तंकरवीरम्।। वेणुयवान्वं Ha|132 // शोत्पन्नयवान् // 36 // 37 // 38 // १प्राणानायम्यसद्देशे इति पा०॥ For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुधाबीजंवमिति // तेनदक्षकरेण // 39 // 40 // 41 // 42 // 43 // 44 // 45 // मंगलमंत्रमाह // चंदनेनसुधाबीजंदकरतले न्यसेत्॥आच्छादयेदर्घपात्रंवामाक्रांतेनतेनच॥३९॥अष्टोत्तरशतावृत्त्यामू लेनांभोभिमंत्रयेत् // पुनःपंचोपचारैस्तंपूजयेन्मूलमंत्रतः॥ 40 // पाणिभ्यांपात्रमादायजानुनीभूत लेन्यसेत् / / आमूर्ध्निपात्रमुद्धृत्यदृष्टिंचाधायमंडले॥४१॥मनसापूजयेत्तत्रभानुमावरणान्वितम् // अय दद्यादविंध्यायनरक्तचंदनमंडले // 42 // ततःपुष्पांजलिंदद्यान्मंडलस्थायभानवे // अष्टोत्तरशतंमूलंज पेदासनसंस्थितः॥४३॥ प्रत्यर्कप्रातरेवंयोदद्यादयविवस्वते // लक्ष्मीयशःसुतानविद्यामैश्वर्य्यसोड | धिगच्छति॥४॥गायत्र्युपासनासक्त संध्यावंदनतत्परः॥ दशवर्णजपनविप्रोनैवदुःखमवाप्नुयात्॥४५॥ अथवच्मिधरासूनुमंत्रसुतधनप्रदम् // तारोवियदीर्घबिंदुयुक्तचंद्रांकितंपुनः // 16 // भृगुर्विसर्गीचं डीशौक्रमाद्रात्रीशसर्गिणौ // षड्वर्णोमनुराख्यातोभीष्टदायीऋणापहः // 47 // तारइति // तारवियत् हः // दीर्घबिंदुयुतंहां // पुनस्तदेववियत् चंद्रांकितंहं / विसर्गीभृगुःसः // रात्रीशसर्गिणौबिंदुयुतौविसर्गयुतौचंडीशौखोखंखः॥४६ // 47 // 1 ॐहाहंसःस्वस्वः॥अस्यमंत्रस्यविरूपाऋषिःगायत्रीछंदाधरात्मजोदेवताममा० // For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MH Dr सटीक | त०१५ // 133 // धरात्मजभौमोदेवताध्यानमाहाजपाभामिति // शूलवरौदक्षयोगाअन्ययो अन्ययोरितरे॥रसलक्षषड्लक्षं॥ शैवेपीठेमृत्युंजयोक्ते // ककुभांनाथानिंद्रादीन् // कुलिशादीन्वज्जादीन् // 48 // 49 // 50 // 51 // 52 // मुनिर्विरूपागायत्रीछंदोदेवोधरात्मजःषभिर्वणःषडंगानिमनो कुर्वीतसाधकः॥४८॥ जपाभशिवस्वे दर्जहस्तपदेंगदाशूलशक्तीवरंधारयंतम्॥अवंतीसमुत्थंसुमेपासनस्थंवरानंदनंरक्तवस्त्रंसमीडे।४९॥रसल क्षंजपोहोम समिद्भिःखदिरस्यच // शैवेपीठेयजेगोमंप्रागंगानिप्रपूजयेत् // 50 // एकविंशतिकोष्टेषुमं गलादीन्प्रपूजयेत् // तद्वहिःककुभांनाथान्कुलिशादीस्ततोर्चयेत् // 51 // इत्थंजपादिभिःसिद्धस्वेष्ट सिद्धौप्रयोजयेत्॥नारीपुत्रमभीप्संतीभौमाहेतद्वतंचरेत्॥१२॥ मार्गशीर्षथवैशाखेतस्यारंभ प्रशस्यते॥ अरुणोदयवेलायामुत्थायशुचिविग्रहा // 53 // दंताधावेदपामार्गसमिधामौनसविनी॥ नद्यादिसलिले स्नात्वाधारयेद्रक्तवाससी॥५॥नैवेद्यकुसुमालेपानक्तानसंपाद्यसंयतः॥विधिज्ञविप्रमाहूयभौममर्चेत्तदा ज्ञया॥५६॥रक्तगोगोमयालिप्तदेशेपीठनिषेविणी // मंगलादीनिनामानिस्वप्रतीकेषुविन्यसेत् // 56 // भौमव्रतमाह // मार्गेति // शुचिविग्रहा // 53 // 54 // शरीरचिंतानिवर्तमानानंतरंप्रक्षालितपा णिपादमुखास्वप्रतीकेषुनिजांगेषु // 55 // 56 // For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PERSE . 10 or He an न्यासमेवाह // मंगलमिति // ॐमंगलायनमः पादयोः इत्यादि // 57 // 58 // 59 // 60 // 61 // मंगलंविन्यसेदंध्योभूमिपुत्रंतुजानुनोः // ऊर्वोश्चऋणहर्तारंकाटिदेशेधनप्रदम् // 57 // स्थिरासनं गुह्यदेशेमहाकायमथोरसि // वामबाहौततोन्यस्येत्सर्वकर्मावरोधकम् // लोहितंदक्षिणेवाहोलोहि ताक्षंगलेन्यसेत् // वदनेविन्यसेत्साध्वीसामगानांकृपाकरम् // 58 // धरात्मजनमोरक्ष्णोःकुजंभौमल लाटतः / / भूतिदंतुभ्रुवोर्मध्येमस्तकेभूमिनंदनम् // 19 // अंगारकंशिखादेशेसर्वाविन्यसेद्यमम् // ततो बाहुद्वयेन्यस्येत्सर्वरोगापहारकम् // 60 // मूर्दादिवृष्टिकर्तारंपादपर्यंतविग्रहे // विन्यसेदृष्टिहतारं मूर्द्वातंचरणादितः॥६॥ दिक्षुप्रविन्यसेदंत्यंसर्वकामफलप्रदम्॥ आरंवक्रभूमिजंचनाभीवक्षसिमूर्द्धनि // 62 // एवंन्यस्त शरीरासौध्यायेद्धरणिनंदनम् // अवस्थाप्यविधिवत्पूजयेदुपचारकैः // 63 // एकविंशतिकोष्ठाव्येत्रिकोणेताम्रपात्रगे // आवाह्य धरणीपुत्रंशोणैःपुष्पैश्चचंदनैः // 64 // अंगानि पूजयेत्प्राग्वदेकविंशतिकोष्ठ के // मंगलादीस्त्रिकोणेषुवक्रमारंचभूमिजम् // 66 // ब्राहृयायामातृका बाह्येशकादीनायुधान्यपि // धूपदीपौविधायाथगोधूमानीनवेदयेत् // 66 // जलपूर्णेताम्रपात्रगंधपु ष्पाक्षतान्विते // फलंनिधायमंत्राभ्यांभौमायापनिवेदयेत् // 67 // // 62 // 63 // 64 // 65 // 66 // 67 // DO 06 For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 13 // मंत्रमाह // भूमिपुत्रेति // 68 // 69 // पूर्वनामभिर्मगलाद्यैः॥ 70 // ७१॥रेखामार्जनमंत्रमाह // दुःखेति // भूमिपुत्रमहातेजःस्वेदोद्भवपिनाकिनः॥ सुतार्थिनीप्रपन्नात्वांगृहाणाय॑नमोस्तुते // 68 // रक्तप्रवालसं काशजपाकुसुमसन्निभामहीसुतमहाबाहोगृहाणायनमोस्तुते॥६९॥एकविंशतिकृत्वोथप्रणमेत्पूर्वनाम भिः॥प्रदक्षिणाविधातव्यास्तावत्योवसुधात्मजो७० खदिरांगारकेनाथकुर्याद्रेखासमंत्रयम्।।वामपादेन मंत्राभ्यामेताभ्यांतत्प्रमार्जयेत्॥७॥दुःखदौर्भाग्यनाशायपुत्रसंतानहेतवे।कृतरेखात्रयंवामपादेनैतत्प मार्म्यहम्॥७२॥ऋणदुःखविनाशायमनोभीष्टार्थसिद्धये।।मायाम्यसितारेखास्तिस्रोजन्मत्रयोद्भवाः॥ // 73 // ततःपुष्पांजलिकरास्तुवीतधरणीसुतम् ॥ध्यायंतीचरणांभोजपूजासांगत्वसिद्धये // 74 // धरणीगर्भसंभूतंविद्युत्तेजःसमप्रभम् // कुमारंशक्तिहस्तंचमंगलंप्रणमाम्यहम् // 79 // ऋणहर्बेनम स्तुभ्यंदुःखदारिद्यनाशिने // नभसिद्योतमानायसर्वकल्याणकारिणे // 76 // देवदानवगंधर्वयक्षराक्ष सपन्नगाः // सुखंयांतियतस्तस्मैनमोधरणिसूनवे // 77 // योवक्रगतिमापन्नोनृणांदुःखप्रयच्छति // पूजितःसुखसौभाग्यंतस्मैक्ष्मासूनवेनमः // 78 // // 72 // 73 // 74 // स्तुतिमाह // धरणीति // 75 // 76 // 77 // 78 // HASTRAMSTERSE:5555 त०१५ S KRI For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org Vil // 79 // 80 // उद्यापनमाह // तिलैरिति // 81 // मंडलस्थइति // सर्वतोभद्रमंडलेकुंभसंस्थाप्य // तत्रभौममूर्तिसौवर्णीप्रतिमांसपूज्याचार्यायदद्यात् // 82 // 83 // 84 // 85 // 86 // गुरुमंत्रमाह // प्रसादकुरुमेनाथमंगलप्रदमंगल // मेषवाहनरुद्वात्मन्पुत्रान्देहिधनंयशः॥७९॥एवंसंस्तूयसंपूज्यगृह्णी याब्राह्मणाशिषः // गुरवेदक्षिणांदत्त्वाभुंजीतानंनिवेदितम् // 80 // प्रतिभौमादिनेकुर्य्यादेवंसंवत्स रावधि // तिलैविधापयेद्धोमंशताईभोजयेद्दिजान् // 81 // माहेयमूर्तिसौवर्णीमाचार्यायनिवेदयेत्॥ मंडलस्थेघटेऽभ्यर्च्यसुतसौभाग्यसिद्धये // 82 // एवंत्रतपरानारीप्राप्नुयात्सुभगान्सुतान् // धनाप्त्यै ऋणनाशायव्रतंकुर्यात्पुमानपि // 83 // अग्निईत्यपिमनुवैदिकंब्राह्मणोजपेत् // तथांगारकगायत्री सर्वाभीष्टप्रसिद्धये // 84 // अङ्गारकायशब्दान्तेविद्महेपदमुच्चरेत् // शक्तिहस्तायचपदंधीमहीतिततो वदेत् // 85 // तन्नोभौम प्रचोवर्णान्दयादितिचकीर्तयेत् // एषांगारकगायत्रीजप्ताभीष्टप्रदायिनी // // 86 // माहेयोपासनप्रोक्तंगुरुमंत्रमुदीर्य्यते // खड्गीशौभारभूतिस्थौतत्राद्यक्रूरसंयुतः // 87 // खड्गीशाविति // खड्गीशोद्वौवकारौ // भारभूतिस्थौऋवर्णस्थौ // तयोराद्यःक्रूरेणबिंदुनायुतः // 87 // 1 अङ्गारकायविमहेशक्तिहस्तायधीमहि तन्नोभौमःप्रचोदयात् // For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में सटीक . म त०१५ PrerrPPR नभोहः // लोहितस्थोभृगुः // पकारस्थः सकारः स्प // हरिस्तकारः // भगान्वितोवायुः // एयुतो याये // हृदयंनमः // यथा // बूंबृहस्पतयेनमइति // 88 // आदिमंमितिबीजं // षडंगमाह // वराभ्या नभोभृगुलोंहितस्थोहरिर्वायुर्भगान्वितः॥ हृदयांतोष्टवर्णोयंमनुब्रह्मामुनिःस्मृतः॥ 88 // छंदोनुष्टुप् सुराचार्योदेवतावीजमादिमम् // वराभ्यांदीर्घयुक्ताभ्यांपडंगानिप्रकल्पयेत् // 89 // रत्नाष्टाप दवस्त्रराशिममलंदशाकिरतंकरादासीनविपणोकरंनिदधतरत्नादिराशौपरम् // पीतालेपनपुष्पवस्त्रम खिलालंकारसभूषितंविद्यासागरपारगंसुरगुरुंवंदेसुवर्णप्रभम् // 90 // जपित्वाशीतिसाहस्रंहुत्वान्नेन तेनवा // धर्माधर्मादिपीठेतंपूजयेदंगदिग्भवैः // 91 // सिद्धेमनौप्रकुर्वीतप्रयोगानिष्टसिद्धये // हरिद्राकुंकुमैर्हत्वाघृताक्तैर्दिवसत्रयम् // 92 // सविंशतिशतमंत्रीवासांसिलभतेमणीन् // शत्रुरोगा दिपीडासुस्वजनेकलहोद्भवे // 93 // मिति // बांहृतब्रीशिरइत्यादि // 89 // ध्यानमाह // रत्नेति // दक्षहस्ताद्रनहेमवत्रराशीनिक्षिपंतम् // वामकरंरत्नादिसमूहेआरोपयंतम्॥९॥धर्माधर्मादिपीठेइति / / पीठशक्तयोभवतीत्यर्थः॥ 91 // 92 // 93 // 1 अस्यबृहस्पतिमंत्रस्यब्रह्माऋषिःअनुष्टुप्छन्दःसुराचार्योदेवताबेंबीजंममाभीष्टसिद्ध्यर्थेजपेविनियोगः // 1 // 13 // For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie शुक्रमंत्रमाह // तारइति // तारॐ // वस्त्रस्वरूपम् // भगीसूर्यः // एयुतोमः मे // देहिशुक्रायस्वरूपम् // जुहुयात्पिप्पलोत्थाभिःसमिद्भिस्तंनिवृत्तये // तारोवस्त्रंभगीसूर्योदेहिशुक्रायठद्वयम्॥९॥एकादशा क्षरोमंत्रोहेमवस्त्रप्रदायकःब्रह्मामुनिर्विराट्छंदोदेवतादैत्यपूजितः॥९५॥ वीजतारोमिभार्यातुशक्तिर स्यप्रकीर्तिता॥एकद्विचंद्रनेत्रामिनेत्रवर्णैःषडंगकम्॥९६॥मंत्रवगैस्तुकृत्वाथध्यायेद्विद्यानिधिसितम्॥ श्वेतांभोजनिषण्णमापणतटेश्वेतांबरालेपनंनित्यंभक्तजनायसंप्रदतवासोमणीन्हाटकम्॥ वामेनैवकरे णदक्षिणकरेव्याख्यानमुद्रांकितंशुक्रदैत्यवरार्चितस्मितमुखवंदेसितांगप्रभम् // 97 // अयुतंप्रजपे न्मंत्रंदशांशंजुहुयाघृतैः॥ यजेद्धर्मादिपीठेतंनगेंद्रादितदायुधैः॥ 98 // सुगंधैःश्वेतकुसुमैर्जुहुयाच्छु क्रवासरे // एकविंशतिवारंयोलभतेसोशुकमणीन् // 99 // ठद्वयं स्वाहा // 94 // 95 // 96 // ध्यानमाह // श्वेतेति // आपणतटे अहृदसमीपेदेशेश्वेतपद्म स्थितम् // 97 // 98 // 99 // 1 वखंमेदेहिशुक्रायस्वाहा // अस्यमंत्रस्यबझाऋषिःविराट्छंददैत्यपूज्योदेवताआंबीजंस्वाहाशक्तिः ममाभीष्टसिद्धययेंजपेविनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie www.kobatirth.org म०म० सटीक // 136 // त०१५ व्यासमंत्रमाह // बालइति // बालोवः॥ पवनदीर्धेन्दुयुक्तः // यकाराकारबिंदुयुतः व्याम् // जलंझिंटी शयुगूवकारएकारयुतः वे // अविर्दः // व्यासायस्वरूपम् // हृदयंनमः // यथा // व्यांवेद बाल पवनदीर्घन्दुयुक्तोझिंटीशयुरजलम् // अत्रिासायहृदयंमनुरष्टाक्षरोमतः // 10 // ब्रह्मानु टुम्सुनिश्छंदोदेवःसत्यवतीसुतः॥आद्यबीजनम शक्तिर्दीर्घाव्येनादिनांगकम् // 101 // व्याख्यामु द्रिकयालसत्करतलंसद्योगपीठस्थितंवामेजानुतलेदधानमपरंहस्तेसुविद्यानिधिम् // विश्वातवृतंप्रस नमनसंपाथारुहाङ्गद्युतिपाराशय्येमतीवपुण्यचरितव्यासस्मरात्सद्धये // 102 // जपेदष्टसहस्रा णिपायसोममाचरेत् // पूर्वोक्तपीठेव्यासस्यपूर्वमंगानिपूजयेत् // 103 // प्राच्यादिषुयजेत्पैलवै शंपायनजैमिनीम् // सुमंतुकोणभागेषुश्रीशुकंरोमहर्षणम् // 104 // व्यासायनमइति // 10 // 101 // विप्रवातवृतम् // ब्राह्मणसमूहपरिवेष्टितम् // पाथोरुहांगद्युतिनीलेंदीव रकांतिम्॥ 102 / / पूर्वोक्तपीठेधर्मादिके // 103 // 104 // 1 अस्यमंत्रस्यब्रह्माऋपिःअनुष्टुप्छंदःसत्यवतिसुतोदेवताव्यांबीजनमःशक्तिर्ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // // 136 // For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir STAR // 105 // 106 // मृत्युंजयमंत्रमाह // तारइति // तारॐ // वामकर्णबिंदुयुतः // उबिंदुयुतः शूली जः॥ जूं // ससर्गःसः स्वरूपं // केवलोप्ययंजप्तोनणांमृत्युनाशनः // 107 ॥किंपुनस्तत्पुटितः // व्यासमं उग्रश्रवसमन्यांश्चमुनीन्सेंद्रादिकायुधान् // एवंसिद्धमनुमंत्रीकवित्वंशोभना प्रजाः // 10 // व्याख्यानशक्तिकीर्तिचलभतेसंपदांचयम् // मृत्युंजयेनपुटितंयोव्यासस्यमजपेत् // 106 // सर्वोपद्रवसत्यक्तोलभतेवांछितफलम् // तारःशूलीवामकर्णबिंदुयुक्त ससर्गसः // 107 // मृत्यु जयस्यमंत्रोयंत्रिवर्णो मृत्युनाशनः // जप्तोयकेवलोनृणामिष्टसिद्धिप्रयच्छति // किंपुनस्तेनपुंटितो वेदव्यासमनृत्तमः // 108 // इतिश्रीमंत्रमहोदधौसूर्यादिमंत्रकथनंनामपंचदशस्तरंगः // 15 // त्रः // अस्यमत्रस्यकहोलऋषिदेवीगायत्रीछंदामृत्युंजयोदेवताजूंबीजंस शक्तिः // दीर्घाढयसकारेणषड ङ्गम् // 108 // इतिश्रीमंत्रमहोदधिनौकाटीकायांसूर्यादिमंत्रनिरूपणंपंचदशस्तरंगः // 15 // EmotimonTHEHome 1 जूसःव्यांवेदव्यासायनमःसाजूंॐ॥ For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie में०म० alमहामृत्युंजयमंत्रमाह // तारइति // तारॐ // व्यापिनीचंद्रयुक बिंदुयुतखंहाहौं // तारॐ॥ अर्षीशामदीक बिंदुयुक्तश्चतुराननाऊबिंदुयुतोजाजूं / सर्गीहंसासः। भूर्भुवःस्वरूपम्॥सकारोबालविसर्गाढयोवविसर्गयुतः 137 // सकार-स्वाभ्यंबकवैदिकोमंत्रायथाव्यंबकंयजामहे सुगंधिपुष्टिवर्धनम् / / उर्वारुकमिवबंधनान्मृत्योर्मुक्षी महामृत्युंजयंवक्ष्येदुरितापन्निवारणम् // यंप्राप्यभार्गवःशंभो तान्दैत्यानजीवयत् // 1 // तारखंव्या | पिनीचंद्रयुक्तारश्चतुराननः // अर्षीशविंदुसंयुक्तोहंसःसर्गीचभूर्भुवः॥२॥ सकारोवालसर्गाढयस्यं बकवैदिकोमनुः // भूर्भुवःस्वभुजंगेशस्ताराजूंसर्गवान्भृगुः // 3 // आकाशोमनुविंदाढय प्रणवांतो मनूत्तमः॥ महामृत्युंजयाख्योयंपंचाशद्वर्णनिर्मितः॥४॥ वामदेवकहोलाख्यवसिष्ठामुनयोस्यतु // छंदास्युक्तानिरुदेणपंक्तिगायत्र्यनुष्टुभः // 5 // सदाशिवमहामृत्युंजयरुद्रोस्यदेवता // मायाशक्ती रमाबीजविनियोगार्थसिद्धये // 6 // यमामृतादिति॥भूर्भुवःस्वःस्वरूपं / तारः ॐपुतोभुजंगेशोरः ॥रों // जूस्वरूपम् // सर्गवान्भृगुःसः // 1 // alu2 // 3 // मनुबिंद्वाढयः आकाशः बिंदुयुतोहाहौं // प्रणवांतश्चायंमंत्रः॥ यथा // ॐहौं ॐजूंसः भूर्भुवःस्वाभ्यंबकंभूर्भुवःस्वरोंजूंसाहौंॐ इतिपंचाशदर्णः // माया ह्रीं // रमाश्रीं // 4 // 6 // 6 // | 1 अस्यश्रीमहामृत्युंजपमंत्रस्पवामदेवकहोलवसिष्ठाऋषयापंक्तिगायत्यनुष्टुप्छन्दांसिसदाशिवमहामृत्युंजयरुद्रादेवताह शक्तिःओंबीज ममाभीष्टसिद्ध्यर्थेजपेविनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ar मुन्यादिकानुष्यादीनमूर्धादिषुन्यसेत् // शिवेलिंगे // षडंगन्यासमाह // त्रिचतुरिति // चतुर्भिः अनु alठुभभः॥त्र्यंबकमंत्रस्यआदिवर्णान् मूलादिनववर्णाद्यान्मूलमंत्रस्यादौयेनववर्णास्ताराद्यास्तदाद्यान्॥७॥ ॐनमोभगवतेरुद्रायतिपदांतान् // तथाशूलपाणयेइत्यादिप्रातिस्विकांगमंत्रयुतानुक्त्वाषडंगंकुर्यादि त्यर्थः // यथा // ॐहौंजूंसम्भूर्भुवःस्वान्यंबकंॐनमोभगवतेरुद्रायशूलपाणयेस्वाहाहृत् ॥ॐयजामहेॐ मूर्ध्निवक्त्रेहदिशिवेपदोर्मुन्यादिकानन्यसेत् // त्रिचतुर्वसुनंदेषुगुणवर्णाननुष्टुभः // 7 // तारोनमो भगवतेरुद्रायेतिपदान्वितान् // मूलादिनववर्णाद्यानुक्त्वाकुर्यात्पडंगकम्॥८॥शूलांतेपाणयेस्वाहाह न्मंत्रांतेनियोजयेत् // अमृतांतमूर्तयेमांजीवयेतिशिरोंतिमम् // 9 // शिखांतेचंद्रशिरसेजटिनेव ह्निवल्लभा॥ त्रिपुरांतकायहांहींकवचातेमनुःस्मृतः॥ 10 // अमृतमूर्तयेमांजीवयशिरः // 8 // ॐसुगंधिंपुष्टिवर्धनॐचंद्रशिरसेजटिनेस्वाहाशिखा // *उर्वारुक Balमिवबंधनात् ॐ // 9 // त्रिपुरांतकायहाहीकवचम् // 4 // ॐहौंमृत्योर्मुक्षीयॐनमोत्रिलोचनाय ऋग्यजुःसाममंत्रायनेत्रम्॥ॐहौंमामृतात्अनमो अग्नित्रयायज्वलरमांरक्षॐअघोरास्त्रायअस्त्रम् // 10 // 1 वामदेवकहोलवसिष्ठाऋषयःमूर्ध्नि 1 पंक्तिगायत्र्यानुष्टुपछंदांसिवक्त्रे 2 सदाशिवमहामृत्युंजयरुद्रदेवतायैनम हदि 3 ह्रीशक्त्यै नमालिंगे 4 श्रीबीजायनमःपादयोः // इतिऋष्यादिन्यासः // For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक // 138 // त०१६ // 11 // 12 // वर्णन्यासमाह // द्वाविंशदिति // प्रणवादिनववर्णाद्यान्सबिंदुन्नमातांस्च्यमित्यादिद्वा त्रिंशद्वर्णान्पूर्ववक्त्रादिष्वगंषुन्यसेत् // *हौंजूंसम्भूर्भुवःस्वान्यनमःपूर्ववके 1 हौबनमःपश्चिम | प्रवदेत्रिपदस्यांतेलोचनायपदंपुनः॥ ऋग्यजुःसाममंत्रायवर्णान्नेत्रमनोःपठेत् // 11 // अग्नित्रयायज्व लचज्वलमारक्षरक्षच // अघोरास्त्रायमंत्रोयमत्रमंत्रस्ततःस्मृतः // 12 // द्वात्रिंशत्र्यंबकाद्यान् नमोंतानबिंदुसंयुतान् // तारादिनववर्णाद्यानंगेष्वेषुप्रविन्यसेत् // 13 // पूर्वपश्चिमयाम्योदङ्मुखेषू रसिकंठतः // वदनेनाभिहत्पृष्टेकुक्षौलिंगेगुदेन्यसेत् // 14 // वक्र // इत्यादिप्रयोगः // 13 // अंगान्याह // पूर्वोत // पूर्ववक्त्रादिप्वकैकवर्णन्यसेत् // 14 // / 1 होस भर्भवःस्वःत्र्यंनमःपूर्वमुखे 1 हौं जूंसःभूर्भुवःस्वःवनमःपश्चिममुखे 2 हौंजूस भूर्भुवःस्वःकनमा दक्षिणमुखे 3 ॐ हौंजूंसःभूर्भुवःस्वःयनमःउत्तरमुखे 4 हौंजूसःभूर्भुवःस्वःजांनमःउरसिहौजूसःभूर्भुवःस्वः मनमःकंठेहौंजूंस भूर्भुवःस्वल्हेंनमः | मुखे 7 ॐ हाँ-जूस भूर्भुवःस्वःसुनमःनाभौ 8 ॐहोंॐ जूंसःभूर्भुवःस्वागंनमःहदि 9 अहौंजूस भूर्भुवःस्वाधिनमःपृष्ठे 10 हौंजूसाभर्भुव: स्वःपुनःकुक्षौ 11 ॐहौजूसःभूर्भुवःस्वःष्टिनमालिंगे 12 हौंजूंसम्भूर्भुवःस्वःवनमःगुदे१३ ॐहाँॐ जूंसःभूर्भुवःखःधंनम दक्षिणोरुमूले१४ हौजसःभूर्भुवःस्वानंनमःवामोरुमूले 15 हौंजुसःभूर्भुवःस्वानमा दक्षिणोरुमध्ये 16 ॐहौंजूंसःभूर्भुवःस्वःवांनमःवामोरुमध्ये 17 हौंजूस भूर्भुवःस्वःरुनेमादक्षिणजानुनि 18 अहौजूस भूर्भुवःस्वःकंनमा वामजानुनि 19 हौंजूस भूर्भुवःस्वामिनमःदक्षिणजानु Tim138 // For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org उरुमलोरुमध्यजानुवृत्तस्तनपार्श्वपादकरनासासुद्वौद्वौमूर्धन्येकैकम् // 15 // पदन्यासमाह ॥अथेति // शिवे ऊरुमूलोरुमध्येचजानुनोर्जानुवृत्तयोः // स्तनयोःपार्श्वयोरंध्योःकरयोर्नसिमूनि // 15 // अथै कादशविन्यस्येत्पदानिशिरसिध्रुवोः // नेत्रयोर्वदनेगडेहृदयेजठरेशिवे // 16 // ऊऊर्जानुप्रदे शेचपादयोःक्रमशःपुनः // त्रिवेदगुणवाणाधिद्विरामाक्षिगुणेन्दुभिः // 17 // त्रिभिर्वर्णेश्चविज्ञे यापदसंख्याक्रमाद्दुधैः // मूलेनव्यापकंकृत्वाततोध्यायेत्रिलोचनम् // 18 // लिंगे // 16 // 17 // पदेषु वर्णसंख्यामाह // त्रिभिरिति // त्र्यंबकंनमःशिरसिइत्यादि // 18 // 935SSASSESENSULOSSSSENSSEUMELESSELSESparmace 20Twelvamonacearranthurahesh55555 वृत्ते 20 ॐहाँॐ जूंसम्भूर्भुवःस्वःवनमःवामजानुवृत्ते 21 ॐहोंॐजूंसःभूर्भुवःस्वःवनम दक्षिणस्तने 22 ॐहाँॐजूंसःभूर्भुवःस्वाधनमःवामस्तने 23 ॐहौजूसःभूर्भुवःस्वानांनम दक्षिणपाचे 24 ॐहाँॐ जूंसम्भूर्भुवःस्वा{नमःवामपाचे 25 ॐहौंजूंसम्भूर्भुवःस्वात्योंनम दक्षिणेपादे 26 हौजूस भूर्भुवःस्वःमुंनमःवामपादे 27 ॐहौंॐ जूस भूर्भुवःस्वाक्षीनम दक्षिणकरे 28 ॐहौं*जूस भूर्भुवःस्वायनमःवामकरे 29 ॐहौं जूंसम्भूर्भुवःस्वःमानमः दक्षिणनासायां३०ॐहाजूंसःभूर्भुवःस्वः{नमःवामनासायां३१ ॐहौजूसम्भूर्भुवःस्वःतांनमःमूनि३२इत्यक्षरन्यासः॥ १व्यम्बकंशिरसि 1 यजामहे वोः 2 सुगंधिनेत्रयोः३ पुष्टिवर्धनमुखे 4 उर्वारुकंगडयोः ५इवहृदये 6 बंधनावजठरे 7 मृत्योःलिंगे 8 मुक्षीयऊोंः ९माजान्वीः 10 अमृतावपादयोः 11 इतिपदन्यासः॥ For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त० मं०म० पदकालेआअमृतादितिवरंपदम् // ध्यानमाह // हस्तेति // अष्टहस्तविनियोगमाह // अंकस्थं करयोःकुंभंदधतं तदूर्ध्वस्थकरयोः कुंभाभ्यांजलमुद्धृत्यकरद्वयनस्वशिरोभिषिंचंतकरयोर्मंगाक्षमालेचद| // 139 // Hधतमिति // मूर्धनिस्थितोयश्चंद्रस्ततःस्रवतामृतेनोक्किन्नातनुर्यस्य // उंदीक्लेदनेइत्यस्यनिष्ठायामुन्नेति स्वरूपम् ॥सगिरिजंभवानीयुतम्॥त्रीण्यंबकानिनेवाणियस्यतम् // 19 // मुद्राआह॥मुष्टीति // मुष्टिंदक्षिण हस्तेनविधायोर्ध्वसमुन्नयेत् // मुद्रामुष्टयभिधाख्यातासर्वविघ्नविनाशिनीति मुष्टिमुद्रालक्षणम् // सारंगो हस्तांभोजयुगस्थकुंभयुगलादुद्धृत्यतोयंशिरः सिंचंतकरयोर्युगेनदधतंस्वांकेसकुंभौकरौ // अक्षत्र मृगहस्तमंबुजगतंमूर्द्धस्थचंद्रस्रवत्पीयूषोन्नतनुंभजेसगिरिजमृत्युजयंत्र्यंबकम् // 19 // मुष्टिसारं गशक्त्याख्यालिंगपंचमुखाभिधाः // मुद्रा प्रदर्यप्रजपेल्लॉतस्यदशांशतः // 20 // मृगस्तन्मुद्रालक्षणम्॥यथा // दक्षस्यानामिकांगुष्ठमध्यमायाणियोजयेत् // शिष्टेदेउच्छ्रितेकुर्यान्मृगमुद्रेय मीरितेति // मुष्टीकरौविधायद्वौवामस्योपरिदक्षिणम् // कृत्वाशिरसियुंजीतशक्तिमुद्रेयमीरितेतिशक्ति मुद्रालक्षणम् // उच्छ्रितंदक्षिणांगुष्ठंवामांगुष्ठेनबंधयेत्॥वामांगुलीदक्षिणाभिरंगुलीभिश्चबंधयेत् // लिङ्गमुद्रे यमाख्याताशिवसांनिध्यकारिणीतिलिंगमुद्रा // मणिबंधकरौयुक्तावंगुल्यग्राणिमेलयेत् // मुद्रापंचमुखा ख्येयंदर्शिताशिवतोषिणीतिपंचमुखमुद्रालक्षणम् // 20 // // 139 // For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Selदशद्रव्याण्याह // बिल्वति॥२१॥२२॥पीठशक्तीराह / वामेति // 23 // 24 // आसनमंत्रमाह / / तारइति॥ ॐनमोभगवतेसकलगुणात्मशक्तियुक्तायअनंताययोगपीठात्मनेनमइति // 25 // 26 // आवरणपूजा दशद्रव्यैःप्रजुहुयात्तानिविल्वफलंतिलाः // पायसंसर्पिषादुग्धंदधिदूर्वाचसप्तमी // 21 // वटा त्पलाशात्खदिरात्समिधोमधुरप्लुताः // वामादिशक्तिसंयुक्तपीठेशैवेयजेच्छिवम् // 22 // वा माज्येष्ठातथारौद्रीकालीप्रोक्ताचतुर्थिका।।कलादिकाविकरिणीवलाद्याविकरण्यपि // 23 // वलप्रमथनी चान्यासर्वभूतदमन्यपि // मनोन्मनीतिशर्वस्यनवोक्ताःपीठशक्तयः॥२४॥ तारोनमोभगवतेसकलेति पदंततः॥ गुणात्मशक्तियुक्तायअनंतायवदेत्पदम् // 25 // योगपीठात्मनेपीठमंत्र प्रोक्तोनमोतिकः।। / पीठेपुष्पांजलिंदत्त्वामूर्तिमूलेनकल्पयेत् // 26 // पाद्यादिकुसुमांतोपचारांतेत्वावृतीर्यजेत् // ईशा नशंभुकोणेतुजदेयीशानमंत्रतः // 27 // प्रकारमाह // पाद्यादीति // पाद्यााचमनीयस्नानवस्त्रोपवीतचंदनपुष्पाणिदत्त्वावरणपूजांकुर्यात् // तत्रे शानकोणे ईशानःसर्वविद्यानामित्यापस्तंबशाखोक्तंमंत्रपठित्वेशानंयजेत् // 27 // For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म० सटीक // 14 // त. WWEIGanemientonisha.seaxexams6666405556516 तत्पुरुषायविद्महे // अघोरेभ्योथघोरेभ्यः॥ वामदेवायनमः // सद्योजातंप्रपद्यामि // इत्यादिचतुर्भिर्मत्रै स्तत्पुरुषादीन्प्रागादिषुयजेत् // तेषांसमीपेस्वनामभिनिवृत्त्याद्या कलाद्वितीयावरणेगानितृतीयेसूर्या तत्पुरुषमघोरंचवामदेवंतृतीयकम् // सद्योजातंयजेदिक्षुवेदोक्तस्वस्वमंत्रतः // 28 // ईशानादिसमीपे निवृत्त्याद्या कलाक्रमात् // निवृत्तिश्चप्रतिष्ठाचविद्याशांतिश्चतुर्थ्यपि // 29 // शांत्यतीतापंचमी तिततोंगानियजेच्चषट् // सूर्येदुक्षितितोयाग्निपवनाकाशयज्वनाम् // 30 // मूर्तयोऽष्टौक्रमात्पू ज्यास्तृतीयावरणस्थिताः // रमाराकाप्रभाज्योत्स्नापूर्णोषापूरणीसुधा // 31 // चतुर्थावरणेपूज्याः शक्तयोधवलप्रभाः // विश्वावंद्यासिताप्रवासारासंध्याशिवानिशा // 32 // पंचमावरणेऽभ्याः शक्तयःश्यामविग्रहाः॥ आर्याप्रज्ञाप्रभामेधाशांतिःकांतिधृतिर्मतिः // 33 // षष्ठावरणगाअष्टौ संपूज्याअरुणप्रभाः // धरोमापावनीपद्माशांतामोघाजयामला // 34 // दीनांमूर्तयः // सूर्यमूर्तयेनमइत्यादिप्रयोगः // 28 // 29 // 30 // चतुर्थेरमादयः // 31 // पंचमेविश्वा दयः // 32 // षष्ठेआर्यादयः॥ 33 // सप्तमेधराद्याः॥ 34 // h irAEKHosrakoshi Fachons For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनंतादयोऽष्टमे॥३॥नवमेउत्तरदिशमारभ्योमादयः॥३६॥ ३७॥दशमेमातरः॥ ३८॥प्रयोगानाह // जन्म सप्तमावृतिगा पूज्या शक्तयःकांचनप्रभाः // अनंतःसूक्ष्मसंज्ञश्चतृतीयस्तुशिवोत्तमः // 35 // एकनेकरुद्रौचत्रिमूर्तिःषष्ठईरितः // श्रीकंठोऽथशिखंडीचसंपूज्याअष्टमावृतौ // 36 // उत्तरा दियजेत्पश्चादुमांचंडेश्वरंपुनः // नंदिनंचमहाकालंगणेशंवृषभंपुनः // 37 // यजेद्धगिरि टिस्कंदनवमावरणस्थितान् // ब्राहयाद्यामातरःपूज्यादशमावरणेततः // 38 // इंद्रादयश्च वज्राद्याएवंसिद्धोभवेन्मनुः // जन्मभेदशमेतस्मात्पुनश्चैकोनविंशके // 39 // जुहुयायः सुधावल्ल्या समिधश्चतुरंगुलाः // सरोगान्त्सकला छत्रून्पराभूयश्रियायुतः // 40 // मोदतेपु त्रपौत्राद्यैःशतवर्षाणिसाधकः // समिद्भिःश्रीफलोत्थाभिहोम संपत्तिसिद्धये // 11 // पलाशतरु जाभिस्तुब्रह्मवर्चससिद्धये // वटोत्थाभिधनप्राप्त्यैखादिराभिस्तुकांतये // 42 // तिलैरधर्मनाशाय सर्पपैःशत्रुनष्टये // पायसेनकृतोहोमाकांतिश्रीकीर्तिदायकः // // 43 // कृत्यामृत्युक्षयकरोद भासंवादसिद्धिदः // होमसंख्यातुसर्वत्रायुतमानेनकीर्तिता // 44 // भइति॥सुधावल्ल्यागुडूच्याचतुरंगुलप्रमाणा-समिधः॥श्रीफलंबिल्वः॥ 39 // 40 // 41 // 42 // 43 // 44 // For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 141 रुजांरोगाणाम्॥ 45 // 46 // जन्मतारात्रयेजन्मनक्षत्रेततोदशमैकोनविंशयोश्च ॥४७॥४८॥रुद्रजपांगभूतं / सटीक दशार्णमाह // तारइति // भगवानरुद्रोपिडेंतः॥ पदद्वयंचतुर्थ्यत॥यथा ॥ॐनमाभगवतेरुद्रायेति // 49 // अष्टोत्तरशतंदूर्वात्रिकहोमाद्रुजांक्षयः॥ स्वजन्मदिवसेयस्तुपायसमधुरान्वितैः॥४५॥जुहोतितस्यवर्द्ध त०१६ तेकमलारोग्यकीर्तयः॥ गुडूचीबकुलोत्थाभिःसमिद्भिर्हवनंनृणाम् // 46 // जन्मतारात्रयेरोगान्मृत्यु चापिविनाशयेत् // प्रत्यहंजुहुयाहूर्वाअपमृत्युविनष्टय॥४७॥ किंबहूतेनसर्वेष्टंप्रयच्छतिशिवोनृणाम्॥ अपामार्गसमिद्भिश्चसिद्धान्नैवरनष्टये॥४८॥दुग्धाक्तैरमृताखंडैमसिहोमोखिलाप्तये // तारोहद्भगवान्हें तोरुद्रायतिदशाक्षरः॥४९॥बौधायनोमुनिःपंक्तिश्छंदोरुद्रोऽस्यदेवता॥पंचन्यासान्प्रकुर्वीतस्वस्यरु द्रत्वसिद्धये // 50 // यजुर्वेदस्थितान्मंत्रानेकत्रिंशत्स्थलेन्यसेत् // यातेरुद्रशिखादेशेह्य स्मिन्महतिमस्तके // 51 // रुद्रविधानमाह // पंचेति // 50 // यातेरुद्रेत्यूचंशिखायान्यसेत् // 1 // अस्मिन्महत्यर्णवेशिरास॥२॥५१॥ // 14 // 1 अस्यमंत्रस्यबौधायनऋषि:पंक्ति छंदःरुद्रोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // BAMHANUMRESHAAREESOMESSIOSARDIDOSJSJUS MORamerabanowami For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie कन Dr DO सहस्राणिसहस्रशम्भाले // 3 // हंसःशुचिषत् भुवोः // 4 // व्यंबकंयजामहे नेत्रयोः // 5 // नमः स्रुत्यायचपथ्यायचेतिकर्णयोः // 6 // 52 // मानस्तोकेन्नसोः॥७॥ अवतत्यधनु:मुखे // 8 // नीलग्रीवाः शितिकंठादिवं नीलग्रीवा शितिकंठाशर्वाऋगद्वयंकंठे // 9 // 53 // नमस्तेअस्त्वायुधायानातताय० स्कंधयोः॥ 10 // यातेहेति बाहोः॥ 11 // येतीर्थानि करयोः॥ 12 // 54 // सद्योजातमित्याद्यापस्तंबशा सहस्राणिललाटेतुहंसःशुचिभ्रुवोन्यसेत् // त्र्यंबकनेत्रयोःश्रुत्योर्नमःस्रुत्यायविन्यसेत् // 12 // मानस्तोकेनासिकायामवतत्यमुखेतथा // नीलग्रीवइतिऋचोर्द्रयंकंठेन्यसेदुधः // 53 // नमस्तआयु धायेतिमंत्रमंसद्वयेन्यसेत् // यातेहेतिरिमांबाह्वोर्येतीर्थानीतिहस्तयोः // 54 // सद्योजा तंप्रपद्यामीत्युचमंगुष्ठयोन्यसेत् // वामदेवायतर्जन्योरपोरेभ्योऽथमध्ययोः // 55 // तत्पुरुषा यानामायामीशानस्तुकनिष्ठयोः // नमोवकिरिकेभ्यस्तुहृदिमंत्रमिमंन्यसेत् // 56 // नमोगणेभ्यः पृष्ठेतुविन्यसेत्साधकोत्तमः॥ ततःपार्थद्वयेन्यस्येन्नमोहिरण्यवाहवे // 57 // खोक्तमंत्रपंचकमंगुष्ठाद्यंगुलीषु // 17 // 55 // नमोवाकिरिकेभ्योदेवाना 5 हृदयेभ्योनमोविचिन्वत्केभ्योन मोविक्षीणकेभ्योनमआनिर्हतेभ्यइतिहृदि // 18 // 56 // नमोगणेभ्योगणपतिभ्यश्चवोनमइतिपृष्ठे // 19 // नमोहिरण्यबाहवेसेनान्यदिशांचपतयेनमइतिपार्श्वयोः // 20 // 57 // For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie में०म० सटीक हिरण्यगर्भनाभौ // 21 // मीढुष्टमशिवायनमःकटयाम् // 22 // येभूतानामधिपतयःगुह्ये // 23 // 58 // जातवेदसेइमामृचंशिरोयुतामपाने // 24 // तामग्निवर्णातपसा अनेत्वंपारया विश्वानिनोदुर्गहा पृतना // 142 // जितंएतदृक्चतुष्टयंपूर्वऋचः शिरोयुतमिदमृक्पंचकंवाअपाने // 24 // मानोमहांतमूर्वोः // 25 // एषते / त०१६ | हिरण्यगर्भोनाभौचकव्यांमीढुष्टमेतिच // येभूतानामिमंगुह्यमंत्रविन्यस्यसाधकः // 58 // अपाने शिरसायुक्तांजातवेदसइत्यचम् // मानोमहातमित्यूर्वोरेपतेजानुनोयसेत् // 59 // येपथांपादयो यस्याध्यवोचत्कवचेन्यसेत् // मंत्रंनमोबिल्मिनेचेत्युपवर्मणिविन्यसेत् // 60 // नमोस्तुनी लग्रीवायतृतीयेऽक्षिणिसाधकः // प्रमुंचधन्वनइतिमंत्रेणास्त्रप्रविन्यसेत् // 61 // इत्येकत्रिंशदं गानांन्यासःप्रथमईरितः॥ ततःकुर्वीतदिग्बंधंयएतावंतइत्यूचा // 62 // रुद्रभागःजानुनोः // 26 // 59 // येपथापथिरक्षयःपदोः // 27 // अध्यवोचदधिवक्ताकवचे // 28 // // 142 नमोबिल्मिनेचकवचिने इत्युपकवचे // 29 // 60 // नमोअस्तुनीलग्रीवाय तृतीयनेत्रे // 30 // प्रमुंचधन्वन० IBEIअस्त्रे॥३१॥ 61 // इतिप्रथमोन्यासः॥ यएतावंतश्चदिग्बंधः // 62 // DISASHIONEEDSssesseupassespanSSODEOS. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BEESE86666RESSERTER16 अक्षरन्यासमाह // मूलेति // ॐनमःशिरसि // नंनमः नसोरित्यादि ॥ॐशिरसेनमः // नानासिकायै नमः // इतिद्वितीयोन्यासः // 63 // सद्योजातंप्रपद्यामीत्यादिकंमंत्रपंचकंपादादिषुप्रत्यङ्गम् // 64 // मूलवर्णास्तनौन्यस्येन्मस्तकेनसिचालिके||मुखेकंठेहदिपुनर्हस्तयोर्दक्षवामयोः ॥६॥नाभौपदोरिति न्यासोदशांगेषुद्वितीयकः॥ पादोरुहन्मुखेमूप्रिंसद्योजातमुखाऋचः॥६४॥विन्यस्यप्रत्यूचंब्रूयाद्धंसहसे तिसाधकः // तृतीयन्यासइत्युक्त कृतेयस्मिञ्छिवोभवेत् // 65 // एवंन्यासत्रयंकृत्वासंपुटंरचये त्ततः॥दिक्षुवासवमुख्यानांन्यासःसंपुटउच्यते // 66 // त्रातारमिंद्रमंत्रणप्राच्यांन्यस्येविडोजसम् // त्वन्नोअग्नेऋचावहिंसुगंनइत्यूचायमम् // 67 // असुन्वंतनितिंचतत्त्वायामीतितोयपम् // आनोनियु द्भिर्वायुचवयंसोमेत्यूचाविधुम् // 68 // हंससइतिवदेत् // 65 // संपुटनामत्रातारमिंद्रमित्यादिमंत्रैःपूर्वादिषुक्रमणमुद्रितांजलिदर्शनं तेषांनतयो पिकार्याः॥ एवंकृतेतेजस्वीभवतीत्यर्थः॥ इतितृतीयन्यासः॥३॥ चतुर्थन्यासमाह // मनोजूति गुह्ये॥१॥ अबोध्यग्निरुदरे॥२॥ 66 // 67 // 68 // For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 69 // 70 // 71 // मूर्धानंदिवो हृदि // मर्माणितेवर्मणा मुखे // जातवेदायदिवापावकोसिशिर सि // 5 // एवंपंचांगेषुन्यासश्चतुर्थः // 72 // षडंगमाह // हृदयमिति // यजामताहृत् // सहस्रशी वालालNDUSSS सटीक // 143|| त०१६ DusseuoscobassassuesSANJAREpassNSARITRATIME Monismadrasad तमीशानमितीशानमानेयादिषुविन्यसेत् // अस्मेरुद्राविधिचोर्द्धस्योनेतिपृथिवीमधः // 69 // एवंय संपुटकुर्यात्सस्याकिल्विषवर्जितः // तंदीप्यमानमीक्षतेप्रेतचौराद्युपद्रवाः // 70 // नपराभवितुंशक्ताःपलायंतेतिदूरतः // मनोजूतिय सेद्गुह्येवोध्यग्निर्जठरानले // 71 // मूर्धानं हृदयेन्यस्येन्मुखेमर्माणितेऋचम् // जातवेदास्तुशिरसिन्यास प्रोक्तश्चतुर्थकः // 72 // हृदयं शिवसंकल्पंशिरःपुरुषसूक्तकम् // शिखाय संभृतइतिवर्मप्रतिरथमतम् // 73 // विभ्राडितिस्मृतंने त्रमत्रंतुशतरुद्रियम् // अयंतुपंचमोन्यासःकृतःसर्वेष्टसिद्धिदः // 74 // Ram143 // शिरः // अयःसंभृतःशिखा // आशुःशिशानाकवचम् // 73 // विभ्राट्नेत्रम् // नमस्तेअस्त्रम् // 74 // aramnavLLOULutantasto5555LL For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवमिति // इत्थंपंचांगन्यासंकृत्वाप्रणम्याष्टांगनत्वात्मानंरुद्रस्वरूपंध्यायेत् // नमस्कारश्चाष्टभिर्मविधे प्रायः॥ मंत्रायथा ॥हिरण्यगर्भः // 1 // याप्राणतः // 2 // ब्रह्मजज्ञानम् // 3 // महीद्यौः // 4 // उपश्वास |य // 5 // अग्नेनय // 6 // यातेअग्ने // 7 // इमंयम // 8 // इमाअष्टाचापठनष्टांगनमस्कुर्यात् // अष्टांगा एवंन्यस्यप्रणम्याथध्यायेदात्मनिशंकरम्॥७॥कैलासाचलसंनिभत्रिनयनंपंचास्यमंबायुतनीलग्रीवमही शभूषणधरंव्याघ्रत्वचाप्रावृतम् // अक्षत्रग्वरकुंडिकाभयकरंचांद्रीकलांविभ्रतंगंगांभोविलसजटंदश भुजवंदेमहेशंपरम् // 76 // दशलक्षंजपेन्मंत्रमयुतंपरमान्नकैः // सघृतैर्जुहुयादग्नौपीठेपूर्वोदितेयजे त् // 77 // पूजायंत्रमथोवक्ष्येतथावरणदेवताः॥ अष्टपषोडशारंचतुर्विंशतिपत्रकम् // 78 // दंतपत्रंततःकुर्य्याच्चत्वारिंशद्दलंततः॥ तद्वहि पुरंकुत्तित्ररुद्रप्रपूजयेत् // 79 // नियथा // उरसाशिरसादृष्टयामनसाश्रद्धयापिच // पद्यांकराभ्यांवाचाचप्रणामोऽष्टांगईरितइति // 75 // ध्यानमाह // कैलासेति // अहीशावासुक्यादयएवभूषणभारायस्यतम् // अक्षमालावरौदक्षयोः॥ कुंडि काकमंडलुरभयंचवामयोः // परमानकै पायसैः॥ 76 // 77 // 78 // दंतपत्रंद्वात्रिंशद्दलम् // 79 // For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मै० म० सटीक // 14 // त०१६ 56REET // 80 // 81 // 8 // कलाद्विकरणाभिधाकलविकरणः // 83 // बलाद्विकरणोबलविकरणः॥ तार्तीये तृतीयावरणे // तत्वावरणेतत्वसंख्यांश्चतुर्विंशतिमितान् // 84 // तानेवाह / सिद्धयइति // तेउक्ताः // इष्ट्वातंकर्णिकामध्येसद्योजातादिकान्यजेत्।।दिक्षुमध्येततोष्टारेनद्यादीनष्टसेवकान्॥८०॥ नंदीमहाका लसंज्ञोगणेशोवृषभस्तथा // ततोगीरिटिःस्कंदउमाचंडीश्वरोऽष्टमः // 8 // ततस्तुषोडशदलेद्विती यावरणेस्थिताः॥ अनंतसूक्ष्मौचशिवएकपादेकरुद्रकः॥८२॥ततस्त्रिमूर्तिश्रीकंठौवामदेवोष्टमोमतः॥ ज्येष्ठःश्रेष्ठोरुद्रकालौकलाद्विकरणाभिधः॥८॥बलोबलाद्विकरणोवलप्रमथनस्तथा // एतान्संपूज्यता तीयेतत्त्वसंख्यान्त्सुरान्यजेत्॥८॥सिद्धयोष्टौमातरोष्टौभैरवाष्टकमित्यमून् // ततश्चतुर्थावरणेभवान्ना गान्नृपानगिरीन् // 85 // भवःशर्वस्तथेशानः पशुपोरुद्रएवच // उग्रोभीमोमहादेव शिवाष्टकमुदा हृतम् // 86 // अनंतोवासुकिश्चायतक्षकश्चकुलीरकः / / कर्कोटकःशंखपाल कंवलाश्वतरावपि // 87 // इमेनागावैन्यपृथूहैहयोर्जुनसंज्ञकः॥ शाकुंतलेयोभरतोनलोरामोनृपाष्टकम्॥ 88 // भवान्अष्टौ // एवंनागनृपतिगिरयोपिप्रत्येकमष्टौ // 85 // तानेवाह // भवति // 86 // नागानाह // अन न्तइति // 87 // नृपानाह // वैन्येति // 88 // Telm14 // For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 399999999999999309198 गिरीनाह // हिमवानिति // 89 // दासवादयइति // प्रत्येकमष्टौ // 90 // तानाह // इन्द्रइति // 91 // | हिमवानिषधोविंध्योमाल्यवान्पारियावकः // मलयोहेमकूटश्चगंधमादनइत्यपि // 89 // गिर्यष्ट कंपंचमेतुचत्वारिंशत्सुरान्यजेत् // वासवादयइत्येषांशक्तयोह्यायुधान्यपि // वाहनानिगजाश्चे तिचत्वारिंशत्सुराःस्मृताः // 90 // इंद्रोग्नियमरक्षांसिवरुणानिलभाधिपाः // ईशानइतिदिक पालाशचीस्वाहावराहजा॥ खङ्गिनीवारुणीचापिवायवीचकुबेरजा // 91 // ईशानीशक्तयः प्रोक्ताः कुलिशंशक्तिदंडकौ // खङ्गपाशोंकुशंचैवगदाशूलेचहेतयः // 92 // ऐरावतोजमहिषौप्रेतमीनपृषन्न राः॥ वृषभोवाहनानिस्युर्दिक्पालानांक्रमादमी // 93 // ऐरावतःपुंडरीकोवामनःकुमुदोंजनः // पुष्पदंतःसार्वभौमःसुप्रतीकश्चदिग्गजाः // 94 // पञ्चाब्जान्येवमापूज्यभूगृहेदिक्षुदिक्पतीन् // पुन रभ्यर्चयेद्धीमान्पष्ठमावरणस्मृतम् // 95 // आग्नेय्यांभूगृहस्याथविरूपाक्षंग्रपूजयेत् // विश्वरूपंया तुधानंवायव्यांतुपशो पतिम् // 96 // ऊर्द्धलिंगमथैशान्यामथोभूसदनादहिः // दिक्षुनागाष्टकंपूज्य मेवंसप्तावृतिर्यजिः // 97 // // 92 // 93 // 94 // पंचाब्जानिपद्मानि // 95 // 96 // यजिःपूजासत्तावृतिःसप्तावरणयुता // 97 // 9 23 SHOCOLLE For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 에이 // 14 // नागाष्टकमाह // शेषाख्यइति // अहयोनागाः॥९८॥ एवमिति // इत्थंपंचांगन्यासंकृत्वा तेषांवर्णानाह॥ सटीक श्वेतइति // पीतोद्वौवासुकिशंखपालौ // कृष्णौमहापद्मकंबलौ // जातीराह // विप्रइति // फणसं शेषाख्यस्तक्षकोनंतोवासुकि शंखपालकः // महापद्म कंबलश्चकर्कोटकइमेऽहयः॥ 98 // श्वेतोनी लकुंकुमाभ-पीतकृष्णावथोज्ज्वलः॥ वर्णतःशेषमुख्याःस्युस्तेषांजातीःफणान्ब्रुवे // 99 // विप्रोवै श्यस्तथाविप्रःक्षत्रियोवैश्यशूद्रकौ // शूद्रश्चक्रमतोज्ञेयाःशेषाद्या-पूजनेबुधैः // 100 // दिग्वाणदशस ताद्रिशरसंख्यानितुक्रमात् // शतानित्रिंशत्रिंशच्चफणास्तेषांसमीरिताः।।१०१॥एवमर्चन्महादेवपंचांग न्यासपूर्वकम् // दशाक्षरजपासक्तोनसीदेत्स्वेष्टसाधने // 102 // मनोहराणिगेहानिसुंदर्योवामलो चनाः // धनमिच्छापूरणांतलभतेशिवसेवनात् // 103 // प्रयोगान्पूर्वमंत्रोक्तान्कुर्वीतात्रदशाक्षरे // दशाक्षरंभजनविप्रोरुद्रजापीभवेत्सदा // 104 // ख्यामाह // दिगिति // शेषःसहस्रफणः॥ तक्षक पंचशतफणः // अनंतःसहस्रफणः // वासुकिशंखपालो॥१४॥ सप्तशतफणौ // महापद्मपंचशतफणः॥ कंबलकर्कोटकौत्रिंशत्फणौ // तथाचैवंप्रयोगः // श्वेतायविप्रवर्णा यसहस्रफणायशेषायनमइत्यादि // 99 // 10 // 101 // 102 // 103 // 104 // For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुबेरमंत्रमाह // यक्षायेति // यथा // यक्षायकुबेरायवैश्रवणायधनधान्याधिपतयेधनधान्यसमृद्धिमेदे हिदापयस्वाहेति // बाणरामाऽक्षरः॥ पंचत्रिंशदर्णः // 105 // 106 // 107 // षडंगमाह // त्रीति // अथमंत्रंकुबेरस्यवक्ष्येसर्वसमृद्धिदम् // यक्षायपदमुच्चार्यकुबेरायपदाच्चवै॥ 105 // श्रवणायधनाणीते धान्याधिपतयेधनम्॥धान्यशब्दात्समृद्धिमेदेहिदापयठद्वयम् // 106 // वाणरामाक्षरोमंत्रोविश्रवामुनिर स्यतु // छंदस्तुबृहतीदेवः शिवमित्रंधनेश्वरः॥१०७॥विचतुःपंचवस्वष्टमुनिवर्गमनूद्भवैः॥ कृत्वापडं गंधनदंचिंतयेदलकागतम्॥ 108 // मनुजवाह्यविमानवरस्थितंगरुडरत्ननिभनिधिनायकम्॥शिवसखं मुकुटादिविभूषितंवरगदेदधतंभजतुंदिलम्॥१०९॥ लक्षमेकंजपेन्मंत्रंदशांशंजुहुयात्तिलैः // धर्मादिपी ठेप्रयजेदंगलोकपहेतयः // 110 // शिवालयेजपेन्मंत्रमयुतंधनवृद्धये // बिल्वमूलोपविष्टेनजप्तोल संधनर्द्धिदम् // 111 // यक्षायहृदयायनमइत्यादि // 108 // ध्यानमाह // मनुजेति // गरुडरत्नंगारुडमणिः // वरगदेदक्षवा BEमयोः // 109 // धर्मादीनिपीठशक्त्याभावः // 110 // 111 // 1 भस्यकुबेरमंत्रस्यविश्रवाऋषिःबृहतीछंदःशिवमिबंधनेश्वरोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थेजपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० षडंगमाह पयंतम् मायापुटारमा // 14 // नयनद्वीषुयु BEWSiwoanemurinoatozakitaneKhabihani मंत्रांतरमाह // आदाविति // सैवरमैव // यथा ॥ॐश्रींॐह्रीं श्रींहीं क्लीं श्रींक्तींवित्तेश्वरायनमइति // 112 // सटीक षडंगमाह // त्रीति ॥ॐश्रींहृत् // ह्रीं श्रींशिरइत्यादि // 113 // गंगामंत्रमाह // प्रणवइति // शिवा नारायणीतिपदद्वयंडेंतम् // दशहरागंगेतिपदद्वयमपिचतुर्थ्यतम् // वहिजायास्वाहा // यथा // ॐनमः त०१६ आदौतारपुटालक्ष्मीस्ततोमायापुटारमा // ततःकामपुटासैवडेंतोवित्तेश्वरोनमः // 112 // षो डशाक्षरमंत्रोयंसर्वदारिद्यनाशनः // त्रिनेत्रनयनद्वीषुयुग्माणैरंगकंमनोः // ध्यानार्चनादिकंसर्व मस्यपूर्ववदाचरेत् // 113 // अथशंभो शिरस्थायादेवसिंधोमनून्ब्रुवे // प्रणवोहृदयंतेशि वानारायणीपदे // तद्वद्दशहरागंगेवह्निजायानखाक्षरः // 114 // मनुासोमुनिश्छंद कृतिगं गास्यदेवता // त्रिवह्निवेदवाणाग्मिनेत्रवर्णैःषडंगकम् // 115 // उत्फुल्लामलपुंडरीकरुचिराकृ ष्णेशविध्यात्मिकाकुंभेष्टाभयतोयजानिदधतीश्वेतांबरालंकृता // हृष्टास्याशशिशेखराखिलनदीशो णादिभिःसेविताध्येयापापविनाशिनीमकरगाभागीरथीसाधकैः // 116 // शिवायैनारायण्यैदशहरायैगंगायैस्वाहेति // नवाक्षरोविंशत्यर्णः // 114 // 115 ॥ध्यानमाह // उत्फुल्ले Ban146 // ति // इष्टोवरः // वरपद्मेदक्षयोः॥ कुंभाभयेवामयोः // मकरगामकरवाहना // 116 // | 1 अस्यमंत्रस्यवेदव्यासऋषिःकृतिच्छंदःगंगादेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयादयः शक्तयउक्ताः // 117 // 118 // 119 // 120 // 121 // 122 // मंत्रांतरमाह // तारइति // वाऐं // गगनंहः सदृक्इयुतः॥ क्रियालः ॥तंद्रीमः॥पिनाकीशोलः // विषमः // लस्वरूपम् // लक्षंजपेद्दशांशेनजुहुयात्सघृतैस्तिलैः // जयादिशक्तिंभिर्युक्तपीठेभागीरथींयजेत् // 117 // प्रयजेतके शरेष्वंगंदलेरुद्रहरिविधिम्॥सूर्यहिमाचलंमेनांभगीरथमपांपतिम्॥१८॥दलागतोमीनकूर्ममंडूकंमक रानपि॥हंसान्कारंडवांश्चक्रवाकान्सारसकान्यजेत् ॥११९॥चतुरस्रशक्रमुख्यानायुधैःसंयुतान्यजेत् // एवंसंसाधितोमंत्रोभीष्टंयच्छतिमंत्रिणाम्॥१२०॥ज्येष्ठशुक्लदशम्यांतांविशेषेणभजेदुधः॥दद्यादशभ्योवि प्रेभ्यादशप्रस्थमितानतिलान्॥१२१॥जवासहस्रंहुत्वाचोपोष्यतत्रविकल्मपः॥सर्वभोगसमायुक्तोजाय तेमानवोभुवि // 122 // तारोनमोभगवतिवाक्सदृग्गगनलिहि // क्रियांतंदीपिनाकीशविपलामूक्ष्मसं युताः // 123 // गंगेमांपावयद्वंद्वमंतेहुतवहांगना गिरिनेत्राक्षरीविद्यास्मृतापातकसंघहृत् // 124 // एतेसूक्ष्मसंयुताइयुताः॥ तेनहिलिहिलिमिलिमिलिाहुतवहांगनास्वाहा।गिरिनेत्राक्षरीसप्तविंशत्या। For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 147 // त०१६ षडंगमाह // रामेति // अंकानव // इयमेवविद्या // आदिमा प्रथमेयेसप्ताः ॐनमोभगवतीतितद्धी नानखराक्षरीविंशतिवर्णाः॥ 125 // मंत्रांतरमाह // तारइति // अॅहिलि 2 मिलि 2 गंगेदेविनमइ ति // 126 // तिथिवर्णःपंचदशार्णः // षडंगमाह // अग्नीति // मन्त्रान्तरमाह // तारइति // तारॐ // मायाहीं // रमाश्रीं // हार्दनमः॥ 127 // स्मृतिर्गः // अत्रिर्दः // सहग्वायुः इयुतोयःयि // वर्महुँ // रामवेदांगवह्नयंकनेत्राणैरंगमीरितम् // इयमादिमसप्ताणत्यक्तोक्तानखराक्षरी // 125 // बाणवे दाग्निरामाग्रिनेत्राणैरंगमीरितम् // तारोहिलिमिलिद्वंद्वेगंगेदेविनमोमनुः // 126 // तिथिवर्णों यमस्याग्रिनेत्राक्ष्यक्षियुगाक्षिभिः // तारोमायारमाहार्दततोभगवतीतिच // 127 // गांस्मृत्य त्रीसहवायुस्तेनमोवर्मफड्मनुः॥ त्रिनेत्रवेदपंचाक्षियुग्माणैरंगमीरितम् // 128 // एषांचतुर्णामं त्राणामुपास्तिःपूर्ववन्मता // वाङ्मायाकमलाकामवेदायोविमिंदुयुक् // 129 // स्वरूपमन्यत् // यथा ॥ॐहीं श्रींनमोभगवतिगंगेदयितेनमोहुंफट् // अष्टादशार्णः // षडंगमाह // त्रीति H // 128 // उपास्तिःपूजा // पूर्ववद्विंशत्यर्णवत् // मणिकर्णिकामंत्रमाह // वागिति // वाऐं // मायाहीं॥ कमलाश्रीं // कामाकीं // वेदाच॥ इंदुयुविषसबिंदुर्मम्मम् // 129 // // 147 // For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मणिकर्णिस्वरूपम् // भगीब्रह्मा कएयुतः।हृदयंनमः॥ध्रुवसंपुटआद्यंतप्रणवयुतः॥१३०॥षडंगमाह॥चंद्रेति॥ *हृत् // ऐंह्रींशिरः // श्रींकींशिखेत्यादि ॥ध्यानमाह // फुल्लेति // असव्यदक्षकरेइंदीवरमालांदधती॥ मणिकर्णिभगीब्रह्माहृदयंध्रुवसंपुटः // मंत्र पंचदशार्णोऽस्यमुनिासोतिशक्करी // 130 // छंद श्री मणिकर्णीतुदेवतासुखपुत्रदा // चंद्रनेत्राक्षिनेत्रेषुवह्निवर्णैःषडंगकम् // 131 // फुल्छेदीवरनिर्मितांकर तलेमालामसव्येकरेबीजापूरफलंसितांबुजमयींमालांदधानाहृदि॥ श्वेतक्षोमवृताशरद्विधुनिभाध्यक्षानि बद्धांजलिर्ध्यातव्यामणिकर्णिकारविसमातोयेशकाष्ठामुखी // 132 // लक्षत्रयंजपेन्मंत्रंजुहुयात्तदशांश तः // पुंडरीकैस्त्रिमध्वक्तैर्यजेत्तांगंगयासमम् // 133 // अयंमनुर्जनैर्जप्तोमोक्षलक्ष्मीप्रयच्छति // सुखं | समस्तंसंतानंसौभाग्यंधनसंचयम् // 134 // अपरेवामेबीजपूरम् ॥शरच्चंद्रकांतिः // तेजसारवितुल्या // तोयेशकाष्ठामुखीपश्चिमाभिमुखी॥ पुंडरीकैः सितांभोजैः॥ गंगयासमंयजेत् // 131 // 132 // 133 // 134 // १औऍहीं श्रीं क्लींभोममणिकर्णिकेनमःभोमितिपंचदशार्णः॥अस्यमंत्रस्यवेदव्यासऋषिःशक्करीछंदःश्रीमणिकणिकादेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः॥ For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सटीक ते. मं०म०गंगामंत्रइवावरणपूजाकुर्यात् // तस्याएवमंत्रांतरमाह॥प्रणवइति // मातोमं // यथा // ममणिकर्णिकेप्रण वात्मिकेनमः // मनुवर्णश्चतुर्दशार्णः // अस्योपासनापंचदशावद्विधेया // मणिकर्णिकोपासकः कुदे // 148 // शेमगधादौमृतोपिब्रह्मवस्यात॥१३५॥१३६॥इतिश्रीमंत्रमहोदधिनौकायांशिवादिमंत्रकथननामषोडशस्तरं गः // 16 // // अथकार्तवीर्यार्जुनमंत्रान्वक्तुंप्रतिजानीते // अथेति // गोपितानन्यैराचार्यैःशंकराचार्य प्रणवोविंदुयुग्मांतेमण्यतेकर्णिकेप्रण // वात्मिकेहृदयमंत्रोमनुवर्णोस्यपूर्ववत् // 135 // विधेयोपास नासर्वामणिकाउपासकः॥कदेशेपिमृतोयातिब्रह्मैवामलमव्ययम् // 136 // इतिश्रीमंत्रमहोदधौ | शिवादिमंत्रकथनंनामषोडशस्तरंगः॥१६॥ ॥अथेष्टदान्मनून्वक्ष्येकार्तवीर्यस्यगोपितान् // यःसु दर्शनचक्रस्यावतार क्षितिमंडले // 1 // वह्नितारयुतारौद्रीलक्ष्मीरनीदुशांतियुक् // वेधाधरेंदुशांत्या व्योनिद्रा(शानिविदुयुक् // 2 // प्रभृतिभिरप्रकाशितान् // 1 ॥मंत्रराजमुद्धरति // वहीति // रौद्रीफः // वह्वीरेफः॥ तारॐ // ताभ्यां युता // तेनफ्रों॥ लक्ष्मी.वः // अग्नींदुशांतियुक् // रबिंदुईयुता // तेनवीं॥ वेधाः कः // धरेंदुशांत्या ढयः लबिंदुईयुतः॥ तेनक्कीं // निद्राभः॥ अशाग्निबिंदुयुक् ऊरबिंदुयुता // तेनबूं // 2 // For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाशम् आं|मायाहीं॥अंकुशाकों॥ पद्माश्रीं॥ वर्महुँ॥अस्त्रंफट् // कार्तवीस्वरूपम् // वाय्वासनोययुतः अनं तोयायुतोरेफः // तेनर्या // वहिजौरेफजकारौ // कर्णसंस्थितौउयुतौ // तेनर्जु // 3 // मेषोनः सदी धना / / पवनोयः॥ हृदंतिकोनमोंतोमनुः कथितः // प्रणवादिविंशत्यर्णः // 4 // ध्रुवॐ // बीजम्॥ नमः पाशोमायांकुशंपद्मावर्मानेकार्तवीपदम् // रेफोवाय्वासनोनंतोवह्निजौकर्णसंस्थितौ // 3 // मेषःसदी घःपवनोमनुरुक्तोहृदंतिकः॥ ऊनविंशतिवर्णीयतारादिर्नखवर्णकः // 4 // दत्तात्रेयोमुनिश्चास्यच्छं दोऽनुष्टुबुदाहृतम् // कार्तवीर्यार्जुनोदेवोबीजंशक्तिधुवश्चहृत् // 5 // शेषायबीजयुग्मेनहृदयविन्यसेदु धः॥ शांतियुक्तचतुर्थेनकामाव्येनशिरोंगकम् // 6 // शक्तिः॥५॥षडंगमाह // शेषेति॥शेषआ|तद्युतेनाद्यबीजद्वयेनहृत् // आकारयुतत्वादन्यस्वरनिवृत्तिः // तेन फ्रोंजी 2 हृदयायनमः॥ शांतीति // ईयुतेनचतुर्थबीजेनकामबीजाढयेनशिरः // कींधूंशिरसेस्वाहा // 6 // 1 ॐफ्रोनीलीभ्रूआहीक्रोश्रींहुंफट्कार्तवीर्यार्जुनायनमः ॥२०॥अस्यकार्तवीर्यार्जुनमंत्रस्यदत्तात्रेयऋषिःअनुष्टुप्छंदःकार्तवीर्यार्जुनोदेवता ॐबीजनमःशक्तिःममाभीष्ट०॥ For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir INCREADJJSJJJD सटीक त०१७ मं०म० BEIइंद्विति // सबिंदुर्वामकर्णऊआढयोयस्याईदृशा अर्धीशयुक्तयाऊयुतयामाययाशिखाम् // हुंशिखायै // 119 // वषट् // सवाग्भ्यामैयुताभ्यामकुशपद्माभ्यांवर्म // बॅकवचायहुं // 7 // वर्मास्त्राभ्यामस्त्रम्॥हुंफट्अस्त्रा इंद्वाट्यवामकर्णाव्यमाययार्घाशयुक्तया // शिखामंकुशपद्माभ्यांसवाग्भ्यांवर्मविन्यसेत् // 7 // वर्मा स्त्राभ्यामस्त्रमुक्तंशेषाणापकंचरेत् // हृदयेजठरेनाभौजठरेगुह्यदेशके // 8 // दक्षपादेवामपादेस क्थिजानुनिजंघयोः // विन्यसेद्धीजदशकंप्रणवद्वयमध्यगम् // 9 // ताराद्यानवशेषार्णान्मस्तकेचल लाटके ॥ध्रुवो श्रुत्योस्तथैवाक्ष्णोर्नसिवक्रेगलेऽसके // 10 // सर्वमंत्रेणसर्वांगेकृत्वाव्यापकमादयः॥ सर्वेष्टसिद्धयेध्यायेत्कार्तवीर्यजनेश्वरम् // 11 // 7165664FRAM यफट् ॥शेषाणैः कार्तवीर्यार्जुनायनमइतिव्यापकम् // वर्णन्यासमाह // हृदयइति // सक्थ्नोरूर्वोर्जानुनोर्ज घयोरेकैकमेव // प्रणवद्वयांतस्थंबीजंन्यसेत् ॥ॐॐहृदिखींॐजठरइत्यादि // 8 // 9 // ताराद्यानितिm१४९।। ॐकांमस्तके // ॐ ललाटेइत्यादि // 10 // 11 // 15888568818616 For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie INGI ध्यानमाह // उद्यदिति // अखिलक्षोणीधवैःसर्वपार्थिवैनतः॥ तावताहस्तशतपंचकेनेषून बाणान्दधत् // हाटकमालयास्वर्णस्रजास्यंदनगोरथस्थितः // 12 // 13 // 14 // 15 // 16 // दिक्षुचोरमदविभंजनादी उद्यत्सूर्यसहस्रकांतिरखिलक्षोणीधर्वदितोहस्तानांशतपंचकेनचधच्चापानिपूंस्तावता // कंठेहाटक मालयापरिवृतश्चक्रावतारोहरे पायात्स्यंदनगोरुणाभवसनःश्रीकार्तवीय्योनृपः // 12 // लक्षमे कंजपेन्मंत्रंदशांशंजुहुयात्तिलैः // सतंदुलैःपायसेनविष्णुपीठेयजेत्तुतम् // 13 // वक्ष्यमाणेदशदले वृत्तभूपुरसंयुते / / संपूज्यवैष्णवी शक्तीस्तत्रावाह्यार्चयेन्नृपम् // 14 // मध्येग्नीशासुरमरुत्कोणेषुहृदया दिकान् // चतुरंगचसंपूज्यसर्वतोत्रंततोयजेत् // 15 // खगचर्मधराध्येयाश्चंद्राभाअंगमूर्तयः // पट्काणषुषडगानिततादिक्षुावादक्षुच।।१६चारमदावभजनमारामदावभजनम्॥आरमदावभजनदत्य मदविभंजनम्॥१७॥दुःखनाशंदुष्टनाशंदुरितामयनाशकौ // दिक्ष्वष्टशक्तयःपूज्या प्राच्यादिषुसितप्र भाः॥ 18 // क्षेमंकरीवश्यकरीश्रीकरीचयशस्करी।।आयुष्करीतथाप्रज्ञाकरीविद्याकरीपुनः॥१९॥ धनकर्यष्टमीपश्चाल्लोकेशाअस्त्रसंयुताः // एवंसंसाधितोमंत्र प्रयोगार्हःप्रजायते // 20 // BaJश्चतुरः॥विदिक्षुद्रुष्टनाशादीन् // दुरितामयनाशकौ // दुरितनाशकोरोगनाशकश्च // 17 // 18 // 19 // 20 // For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ga. त०१७ मं०म०ायंत्रमाह // दिक्पत्रमिति // दशदलंविलिख्यकर्णिकार्यास्वबीजमदन श्रुत्यादिवाचालिखेत् // स्वबी जंफ्रों // मदनालीं // श्रुत्यादिॐ // वाऐं // स्वबीजानिवागंतर्लिखेत् // वर्मातानिप्रणवादीनिद ॥१५॥alशबीजानिदलेषुयस्यतत्तथाशेषाःफटकार्तवीर्यार्जुनायनमइतिदशपत्रांतरेषुयस्यतत् // ऊष्माणःशष सहास्तैराट्या स्वरा केसरेषुयस्यतत्॥ प्रतिकेसरंद्वौद्वौ॥शेषैःकादिभिरूष्महीनैवेष्टितम् ॥स्वकोणेषुल्लसंतो कार्तवीर्यार्जुनस्याथपूजार्थमंत्रमुच्यते // 21 // दिक्पत्रंविलिखेत्स्वबीजमदनश्रुत्यादिवाक्क णिकंवर्मातप्रणवादिवीजदशकंशेषाणपत्रांतरम् // उष्मादयस्वरकेसरंपरिवृतशेषैःस्वकोणोल्लसद्भूतार्ण क्षितिमंदिरावृतमिदंयंत्रंधराधीशितुः // 22 // भूतार्णाः पंचभूतवर्णाःयत्रतादृशंयतक्षितिमंदिरंचतुष्कोणं तेनावृतम् // तृतीयवर्गगाःकर्णवोललाः॥ कर्णीऊऊ ॥ॐललापार्थिवामताइत्यादि।भूतानांवर्णास्त्रयोविंशेतरंगेवक्ष्यते // तत्रस्तंभनेभूतवर्णालेख्याः॥ शांतावाद्या वश्यतेजसाः॥ उच्चाटनेवायवीयाः॥ विद्वेषणेतामसाः॥ मारणेपितैजसा जलस्यमंडलंप्रोक्तं प्रशस्तंशांतिकर्मणिइत्यादिवक्ष्यमाणत्वात् // इदंधराधीशितुःकार्तवीर्यस्ययंत्रम् // 21 // 22 // 1 कर्णिकांतलिखेदित्यर्थः // 100gessesJUSDISABJOSSONSION // 15 // For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kallassagarsuri Gyarmande www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अभिषेकमाह॥शुद्धेति|अष्टगंधैः॥चंदनागुरुवालककुष्टकुंकुमकर्पूररोचनाजटामांसीभिः॥ तत्रतत्रकंभे // // 23 // 24 // स्वजनरंजनजनवश्यताम् // 25 // सुदृशोनारीपुटभेदनेनगरे // 26 // अरिष्टानिफेनिलफला श्रुद्धभूमावष्टगंधैलिखित्वायंत्रमादरात्॥तत्रकुंभंप्रतिष्ठाप्यतत्रावाह्यार्चयेन्नृपम् ॥२३॥स्पृष्ट्वाकुंभंजपेन्म सहस्रविजितेंद्रियः।अभिषिचेत्तदंभोभिप्रियंसर्वेष्टसिद्धये // 24 // पुत्रान्यशोरोगनाशमायुःस्वजनरं जनम्॥वासिद्धिंसुदृशःकुंभाभिषिक्तोलभतेनरः॥ 25 // शत्रूपद्रवमापन्नेमामेवापुटभेदने // संस्था पयेदिदंयंत्रमरिभीतिनिवृत्तये // 26 // // सर्षपारिष्टलशुनकासैार्यतेरिपुः // धत्तूरैःस्तभ्यते निबैद्देष्यतेवश्यतेऽबुजैः // 27 // उच्चायतेविभीतस्यसमिद्भिःखदिरस्यच॥ कटुतैलमहिष्याज्यहोमद्र व्यांजनंस्मृतम् // 28 // यवै तैःश्रियःप्राप्तिस्तिलैराज्यैरघक्षयः॥ तिलतंदुलसिद्धार्थलाजैश्योनृपोभ वेत् // 29 // अपामार्गार्कदूर्वाणांहोमोलक्ष्मीप्रदोऽधनुत् ॥स्त्रीवश्यकृत्प्रियंगूणांपुराणांभूतशांतिदः // 30 // अश्वत्थोदुंबरप्लक्षवटविल्वसमुद्भवाः // समिधोलभतेहुत्वापुत्रानायुर्धनंसुखम् // 31 // नि // पद्मवश्यतेवशीक्रियतेहुतैरितिसर्वत्रान्वयः॥ 27 // 28 // 29 // पुराणांगुग्गुलूनाम् // 30 // 31 // .photoshes For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मलम // 15 // त०१७ निर्मोकासर्पकंचुकः // हेमधतूरः // 32 // कार्यगौरवलाघवात् // अधिककार्यहोमबाहुल्यंअल्पेऽसटीक ल्पम् // 33 // मंत्रभेदानाह // कातेति // दशस्वपिमंत्रेषुडेंतंहृदंतंचतुर्थीनमोंतकार्तवीर्यार्जुनंयोजयेत् // 34 // आद्योदशवर्णः // अन्येनवैकादशवर्णाः // तानाह // स्वेति // फ्रोंकार्तवीर्यार्जुनायनमः इतिप्रथमः॥ निमोकहेमसिर्द्धार्थलवणैश्चोरनाशनम् // रोचनागोमयैःस्तंभोभूप्राप्तिःशालिभिर्हतैः // 32 // होमतं ख्यातुसर्वत्रसहस्रादयुतावधि // प्रकल्पनीयामंत्रःकार्यगौरवलायवात् // 33 // कार्तवीर्य्यस्यम त्राणामुच्यतेसिद्धिदाभिदाः॥ कार्तवीर्यार्जुनंडेंतमंतेचनमसान्वितम् // 34 // स्ववीजाढयोदशार्णो सावन्येनवशिवाक्षराः॥ आयबीजदयेऽनासौद्वितीयोमंत्रईरितः // 35 // स्वकामाभ्यांतृतीयोसौस्व भ्रूभ्यांतुचतुर्थकः // स्वपाशाभ्यांपंचमोसौपष्टःस्वेनचमायया // 36 // स्वांकुशाभ्यांसप्तमःस्या त्स्वरमाभ्यामथाष्टमः॥ स्ववाग्भवाभ्यांनवमोवर्मास्त्राभ्यांतथांतिमः॥ 37 // द्वितीयमाह // आद्येति // फ्रोंवीकार्तवीद्वितीयः // 35 // फ्रोंक्लीकार्त० इतितृतीयः // फ्रोंधूंकात इति // 15 // चतुर्थः // फ्रोंआंकात इतिपंचमः // फ्रोहींका इतिषष्ठः // 36 // फ्रोंक्रोंकाइतिसप्तमः॥ फ्रोश्रींकार्त० इत्यष्टमः // फ्रोंऐंकात इतिनवमः // हुंफटकात इतिदशमः // 37 // SADNEPART sas For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इमेदशमंत्रायदाप्रणवाद्यास्तदाऽद्यएकादशार्णः अन्येऽपि द्वादशार्णाः // 38 // 39 // 40 // पूर्ववत मंत्रराजवत् // यजनमतम् // तेषांषडंगमाह // दीपेंति // प्रांहृत् // प्रीशिरइत्यादि // 41 // चतुर्दशार्ण द्वितीयादिनवांतेतुबीजयोःस्याव्यतिक्रमः॥ मंत्रेतुदशमेवर्णानववर्मास्त्रमध्यगाः // 38 // एतेषुमंत्र वय्येषुस्वानुकूलमर्नुभजेत् // एषामायेविराट्छन्दोन्येषुत्रिष्टुबुदाहृतम् // 39 // दशमंत्राइमेप्रोक्ताः पदाःस्युःप्रणवादिकाः // तदादिमःशिवाणःस्यादन्येतुद्वादशाक्षराः // 40 // एवंविंशतिमंत्राणां यजनंपूर्ववन्मतम् // त्रिटुप्छन्दस्तदायेस्यादन्येषुजगतीमता // 41 // दीर्घाढयमूलचीजेनार्या I देपांषडंगकम् // तारोहत्कार्तवीर्यार्जुनायवर्मास्त्रठद्वयम् // चतुर्दशा|मंत्रोयमस्येन्यापूर्ववन्मता // // 42 // भूनेत्रसप्तनेत्राक्षिवणैरस्यांगपंचकम् // तारोहद्भगवान्डेंतःकार्तवीर्यार्जुनस्तथा // 13 // वर्मास्त्राग्निप्रियामंत्र प्रोक्तोष्टादशवर्णवान् // त्रिवेदसप्तयुग्माक्षिवर्णैःपंचांगकंमनोः // 44 // माह // तारइति ॥ॐनमःकार्तवीर्यार्जुनायहुंफट्स्वाहेति // इज्यापूजा // 42 // पंचांगमाह // भूने वेति // अष्टादशार्णमाह // तारइति // हृतनमः // कार्तवीर्यार्जुनस्तथेतिङ्तः // ॐनमोभगवतेकार्तवीर्या र्जुनायहुंफट्स्वाहाइति // 43 // 44 // For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 152 // मंत्रांतरमाह // नमइति // यथा // नमोभगवतेश्रीकार्तवीर्यार्जुनायसर्वदुष्टांतकायतपोबलपराक्रमपरिपाटीक लितसप्तद्वीपायसवराजन्यचूडामणयेमहाशक्तिमतेसहस्रबाहवेहुंफट्इति // 45 // 46 // 47 // अस्यषडं गमाह // राजन्येति॥डेंतैश्चतुर्थ्यतैःपदैःषडंगस्यात् / / यथा ॥राजन्यचक्रवर्तिनेहृत् // वीरायशिरः॥ शूराय मत.१७ नमोभगवतेश्रीतिकार्तवीर्यार्जुनायच // सर्वदुष्टांतकायेतितपोबलपराक्रमः // 45 // परिपालितस तांतेद्वीपायसर्वरापदम् // जन्यचूडामणांतेयेसर्वशक्तिमतेततः॥४६॥ सहस्रबाहवेप्रांतेवर्मास्त्रांतोमहाम नुः // त्रिषष्टिवर्णवान्प्रोक्तःस्मरणात्सर्वविघ्नहृत् // 47 // राजन्यचक्रवर्तीचवीर शूरस्तृतीयकः // माहिष्मतीपतिःपश्चाच्चतुर्थःसमुदीरितः॥ 48 // रेखांबुपरितृप्तश्चकारागेहप्रवाधितः // दशास्यश्चे तिषभिःस्यात्पदैतैःषडंगकम् // 49 // सिंच्यमानंयुवतिभिःक्रीडंतनर्मदाजले // हस्तै लोपं रुंधतध्यायेन्मत्तंनृपोत्तमम् // 50 // एवंध्यात्वायुतंमंत्रजपेदन्यत्तुपूर्ववत् // पूर्ववत्सर्वमेतस्यस माराधनमीरितम् // 51 // शिखा // माहिष्मतीपतयेवर्म॥ 48 ॥रेवांबुपरितृप्तायनेत्रम् // कारागेहप्रबाधितदशास्यायास्त्रम् // 49 // // 152 // // 50 // स्मरन्अयुतंजपेत् // अन्यत्प्रयोगादिकंपूर्ववच्चतुर्दशाष्टादशावत् // 51 // For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आनुष्टुभमंत्रांतरमाह // कातेति // कार्तवीर्यार्जुनोनामराजाबाहुसहस्रवान् // तस्यसंस्मरणादेवहृतंन / ष्टंचलभ्यतइति // 52 // 53 // गायत्रीमाह // कार्तवीर्यायविद्महेमहावीर्यायधीमहि तन्नोर्जुनःप्रचोदयादि कार्तवीर्यार्जुनोवर्णान्नामराजापदंततः // उक्त्वावाहुसहस्रांतेवान्पदंतस्यसंततः // 52 // स्मरणा देववर्णाहृतंनष्टंचसंपठेत् // लभ्यतेमंत्रवर्योऽयंद्वात्रिंशद्वर्णसंज्ञकः॥५३॥ पादैःसर्वेणपंचांगंध्यान योगादिपूर्ववत् // कार्तवीर्यायशब्दांतेविद्महेपदमीरयेत् // 54 // महावीर्यायवर्णातेधीमहीतिपदं वदेत् // तन्नोर्जुनःप्रवीतेचोदयात्पदमीरयेत् // 55 // गायव्येषार्जुनस्योक्ताप्रयोगादौजपेत्तुताम् // अनुष्टुभंमनुरात्रौजपतांचौरसंचयाः // 56 // पलायंतेगृहादूरंतर्पणाद्वचनादपि // अथोदीपविधि वक्ष्येकार्तवीर्यप्रियंकरम् // 57 // वैशाखेश्रावणेमार्गेकार्तिकाश्विनपौषतः // माधफाल्गुनयो मासेदीपारंभःप्रशस्यते // 58 // तिथौरिक्ताविहीनायांवारेशनिकुजौविना // हस्तोत्तराश्विरौद्रेषु पुष्यवैष्णववायुभे॥१९॥ ति॥५४॥५५॥५६॥ दीपविधानमाह अथोइति // 5 // आरंभेमासानाह // वैशाखइति // 58 // रिक्ताश्च तुर्थीनवमीचतुर्दश्यस्तद्रहिततिथौ।नक्षत्राण्याह॥हस्तेति॥रौद्रमार्दा // वैष्णवं श्रवणंवायुभंस्वातिः॥ 59 // For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 153 // त०१७ द्विदैवतविशाखा // योगानाह // चरमति // चरमे वैधृतो रात्रावखिलायांपूर्वाहेच // 60 // 61 // // 62 // 63 // विधिमाह // आद्यइति // कौभूमौ // 64 // 65 // स्मरंक्लीं // 66 ॥षडान् ॐफ्रोबींबूं द्विदैवतेचरोहिण्यांदीपारंभ-प्रशस्यते // चरमेचव्यतीपातेधृतोवृद्धोसुकर्मणि // 60 // प्रीतौहर्षेचसौ भाग्येशोभनायुष्मतोरपि // करणेविष्टिरहितग्रहणेोदयादिषु // 61 // एषुयोगेषुपूर्वाह्ने दीपारंभःकृतःशुभः // कार्तिकेशुक्कसप्तम्यांनिशीथेतीवशाभनः // 62 // यदितत्ररवारः श्रवणंभंतुदुर्लभम् // अत्यावश्यककार्येषुमासादीनांनशोधनम् // 63 // आद्यापोष्यनियतो ब्रह्मचारीशयीतकौ // प्रातःस्नात्वाशुद्धभूमौलिप्तायांगोमयोदकैः // 64 // प्राणानायम्यसंकल्पंन्यासा न्पूर्वोदितांश्चरेत् // षटोणंरचयेद्भूमौरक्तचंदनतंदुलैः // 6 // अंतःस्मरंसमालिख्यषट्कोणेषुसमा लिखेत्।।मंत्रराजस्यषड्वर्णान्कामवीजविवर्जितान्॥६६॥सृणिपद्मावर्मचास्त्रपूर्वाद्याशासुसंलिखेत्॥नवा र्वेष्टयेत्तच्चत्रिकोणताहःपुनः।।६७॥एवंविलिखितेयंत्रेनिध्याद्दीपभाजनम् // स्वर्ण रजतोत्थंवाता | प्रजंतदभावतः॥६८॥कांस्यपात्रंमृन्मयंचकनिष्ठंलोहजमृतौ॥शांतयेमुद्गचूर्णोत्थंसंधौगोधूमचूर्णजम्६९ हीमिति षट्कोणेषुस्वाप्रमारभ्यलिखेत् // क्रोश्रींहुंफडितिदिक्षु // शेषेर्नवाक्षरैर्वेष्टयेत् // 67 // 68 // 69 // am153 // For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पात्रमानमाह बुध्नइति // बुधेमूले // ऊवचपात्रंकुर्यात् // कियत्तत्राह // अर्केति // मूलेऊव चद्वादशादिमानैरंगुलै कार्यम् // शरार्कपलभाजनम् // पंचविंशत्युत्तरशतपलमितपात्रम् // 70 // 71 // 72 // द्वीति // सहस्रद्वयमितेघृते शरशिवपंचदशोत्तरशतपलंताम्रपात्रम् // अक्षिशरसंख्यातं द्विपंचाशत्पल बुध्धेपूर्द्धसमानंतुपात्रंकुर्यात्प्रयत्नतः // अर्कदिग्वसुषट्पंचचतुराभांगुलैर्मितम् ॥७०॥आज्येपलसह स्त्रंतुपात्रंशतपलैःकृतम्॥आज्येयुतपलेपात्रंपलपंचशतीकृतम् // 71 // पंचसप्ततिसंख्येतुपात्रषष्टिपलं मतम् // त्रिसहस्रघृत पलेशरार्कपलभाजनम् // 72 // द्विसहस्रेशरशिवंशताःत्रिंशतामतम् ॥श तेक्षिशरसंख्यातमेवमन्यत्रकल्पयेत् // 73 // नित्यदीपेवह्निपलंपात्रमाज्यंपलंस्मृतम् // एवंपात्रंप तिष्ठाप्यवर्ती सूत्रोत्थिता क्षिपेत् // 74 // एकातिस्रोथवापंचसप्ताद्याविषमाअपि // तिथिमानाया सहस्रतंतुसंख्याविनिर्मिता // 75 // गोघृतंप्रक्षिपेत्तत्रशुद्धवस्त्रविशोधितम् // सहस्रपलसंख्यादि दुशांतंकार्यगौरवात् // 76 // मितम् // अन्यत्रैवमेवघृतानुसारेणपात्रंकल्प्यम्॥७३॥वद्विपलंत्रिपलम् // 74 // विषमवर्तिकाएकाद्याएकोत्तर शतान्ताज्ञेयाः // तिथीति // पंचदशादिसहस्रपर्यतं यातंतुसंख्यातयाविनिर्मिता कृताः // 75 // 76 // For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir are मं०म०तदर्धमष्टांगुलंतदर्धचतुरंगुलम् // 77 // पात्रादक्षिणेचतुरंगुलभूमित्यक्त्वारिकांभूमौनिक्षिपेत् // अधो सटीक यस्यास्तांदक्षिणस्यांधारायस्यास्ताम् // 78 // 79 // 80 // 81 // द्वीषुभूमितोद्विपंचाशदुत्तरशताक्षरो // 15 // Idli017 सुवर्णादिकृतारम्यांशलाकांपोडशांगुलाम् // तदीवातदीवासूक्ष्मागांस्थूलमूलकाम् // 77 // वि मुंचेदक्षिणेभागेपात्रमध्येकृतारकाम्।।पात्राद्दक्षिणदिग्देशेमुक्त्वांगुलचतुष्टयम् // 78 // अधोग्रांदक्षिणा धारांनिखनेच्छुरिकांशुभाम् // दीपप्रज्वालयेत्तत्रगणेशस्मृतिपूर्वकम् // 79 // दीपात्पूर्वन्तुदिग्भागेसर्व तोभद्रमंडले // तंदुलाष्टदलेवापिविधिवत्स्थापयेतटम् // 80 // तत्रावाह्यनृपाधीशंपूर्ववत्पूजये सुधीः // जलाक्षता:समादायदीपंसंकल्पयेत्ततः // 81 // दीपसंकल्पमंत्रोऽथकथ्यतेद्वीषुभूमितः॥ प्रणवःपाशमायेचशिखाकार्ताक्षराणिच // 82 // वीर्यार्जुनायमाहिष्मतीनाथायसहस्रच // बाहवेइतिवर्णान्तेसहस्रपदमुच्चरेत् // 83 // क्रतुदीक्षितहस्तायदत्तात्रेयप्रियायच // आत्रेय्यायानु सूयांतगर्भरत्नायतत्परम् // 84 // Fam15 // दीपसंकल्पेमंत्रः // तमाह // प्रणवइति // पाश // मायाह्रीं // शिखांवषट् // 82 // 83 // 84 // LOLLO For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वामकर्णेदुस्थितौनभोग्नीऊबिंदुयुतौहरौतेनहूं // पाशआं॥ अमुकमितिपदस्थानेसाध्यनामोच्चार्यम् // 85 // मायाह्रीं / तारॐ॥स्वंबीजंफ्रो॥आत्मभूःक्लीं // 86 // 87 // आकाशद्वयंहद्वयम्॥ वामनेत्रचंद्रयुतई बिंदुयुतं हींहीं // शिवाह्रीं॥वेदादिकामचामुंडाः ॐक्लींत्री॥तुपूतवर्गपवर्गों // 48 // नेत्रबाणधराक्षरोद्विपंचाशदुत्तरश तार्णः॥ यथा ॥ऐंआह्रींवषट्कार्तवीर्यार्जुनायमाहिष्मतीनाथायसहस्रबाहवेसहस्रक्रतुदीक्षितायदतात्रेय नभोग्नीवामकर्णेदस्थितौपाशइमंततःगदीपगृहाणअमुकंरक्षरक्षपदंपुनः॥८६॥ दुष्टान्नाशययुग्मंस्या त्तथापातयघातय / / शत्रूचहिद्वयंमायातारःस्वंवीजमात्मभूः // 86 // वह्निजायाअनेनाथदीपवर्येणप श्चिमाभिमुखेनामुकुंरक्षअमुकांतेवरप्रदा।।८७॥नायाकाशद्वयंवामनेत्रचंद्रयुतंशिवा॥वेदादिकामचामुं डास्वाहातुसबिंदुकौ // 88 // प्रणवोग्निप्रियामंत्रोनेत्रवाणधराक्षरादत्तात्रेयोमुनिर्मालामंत्रस्यपरिकी र्तितः॥८९॥छंदोमितंकार्तवीर्यार्जुनोदेवःशुभावहः॥ चामुंडयाषडंगोनिचरेत्पदीर्घयुक्तया // 90 // प्रियायआत्रेयायानुसूयागर्भरत्नय आइमंदीपगृहाणअमुकंरक्षरदुष्टान्नाशयरपातय 2 घातय 2 शत्रून्ज हि रहींफ्रोंकीस्वाहा // अनेनदीपवर्येणपश्चिमाभिमुखेनअमुकंरक्ष // 89 // अमुकवरप्रदानायहींहींहीं ॐकींब्रीस्वाहातंर्थदंधनपंफंबंभमंॐस्वाहेतिमंत्रः॥चामुंडयाब्रीमीतिबीजेनवांनींबूंवौंवाइतिषडंगं // 9 // 1 अस्यकार्तवीर्यमालामंत्रस्यदत्तात्रेयऋषिःअमितंछंद कार्तवीर्यार्जनोंदवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः / / For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०मध्यात्वापूर्वोक्तविधिना // 91 // नवाक्षरमाह // तारइति // तारॐ॥ अनंतोबिंदुयुतः // मायाहीं॥ स्वं सटीक वामनेत्रयुक्ती // कूर्माग्नीवरौशांतिचंद्राढयोईबिंदुयुतौतेनीं // वह्निनारीस्वाहा // अंकुशंक्रों ॥ध्रुव // 15 // ध्यात्वादेवंततोमंत्रंपठित्वांतेक्षिपेजलम् // ततोनवाक्षरमंत्रसहस्रंतत्पुरोजपेत् // 91 // तारोऽनंतो सत. 17 विदुयुक्तोमायास्ववामनेत्रयुक् // कूर्माग्रीशांतिचन्द्राढ्यौवह्निनार्यकुशंध्रुवः // 92 // ऋषिःपूर्व स्मृतीनुष्टुप्छन्दोह्यन्यत्तुपूर्ववत् // सहस्रंमंत्रराजंचजपित्वाकवचंपठेत् // 93 // एवंदीपप्रदानस्यक र्ताऽप्रोत्यखिलेप्सितम्॥दीपप्रबोधकालेतुवर्जयेदशुभांगिरम् // 94 // विप्रस्यदर्शनंतत्रशुभदंपरिको तितम् // शूद्राणांमध्यमंप्रोक्तम्लेच्छस्यवधबंधदम्।।९५॥आख्वोत्वोर्दर्शनंदुष्टंगवावस्यसुखावहम् // दीपज्वालासमासिद्धयैवक्रानाशविधायिनी // 96 // // 92 // पूर्वोदत्तात्रेयः // अन्यत्षडङ्गादिकवचम् // हुंडामरोक्तम् // 93 // दीपप्रारंभेशकुनमाह॥दीपेति // // 94 // 95 // आख्वोत्वोर्मूषकमार्जारयोः // 96 // // 15 // 1 अस्यनवाक्षरकार्तवीर्यमंत्रस्पदत्तात्रेयऋषिःअनुष्टुप्छंदाकार्तवीर्यार्जुनोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थंजपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir geeta rrrrorecasSECASSS // 97 // 98 // 99 // 10 // वसुपलैरष्टपलैः॥ अंतरायतोविघ्नेभ्यः॥ 101 // भूशयंभूमिशयनम् // 102 // सशब्दाभयदाकर्तुरुज्ज्वलासुखदामता // कृष्णाशत्रुभयोत्पत्तीवमंतीपशुनाशिनी // 97 // कृतेदी पेयदापात्रंभ दृश्येतदैवतः // पक्षादक्तदागच्छेद्यजमानोयमालयम् // 98 // वय॑तरंयदाकु उत्कार्यसिद्धलिंवतः // नेत्रहीनोभवेत्कर्तातस्मिन्दीपांतरेकृते // 99 // अशुचिस्पर्श नेत्वाधिःपनाशेतुचौरभीः // श्वमार्जाराखुसंस्पर्शभवेद्भूपतितोभयम् // 100 // यात्रारंभे वसुपलैःकृतोदीपोऽखिलेष्टदः // तस्मादीप प्रयत्नेनरक्षणीयोऽतरायतः // 101 // आसमाप्तेःप्रकुर्वी तब्रह्मचर्यचभूशयम् // स्त्रीशूद्रपतितादीनांसंभाषामपिवर्जयेत् // 102 // जपेत्सहस्रप्रत्ये कंमंत्रराजनवाक्षरम् // स्तोत्रपाठप्रतिदिनंनिशीथिन्यांविशेषतः // 103 // एकपादेनदीपास्थि त्वायोमंत्रनायकम् // सहस्रप्रजपेद्रात्रीसोऽभीष्टंक्षिप्रमाप्नुयात् // 304 // समाप्यशोभनेघस्रेसंभोज्य द्विजनायकान् // कुंभोदकेनकर्तारमभिषिचन्मनुस्मरन् // 105 // कर्तातुदक्षिणांदद्यात्पुष्कलांतो पहेतवे // गुरौतुष्टेददातीष्टंकृतवीर्यसुतोनृपः॥ 106 // निशीथिन्यांरात्रौ // 103 // 104 // 105 // 106 // E For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir NEL 00. मं० म. // 156|| bal ที่เจสสสสสสสสสสสสสสส रत्नादिदानेनगुरुंवृत्वाधरापते कार्तवीर्यस्यदीपदानंकारयेदित्यन्वयः // 107 // 108 / / 109 // अजा सटीक दिघृतंकनीयोऽधर्मः॥ 110 // 111 // 112 // 113 // 114 // यथाकथंचिदिति // नित्यदीपेपूर्वोक्तस्य | गुज्ञियास्वयंकुर्याद्यदिवाकारयेद्गुरुम्॥कृत्वारत्नादिदानेनदीपदानंधरापतेः।०७।गुर्वाज्ञामंतराकुर्यात० 17 धोदीपस्वेष्टसिद्धये॥प्रत्युतानुभवत्येषहानिरेवपदेपदे॥१०८॥दीपदानविधिब्रूयात्कृतघ्नादिषुनोगुरुः॥ दुष्टेभ्यःकथितोमंत्रोवतुर्दुःखावहोभवेत्।१०९।उत्तमंगोघृतंप्रोक्तंमध्यमंमहिषीभवम्॥तिलतैलेतुताहरु स्यात्कनीयोजादिजंघृतम् ॥११॥आस्यरोगेसुगंधेनदद्यात्तैलेनदीपकम् // सिद्धार्थसंभवेनाथद्विषतां नाशहेतवे।।१११॥सहस्रेणपलैर्दीविहितेचेन्नदृश्यते // कार्यसिद्धिस्तदाकु-त्रिवारदीप्जविधिः // // 112 // तदासदुर्लभंकायंसिद्धयत्येवनसंशयः // यथाकथंचिद्यःकुर्य्यादीपदानस्ववेश्मनि // // 113 // विघ्नाःसर्वेऽरिभिःसाकंतस्यनश्यंतिदूरतः // सर्वदाजयमाप्नोतिपुत्रान्पौत्रान्धनंयशः // // 114 // यथाकथंचिद्योदीपंनित्यंगेहेसमाचरेत्॥कार्तवीर्यार्जुनप्रीत्यैसोऽभीष्टलभंतेनरः॥ 115 // पात्रघृतनियमस्यानावश्यकतादर्शयति // त्रिपलमितेपात्रे एकपलघृतेननित्यंदीपोदेयः // यथाकथं चिद्वासर्वथादातव्यः // 115 // Repssscussessmenseasures For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपदानप्रियोऽर्जुनस्तत्प्रसंगादन्यदेवानांयद्वदतिप्रियंतदाह॥मार्तडःसूर्योनमस्कारप्रियः॥दुर्गासुंदरी।११६। ॥११॥इतिमंत्रमहोदधिनौकायांकार्तवीर्यार्जुनमंत्रनिरूपणंसप्तदशस्तरंगः // 17 // अथकालरात्रिमंत्रमाह तारेति // तारॐआवाऐं // शक्तिह्रीं // कंदर्प क्लीं // रमाश्रीं // अग्रेस्वरूपम् // यथाऐवीं क्लीं श्रींकाढेश्व दीपप्रियःकार्तवीर्योमार्तडोनतिवल्लभः॥ स्तुतिप्रियोमहाविष्णुर्गणेशस्तर्पणप्रियः // 116 // दुर्गाऽ र्चनप्रियानूनमभिषेकप्रियःशिवः // तस्मात्तेषांप्रतोपायविदध्यात्तत्तदादृतः // 17 // इतिमंत्रमहो दधौकार्तवीर्य्यमंत्रकथनंनामसप्तदशस्तरंगः॥१७॥ // कालरात्रिमथोवक्ष्यसपनगणसूदनीम्।।तारवा शक्तिकंदर्परमा काङ्गेश्वरीतिच // 1 // सर्वजनमनोवर्णाहरिसर्वमुखांततः / / स्तंभन्यतेसर्वराजवशं करिपदंततः॥२॥ सर्वदुष्टनिर्दलनिसर्वस्त्रीपुरुषार्णकाः॥ कर्षिणीतिततोवंदीशृंखलास्त्रोटयद्वयम्॥३॥ सर्वशत्रून्भंजयद्विदृनिर्दलयद्वयम् // सर्वस्तंभययुग्मंस्यान्मोहनास्त्रेणतत्परम् // 4 // रिसर्वजनमनोहरिसर्वमुखस्तंभनिसर्वराजवशंकरि सर्वदुष्टनिर्दलनि सर्वस्त्रीपुरुषाकर्षिणिबंदीशंखलास्त्रो टय 2 सर्वशत्रून्भंजय 2 द्वेष्टन्निर्दलय 2 सर्वस्तंभय 2 मोहनास्त्रेणद्वेषिणउच्चाटय 2 सर्ववशंकुरु 2 स्वाहादेहि सर्वकालरात्रिकामिनिगणेश्वरिनमइतिगुणरामधराक्षरात्रयस्त्रिंश उत्तरशतार्णा // 1 // // 3 // 4 // For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ad मं०म० // 157|| m सटीक // 5 // 6 // कालिकाबीजंक्रीं॥७॥८॥ वेदनेवाणैश्चतुर्विशतिवर्णैः॥ बाणाक्षिवर्णकैःपंचविंशतिवर्णः॥९॥ प्रनंदचंद्राक्षरैरैकोनविंशत्यर्णैः // 10 // ध्यानमाह // उद्यदिति // दंडवरेदक्षयोः // लिङ्गभुवने त०१८ द्वषिणःपदमुच्चार्यततउच्चाटयद्वयम् // सवैवशंकुरुद्वंद्वंस्वाहादेहियुगंपुनः // // सवैचकालरात्रात कामिनीतिगणेश्वरि // नमोंतेयंमहाविद्यागुणरामधराक्षरा // 6 // ऋषिर्दक्षोतिजगतीछन्दोलकनिवा सिनी // देवताकालरात्रिःस्यात्कालिकाबीजमीरितम् // 7 // मायाराज्ञीतिशक्तिःस्यानियोगःस्वेष्टसि द्धये // पंचाङ्गुलिषुताराद्यविन्यसेद्वीजपंचकम्॥८॥हृदयंवेदनेवाणैःशिरोबाणाक्षिवर्णकैः॥ प्रोक्ताशिर्खे कविंशत्यावर्माष्टादशभिःस्मृतम्॥९॥पइिंशत्यानेत्रमस्त्रंनंदचंद्राक्षरैर्मतम्॥विधायैवषडंगानिध्यायेद्विश्व विमोहिनीम् // 10 // उद्यन्मार्तडकांतिविगलितकारीकृष्णवस्त्रावृतांगीदंडलिंगंकराजैर्वरमथभुवनंसं दधानांत्रिनेत्राम्॥नानाकल्पौषभासांस्मितमुखकमलांसेवितांदेवसंधैर्मायाराज्ञीमनोभूशरविकलतनूमा श्रयेकालरात्रिम्॥११॥अयुतंप्रजपेन्मंत्रंदशांशंजुहुयात्तिलैः॥पयोरुहैर्वाविप्रेद्रान्संतlश्रेयआप्नुयात् / 12 वामयोः // भुवनंब्रह्मांडम् // नानाकल्पैविभासांविविधाभरणसमूहशोभिताम् // मनोभूशरवि Ba|157 // |कलतनूंकामबाणव्याकुलशरीराम् // 11 // 12 // 1 अस्यकालरात्रिमंत्रस्यदक्षऋषिःजगतिछंदःअलनिवासिनीकालरात्रिर्देवताक्रीबीजमायाराज्ञीतिशक्तिममाभीष्ट० // uvNLOLLCOLastamanna For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir alकालिकापीठेजयादिशक्तियुते // पूजायंत्रमाह // विंद्विति // 13 // कलापत्रंषोडशदलम् // तिस्रोरे खायस्यतत् // धरणीगृहंचतुष्कोणम् // 14 // कामनाभेदाल्लेखनभेदमाह // तदिति // क्षीरद्रोक्षी तांयजेत्कालिकापीठेपूजार्थयंत्रमुच्यते // बिंदुत्रिकोणषट्कोणवृत्ताष्टदलवृत्तकम् // 13 // कलापत्रंपु नवृत्तंत्रिरेखंधरणीगृहम् // चतुर्दारयुतंकृत्वाविंदौदेवीमथार्चयेत् // 14 // तद्यविलिखेटूक्षीरद्रोः फलकेपिवा // शांतयेत्वष्टगंधेनलेखिन्याचंपकोत्थया॥१५॥क—रागुरुकर्पूररोचनारक्तचंदनम् // कुं कुमचंदनंचापिकस्तूरीत्यष्टगंधकम् // 16 // सिंदूरहिंगुलाभ्यांचवश्यायविलिखेत्सुधीः॥ सारसोद्भवले खिन्यास्तंभनेकोकिलच्छदैः // 17 // हरितालहरिद्राभ्यांमारणेवायसच्छदैः // धत्तूरभानुनिर्गुडीख राश्वमाहिषासृजा // 18 // एवंविलिखितेयवेकुर्यादावरणार्चनम् // त्रिकोणेदेवतास्तिस्रोवामावर्तेन पूजयेत्॥१९॥संमोहिनींमोहिनींचतृतीयांचविमोहिनीम्॥षट्सुकोणेपुवह्नयादिषडंगानिततोयजेत्२०॥ रवृक्षस्याश्वत्थोदुंबरप्लक्षवटान्यतमस्य // 15 // 16 // स्तंभनेकोकिलपक्षैः // 17 // हरितालहरि द्राभ्यामित्यन्वयः // मारणेवायसच्छदैःकृत्वा // धतूररसादिभिलिखेत् // इत्यस्यान्वयः॥ भानुरर्क, रसः॥ खरादीनामसृजारक्तन // 18 // 19 // 20 // LastactOLLOLLOLE Preenasasses HEREmernand For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 158 // त०१८ स्वराअंनमइत्यादयः॥ हलोव्यंजनानिकंनमइत्यादीनि // कलादलेषोडशपत्रे // 21 // मंजुघोषयासह // घृताची॥२२॥२३॥मंत्रादिमामिति।मंत्रादौवर्तमानंबीजपंचकंस्वदेवतायुतंयजेत्॥यथाॐपरमात्मनेनमः // वृत्तेस्वराःसमभ्यामातरोष्टौवसुच्छदे // कादिक्षांताहलोवृत्तेउर्वश्याद्या कलादले ॥२१॥उर्वशीमेन कारंभाघृताचीमंजुघोषया // सहजन्यासुकेशीस्यादष्टमीतुतिलोत्तमा // 22 // गंधर्वीसिद्धकन्याचकि वरीनागकन्यका विद्याधरीकिंपुरुषायक्षिणीतिपिशाचिका॥२३॥पुनर्वृत्तेयजेन्मंत्रीदेवतादशकंयथा // मंत्रादिमांपंचवीजांस्वस्वदेवतयायुताम्॥२४॥पंचवाणान्स्ववीजाद्यानित्युक्त्वादशदेवताः // भूगृहां तःसमभ्याअणिमाद्यष्टसिद्धयः॥ 25 // भूगृहस्यत्रिरेखासुसंपूज्यानवदेवताः॥इच्छाशक्ति क्रियाश क्तिर्ज्ञानशक्तिरितित्रयम्॥२६॥आद्यरेखागतंपूज्यद्वितीयायांशिवाजकाः॥तृतीयायांतुरेखायांसत्वमुख्यं गुणत्रयम् // 27 // पूर्वादिषुचतुर्दाघुगणेशंक्षेत्रपालकम्॥बटुकंयोगिनीश्चापियजेदिंद्रादिकानपि // 28 // ऐंसरस्वत्यैनमः॥हींगौर्यै० / क्लींकामाय० // श्रीरमायै०इति // 24 // पंचेति // स्वबीजाद्यान् // बाणान् द्रांद्रावणबाणायनमःइत्यादिपूर्वोक्तान् // अणिमादयउक्ताः // 25 // 26 // शिवाजकारुद्रविष्णुब्रह्माणः॥ सत्वमुख्यसत्वरजस्तमांसि // 27 // 28 // // 158 // For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org Sapse // 29 // 30 // 31 // 32 // वशीकरणमाह // शनिवारइत्यादिहरिद्राक्षतपुष्पैश्वस्पर्शयितुर्भवेदित्यं एवंबाह्यार्चनंकृत्वादेवीपार्श्वगताःपुनः // देव्योद्वादशसंपूज्या प्रतिदित्रितयंत्रयम् // 29 // माया याकालरात्रिश्चतृतीयावटवासिनी // गणेश्वरीचकाहाख्याव्यापिकालार्कवासिनी // 30 // मायारा ज्ञीचमदनप्रियास्यादशमीरतिः // लक्ष्मी काङ्गेश्वरीचेतिदेव्योद्वादशकीर्तिताः // 33 // नैवेद्यांतार्च नंकृत्वादद्यान्मद्यादिनाबलिम्।।एवंसंपूजितास्वेष्टंकालरात्रिःप्रयच्छति ॥३२॥शनिवारेतुसंध्यायांगच्छे द्रम्यंसरोवरम् // हरिद्राऽक्षतपुष्पैस्तन्मत्रेणानेनपूजयेत् // 33 // तारोनमोजलौकायैद्वितयंसर्वतः परम् // जनंवशंकुरुद्वंद्वंहुमंतोमनुरीरितः // 34 // गृहमागत्यगोत्रायांस्वप्यादेवींस्मरनिशि // प्रा तस्तत्रैवगत्वाथजलौकाद्वितयंततः॥३५॥ गृहीत्वातत्पशोष्याथच्छायायांचूर्णयेत्पुनः॥ जलौका चूर्णयुक्तेनकृष्णकासिसूत्रतः॥ 36 // वर्तिविधायमुंचेतभाजनेनिर्मितेमृदा // कुलालचक्रोत्थित यातत्रतैलंपुनःक्षिपेत्॥३७॥तैलंयत्रात्समानीतंभ्रमतोनिर्मलंशुचिः॥ वारस्त्रीसदनादह्निमानीयज्वालये तुतम्॥३८॥दारुभिःकोकिलाक्षस्यप्रकुर्यात्तत्रदीपकम् // वह्नःपुरद्वयंक्षोणीपुरयंत्रनिधापनम् // 39 // तेन // 33 // 34 // गोत्रायाभूमौ // 35 // 36 // 37 // 38 // कोकिलाक्षस्यकुचिलावृक्षस्य // वहिपुर स्त्रिकोणम् // तद्वयंषट्कोणम् // क्षोणीपुरंचतुरस्रम् // 39 // PUNISPOSANNA Tahashmah For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20. सटीक मं०म० H // 40 // 41 // 42 // भूमिग्लौं // 43 // वसुसायकवर्णोष्टपंचाशदर्णः // प्रयोगोयथा // साधकःशनिवा सरेसंध्याकालेतडागंगत्वा // ॐनमोजलौकायैसर्वजनंवशंकुरु 2 हुमितिमंत्रणहरिद्राक्ताक्षतपुष्पैर्जलं // 159 // संपूज्यगृहंगत्वादेवींस्मरनिशिभूमौशयीत // प्रातस्तस्मात्सरसोजलौकाद्वयमादायच्छायाशुष्कंकृत्वास चूर्ण्यतचूर्णयुक्तनकृष्णकासिसूत्रेणवर्तिकृत्वाकुलालचक्रानीतमृनिर्मितेपात्रे तां निधायभ्रमतस्तैलयंत्रात्ति लतेलमादायतनिक्षिपेत् // वेश्यागृहादग्निमानीयकुचिलाइतिकान्यकुब्जभाषाप्रसिधतरोःकाष्ठैस्तंप्रज्वा निशारसेनरचितेमध्येलाजासमन्विते // कालरात्रिततोदीपेसमावाह्यप्रपूजयेत् // 40 // युक्तामावर णैःपश्चान्नवीनंखपरंन्यसेत् // दीपोत्थपात्रपतितमादद्यात्कज्जलंसुधीः॥४१॥ पश्चिमामिमुखोमंत्री कजलतत्तुमंत्रयेत् // वक्ष्यमाणेनमनुनाशतत्रितयसमितम् // 42 // तारोवाङ्मदनोमायारमाभूमि लोहसौः // नमःकाङ्गेश्वरिपदंसर्वान्मोहयमोहय // 43 // कृष्णतेकृष्णवर्णेचकृष्णांवरसमन्विते // | सर्वानाकर्षयद्वंद्वंशीघ्रंवशंकुरुद्वयम् // 44 // ल्य तेनतत्पात्रेदीपंकृत्वाहरिद्रारसकृतेत्रिकोणषट्कोणचतुष्कोणात्मकेयंत्रेमध्येलाजान्प्रक्षिप्यतदुपरिदी पपात्रंस्थापयित्वादीपेकालरात्रिमावासावरणामिष्वाखपरंदीपोपरिधृत्वांजनंपातयेत् // तदंजनमादाय शन पश्चिमाभिमुखः शतत्रयमनेनमंत्रेणमंत्रयेत् // मंत्रोयथा ॥ॐऐक्लींहीश्रींग्लौंब्लूइसौ नमः काङ्ग्रेश्वरिसर्वा न्मोहय 2 कृष्णेकृष्णवर्णेकृष्णांबरसमन्वितेसर्वानाकर्षय 2 शीघ्रंवशंकुरु 2 हुंऐंह्रींक्लीं श्रींइति // 44 // ||169 // For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir lu 45 // ततोदीपादेवीमात्मनिसंयोज्यतत्कज्जलंभौमवारेनवनीतमर्दितंपात्रसंस्थाप्यतदनेवन्हिसंस्थाप्य / वमवागिरिजाकामश्रीबीजांतोमहामनुः // वसुसायकवर्णोयमंजनस्याभिमंत्रणे // 45 // दीपादात्म निसंयोज्यदेवतामंजनंपुनः // भौमवारेसमभ्यय॑नवनीतेनमर्दयेत् // 46 // मूलेनाष्टोत्तरशतंपुन) मंसमाचरेत् // मधूककुसुमैःसाष्टशतंवह्नौसुसंस्कृते॥४७॥ कुमारीबटुकंनारीभोजयेन्मधुरान्वितम्।। तेनांजनेनरचिततिलकोमंत्रिसत्तमः // 48 // दर्शनादेववशयेन्नरनारीनरेश्वरान् // दुग्धेनादौ प्रदत्तंतन्नराणांवशकारकम् // 49 // तेनस्पृष्टोनरोनूनंदासःस्पर्शयितुर्भवेत् // वशीकरणमाख्या तस्तंभनंप्रोच्यतेऽधुना // 50 // हरिद्रारंजितेवस्रलियंत्रमिदंशुभम् // निशागोरोचनाकुष्ठांज नैर्गोमूत्रमर्दितैः // 11 // संस्कृत्यमधूकपुष्पैरष्टोत्तरशतंमूलेनहुत्वाकुमारीबटुकस्त्रियोभोजयेत् // तदंजनकृततिलकोजगद्वशयेदि त्यादिफलंस्पष्टम् // 46 // 47 // 48 // 49 // 50 // स्तंभनमाह // हरिद्रेति // 51 // For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मं०म० सटीक // 16 // त. गगनक्षोण्यौहलो // चंद्रोबिंदुः॥ तेनहांहींहलूमिति // अंतिमाक्षः॥ भगीएयुताक्षे // यथा ॥रवौहरिद्रारो चनाकुष्ठतगरैर्गोमूत्रपिष्टेहरिद्रारंजितेवस्त्रेऽष्टदलंकृत्वाऽमुकंस्तंभयेतिमध्ये ॥ॐॐग्लौंग्लौंचटचटेतिवर्णान्द लेधुलिखेत् // तद्वस्त्रंपीतवस्त्रंसूत्रेणसंवेष्टयकोकिलतरोःसप्तकंटकैर्विद्यार्कपत्रैःसंवेष्टयवल्मीकरंधेप्रक्षिप्यमे लिखेदष्टलदलंपरिपुनामाव्यकर्णिकम् // दलेषुविलिखेत्तारद्वयंभूवीजयुग्मकम् ॥५२॥चटद्वयंततो यंत्रपीतसूत्रेणवेष्टयेत् // कोकिलाख्यतरोःसप्तकंटकै परिकीलितम् // 53 // भानुवृक्षदलैःसम्यग्वेष्टि तंनिक्षिपेत्पुनः॥ वल्मीकरंधेमेषस्यमूत्रेणोपरिपूरयेत् // 54 // अश्मानरंध्रवदनेनिधायाश्मस्थितः सुधीः // सहस्रप्रजपेन्मंत्रंनिशाचरदिशामुखः // 55 // निशयानिर्मितैरक्षैःसमंत्रोच्यतेऽधुना // प्रणवोगगनक्षोण्यौचंद्रदीर्घत्रयान्वितैः // 56 // षमूत्रमुपरिसिक्त्वा रंध्रीपरिशिलांसंस्थाप्यतत्रस्थितोऽमुंमंत्रहरिद्रामणिभिःसहस्रंजपेन्नैर्ऋत्याभिमुखः // मंत्रोयथा // ॐहाहींहलू कामाक्षिमायारूपिणिसर्वमनोहारिणिस्तंभय 2 रोधय 2 मोहय 2 काली कूलूंकामाक्षेकाहेश्वरिहुंहुंहुमिति // एवंकृतेरिपुस्तंभः॥५२॥५३॥५४॥५५॥५६॥ For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 7 // 58 // 59 // मोहनमाह // रवाविति // अर्कमन्मथैर्द्वादशकामबीजैः // यथा // रविवारेहरिद्रां नारीदुग्धेनपिष्ट्वातद्रसेनभूर्जपत्रमध्येकामबीजयुतंवृत्तंकृत्वादशकामबीजैःसंवेष्टयपुनर्वृत्तंकृत्वाद्वादशकाम बीजैः संवेष्टयपुनर्वृत्तंकृत्वाषोडशबीजैःसंवेष्टयोपरिबीजयुक्षट्कोणकृत्वासर्ववाग्बीजमध्यस्थंकुर्यात् / कामाक्षिमायावीतेरूपिणीतिपदंततः // सीतेचमनोहारिण्यंतेस्तंभययुग्मकम् // 57 // रोधयाद्वि तयंपश्चान्मोहयद्वितयंपुनः // दीर्घत्रयाठ्यकामस्यबीजंकामोंतिमोभगी // 58 // कान्हेश्वरिततोव मंत्रयंपंचाशदक्षरः // प्रोक्तोमंत्रःप्रजप्तेस्मिञ्छत्रूणांस्तंभनंभवेत् / / 59 // वौहरिद्रामानीयपिट्वादु ग्धेनयोषितः॥ तद्रसेनलिखेटूर्नेवृत्तमंतस्मरान्वितम् // 60 // तदृत्तवेष्टयेत्कामबीजेर्दशभिरादरात् / / पुनर्वृत्तंप्रकल्प्याथवेष्टयेदर्कमन्मथैः // 61 // विरच्याथपुनर्वृत्तंवेष्टयेत्षोडशस्मरैः // तस्योपारष्टा षट्कोणकोणेषुमदनान्वितम् // 62 // तद्यंत्रोपरिस्थित्वापंचदिनप्रत्यहंसहस्रंदशाक्षरंजपेत् / / मंत्रोयथा // ॐकींकामायक्तींकामिन्यैक्तीमिति // जपदशांशेनतिलतैलेनैवजुहुयात् // तद्भस्मनातिलकेनतद्यंत्रधारणेनचविश्वमोहयेत् // 60 // 61 // 62 // For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक त०१८ // 63 // 64 // 65 // 66 // आकर्षणमाह // उक्तमिति // 67 // लज्जावतीलजालुः // स्पर्शमात्रेणयत्पत्रा वाग्बीजमध्येतत्सर्वयंत्रमोहनकारकम् // उपविश्याथतयंत्रेदशवर्णमनुजपेत् // 63 // डेंतःकामाका मबीजंकामिन्यैकामसंपुटः॥ताराद्योदशवर्णोयंमनुर्लोकविमोहनः // 64 // पंचाहप्रजपेन्मंत्रप्रत्यहं क्रुद्धमानसः // तदशांशंप्रजुहुयात्तिलैराज्यपरिप्लुतैः॥६५॥ होमोत्थभस्मनाकुर्वस्तिलकंनरसत्तमः॥ मोहयेदखिलंविश्वंतयंत्रस्यापिधारणात् // 66 // उक्तंमोहनमाकर्षवक्ष्येकृष्णाष्टमीदिने // भूतेवाभूमि जन्मार्कयुक्तेपातर्जलांतरे॥६७॥ नाभिदन्नेस्थितोमूलंसहस्रंसशतंजपेत् // ततोगृहंसमागत्यतैलाभ्यक्त कलेवरः॥६८॥पीठादावंजनैःकृत्वाख्याकारंवानराकृतिम्॥इट्वालज्जावतीपत्रैप्रोक्षेत्तन्मूलजैरसैः॥६९॥ तदग्रेप्रजपेच्चत्वारिंशदक्षरकंमनुम् // तारोनमःकालिकायैसर्वाकर्षपदंततः // 70 // रतिवायूभौतिक स्थावमुकीमितिवर्णतः॥ आकर्षयद्वयंशीप्रमानयद्वितयंततः // 71 // णिसंकुचंतिसालज्जालुः // 68 // 69 // 70 // रतिवायूणयौभौतिकस्थौऐयुतौतेनण्यै // 71 // // 16 // For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Raआकर्षणमनुश्चत्वारिंशदर्णः // प्रयोगश्च // कृष्णाष्टम्यांकृष्णचतुर्दश्यांवाकुजरव्यन्यतरयुक्तायांप्रातर्ना भिमाजलेस्थित्वा मूलमेकादशशतंप्रजप्य गृहमागत्यशरीरंतैलेनाभ्यज्यपीटजनैनराकारंयोषिदाकारं वाविलिख्यलज्जावतीपत्रैस्तंसंपूज्यलज्जावतीमूलरसेनसंप्रोक्ष्यतदग्रेऽमुंमंत्रषष्टयाधिकंशतंजपेत् // मंत्री alयथा // ॐनमः कालिकायैसर्वाकर्षण्यैअमुकीमाकर्षय 2 शीघ्रमानय 2 आह्वींकोंभद्रकाल्यैनमः पाशोमायांकुशंभद्रकाल्यैहृदयमंततः॥ चत्वारिंशल्लिपिमंत्र-प्रोक्तआकर्षणक्षमः // 72 // शतंषष्टयाधि कंजवालोहितःकरवीरजैः // पंचाशत्प्रमितैमैत्रीपूजयल्लिखिताकृतिम् // 73 // मातृकावर्णमेकैक तन्नामाकर्षयद्वयम् // नमइत्यभिसंजप्यपुष्पमेकैकमर्पयेत् // 74 // इति // ततःपंचाशत्करवीरपुष्पैः // अंअमुकीम् आकर्षय 2 नमः आंअमुकीमित्यादिपंचाशद्वर्णपूर्वकमे तजपन्तमाकारंपूजयेत् // धूपदीपनैवेद्यंकृत्वातदग्रेनिंप्रतिष्ठाप्यतत्राज्याक्तचणकैः शतमधुनोक्तमनुना हुत्वाकुमारीकर्तितेनकृष्णकार्पाससूत्रेणाष्टाविंशतितंतुनिर्मितंस्वदेहमितंदोरकंकृत्वाकर्षमंत्रेणाष्टोत्तरशतं ग्रंथीन् दत्वातद्धारणानरंनारींचाकर्षतीति // 72 // 73 // 74 // For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा ตระการตา सटीक // 162 // त०१८ orl - |75 // 76 // 77 // 78 // उच्चाटनमाह शून्येति // कुक्कुटासनलक्षणमंतेवक्तव्यम् // 79 // 80 // मंत्रांतरमाह तारइति // भूधरोवः॥ भृगुःसः // अर्कोमः॥ संवर्तक्षः // एतेचत्वारःप्रत्येकंक्रिययालकारेणयुतास्तथादी धूपदीपनिवेद्यानिकृत्वाहोमंसमाचरेत् // चणकैराज्यसमिभैराकर्षमनुनाशतम् // 7 // कृष्णकार्पास सूत्रस्यकुमारीनिर्मितस्यच // गुणंदेहमितंकृत्वाअष्टाविंशतितंतुभिः // 76 // आकर्षमनुनादद्या ग्रंथीनष्टोत्तरंशतम् // तद्दोरकेधृतेशीप्रमायातिस्त्रीनरोपिवा // 77 / विराबादाममध्यस्थोन्यदेश्यो नवरात्रतः॥ उक्तमाकर्षणांमदमुच्चाटनमोच्यते // 78 // शून्यागारेचतुर्दश्यांकृष्णायांकुक्कुटासनः।। यमाशावदनोमुक्तकचोनीलांबरावृतः // 79 // ग्रंथिसंयुतयामौंज्यारज्ज्वामंत्रमिमंजपेत् / / सहस्रदय संख्यातंशवर्योदेवतांस्मरन् // 80 // तारोभूधरभृग्वर्कसंवर्ताःक्रिययान्विताः // प्रत्येकंदीपिकाचं द्रयुक्ताबीजचतुष्टयम्॥८॥कालरात्रिमहायांक्षिपदांतेमुकमुच्चरेत् ॥आशूचाटययुग्मंतुछिंधिभिंधिशु चिप्रिया॥८२॥प्रासादबीजंकामाक्षिण्यंतोमनुरीरितः॥पट्त्रिंशद्वर्णसंयुक्त शीघ्रमुच्चाटकोरिपोः॥८३॥ पिकाचंद्रयुताऊबिंदुयुताश्चत्वारिबीजानि // तेनवूलूस्लूम्लूक्ष्लू // 81 // शुचिप्रियास्वाहा // 82 // प्रासादबीजंहौं ॥णिःकों // 8 // Lessssssssssssssssssssssssssssssssss. 1070Thinabriellahshirst5.5% - REALINEERINEEEEEEEE // 162 // For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रयोगोयथा // कृष्णचतुर्दश्यांशून्यग्रहेनीलवस्त्रावृतोमुक्तकच्छोमुक्तशिखोदक्षिणामुख कुक्कुटासनेचो पविश्यग्रंथियुक्तयामुंजरज्ज्वानिशिसहस्रद्वयममुंमंत्रजपेत् // मंत्रोयथा // अॅलंस्ट्म्लू क्ष्र्कालरात्रि महावाक्षिअमुकमाशूच्चाटय र छिंधि 2 भिंधिस्वाहाहौंकामाक्षिक्रोमिति // ततःशतद्वयमनेनैवमंत्रेणस पैर्हत्वातैलोदकयुतेनसर्षपपिण्याकेनतेनमतुनाबलिंदद्यात् // 84 // एवंसप्ताहंकृतेउच्चाटनसिद्धिः // 85 // जपांतेतदशांशेनसर्पपैर्जुहुयान्निशि // ततःसर्पपपिण्याकैस्तत्तैलोदकसंयुतैः // 84 // बलिंप्रदद्यात्ते नैवंमनुनाविशिखोभुवि // एवंकृतेसप्तरात्रंदेशादूरंव्रजेदरिः॥८॥ययोर्विद्वेषमन्विच्छेत्तयोर्जन्मतरूद्भ वम् // फलकद्वितयंकृत्वातत्राकारौतयोलिखेत् // 86 // विषाष्टकेनवालेयीदुग्धाक्तेनाभिधान्वितम् // तत्स्पृष्ट्वाप्रजपेन्मंसहस्रमधियामिनि // 87 // वियत्पावकमन्विंदुयुग्ग्लौंखमनुहंसयुक् // निद्रा निमनुबिंदुस्थाभगवत्यन्तेतिदंडधा // 88 // विद्वेषणमाह // ययोरिति // जन्मतरवोजन्मवृक्षाः॥ तेउक्ताः॥८६॥ विषाष्टकमंतवक्ष्यति॥वालेयीरास भी॥ अधियामिनिरात्रौ // 87 // मंत्रमाह॥ वियदिति // पावकमन्विदुयुक् रऔबिंदुयुतवियतहः // हौं // ग्लौं // बिंदुयुकूमतुरौंहंसासम्तैर्युक्तंखहंइसौं // अग्निमबिंदुस्थानिद्रामाभ्रौं // 8 // For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० मटीक रमाश्रीं // 89 // कवचंहुं॥ 90 // सैरिभोमहिषः // गंधर्वोऽश्वः॥९१॥ प्रयोगः // प्रीतिमतो योर्जन्म वृक्षोत्थंफलकद्वयांविधायतत्ररासमीक्षारमार्दितेनाविषाष्टकेनोपरिनामयुक्तमाकारद्वयविलिख्यतत्स्पृष्ट्वानि शिसहस्रममुंमंत्रजपेत्॥मंत्रोयथा॥ॐहौंग्लौंहसौंधौभगवतिदंडधारिणिअमुकममुकंशीघ्रविद्वेषय 2 रोधय रिण्यन्तेऽसुकममुकंशीघंविद्वेषयद्वयम् // रोधयद्वितयंपश्चाद्भजयद्वितयंरमा // 89 // मायाराज्ञीचतु र्थ्यताप्रणवंकवचत्रयम् // पंचाशदक्षरोमंत्रस्तारादि सर्वसिद्धिदः // 90 // जपतिफलकद्वंद्वंबद्धार ज्ज्वापरस्परम् // खरसैरिभगंधर्वपुच्छरोमसमुत्थया॥९१॥ वल्मीकरंधेनिखनेत्पुनस्तावजपेन्नरः / / सप्ताहाजायतेवैरंतयोःप्रीतिमतोरपि // 92 // मारणंतुप्रकुतिब्राह्मणेतरविद्विषम् // तच्छुद्धयथैजपे न्मूलमंत्रमष्टोत्तरंशतम् // 93 // कृष्णांगारचतुर्दश्यांगोपुरादाचतुष्पथात् // श्मशानाद्वासमानी यमृदंतत्रविनिःक्षिपेत् // 94 // EIR भंजय 2 श्रीमायाराज्यैहुहुहुमिति // ततःखरमाहिषाश्वपुच्छरोमकृतयारज्ज्वातत् फलकद्वयंमिथो बढ़ा वल्मीकरंध्रेनिखायपुनर्मत्रंसहनंजपेत् // एवंविद्वेषणसिद्धिः // 92 // मारणमाह // मारण मिति // तद्विप्रेनिषिद्धम् // 93 // 94 // // 16 For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विडंगंकृमिघ्नम् // हयारिः करवीरः // 95 // 96 // // 97 // 98 // मारणमंत्रमाह // दीर्घेति // तंद्रीमः॥ दीर्घत्रयम् // अग्नीरः॥रात्रीशोबिंदुस्तैर्युक्तः // तेनम्रांनींबू // सृणिःक्रो // 99 // ध्रुवादिःप्रणवादिः // विडंगानिहयार्यर्ककुसुमान्यपिमंत्रवित् // तन्मृदापुत्तलींकुच्छिशानेनिर्जनालये // 95 // उपवि श्यशिखामुक्तोनीलवस्त्रावृतोनिशि // तद्वक्षसिरिपोर्नामलिखित्वास्थापयेदसून् / / 96 ॥श्मशानवास साच्छाद्यतैलाभ्यक्तामथार्चयेत् ॥नापयेत्पुत्तलीतांतुखराश्वमहिषासृजा // 97 // रक्तचंदनधत्तूरकुसु मान्यर्पयेत्ततः॥ मारणाख्येनमनुनाकुऱ्यांदोमंचपूजनम्॥९८॥ दीर्घत्रयाग्निरात्रीशयुक्तातंद्रीमृतीश्व रि // कृत्यतेऽमुकंशीघ्रंमारयद्वितयंशृणिः॥९९॥त्रयोविंशत्यक्षराठ्योधुवादिमारणेमनुः॥ अनेन मनुनापूजांकृत्वाहोमंसमाचरेत् // 100 // उग्रासर्षपभल्लातोन्मत्तबीजैःसुमिश्रितैः // श्मशा नागौशतंसाग्रंछित्त्वातत्प्रतिमाशिरः // 1 // तदनौपदहेन्मंत्रीपूर्णाहुतिमथाचरेत् // एवंकृतेत्रिसप्ता हाद्रिपुःस्यात्सूर्यजातिथिः॥२॥ // 110 // उग्रावचा // उन्मत्तोधत्तूरः // सूर्यजातिथिर्यमातिथिःस्यात् // म्रियतेइत्यर्थः // 101 // 102 // 1nn For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DO ARG मं०म०प्रयोगश्च // कुजवारयुतायांकृष्णचतुर्दश्यांपुरद्वारचतुष्पथश्मशानान्यतरस्मान्मृदमानीयविडंगकरवी सटीक रार्कपुष्पयुतांकृत्वाश्मशानस्थोविशिखोनीलवस्त्रोनिशितयामृदापुत्तलींहृदितन्नामयुतांकृत्वाप्राणान्पति // 16 // ष्ठाप्यश्मशानवस्त्रेणाच्छाद्यसैलेनाभ्यज्यखराश्वमहिषरुधिरेणसंस्नाप्यरक्तचंदनेनविलिप्यधत्तूरपुष्पैः संपूज्य त०१८ तदरेश्मशानाग्निंसंस्थाप्यतदग्नौवचासर्षपभल्लातकधत्तूरबीजमिश्रितैरष्टोत्तरशतंजुहुयान्मत्रेण // यथा // कर्मस्वेवंविधेष्वादोभैरवायवलिंदिशेत् // मापानपलमद्याद्यैरेवसिद्धिर्भवेध्रुवम् // 3 // योमंत्रीविद धातीहक्कमतेनप्रयत्नतः॥आत्मावनायसंसेव्योनरसिंहोहरोपिवा // 4 // अथचंडीविधानम् ॥अथो नवाक्षरंमंत्रंवक्ष्येचंडीप्रवृत्तये // वाङ्मायामदनोदीर्घालक्ष्मीस्तंद्रीश्रुतीदुयुक् // 5 // डायसदृक्जलं कूर्मद्वयंझिंटीशसंयुतम् // नवाक्षरोस्यऋषयोब्रह्मविष्णुमहेश्वराः // 6 // ॐम्रांनी मृतीश्वरिकंकृत्येअमुकंशीघ्रंमारय 2 क्रोमिति // ततःपुत्तलीशिरश्छित्त्वाऽनौहत्वापूर्णाहु तिकुर्यात // एवमेकविंशतिराज्यंतेरिपुर्मियतइति // ततःप्रायश्चित्तंकुर्यात् // 3 // 4 // सप्तशतीपाठांग भूतंचंडीमंत्रमाह // वागिति॥वाऐंमायाह्नींमदनक्कीं // दीर्घालक्ष्मीश्चातंद्रीमः॥श्रुतींदुयुग उबिंदुयुक्ता / PA // 16 // मुं॥५॥डायैस्वरूपम् / / सहगूजलंवि // कूर्मद्वयं चयुग्मम् // झिंटीशए ॥च्चे // 6 // BENG or 3 UST For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्योदेवताः // 7 // 8 // भगःसूर्यः // 9 // 10 // एकादशन्यासानाह॥ ततइति // पूर्वोक्तमार्गतःप्रथमपटलोक्तविधिना // 11 // सारस्वतन्यासमाह / / अथेति // 12 // बीजेति॥ छंदांस्युक्तानिमुनिभिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभः // देव्यप्रोक्तामहापूर्वाःकालीलक्ष्मीसरस्वती // 7 // नं दाशाकंभरीभीमा-शक्तयोस्यमनोःस्मृताः // स्याद्रक्तदंतिकादुर्गाभ्रामोवीजसंचयः // 8 // आग्नि युर्भगस्तत्वंफलंवेदत्रयोद्भवम् // सर्वाभीष्टप्रसिद्धयर्थविनियोगउदाहृतः॥ 9 // ऋषिश्छंदोदैवता निशिरोमुखहृदिन्यसेत् // शक्तिबीजानिस्तनयोस्तत्वानिहृदयेपुनः॥ 110 // ततएकादशन्यासान कुर्वीतेष्टफलप्रदान् // प्रथमोमातृकान्यासःकार्य:पूर्वोक्तमार्गतः // 11 // कृतेनयेनदेवस्यसारूप्यं यातिमानवः // अथद्वितीयंकुतिन्यासंसारस्वताभिधम् // 12 // बीजत्रयंतुमंत्राद्यतारादिहृदयांति कम् // क्रमादंगुलिषुन्यस्यकनिष्ठायासुपंचसु // 13 // करयोर्मध्यतःपृष्ठेमणिबंधेचकूपरे // हृदया दिषडंगेषुविन्यसेन्जातिसंयुतम् // 14 // मंत्रादिमबीजत्रयंप्रणवादिनमोंतकनिष्ठादिनवस्थानेषुन्यस्यहृदयादिषुजातियुक्तंन्यसेत् // यथा // ह्रीं कीनमाकनिष्ठायामित्यादि॥ॐह्रींलींहृदयायनमइत्याचंगेष्वपि // 13 // 14 // For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१८ मं०म० फलमाह / / अस्मिन्निति // 15 // मायेति // ह्रींब्राह्मीपूर्वतोमापातुइत्यादि // पातुकाष्ठायांनैर्ऋत्ये // 16 // अस्मिन्सारस्वतेन्यासेकृतेजाज्यविनश्यति // ततस्तृतीयंकुतिन्यासंमातृगणान्वितम् // 15 // मा // 16 // याबीजादिकाब्राझीपूर्वतःपातुमांसदा // माहेश्वरीतथाऽग्नेय्यांकौमारीदक्षिणेऽवतु // 16 ॥वैष्णवी पातुकाष्ठायांवाराहीपश्चिमेऽवतु // इंद्राणीपावकेकोणेचामुंडाचोत्तरेऽवतु // 17 // ऐशानेतुमहाल क्ष्मीरू व्योमेश्वरीतथा // सप्तद्वीपेश्वरीभूमौरक्षेत्कामेश्वरीतले // 18 // तृतीयेस्मिन्कृतेन्यासेत्रै लोक्यविजयीभवेत् // न्यासंचतुर्थकुर्वीतनंदजादिसमन्वितम् // 19 // नंदनापातुपूर्वागंकमलांकुश मंडिता // खङ्गपात्रकरापातुदक्षिणेरक्तदतिका // 120 // पृष्ठेशाकंभरीपातुपुष्पपल्लवसंयुता // धनुर्वाणकरादुर्गावामेपातुसदेवमाम् // 21 // शिरःपात्रकराभीमामस्तकाच्चरणावधि।।पादादिमस्तकं यावद्भामरीचित्रकांतिभृत् // 22 // तुर्य्यन्यासंनर कुर्य्याजरामृत्युव्यपोहति॥अथकुर्वीतब्रह्माख्यंन्यासं पंचममुत्तमम्॥२३॥पादादिनाभिपर्यंतंब्रह्मापातुसनातनः।नाभेर्विशुद्धिपर्यंतपातुनित्यंजनार्दनः।२४ // 17 // 18 // एतत्फलमाह // तृतीयेइति // चतुर्थन्यासमाह // नंदजेति // 19 // 20 // 21 // 22 // फलमा ह।। तुर्यमिति // पंचमंन्यासमाह / / अथेति // 23 // 24 // l // 165 For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 25 // 26 // फलमाह // कृतेति // 27 // षष्ठमाह // मध्यमिति // अष्टादशभुजामहालक्ष्मीर्मममध्यंपा त्वित्यादिप्रयोगः॥२८॥२९॥३०॥ सप्तमन्यासमाह // मूलेति // ॐनमःब्रह्मरंध्रेइत्यादिप्रयोगः // 31 // विशुद्धब्रह्मरंध्रांतंपातुरुद्रस्त्रिलोचनः॥हंसःपातुपदद्वंद्वंवैनतेयःकरद्वयम् // 25 // चक्षुषीवृषभःपातुस वांगानिगजाननः॥ परापरौदेहभागौपात्वानंदमयोहरिः // 26 // कृतेऽस्मिन्पंचमेन्यासेसर्वान्कामा नवाप्नुयात् // षष्ठंन्यासंततःकुर्यान्महालक्ष्म्यादिसंयुतम् // 27 // मध्यंपातुमहालक्ष्मीरष्टादशभुजा न्विता // ऊर्द्धसरस्वतीपातुभुजैरष्टाभिरूर्जिता // 28 // अधःपातुमहाकालीदशबाहुसमन्विता // सिंहोहस्तद्वयंपातुपरहंसोक्षियुग्मकम् // 29 // महिषंदिव्यमारूढोयम पातुपदद्वयम् ॥महेशचंडिका युक्त सर्वांगानिममावतु // 130 // षष्ठेस्मिनविहितेन्यासेसद्गतिप्राप्नुयानरः // मूलाक्षरन्यासरूपन्यासं कुतिसप्तमम्॥३॥ब्रह्मरंधेनेत्रयुग्मेश्रुत्यो सिकयोर्मुखे॥पायौमूलमनोर्वर्णास्ताराद्यान्नमसान्वितान // 32 // विन्यसेत्सप्तमेन्यासेकृतरोगक्षयोभवेत् // पायुतोब्रह्मरंध्रांतंपुनस्तानेवविन्यसेत् // 33 // कृतेस्मिन्नष्टमेन्यासेसर्वदुःखविनश्यति॥ कुर्वीतनवमंन्यासमंत्रव्याप्तिस्वरूपकम् // 34 // ॥३२॥एतन्न्यासफलंरोगक्षयः॥पायुमारभ्यब्रह्मरंध्रांतंवर्णन्यासोष्टमः॥ 33 // एतत्फलंदुःस्वपनाशः // 34 // For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० नवममाह // कुर्वीतेति॥३५॥शिरसापादांतमष्टवारंमूलंविन्यसेत् // एवंपादाच्छिरोंतमष्टशः॥एवंपुरोदक्षिसटीक णभागेपृष्ठेवामभागेप्येवंप्रत्यहमष्टशोमूलंन्यसेत् // एतत्फलंदेवत्वप्राप्तिः // 36 // दशममाह // मूलेति // मूलं मस्तकाचरणंयावच्चरणान्मस्तकावधि॥ पुरोदक्षेपृष्ठदेशेवामभागेऽष्टशोन्यसेत् // 35 // मूलमंत्रकृतो त०१८ न्यासोनवमोदेवताप्तिकृत् // ततःकुर्वीतदशमंषडंगन्यासमुत्तमम् // 36 // मूलमंत्रजातियुक्तंहृदयादि विन्यसेत् // कृतेस्मिन्दशमेन्यासेत्रैलोक्यंवशगंभवेत् // 37 // दशन्यासोक्तफलदकुर्यादेकादशं ततः // खङ्गिनीशूलिनीत्यादिपठित्वाश्लोकपंचकम् // 38 // आद्यकृष्णतरंबीजंध्यात्वासर्वागकेन्यसे त् // शूलेनपाहिनोदेवीत्यादिश्लोकचतुष्टयम् // 39 // पठित्वासूर्यसदृशंद्वितीयंसर्वतोन्यसेत् // स र्वस्वरूपेसर्वेशेइत्यादिश्लोकपंचकम् // 140 // पठित्वास्फटिकाभासंतृतीयस्वतनौन्यसेत् // ततःपडं गंकुर्वीतविभक्तैर्मूलवर्णकैः॥४१॥एकेनैकेनचैकेनचतुर्भिर्युगलेनच॥समस्तेनचमंत्रेणकुदिंगानिषत्सु धीः॥४२॥शिखायांनेत्रयोःश्रुत्योर्नसोर्वकेगुदेन्यसेत्॥मंत्रवर्णान्समस्तेनव्यापकंत्वष्टशश्चरेत् // 43 // // 166 // हृदयायनमः॥इत्यादिजातियुक्तंषडंगेषुन्यसेत्।।एतत्फलंजगदश्यत्वम्॥३७॥एकादशमाह॥खङ्गिनीति // 41 // षडंगमाह॥एकेनेति॥४२॥वर्णन्यासमाह॥शिखायामिति॥नेत्रश्रुतिनासासुद्वौद्वौ॥ अष्टशोऽष्टवारम्॥४३॥ For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाकालीध्यानमाह // खड्गमिति // खगचक्रबाणशिरःशंखान्दक्षेषुदधतीम् / / इतराणिवामेषु // आस्यपा ददशकांदशवक्त्रां दशपादांदशभुजांत्रिंशनेवामित्यर्थः // हरौसुप्तेकमलासनोब्रह्मामधुकैटभौहंतुंयाम स्तोत् तुष्टाव / हरेनिंद्रावैष्णवीमायेत्यर्थः। तदुक्तम् // ययात्वयाजगत्स्रष्टाजगत्पातातियोजगत् // सोपि निद्रावशंनीतइति // 44 // महालक्ष्मीध्यानमाह // अक्षस्रगिति / / कुंडिकांकमंडलुम् // जलजंशंखम् // अक्ष खड्गचक्रगदेषुचापपरिघानशूलंभुशुंडीशिरः शंखंसंदधतींकरैस्त्रिनयनांसर्वांगभूषावृताम् // यामस्तो स्वपितेहरौकमलजोहंतुंमधुकैटभं नीलामद्युतिमास्यपाददशकांसेवेमहाकालिकाम् // 44 // अक्षत्र परशूगदेषुकुलिशंप धनुःकुंडिकांदंडशक्तिमसिंचचर्मजलजंटांसुराभाजनम् ॥शूलंपाशसुदूर्शनेच दधतीहस्तैःप्रवालप्रभांसेवेसरिभमर्दिनीमिहमहालक्ष्मीसरोजस्थिताम् // 45 // घंटाशूलहलानिशंख मुसलेचक्रधनुःसायकंहस्ताब्जैर्दधतींपनांतविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम् ॥गौरीदेहसमुद्भवांत्रिजगतामा धारभूतांमहापूर्वमत्रसरस्वतीमनुभजेच्छंभादिदैत्यादिनीम् // 46 // मालापद्मबाणखड्गवजगदाचक्रकमंडलुशंखादक्षेषु / अन्येवामेषु // सैरिभमदिनीमहिषासुरघातिनी॥ सरो जोद्भवांदेवदेहनिर्गततेजःसमुद्भवाम् / / 45 // महासरस्वतीध्यानमाह // घंटेति // शंखमुशलचक्रबाणादक्षे षु ॥घंटाशूलहलधनुषिवामेषु // धनांतति // शरच्चंद्रसमप्रभाम् // 46 // For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में०म० सटीक // 16 // त०१८ हेमरेतसिवहौ॥४७॥४८॥४९॥५०॥५१॥ सबिंद्विति // अनंनंदजायैनमइत्यादि॥ वक्ष्यमाणाद्याः॥ एवंध्यात्वाजपेल्लक्षचतुष्कंतदशांशतः॥ पायसान्नेनजुहुयात्पूजितेहेमरेतसि // 47 // जयादिशक्ति भियुक्तपीठेदेवीयजेत्ततः // तत्त्वपत्रावृतव्यस्रषट्कोणाष्टदलान्विते // 18 // त्रिकोणमध्येसंपूज्य ध्यात्वातांमूलमंत्रतः॥ पूर्वकोणेविधातारंसुरयासहपूजयेत् // 49 // विष्णुंश्रियाचनैर्ऋत्येवायव्येतूम याशिवम्।।उदग्दक्षिणयोःसिंहंमहिपंचक्रमाद्यजेत्॥१०॥षट्सुकोणेषुपूर्वादिनंदजारक्तदंतिकाम्॥शाकं भरीतथादुर्गाभीमांचभ्रामरीयजेत् // 51 // सबिंदुनादाद्यांद्यास्तारायाश्चनमाोंतकाः॥ नंदजाया यजेच्छतर्विक्ष्यमाणाअपीहशीः // 52 // अष्टपत्रेषुब्रह्माणीपूज्यामाहेश्वरीपरा // कौमारीवैष्णवीचा थवाराहीनारसिंह्यपि // 53 // पश्चादैन्द्रीचचामुंडातथातत्वदलेष्विमाः॥ विष्णुमायाचेतनाचबुद्धि निद्राक्षुधाततः॥५४॥ छायाशक्तिःपरातृष्णाक्षांतिर्जातिश्चलज्जया // शांतिःश्रद्धाकांतिलक्ष्म्य्यौधृ | तिर्वृत्तिःश्रुतिःस्मृतिः॥१५॥ अपीहशीःसबिंदुनादाद्यांद्यास्ताराद्यानमोतायजेत् // ॐब्रह्माण्यैनमइत्यादि // 52 // 53 // तत्वदलेषु चतुर्विंशतिपत्रेषु // विष्णुमायाद्याः // 54 // 55 // // 167 // For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 56 // 57 // 58 // अग्नितिथिंप्रतिपदम् // 59 // 60 // चंडीस्तवस्यमार्कंडेयपुराणोक्तस्यऋष्यादीनाह॥ तुष्टिःपुष्टिर्दयामाताभ्रांतिःशक्तिरितिक्रमात् // बहिभूगृहकोणेषुगणेश क्षेत्रपालकः // 56 // बटुकश्चापियोगिन्यःपूज्याइंद्रादिकाअपि // एवंसिद्धमनौमंत्रीभवेत्सौभाग्यभाजनम् // 67 // मार्क ण्डेयपुराणोक्तनित्यंचंडीस्तवंपठन्॥पुटितंमूलमंत्रेणजपन्नाप्नोतिवांछितम्॥५९॥ आश्विनस्यसितेप क्षेआरभ्याग्मितिथिसुधीः // अष्टम्यंतंजपेल्लशंदशांशहोममाचरेत् // 59 // प्रत्यहंपूजयेदेवींपठेत्सप्त शतीमपि // विप्रानाराध्यमंत्रीस्वमिष्टार्थलभतेऽचिरात् // 60 // सप्तशत्याश्चरित्रेतुप्रथमेपद्मभूर्मुनिः॥ छंदोगायत्रमुदितमहाकालीतुदेवता // 61 // वाग्बीजंपावकस्तत्वधर्मार्थेविनियोजनम् // मध्यमेतुच रित्रेऽत्रमुनिर्विष्णुरुदाहृतः // 62 // उष्णिक्छंदोमहालक्ष्मीदेवताबीजमद्रिजा // वायुस्तत्वं धनप्राप्त्यविनियोगउदाहृतः॥६३॥ सप्तशत्याइति // प्रथमंचरित्रंमधुकैटभवधः॥ 61 // मध्यमं महिषासुरवधः / / 62 // अद्रिजाह्रीं // 63 // 1 अस्यश्रीप्रथमचरित्रस्यब्रह्माऋषिःगायत्रीच्छंदःमहाकालीदेवताऐंबीजमग्निस्तत्त्वंधर्मार्थेजपेवि० // 2 भस्यश्रीमध्यमचरित्रस्यविष्णुक्रषि उष्णिकुछंदामहालक्ष्मीदेवताहींबीजवायुस्तत्वंधनप्रायजपेवि०॥ For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 168 // SACal LEGALLLLLLLLLLLLLL उत्तरंशुंभनिशुंभवधः // 64 // कामाकीं // 65 // सार्थस्मृतिअर्थस्मरणपूर्वकम् // 66 // 67 // सटीक उत्तरस्यचरित्रस्यऋषिःशंकरईरितः। त्रिष्टुप्छन्दोदेवतास्यप्रोक्तामहासरस्वती // 64 // कामोबीजरवि त०१८ स्तत्वकामात्यैविनियोजनम् // एवंसंस्मृत्यऋष्यादीन्ध्यात्वापूर्वोक्तमार्गतः॥६६॥ सार्थस्मृतिपठे चंडीस्तवंस्पष्टपदाक्षरम्।।समाप्तौतुमहालक्ष्मींध्यात्वाकृत्वाषडंगकम्॥६६॥जपेदप्टशतंमूलंदेवतायैनि वेदयेत्॥एवंयःकुरुतेस्तोत्रंनावसीदतिजातुचित्॥६॥चंडिकांप्रभजन्मोधनैर्धान्यैर्यशश्चयैः॥पुत्रैःपौ त्रैरुतारोग्यैर्युक्तोजीवेदहूःसमाः॥६८॥अथशतचंडीविधानम्॥शतचंडीविधानंतुप्रवक्ष्येप्रीतयेनृणाम् // नृपोपद्वआपन्नेदुर्भिक्षेभूमिकंपने // 69 // अतिवृष्टयामनावृष्टौपरचक्रभयेक्षये॥ सर्वेविनाविनश्यति शतचंडीविधौकृत।।७०॥रोगाणांवैरिणांनाशोधनपुत्रसमृद्धयः // शंकरस्यभवान्यावाप्रासादनिकटेशु भम् // 71 // मंडपद्वारवेद्याचंकुर्यात्सध्वजतोरणम्।।तत्रकुंडंप्रकुर्वीतप्रतीच्यांमध्यतोपिवा // 72 // यशश्चयैःकीर्तिसमूहैः // समावर्षाणि // 68 // शतचंडीविधानमाह // शतेति // तत्रनिमित्तान्या SA|168 // ह॥ नृपोपद्रवइति // 69 // 70 // 71 // 72 // 1 अस्यश्रीमदुत्तरचरित्रस्यरूद्रऋषित्रिष्टुप्छंद महासरस्वतीदेबताक्लींवीजंसूर्यस्तत्वकामाम्यैजपेवि०॥ For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मातङ्गीपूजनयत्रम 13 त.७ प.५५ श्लो-७२ वट यक्षिणीपूजनयन्त्रम् 12 न. प.५१ श्लो.११. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बाणेश्वरीपूजनयन्त्रम् 14 त-७५.५७ श्लो-१०१. कामेशी पूजनयन्त्रम् 15 न.७ प.५७ श्लो 111 SE For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बालापूजनयन्त्रम् १६त८ प.५४-श्लो-१७. For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बालाधारएायन्त्रम् 17 त.८ प.६३ श्लो-७४ लघुश्यामापूजनयन्त्रम्१८ त-८प.६५ श्लो.१२१. A 87. LALOG 92.2 Pऔओए फपनधदथन IA मातब अपडावरयम For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नपूर्णेश्वरीयन्त्रम्१९ तर प.६५ श्लो. त्रैलोक्यमोहिनीपूजनयन्त्रम् 20 त-रूप१श्लो.३८ For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बगलामुरवीस्तंभनयबम्२२ 1105.00 श्लो०२५ नयन्त्रम् 21 त-१० प.७४ श्लो-७ देवदत/ जस्त/ संसबानांश यश ना स विमुत्र मुलाग हा स्वा For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वप्नधाराहीपूजनयन्त्रम 23 त.१० प८१ श्लो.४१ स्वप्नवाराहीवशीकरणयंत्र२४ न.२पश्लो.५. larshesh Wells e bollectables ॐ ह्रीं नमोवाराहि घोरे स्वप्नंटः ठः स्वाहा सुरतमभिसिरु "परमायषसोयषशान पशाचटच्चाउया परामुध्यसा,हरयार कुरुकसयदपान For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वप्रवाराहीधारणायन्त्रम् २५त-१०प०२ श्लो.५० बार्तालीपूजनयन्त्रम् 26 त०१० For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Private and Personal Use Only एएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएए व कोकीकोकीकोकीकी कौ कोंकी कॉक कॉकीजीकीकी मी हा स्मारकर म्हाररुक रुक भEHA वा हिराबा निर्माथा लिभोनस्कार 1 13 NADANAMAMADAM SITAMIN Ashish *म बानि नि ग स पुरनिवास पाइसजा की प्रक्रिी जी की मौकों की भी की की काकी को कौ की की कमोन निधि एएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएएए' 2ii वार्तालीस्तंभनयन्त्रम् 2010 ५-०५-यो- 111. अमुक VI330 A चाटय ६अमुकमु3 Fe3 my...ई.स. मौन.नि भि स्तंभे मान जि.हि.मो मो मो न नि भिम v4 काका काकी को क ii iiii को कोमी की भी कॉकी की एएए ए ए ए ए ए ए ए ए प प प ए ए ए ए ए ए ए ए ए प प एएएएएएएएएएएएएएएं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie पीपूजन यचम् 28 स-११प-९४ो . 53. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोपालसुंदरीपूजनयनम्त -12 प.१३ श्री.६८. For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हनुमत्पूजनयनम् 30 त 13 प लो . 10 For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra P थिय मा माना यद्गासं यद वास कर काशी का स्वाद इन्दफ हुई हy में न बिना मारमाय हा न गमन 43 MAभी लय मे ननन म उ म नु भान दि सो वा न य म मा K सुर यात्रा यसै विकर कदम : * सापटक प्र तेमनुद्र मोम 30 पायल म मा श्री न भू स * म समपरावारिसकस S For Private and Personal Use Only निखामुन दुर दुईस यषसाथ सानं जार्य का इसवीन सुबिच स्परपम म न दबाएरx ORY मि स्थान माजरा चिज पुंजा नेहा मर्प मral 86120रबा नि किए। ममनस प्रति बाल APaa सुयुबान सभा सा सीकन तां कशि व श्री शादी 766 देवबयन चि गजलकरीब धनता विकासकामं सोनार त्या सोईप एण्डो पार का एहब नि लिया राघि मंसी क्षरा कक्षरसा मी एारका धी म.मथचामागमामलकसन भकाचि पीस परून विप समाधाएापास्थि रचानावामकुक्कुनकाब www.kobatirth.org स I द नो ह द रीषु असे र नाच द्रारू इस न स भ प्र मस टिकोथ 1 ey नज भं नि हसूस रक क्षार न बनद च्छे कर मा कुक तार T मध्यो मुस र त्य त ति भ म रा श्रीपाय ग प .1/ Kलगम निवासू स गर वानिति पीस नानाविषविर्ष सन 1I/ 3REE मै रप मिलाद र पनाह नहन्धुशर्वस हौं हमें इस क्रौंहमा / हनुमनो धारणयन्त्रम् 31 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हनुमनः स्वरूपम् 32 स. १३परलो.१०५ अथ हनुमतो रक्षाविधायक यत्रं 33 त-१०प०२० मो. 110 7 अशा 24-2 स 284 AAL नही ही ही ही साध्यनाम MA7मन' याचना समय बंतु हाहाकार For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनयन्त्रम् 34 न.१४ पाश्लो .7 अथगोपालपूजनयन्नं 35 त.१४ प२५१ For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथसूर्यपूजनयत्रं 36 त-१५ प १३२श्लो. 28 भौमपूजनयत्रं 37 न. 155133 श्लो. 50 For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यासपूजनयन्त्रम् 38 त-१५प३६ श्लो.१०३ मृत्युंजयपूजन यन्त्रम् ३त-१६प-१४०-श्लो-२२ For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रुद्रपूजनयन्त्रम् 40 त-१६ प.१४४ श्लो-७० गंगापूजन यन्त्रम् ४११६प:१४७ श्लो-११८ ATM For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie कार्तवीर्यपूजनयन्त्रं 42 त-१७५१५० श्लो-१४ कार्तवीर्यस्यकाम्य प्रयोगार्थपूजनयचं४३त-१७५:१५-सोस उकई अल OME ईभल्लू उ* ई अल For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्तवीर्यदीपस्थापनयन्त्रम् 44 तः१७ प५३ श्लो-६५ कालरात्रीपूजनयन्नं 45 तः 10 प.५८ श्लो-१३ सौं श्री हुँ फट् For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालरात्रीदीपस्थापनयन ४६त-१८ प०५९ श्लो. 39. 17-18 प०६० श्लो.५२ अमुकं स्तंभय For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालरात्रीमोहनयन्त्रम् 48 त-१८ प१६१ श्लो६० चंडीपूजनयन्त्रम् 49.18 प.१६७श्लो. 148. For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरणायुधपूजनयन्त्रम् 50 त-१९ प.७२ श्लो-११ वश्यकरंयन्त्रं 51 न.२० प१८२-श्लो-१६ यरतव) देवदन्त /102.22 आ चछजना For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || वश्यकरंहितीयंयन्त्रम् 52 त-२०प०१८२ श्लो.१ 5 क्षः > दिव्यस्तंभनाख्यंयन्त्रं 54 न२०प. 183 श्लो-३० 55 ही देवदत्त ही ही ही ही ही स्वाभिवश्यकरंयन्नं 53 त-२० प.१८३ श्लो. 26 ॐ श्री देवदत्त श्री ॐ ही हं देवदत्तहाँ हाँ क्षः - For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजमोहनारव्यपंचमेयन्त्रं 55 स-२० प२८३ श्लो. 34 5 मृत्युंजयारव्यंमृत्युदरकरंयन्त्रं५६त-२०१५लो३८ नि:सकी हासमा हासासाह सासाहG हाँसः देवदत्तसः हाँ अमुकस्यमृत्यु यद्याय साहा हासःसा ही LEARN) For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ...धनिकवश्यकरंयंत्र५८न-२०पलोड६. | विवादजय करंयन्त्रं५७न-२० फालो.४३ ख्यंमोहनयंत्र५त२०पालो .51 देवदत्त हीहीडीही REA काहीहीहीहा हा For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यावज्जीववश्यकरंयत्रं६१ न.२० प.१८५-लो.५८ सर्वत्रजयदंयन्त्रम 60 त:२०प०४ श्लो.५३ / संभः V क्षः गंग में गें, गँगैंग हीसा ही ही स्या ही क्षोभः कौँ हाँ कींग देवदत्तं वशयगं काँही काँ हाँक्की ही नगगगगगगग गँग क्षः रोह / For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नृपवश्यकरंयन्त्रं६२ त 20 प००५ श्लो.६५ भृत्यवश्यकरंयंत्र६३न-२०प००९लीद्दष्टनृपवश्यकरंयंत्रं६४ न-२०प००५-लो. 70 ॐनमः इदे वदन ॐनमः अजिते ॐनमःअजिते देवदन्तम् 'वशय > सदैवदन्त ॐनमः For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीर्भाग्यनाशनंबीजयंत्रं६७त-२०मा०५ श्लो.८२ ललितारयंपनिवश्यकरंयंत्र६५पतिवश्यकरंद्वितीयंयंत्र६६ न.२० पूगलो .74 / Yसाकल्की - ही सहवरही A For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मुरव मुद्रणयनं ७०तः२०५.१८६श्लो. त्रिपुरारब्यमाकर्षणायनंदन-२०५.१८६ प्राकर्षणयन्त्र६८त:२०प.१८६ श्लो०८६ श्लो०८४ सोः देवदत्त -466 ऐं देवदन्त की देवदन ग्लों For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मारणयनं ३त:२१ प.१८७ श्लो. 27 विद्वेषकरंयन्नं७२ त-२०प-१८७ श्लोर Paile 340 P4 9340 *ed Ince This अग्निभयहरंयंत्रंत-२०११८७ श्लो . / हाँग्रहों 'अमु को द्वेषय shed 340 80hed 214 Inted vie 940 Phse Pre -AR Thed P4 अमुकस्या निभयंहर हुँ फड़ देवदत्त हुँफद hto अमुको हे अमु को हे षय Phen अमुकौ द्वेष)-K 604 षय 99146 ANGI 9340 hued Patel |shed phto heo Pric कर 16 64- अमुको देष Part-1 dhee PAN / dha Aahen dhes Thed Pric pher bhso Pre choo Saheb Dhoo हूँ ई Joned हूँ For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shil Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उच्चाटनकरंयन्नं 74 त-२०प०८-लो. 101 शांतिकरंयन्त्रम्७५ त-२०प०८८ श्लो.१०६ देवदत्त झ झ अर * भमायर सहकण फपावन घपनधदथ ऐ ग रब क अ अं औ औ 4404444 saalaa VY Y Y Y Y Y AAAAAAAA For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्वरहरंयन्त्रं७७ त-२०प.१८८ श्लो११४ शाकिनीनिवर्तकंयन्नं०६न-२०५.१८८ श्लोर - . सर्पभयहरंयन्त्र७८ न२०प०८ श्लो-११६/ 4. 4. देवदत्त देवदत देवदत्त For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंधमोक्षकरंयन्नं 75 त-२०प-१८० श्लो-११८ स्वर्णाकर्षणभैरवपूजनयंत्रं. त२०प०१८ श्लो-१२९ पात्रस्थापनयन्त्रमत-२२प-1 201 Y For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचायतनस्थापनक्रमः८२तः२२प-२०३ श्लो-३१ रवि गणेश विष्णु शिव गणेश रवि | गणेश रवि शिव गणेश विष्णु गणेश रवि शक्ति शिव शक्ति | विष्णु शक्ति | शिव शक्ति विष्णु रवि विष्णु वाशि For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie दमनपूजने यन्त्रम् ८३त-२३१-१३-श्लो.११ पवित्रयजनेयनं८४ त२२ प-१५ श्लो.५२ For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकथहचक्रम् ८५त-२४ प. लो.३ अकडमचक्रम् ८६त-२४ प२२०-श्लो-२१ hor FED ओ डबल झ मऔ ठ शलभ य < ! 44 > ई ध न क ज भइ ग घ * छ ब FD 개외 의 अ: त स ऐ ठ ल अंण ष ट र For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भशोधनचक्रन्त-२४१-२२० श्लो२८ साध्यारिशोधनेतृतीयचक्रम् 87 त-२४ पः२२० श्लो. 25 अउल प्रो आ ऊल्ली कडझडथपम खचअटदफय वह शल करो / मृ या पु | पू अआ घड. झर धजट तन भल सज्ञः इए अं गउटा धबर पक्ष नपफ For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir www.kobatirth.org ऋणधन शोधनचक्रम् ८रत-२४प-२२० श्लो-३२ मन्त्र शोधनेचक्रम् रात-२४५-२२२॥ श्लो.५३ एक छ डघमष ओ ओ " | श्राऐवज/ उनय ग | घ / ड. | /थनबक्ष पर ई औधात फरूक For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie भूतवाः 1 न.२४ प-२२३ श्लो. 8. जननयंत्रम् ॥१२॥त-२४ प२२५ मी.९८ पृथ्वी / अग्नि | वायु आकाश VAAAAAA InHF t; hr m. s8 for tor to this to a is porFFF a to. For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्याराज्ञीपूजनयंत्र॥७॥त-५५-४० श्लो-३२ छिन्नमस्ता पूजनयंत्रक न-६५-४५श्लो-१२ For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ahbet Subhekkies For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मधुमतीपूजनयन्त्रं 10 त 6 प.५९ श्लो-७४ बंधनमोक्षकरं यन्त्रम्।।११।। त-६५.५० श्लो-२४ अ0944694 अमुकं मोचय श्री हौं ॐ हा स्वा For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारापूजनयन्त्रम् / / 5 / / त०४ प० 35 लो.८७ For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताराधारगयन्त्रम् ॥६॥त०४ प०३५ श्लो०११८ * Ph 1222 अमुकंरक्षरक्ष शषसह अंभो/अभः बक्ष करवघड For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्निपूजनयन्त्रम् ॥१॥न०१प०८ श्लो०११३ For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणपति पूजनयन्त्रम् // 2 / / त०२५०१५ श्लो१४ For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालीपूजन यन्त्रम् ॥३॥त०३प०२४ श्लो०११ For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुमुरवी पूजनयन्त्रम् // 4 // 2035027 श्लो. 56 For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org अथप्रयोगः॥शास्त्रोक्तविधिनाशंकरालयभवान्यालयवा // मंडपंवेदिमध्यनिर्माय // प्रतीच्यांकुंडमध्येवा कृत्वा // कृतनित्यक्रियोमुककाम शतचंडीविधानमहंकरिष्यइतिसंकल्पविधाय // मातृस्थापननांदीश्राद्धं विधायस्वस्तिवाचनकृत्वा // उक्तलक्षणान्दशविप्रान्मधुपर्कवस्त्रहेमदानादिनावृणुयात् // तेचयजमानद तासनेषुदत्तमालाभिःसमाहिताःसुमनसोभगवतींस्मरंतःसप्तशतीमूलमंत्रेणवेद्यांकुंभंसंस्थापयित्वातत्रदुर्गा मावाह्यषोडशोपचारैःसंपूज्यतदग्रेप्रत्येकंदशकृत्वःसप्तशतीमयुतंचनवार्णजपेयुः // हविष्यभोजनब्रह्मचर्यभू नात्वानित्यकृतिकृत्वावृणुयादशवाडवान् / / जितेंद्रियान्सदाचारान्कुलीनान्सत्यवादिनः // 73 // व्युत्पन्नाञ्चंडिकापाठरताँल्लज्जादयावतः // मधुपर्कविधानेनवस्त्रस्वर्णादिदानतः॥७४॥ जपार्थमा सनमालांदद्यात्तेभ्योपिभोजनम् // तेहविष्यान्नमश्नंतोमंत्रार्थगतमानसाः // 7 // भूमौशयाना प्रत्येक जपेयुश्चंडिकास्तवम् // मार्कडेयपुराणोक्तंदशकृत्वःसुचेतसः।। 76 // शयनास्पृश्यास्पर्शादिनियमांश्चचरेयुः // यजमानश्चद्विवर्षाद्याउक्तलक्षणाअधिकांगीत्यादिदुर्लक्षणरहि ताः कुमारीत्रिमूर्तिकल्याणादिनाम्रीदशकन्या भोजनवस्त्रहेमदानादिनामंत्राक्षरमयीमित्यादिमंत्रणा वाह्यजगत्पूज्येत्यादिस्वस्वमंत्रैःपूजयेत् // एवंचत्वारिदिनानिजकुमारीपूजांचसमाप्यपंचमेहिकुंडेआग मोक्तपूर्वविधिनावडिंसंस्थाप्यपायसानादिभिरुक्तैर्द्रव्यैर्जुहुयुः // सप्तशत्या प्रतिश्लोकंदशवारंनवार्णेनायुतं चहोमसंख्याएकैकोद्विजःसकृत् सप्तशतीप्रतिश्लोकंसहस्रंमूलेनचजुहुयादित्यर्थः॥ 73 // 74 // 79 // 76 // For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१८ मं०म० IBHIT 77 // 78 // 79 // 8 // 81 // 82 // 83 // 84 // 85 // 86 // 87 // 88 // | नवार्णचंडिकामंत्रजपेयुश्चायुतंपृथक् // यजमानःपूजयेच्चकन्यानांदशकंशुभम् // 77 // द्विवर्षायादशा // 169 // ब्दांता कुमारी परिपूजयेत् // नाधिकांगीनहीनांगीकुष्टिनींचत्रणांकिताम् / / 78 // अंधांकाणांकेक्रां चकुरूपारोमयुक्तनुम्।।दासीजातांरोगयुक्तांदुष्टांकन्यांनपूजयेत् // 79 // विप्रांसर्वेष्टसंसिद्धयैयशसेक्ष वियोद्भवाम् // वैश्यानांधनलाभायपुत्राप्त्यैशूद्रजायजेत् // 8 // द्विवर्षासाकुमार्युक्तात्रिमूर्ति यन त्रिका // चतुरब्दातुकल्याणीपंचवर्षातुरोहिणी // 81 // षडब्दाकालिकाप्रोक्ताचंडिकासप्तहायनी॥ अष्टवर्षाशांभवीस्यादुर्गाचनवहायनी // 82 // सुभद्रादशवर्षोक्तास्तामःपरिपूजयेत् // एकान्दा या प्रीत्यभावोरुद्राब्दास्तुविवर्जिताः // 83 // तासामावाहनेमंत्राःप्रोच्यतेशंकरोदिताः // मंत्राक्षरम यीलक्ष्मीमातॄणांरूपधारिणीम् ॥८॥नवदुर्गात्मिकांसाक्षात्कन्यामावाहयाम्यहम्।।कुमारिकादिकन्या नांपूजामंत्रान्वेऽधुना // 86 // जगत्पूज्येजगद्वंद्येसर्वदेवस्वरूपिणि // पूजागृहाणकौमारिजगन्मातर्नमो स्तुते॥८६॥त्रिपुरांत्रिपुराधारांत्रिवर्गज्ञानरूपिणीम्।।त्रैलोक्यवंदितादेवींत्रिमूर्तिपूजयाम्यहम् // 87 // कलात्मिकांकलातीतांकारुण्यहृदयांशिवाम् // कल्याणजननीदेवींकल्याणीपूजयाम्यहम् // 88 // Sa||169 // For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 49 // 90 // 91 // 92 // 93 // 94 // 95 // 96 // 97 // 98 // 99 // 20 // अणिमादिगुणाधारामकाराद्यक्षरात्मिकाम् // अनंतांशक्तिकालक्ष्मीरोहिणीपूजयाम्यहम् // 89 // कामचारांशुभांकांतांकालचक्रस्वरूपिणीम् // कामदांकरुणोदारांकालिकांपूजयाम्यहम् // 9 // चंडवीरांचंडमायांचंडमुंडप्रभंजनीम् // पूजयामिमहादेवींचंडिकांचंडविक्रमाम् // 91 // सदानं दकरीशांतांसर्वदेवनमस्कृताम्॥सर्वभूतात्मिकादेवींशांभवीपूजयाम्यहम् // 92 // दुर्गमेदुस्तरेकार्थेभ वार्णवविनाशिनि / पूजयामिसदाभत्त्यादुर्गादुर्गातिनाशिनीम् ॥१३॥सुंदरीस्वर्णवर्णाभांसुखसौभाग्य दायिनीम्।।सुभद्रजननोंदेवींसुभद्रांपूजयाम्यहम्॥९॥एतैमैत्रैःपुराणोक्तैनातांकन्यांप्रपूजयेत् // गंधैः पुष्पैर्भक्ष्यभोज्यैर्वस्त्रैराभरणैरपि // 95 // वेद्यांविरचितेरम्येसर्वतोभद्रमंडले // घटसंस्थाप्यवि धिवत्तत्रावाह्यार्चयेच्छिवाम् // 96 // तदग्रेकन्यकाश्चापिपूजयेद्राह्मणानपि // उपचारस्तुविविधैः पूर्वोक्तावरणान्यपि // 97 // एवंचतुर्दिनकृत्वापंचमेहोममाचरेत् / पायसान्नैस्त्रिमध्वक्तैीक्षारंभाफलै रपि // 98 // मातुलिंगैरिक्षुखंडैनारिकेलैःपुरैस्तिलैः ॥जातीफलैराम्रफलैरन्यैर्मधुरवस्तुभिः // 19 // सप्तशत्यादशावृत्त्याप्रतिश्लोकहुतंचरेत् // अयुतंचनवाणेनस्थापितानौविधानतः // 20 // / For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 17 // ततःआवरणदेवतानांनाममंत्रैस्तारादिस्वाहतिरेकैकामाहुतिंहुत्वापूर्णाहुतिंकृत्वादेवीकुंभस्थांसंपूज्यबलि | दानंविधायऋत्विग्भ्यःप्रत्येकनिष्कमअशक्तोसुवर्णमितंसुवर्णदद्यात् // 201 // 202 // तताविप्राःकलशोदके नयजमानंनिगमपुराणोक्तमंत्रैरभिषिचेयुराशिषश्चदाः // ततःशतंविप्रान्नानाविधान जयेत् // तेभ्योपित०१८ कृत्वावरणदेवानांहोमंतनाममंत्रतः // कृत्वापूर्णाहुतिसम्यग्देवमंनिविसऱ्याच // 201 // अभिषिचे चयष्टारविप्रौषःकलशोदकैः // निष्कंसुवर्णमथवाप्रत्येकंदक्षिणांदिशत् // 202 // भोजयेच्चशतविप्रा नभक्ष्यभोज्य पृथगविधैः // तेभ्योपिदक्षिणांदत्त्वागृह्णीयादाशिपस्ततः // 203 // एवंकृतेजगदृश्यं सर्वेनश्यत्युपद्भवाः ॥राज्यंधनंयशःपुत्रानिष्टमन्यल्लभेतसः // 204 // एतद्दशगुणंकु-चंडीसाहस्त्र जंविधिम् // विद्यावतःसदाचारान्ब्राह्मणान्वृणुयाच्छतम् // 205 // प्रत्येकंचंडिकापागन्विदध्युस्ते दिशामितान् // अयुतंप्रजपेयुस्तेप्रत्येकंनववर्णकम् // 206 // यथाशक्तिदक्षिणांदद्यात् // इतिशतचंडीविधिः॥ 203 // शतचंडीविधेःफलमाह // एवंकृतइति // 204 // सहनचंडीविधानमाह // एतद्दशगुणमिति // शतचंडीविधानंदशगुणसहस्रचंडीविधानमित्यर्थः // तत्र // 17 // शविप्रवरणम्॥२०५॥तेशतविप्राःप्रत्येकंदशदशसप्तशतीपाठान्कुर्युअयुतमयुतंनवार्णजपंचकुर्युः॥२०६॥ For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतकन्याश्चभोज्या पूज्याः // एवंदशदिनेषुसंपाद्यएकादशेह्निसप्तशतीशतावृत्त्याप्रतिश्लोकंतल्लक्षसंख्यंन | र्वाणेनचहोमः // 207 // 208 // ऋत्विग्भ्योपिदश 2 निष्कमितंसुवर्णप्रत्येकंदद्यात् // शेषपूर्वोक्तवत् // इति सहस्रचंडीविधिः॥२०९ // एतत्फलमाह // एवंसहस्रसंख्याकभिति // एतदयुतचंडीविधानलक्षचंडीविधान पूर्वोक्ताःकन्यकाः पूज्या पूर्वमंत्रैःशतंशुभाः // एवंदशाहसंपाद्यहोमंकुर्युःप्रयत्नतः॥२०७ // सप्तश त्याशतावृत्त्याप्रतिश्लोकंविधानतः॥ लक्षसंख्यंनवार्णेनपूर्वोक्तैर्द्रव्यसंचयैः // 208 // होतृभ्योदक्षिणां दत्त्वापूर्वोक्तान्भोजयेद्विजान् // सहस्रसंमितान्साधून्देव्याराधनतत्परान् // 209 // एवंसह स्रसंख्याककृतेचंडीविधौनृणाम् // सिद्धयत्यभीप्सितंसर्वदुःखौघश्चविनश्यति // 210 // मारीदु भिक्षरोगाद्यानश्यतिव्यसनोच्चयाः // नेमविधिवदेइष्टेखलेचौरेगुरुद्वहि // 211 // साधौजितेंद्रिये दांतेवदेविधिमिमंपरम् // एवंसाचंडिकातुष्टावक्तृञ्छोतॄश्चरक्ष्यति // 212 // इतिमंत्रमहोदधौकाल रात्रिचंडीमंत्रकथनंनामाष्टादशस्तरंगः॥ 18 // योरुपलक्षणंसहस्रचंडीदशगुणोऽयुतचंडीविधिः // सदशगुणोलक्षचंडीविधिः // जपेहोमेदक्षिणायांकन्या सुविप्रभोजनेचदशगुणत्वम् // 210 // 211 // 212 // इतिमंत्रमहोदधिनौकाटीकायामष्टादशस्तरंगः // 18 // For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंन्म // 17 // कुक्कुटमंत्रंवक्तुंप्रतिजानीते // चरणेति // 1 // मंत्रमुद्धरति // तीक्ष्णइति // तीक्षणायकारः। अध/शेंदुयुक्ताः॥ सटीक ऊबिंदुयुतः॥ तेनयूं // विधिःकः॥ सद्योजातयुतओयुतः।।को। पिनाकीलः सूक्ष्मयुक्इयुतालि // एतद्वर्ण वयंपुनर्वारद्वयम् // यूंकोलियूंकोलीति // 2 // उत्कारी वकारः // दीर्घआ॥ तेनसंयुक्ता वा / मायावीजहींत.१९ चरणायुधमंत्रस्यविधानमभिधीयते // मंत्रीयद्विधिनाकृत्वासाधयेत्स्वमनोरथान् // 1 // तीक्ष्णोर्षी शेंदुसंयुक्त सद्योजातयुतोविधिः // पिनाकीसूक्ष्मयुग्वर्णत्रयमेतत्पुनःपठेत् // 2 // उत्कारीदी घसंयुक्तामायाबीजंततोवदेत् // द्विरभ्यस्तंपुनर्वर्णत्रयंपूर्वोदितंपुनः // 3 // कूर्मःसकोवोदी! मंत्रोयंसमुदीरितः // पाशायोंऽकुशबीजांतोष्टादशाक्षरसंयुतः // 4 // महारुद्रोमुनिश्चास्यच्छंदोति जगतीरितम् // मायावीजंसृणिःशक्तिर्देवताचरणायुधः // 5 // वेदरामाक्षिरामाग्निवह्निवर्गःषडं गकम् // कृत्वावर्णान्प्रविन्यस्येन्मानिभालेभ्रुवोर्द्वयोः // 6 // पूर्वोदितंपुनर्वारद्वयंद्विरभ्यस्तंपुनर्वदेदित्यन्वयः // 3 // कूर्मःच // सकर्णउयुतःचु॥ दीर्घावोवा // पाशाद्यः आमाद्यः // अंकुशबीजांतः क्रोमंतः // यथा // आंयूकोलियूकोलिवाह्रींयूकोलियूंकोलिचुवाक्रोमि मति // 4 // 5 // षडंगमाह // वेदेति // आयूकोलिहृदयायनमइत्यादि // 6 // वर्णन्यासमाह // मूर्तीति // // 17 // 1 अस्यचरणायुधमंत्रस्यमहारुद्रऋषिःभतिजगतीछंदःहीबीजंक्रोशक्तिःचरणायुधदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे / For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुवाक्षिश्रुतिनासासुद्वेद्वे // अन्यत्रैकैकम् // 7 // ध्यानमाह // सर्वेति // सर्वालंकारैर्दीप्तःकंठश्चरणौचयस्य॥ निजानुसेवकान्पायाद्रुक्षतु // 8 // 9 // शैवपीठेवामादिशक्तियुते // 10 // 11 // सुराधीशप्रमुखा अक्ष्णो श्रुत्योर्नसोर्वकेकंठेकुक्षौचनाभितः // लिंगेगुदेजानुपादेन्यस्यैवंसंस्मरेत्प्रभुम् // 7 // सर्वालंकृति दीप्तकंठचरणोहेमाभदेहद्युतिःपक्षद्वंद्वविधूननेऽतिकुशल सर्वामराभ्यर्चितः // गौरीहस्तसरोजगोरुण शिखःसर्वार्थसिद्धिप्रदोरक्तंचंचुपुटंदधच्चलपदःपायानिजान्कुक्कुटान् // 8 // एवंध्यात्वासमासीन शै लाग्रेसरितस्तटे // वृषशून्यपश्चिमास्थेयद्वाशंकरसद्मनि // 9 // लक्षंजपेद्दशांशेनतिलेहवनमाचरेत् // शैवेपीठेयजेत्ताम्रचूडंगोरीकरस्थितम् // 10 // आदावंगानिसंपूज्यदलेषुप्रयजेदिमान // शंभुगौ राँगणपतिकार्तिकेयंततःपरम् // 11 // मंदारंपारिजातंचमहाकालंचबर्हिणम् // दलाग्रेषुसुराधीशप्रमु खानायुधान्वितान् // 12 // एवंकृतेप्रयोगार्होजायतेमंत्रनायकः॥ प्रयोगादौप्रजप्योसावयुतंद्विशता धिकम् // 13 // दनाक्षीरेणमधुनाचंद्रेणसितयान्वितैः // दद्यादलिंसतांबूलैःपायसैबलिमंत्रतः // 14 // भोजनादोभोजनांतेलक्ष्मीसंप्राप्तयेसुधीः // बलिमेतत्प्रदत्त्वाथकुवेरोधननाथताम् // 15 // शांतोपुष्टावपिबलिमेतमेवप्रदापयेत् // उक्तस्यवक्ष्यमाणस्यबलेमत्रोऽथकथ्यते // 16 // निंद्रादीन् // 12 // 13 // चंद्रेणकर्पूरेण // 14 // 15 // 16 // For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ०म० सटीक // 172 // त०१९ बलिमंत्रमाह // वामेति // वामकर्णेदुयुक्शूरः॥ ऊबिंदुयुतायः॥ यूं // चरमःक्षः॥ सबिंदुःक्षं // अद्रिजाह्रीं॥ वायुम्यासचंद्र सबिंदुःयं // कर्णंदुयुक्चक्रीउबिंदुयुतःकाकुं // गिरिनंदिनीह्रीं // 17 // 18 // स्वरूपम वामकर्णेन्दुयुच्छूर सविंदुश्वरमेद्रिजा // कुक्कुटद्वितयंपश्चादेह्येहीमंबलिंवदेत् // 17 // गृह्णयुग्मंगृ हापयसर्वान्कामांश्चदेहिच // वायुःसचंद्र कर्णेदुयुक्चक्रीगिरिनंदिनी // 18 // यूंनमः कुक्कुटायेतिमंत्रोव्योमयुगाक्षरः // बलिंदद्यादनेनोक्तंवक्ष्यमाणंचसाधकः // 19 // लाजैस्त्रिमधु रोपेतैर्दद्यान्मंत्रीवलिंनिशि // वशयेदखिलंविश्वत्रिदिनवोदनैर्नृपम् // 20 // दुग्धमिश्रितगोधूमपिष्टैःकु र्यादपूपकम् // आज्यकर्पूरयुक्तेनतेनदद्यालिनिशि // 21 // त्र्यहमेवंबलौदत्तेसुखीस्यावशयेज गत् // करवीरैबिल्वपत्रैपीतपुष्पैःसुगंधिभिः // 22 // सहस्रसंख्यैःप्रत्येकंपूजयित्वाजपेन्मनुम् // सहस्रनिशिसप्ताहंयमुदिश्यजनंसुधीः // 23 // न्यत् // यथायूक्षह्रींकुकुट 2 एह्येहिइमंबलिंगृह 2 गृहापयसर्वान्कामान्देहियंकुंह्रींबूनमाकुक्कुटायतिव्योम युगाक्षरश्चत्वारिंशदर्णः॥ अनेनमंत्रेणपूर्वोक्तंबलिंवक्ष्यमाणंचदद्यात् // 19 // ओदनैस्त्रिदिनंबलिंदत्त्वानृपंव |शयेत् // 20 // 21 // 22 // 23 // // 17 // For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 24 // 25 // 26 // वसुघनतमष्टदिनपर्यंतम् // अधियामिनिरात्रौ // 27 // 28 // 29 // प्रयोगांतरमा ह // कर्मारेति // लोहकारकगृहाद्वह्निमानीय // लोहपात्रेसंस्थाप्य // करवीरकाष्ठैःसंदीप्य // तत्रसर्षपतै सयातिदासतांतस्यमनोवचनकर्मभिः॥छागलावकयोमासै सप्ताहवितरेलिम् // 24 // सहस्रप्रत्यहं जवावशयेदखिलंजगत् // नृपोत्थितेसपत्नोत्थेभयेजातेचसंकटे // 25 // आपद्यपितथान्यस्यांबलिं दद्यात्सुखाप्तये // गोपनीयोविधिरयंवले कथ्योनदुर्मतौ॥२६॥ मुक्तकेशउदावक्रोजपेद्भानुसहस्रकम्॥ प्रत्यहंवसुघस्रांतंयमुद्दिश्याधियामिनि // 27 // तमाकर्षतिदूरस्थमपिकिंनिकटस्थितम् // जाती फलैलासंचूर्ण्यकर्पूरमध्यतःक्षिपेत् // 28 // अभिमंत्र्यार्कसाहस्रसिंदूररजसायुतम् // उष्णीकृत्याग्निता पेनक्लेदयेद्गांगपाथसा // 29 // स्थापयेदायसेपात्रेतत्स्पृष्टस्तंभितोभवेत् // कर्मारसझनोवह्नि मानीयायसभाजने // 30 // स्थापयित्वेधयेत्काष्ठैःकरवीरसमुद्भवैः // जुहुयात्तत्रधतूरबीजानिशत संख्यया॥३१॥सिद्धार्थतैललिप्तानिविषकर्णयुतानिच // सप्ताहएवंकृत्वारिंस्थानादुच्चाटयेब्रुवम् // 32 // लाक्तानिविषचूर्णयुतानिधनूरबीजानि // शतंशतंसप्ताहंहुत्वाशत्रुमुच्चाटयेत् // एवंपक्षकृत्वातं देशांतरं नयेत् // मासंकृत्वामारयेत् // 30 // 31 // 32 // For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HETHER सटीक मं०म० // 173 // त०१९ R - R प्रयोगांतरमाह // तालेति // नराकारंतालपत्रंकृत्वातत्रशत्रोप्राणान्संस्थाप्यभल्लातकतैलेनविलिप्यअष्टा धिकंसहस्रमभिमंत्र्यतस्यपंचाशत्खंडानिकृत्वाधत्तूरकाष्ठदीप्तेश्मशानाग्नौत्रिदिनंहुत्वारिंमारयेन्मोहयेच्च // पसंदेशांतरगतमासंसंप्रापयेन्मृतिम् // तालपत्रंनराकारंकृत्वावस्थापयेदसून् // 33 // जपेदष्टसहस्रंत त्तीक्ष्णतैलविलेपितम् // तस्यखंडानिपंचाशत्कृत्वापितृवणोत्थिते // 34 // उन्मत्ततरुसंदीप्तेजुहुया जातवेदसि // एवंप्रकुर्वस्त्रिदिनमारयेन्मोहयेदरिम्॥३६॥साध्यक्षतरुकाष्ठेनकृत्वापुत्तलिकांशुभाम् // तस्यामसून्प्रतिष्ठाप्यसहस्रप्रजपेन्मनुम् // 36 // चिताकाष्ठस्यकीलेनतांस्पृष्ट्वापितृकानने // छि द्यायदंगंशोणतदंगतस्यनश्यति // 37 // वैरिमूत्रयुतांमृत्नांतत्पादरजप्तासह // कुलालमृद्युतांकृ त्वापुत्तलीरचयेत्तथा // 38 // तस्याहृदिपदेमूत्रिनामकर्मान्वितमनुम् // लिखेच्छ्शानजांगाररसून् संस्थापयेत्ततः॥३९॥जप्तांसहस्रमंत्रेणतीक्ष्णतैलविलोपताम्॥शस्त्रेणशतधाकृत्वाजुहुयापितृभूवसौ४० // 33 // 34 // 35 // प्रयोगांतरमाह // साध्येति // नक्षत्रवृक्षाउक्ताः // चिताकाष्ठकीलेनतांपुत्तलीस्पृष्ट्वा मनुंजपेदितिपूर्वेणसंबंधः // तस्याप्रतिमायायदगंशस्त्रेणच्छिद्यात्तदंगंतस्यशत्रोर्नश्यति // 36 // 37 // प्रयोगांतरमाह // वैरीति // 38 // 39 // पितृभूवसौश्मशानानौ॥ 40 // | 1 हदिममुकनामपदेनमुकस्यामुकंकुरुमामिंबंलिखेत् // BREARRORIERSamarst // 173 // For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यमाशावदनोदक्षिणदिङ्मुखः॥ निधनताराजन्मनक्षत्रात्सप्तमनक्षत्रम् // षोडशंपंचविंशंच // 41 // प्रयोगां तरमाह // निधायति // गोमयेनशत्रोःप्रतिमांकृत्वानामविदर्भितंमंत्रंतालपत्रेविलिख्यतत्तालपत्रंगोमयप्र तिमाहदिनिक्षिप्यप्रतिमोपरिरूप्यताम्रमृदामन्यतरनिर्मितंघटंसंस्थाप्यगोमयोदकाभ्यामापूर्यतत्रापिना मविदर्मितंमंत्रलेखयुतंताडपत्रंनिक्षिप्यतत्रशत्रोःप्राणस्थापनंकृत्वाप्रत्यहंत्रिसंध्यंशतमंत्रंकुंभंस्पृष्ट्वाजपेत् // विभीतकाष्ठसंदप्तियमाशावदनोनिशिशत्रोनिधनतारायांकृत्वैवंमारयेदरिम् // 41 // निधायगोमयंभू / मौप्रकुर्यात्प्रतिमांरिपोः॥ ताडपत्रेसमालिख्यमनुनानाविदर्भितम्॥४२॥ तत्पत्रंनिक्षिपेत्तस्याहृदित त्प्रतिमोपरि॥ मृजंवाराजतंकुंभंगोमयोदकपूरितम्॥४३॥मनुनामयुतंताडपत्रेणाव्यंनिधापयेत्॥तदसू न्स्थापयेत्कुंभेत्रिसंध्यंजपेन्मनुम् // 44 // प्रत्यहंशतसंख्याकंछायायावद्भवोद्रेपोः // गोमयांभसिदृष्टा यांतच्छायायांतुसाधकः॥४५॥अवस्थाया प्रतिकृतेच्छिद्यादंगमभीप्सितम् // शस्त्रेणतस्यनाशायमृतये हृदयंगलम्॥४६॥प्रविद्धकंटकैर्मूत्रिशिरोरोगोभवेद्रिपोःआधयोहृदयविद्धपदो पादव्यथाभवेत्॥४७॥ यावत् शत्रो प्रतिबिंबंघटेदृश्यतेतावत्कालंजपेत् // घटोदकेशत्रुप्रतिबिंबेदृष्टघटाधस्थाया गोमयप्रतिमा यायदंगंछिद्यतेतद्रिपोर्नश्यति॥हृदिगलेचछिन्नेतन्मृतिः॥ प्रतिमामूद्धिकंटकैविधेशिरोरोगः॥ हृदिविद्धमनः पीडा। पादयुग्मेकंटकविद्धपादरोगइत्यादि॥४१॥ 42 // 43 // 44 // 45 // 46 // 47 // 14 HINDI Man TRAN i For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 17 // त०१९ दारुणेत्यारभ्यहर्यक्षंकरिणोयथेत्यंतमेकःप्रयोगः // 48 // 49 // 50 // हर्यक्ष केसरी ॥चंदनादिभिरित्या / सटीक दिशब्दात् कुंकुमकस्तूरीकर्पूरगजमदाः॥५१॥॥५२॥५३ // शास्तृमंत्रमाह // अथेति / / शास्ताशंभोर्गण दारुणाकुक्कुटंकृत्वातत्रास्यस्थापयेदसून् // तंस्पृष्ट्वापूर्ववद्धयात्वाजपेद्रविसहस्रकम् // 18 // उप चारैःसमभ्यय॑च्छादयेद्रक्तवाससा // रथेसंस्थाप्यतदेवंदिक्षुयोधानिधापयेत् // 49 // चतुरोवर्म संवीतानश्वारूढानुदायुधान् // तत्संयुतोरणेगच्छेजेतुंबलवतोरिपून् // 50 // वीराढयंकुक्कुटंदृष्ट्वापला यंतेरणेऽरयः॥भीतादशदिशःसर्वेहर्यक्षेकरिणोयथा // 51 // ताम्रचूडस्यमंत्रेणमोदकायभिमंत्रितम्॥ यस्मैदीतभक्षायसवशोमंत्रिणोभवेत् // 52 // अष्टोत्तरशतंजप्त्वारोचनाचन्दनादिभिः // विदधत्तिल कंभालेदर्शनाद्वशयेजनान् // 53 // अथवक्ष्येशास्तृमंत्रमुपासकसमृद्धिदम् // शास्तारंमृगयेत्यु क्त्वाश्रांतमश्वामिरूयुतः॥५४॥ढंगणावृत्तमित्युक्त्वापानीयार्थवनाचदे॥त्यशास्त्रेतेततोरैवतेनमोमंत्रई रितः // 55 // द्वात्रिंशदोस्यऋषिरैवतःपरिकीर्तितः।पंक्तिश्छन्दोदेवतातुमहाशास्ताखिलेष्टदः॥१६॥ विशेषः // शास्तारंमृगयाश्रांतमश्वारूढंगणावृतम्॥पानीयार्थवनादेत्यशास्त्रेतरेवतेनमइतिश्लोकरूपोमंत्रः // 17 // अग्नीरेफाऊयुतःरू॥५४॥५५॥५६॥ 1 अस्यशास्तृमंत्रस्यरैवतऋषिःपंक्तिश्छंदःमहाशास्तादेवताममाभीष्ट० // For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie // 57 // 58 // 59 // 60 // 61 // गायत्र्या भूताधिपायेत्यादिकया // 62 / / 63 // 64 // 65 // पार्थिव पादैःसर्वेणपंचांगंकृत्वात्मनिवि स्मरेत् // साध्यस्वपाशेनविवध्यगाढनिपातयंतखलुसाधकस्यापादा ब्जयोदडधरंत्रिनेत्रंभजेतशास्तारमभीष्टसिद्ध्यै॥१७॥लक्षमेकंजपेन्मंत्रंदशांशंजुहुयात्तिलैः॥ शैवेपीठे यजेद्देवमादावंगानिपूजयेत्॥२८॥दलेष्वष्टसुगोप्तारंपिंगलाक्षततःपरम्।।वीरसेनंशांभवंचत्रिनेत्रंशूलिनंत था // 29 // दक्षंचभीमरूपंचदिक्पालानत्रसंयुतान् // एवंसिद्धोमनुःसर्वमभीष्टमंत्रिणेऽर्पयेत् / / 60 // मध्याह्नजलिनातस्मैजलंदत्त्वाजलार्थिने // गोप्तादिभ्यस्तद्गणेभ्योदद्यादष्टौजलांजलीन् // 6 // जलसंतर्पितःशास्तासगणोऽभीष्टदोभवेत् / निशितस्मैवलिंदद्याद्गायत्र्याचाभिमंत्रितम् / / 62 // तद ग्रेप्रजपेन्मूलमष्टोत्तरशतंसुधीः // भूताधिपायशब्दांतेविद्महेपदमीरयेत् // 63 // महादेवायचं ततोधीमहीतिपदंवदेत् // तन्नःशास्ताप्रचोवर्णादयादितिचकीर्तयेत् // 64 // गायत्र्येषो दिताशास्तुःसर्वाभीष्टप्रदानृणाम् // अथपार्थिवलिंगस्यविधानमाभिधीयते // 65 // स्नातोनित्यंवि धायादोगत्वाशुद्धांभुवंसुधीः // उपरिष्ठामपाकृत्यषडणेनाधिमंत्रयेत् // 66 // लिंगविधानमाह / / स्नातइत्यादि // 66 // 1 भूताधिपायविद्महेमहादेवायधीमहितन्नःशास्ताप्रचोदयात् // For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म०षर्णमाह // आकाशइति // आकाशोहः // पृथिवीशेषस्थितः लआयुतः बिंदुयुतश्चहां // चतुर्थ्यता ISF सटीक पृथिवीपृथिव्यैनमइति // 67 // 68 // गणेश्वरकुमारयोर्मत्रौवक्ष्यमाणी // हराद्यांश्चसप्तमंत्रान्वक्ष्यमाणान् // 17 // 69 // विवस्वतेसूर्यायाधम् // पूर्वोक्तम् // 70 // सुधयावमितिबीजेनमंत्रितजलेनमृदमासिंच्येत्यन्वयः॥ त०१९ आकाशःपृथिवीशेषस्थितोविंदुसमन्वितः॥पृथिवीतुचतुर्थ्यतानमोंत स्यात्पडर्णकः॥६५॥ ततोमृदमु पादायकृत्वानिःशर्करांततः॥पात्रनिदध्यात्संशुद्धेप्रत्यहंपूजनायताम् // 68 // सुदिनेसद्गुरोमैत्रीगणेश्वर कुमारयोः॥ हरायाश्चमनून्सप्तरीयाद्यागसिद्धये // 69 // अथार्चनंशुभेवरेआरभेतेष्टसिद्धये // कृत नित्यक्रियःशुद्धःप्रदाया_विवस्वते // 70 // मृदमादायतोयेनसुधयामंत्रितेनच ॥आसिंच्यपिंडयेत्स्वे ष्टमानांपात्रेनिधापयेत् // 71 // ततःकालमनुस्मृत्यकामनामपिद्दताम् // लिंगानिपार्थिवानीहपूज येऽमुकसंख्यया // 72 // संकल्प्यैवंमृदःपिंडादादायाल्पांमृदंसुधीः॥ एकादशार्णमंत्रेणकुर्याद्वालगणे श्वरम् // 73 // मायागणेशभूवीजडेंन्तोगणपतिःपुटः॥ एकादशार्णमंत्रोयंस्मृतोबालगणेशितुः // 7 // // 71 // 72 // 73 // बालगणेश्वरमंत्रमाह // मायेति / / मायाहीं॥ गणेशगं // भूबीजंग्लौं // गणपतयेग्लौं // 17 // गहीमिति // हरमंत्रेण॥ॐनमोहरायति॥अक्षविभीतकफलम्॥ॐनमोमहेश्वरायेतिमंत्रणलिंगकुर्यात् // 7 // 1 हींग्लौंगंगणपतयेग्लौंगंहीं / For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Salm75 // 76 // लिंगमानमाह // अंगुष्ठेति // अंगुष्ठादिद्वादशांगुलांतंयथेष्टंकुर्यात् / / 77 ॥ॐनमःशूलपाणये इतिमंत्रणपीठेलिंगंस्थापयेत् // 78 // 79 // कुमारमंत्रमाह // वागिति // वाऐं // वर्महुँ // कर्णबिंद्वादयः वराभयलसत्पाणिपद्मबालगणेश्वरम् // निर्मायस्थापयेत्पीठेलिंगानिरचयेत्ततः // 75 // हरमन्त्रेणगृ हीयादक्षमात्राधिकांमृदाम् // महेश्वरस्यमंत्रेणलिंगंकुत्तियाशुभम्॥ 76 // अंगुष्टमानादाधिकवित स्त्यवधिसुंदरम् // पार्थिवंरचयेल्लिंगंनन्यूननाधिकंचतत् // 77 // शूलपाणेस्तुमंत्रेणलिंगंपीठेनिधाप येत् // एवमन्यानिकुतियथासंकल्पमादरात् // 78 // अवशिष्टमृदाकुर्यात्कुमारंतस्यमंत्रतः // स्थापयेल्लिंगपंक्त्यंतेस्वमंत्रेणार्चयेच्चतम् // 79 // वाग्वर्मकर्णविंद्वाव्यश्चरमोमीनकेतनः // कुमाराय नमोंतोयंगुहमंत्रोदशाक्षरः // 80 // मंत्रेणावाहयेदेवंप्रतिलिंगपिनाकिनः // ततोलिंगस्थितंध्याये त्सुप्रसन्नम्महेश्वरम् // 81 // ऊबिंदुयुतःचरमरक्षाक्षु // मीनकेतनक्लींस्पष्टमन्यत् // 80 // ॐनमःपिनाकिनेइतिलिंगेशिवमावाहयेत् // 8 // 1 ऐ हुं क्लीकुमारायनमः / For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० ध्यानमाह // दक्षेति // दक्षदोष्णादक्षिणबाहुना // दक्षिणोत्संगस्थंगणेशंप्रामृशन् // अपरेणवामबाहुना वामोरुस्थितायाअगपतितनयायापार्वत्याउत्संगेवर्तमानंगुहंकुमारंचप्रामृशन् ॥इष्टाभीतीवराभयेकराभ्यां // 176 // दक्षवामाभ्यांधारयन् // 82 // ॐनमःपशुपतयेइतिमंत्रेणनापयेत्॥ॐनमःशिवायेतिमंत्रेणवहिरेतसेशंकराय गंधपुष्पधूपदीपनैवेद्यान्यर्पयेत् // 83 // आवरणार्चनमाह // प्रागादीति // क्षित्यादिमूर्तीन्शर्वादीन्प्रागा दक्षांकस्थंगजपतिमुखप्रामृशन्दक्षदोष्णावामोरुस्थानगपतनयांकेगुहंचापरेण // इष्टाभीतीपरकरयु गेधारयन्निंदुकांतिरव्यादस्मांत्रिभुवननतोनीलकंठस्त्रिनेत्रः // 82 // एवंध्यात्वापशुपतेर्मत्रेणनापये च्छिवम् // शिवमंत्रेणगंधादीनपयेद्वसुरेतसे // 83 // प्रागादिवामावर्तेनदिश्वष्टौपरिपूजयेत् // शर्वभ वंरुद्रमुग्रंभीमंपशुपतितथा // 84 // अादिषुचवामावर्तेनपूजयेत् // क्षित्यादीनाह // क्षित्यत्तेजइत्यादि // यथा // शर्वायक्षितिमूर्तयेनमःपूर्वे // भवायजलमूर्तयेनम ईशाने // रुद्रायतेजोमूर्तयेनमउत्तरे // उग्रायवायुमूर्तयेनमोवायौ // भीमायाकाश मूर्तयेनम पश्चिमे // पशुपतयेयजमानमूर्तयेनमोनैर्ऋत्ये // महादेवायचंद्रमूर्तयेनमोदक्षिणे // ईशानायसूर्य मूर्तयेनम आग्नेये // इति // 84 // 176 // For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org // 85 // 86 // ॐनमोमहादेवायोतिविसृजेत् // हरादिमंत्रानाह // तारेति // प्रणवनमःआद्याश्चतुर्थ्यताह राद्याः॥ अद्रयःसप्तसंख्याकामंत्राः॥ ॐनमोहरायेत्यादयोमयोक्ताः // 87 // एवमेकंसंपूज्यापरंपूजयेत् // अल्पकालेबहुकरणपक्षेबहूनिसहैवपूजयेत् // गणेशगुहौस्वमंत्राभ्यामेवाखिलोपचारैःसंपूज्यविसर्जयेत् // महादेवमथैशानंक्रमात्क्षित्यादिमूर्तिकान् // क्षित्यप्तेजोनिलाकाशयजमानेंदुभास्कराः // 85 // क्षित्यादयःस्युःशर्वाद्यास्ततइंद्रादिकान्यजेत् // धूपदीपनिवेद्यानिनमस्कारप्रदक्षिणाः // 86 // जपं चकृत्वाविसृजेन्महादेवस्यमंत्रतः // तारनत्यादिकान्ताहराबामनवोद्रयः // 87 // प्रतिलिंगंयजेदे वमखिलानिसहैववा // पूजितौनिजमंत्राभ्यांविसृजेद्गणरागृहौ // 88 // धनपुत्रादिकामैस्तुशिवो य॑ प्रोक्तलक्षणः // विद्याकामैश्चिन्तनीयःपरशुहरिणंवरम् // 89 // ज्ञानमुद्रांदधद्धस्तैर्वटमूलमुपा श्रितः // पुंसोविरुद्धयोःसंधौकुर्याल्लिंगानिसाधकः // 9 // // 88 // विद्याकामस्यध्यानमाह // परशुमिति // वरज्ञानमुद्रेदक्षयोः // परशुहरिणौवामयोः // संधौअर्द्ध हरिहराध्येयः॥शंखपद्मौहरिहस्तयोगानागशूलेहरहस्तयोः॥इंद्रनीलनिभाहरिशरच्चंद्रनिभोहरः८९॥९०॥ १ॐनमोमहादेवायमंत्रेण // 2 ॐ नमोहरायनमः // For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० सटीक เอาล้องแอร์นอร์ // 177 // त०१९ // 91 // 92 // 93 // उच्चाटनादिषुध्यानमाह // कालीति // शूलेप्रोतः शत्रुसमूहोयेन // कार्यवशतःअल्पे नदीतीरद्वयानीतमृदातानिचपूजयेत // तत्रध्येयोहरिहर शंखपद्माहिशलभूत // 91 // इंद्रनीलश रच्चंद्रनिभोभूषणपुंजवान्॥दंपत्योरविरोधार्थमर्द्धनारीश्वर स्मृतः // 92 // पीयूषपूर्णकलशंदधत्पाशां कुशावपि // उच्चाटेमारणेद्वेषेध्यातव्यःपुनरीदृशः // 93 // कालीहस्तांबुजालंबःशूलप्रोतद्वि पच्चयः // मुंडमालालसत्कंठोराववित्रासिताखिलः // 94 // इत्थंतुकामनाभेदाव्यानभेदाःप्रकी तिताः॥ पूजयेत्कार्यवशतोलक्षावधिसहस्रतः॥ 95 // लक्षपार्थिवलिंगानांपूजना विमुक्तिभाक् // लक्षतुगुडलिंगानांपूजनात्पार्थिवोभवेत्॥९६॥यानारीगुडलिंगानिसहस्रपूजयेत्सती // भर्तुःसुखमखंडं साप्राप्यतेपार्वतीभवेत् // 97 // नवनीतस्यलिंगानिसंपूज्यष्टमवाप्नुयात् // भस्मनोगोमयस्यापिवालु कायास्तथाफलम् // 98 // क्रीडतिपृथुकाभूमौकृत्वालिंगंरजोमयम् // पूजयंतिविनोदेनतेपिस्युःक्षिति नायकाः॥९९॥प्रातर्गोमयलिंगानिनित्यंयस्त्रीणिपूजयेत्॥बृहतीविल्वयोःपत्रैनैवेद्यगुडमर्पयेत् // 10 // कार्येऽल्पानांपूजाकार्यगौरवेबहूनांपूजा // 94 // 95 // 96 // 97 // 98 // 99 // धनप्रापकंप्रयोगमाह // प्रातरिति // 10 // 177 // For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपदावहंप्रयोगमाह // एकादशेति // प्रत्यहंकालचतुष्टयेएकादशैकादशपूजयेत् // 101 // 2 // एनोनि करः पापौघस्तस्यनाशनम् // उदुंबरसमुद्भवंताम्रमयम् // 3 // 4 // 5 // पिचुमंदोनिंबः // 6 // 7 // 8 // एवंमासत्रयंकुन्निनल्पलभतेधनम् // एकादशैवलिंगानिगोमयोत्थानियोयजेत् // 1 // प्रातमध्याह्नयोः सायंनिशीथेप्रतिवासरम् // ससर्वाःसंपदोयायात्षण्मासादेवमाचरन् // 2 // एकादशयजेन्नित्यंशालि पिष्टमयानिसः॥ लिंगानिमासमात्रेणसकल्मपचयंदहेत्॥३॥स्फाटिकंपूजितलिंगमेनोनिकरनाशनम्।। सर्वकामप्रदंपुंसामुदुंबरसमुद्भवम् // 4 // खाइमजंसर्वसिद्धिप्रदंदुःखविनाशनम् // यथाकथंचिल्लिंग स्यपूजानित्यकृतेष्टदा // 6 // योयजेत्पिचुमंदोत्थैः पत्रैर्गोमयजंशिवम् // क्रुद्धमहेश्वरंध्यायन्सपराजय तेरिपून् // 6 // योलिंगपूजयेन्नित्यंशिवभक्तिपरायणः॥ मेरुतुल्योपितस्याशुपापराशिलयंत्रजेत् // 7 // दोग्ध्रीणांतुगवांलक्षयोदद्याद्वेदपाठिने // पार्थिवंयोऽर्चयेल्लिंगंतयोज़िगार्चकावरः॥ ८॥चतुर्दश्यांतथाऽ एम्यांपौर्णमास्यांविधुक्षये // पयसानापयेल्लिंगंधरादानफलंब्रजेत् ॥९॥लिंगपूजांविधायाग्रेस्तोत्रंवा शतरुद्रियम् ॥प्रजपेत्तन्मनोभूत्वाशिवस्वविनिवेदयेत् // 10 // // 9 // शतरुद्रियम् // नमस्तेरुद्रमन्यवइत्यध्यायंयजुर्वेदोक्तम् // स्वमात्मानंशिवेनिवेदयेदिति // 10 // For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१९ मं०म० शिवमंत्रेण // ॐनमःशिवायेतिषडक्षरेण // ततःसदाचारात् // 11 // यममंत्रमाह // प्रणवति // प्रणवॐ॥ अंकुशकों // हृल्लेखाहीं // पाश॥ कंजलंवः // भौतिकेंदुमत्ऐं // बिंदुयुतंवैं // प्रभंजनोयः // स्पष्टम // 178 // न्यत् // यथाक्रोंह्रींवैवस्वतायधर्मराजायभक्तानुग्रहकृतेनमः // शमनदैवतोयमदेवताकः // 12 // यत्संख्याकंयजेल्लिंगंतन्मितंहोममाचरेत् // आज्यान्वितैस्तिलैग्नौघृतैर्वापायसेनवा // शिवमंत्रेणत स्यांतेब्राह्मणान्भोजयेच्छतम् // एवंकृतेसमस्तेष्टसिद्धिर्भवतिनिश्चितम्॥११॥ अथधर्मराजमंत्रः॥प्र णवांकुशहल्लेखापाशाकंभौतिकेंदुमत् // 12 // वैवस्वतायधर्मातेराजावर्णाःप्रभंजनः // 13 // भ तानुग्रहवीतेकृतेनमउदीरितः // चतुर्विंशतिवर्णात्मामंत्रःशमनदैवतः // 14 // त्रिनेत्रपंचवाणा द्रियुग्माणैरंगकंमनोः // विधायसावधानेनमनसाचिंतयेद्यमम् // 16 // पाथःसंयुतमेघसन्निभतनुःप्रयो तनस्यात्मजोनृणांपुण्यकृतांशुभावहवपुःपापीयसांदुःखकृत् // श्रीमदक्षिणदिक्पतिर्महिषगोभूषाभरा लंकृतोध्येयः संयमिनीपतिःपितृगणस्वामीयमोदंडभृत् // 16 // EEI // 13 // 14 // षडंगमाह // त्रिनेत्रेति // ॐक्रोहीहृदयायनमइत्यादि // आं0 शिरइत्यादि // 15 ॥ध्यान माह // पाथइति // सजलमेघाभः॥ प्रद्योतनोरविस्तस्यपुत्रः॥ पुण्यवतांसौम्यः॥ पापीयसांभीषणः // 16 // // 178 // For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ಕಹಹಹಹಹಹಹಕಾರ सिद्धमंत्रत्वादृष्यादिपूजाभावः॥ 17 // चित्रगुप्तमंत्रमाह // प्रणवइति // क्षुधायः॥ तंद्रीमः॥ क्रियालः॥ उत्कारीवः॥ वहीरः॥ यस्वरूपम् // एतेअर्धीशसंयुताऊयुताः॥ मूर्जियामिनीशयुताबिंदुयुताः॥ तेनयम्यू अभ्यस्तोयंसिद्धमंत्र सकलापविनाशनः॥ नरकप्राप्तिरोद्धास्यादिपुभीतिनिवर्तकः // 17 // अथचित्र गुप्तमंत्रः // प्रणवोहद्विचित्रायधर्मातेलेखकायच // यमवांतेहिकाधीतिकारिणेपदमुच्चरेत् // 18 // क्षुधातंद्रीक्रियोत्कारीवह्निया/शसंयुताः // यामिनीशयुतामुद्धिजन्मसंपत्पदंततः // 19 // प्रलयं कथयद्वंद्वस्वाहाष्टत्रिंशदक्षरः॥ मंत्रोयचित्रगुप्तस्यसर्वदुःखौघनाशनः॥२०॥सप्तषण्णववस्वंगर्नेत्राणैमनु संभवैः // प्रविधायषडंगानिचिंतयेत्कर्मलेखकम् // 21 // किरीटीज्वलंवस्त्रभूषाभिरामविचित्रासनासी नर्मिदुप्रभास्यम् // नृणांपापपुण्यानिपत्रेलिखतंभजेचित्रगुप्तंसखायंयमस्य // 22 // सिद्धमंत्रमिमं' सांजपतांचित्रगुप्तकः॥प्रसन्नोगणयेत्पुण्यनैवपापंकदाचन // 23 // इतिपिंडम् // स्वरूपमन्यत् // मंत्रोयथा // ॐनमोविचित्रायधर्मलेखकाययमवाहिकाधिकारिणेयम्यूज Balन्मसंपत्प्रलयंकथय 2 स्वाहेति // 18 // 19 // 20 // षडंगमाह // सप्तेति // वसवोष्टौ // अंगानिषट् // Him21 // ध्यानमाह // किरीटीति // 22 // 23 // For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०१९ मं०म० आसुरीमंत्रमाह // कटुकेति // अनंतआ॥ केशवः॥ वलीरः॥ भगीएयुतः॥ कर्णउ॥ तन्द्रीमः ॥भृगुः स // सवालीययुतःस्य // मंत्रोयथा ॥ॐकटुकेकटुकपत्रेसुभगेआसुरीरक्तरक्तवाससेअथर्वणस्यदुहितेअघोरे // 179|| वक्ष्याम्यथर्ववेदोक्तमासुरीविधिमुत्तमम् // कटुकेकटुकांतेतुपत्रेन्तेसुभगेपदम् // 24 // अनंतसुरिरक्ते तेपदंस्याद्रक्तवाससे // अथर्वणस्यदुहितेकेशवोघोभगीवली // 25 // अघोरकर्मशब्दांतेकारिकेअ मुकस्यच // गतिदहद्वयंकर्णःपविष्टस्यगुदंदह // 26 ॥दहसुप्तस्यतंद्रीनोदहयुग्मंप्रबुद्धच // भृगुःस वालीहृदयंदहवंद्वहनद्वयम् // 27 // पंचयुग्मंतावदंतेदहतावत्पचेतिच // यावन्मेवशमायातिवर्मा नेवह्निवल्लभा // 28 // तारादिरासुरीमंत्रोदशोत्तरशताक्षरः // अङ्गिरास्यऋषिश्छंदोविराड्दुर्गासु रोमता // 29 // देवताप्रणवोबीजंशक्ति पावकनायिका॥हनवाणे-शिरोंगाणे-शिखासप्ताक्षरैर्मता // 30 // अघोरकर्मकारिकेमुकस्यगतिंदह 2 उपविष्टस्यगुदंदह 2 सुप्तस्यमनोदह 2 प्रबुद्धस्यहृदयंदह 2 हन 2 पच GR तावद्दहतावत्पचयावन्मेवशमायातिहुंफट्स्वाहेति // आसुरीसंज्ञादुर्गादेवता // 24 // 25 // 26 // // 27 // 28 // 29 // पावकनायिकास्वाहा // षडंगमाह // हृदिति // 30 // 1 अस्यासुरीमंत्रस्यअंगिराऋषिःविराट्छंद आसुरीदेवताबीजंस्वाहाशक्तिःममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // 179 // For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ईशैरेकादशाणैः // बाणरसाक्षर पंचषष्टयणैः // हुंफट्स्वाहेतिचत्वारोवर्णाःसर्वेष्वंगेषूक्तवर्णातेवाच्याः॥३॥ ध्यानमाह॥शरदिति॥अभयांकुशेवामयोः॥जयादिशक्तियुतेपीटगेंद्रायुधैःपूजावोध्या // 32 // 33 // पंचांग मिति।मूलशाखापत्रपुष्पफलान्विताम्॥३४॥ मध्वक्तांखंडघृतक्षौद्रयुताम्॥३५॥सपनोपिशत्रुरपिदेहांतपर्यंत वर्माष्टभिर्नेत्रमीशेरखंबाणरसाक्षरैः // हुंफट्स्वाहेतिसर्वत्रपठेदंगेषुसाधकः // 31 // शरच्चंद्रकांतिर्वराभी तिशूलंशृणिहस्तपर्दधानांबुजस्थाम्।।विभूपांवराव्यादियज्ञोपवीतामुदोथर्वपुत्रीकरोत्वासुरीनः॥३२॥ अयुतंप्रजपेन्मंजुहुयात्तदशांशतः॥ घृताक्तराजिकांवगौततःसिद्धोभवेन्मनुः ॥३३॥पंचाङ्गामासुरी मंत्रीगृहीत्वामंत्रयेच्छतम् // तयाधूपितमात्मानंयोजिघ्रत्सवशोभवेत् ॥३४॥मध्वक्तामासुरीहुत्वासहस्त्रं वशयेजगत्॥राजिकांप्रतिमांकृत्वादशांप्रेमस्तकावधि॥३५॥अष्टोत्तरशतखंडाजुहुयादसिनाकृतान्॥ नार्या प्रतिकृतेर्वामपादादिहवनचरेत् // 36 // एवंप्रकुर्यात्सप्ताहंराजीधनचितेनले // ससपनोपिमृत्यंत दासोजायेतमंत्रिणः॥३७॥स्त्रीलिंगोहःप्रकर्तव्योम।नारीवशीकृतौ // कटुतैलान्वितांराजीनिवपत्रयुतां | रिपोः॥३८॥ नामयुग्मनुनाहुत्वाज्वरिणंकुरुतोरपुम्॥एवंराजीसलवणांहुत्वास्फोटोभवेदरेः॥३९॥ दास स्यात्॥किमुतान्यः॥३६॥३७॥स्त्रीलिंगोहइति॥नार्यावशीकरणेप्रतिमाहोमादौमंस्थितानाममुकस्ये तिस्थानेदेवदत्तायाउपविष्टस्येत्यादीनांषष्टयंतानांपदानामुपविष्टायाःसुप्तायाइत्यायूहोविधेयः॥३८॥३९॥ Ime For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir T0 सटीक त०१९ मं.म.अति // अर्कदुग्धाक्तराजीहोमाद्रिपुनेत्रनाशः // 40 // गुडयुताराजीहुत्वाक्षत्रियंवशयेत् // दध्यक्ताहु त्वावेश्यम् // 41 // होममानमष्टोत्तरशतंसर्वत्र // 42 // 43 // उपसर्गाउपद्रवाः॥४४॥ शीतंचंदनम् // // 18 // अर्कदुग्धाक्ततद्धोमान्ने।नाशयतरिपोः॥ पालाशेंधनदीप्तमौसप्ताहंघृतसंयुताम् // 40 // साधकोरा जिकांहुत्वाब्राह्मणवशयेधुवम् // क्षत्रियंतुगुडाभ्यक्तांवैश्यंदाधियुतांचताम् // 11 // शूद्रलवणसंयु क्तांहुत्वातांसाष्टकंशतम् // आसुरीसमिधाहुत्वामध्वक्तालभतेनिधिम् // 42 // तोयपूर्णेघटेमंत्रीराजि कापल्लवान्विते॥आवाह्यतांपूजयित्वाशतंमूलेनमंत्रयेत्॥४३॥तेनाभिषिक्तंमनुजमलक्ष्मीराधयोरुजः॥ उपसर्गाःपलायंतेपरित्यज्यातिदूरतः॥४४॥आसुरीकुसुमंशीतप्रियंगुनागकेसरम् // मनःशिलाचतगरमे तत्सर्वविचूर्णितम् // 45 // शताभिमंत्रितंसाध्यंमूर्तिक्षिप्तंवशंवदम् // निंबकाष्टसमिद्धेऽनावासुरीसर्षपा न्विताम्॥४६॥अष्टोत्तरशतंहुत्वासप्ताहंदक्षिणामुखः॥विदध्यादचिराच्छउँसूर्यासूनुगृहातिथिम्॥४७॥ किंकुऱ्यान्नृपतिःक्रुद्धःकिंकुरिपवोखिलाः।।क्रुद्धःकालोपिकिंकुर्यादासुरीचेदुपासिता // 48 // // 45 // वशंवदंवशकृत् // 46 // सूर्यसूनुगृहातिथिम् // यमातिथिम् / मृतमित्यर्थः // 47 / / किंकुर्यादिति // आसुर्यामुपासितायांनृपादयोवशवर्तिनास्युरित्यर्थः // कालेनाप्यासुर्युपासकोनपराभूयतेकिमुतान्यैः // अथर्ववेदोक्तोयंसर्वोपद्रवशांतिकृन्मंत्रः // 48 // LyHMAHARASHTRA 18 // For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ग्रंथविस्तरभयान्मंत्रकथनमुपसंहराति // ग्रंथानिति // 49 // // इतिश्रीमन्महीधरकृतायांमंत्रमहोदधिनी कायांताम्रचूडादिकथनंनामैकोनविंशस्तरंगः॥ 19 // // यंत्राणिवक्तुमुपक्रमते // अथेति // पुरारिणाशि ग्रंथाननेकानालोक्यमंत्रागुप्ततमामया // हितायसुधियांख्याताविस्तरादुपरम्यते // 49 // इतिश्रीमं त्रमहोदधौताम्रचूडादिकथननामैकोनविंशस्तरंगः॥ 19 // अथप्रवक्ष्येयंत्राणिगदितानिपुरारिणा // शुभेदिनेसमाराध्यस्वष्टदेवंयतात्मवान् // 1 // स्वप्यात्रिदिवसंभूमौहविष्याशीजपेरतः॥ इदंमेलिखितं यंत्रमिष्टंतत्कीदृशंप्रभो // 2 // इतिपृष्ट्वानिजदेवंप्रत्यहंतसमर्चयेत् // तृतीयेदिवसेरात्रौस्वप्रसंप्राप्नु यानरः॥ ३॥सिद्धंसाध्यसुसिद्धंवाशत्रुभूतमथोइदम् // शत्रुयंत्रलिखेनैवतदातदितरल्लिखेत् ॥४॥स्वप्ना भावेपितद्धित्वापरयंत्रंलिखेत्सुधीः // अथसंप्रोच्यतेसर्वयंत्रसाधारणीक्रिया॥५॥ नातःशुद्धाम्बरधरः पुष्पचंदनभूषितः॥ द्रव्यैःसमुदितैरुक्तस्थलेयंत्रलिखेद्रहः॥६॥ षष्ठयंतंसाधकपदंमध्यबीजोपरिस्मृ तम् // द्वितीयांतंसाध्यमधःपार्श्वयोःकुरुयुग्मकम् // 7 // विनगौरीप्रतिकथितानि // पूर्वप्रक्रियामाह // शुभइति // 1 // 2 // 3 // 4 // 5 // 6 // षष्ठचंतमितिदेवद // त्तस्यइष्टंकुरुकुर्विति // 7 // For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ba सटीक में०म० // 18 // वियदिति // वियतहः॥ भृगुःसः॥ हसौ इतिबीजंयंत्रस्यजीवः॥हंसःसोहमितिवर्णान् // यंत्रस्यासून्माणभू तान्कोणेषु // 8 // नेत्रेइई // श्रोत्रेउऊ // दिक्पबीजानींद्रादिबीजानि // लंरंमंक्षवयंसंहहीमित्युक्ता वियद्धृग्वौसर्गबीजमध्यभागादधोलिखेत्॥ईशानादिचतुष्कोणेहंसःसोहमसून्पुनः॥८॥ नेत्रेश्रोत्रेपार्श्वयु ग्मेदिक्पबीजानिदिक्षुच // यंत्रगायत्रिकावर्णान्प्रतिकाष्ठंत्रयंत्रयम्॥९॥यंत्रराजायशब्दांतेविद्महेवरतत्प रम् // प्रदायधीमहीत्यंतेतन्नोयंत्र प्रचोदयात् // 10 // एषोक्तायंत्रगायत्रीस्मृतासर्वेष्टसिद्धिदा // बहिः प्राणप्रतिष्ठायामसर्वत्रवेष्टयेत्॥ 11 // स्थलानुक्तौभूर्जपत्रेक्षौमेवाताडपत्रके // यंत्रंविलिख्यगुलिका बद्धवासूत्रेणवेष्टयेत् // 12 // लाक्षयाच्छादितेस्वर्णेरूप्येताम्रेथवाक्षिपेत्॥ मध्यवीजेनसंपूज्यदेवमातृ कयापिवा॥१३॥संजप्यहुत्वासंपातसितंकृत्वानियोजयेत्।।मूट्टिबाहौगलेवापितत्तदिष्टार्थसिद्धये॥१४॥ नि // पूर्वादिषु // प्रतिकाष्ठंप्रतिदिशम् // 9 // गायत्रीमाह // यंत्रेति // 10 // 11 // 12 // मध्यबीजेनय देवताकंयंत्रंतद्वीजेनतदज्ञानेमातृकया // 13 // संपातोहुतशेषस्तेनसिक्तम्॥ 14 // // 18 // For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूतलिपिरूपास्याजप्या // सायथा // अंइंडलंएंऐंओंऔंहंयरवलंडंकंखधंगजेचंछंझंजणटंठंढंडंनंतथंधंदम |पंफंभंबंशंषसं // इयंद्विचत्वारिंशदर्णाभूतलिपिः॥तदुक्तंशारदायाम् // पंचवस्वाःसंधिवर्णाव्योमेरोऽग्निर्जलंध रा // अंत्यमाद्यंद्वितीयंचचतुर्थमध्यमंक्रमात् // पंचवर्गाक्षराणिस्युर्वातश्वेतेंदुभिःसहेति // अस्यादक्षिणा मूर्तिर्ऋषि गायत्रीछंदावर्णेश्वरीदेवता // ईयरवलंहृत् // डंकखंघंगशिरः // अंचंछंझंजंशिखा // णंटंटंटंडं वर्म // नंतथंधंदनेत्रम् // मपंफंभंबंअस्त्रम् // गुदलिंगनाभिहृत्कंठभ्रूमध्यकेशांतशिरोब्रह्मरंध्रेषुनवस्वरान्य यंत्रसेवनसक्तेनोपास्याभूतलिपिःपरा // ययोपासितयासर्वयंत्रसिद्धि प्रजायते // 15 // अथवश्यकरंयं त्रमुच्यतेक्षिप्रसिद्धिदम् // भस्मादिशोधितेकांस्यभाजनेऽष्टदलंलिखेत् // 16 // स्योर्ध्वप्राग्दक्षिणोदक्पश्चिमवक्रेषुहादिपंचकम् // करयोरमूलकूर्परांगुलिसंधिमणिबंधेषुङादिवर्गनादि वर्गों // पादयोरप्रमूलजान्वंगुलिसंधिगुल्फेषुणादिनादिवर्गों // उदरपार्श्वद्वयनाभिपृष्ठेषुमादिवर्गम् // गुह्यहृद्भूमध्येषुशषसान्यसेत् // एवंवर्णान्यस्यचंद्रशेखरांत्रिनेत्रांवराक्षमालापुस्तककपालकरांसुरामत्तांध्या येत् // एवंध्यात्वालक्षप्रजप्यायुतंतिलैर्तुत्वासिद्धमंत्रोभवति // एवंभूतलिपिसेवयावक्ष्यमाणयंत्रसिद्धिः // श्रीविद्ययोराधारताच // 15 // यंत्रमाह // अथेति // 16 // For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०म० // 17 // स्वरैराठ्यानियुक्तानि // अष्टयुग्मपत्राणिषोडशदलानियस्येदृशेनांबुजन्मनाप नतदष्टदलवे Sal सटीक Bष्टयेत् // लोहानिहेमरूप्यताम्राणि // अत्रमातृकादेवता // 18 // 19 // 20 // द्वितीयमाह // // 182 // | गोरोचनाकुंकुमाभ्यांलेखन्याजातिजातया // कर्णिकाप्साध्यनामाव्यंवर्गयुक्ताष्टपत्रकम् // 17 // तद्वेष्ट त०१९ येत्स्वराज्याष्टयुग्मपत्रांवुजन्मना // तद्वेष्टयेत्रिभिर्वृत्तैःपूजयेत्सप्तवासरान् // 18 // नृपादिपुरुषाः सर्वेयोपितोपिवशाध्रुवम् // मोहनाख्येमहायंत्रेपूजितेस्युर्नसंशयः // 19 // भूर्जादौलिखितंलोहवेष्टितं शिरसाधृतम् // नृपाणांदुष्टसत्वानांवशीकरणमुत्तमम् // 20 // मायासंपुटितांसाध्याभिधामादौस मालिखेत् // तस्याउपर्यधश्चापिमायावीजचतुष्टयम् // 21 // तद्वेष्टयेद्भपुरेणरेखाद्वितयसंयुता // भूर्जपत्रेविलिखितंरोचनाशीतकुंकुमैः // 22 // अनामारक्तसंमित्रैःपूजितंवशकृन्मतम् // कुमारीर्वाड वान्नारीःसंभोज्यवितरेदलिम् // 23 // रक्तपुष्पान्नपललैर्वशीकरणसिद्धये // सर्वस्वमपहर्तुवानिवडुंवां छतीश्वरे॥२४॥यंत्रबाहौविधृत्येदंगच्छेभूमिपतिनरः॥क्रोधाकांतमनाभूपःशांतकोपस्तमर्चयेत्॥२६॥ मायेति // रेखाद्वयकृतेनभूपुरेणचतुष्कोणेन // शीतंचंदनम् // 21 // 22 // वाडवान्विप्रान् // 23 // 182 // |पललंमांसम् // 24 // अत्रगौरीदेवता // 25 // 44600KGGERMEEEEEEEEEESEASTERESTEResere For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृतीयमाह ॥दक्षिणेति // दक्षिणोत्तरायतंरेखाद्वयंकृत्वामध्येनामविलिखेत् // 26 // तारपद्मालयापुटम् // प्रणव श्रीपुटितम् ॥ॐश्रीदेवदत्तश्रींॐइति // 27 // रेखाद्वयोपर्यधश्चकोष्ठत्रयेश्रींक्ष श्रीमितिरेखाप्रकोष्ठ बीजसंपुटनामेदंयंत्रमुक्तंमनीषिभिः // दक्षिणोत्तरगंकुर्याद्रेखाद्वितयमुत्तमम् // 26 // तन्मध्ये विलिखेत्साध्यंतारपद्मालयापुटम् // रेखाग्रयोस्थितेकोष्ठद्वयेसर्गिणमतिमम् // 27 // रेखाद्वयोपर्य्य धश्चकोष्टानांत्रितयंलिखेत // मध्यकोष्ठेससर्गाश्रींचीपार्श्वकोष्ठयोः॥२८॥ एतद्रोचनयाभर्जेलि खित्वावह्निनादहेत् // शरावसंपुटस्थतत्तत्तोभस्मसमुद्धरेत् // 29 // दुग्धेनसहपीतंतत्स्वामिवश्य करंपरम् // दिक्षुमायाचतुष्काढयंताध्यपट्कोणमध्यतः // 30 // कोणेषुकोणमध्येणुमायावीजंसमालि खेत् // रोचनाकुंकुमाभ्यांतुभूर्जपत्रेमनोहरे // 31 // तच्छरावस्थितंपूज्यंजपेन्मायांतदग्रतः॥ श रावात्तत्समादायवद्धामूर्द्धनिमानवः // 32 // अग्नितोयादिदिव्येषुशुचिर्दाहादिवर्जितः // जयमानो तितद्रात्रीकर्तापितत्प्रभावतः॥३३॥ योरंतिमंक्षम् // सर्गिणविसर्गयुतंक्षः॥ शरावयोर्मध्येदहेत् // अत्रश्रीर्देवता // 28 // 29 // चतुर्थदिव्यंस्तं भनमाह // दिक्ष्विति / / पापकर्तापिदिव्ययंत्रधारणाजयति // गौरीदेवता // 30 // 31 // 32 // 33 // For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० // 183 // त०१९ राजमोहनपंचममाह // मायेति // अष्टदलंकृत्वामध्येहींसादेवदत्तसाहीमितिविलिख्यदलेषुह्रींसासाहीमि तिलिखेत् // उपरिभूपुरम् // गौरीदेवता // 34 // 35 // 36 // मृत्युंजयषष्ठमाह // क्रुद्धादिति।सप्तरेखात्मक दिव्यस्तंभनसंज्ञंचयंत्रमुत्तममीरितम् // मायाविसर्गिसार्णाभ्यांपुटितनाममध्यतः // 34 // दलेष्वष्ट सुसर्गाव्यौसौमायापुटितौलिखेत् // चतुरस्रेणतत्पद्मवेष्टयेद्भूर्जपत्रके // 35 // रोचनाकुंकुमाभ्यांतुलि खित्वातच्छरावयोः // प्रक्षिप्यपूजयेत्सप्तरात्रंमायांजपेन्नरः // 36 // राजमोहननामेदंयंत्रनृपरुषहरे त्॥क्रुद्धाजिघांसोर्नृपतेरात्मरक्षाविधित्सया॥३७॥मृत्युंजयाभिधंयंत्रपद्ममर्कदलंलिखेत्॥कर्णिकायांच तुष्कोणेलिखेनामक्रियान्वितम् // 38 // सप्तरेखात्मकंकायंतच्चतुष्कोणमुत्तमम् // ईशादिद्वादशदले वक्कीवस्वरसंयुतान् // 39 // कर्णान्विलिख्यतत्प चतुरस्रणवेष्टयेत्॥चतुरस्रस्यकोणेषुत्रिशूलानिसमा लिखेत् // 40 // भूर्जपत्रद्वयेचैतयंत्रंकृत्वापृथक्पुनः॥ यंत्रद्वयपुटंकृत्वास्थापयेत्काबुदङ्मुखः॥४१॥ चतुष्कोणेऽमुकस्यमृत्युंवशयेतिविलिख्योपरिद्वादशदलेऋऋललरहितान्स्वरान्लयुतान्कृत्वात्रिशूलांकि तकोणेनचतुरस्रणवेष्टयेत् // मातृकादेवता॥यंत्रद्वयंकृत्वासंयोज्य // कौपृथिव्यांनिखनेत् // मातृकादेवता // in 37 // 38 // 39 // 40 // 41 // 183 // For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VILLLLLLLLLLLontenment ॥४२॥विवादेजयावहंसप्तममाह ॥लिखेदिति // गौरीदेवता // 43 // 44 // धनिकवश्यकरमष्टममाह ॥धनिक तस्योपरिशिलान्यस्यतस्थितोमातृकांजपेत् // एवंकृतेसाधकःस्याद्वीतत्रासोयमादपि // 42 // सर्वरोगसमूहाच्चकिंपुनाराजमंडलात् // लिखेच्चतुर्दलंपद्मसाध्याख्यायुक्तकर्णिकम् // 43 // रोचनाकुं कुमाभ्यांतुभूर्जेमायायुतच्छदम् // तयंत्रपयसिन्यस्यविवादंवादिनाचरेत् // 44 // जयमाप्नोतिगदितं विवादविजयाभिधम् // धनिकेयाचतिद्रव्यंदानाशक्तेऽधमणके // 45 // धनिकस्यवशीकृत्यैयंभूर्जद लेलिखेत् // रोचनाकुंकुमाभ्यांतुषट्कोणंसाध्यकर्णिकम् // 46 // कोणाकोणमध्येषुकामान्द्वाद शसंलिखेत् // तदृत्तेनचसंवेष्टयमाययावेष्टयेदहिः // 47 // पुनर्वृत्तेनसंवेष्टयपूजयेत्सप्तवासरान् // पठेत्सप्तशतीनित्यमंतेहोमंशताधिकम् // 48 // कृत्वातंभोजयेत्कन्यांधरेचंत्रंगलेसके // एवंधनीवश मितोनयाचतिददात्यपि // 19 // दुष्टाराजसमीपस्था पैशुन्यकुर्वतेयदा // तदायंत्रप्रकुर्वीत दुष्टमोहनसंज्ञकम् // 50 // इति // भूर्जदले भूर्जे // गौरीदेवता // 45 // 46 // 47 // 48 // 49 // दुष्टमोहनंनवममाह // दुष्टाइति // 50 // 1 5- 552 For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० भूर्जेखररक्तनसाध्यगर्भमष्टदलंविलिख्यदिग्दलेषुमायांविदिग्दलेषुसः इतिविलिख्य वृत्तद्वयेनसंवेष्टयप्रा सटीक प्राणान्संस्थाप्यसंपूज्यदुग्धेक्षिप्तंवश्यकरम् // गौरीदेवता // जयदंदशममाह // चतुरस्रइति // विषमः // // 18 // अनंतः॥ भृगुःसः // चतुर्दलेहींसहीमितिविलिख्यतदुपर्यष्टदलंकृत्वादिपत्रेषुरोहरोधस्तंभक्षोभइति त०१९ लिखेदष्टदलंपद्मभूर्जेचक्रीवतोसृजा // कर्णिकागतसाध्याख्यंमायायुक्तककुन्दलम् // 51 // सर्गातभृगु युकोणवृत्तद्वितयवेष्टितम् // कृतासुस्थापनंयंत्रसंपूज्यपयसिक्षिपेत् // 12 // एकविंशतिरात्रेणदुष्टाः स्युर्वशवर्तिनः // चतुरस्रेविषानंतंगतमायापुटंभृगुम् // 53 // लिखित्वातस्यकोणेषुककुप्स्वपिदला टकम्॥रोहरोधस्तंभक्षोभदिग्दलेषुक्रमाल्लिखेत् ॥५४॥कोणेषुसर्गिचरमभूर्जेरोचनयोत्तमे // शरावद्वय मध्यस्थंमध्येसाध्याभिधान्वितम्॥२६॥पूजयेद्धपुष्यायैदिक्पतिभ्योबलिंहरेत् ॥व्यवहारेविवादेचवश कृद्राजवेश्मनि॥५६॥यंत्रमेतत्समाख्यातंजयदंमानवर्द्धनम्॥यावजीवंवशीकर्तुनरंयंत्रंतथोच्यते॥१७॥ वर्णद्वंद्वविदिपत्रेषुक्षइतिचरमाक्षः // गौरीदेवता // 51 // 52 // 53 // // 54 // 55 // 56 // गणेशयंत्रमे 811184 // कादशमाह // यावदिति // 57 // For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुरस्रंकृत्वामध्येपंक्तिचतुष्टयंकार्यम्॥आद्यायांमायासप्तकमाद्वितीयायांक्रोहींकींगंदेवदत्तंवशयगमिति॥ Bal तृतीयायांक्रोंह्रींक्रोंह्रीं क्लीं ह्रीमिति॥चतुर्थ्यामायाचतुष्कम् // चतुरस्राद्वहिदक्षिणदिशंहित्वातिसृषुदिक्षुगं REबीजस्यदशकंदशकंतदुपपिचतुष्कोणम् // एतद्यंत्रंकृष्णमृत्कृतगणेशोदरेन्यस्यतंसंपूज्यदेवदेवेतिसंप्रार्थ्यह अनामासृग्गजमदरोचनालक्तकैलिखेत् // भूर्जेजातीयलेखन्याचतुरस्रंमनोहरम् // 58 // तत्राद्यपंक्तौ संलेख्यंमायावीजस्यसप्तकम्।।द्वितीयायांशृणिर्मायाकामौनामगणेत्पुटम्।।५९॥तृतीयायांसृणिपुटामा ययासंपुटःस्मरः // लेख्यपंक्तौचतुर्थ्यातुमायावीजचतुष्टयम् // 60 // चतुरस्राबहिर्दिादशवीजगणे शितुः // विलेख्यदक्षिणांहित्वाकुर्याद्भूयोपिभूपुरम् / / 61 // एतद्यत्रंगणपतेरुदरांतःप्रविन्यसेत् // विनिर्मितस्यसुक्षेत्रादात्तयाकृष्णयामृदा / / 62 // पंचोपचारैर्गणपंसंपूज्यामुमनुंपठेत् // देवदेवगणा ध्वक्षसुरासुरनमस्कृत // 63 // देवदत्तममायत्तंयावजीवकुरुप्रभो॥हस्तमात्रधरागर्तेतविन्यस्यगणा धिपम् // संपूरयेन्मृदागर्तमेवंवश्योभवेन्नरः॥६४॥ पद्मचतुर्दलंकृत्वासाध्याख्यानेत्रकर्णिकम्॥तारोन मइमान्वाल्लिखेद्दलचतुष्टये // 65 // स्तमात्रेगर्तेनिखायपूरयदितिागणपतिर्देवता।।५८/५९/६०।६११६२।६३।६४॥नृपवश्यकरंद्वादशमाहापद्ममिति। चतुर्दलेइयुतंनाम॥ॐनमइतिप्रतिदलम् // अजितेइतिदक्षिणोत्तरदलयोरधिकम् // अजितादेवता // 65 // For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० ॥६६॥६॥भृत्यवश्यकरत्रयोदशमाह॥चतुर्दलेति॥क्रियावशयति तातम्॥गौरीदेवता॥६८॥६९॥ दुष्टवश्य सटीक ममकरंचतुर्दशमाह // चतुरस्रइति // मायाबीजगतानामार्णाश्चतुरस्र विलिख्यदुष्टपादरजोयुक्तराजिकापिष्ट अजितेइत्यपिलिखेदक्षिणोत्तरपत्रयोः // भूजेगोरोचनाचंद्रेकेसरागुरुभिःपुनः // 66 // विदि / // 18 // त०१९ नंनियतोयंत्रसंपूज्याह्निचतुर्थके // एकंसंभोज्यविद्रयंत्रबाहौविधारयेत् // 67 // हेमा दिसंस्थितंभूयोवशकदर्शनादपि // चतुईलांतविलिखेद्धृत्यनामक्रियान्वितम् // 68 // दले घुमायावीजानिभूरोचनयासुधीः // दनिक्षिप्तेतुतयोभृत्यआज्ञाकरोभवेत् // 69 // चतुरस्रलिखे साध्यनामार्णागिरिजायुतान् // भूजैरोचनयामंत्रीदुष्टप्रभुवशीकृतौ // 70 // शत्रुप्रतिकृतेयंत्रंहद येतत्प्रविन्यसेत् // कृतायाराजिकापिष्टैःशत्रुपादरजोयुतैः // 71 // प्रतिमापूजयित्वातांचुलीपार्श्वे निखानयेत् // अजासृग्युक्तभोनकृष्णभूतेबलिंहरेत् // 72 // महाकालायदिक्पेभ्योऽरुणपुष्पाज्यसंयु तम् // एवंकृतभवेदश्योनृपोदुष्टोपितत्क्षणात् // 73 // कृततत्प्रतिमायांहदिन्यस्यतांचहींनिखायकृष्णचतुर्दश्यांमहाकालायारुणपुष्पाज्येनयुक्तमजायारक्तयु Milm18 // तभक्तेनबलिंदद्यात् // उक्तफलसिद्धिः॥ गौरीदेवता // 70 // 71 // 72 // 73 // For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ललितायंत्रपंचदशमाह // दौर्भाग्येति // शुक्लत्रयोदश्यांभूर्जेरोचनाकस्तूरीकुंकुमैश्चतुष्कोणगर्भमष्टदलं कृत्वामायात्रयपुटितंभर्तृनामांतविलिख्यदिक्पवेषुमायात्रयंकोणदलेएकांकृत्वोत्तरदिग्वोरात्रावर्चेत् // दौर्भाग्यशमनभर्तृवशकृयंत्रमुच्यते // नारीणामीप्सितप्राप्तिकरंसौभाग्यवर्द्धनम् // 74 // कुर्याद ष्टदलंप चतुष्कोणाढ्यकर्णिकम् // चतुष्कोणलिखेन्मायावीजानांत्रितयंशुभम् // 75 // ततःस्वनाथ नामार्णान्मायावीजत्रयंपुनः // दिक्पत्रेत्रिगिरिसुतांविदिक्पत्रेष्वथैकशः // 76 // भूजेंसितत्रयोद श्यांरोचनानाभिकुंकुमैः // विलिख्योत्तरदिग्वक्रोनिश्यर्चेत्सप्तवासरान् // 77 // तदंतेभोजयेत्सप्तप तिपुत्रान्विताःस्त्रियः॥ ललिताप्रीतयेपश्चाद्यत्रंधातुगतंधृतम् // 78 // रूपसौभाग्यसंपत्तिकरांप्रियव शंवदम् // संप्रोक्तंललितायंत्रकामिनीनामभीष्टदम् ॥७९॥गोरोचनाकुंकुमाभ्यांभूर्जेष्टदलमालिखेत्॥ साकारपुटितनामकर्णिकायांदलेगिजा // 80 // दिनद्वयंनिशास्विष्ट्वाभोजयित्वांगनात्रयम् // कंठेधृ तंभर्तृवश्यकारकंयंत्रमुत्तमम् // 81 // ललितादेवता // 74 / 75 // 76 // 77 // 78 // 79 // षोडशमाह॥ गोरोचनेति // सादेवदत्तसाइतिमध्ये।।पत्रेषु Bहीं॥गौरीदेवता॥८०॥८१॥ For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HO SH मं०म० क // 18 // त an HBan बीजयंत्रसप्तदशमाह // भृग्विति // भृगुःसः // आकाशोहः॥ विधिःकः ॥.क्ष्मालः॥ खंहः॥ वहीरः॥ एतान्शांतीदुविभूषितान् // ईबिंदुयुतान् // तेनषट्कूटंसहकलहीमिति // सुंदरीदेवता // 82 // 83 // आकर्षणयंत्रमष्टादशमाह // चतुर्दलमिति // स्वरुधिरयुक्तरक्तचंदन क्रोधबीजंहुम् // रुद्रोदेवता // 84 // त०१९ भृग्वाकाशविधिक्ष्माखवहीञ्छांतीदुभूषितान् // लिखेदष्टारपास्यकर्णिकायांदलेष्वपि // 82 // गोरोचनाचंदनाभ्यांभूर्जेभ्यर्चेदिनत्रयम् // धृतंहेमगतंकंठेना-बाह्वोर्नरणवा // 83 // सौभाग्यदं वीजयंत्रप्रोक्तंदौभाग्यनाशनम् // चतुर्दलंलिखेद्भूर्जेस्वासृग्युग्रक्तचंदनैः // 84 // कर्णिकायांसाध्यना मक्रोधवीजदलेष्वपि // तयंत्रपूजयित्वाज्यक्षिप्तमावृष्टिकृद्भवेत् // 85 // षट्कोणेविलिखेनामवाङ् मनोभवमध्यतः।।कोणेषुभृगुरौसर्गीभूरोचनयार्पितम्॥८६॥पूजितंत्रिपुरायंत्रघृतांतर्विनिवेशितम् // इष्टस्याकर्षणतेनभवेत्सप्ताहमध्यतः // 87 // हरिद्रयालिखेदष्टदलंवह्नयनकर्णिकम् // शिलायां मध्यतोनामभूवीजंदलमध्यतः॥ 88 // // 85 // त्रिपुरायंत्रमेकोनविंशमाह // षट्कोणइति // वाऐं // मनोभवानीं // भृगुःसः॥ औसर्गीसः॥ mmcam त्रिपुरादेवता॥८६॥८७ // मुखमुद्रणंविंशमाह // हरिद्रयेति // हरिद्रयाशिलायांत्रिकोणमध्यमष्टदलं कृत्वात्रिकोणेनामदलेषुग्लौंकृत्वासंपूज्यशिलांतरेणपिधायनिखनेदित्युक्तफलसिद्धिः। भूमिर्देवता // 88 // For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 89 // अग्निभयहरमेकविंशतिमाह // वृतमिति // क्रियेति // 90 // 91 // अमुकस्याग्निभयंहरोति // भुज याबाहुना // मातृकादेवता // 92 // विद्वेषणंद्वाविंशमाह // मायेति // भूजेंरिपुरुधिरेणकाकपक्षलेखिन्या तदभ्यर्च्यपिधायाथशिलयानिखनेक्षितौ // वादेविवादेजायेतप्रतिवाद्यास्यमुद्रणम् // 89 // वृतंना मसमालिख्यक्रियाकर्मसमन्वितम् // दिक्षुवृत्ताबहिर्लेख्यंवकाराणांचतुष्टयम् ॥९०॥वेष्टितंचतुरस्रणय न्त्रमेतत्सुप्ताधितम् // गोरोचनाचंदनाभ्यांभूर्जेलिखितमुत्तमम् // 91 // एतयंत्रवृतंलोहत्रयेणभुजयाधृ तम् // निवर्तयेदग्निभयंसदनेपिचसंस्थितम् // 92 // मायापुटितमंकारनामकर्मयुतंलिखेत्॥चतुर्दलेड ब्जेलेखन्यावायसच्छदजातया // 13 // दलेवपितथालेख्यविरोधिक्षतजेनतत् // निशिसंपूज्यतयंत्रमो दनविनिवेदयेत्॥९॥अजारुधिरसंयुक्तंनारीमेकांचभोजयेत्।।ततःश्मशानेशर्वस्यगेहेवाशून्यमंदिरे // // 95 // निखातंतद्दिषोतेपंजनयेत्तदचिराडवम् // विद्वेषणमिदंयंत्रमथोमारणमुच्यते // 96 // चतुर्दलेहीअंद्वी अमुकौद्वेषयेतिमध्येदलेष्वपिविलिख्यरात्रौसंपूज्यमेषीरुधिरयुक्तमोदनंनिवेद्यैकनारीसंभो ज्ययंत्रेशंभो सद्मनिश्मशानादौनिखातेद्वेषसिद्धिः॥ गौरीदेवता // 93 // 94 // 95 // 96 // For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie बा सिटीक मं०म० मारणंत्रयोविंशमाह | लिखेदिति // चितांगारमेषरक्तविषैःकाकपक्षलेखिन्यानरकपालेऽष्टदलांत हुंफदेव दत्तफहमितिविलिख्यदिग्दलेषुहुँकोणदलेषुफट्ततः पद्मवृतेनतञ्चवर्मणावेष्टयसंपूज्यभस्मनिप्रक्षिप्योपरि // 187| स्वल्पस्वल्पमग्निंप्रत्यहंप्रज्वालयेद्यथादिनविंशत्यासर्वकपालस्यदाहः॥ एवमुक्तफलसिद्धिः // अस्त्रंदेवता लिखेदष्टदलेप नामवर्मास्त्रसंपुटम् // दिग्दलेष्वथवर्मैवविदिग्दलगमस्त्रकम् // 97 // वृतेनपद्मसंवेष्टय वर्मणावेष्टयेच्चतत्॥श्मशानांगारमेपासृग्विषैःकाकच्छदोत्थया // 98 // लेखन्यालिखितंयंत्रकपालनर संभव।स छाद्यभस्मनातस्योपरिप्रज्वालयेद्वसुम् // 99 // प्रत्यहंप्रदहेत्स्तोकस्तोकेविंशदिनावधि // विशेहन्यखिलंदग्धंशत्रोर्लोकांतरप्रदम् // 100 // चतुर्दलेलिखेनामदलगंसर्गिमारुतम् / / उलूककाकरक्ते नभूभूतदिनेनिशि // 101 // रक्तवस्त्रधरोरक्तपुष्पमाल्यानुलेपनः // लिखित्वापूजयेद्यरक्तैःपुष्प श्चचंदनैः॥ 102 // कुमारीभोजयेन्नित्यंदद्यात्तस्यैचदक्षिणाम् // एवंविंशतिघस्रांतंविधायचरमेदिने // 103 // यंतत्खंडश कृत्वाक्षिपेदुच्छिष्टओदने ॥दत्तेतस्मिन्वायसेभ्यउच्चाटोजायतेरिपोः॥१०॥ EG||97 // 98 // 99 // 10 // उच्चाटनंचतुर्विशमाह // चतुर्दलइति॥मारुतोयः // 101 // 102 // चरमेन्त्ये // तस्मिन्यंत्रखंडयुक्तोच्छिष्टोदनेकाकेभ्योदत्तेफलम् // वायुर्देवता // 103 // 104 // DO // 187 // For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिकरपंचविंशमाह ॥रोचनोति // भूर्जेरोचनादिभिःपूर्वापरायतंदक्षिणोत्तरायतंचरेखाष्टकंकृत्वातत्रब हिःकोष्ठपंक्तिष्वीशानादिष्वादिजांतांस्तदंतःपंक्तिषुसादिभातान् / / तदंतःपंक्तिषुमादिसांतान्मध्येहंविलि रोचनामृगकर्पूरकुंकुमै शोभनेदिने // भूर्गप्रविलिखेद्यलेखन्याजातिजातया // 105 // प्राक्प्रत्य ग्दक्षिणोदक्चकुर्य्यादेखाष्टकंसमम्।।एवमेकोनपंचाशजायतेकोष्ठकास्ततः॥१०६॥ दिग्गतांतिमपंक्ति स्थांश्चतुर्विंशतिवर्णकान् // अकारादिजकारांताल्लिखेच्चन्द्रसमन्वितान् // 107 // तदंतर्गत क्तिस्थाञ्झादिभांतांश्चषोडश // तदंतस्थान्मादिसांतान्हकारंशिष्टकोष्टके // 108 // रेखाग्रेषुत्रि शलानिकुर्वीतरदसंख्यया // उपर्य्यधस्त्रिशलांतहल्लेखासप्तकंलिखेत् // 109 // एवंविलिख्यत यंत्रपूजयेदिवसत्रयम् // चंडीपाठकरोविप्रभोजकोभूमिशायकः // 110 // ततोलोहत्याविष्टंधारये होष्णिवागले // उपसर्गाःकलि कृत्याःशमंयांतिविधारणात् // 111 // ख्यरेखाग्राणिसंवर्ध्यत्रिशूलाकाराणियंत्रपूर्वभागेपश्चिमेत्रिशूलमध्यभागेषुसप्तसुहींसप्तकंकृत्वोक्तविधिनापू जिताम् // दोष्णिबाहौधृतमुक्तफलदम्॥मातृकादेवता // 105 // 106 // 107 // 108 // 109 // 110 // 111 // Pre For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 188 // शाकिनीनिवर्तकंपड़िशमाह // पूर्वोक्तेति // पूर्वोक्तविधिनारोचनादिभिर्भूर्जेजातीलेखिन्याभृगुणासकारण // 112 // पूर्ववदिति // दिनत्रयंचंडीपाठादिना // मातृकादेवता // 113 // ज्वरहरंसप्तविंशमाह॥धतूरेति // EL सटीक कृष्णाष्टम्यां कृष्णचतुर्दश्यावाश्मशानवस्त्रेधत्तूररसेनपरस्परव्यतिभिन्नचतुष्कोणद्वयंकृत्वाऽष्टसुकोणेषु त०२० पूर्वोक्तविधिनाकुर्यात्पद्ममष्टदलान्वितम् // मध्येनानायुतंसर्गिभृगुणाष्टदलेष्वपि // 112 // पूर्ववत्पू जितंचैतद्वद्धंकंठेभुजेशिशोः // शाकिनीभूतवेतालग्रहात्सद्योनिवर्तयेत् // 113 // धत्तूररसतोलेख्यं पितृकान्तारवाससि॥कृष्णेवसुतिथौभूतेपुटितंभूपुरद्वयम् // 11 // कोणांतरालेकोणेषुरेफपोडशकाल खेत् ॥दिक्षुरेफचतुष्कोणयुतंनामापिमध्यतः॥११॥ पूजितंतत्पितृवणेनिखातंज्वरशांतिकृत् // भूर्जे सुगंधैर्विलिखेत्पद्ममष्टदलान्वितम् // 116 // नामान्वितंकर्णिकायांदलेष्वजययायुतम् // पूजितंविधृ तंबाहौसर्पभीतिनिवारकम् // 117 // तन्मध्येष्वपिरमितिविलिख्यमध्येरवेष्टितंनामकृत्वापूजितंश्मशाननिखातंज्वरहरम् // अग्निदेवता // // 114 // 115 // सर्पभयहरमष्टाविंशमाह // भूर्जइति // रोचनादिनाभूर्जेष्टदलंकृत्वामध्येनामदलेषुहंस // 188 // इतिलिखेत् // हंसोदेवता // 116 // 117 // IA For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंधमोक्षकृदेकोनविंशमाह ॥रोचनोति // हिमंचंदनम् // कांस्यपात्रेरोचनादिनाषोडशदलेमायाम् // दले स्वरान् // तदुपरिकादिसांतार्णयुक्तम् // द्वात्रिंशद्दलम् // तदुपरिकोणेषुहक्षयुतंचतुष्कोणंकृत्वासप्ताहपूजि रोचनाहिमकर्पूरकुंकुमै पद्मनालिखेत् // पोडशारस्वरैर्युक्तंदलंमायायकर्णिकम् // 118 // तस्योपरि टाद्वात्रिंशद्दलंव्यंजनयुग्दलम् // पद्मदिग्विदिशाहक्षयुक्तक्ष्मापुरवेष्टितम् // 119 // एतयंत्रकांस्य पात्रलिखितंसप्तवासरान् // पूजितंभूर्जलिखितंधृतंवाबद्धमोक्षकृत् // 120 // पूर्वोक्ताखिलयंत्राणांसि द्धिकामेनमंत्रिणा // उपास्यामातृकादेवीयद्वाभूतलिपिःपरा // 121 // यद्वोपास्योलेखकालेस्वर्णाकर्ष णभैरवः॥ प्रणवोवाग्भवंकामशक्तीदीर्घत्रयान्विते // 122 // सर्गीभृगुर्भयासेंदुरापदुद्धारणायच // अजामलांतेबद्धायडेन्तोलोकेश्वरस्तथा // 123 // स्वर्णाकर्षणभैरान्तेदी|बाल प्रभंजनः ॥ममदारि द्यविद्वेषणायान्तेप्रणवोरमा // 124 // तंबंधहरम् // 118 // 119 // 120 // उक्तयंत्रसिद्धयेमातृकाभूतलिपिभैरवाणामन्यतमउपास्यः॥ तत्रद्वेउ |भैरवमाह॥प्रणवइति॥१२॥१२२॥ भृगुःसाभयावः॥ 123 // दीर्घोबालावाप्रभंजनोयारमाश्रीः॥१२४॥ For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०२. मं०म० हृदयंनमः॥ मंत्रोयथा // ऐक्लांक्लींक्लंहाह्रींडूंसावंआपदुद्धारणाय अजामलबद्धायलोकेश्वरायस्वर्णाकर्षण भैरवायममदारियविद्वेषणायॐश्रीमहाभैरवायनमइति // 125 // षडंगमाह // नंदेति // नंदानव // आशा / 189 // दश // 126 // अथवेति // कांहांहृत् // क्लींहींशिरइत्यादि // ध्यानमाह // पारिजातेति // पारिजातवन डेन्तोमहाभैरवांतेहृदयंकीर्तितोमनुः॥ अष्टपंचाशदर्णायोमुनिरस्यचतुर्मुखः // 125 // पंक्तिश्छंदो देवतोक्तास्वर्णाकर्षणभैरवः // नंदाष्टार्कनवाशादिग्वर्णैरंगंमनोःस्मृतम् // 126 // अथवाकामशक्ति भ्यांदी_ढयाभ्यांषडंगकम् // पारिजातदुकांतारेस्थितेमाणिक्यमंडपे // 127 // सिंहासनगतंध्याय ग़ैरवंस्वर्णदायिनम्।।गाङ्गेयपात्रंडमरुत्रिशूलंवरंकरैःसंदधतंत्रिनेत्रम् // देव्यायुतंतप्तसुवर्णवर्णस्वर्णाकृषं भैरवमाश्रयामः॥ 128 ॥लक्षंजपेदशांशेनपायसर्जुहुयात्सुधीः॥ शैवेपीठेयजेदेवमंगदिक्पालहेतिभिः // 129 // सिद्धंमनुंजपेनित्यंत्रिशतीमंडलावधि // दारिचंदूरमुत्क्षिप्यजायतेधनदोपमः // 130 // मध्यगतेमाणिक्यमंडपेहेमासनगंध्यायेत् // गांगेयपात्रंहेमभाजनम् // वरंचदक्षयोः // त्रिशूलडमरू वामयोः॥ 127 / / 128 // हेतयोवजाद्याः // 129 // मंडलमेकोनपंचाशदिनानि // 130 // 1 अस्यस्वर्णाकर्षणभैरवमंत्रस्यब्रह्माऋषि पंक्तिछंदःस्वर्णाकर्षणभैरवोदेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // ..RamOTTORTOITOMORRORRORTERSTIEnabhichrbts 189 // For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एधतेवर्द्धते // अरे शत्रोसकाशात् पराभवोनस्यात् // 131 // // इतिश्रीमंत्रमहोदधिनौकायांमहीधरनि मितायांयंत्रकथनंनामविंशस्तरंगः // 20 // // एवंमंत्रजातंकथयित्वासर्वदेवतानांकामनाविशेषणयंत्रा जपादिभिर्मनौसिद्धेयंत्रेभ्यःसिद्धिमाप्नुयात् // सुवर्णमेधतेगेहेनैवारेःस्यात्पराभवः // 131 // इतिम त्रमहोदधौयंत्रकथनंनामविंशस्तरंगः // 20 // नित्यपूजाविधिसर्वदेवसाधारणंब्रुवे // ब्राह्ममुहूर्तेउत्था यकृत्वाशौचादिकंसुधीः // 1 // परिधायांवरंशुद्धमंत्रस्नानंविधायच // प्रविश्यदेवतागारंकुत्सिं मार्जनादिकम् // 2 // मंगलारात्रिकंकृत्वानिर्माल्यमपसारयेत् // दद्यात्पुष्पांजलिंदन्तधावनाचमनेअ पि॥३॥ नमस्कृत्यासनेशुद्धउपविश्यगुरुंस्मरेत् // शिरस्थंशुक्लपद्मस्थंप्रसन्नंद्विभुजाक्षिकम् // 4 // अहंब्रह्मास्मिसद्रूपंनित्यमुक्तंनशोकभाक् // गुरुदेवात्मनामित्थमैक्यस्मृत्वार्चयेततम् // 5 // णिचनिरूप्यसर्वदेवसाधारणपूजाविशेषवक्तुमुपक्रमते॥नित्यति // द्वौभुजौद्वेअक्षिणीचयस्यसद्विभुजाक्षिकः तम् // 1 // 2 // 3 // 4 // श्रीनाथविष्णोइत्यस्यस्थलेविश्वेशशंभोभवदाज्ञयैवेतिशिवोपासकेनभवानिदु र्गेइत्यंबोपासकेनोहोविधेयः॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 19 // // 6 // 7 // 8 // 9 // आंतरस्नानमाह // कोटीति // 10 // 11 // वेदोक्तमार्गतः // स्वशाखोक्तविधिना BEसटीक त्रैलोक्यचैतन्यमयादिदेवश्रीनाथविष्णोभवदाज्ञयैव // प्रातःसमुत्थायतवप्रियार्थसंसारयात्रामनुवर्तयि ष्ये // 6 // जानामिधर्मनचमेप्रवृत्तिजीनाम्यधर्मनचमेनिवृत्तिः॥ केनापिदेवेनहदिस्थितेनयथानियुक्तो त०२१ स्मितथाकमि // 7 // एतच्छ्लोकद्वयेनेष्टदेवतांप्रार्थयेदुधः // श्रीनाथविष्णोस्थानेतुकार्यऊहोन्यदे वते // 8 // देवतागुणनामादिस्मरन्स्रातुमथोत्रजेत् // स्नानमांतरवाह्याख्यंद्विविधंकथितंबुधैः॥९॥ कोटिसूर्यप्रतीकाशंनिजभूषायुधैर्युतम् // शिरस्थसंस्मरेद्देवंतत्पादोदकधारया // 10 // विशंत्यात्र मरंध्रेणनिजदेहविशुद्धया // प्रक्षाल्यांतर्गतंपापंविरजोजायतेनरः // 11 // एवंकृत्वांत स्नाननायाद्वे दोक्तमार्गतः // अघमर्षणसूक्तंचस्मरेदंतर्जलेसुधीः॥१२॥मंत्रनानंततःकुर्यात्तत्प्रकारोधुनोच्यते॥ प्राणानायम्यमूलेनकृत्वान्यासंषडंगकम् // 13 // आदित्यमंडलात्तीर्थान्याह्वयेत्सृणिमुद्रया // मंत्र त्रयेणांबुमध्येलिख्यतेतन्मनुत्रयम् // 14 // स्वस्वशाखाभिन्नत्वान्नलिखितः // अघमर्षणसूक्तम् // ऋतंचसत्यंचेत्यादिकामृचम् // अघमर्षणदृष्टमनुष्टुप्छ| दस्कंभाववृत्तदेवताकम् // 12 // 13 // सूणिमुद्रांकुशमुद्राप्रोक्ता // 14 // B // 19 // For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मांडेत्यादिश्लोकत्रयंपुराणोक्तंतीर्थावाहनमंत्राः॥ 15 // 16 // 17 // 18 // तेनबीजेनवमितिबीजेन // कवचेनहुमितिबीजेन // अस्त्रेणफडितिमंत्रेण // 19 // ईशवारमेकादशवारम् // वक्ष्यमाणेनाधारइत्या ब्रह्मांडोदरतीर्थानिकरैःस्पृष्टानितेरवे॥ तेनसत्येनमेदेवतीर्थदेहिदिवाकर // 15 // गंगेचयमुनेचैव गोदावरिसरस्वति // नर्मदेसिंधुकावेरिजलेस्मिन्सनिधिंकुरु // 16 // आवाहयामित्वांदेविस्नानार्थ मिहसुंदरि // एहिगंगेनमस्तुभ्यंसर्वतीर्थसमन्विते // 17 // ततोवमितिबीजेनयोजपेत्तानितजले // अन्यकैन्दुमंडलानितत्रसंचिंतयेत्पुनः // 18 // मंत्रयेत्तेनमंत्रणरविवारंततोजलम् // कवचेनावगुंज्या थरक्षेदत्रेणतत्पुनः॥ 19 // मूलमन्त्रेणेशवारमाभिमंत्र्यनमेजलम्॥ मंत्रणवक्ष्यमाणेनदेवतांमनसिस्म रन् // 20 // आधारःसर्वभूतानांविष्णोरतुलतेजसः॥ तद्रूपाश्चततोजाताश्चापस्ताःप्रणमाम्यहम् // 21 // मजेजलेस्मरंस्तत्रमूलंचदेवताकृतिम्॥ उन्मज्ज्यसिंचेत्कंसप्तकृत्वकलशमुद्रया // 22 // मूलेनाथचतुर्मत्रैरभिषिचेनिजांतनुम् // लिख्यतेतेऽथचत्वारोमंत्रा शंकरभाषिताः॥२३॥ मादिना // देवताकृर्तिध्यानोक्ताम् // कंशिरकलशमुद्रया // कुंभमुद्रया // हस्तद्वयेनसावकाशिकमुष्टिकरण कुंभमुद्रा॥२०॥२१॥ 22 // 23 // MPARAMDHAMAREMAMMAHARASHTRanwarrangam For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 19 // 1 // 24 // 25 // 26 // 27 // 28 // देवमनुष्यान्पितॄश्चसंक्षेपातर्पयेत् // ब्रह्मादयोदेवास्तृप्यताम् ॥सनका दयोमनुष्यास्तृप्यताम् // कव्यवाडनलादयापितरस्तृप्यन्ताम् // तर्पणाअिस्मत्पितरस्तृप्यतामितिसंक्षेप सिसृक्षोनिखिलं विश्वंमुहुःशुक्रप्रजापतेः // मातरःसर्वभूतानामापोदेव्यःपुनंतुमाम् // 24 // अलक्ष्मी मलरूपायासर्वभूतेषुसंस्थिताम् // क्षालयंतिनिजस्पर्शादापोदेव्यःपुनंतुमाम् // 25 // यन्मेकेशेषुदौ भर्भाग्यंसीमंतेयच्चमूर्द्धनि // ललाटेकर्णयोरक्ष्णोरापस्तद्नंतुवोनमः // 26 // आयुरारोग्यमैश्वर्य्यम रिपक्षक्षयःसुखम् // संतोपाक्षांतिरास्तिक्यविद्याभवतुवोनमः॥ 27 // विप्रपादोदकंपीत्वाशालग्राम शिलाजलम् // शंखेनतिष्परिभ्राम्यप्रक्षिपेन्निनमस्तके // 28 // ततोदेवान्मनुष्यांश्चसंक्षेपात्तर्पये त्पितॄन् // वस्त्रसंपीडयसंक्षाल्यसक्थिनीवाससीधरेत् // 29 // तीर्थाभावात्स्वसदनेनायादुष्णेन वारिणा॥अल्पाएवप्रवक्तव्यास्तत्रमन्त्रायथोचिताः॥ 30 // हस्तयोरपआदायकुर्यात्तत्राघमर्षणम् // भस्मनागोरजोभिर्वास्त्रायान्मंत्रणवाक्षमः॥३१॥ततआचम्यपीठस्थस्तिलकंरचयेत्सुधीः॥ केशवायभि धानस्तुस्थानेषुद्वादशस्वपि // 32 // तर्पणम् // सक्थिनीऊरू // 29 // अक्षमोरोगादिना // 30 // 31 // 32 // // 19 // For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RCRRORRORROR Segeses // 33 // नन्दकंखङ्गम् // 34 // अग्निरितिमंत्रः॥ भस्मादायगृहीत्वा // ग्रहणमंत्रायथा // अग्निरितिभस्म वायुरितिभस्मजलमितिभस्मस्थलमितिभस्मव्योमेतिभस्मसर्वहवाइदंभस्ममनएतानिचभृषि // तस्मात मेतत्पाशुपतयद्भस्मनांगानिसंस्पृशेदितिमंत्रः // 35 // ततस्यंबकंयजामहइतिपूर्वोक्तमंत्रेणाभिमंत्र्यक्र माद्भालादिषुतत्पुरुषादिनामभिःपंचत्रिपुंडकीकुर्यात // त्रयाणांपुंडूकाणांसमाहारस्त्रिपुंड्रकी // यथा / / ललाटोदरहृत्कंठदक्षपा सकंततः॥ वामपाचीसकर्णेचपृष्ठदेशेककुद्यपि // 33 // ललाटेतुगदांकु द्धृिदयेनंदकंपुनः // शंखचक्रभुजद्वंद्वेशार्ङ्गवाणंचमूर्द्धनि // 34 // इत्थंतुवैष्णवःकु-च्छवाकु, -त्रिपुंडूकम् // अग्निहोत्रोत्थितंभस्मादायाग्निरितिमंत्रतः॥ 35 // अभिमंत्र्यत्र्यंबकेनकुर्यात्पंचत्रि पुंड्रकम् // क्रमात्तत्पुरुषाघोरसद्योवामेशनामभिः॥३६॥मालांसोदरवक्षस्तुऋग्भिस्तेपामथापिणा॥ कृत्वासंध्यांस्वशाखोक्तांमंत्रसंध्यांसमाचरेत् // 37 // तत्पुरुषायनमाभाले // अघोरायनमोदक्षांसे // सद्योजातायनमोवामांसे // वामदेवायनमोजठरे // ईशा नायनमोवक्षसि // यद्वा // तत्पुरुषादिनामस्थलेतत्पुरुषायविद्महे ॥अघोरेभ्यः ॥सद्योजातंप्रपद्यामि॥ वामदेवायनमः // ईशानःसर्वविद्याना०॥ इति पंचभिरेवत्रिपुंड्रकाणिविधेयानि // 36 // 37 // intCgSHESEEDSsssESEKSGwanSSSSS Batatayaup93599999NOROPRMA209002000930 - - . - - For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PAR मं० म. सटीक त०२१ // 192 // secareSURUS LaunlLLLLL ISSINOSISIOSSSSSSSSSMALos shara मंत्रसंध्यामाह // प्राणायामेति // 38 // 39 // 40 // 41 // भिदुरोपले वज्रपाषाणे // पापयुक्तंजलंक्षिपेत् // प्राणायामषडंगेचकृत्वादायकरेजलम् // विश्वामूलमंत्रेणआचमेविपन्मनुम् // 38 // पुनर्दक्षकरे णांभोगृहीत्वावामहस्ततः // निधायतस्माच्च्योतद्भिर्विदुभिःसप्तधातनुम् // 39 // संमार्यमूलमंत्रे णावशिष्टंतत्पुनर्जलम् // दक्षहस्तेसमादायनासिकांतिकमानयेत् // 40 // ईडयांतःसमाकृष्यतद्धौ तैःपापसंचयैः // कृष्णवर्णपिंगलयारेचितंप्रविचिंत्यतत॥४१॥ क्षिपेदस्त्रेणपुरतःकल्पितेभिदरो पले // अवमर्षणमेतद्धिनिखिलापनिवारणम् // 42 // पुनरंजलिनादायनलमध्यदिशेत्ततः // त्रिवार मूलमंत्रांतेषोडशार्णमनुंजपन्॥४३॥ रविमंडलसंस्थायदेवायायपदंवदेत्।।कल्पयामीतिमंत्रोयंपोड शार्णउदाहृतः॥४४॥सूर्यमंडलगंध्यायनिष्टदेवमनन्यधीः॥प्रजपेन्मंत्रगायत्रींमूलंचाष्टोत्तरंशतम्॥४५॥ एतदघमर्षणम् // 42 // मूलमंत्रमुक्त्वारविमंडलसंस्थायदेवायाकल्पयामीतिषोडशार्णमंत्रजपन् देवा यार्धेदद्यात् // 43 // 44 // 45 // // 192 // For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संहारमुद्रयातीर्थविसृज्यद्वौहस्तौविमुखौसंयोज्यतयोरंगुलीःपरस्परसंश्लिष्टा कृत्वाहस्तौसंमुखौकुर्यादिति संहारमुद्रा // 46 // 47 // सत्यग्निहोत्रेआवसथ्येचतयोहोममुपस्थानंचकृत्वादेवपूजागृहमागत्यवैष्ण वाचमनंकुर्यात् // 48 // तदेवाह॥केशवेति // ॐकेशवायनमः॥ नारायणायनमः // माधवायनमः॥इतित्रि अष्टाविंशतिवारंवातर्पयेत्तावदंभसि // दत्त्वादिननाथायतीर्थसंहारमुद्रया // 46 // विसृज्यालोक पालानत्वादेवस्तुतिपठन्॥यागस्थानंतथागत्यप्रक्षाल्यांत्रीतथाचमेत् // 47 // गार्हपत्यादिकाननीन् हुत्वोपस्थायतानपि // देवतागारमागत्यसमाचामेद्यथाविधि // 48 // केशवनारायणमाधवैःपीत्वाज लंत्रिधा // करौगोविंदविष्णुभ्यांक्षालयेन्मधुसूदनः॥४९॥त्रिविक्रमाभ्यामोष्टौवामनःश्रीधरतोमुखम् / / हृषीकेशेनहस्तंचचरणोपद्मनाभतः॥५०॥ जलंपीत्वा // गोविंदायनमः॥ विष्णवेनमइतिद्वाभ्यांकरौप्रक्षाल्य // मधुसूदनायनमः // त्रिविक्रमायनम इतिद्विरोष्ठौप्रक्षाल्य // वामनायनमः श्रीधरायनमः इतिमुखम् // हृषीकेशायनमः इतिदक्षहस्तंप्रक्षाल्य // पद्मनाभायनमइतिपादौ॥४९॥५०॥ For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमः इतिशिरवप्रोक्ष्म सिंदाया // पोलमपशत // अच्युताशइति हरयक सटीक मं०म० दामोदरायनमःइतिशिरश्चप्रोक्ष्य // संकर्षणायनमइतिमुखम् // वासुदेवायनमः // प्रद्युम्नायनमइतिनासे चांगुष्ठप्रदेशिनीभ्यां स्पृष्ट्वा // अनिरुद्धाय० // पुरुषोत्तमाय इत्यक्षिणी // 51 // 52 // अधो ॥१९॥क्षजाय० // नृसिंहाय० // इतिकर्णीचांगुष्ठानामिकाभ्यांस्पृशेत् // अच्युताय इतिअंगुष्ठकनिष्ठाभ्यां नाभिम् // 53 // 54 // 55 // जनार्दनाय इतिकरतलेनहृदयम् / / उपेंद्राय इतिशिरः // हरये कृष्णायक दामोदरेणमूर्द्धानंप्रोक्ष्यसंकर्षणादिकान् // मुखादिषुकरांगुल्यावेदादिप्रीणनेन्यसेत् / / 53 // मुखेसंक पणवासुदेवप्रद्युम्नकौनप्तोः॥ अनिरुद्धंचपुरुषोत्तममक्ष्णोः प्रविन्यसेत् // 52 // अधोक्षनंनृसिंहंचकर्ण यो भितोच्युतम्॥जनार्दनंदिन्यस्येदुपेंद्रमपिमूर्धनि॥५३॥अंसयोश्चहरिविष्णुवैणवाचमनंत्विदम्॥ केशवायश्चतुर्युतानमोंताःप्रणवादिकाः।।५४||आस्येनसोःप्रदेशिन्याऽनाण्यानेत्रकर्णयोः।कनिष्ठयाना भिदेशेगुष्ठःसर्वत्रसंयुतः।।५५॥तलेनहृदयेन्यस्येत्सर्वाभिमस्तकेंसयोः॥आत्मविद्याशिवैस्तत्वैःस्वाहा | न्तैःप्रापिवेदपः५६हांहींहूमादिमैःशैवेशाक्तेवाग्वीजपूर्वकैः।क्षालनादिकमंगुल्यास्पपेिस्यादमंत्रक:५७॥ Bइत्यंसौचसर्वाभिःस्पृशेदितिवैष्णवाचमनम् // शैवाचमनमाह // आत्मेति // हांआत्मतत्वायस्वाहा // हीविद्यातत्वायस्वाहा // हूंशिवतत्वायस्वाहेति // त्रिर्जलंपीत्वा // करक्षालनाद्यंसंस्पर्शातंउक्तांगुली भिस्तूष्णीमेवकुर्यात् / / इतिशवम् / शाक्ततुहामादिस्थानेवाग्बीजमेव // 56 // 57 // 193 // For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LOROLOU.LastanROLOnia सामान्याय॑माह // तारमिति // तारॐ // खंहः // वह्रिविसर्गाढयरेफसर्गयुतंहः॥ निगमादिनाप्रणवेन // // 58 // 59 // यथा // हद्वाराय॑साधयामीत्युक्त्वाफडितिपात्रप्रक्षाल्यनमइतिजलेनापूर्यगंगेचतितीर्था न्यावाह्यप्रणवेनगंधपुष्पेनिक्षिप्यधेनुमुद्रांप्रदाष्टकृत्वोमूलेनमंत्रयेदिति सामान्यार्थ्यविधेिः // तेनार्घ्य जलेनोक्ताप्रथमतरंगोक्ताद्वारदेवतागणेशमहालक्ष्मीसरस्वतीविघ्नक्षेत्रपालगंगायमुनाधातृविधातृशंखपद्म एवमाचम्यसामान्यार्पणद्वारंप्रपूजयेत् // तारखंवह्निसर्गाज्यं द्वारायंसाधयामिच // 58 // उक्त्वात्रम नुनापात्रंक्षालये पूरयेद्दा // तीर्थान्यावाह्यगंधादीनिक्षिपन्निगमादिना // 29 // धेनु मुद्रांदयित्वामूले नाप्यभिमंत्रयेत् // सामान्यायविधिःप्रोक्तस्तेनोक्ताद्वारदेवताः॥३०॥इष्ट्वार्चेद्वारपालांश्चतेकथ्यतेपृथ ग्विधाः // नंदःसुनंदचंडश्वप्रचंडोवलसंज्ञकः॥६॥प्रबलोभद्रसंज्ञश्चनुभद्रावैष्णवामताः।नंदिसंज्ञोमहा कालोगणेशोवृषभस्तथा ॥६२॥,गिरिट्यभिधःस्कंदपार्वतीशाभिधोपरः // चंडेश्वरइमेशैवाशालेया | मातर स्मृताः॥६३॥ वक्रतुंडश्चैकदंष्टोमहोदरगजाननौ / लंबोदरश्चविकटोविनराजश्वततमः॥६४॥ निधिलक्षणायथास्थानं संपूज्यवक्ष्यमाणान्यथास्वंद्वारपालान्पूजयेत् // 60 // वैष्णवान्द्वारपालानाह // नंदइति // 61 // शैवानाह // नंदिसंज्ञइति // ब्राह्माद्यामातरःशक्तेद्वारपालाः // 62 // 63 // गणेशानाह // वक्रतुंडइति // 64 // For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म०॥६५॥ त्रिधा // त्रिप्रकारान्दिव्यंतरिक्षभूमिस्थान् // 66 // अर्घपानीयैःसामान्यार्घजलैरन्तरिक्षस्थान् / | सटीक // 19 // धूम्रराजोगणपतेारपालाइमेस्मृताः॥ इन्द्रोयमोथवरुण कुबेरपुरास्मृतः॥६५॥ ईशःकृशानुरक्षा त०२१ सिवायुश्चैवाष्टमःस्मृतः // द्वारपूजांविधायेत्थंविघ्नानुत्सारयेत्रिधा // 66 // आत्मानंशंकरंध्यात्वा दृष्टयादिव्यानिवारयेत् // नभस्थानपानीय पाणिपातैर्धरागतान् // 67 // अपसर्पतुतेभूतायेभू ताभूमिसंस्थिताः // भूताविघ्नकर्तारस्तेनश्यंतुशिवाज्ञया // 68 // अपक्रामंतुभूतानिपिशाचाःस र्वतोदिशम् // सर्वेषामविरोधेनब्रह्मकर्मसमारभे // 69 // विनिवा-खिलान्विघ्नानिदमंत्रद्वयंपठन् / अवकाशप्रदानायांतरायाणांविनिर्यताम् // 70 // संकोचयन्वाममंगंगृहंदक्षपदाविशेत् // क्षेत्रपालंवि धातारंनैर्ऋत्यांदिशिपूजयेत् // 71 // // 67 // 68 // 69 // विनिर्यतांगृहानिर्गच्छताम्॥अंतरायाणांविघ्नानामवकाशदानायवामांगसंकोचयन्द al||19 क्षिणपादेनगृहंप्रविशेत् // 70 // 71 // MORLDILURUMAONLORDERampattowancouvescapuaar For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुशासनव्याघ्रचर्मवस्त्राणामुपर्युपरिस्थापितानामुपरिअनंतासनायनमः॥ विमलासनायनमः॥ पद्मासना शायनमः॥इतिमंत्रत्रयेणत्रीन्द निदध्यात् // 72 // आधिदंमानसपीडाप्रदम्॥७३॥प्रागुदग्वा॥प्राङ्मुखउदङ्मु खोवा॥पाथोपद्मम् / स्वस्तिकासनपद्मासनवीरासनेष्वन्यतममासनंकुर्यात् // स्वस्तिकासनलक्षणंयथा॥ जानूर्वोरंतरेकृत्वासम्यक्पादतलेउभे // ऋजुकायोविशेद्योगीस्वस्तिकंतत्पचक्षते // पद्मासनंयथा // ऊर्वो रुपरिविन्यस्यसम्यक्पादतलेउभे // अंगुष्ठौचनिबध्नीयाद्धस्ताभ्यांव्युत्क्रमात्ततः // पद्मासनमितिप्रोक्तं अनंतविमलंप डेंतासननमोन्वितम् // जपन्निधायद स्त्रीन्कुशचीवराप्तने // 72 // काष्ठपल्लववं शाश्मगोशकृत्तृणमृन्मयम् // विषमंकठिनमंत्रीत्यजेदासनमाधिदम् // 73 // पृथित्वयतिमंत्रणप्रा गुदग्बासमाविशत् // कुय्योत्स्वस्तिकपाथोजवारादिष्वकमासनम // 74 // अर्घ्यपाद्याचमनीय | मधुपर्काचमस्यच // पंचपात्राणिपुष्पादीन्स्थापयत्स्वीयदक्षिणे // 7 // योगिनांहृदयंगममिति // अत्रहस्ताभ्यांपादांगुष्ठबंधनंतुयोगाभ्यासान्वितंबोध्यम् // योगिनांहृदयं गममितिविशेषणोपादानात् // जयादौतुपादतलयोरूर्वोरुपरिन्यासमात्रंपद्मासनम् // वीरासनलक्षणं यथा // एकंपादमधाकृत्वाविन्यस्योरौतथेतरम् // ऋजुकायोविशेद्योगीवीरासनमितीरितम् // इति शारदायांलक्षणानि // आदिशब्दात्षट्कमोक्तमपि // 74 // 75 // For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie // 19 // वामेगुरून्दक्षेगणेशम् // 76 // करयोरस्त्रंन्यस्योपर्युपरितालत्रयंकृत्वांगुष्ठतर्जनीभ्यांशब्दकुर्वन्सुदर्शन सटीक मंत्रेणदिग्बंधनंचरेत् // 77 // सुदर्शनमंत्रमाह ॥प्रणवइति // ॐनमःसुदर्शनायअस्त्रायफडिति // 78 // तत०२१ वायुपात्रंव्यजनंछत्रमादर्शचामरे // कृतांजलिमिदगुरून्गणपतिनमेत् // 76 // न्यस्यास्त्रंकर योस्तालवयंदिग्बंधनंचरेत् // अंगुष्ठयुक्ततर्जन्यासुदर्शनमर्नुजपन् // 77 // प्रगवोहृदयंडेन्तंसुदर्शन पदंपुनः // अस्त्रायचफडित्युक्तोमंत्रोद्वादशवर्णवान् // 78 // विधायवह्निप्राकारंभूताजेयोभवेत्सुधीः॥ भूतशुद्धितथाप्राणप्रतिष्ठांमातृकास्थितिम् // 79 // पंचधोक्तांप्रकुर्वीतततोन्यांमातृकांचरेत् // श्रीकं ठाद्या छंभुभक्तोवैष्णव केशवादिकान् // 80 // गणेशायांस्तुतत्सेवीशतिभाग्मातृका कलाः // ताःक्रमेणैवकथ्यतेमुन्यादिन्यातपूर्विकाः॥ 81 // मुनिःस्यादक्षिणामूर्तिर्गायत्रीछंदईरितम् // अर्धा द्रिजाहरोदेवोनियोगः सर्वसिद्धये // 82 // Salm 79 // पंचधामातृकास्थितिः॥ सृष्टिस्थितिसंहारसृष्टिस्थितिलक्षणपंचविधमातृकान्यासम् // उक्तंप्रथम // 19 तरंगे // अन्यान्श्रीकंठाद्यान् // 80 // तत्सेवीगणेशसेवी // 81 // 82 // 1 अस्यश्रीकंठमातृकामंत्रस्यदक्षिणामूर्तिऋषिःगायत्रीछंदःअर्द्धनारीश्वरोदेवताहलोबीजानिस्वराःशक्तयःसर्वसिद्धयेन्यासेवि०॥ For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CommisamanaashanamruREHARTH // 83 // ध्यानमाह // पाशेति // पाशांकुशौवामयोः // रक्तोहरांशः // सुवर्णाभोदेव्यंशः // 84 // मातृकास्थले ललाटादौपूर्वोक्ते // 45 // प्रयोगोयथा // सौंअंश्रीकंठेशपूर्णोदरीभ्यांनमाललाटे // हसौं हलोबीजानिगुह्येतस्वरा शक्ती पदोन्यसेत् // हसाभ्यांदीर्घयुक्ताभ्यांकृत्वांगंशंकरंस्मरेत् // 83 // पाशांकुशवराक्षम्रपाणिशीतांशुशेखरम् ॥ध्यक्षरक्तसुवर्णाभमर्द्धनारीश्वरंभजे // 84 // एवंध्यायशं भुशक्तीचतुर्थ्यन्तनमोन्विते // हसौंवीजमातृकापूर्वेविन्यसेन्मातृकास्थले // 85 // श्रीकंठपूर्णोदयौँ चानंतोविरजयान्वितः // सूक्ष्मेशःशाल्मलीयुक्तोलोलाक्षीयुकत्रिमूर्तिकः // 86 // अमरेशोवर्तुलाक्षा वर्षीशादीर्घघोणया // भारभूतिर्दीर्घमुखीतिथीशोगोमुखीयुतः // 87 // स्थायीशोदीजिह्वायुग्य रकुंभोदरीयुतः॥ झिंटीशश्चोद्ध केशीचभौतिकोविकृतमुख्यपि // 88 // सद्योज्वालामुखीचानुग्रहउ कामुखीयुतः अङ्काःश्रीमुखीमहासेनोविद्यामुखीयुतः // 89 // क्रोधीशश्चमहाकाल्याचंडेशश्वसर स्वती // पंचान्तकः सर्वसिद्धिगौरीयुक्तःप्रकीर्तितः // 9 // अनंतेशविरजाभ्यांनमोमुखवृत्तेइत्यादि // 86 // 87 // 88 // सद्यःसद्योजाताः॥ 89 // 9 // For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं. म. // 19 // |॥९॥९२॥९३॥९४॥९५॥९६॥९७॥९८॥९९॥श्रीकंठानंतत्रिमूर्त्यादौपदेयत्रेशपदंनास्तितत्रापिज्ञेयम्॥ सटीक शिवोत्तमेशोविन्यस्योयुक्तस्त्रैलोक्यविद्यया // एकरुद्रोमंत्रशक्तिकूर्मेशश्चात्मशक्तियुक् // 91 // एकनेत्रोभूतमात्रायुक्त स्याच्चतुराननः // लंबोदव्युतःप्रोक्तोहजेशोद्राविणीयुतः // 92 // सर्वेशोत०२१ नागरीयुक्त सोमेशश्चापिखेचरी // लांगलीशश्चमंजव्दारकेशश्वरूपिणी // 93 / / अर्द्धनारीशवीरि ण्याउमाकांतःपुनर्युतः॥ काकोदUतथाषाढीपूतनायुक्त ईरितः // 94 // चंडीशोभद्रकालीयुगंत्री शोयोगिनीयुतः॥ मीनेशःशंखिनीयुक्तोमेषेशस्तर्जनीयुतः // 95 // लोहितःकालरात्रीश्चशिखीशः कुब्जिनीयुतः // छगलंडःकपर्दिन्याद्विरडेशश्चवज्रया // 96 // महाकालोजयायुक्तोबालीशःसुमुखेश्व री // भुजंगोरेवतीयुक्तःपिनाकीमाधवीयुतः॥ 97 // खड्गीशोवारुणीयुक्तोवकेशोवायवीयुतः // श्वेतोरक्षोविदारिण्याभृगुःसहजयायुतः // 98 // नकुलीशश्चलक्ष्मीयुक्छिवेशोव्यापिनीयुतः // संवर्तकोमहामायाप्रोक्ताश्रीकंठमातृका // 99 // यत्रत्वीशपदंनोश्रीकंठादिषुनामसु // तत्रप्सर्वत्र वक्तव्यंशक्तिभ्यांहत्ततोवदेत् // 10 // // 19 // श्रीकंठेशइत्यादिशक्तिभ्यांपूर्णोदरीप्रभृतिभ्यांचतुर्थीद्विवचनम् // हृन्नमः // तथाप्रयोगउक्तः // 10 // For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3 त्वगिति॥यादिदशवर्णेषुत्वगादीनात्मभ्यामित्यंतान्वदेत्॥यथा // हसौंयंत्वगात्मभ्यांबालीशसुमुखेश्वरी भ्यांनमःहदि // हसौरअमृगात्मभ्यांभुजंगेशरेवतीभ्यांनमोदक्षांसइत्यादि // 101 // केशवादिमातृका माह // केशवादीति // 102 // षडंगमाह // द्विरुक्तैरिति // ह्रींहृत् // श्रींशिरः॥ क्लींशिखा / ह्रींवर्म / त्वगमृङ्मांसमेदोस्थिमजशुक्राण्यमून्वदेत् // शक्तिकोवंतथात्मभ्यामंतान्यादिदशस्वपि // 101 // केशवादिमातृकायांसाध्यनारायणोमुनिः // अमृताद्यानुगायत्रीच्छंदोलक्ष्मीहरिःसुरः॥ 102 // द्विरुक्तैःशक्तिश्रीकामै षडंगानिसमाचरेत् // शंखचक्रगदापद्मकुंभादर्शाजपुस्तकम् // 103 // वि भ्रतमेघचपलावर्णलक्ष्मीहरिभजे // एवंध्यात्वाजपेच्छक्तिश्रीकामपुटिताक्षरम् // १०४॥भ्यामंतंवि ष्णुशक्त्यंतंनमोतंप्रणवादिकम् // केशवःकीर्तिसंयुक्तःकांतिनारायणान्विताम् // 105 // श्रीनेत्रम् // क्लीअस्त्रम् // ध्यानमाह // शंखेति // शंखादीनिदक्षे // कुंभादीनिवामे // मेघाभोहर्यशः॥ चपलाविद्युत् // तन्निभोलमयंशः॥ 103 // १०४॥भ्यांअंतेययोरीहशो विष्णुशक्ती अंतेयस्यास्ताम् // तथानमोन्तेयस्याःसानमोंता॥ प्रणवआदौयस्याःसाप्रणवादिका // साचसाचताम्॥यथा // ॐहींश्रींक्की अक्लीं श्रींहीं केशवकीर्तिभ्यांनमइत्यादि // 105 // 1 अस्यकेशवमातृकान्यासस्यसाध्यनारायणोमुनिःअमृतगायत्रीछंदःलक्ष्मीहरीदेवन्यासकरणेविनियोगः // LoanesLDELongLRUSLELLOHARSHIVR5g For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० // 19 // // 106 // 107 // 108 // 109 // 110 // 111 // 112 // 113 // 114 // 115 // 116 // माधवस्तुष्टिसंयुक्तोगोविंदःपुष्टिसंयुतः // विष्णुस्तुधृतिसंयुक्तःशांतियुङ्मधुसूदनः // 106 // त्रिवि क्रमा क्रियायुक्तोवामनोदययान्वितः // श्रीधरोमेधयायुक्तोहृषीकेशश्चहर्षया // 107 // पद्मनाभयुता श्रद्धालज्जादामोदरान्यिता // वासुदेवश्चलक्ष्मीयुक्संकर्षणसरस्वती // 108 // प्रद्युम्न प्रीतिसंयुक्तोऽ निरुद्धोरतिसंयुतः॥चक्रीजयागदीदुर्गाशाङ्गीतुप्रभयान्वितः।।१०९॥खड्गीतुसत्ययायुक्तःशंखीचण्डास मन्वितः // हलीवाणीसमायुक्तोमुसलीचविलासिनी।।११०॥शूलीविजययायुक्तःपाशीविरजयान्वितः॥ अंकुशीविश्वयायुक्तोमुकुंदोविनदायुतः॥ ११॥नंदजःसुनदायुक्तोनंदीसत्यासमन्वितः।। नरऋद्धीनरक जित्समृद्धाशुद्धियुग्धरिः॥११२॥ कृष्णबुद्धीसत्यभुक्तीसात्वतोमतिसंयुतः॥ सौरिक्षमेशूररमेजनार्दन उमान्वितः / / 113 // भूधर क्वेदिनीयुक्तोविश्वमूर्तिश्चक्किन्नया // वैकुंठोवसुधायुक्तोवसुदापुरुषोत्तमौ ॥११॥वलीतुपरयायुक्तोबलानुजपरायणे।वाल सूक्ष्मेषनस्तुसंध्यायुक्प्रज्ञयावृषः।। ११॥हंसःप्रभा समायुक्तोवराहोनिशयान्वितः॥ विमलोमेघयायुक्तोनृसिंहोविद्युतायुतः॥ 116 // ||197 // For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यादियोगश्चपूर्ववदिति // ह्रीं श्रींक्लीयंक्लीं श्रींहीत्वगात्मभ्यांपुरुषोत्तमवतुदाभ्यांनमोहृदीत्यादि // गणे शमातृकामाह // गणेशइति // 117 // षडंगमाह // स्मृत्यति // दीर्घ युक्तगकारेगांगम् // गांगींगूंगेंगौंगः केशवाद्यामातृकोक्तायादियोगश्चपूर्ववत् // गणेशमातृकायास्तुमुनिर्गणकईरितः॥ 17 // निवृद्गाय विकाछंदोदेवःशक्तिविनायकः // स्मृत्यादीर्घाव्ययाचांगंकृत्वाध्यायेद्गजाननम् / / 118 // गुणांकुशव राभौतिपाणिरक्ताब्जहस्तया // प्रिययालिंगितंरक्तात्रनेत्रंगणभजे // 119 // एवंध्यात्वान्यसेत्स्वीय बीजपूर्वाक्षरान्वितम्।विनेशोह्रीसमायुक्तोविनराज श्रियायुतः॥२०॥विनायकःपुष्टियुतःशांतियुक्तः शिवोत्तमः॥विघ्रकृत्स्वस्तिसंयुक्तोविघ्नहर्तासरस्वती॥१२१॥ गणस्तुस्वाहयायुक्तएकदंतःसुमेधया // द्विदंतःकांतिसंयुक्तोगजवक्रश्चकामिनी // 122 // निरंजनोमोहिनीयुकपर्दीतुनटीयुतः।।दीजिह्वःपार्वती युक्छेकुकर्णश्चज्वालिनी / / 123 // वृषभध्वजनंदेचसुरेशागणनायको।गजेंद्र कामरूपिण्यासूर्यकर्णस्त थोमया॥१२४॥त्रिलोचनस्तेजवत्यालंबोदरस्तुसत्यया।महानंदश्चविनेशीचतुर्मूर्तिःसुरूपिणी।।१२५॥ इति // 118 // ध्यानमाह / / गुणेति // गुणस्त्रिशूलम् // अंकुशवरौदक्षयोः // 119 / / स्वीयबीजपूर्वाणिया न्यक्षराणिअकारादीनितैर्युतांगः // अंविघ्नेशहीभ्यांनमइत्यादि / 120 // 21 // 22 // 23 / / 24 // 125 // 1 अस्यश्रीगणेशमातृकान्यासमंत्रस्यगणकऋषिःनिवृद्गायत्रीच्छंदःशक्तिविनायकोदेवतान्यासेवि०॥ For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HCCA मं० म० // 19 // BOLLY 126 // 127 // 128 // 129 // 130 // 131 // 132 // त्वगादियोगइति // गंयंत्वगात्मभ्योजटिदीप्तिभ्यां सदाशिवःकामदायुगामोदोमदजिह्वया // दुर्मुखोभूतिसंयुक्तःसुमुखोभौतिकायुतः॥ 126 // प्रमोदः / सितयायुक्तएकपादोरमायुतः॥ द्विजिह्वोमहिषीयुक्त शूरश्चापितुभंजिनी // 127 // वीरोविकर्णया / युक्त षण्मुखोभृकुटीयुतः // वरदोलजयावामदेव स्याहाघोणया // 128 // धनुर्धरावक्रतुंडोद्विरदो यामिनीयुतः॥ सेनानीरात्रिसंयुक्त कामांधोग्रामणीयुतः॥ 129 // मत्तःशशिप्रभायुक्तोविमत्तोलोल लोचनामितवाहनचंचलेजटीदीप्तिसमन्वितः॥१३०॥ मुंडीसुभगयायुक्त खड्गीदुर्भगयातथा // वरेण्य श्वशिवायुक्तोभगायुग्वृषकेतनः॥१३१॥ भक्तप्रियश्चभगिनीगणेशोभोगिनीयुतः।मेघनादश्च सुभगाव्या सीस्यात्कालरात्रियुक।।१३२॥ गणेश्वर कालिकेतिप्रोक्ताविनेशमातृकात्विगादियोगोयादीनांपूर्ववत्प रिकीर्तितः // 133 // कलायुक्मातृकायास्तुप्रजापतिऋषिःस्मृतः // छंदउक्तंतुगायत्री देवताशारदा भिधा // 134 // नमइत्यादि // 133 // 134 // 1 अस्यकलामाकान्यासस्यप्रजापतिऋषिःगायत्रीछंदःशारदादेवतान्यासेवि०॥ 198 // For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलामातृकायाःषडंगमाहातारैरितियथा // अंॐआहृत् ॥ॐईशिराउंॐऊंशिखा॥ एॐवर्म ॥ओंॐ औनेत्रम् // ॐ अस्त्रम् // ध्यानमाह // शंखेति // शंखपरशुकपालाक्षमालामृतकुंभादक्षहस्तेषु // तारै षडंगंकुर्वीतह्रस्वदीधीतरस्थितैः // शंखचक्राब्जपरशुकपालान्यक्षमालिकाम् // 135 // पुस्तकामृतकुंभौचत्रिशूलंदधतींकरैः // सितपीतासितश्वेतरक्तवर्णैत्रिलोचनैः // 136 / / पंचास्यैःसंयु तांचंद्रसकांतिशारदांभज॥ध्यात्वैवंतारपूर्वीतांन्यसेत्Éतकलान्विता॥१३॥निवृत्तिश्वप्रतिष्ठाचविद्या शांतिस्तथेधिका / दीपिकारेचिकाचापिमोचिकाचपराभिधा // 138 // सूक्ष्मासूक्ष्मामृताज्ञानामृ ताचाप्यायनीततः॥ व्यापिनीव्योमरूपाचानंतासृष्टिसऋद्धिका // 139 // स्मृतिमधाततःकांतिल क्ष्मीर्युतिःस्थिरास्थितिः॥सिद्धिर्जरापालिनीचशांतिरीश्वरिकारतिः॥१४॥कामिकावरदाचाथाहा दिनीप्रीतिसंयुता॥दीर्घातीक्ष्णातथारौद्रीभयानिद्राचतन्द्रिका // 141 // क्षुधास्यात्कोधिनीपश्चाकि योत्कारीसमृत्युका // पीताश्वेतारुणापश्चादसितानंतयान्विता // 142 / / उक्ताकलामातृकैवंतत्तद्भ तःसमाचरेत् // ततःस्वमूलमंत्रस्यन्यासान्कल्पोदितांश्चरेत् // 143 // अन्यान्यन्येषु // मध्येप्राग्दक्षिणपश्चिमोत्तरेर्मुखःक्रमात्सितपीतकृष्णसितरक्तैर्युताम् // 135 // 136 // तारपूर्वामिति ॥ॐअंनिवृत्त्यैनमइत्यादि॥ 137 // 138 // 139 // 140 // 141 // 142 // 143 / / For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक द सरदारएन // 199 // पापप्प पाए // 144 // 145 // स्वस्वमुद्राभिर्जातियुक्तान्यंगानिहृदादिषुन्यसेत् // तामुद्राजातयश्चोच्यते // 146 // 147 // ऋषिश्छंदोदेवतानिमूविक्रेहदिन्यसेत् // बीजंगुह्येपदो शक्तिमंगानिकरयोरपि // 144 // अंगुष्ठादिष्वंगुलीषुकरस्यतत्वपृष्ठयोः // अंगुष्ठाभ्यांतर्जनीभ्यांनमइत्यादिकंवदेत् // 145 // हृदयादिष्वथांगानिजातियुक्तानिविन्यसेत् // स्वस्वमुद्राभिरधुनाप्रोच्यंतेजातयश्चताः // 146 // हृदयायनमश्चेतिशिरसेस्वाहयायुतम् // शिखायैवषडंगंचकवचायहुमित्यपि // 14 // नेत्रत्रयायवौष ट्स्यादत्रायफडितीरितम् // जातिपटकंद्विनेत्रेतुनेत्राभ्यांवौषडुच्चरेत् // 148 // पंचाङ्गेनेत्रसंत्यागोमु द्रांगानामथोच्यते॥प्रसारितमनंगुष्टंतर्जन्यादिचतुष्टयम् / / 149 // हृदिमूर्ध्निहिचांगुष्टहीनोमुष्टिःशिखा तले // स्कंधमारभ्यनाभ्यंतादशांगुल्यस्तुवर्मणि // 15 // तर्जन्यादिवयंनेत्रत्रयेनेत्रद्वयेद्वयम् // प्रसारिताभ्यांहस्ताभ्यांकृत्वातालत्रयंसुधीः॥ 151 // तर्जन्यंगुष्ठयोरग्रेस्फालयन्बंधयदिशः॥ एषा स्त्रमुद्राश्रीविष्णोरंगमुद्राउदीरिताः॥ 12 // |॥१४८॥विष्णोरंगमुद्राआह॥ प्रसारितमिति॥१४९॥ मूर्द्धनिचतर्जन्यादिचतुष्टयमेवशक्ते षडंगमुद्राआह // दीति॥ 150 // 15 // 152 / / ERABLEMAI // 199 // LOLLE For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ASANA के शिरसि॥१५३॥अखंपूर्वविष्णोरस्वतुल्यंशिवषडंगम् // मुद्राआह // मुष्टीति // 15 // निर्गतातर्जनीयाभ्यां मतौनिस्तर्जनीतादृशावनगुष्ठौसंयुक्तौचमुष्टीशिरसि // निरंगुष्ठकनिष्ठौतौसंयुक्तौमुष्टीशिखायाम् // अङ्गुष्ठतर्जनीभ्यांहीनौवियुतौमुष्टीकवचे // तलास्फोटःकरतलास्फालनम् // 155 // 156 // न्यास हृद्यंगुलित्रयंन्यस्येत्तर्जन्यादिद्वयंतुके // शिखाप्रदेशेथांगुष्ठंदशांगुल्यस्तुवर्मणि // 153 // हृद्वन्नेत्रं | पूर्वमत्रंशक्तेरंगस्यमुद्रिकाः // मुष्टीविनिर्गतांगुष्ठोसंयुक्तौहदिविन्यसेत् // 154 // निस्तर्जनीतादृशो तुशिरस्यथशिखातले // निरंगुष्ठकनिष्ठौतौनिरंगुष्ठप्रदेशिनी // 155 // मुष्टीपृथक्कृतौस्कंधाद्धृदन्तं वर्मणिस्मृतौ // तर्जन्यादिवयंनेत्रेतलास्फोटोस्त्ररितः // 156 // शैवीषडंगमुद्रोक्तावर्णन्यासमथाच रेत् // जवाअप्यफलामंत्राविघ्नदान्यासमंत! // 157 // पीठस्यदेवतान्यासादेहेपीठंप्रकल्पयेत् // न्यसेन्मंडूकमाधारेस्वाधिष्टानेततःसुधीः // 158 // कालाग्निरुद्रनाभौतुकच्छपहृदयेततः // आधार शक्तिमारभ्यहेमपीठावधिन्यसेत् // 159 // विनामंत्राअफलाविघ्नदास्ततोमूलमंत्रस्यवर्णादिन्यासंकुर्यात् ॥१५७॥पीठन्यासमाह // न्यसेदिति॥१८॥ आधारशक्तिकूर्मानंतपृथिवीसागररत्नद्वीपप्रासादहेमपीठानिहदि // 159 // DastacaLODLEssantosIRL DDROIDurOSSSSSSSSBumpsanele For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० दक्षांसादिषुधर्मादयःपीठपादाः // तेचवृषकेसरिभूतगजरूपाः // 160 // मुखादिष्वधर्मादयः पीठगात्राणि // तेपिवृषादिरूपाः // इतोनंतोम्बुजंपद्मम् // 161 // तेषुसूर्यादिषुवर्णाद्याःसूर्यादिकलाः सटीक भंतपिन्यैनमइत्यादिद्वादशकलाः // सूर्येअंअमृतायैनमइत्याद्या षोडशेंदौयंधूम्रार्चिषेनमइत्याद्यादशव मत०२१ दक्षवामांसवामोरुदक्षोरुषुयथाक्रमात् // धर्मज्ञानंचवैराग्यमैश्वय्यविन्यसेत्ततः॥ 16 // वदनेवाम पार्श्वेचनाभौदक्षिणपार्श्वके // अधर्मादीन्प्रविन्यस्यहृद्यनंतमितोंबुजम् // 161 // पद्मेसूर्येन्दुवह्नीं निजाः कलाः॥ तत्तन्नामादिवर्णाद्यान्सत्वायांस्त्रीन्गुणान्यसेत् // 162 // तत्रात्मत्र यमाद्यर्णपूर्वतुर्यपरादिकम् // मायातत्वंकलातत्वविद्यातत्त्वंततोन्यसेत् // 163 // परतत्वंचनामा दिवर्णपूर्वाणिविन्यसेत् // स्वपीठशक्तिविन्यस्यन्यसेत्पीठमनुनिजम् // 164 // हदिन्यस्यानंतमुखं देवानामुत्तरोत्तरम् // प्रत्याधारत्वमुदितंपूर्वपूर्वस्यसत्तमैः // 165 // इतिदेहमयेपीठेध्यायेत्स्वाभी टदेवताम् / तत्तन्मुद्रांप्रदर्याथकुर्यान्मानसपूजनम् ।।१६६।।अथार्पयेत्ततोदेवमंत्रेणानेनतन्मनाः॥ स्वागतंदेवदेवेशसन्निधौभवकेशव / / 167 // हो॥नामादिवर्णान् // संसत्वायनमइत्यादि // 162 // आत्मत्रयमादयःअउमावर्णास्तत्पूर्वम्॥अंआत्मने // // 20 // ॐअंतरात्मने / मंपरमात्मने / तुर्यज्ञानात्मने // परादिकंहींपूर्वम् // 163 // 164 // 165 / / 166 // 167 // For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अन्यदेवतेऊहः॥ शंकरपार्वतीत्यादि // 168 // 169 // 170 // इतिमंत्रमहोदधिनौकायामकविंशस्तरंगः॥२॥ BEI अर्घस्थापनमाह // स्वेति // स्ववामाग्रेत्रिकोणषट्कोणवृत्तचतुरस्राणिकृत्वाशंखमुद्रयास्तंभयेत् // शंखमुद्रालक्षणंयथा // वामांगुष्ठंतुसंगृह्यदक्षिणेनतुमुष्टिना // कृत्वोत्तानंतथामुष्टिमंगुष्ठंतुप्रसारयेत् // गृहाणमानसींपूजांयथार्थपरिभाविताम् // केशवेतिपदस्थाने कार्यउहोन्यदैवते // 168 / / मनसापूज यित्वैवंक्षणंतद्गतमानसः॥ स्थित्वामूलमनुविद्वाजपेदष्टोत्तरंशतम् / / 169 / / जपंनिवेदेवायस्था पयेदय॑मुत्तमम् // बाह्यसंपूजनायाथतत्प्रकारोनिगद्यते॥१७० ॥इतिमन्त्रमहोदधौनानादिकथनंना मैकविंशस्तरङ्गः // 21 // स्ववामाग्रतुषट्कोणवृत्तभूपुरवेष्टितम् // कृत्वात्रिकोणमूध्याग्रस्तंभयेच्छं खमुद्रया // 1 // पुष्पाक्षतैःषडंगानितवान्यादिषुपूजयेत् // अम्रक्षालितमाधारंतत्रादध्यान्मनुंजपन् // 2 // मंवह्निमंडलायतिततोदशकलात्मने // अमुका?तपात्रांसनायनमइत्यपि // 3 // चतु विशतिवर्णीयमाधारस्थापनेमनुः॥ आधारेपूर्वकाष्ठादिदशाचत्पावकी कलाः॥४॥ वामांगुल्यस्तथाश्लिष्टा-संयुताःसुप्रसारिता॥दक्षिणांगुष्ठकेलनामुद्राशंखस्यभूतिदेति // 1 // ततःपुष्पाक्षते रग्न्यादिषुषंडगानिसंपूज्यास्त्रक्षालितमाधारंमंवहिमंडलायदशकलात्मनेदेवार्घ्यपात्रासनायनमइत्याधारं त्रिकोणेस्थापयेत् // तत्राग्ने कलाधूम्राचिराद्याःपूजयेत् // 2 // 3 // 4 // For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त. मं०म०स्वमंत्रेति ॥शंखमंत्रक्षालितंशंखम्।।अंसूर्यमंडलायद्वादशकलात्मनेदेवाऱ्यापावायनमःइतितमाधारेस्थाप येत् // 5 // व्यक्षिवर्णवांस्त्रयोविंशतिवर्णःअमुकपदस्थानेइष्टदेवतानामोच्चायरामाध्येत्यादि // शंखमंत्र 201 // माह // तारइति॥ कामाक्लीं॥ॐक्कींमहाजलचरायहुंफट्स्वाहापांचजन्यायनमइति // 6 // 7 // तत्रार्ककला स्वमंत्रक्षालितंशंखंस्थापयेन्मनुमुच्चरन् ॥अंमूर्यमंडलायांतेद्वादशेतिकलात्मने॥५॥ अमुकाध्यति पात्रायनमोंतस्यक्षिवर्णवान् // शंखस्थापनमंत्रोऽयंतारकामोमहाजलः॥६॥ चरायवर्मफट्स्वाहामां चजन्यायहन्मनुः॥ शंखस्यविंशत्पर्णाव्यस्तेनप्रक्षालयेत्तुतम् // 7 // कलाद्वादशसूर्य्यस्यशंखोपरिय जेत्क्रमात्।।विलोममातृकांमूलंविलोमंचपठजलैः ।।८॥आपूर्य्यमनुनेष्ट्वातंतत्राचेदैन्दवी कलाः॥सो ममंडलायांतेषोडशांतेकलात्मने॥९॥अमुकाामृतायेतिहृन्मनुश्चार्षपूजने।आह्वयेत्तत्रतीर्थानितन्म वशृणिमुद्रया॥१०॥रविमंडलतःस्वीयहृदोदेवमथाह्वयेत्॥अष्टकृत्वोजपेन्मंत्रस्पृष्ट्वाजलमनन्यधीः११॥ अप्सुविन्यस्यचांगानिहदासंपूजयेदपः।मूलंजपेदष्टशतंच्छादयन्मत्स्यमुद्रया॥ 12 // स्तपिन्याद्याःसंपूज्यविलोमेमूलमातृकेजपन्जलैस्तंसंपूर्य // ॐसोममंडलायषोडशकलात्मनेदेवार्ष्यामृता यनमइत्ययसंपूज्यतत्रतन्मंत्रसृणिमुद्रयागंगेचेत्यादितीर्थमंत्रणांकुशमुद्रयाऽर्कमंडलात्तीर्थमावाह्यस्वहृदो देवमावाहयेत् / / अंकुशमुद्रालक्षणमुक्तम्॥मत्स्यमुद्रोक्ता // 8 // 9 // 10 // 11 // 12 // Ro10 For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंगुष्ठतर्जनीस्फोटंछोटिकामुद्रा॥वाममुष्टिंनिर्गततर्जनीकंकृत्वाशंखोपरिभ्रमणमवगुंठनमुद्रा // वर्मणाहुं| बीजेन // 13 // गोमुद्रांधेतुमुद्राम्॥सायथा।वामांगुलीनांमध्येषुदक्षिणांगुलीस्थानानिसंयोज्यतर्जनींदक्षा मध्यमयावामयातथादक्षमध्यमयावामांतर्जनींचनियोजयेत्॥ वामयानामयादक्षांकनिष्ठांचनियोजयेत् // दक्षयानामयावामांकनिष्ठांचनियोजयेत् ॥विहिताधोमुखीचैषाधेनुमुद्राप्रकीर्तितेति // अमृतबीजतम्वमि तिबीजेनसंरोधिन्यामुद्रया // सायथा // अंगुष्ठगर्भिणीसैवसंनिरोधेसमीरितेति // अंगुष्ठगर्भमुष्टिद्वयमि संरक्षेदत्रमंत्रणच्छोटिकामुद्रयाजलम्॥मुद्रयाचावगुंठन्यावर्मणात्ववगुंठयेत्॥१३॥अमृतीकृत्यगोमुद्रां कुर्वन्नमृतबीजतः // संरोधिन्यासंनिरुध्यतत्रमुद्रा प्रदर्शयेत् // 14 // शंखमौशलचक्राख्यापरमीकृत्य तत्पुनः॥ महामुद्रांविरचयन्योनिमुद्रांचदर्शयेत् // 15 // कृष्णमंत्रेगालिनींचरामेगरुडमुद्रिकाम् // शंखाद्दक्षिणदिग्भागेप्रोक्षणीपात्रपूरणम् // 16 // त्यर्थः। तत्राय॑मुद्रा शंखाद्याः॥ 14 // शंखमुशलचक्रमुद्राउक्ताः॥ महामुद्रांकुर्वन् // परमीकृत्यकरयोरंगु लीसंग्रंथ्यकरौवियोजयेदितिमहामुद्रोक्ता // 15 // करांगुल्यमाणिवक्रीकृत्यसंमुखंयोजितानिगालि नीमुद्रा॥ गरुडमुद्रायथा // संमुखौतुकरौकृत्वाग्रंथयित्वाकनिष्ठिक॥पुनश्चाधोमुखौकृत्वातजन्यौयोजयेत्त योः // मध्यमानामिकेद्वेतुपक्षाविवविचालयेत् // मुद्रषापक्षिराजस्यसर्वविघ्ननिवारिणीति // 16 // For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 202 // SAMPARALLODpopusseupuspepsasuSMELESSERe तेनप्रोक्षणीजलेननिजांगमुक्षेसिंचेत् / / मूलगायन्यापूजोपकरणानिचउक्षेत् // 17 // 18 // उदुंबरंताम्रम् // सटीक कृत्वार्घाब्वत्रनिक्षिप्यतेनोक्षेत्रिनिजांतनुम् // प्रजपन्मूलगायत्रीपूजावस्तुचयंतथा // 17 // पाद्याचम Bal त०२२ नपात्रेचदद्यादय॑स्यचोत्तरे // एवमर्च्यविधिःप्रोक्त सर्वसाधारणोमया // 18 // विहायशंकरंसूर्य्यम येशंख प्रशस्यते // हेमरूप्योदुम्बराब्जरीतिदारुमृदुद्भवम् // 19 // पालाशंपद्मपत्रवास्मृतंपाद्यादि भाजनम्॥अशक्तावर्षपात्रेणपायादीनिनिवेदयेत् // 20 // अंतर्यागंततःकुर्यात्पीठेदेहमयेसुधीः॥ न्यासस्थानेषुमंडूकमुख्यान्गंधादिभिर्यजेत् // 21 // पीठमंत्रांतमंज्याहृदयेस्वेष्टदेवताम् // कुंडली मथचोत्थाप्यद्वादशांतेपरंनयेत् // 22 // रीतिःपित्तलम् // 19 // 20 // 21 // कुंडलीमिति // आधारचक्राकुंडलिनीमुत्थाप्यद्वादशतिब्रह्मरंधेवर्त // 20 मानंपरब्रह्मनयेत् // 22 // For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 23 // 24 // ब्रह्मचारिवानप्रस्थयतयआद्यमंत-गमेव तेषांद्रव्याभावाद्वहिर्यागेनाधिकारः॥२५॥ 26 // तदुत्थामृतधाराभिःप्रीणयेत्स्वेष्टदेवताम् // जपंकृत्वानिवेद्यास्मैमनसानविसर्जयेत् // 23 // मूर्द्धहृत्पाद गुह्येषुतनौपुष्पांजलीन्क्षिपेत् // अंतर्यागंविधायेत्यवाह्यपूजनमाचरेत् // 24 // अंतर्यागबहिर्या गौगृहस्थःसर्वथाचरेत् // आद्यमेवब्रह्मचारीवानप्रस्थोयतिस्तथा // 25 // वर्द्धन्यांप्रक्षिपेत्किचिद पोदकमनन्यधीः॥प्राणानायम्यमूलेनवानेगुरुचयंनमेत् // 26 // दक्षिणेचगणेशानंपीठपूजामथाचरेत्॥ स्वर्णादिनिर्मितेयंत्रेयद्वाचंदननिर्मिते // 27 // मंडूकात्परतत्वांतदिङ्मध्येपीठशक्तयः॥ पृथिव्यनंतरं पूज्यःक्षीराब्धिर्माधवेश्रियम् // 28 // इक्षुसिंधुर्गणेशेस्यादन्यत्रामृतसागरः // अग्निराक्षसवाय्वी शकोणेधर्मादयःस्मृताः // 29 // इन्द्रकीनाशवरुणसोमाशासुनभादिकाः // धर्मादिपूजनेप्राची तथैवावरणार्चने // 30 // // 27 // मंडूकादयःपरतत्वांता:पीठदेवताउक्ताः॥२८॥२९॥ कीनाशोयमः॥ नञादिकाअधर्मादयः॥३०॥ For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सटीक ||203|| त०२२ शक्रादिषुयथास्वकंप्रसिद्धैवप्राची॥पीठशक्तीनांध्यानमाह॥श्वेतेति॥यथाविधिस्थापितायांविधिनाप्रतिष्ठि पूजकस्यपुर कल्प्याःशक्रादिषुयथास्वकम् // श्वेताकृष्णारुणापीताश्यामारक्तासितासिता॥ 31 // रक्तांवराभयधराध्येयाःस्युःपीठशक्तयः // शालग्राममणीयंत्रेनित्यपूजांसमाचरेत् // 32 // हेमादि प्रतिमायांवास्थापितायांयथाविधि // अंगुष्ठादिवितस्त्यंतमानासंप्रतिमागृहे // 33 // पूज्यानदग्धा भिन्नावानो धोइङ्नवक्रिका | लिंगंवालक्षणोपेतंतत्रावाहनमाचरेत् // 34 // मूलमुच्चार्यहृदया त्सुषुम्नावर्त्मनासह // द्वारेणब्रह्मरंध्रस्यनासारंधेविनिर्गतम् // 35 // पुष्पांजलौमातृकाब्जेयोजयित्वा विनिक्षिपेत् // मूर्तीपुष्पांजलिचैतदावाहनमुदीरितम्॥३६॥शालग्रामेस्थिरायांवानावाहनविसर्जने // आह्वानाद्युपचारेषुश्लोकाञ्छंभूदितान्पठेत् // 37 // आत्मसंस्थमजंशुद्धत्वामहं परमेश्वर // अर ण्यामिवहव्यांशमुर्तावावाहयाम्यहम् // 38 // पंचायतनपक्षेतुमध्यविष्णुसमर्चयेत् // अग्निनिर्ऋति वायव्यशानेषुगणनायकम् / / 39 // तायामूर्ध्वदृकूअधोक्वक्रानपूज्या // 31 // 32 // 33 // 34 // 35 // 36 // 37 // 38 // पंचायतनपूजामाह॥पंचेति३९॥ 203 // For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / // 40 // 41 // 42 // कांडानुसमयेनेति // कांडातुसमयः पदार्थानुसमयश्चेतिविधौ प्रकारद्वयम् // एकस्य पूजाकाण्डंसमाप्यापरार्चनंकाण्डानुसमयः / / प्रतिपदार्थसर्वेषांपूजापदार्थानुसमयः॥ततोऽत्रकांडानुसमयेन रविंशिवांशिवमध्येगणेशश्चेच्छिवंशिवाम् // रविविष्णुंवौमध्येविनाजनगजेश्वरान् // 40 // भवा न्यांमध्यसंस्थायामीशविनार्कमाधवान् // हरेमध्यगतेसूर्यगणेशगिरिजाच्युतान् // 41 // संपूज्या दोमध्यगतंगणेशादिततोयजेत् // गणेशेमध्यसंस्थेतुपूजयेद्भास्करादितः॥४२॥ कांडानुसमयेनात्र पूजाप्रोक्तामनीषिभिः॥ विधायावाहनंचेत्यमावाहन्यातुमुद्रया // 43 // संस्थापिन्यास्थापयेतमूलां तेश्लोकमुच्चरन् / तवेयंमहिमामूर्तिस्तस्यांत्वांसर्दगंप्रभो // 44 // भक्तिस्नेहसमाकृष्टंदीपवत्स्थापया म्यहम्।।उहःकार्योभवान्यादौश्लोकेष्वावाहनादिषु // 45 // मूलश्लोकौपठन्कुर्यादासनंचोपवेशनम् // सर्वातर्यामिणेदेवसर्ववीजमयंशुभम् // 46 // स्वात्मस्थायपरंशुद्धमासनंकल्पयाम्यहम् // अस्मिन्वरा सनेदेवसुखासीनोऽक्षरात्मकम् // 47 // पूजाआवाहनमुद्रयाआवाहनम् // अनामामूलसंलग्नांगुष्ठानांजलिरीरिता // देवाह्वानकरीचैषामुद्रावाह नसंज्ञिकेति॥आवाहनमुद्राधोमुखीसंस्थापनी॥४३॥४४॥आत्मसंस्थामजांशुद्धामित्याद्यूहः // 45 // 46 // 47 // Mol For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०२२ मं० म० // 48 // 49 // स्वमुद्रयासंनिधानमुद्रया // उत्तानांगुष्ठौमुष्टीसंनिधानमुद्रा // स्वमुद्रयासंनिरोधिन्यासो ता॥५०॥ मुद्रयासंमुखीकारण्याउत्तानौमुष्टीसंमुखीकरणी॥५१॥५२॥ हृद्यंजलिनिबंधनंप्रार्थनीमुद्रा // // 20 // 18 प्रतिष्टितोभवेशत्वंप्रसीदपरमेश्वर // मूलंश्लोकंततःकुर्यात्संनिधानंस्वमुद्रया // 48 // अनन्यात वदेवेशमूर्तिशक्तिरियंप्रभो // सान्निध्यंकुरुतस्यात्वंभक्तानुग्रहतत्परः // 49 // पठन्मूलंतथाश्लो कंसन्निरुध्यात्स्वमुद्रया // आज्ञयातवदेवेशकृपांभोधेगुणांबुधे // 5 // आत्मानंदैकतृप्तत्वांनिरु णमिपितरो // मुदयासंमुखीकुर्यान्मूलंश्लोकंचसंपठन् // 21 // अज्ञानादुर्मनस्त्वाद्वावैकल्यात्सा धनस्यच // यदपूर्णभवेत्कृत्यंतदप्यभिमुखोभव // 52 // कुर्वीतमूलश्लोकाभ्यांप्रार्थन्यामुद्रयार्चने // दशापीयूपवर्षिण्यापूरयन्यज्ञविष्टरम् // 53 // मूर्तावायज्ञसंपूर्तेःस्थितोभवमहेश्वर // न्यसेत्पडंगंदेवांगे सकलीकरणंसुधीः॥५४॥ मूलश्लोकंपठन्कुर्यादवगुंठस्वमुद्रया // अभक्तवाङ्मनश्चक्षुःश्रोत्रदूरापित द्युते॥५५॥स्वतेजःपंजरेणाशुवेष्टितोभवसर्वतः॥ गोमुद्रयामृतीकृत्याविदध्यात्परमीकृतिम् // 56 // महामुद्रांविरचयंस्ततःस्वागतमाचरेत् // मूलमंत्रंतथाश्लोकंपठस्तद्गतमानसः॥१७॥ स्वमुद्रयाऽवगुंठन्यासोक्ता // 53 // 54 // 55 // गोमुद्रोक्ता // 56 // महामुद्राप्युक्ता // 7 // // 20 // For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie Sin58 // 59 // पाद्यद्रव्याण्याह॥श्यामाकेति // 60 // 61 // आचमनीयद्रव्याण्याह॥लवंगेति // कंकोलंसुगंधद्रव्यं यस्यदर्शनमिच्छंतिदेवाःस्वाभीष्टसिद्धये / / तस्मैतेपरमेशायस्वागतंस्वागतंचमे // 58 // ततःसुस्वा गतंकु-न्मूलश्लोकौसमुच्चरन् // कृतार्थोनुगृहीतोस्मिसफलंजीवितंमम // 59 // आगतोदेवदेवेश सुस्वागतमिदंपुनः // श्यामाकविष्णुकांताब्जदूर्वाःपाधजलेक्षिपेत् // 6 // मूलश्लोकनमोमंत्रैःपायं पादांबुजेऽर्पयेत् // यद्भक्तिलेशसंपर्कात्परमानंदविग्रहम् // 61 // तस्मैतेचरणाब्जायपायंशुद्धायक ल्पये // लवंगजातिकंकोलंप्रक्षिप्याचमनीयके // 62 // दद्यादाचमनंवक्रेमूलश्लोकसुधाक्षरैः // वेदा नामपिवेद्यायदेवानांदेवतात्मने // 63 // आचामंकल्पयामीशशुद्धानांशुद्धिहेतवे // अर्घ्यपात्रेक्षिपे दूर्वातिलदर्भाग्रसर्षपान् // 64 // यवपुष्पाक्षतान्गंधतेनार्यमूर्विचाचरेत् // मूलश्लोकशिरोमनैर्देव स्यमनुवित्तमः // 65 // तापत्रयहरंदिव्यंपरमानंदलक्षणम् // तापत्रयविनिर्मुक्तंतवाय॑कल्पया म्यहम् // 66 // पातुमधुपर्कस्यदध्याज्यमधुचक्षिपेत् // मूलश्लोकसुधामंत्रैर्दद्यात्तंवदनेप्रमोः॥६७॥ मरिचोपमः॥६२ // 63 // 64 // शिरोमंत्रःस्वाहा // 65 // 66 // सुधामंत्रोवम् // 67 // "ALL"85555555555555555555 For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सटीक त०२२ मं०म०टास्नानवस्त्रोपवीतनैवेद्येषुदत्तेष्वाचमनीयंदद्यात्॥६९।७०।७१।७२।उभयंमूलश्लोको॥७३।७४।७५६७६७७१७८ // 20 // सर्वकालुष्यहीनायपरिपूर्णसुखात्मने // मधुपर्कमिदंदेवकल्पयामिप्रसीदमे // 68 // पुनराचमनंद द्यान्मूलंश्लोकांतरंपठन् // उच्छिष्टोप्यशुचिर्वापियस्यस्मरणमात्रतः // 69 // शुद्धिमाप्नोतितस्मैते पुनराचमनीयकम् // नानवस्रोपवीतांतेनैवेद्यांतेपितत्स्मृतम् // 70 // पाद्यादिद्रव्याभावेतुतत्स्म रनक्षतानक्षिपेत् // गंधतैलंततोदद्यान्मूलश्लोकंपठन्सुधीः // 7 // स्नेहंगृहाणस्नेहेनलोकनाथमहा शय॥सर्वलोकेषुशुद्धात्मन्ददामिनेहमुत्तमम्॥७२॥हरिद्रायैस्तमुद्वय॑नापयेदुभयंपठन् / परमानंदयो धाब्धिनिमग्ननिजमूर्तये // 73 // सांगोपांगमिदनानंकल्पयाम्यहमीशते // ततःसहस्रंशंखेनशतवा शक्तितोपिवा // 74 // गंधयुक्तोदकैरीशमभिषिचेन्मनुस्मरन् / पठन्मूलंततःश्लोकौदद्यात्रोत्तरी यके // 75 // मायाचित्रपटच्छन्ननिजगुह्योरुतेजसे // निरावरणविज्ञानवासस्तेकल्पयाम्यहम् // 6 // यमाश्रित्यमहामायाजगत्संमोहिनीसदा // तस्मैतेपरमेशायकल्पयाम्युत्तरीयकम् // 77 // पीतंवि ष्णौसितंशंभौरक्तविनार्कशक्तिषु // सच्छिद्रमलिनंजीर्णत्यजेत्तैलादिदूषितम् // 78 // // 20 // For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie 139222215251219959935929128199228HRESERIES // 79 // 80 // 81 // पूर्ववन्मूलश्लोकोपठन्गंधमर्पयेत् // 82 // 83 // अंगुष्ठौकनिष्ठामूलल उपवीतंभूषणानिप्रयच्छेदुभयंपठन् // यस्यशक्तित्रयेणेदंसंप्रोतमखिलंजगत् // 79 // यज्ञसूत्रायत स्मैतेयज्ञसूत्रप्रकल्पये // सभावसुंदरांगायनानाशक्त्याश्रयायते // 80 // भूपणानिविचित्राणिक ल्पयाम्यमरार्चितम् // मूलमंत्रणपुटितमेकैकमातृकाक्षरम् // 81 // विन्यसेदेवतांगेषुयोगोयंलोकमो हनः // कनिष्ठयापात्रसंस्थंपूर्ववद्धमर्पयेत् // 82 // परमानंदसौभाग्यपरिपूर्णदिगंतरम् // गृहाण परमंगंधकृपयापरमेश्वर // 83 // ततःकनिष्ठांगुष्ठाभ्यांगंधमुद्रांप्रदर्शयेत् // मूलश्लोकंपठनानापुष्पा णिविनिवेदयेत् // 84 // तुरीयवनसंभूतंनानागुणमनोहरम्॥अमंदसौरभंपुष्पंगृह्यतामिदमुत्तमम्॥८५॥ तर्जन्यंगुष्ठयोगेनपुष्पमुद्रांप्रदर्शयेत् // अक्षतानकंधत्तूरीविष्णोनवार्पयेत्सुधीः॥ 86 // बंधूकंकेत कीकुंदकेसरंकुटजंजयाम् // शंकरनार्पयेद्विद्वान्मालतीयूथिकामपि // 87 // सौगंधमुद्रा / / 84 / / 85 // तर्जन्यावंगुष्ठमूललग्नेपुष्पमुद्रा॥पुष्पाध्यायमाह|अक्षतानित्यादिना / अक्षतान् तंदुलादीन् // तिलकोपर्य्यर्पणेनदोषः // 86 // 87 // For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | सटीक त०२२ मं०म० शक्तौदूर्वादयोनिषिद्धाः॥ महालक्ष्म्यास्तुदूर्वाप्रशस्ता // मालरंबिल्वम् // तगरंगंधतगरम् // तगरइतिका न्यकुब्जभाषायाम् // जातुकदाचिदपि // 88 // निषिद्धान्याह // निर्गधमिति॥८९॥तुच्छसंस्पृष्टंशरीरलग्नम्॥ ॥२०६॥स्वविकासितंबलादात्मनाविकासितम् // 90 // पर्युषितंदिनांतरानीतम् // सुमंपुष्पम् // चंपककमलयोः शक्तौदूर्वार्कमंदारान्मालूरंतगरंरवौ // विनायकेतुतुलसींनार्पयेजातुचिबुधः // 88 // श्वेतंपीतंहरेरिष्टं रक्तरविगणेशयोः // निर्गधकेशकीटादिदूषितंचोग्रगंधकम् // 89 // मलिनंतुच्छसंस्पृष्टमाघातस्व विकासितम् // अशुद्धभाजनानीतंत्रात्वानीतंचयाचितम् // 90 // शुष्कंपर्युषितंकृष्णंभूमिगनार्पयेत्सु मम्॥चंपकंकमलं त्यक्त्वाकलिकामपिवर्जयेत्॥९॥ॉरंटकंकांचनारंवर्जयेद्वृहतीयुगम्॥पुष्पंपत्रफलं देवेनप्रदद्यादधोमुखम्॥९२॥पुष्पांजलौनतद्दोषस्तथापय्युषितस्यच // तुलसीवकुलोवृक्षश्चपकश्चसरो जिनी॥९३॥विल्वंकल्हारदमनास्तथामरुवक कुशः।।दूर्वाहिवल्ल्यपामार्गविष्णुकांतामुनिद्रुमाः॥९॥ कलिकाअपिप्रशस्ताः // 91 // पुष्पपत्रफलान्यधोमुखानिनार्पयेद्यथोत्पन्नतथैवार्पयदित्यर्थः // 92 // पुष्पांजली अधोमुखपर्युषितयोर्नदोषः॥ 93 / / अहिवल्लीनागवल्ली // मुनिद्रुमोऽगस्त्यः // 94 // 1 तत्रपीतेकुरंटकइत्यमरः // 2 बिल्वेशांडिल्यशैलूधौमालूरःश्रीफलावषीत्यमरः // RSE For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धात्रीआमलकी // तुलस्यादीनांपत्रैरपिपूजा // जम्बादीनांपत्रैरपिफलैश्च // रसालः आम्रः॥९५ // 96 // // 97 // दिक्पहेत्यंतमितिदिक्पालायुधपर्यंतमावरणपूजा // इदंसांप्रदायिकम् // क्वचिदंगपूजांतःप्राग पिवजादूर्ध्वमप्यावरणानिसंति // अंगपूजास्थानमाह / / अग्नीति // 98 // अंगदेवताध्यानमाह / वामलो धात्रीयुतानामेतेषांपत्रैःकुर्यात्सुरार्चनम् // जंबूदाडिमजंबीरतितिणीवीजपूरकाः // 95 // रंभाधा त्रीबदरीरसाल पनसोपिच // एपांफलैर्यजेद्देवंतुलसीतुहरे प्रिया // 96 // सुवर्णपुष्पंतुलसीनैवनि माल्यतांब्रजेत् // पुष्पपूजांविधायेत्थंकु-दावरणार्चनम् // 97 // अंगादिदिक्पहेत्यंतंततोधूपादिकं चरेत् // अगिनैर्ऋतिवाय्वीशकोणेषुहृदयंशिरः॥ 98 // शिखांकवचमाराध्यनेत्रमग्रेप्रपूजयेत् // दिश्वस्त्रमंगदेव्यस्ताध्यातव्यावामलोचनाः // 99 // सिताश्वेतासितास्तिस्रोरक्ताइष्टाभयान्विताः // स्वदिक्षुप्रयजेदिक्पा जातिहेत्यादिसंयुतान् // 10 // चनाःस्त्रीरूपाः॥९९॥ तिस्राकवचनेत्रास्त्ररूपाः रक्ताइष्टाभयान्वितावराभययुताः। स्वदिक्षुप्रसिद्धासु दिक्पा लानिंद्रादीन् / जातिहेत्यादिसंयुतान्॥जातयःसुरादयः हेतयोवज्रादयः॥आदिशब्दाद्वाहनशक्ती // 10 // 1 फलपूरोवीजपूरोरुचकोमातुलिंगकेइत्यमरःप्रचोदनीकलीक्षुद्रादुःस्पर्शाराष्ट्रिकेत्यपीत्यमरः // For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० // 207 // त०२२ प्रणवादीनियानिनिजबीजानींद्रादिबीजानिपूर्वमुक्तानिलंरंमंक्षवंयंसंहहींआमित्यादि॥प्रयोगमाह ॥तार मिति // 11 // 102 // 103 // आद्यति // अधिपतयइत्येतस्मात्पूर्वस्यामुकपदस्थानेसुरादिजातीर्वदेव // // 104 // 10 // बीजादीनितेदिक्पालाश्चपूर्वमुक्ताः॥ यातुतोयपयोनिक्रतिवरुणयो।कंब्रह्माणम्॥यथा॥ ॐलंइंद्रायसुराधिपतयेसवाहनायसपरिवारायसशक्तिकायसपार्षदायनमः // ॐरंअग्नयेतेजोधिपतये // तारादिनिजबीजाद्यांस्तत्प्रयोगोऽधुनोच्यते // तारंबीजमथेद्रायामुकाधिपतयेततः // 101 // सायु धायसवाहांतेनायसांतेपरीतिच // वारायांतेसशक्तीतिकायामुकपदंततः // 102 // पार्षदायनमोंतोऽ यंदिक्पालानांमनुःस्मृतः // इंद्रायेतिपदस्थानेवह्नयादिपदमुच्चरेत् // 103 // आद्यामुकपदस्थाने क्रमाजातीवदेत्सुधीः // सुरतेजःप्रेतरक्षःसलिलप्राणतारकाः // 104 // भूताहिलोकाविज्ञेयाआ शापालकजातयः // पार्षदात्पूर्वममुकस्थानेस्यात्स्वेष्टदेवता // 105 // बीजानिपूर्वमुक्तानि वाहनान्यायुधान्यापि // यातुतोयपयोर्मध्येऽनंतंपूर्वशयोस्तुकम् // 106 // ॐमयमायप्रेताधिपतये // ॐक्षनैर्ऋतयेरक्षोधिपतये॥ॐवंवरुणायजलाधिपतये // यंवायवेप्राणा धिपतये॥ॐसंसोमायनक्षत्राधिपतये // ॐहईशानायभूताधिपतये॥ॐहींअनंतायनागाधिपतये // ॐआंब्रह्मणेलोकाधिपतये॥ इतिप्रयोगः // 106 // meaon For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 107 // पुष्पपाथसीपुष्पोदकेदत्त्वा // धूपमाह // धूपपात्रेति // पुरोगुग्गुलुः // आदिशब्दात घृतकप्रेरशर्कराः॥१०८।१०९।अग्नावगुर्वादिप्रक्षिप्यफडितिप्रोक्ष्यनमइतिपुष्पंसमlवामतर्जन्यासंस्पृश्यमूल प्रत्यावृत्तिक्षिपेद्देवेपुष्पमंत्रमिमंजपन् // अभीष्टसिद्धिंमेदेहिशरणागतवत्सल // 107 // भक्त्या समर्पयेत्तुभ्यमिदमावरणार्चनम्॥आह्वानाद्युपचारेषुप्रत्येकंपुष्पपाथसी // 108 // दत्त्वाप्रक्षाल्यचकरसु पचारांतरंचरेत् // धूपपात्रस्थितांगारेक्षित्वागुरुपुरादिकम् // 109 // पात्रमस्त्रेणसंप्रोक्ष्यहृदापुष्पंसम र्पयेत्॥संस्पृशन्वामतर्जन्यामूलश्लोकंचसंपठेत्॥११०॥वनस्पतिरसोपेतोगंधान्यःसुमनोहरः॥आप्रेयः सर्वदेवानांधूपोयंप्रतिगृह्यताम् // 111 // सांगायसपरीत्यंतेवारायतदेवता॥धूपंसमर्पयामीतिनमोंतमं त्रमुच्चरन्॥११२॥शंखांबुप्रक्षिपेद्भूमौधूपमुद्रांप्रदर्शयेत्॥तर्जन्यंगुष्ठयोगेनघंटामचेत्स्वमंत्रतः॥११३॥ श्लोकांतेसांगायसपरिवारायरामायधूपंसमर्पयामीतिशंखोदकंक्षिपेत् // तर्जनीमूलयोरंगुष्ठयोगोधूप मुद्रा / घंटामंत्रः॥ ईदृशंदीपदानमपिप्रोक्षणप्रयोगश्चतद्वत् // 11 // 111 // 112 // 113 // For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 20 // विशेषमाह॥धूपयेदिति // 114 // 115 // वामेति // मध्यमामूलयोरंगुष्ठयोगोदीपमुद्रा // दीपदानंने सटीक प्रदेशे // वर्तीनाभूरिपक्षेबहुत्वपक्षेविषमास्त्याज्याः // 116 // 117 // 128 // सितवर्तियुततैलदीपो त०२२ जयध्वनिमंत्रमातःस्वाहांतःसदशाक्षरः // वादयन्वामहस्तेनकीर्तयन्देवतागुणान् // 114 // धूपये दक्षहस्तेनदेवतानाभिदेशतः // जलंपुष्पांजलिंदद्यादीपदानमपीदृशम् // 11 // वाममध्यमयास्पों मूलश्लोकस्यकर्तिनम् // सुप्रकाशोमहादीपःसर्वतस्तिमिरापहः // 116 // सबाह्याभ्यंतरंज्योतिर्दीपो यंप्रतिगृह्यताम्।। धूपस्थानेदीपपदंमध्यमांगुष्ठयोगतः ॥११७॥दीपमुद्रादर्शनंचतदाननेत्रदेशतःभूरि पक्षेतुवर्तीनांविषमावर्तिकामताः॥११८॥धृतदीपोदक्षिणेस्यात्तैलदीपस्तुवामतः / / सितवर्तियुतोदक्षे वामांगेरक्तवर्तिका // 119 // अत्रान्यभूपवज्ज्ञेयंततोनैवेद्यमर्पयेत् // स्वर्णादिभाजनेसाज्यंपायसंशर्करा दिकम्॥१२०॥परिवेष्ययथाशक्तिप्रोक्षेत्कैरत्रमंत्रितैः॥चक्रमुद्रामथारच्यप्रोक्षेत्तन्मंत्रितै लैः॥१२१॥ Ram208 // पिदक्षिणतः // रक्तवर्तियुतोघृतदीपोपिवामतइत्यर्थः // 119 // अन्यजलप्रक्षेपादि // 120 // कैर्जलैः // चक्रमुद्रोक्ता॥वायुबीजेनद्वादशवारंमंत्रितैर्जलैस्तत्रैवेद्यप्रोक्षेत् // 121 // aaaaamana For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वायुबीजोत्थमारुतेनैवेद्यदोषसंशोष्यदक्षिणकरेरंबीजंविचिंत्यदक्षकरपृष्ठेवामकरंदत्त्वानैवेद्यंप्रदाग्निवी जोत्थाग्निनादोषंदग्ध्वावामकरवंबीजध्यात्वातत्पृष्ठेदक्षहस्तंदत्त्वानैवेद्यंप्रदर्यामृतबीजोत्थामृतप्लुतंस्मृत्वा मूलेनप्रोक्ष्यतत्स्पृष्ट्वाइष्टवारमूलंप्रजप्यधेनुमुद्रांप्रदर्यसंपूज्यदेवेपुष्पंदत्त्वादेवस्योद्गतंतेजःस्मृत्वावामांगुष्ठस्पृ वायुवीजेनार्कवारंततस्तजातमारुतैः // नैवेद्यदोषसंशोष्यचिंतयेदक्षिणेकरे // 122 // अग्निवीजंत स्यपृष्ठेवामंकरतलंन्यसेत् // तंदर्शयित्वानैवेद्येतदुत्थेनाग्निनाखिलम् // 123 // नैवेद्यदोषसंदह्यध्याये द्वामकरेऽमृतम् // तत्पृष्ठेदक्षिणहस्तंकृत्वातत्रप्रदर्शयेत् // 124 // आप्लावितंस्मरेद्भोज्यबीजोत्थाऽमृत धारया // प्रोक्ष्यमूलेनतत्स्पृष्ट्वाऽष्टशोमूलमनुजपन् // 125 // दर्शयित्वाधेनुमुद्रांगंधपुष्पैस्तदर्च येत् // देवेपुष्पांजलिंदत्त्वातेजोदेवमुखोत्थितम् // 126 // विचिंत्यवामांगुष्ठेनस्पृशेनैवेद्यभाजनम् // दक्षहस्तेजलंधृत्वामूलश्लोकंशिरःपठेत् // 127 // वष्टंनैवेद्यंसजलदक्षहस्तेनमूलश्लोकस्वाहांतेसांगायेतिपठन्नैवेद्यमुद्रांप्रदर्शयेत् // अनामामूलयोरंगुष्ठयोगो निवेद्यमुद्रा // 122 // 123 // 124 // 125 // 126 // 127 // HDaलमBIHARndanp.39RPA mp AREMARKanuaHARMATHAMMARRARAMHITAMARHARMAHARYA mm L For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व र मं०म० // 209 // | सटीक त० MeasureusERENAMSHESEROFENAMEENAERE // 128 // 129 // सपुष्पकराभ्यांपात्रमुद्धरनिवेदयामीतिपठेत् // 130 // पद्माभोवामहस्तोपासमुद्रा॥१३१॥ सत्पात्रसिद्धंसुहविर्विविधानेकभक्षणम् // निवेदयामिदेवेशसानुगायगृहाणतत् / / 128 // सांगायेत्या दिकंप्रोच्यजलमुत्सृज्यभूतले // नैवेद्यमुद्रामंगुष्ठानामिकाभ्यांप्रदर्शयेत् // 129 // सपुष्पाभ्यांकरा भ्यांत्रिःप्रोद्धरन्भक्षभाजनम् // निवेदयामिभवतेजषाणेदंहविहरे // 130 // षोडशार्णानिमान्प्रोच्य ग्रासमुद्रांप्रदर्शयेत् // वामहस्तेनपद्माभांप्राणायादक्षिणेनतु // 133 // कनिष्ठानामिकांगुष्ठैर्मुद्राप्राण स्यकीर्तिता // तर्जनीमध्यमांगुष्टैरपानस्यतुसास्मृता // 132 // अनामामध्यमांगुष्टैरुदानस्यचमुद्रि का // तर्जन्यनामामध्याभिःसांगुष्ठाभिश्चतुर्थिका // 133 // सर्वाभिःसासमानत्यप्राणाद्यान्डेद्विठा न्वितान् // तारपूर्वाञपन्मुद्राःप्राणादीनांप्रदर्शयेत् // 134 // प्राणादिमुद्राआह // कनिष्ठेति॥१३२ // चतुर्थिकाव्यानमुद्रा॥ 133 // सर्वागुलिभिःसमानमुद्रा स्वाहा // ॐप्राणायस्वाहेत्यादि // 134 // // 209 // For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जवनिकातिरस्करिणी तांधृत्वाशालीभक्तंब्रह्मेशाद्यैरितिपद्यद्वयंपठेत् // यथा // ब्रह्मेशाद्यैःपरितउरुभिःसूप, विष्टैःसमेतैर्लक्ष्म्यासिंजद्वलयकरयासादरंवीज्यमानः // नर्मक्ष्वेलीप्रहसनमुखैाप्नुवन्पंक्तिमध्यंभुक्तेपात्रे कनकघटितेषड्रसंश्रीरमेशः॥१॥ शालीभक्तंसुपक्वंशिशिरकरसितंपायसापूपसूपलेह्यपेयंचचोष्यंसितममृ तफलंपूरिका_सुखाद्यम् // आज्यप्राज्यसभोज्यनयनरुचिकरंराजिकैलामरीचस्वादीय शाकराजीपरिकर ततोजवनिकांकृत्वाब्रह्मेशायरिदंपठेत् // पद्यशालीभक्तामितिमूलमंत्रंचसप्तधा // 135 // प्रतिसीराम पाकृत्यदद्याच्छ्लोकंपठञ्जलम् / समस्तदेवदेवेशसर्वतृप्तिकरंपरम् // 136 // अखंडानंदसंपूर्णगृहाण जलमुत्तमम् // स्थंडिलेनिमुपाधायवैश्वदेवक्रियांचरेत् // 137 // मूलेनवीक्ष्यचास्त्रेणकृत्वाप्रोक्षणता डने / कुशैस्तद्धर्मणाभ्युक्ष्यपूर्ववत्स्थापयेच्छुचिम् / / 138 // तन्मंत्रेणतमभ्याहूयतवेष्टदेवताम् / / पूजयेद्धपुष्पैस्तांमहाव्याहृतिभिस्ततः // 139 // हुत्वाव्यस्तसमस्ताभिराहुतीनांचतुष्टयम् // अन्नर्मूलेनजुहुयात्पंचविंशतिसंख्यया // 14 // ममृताहारजोषजुषस्व॥इतिपद्यद्वयम् ॥रमेशपदेऽन्यदैवतेऊहाकार्यलक्ष्म्येतिपदेपिगौर्यापार्वतीशइत्यादि Helu 135 // प्रतिसीरांजवनिकाम् // 136 // 137 // शुचिंवह्निम्॥पूर्ववत्प्रथमतरंगोक्तविधिना // 138 // तन्मंत्रे वैश्वानरमंत्रेणपूर्वोक्तेन // 139 // 14 // ORH For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० म. . // 21 // 141 // // 142 // उच्छिष्टभोजिनआह // विष्वक्सेनइत्यादिना // विकर्तनस्यरवेः // 143 // 144 // पुनर्व्याहृतिभिर्तृत्वामूर्तीदेवनियोजयेत् // वह्निविसृज्यदेवायदद्यादाचमनोदकम् // 141 // तेजःसंयोज्यदेवस्यनिर्गतदेववक्रतः॥ नैवेद्यांशंतदुच्छिष्टभोजिनेविनिवेदयेत् // 142 // विष्वक्सेनो हरेरुक्तश्चंडेश्वरउमापतेः। विकर्तनस्यचंडांशुवक्रतुंडोगणोशितुः // 143 // शक्तरुच्छिष्टचांडालीस्मृ ताउच्छिष्टभोजिनः // ततोलवणमुत्ता>कुर्यादारात्रिकंसुधीः॥१४४॥अथोनिवेद्यतांबूलंदर्शयेच्छर चामरे // पठेद्देवमनाभूत्वासार्द्धश्लोकचतुष्टयम् // 145 // बुद्धिःसवासनातृप्तादर्पणमंगलानिच // मनोवृत्तिर्विचित्रांतेनृत्यरूपेणकल्पिता // 146 // ध्वनयोगीतरूपेणशब्दावाद्यप्रभेदतः॥ छत्राणिन वपद्मानिकल्पितानिमयाप्रभो // 147 // सुषुम्नाध्वजरूपेणप्राणाद्याश्चामरात्मना // अहंकारोगजत्वे नवेगःक्लृप्तोरथात्मना / / 148 // इंद्रियाण्यश्वरूपाणिशब्दादिरथवर्मना // मनःप्रग्रहरूपेणबुद्धिःसार थिरूपतः।।१४९॥सर्वमन्यत्तथास्कृप्तंतवोपकरणात्मना॥श्लोकानेतान्पठित्वातुमूलमंत्रमनन्यधीः१५०२१०॥ सार्धश्लोकचतुष्टयंशिवोक्तम् // 145 // तदेवाह॥बुद्धिरिति // 146 // 147 // 148 // 149 // 150 // LOVEILL For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie Ra मंत्रेणगुह्यातिगुह्येत्यादिना॥तंजपम्॥देवदक्षकरेघजलेनार्पयेत् // 151 // 152 // 153 // प्रदक्षिणासंख्यामाह / / अजेति॥ अजेविष्णौवेदाश्चतस्रप्रदक्षिणाईशेर्द्ध।शक्तावेका|गणेशस्यतिस्रः॥रवेःसप्त॥१५४॥१५॥ब्रह्मार्प णमंत्रमाह // इतइति // बकाशः // मेषोऽनंतान्वितः नः // आयुतः॥ श्रा॥ यथा / इतःपूर्वप्राणबुद्धिदे यथाशक्तिजपित्वातंमंत्रेणविनिवेदयेत् // क्षिपन्नघस्यपानीयंदेवतादक्षिणेकरे // 151 // गुह्यातिगुह्य गोप्तात्वंगृहाणास्मत्कृतंजपम्।।सिद्धिर्भवतुमेदेवत्वत्प्रसादात्त्वयिस्थितिः // 152 // कीर्तितःश्लोकरूपो यमंत्रोजपनिवेदने // दत्वापराङ्मुखंचायपुष्पैःशंखप्रपूजयेत् // 153 // दंडवत्प्रणिप्रत्येशंदेवेकुऱ्या त्प्रदक्षिणाः // अजेशशक्तिगणपभास्कराणांक्रमादिमाः // 154 // वेदार्द्धचंद्रवन्ादिसंख्या:स्युःसर्व सिद्धये // स्तुत्वाब्रह्मार्पणाख्येनमनुनाऽऽत्मानमर्पयेत् // 155 // इतःपूर्वप्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतः॥ जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्यंतेऽवस्थासुमनसावदेत् // 156 // वाचाहस्ताभ्यांपझ्यामुदरेणशिवकस्ततः॥ मेपोनं तान्वितोयत्स्मृतंयदुक्तंचयत्कृतम् // 157 // सहधर्माधिकारतोजाग्रत्स्वमसुषुप्त्यवस्थासुमनसावाचाहस्ताभ्यांपयामुदरेणशिश्नायत्स्मृतंयदुक्तंयत्कृतंत सर्वब्रह्मार्पणंभवतुस्वाहा // मांमदीयंचसकलंहरयेतेसमर्पयेॐतत्सदिति // 156 // 157 // FOLLOKESPEGISISMENSSSS सरकार CaLSH For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 21 // // 158 // 159 // संहारमुद्रोक्ता // हरयेइत्यत्रईशानायगोयेइत्याद्यूहः॥१६॥ब्रह्मयज्ञवेदाध्ययनम् // अल सटीक ब्धलाभोयोगः // लब्धस्यपरिपालनंक्षेमः // 161 // तांत्रस्नानम् // पूर्वोक्तं प्रथमतरंगोक्तम् // 162 // तत्सर्वप्रोच्यब्रह्मार्पणंभवत्वानिवल्लभा // मांमदीयंचसकलंहरयेतेसमर्पये // 158 // तारस्तत्सदिति त० 22 प्रोक्तोब्रह्मार्पणमनुर्बुधैः / / प्रणवाळिशीत्यर्णोदेवतात्मसमर्पणे // 159 // संहारमुद्रयादेवंसंहरेद्धृद् येनिजे // अन्यस्मिन्दैवतेकायेऊहोहरिपदेबुधैः॥ 160 // एवंसंपूज्यदेवेशंब्रह्मयज्ञसमाचरेत् // यो गक्षेमंततःकृत्वामध्याह्नस्नानमाचरेत् // 161 // स्मार्ततांचंचपूर्वोक्तंसंध्यातर्पणमप्यथ // संपूज्यपूर्ववदे / वैवैश्वदेवादिकंचरेत् // 162 // देवप्रसाद जीतसंभोज्यब्राह्मणोत्तमान् // आचम्यदेवंसंस्मृत्यपुराणं शृणुयात्सुधीः // 163 // संध्याहोमंचनिर्वृत्यदेवंसंपूज्यपूर्ववत् // शयीतशुद्धशय्यायांभुक्त्वाल्पंदेव तांस्मरन्।।१६४॥एवंयःपूजयोद्देवंत्रिकालंधर्ममाचरन् ॥नजातुवैरिभिर्दुःखै पीज्यतेहरिरक्षितः॥१६॥ त्रिकालंपूजनाशक्तै कार्यद्विःसकृदप्यदः॥ विशेषेणयजेद्देवंसंक्रांत्यादिषुपर्वसु // 166 // दशभिःपंच BUR11 // भिवापिपूजयेदुपचारकैः // अशक्त कारयेत्पूजांदद्यादर्चनसाधनम् // 167 // BO // 163 / / 164 // 165 // अदःपूजनम् // 166 // दशभिरुपचाररावाहनासनस्नानाचमनवस्त्रचन्दनपुष्पधूपदी पनैवेद्यैः॥ पञ्चभिर्गधाद्यैः // 167 // Daugat For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचप्रकारांपूजामाह // साधनाभाविनीति // साधनानांपूजोपकरणानामभावोयस्याःसासाधनाभाविनी // वासोयस्याःसातत्कृतात्रासी|दुर्बोधानामियंदौर्बोधी॥ सूतकेकृतासौतकी // 168 // आतुरस्येयमातुरी / / दानाशक्त-समचैतंपश्येत्तत्परमानसः।।साधनाभाविनीवासीदौर्बोधीसौतकीतथा।।१६८॥आतुरीपंचधो तासौपूजासाकीय॑तेक्रमात् // पूजासाधनवस्तूनामभावान्मनसैवया // 169 // पूजांभसावाशुद्धेनसा धनाभाविनीतुसा // त्रस्तःसंपूजयेद्देवंयथालन्धोपचारकैः॥ 170 // मानसापिसाबासीज्ञेयासंपूर्ण सिद्धिदा // बालावृद्धा स्त्रियोमूतॊदुर्योधास्तत्कृतातुया // 171 // यथाज्ञानंपरार्चासौदौर्बोधीकीर्तिताबु धैः॥ सूतकीतुनर-नात्वासंध्यांचमानसींचरेत् // 172 // मानसैर्वार्चयेत्कामीनिष्कामःसर्वमाचरेत्॥ सौतक्युक्ताऽऽतुरारोगाननायानचपूजयेत् // 173 // विलोक्यमूर्तिदेवस्ययदिवासूर्यमंडलम् // सक न्मूलमनुंजवातत्रपुष्पंविनिक्षिपेत् // 174 // ततोरोगेगतेस्नात्वापूजयित्वागुरून्द्विजान् // पूजावि च्छेददोषोमेमास्त्वितिप्रार्थयेततान् // 175 // क्रमाल्लक्षणमाह // पूजति॥१६९॥त्रासीमाह॥त्रस्तइति॥१७०॥दौर्बोधीमाह // बालाइति // 171 // सौतकी माह // सूतकीति // 172 ॥आतुरीमाह // आतुरेति // 173 // 174 // 17 // For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BEAUTION मं०म० // 212 // // 176 // 177 // 178 // सुरार्चायानित्यतामाहादेवेति // 179 // // इतिमंत्रमहोदधिनौकायांदेवा_नि| सटीक तेभ्यश्चाशिषमादायदेवेशंपूर्ववद्यजेत् // आतुरीकीर्तितापूजा-पंचैनारदोदिताः // 176 // स्वयंसंपा द्यसर्वाणिश्रद्धयासाधनानियः // पूजयेत्तत्परोदेवंसलभेताखिलंफलम् // 177 // पूजनेनफला स्याद त०२३ न्यदत्तैस्तुसाधनैः॥ तस्मात्स्वयंसमानीयसाधनान्यर्चनंचरेत् // 178 // देवपूजाविहीनोयःसनरोनरके पचेत्॥यथाकथंचिद्देवार्चा विधेयाश्रद्धयान्वितैः॥१७९॥इतिमंत्रमहोदधौपूजाकथनंनामद्वाविंशस्तरंगः ॥२२॥॥वक्ष्येथोसर्वदेवानांपवित्रदमनार्पणम्॥पवित्रैःश्रावणेपूजाचैत्रेदमनकैरपि॥१॥प्रत्यब्दंविधिवत्कु द्विर्चािफलसिद्धये // चैत्रेशुकचतुर्दश्यांदमनःपूजयेद्धरम् // 2 // नारायणंतुद्वादश्यामष्टम्यां गिरिनंदिनीम् / / सप्तम्यांभास्करदेवंचतुर्थीगणनायकम् // 3 // एवंतत्तत्तिथोतंतंपवित्रैःश्रावणेर्चयेत् // पूर्वाह्नदमनार्चाया कृत्वानित्यार्चनविभोः // 4 // गत्वादमनकारामंगृह्णीयात्तंक्रयार्पणात् // उपवि श्यशुचौदेशेमनुनानेनचार्पयेत् // 5 // रूपणनामद्वाविंशस्तरंगः // 22 // // पवित्रदमनार्चनंवक्तुमुपक्रमते // वक्ष्यइति // 1 // 2 // 3 // पूर्वाह्नपूर्व BA 212 // दिने ॥४॥क्रयार्पणान्मूल्यदानेन // 5 // For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RE // 6 // कींकामदेवायनमइतिकाममनुः // 7 // हीरत्यैनमइतिरतेः // 8 // 9 // 10 // 11 // 12 // 13 // 14 // अशोकायनमस्तुभ्यंकामस्त्रीशोकनाशन // शोकार्तिहरमेनित्यमानंदंजनयस्वमे // 6 // इतिसंप्रार्थ्य तत्राचेंद्रतिकामौस्वमंत्रतः॥ कामदेवायकामादिहृदतोष्टाक्षरोमनुः // 7 // कामस्यमायारत्यैह पंचार्णस्तुरतेनुः // इष्टदेवस्यपूजार्थनेष्यामित्वामितिब्रुवन् // 8 // उत्पाद्यपंचगव्येनाभिषिच्यक्षा लयेजलैः॥ गंधादिभिर्खदाभ्यर्च्यच्छादयेत्पीतवाससा // 9 // निधायवंशपात्रेतंगीतवादित्रनिस्वनैः // गृहमानीयतदेशेस्थापयेदेवतांस्मरन् // 10 // ततोदेवस्यपुरतःकृत्वाष्टदलमंबुजम् // सितकृष्णरक्त पीतवर्णैः संपूरयेत्तुतम् // 11 // भूपुरंतदहि कृत्वापीतवर्णेनपूरयेत् // सितरक्तपीतवर्णतदहिर्वर्तुलत्रय म् // 12 // रक्तवर्णेनतद्वाह्यविदध्याच्चतुरस्रकम् // एवंविरचितेरम्येमंडलेसार्वकामिके // 13 // | यदिवासर्वतोभद्रेमुंचेदमनभाजनम् // सायंकालीनपूजांतकुर्यात्तस्याधिवासनम् // 14 // ताराद्याभ्यां कामरतिमंत्राभ्यांतत्रतौयजेत् // दलेष्वष्टसुरत्याद्यानष्टौकामान्पृथग्धवैः // 15 // ताराद्याभ्यांप्रणवादिकाभ्यांकामरतिमंत्राभ्यामुक्ताभ्याम्॥तत्रमंडलमध्यस्थदमने // तौरतिकामौ // 15 // For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० मटीक // 213 // कामानाह // कामइति॥१६॥प्रणवेति॥ॐकींकामायनमइत्यादि॥ 17 // पूजाद्रव्याण्याह // कपूरेति // न्यं कुनाभिजाताकस्तूरी॥कर्पूरेणकामपूजा॥रोचनयाभस्मशरीरपूजा।।कस्तूर्याऽनंगस्येत्यादिक्रमः॥ 18 // 19 // कामोभस्मशरीरश्चततोनंगश्चमन्मथः // वसंतसखसंज्ञश्चस्मरइक्षुधनुर्धरः // 16 // पुष्पबाणइमेका त०२३ मास्तान्यजेन्नामभिनिजैः॥प्रणवानंगबीजाद्यैश्चतुर्थीहृदयान्वितैः // 17 // कर्पूररोचनान्यंकुनाभिजागुरु कुंकुमैः // धात्रीफलैश्चंदनेनपुष्पैःकामान्क्रमाद्यजेत् // 18 // दमनंगंधपुष्पाद्यैरभिपूज्याभिमंत्रये त् // अष्टोत्तरशतंकामगायत्र्यामंत्रवित्तमः॥ 19 // कामदेवायवर्णाविद्महेपदमुच्चरेत् // पुष्पवा णायचपदंधीमहीतिततोवदेत् // 20 // तन्नोऽनंग प्रचोवर्णादयादितिमनोभुवः // गायव्येपाबुधैरुक्ताज स्वाजनविमोहिनी // 21 // हृदापुष्पांजलिंदत्वामनुनानेनतंनमेत् // नमोस्तुपुष्पबाणायजगदानं दकारिणे // 22 // मन्मथायजगन्नेत्ररतिप्रीतिप्रदायिने॥ ततोनिमंत्रयेदेवमनेनमनुनासुधीः // 23 // आमंत्रितोसिदेवेशप्रातःकालमयाप्रभो // कर्तव्यं तुयथालाभंपूर्णपर्वतवाज्ञया // 24 // BAM213 // कामगायत्रीमाह // कामदेवायति // जनविमोहिनीत्युक्तत्वात्स्वतंत्राप्येषा // 20 // 21 // 22 // 23 // 24 // 1 कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि // तन्नोऽनंगःप्रचोदयात् / / חומרי דרדרסרוסוהסדרתו בסרררררררררררררררררררח For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir shahi6157611056thesibihari7055 वर्मणावगुंठनम् // अस्त्रेणरक्षणंचकुर्यात् // 25 // 26 // 27 // देशकालावुच्चार्यवर्षपूजासांगत्वायदमनार्चा देवेपुष्पांजलिंदत्वादंडवत्प्रणिपत्यच ॥दमनेवर्मणास्त्रेणविदध्यादवगुंठनम् // 25 // रक्षणंचक्रमादेत दधिवासनमीरितम् // ततोजागरणंकुर्य्यादेवंगायन्स्तुवञ्जपन् // 26 // सर्वाधिवासनंचापिकु निर्तनजागरौ // प्रातःस्नानादिनिर्वर्त्यकृत्वानित्यार्चनविभोः // 27 // संकल्पंदमनार्चायाविद ध्यादेवताज्ञया // गृहीत्वादमनस्याथहस्ताभ्यांमंजरीशुभाम् // 28 // हृदाभिमंत्रयेन्मंत्रीततःश्लोक मिमंपठेत् // सर्वरत्नमयींदिव्यांसर्वगंधमयीशुभाम् // 29 // गृहाणमंजरीदेवनमस्तेस्तुकृपानिधे // मूलमंत्रेणघंटादिघोषैर्देवस्यमस्तके // 30 // समर्प्यतांततःकुर्य्यान्मालांदमननिर्मिताम् // हृदाभिमंत्र्यचानेनश्लोकेनाप्यभिमंत्रयेत् // 31 // सर्वरत्नमयींनाथदामिनीवनमालिकाम् // गृहाणदेव पूजार्थसर्वगंधमयींविभो // 32 // मूलमंत्रजपन्देवमुकुटेतांसमर्पयेत् // दमनेनेष्टदेवस्यपरिवारान्सम येत् // 33 // ततोनैवेद्यतांबूलेदत्वानत्वाचदंडवत् // दमनाचीकृतांतस्मैश्लोकेनविनिवेदयेत् // 34 // करिष्यइतिसंकल्पः // 28 // 29 // 30 // 31 // 32 // 33 // 34 // RISANSSSSSSS 651666555665656566555 PRESENSISTO 1551165166 For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मै० म० // 214 // // 35 // 36 // 37 // पवित्रविधिमाह // पवित्रेति // 38 // दुर्वर्णरूप्यम् // 39 // 40 // 41 // 42 // अष्टो सटाक | देवदेवजगन्नाथवांछितार्थप्रदायक // कृत्स्नान्पूरयमत्वर्थकामान्कामेश्वरीप्रिय // 35 // जप्त्वामूलम Sali023 नुवहिंदुत्वादेवंविसृज्यच // गुरुंगत्वादमनकैर्यजेत्तंतोषयेद्धनैः // 36 // विप्रान्सभोज्यभुंजीतस्वदे वायानवदितम् // एवंकृतकृतार्थ स्याद्वषांचाफलभाङ्नरः // 37 // कार्थतादमनाचषापावत्रयजन ब्रुवे // पवित्रयजनाहात्तुपूर्वस्मिन्वासरेसुधीः // 38 // विदध्यानित्यपूजातेपवित्राणियथाविधि // हेमदुर्वर्णताम्रोत्थतंतुभिःपट्टसूत्रतः॥३९॥ यदाकाससूत्रैस्तुनिर्मितेविप्रभार्यया // अन्ययावास धवयासदाचारप्रसक्तया // 40 // कर्तितेस्तानिकुर्वीतनपुंश्चल्यादिनिर्मितैः // त्रिगुणंत्रिगुणीकृत्य निर्मायान्नवसूत्रिकाम् // 41 // तांप्रोक्ष्यपंचगव्येनक्षालयेदुष्णवारिणा // प्रणवेनाभिषिचेत्तांमूलेनाष्टो त्तरंशतम् // 42 // मंत्रयेन्मूलगायत्र्यातावदेवततःसुधीः // रचयेन्नवसूत्रीभिरष्टोत्तरशतेनच॥४३॥ तदर्दैनतदर्द्धनजानूरुनाभिमानतः॥ देवेशस्यपवित्राणिशुचौदेशप्रसन्नधीः // 44 // HAM214 // त्तरशतनवसूच्याज्येष्ठम् // चतुःपंचाशतामध्यमम // सप्तविंशत्याकनिष्ठंपवित्रंकुर्यात् // 43 // 44 // For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्येष्ठंषत्रिंशदथियुतम् // मध्यंचतुर्विशतिथि // कनिष्ठंद्वादशग्रंथि // 45 // 46 // 47 // अष्टिः षोडश // 48 // अद्रिनेत्रमिताभिःसप्तविंशतिसंख्याभिस्ताभिर्नवसूत्रीभिर्गुरुपवित्री // तावती ज्येष्ठमध्यकनिष्ठानितेषुग्रंथीन्दधीतच // षट्त्रिंशत्तत्वमार्तडमिताज्येष्ठादिषुक्रमात् // 45 // अष्टोत्तरसहस्रेणनवसूत्र्याविनिर्मितम् // अष्टोत्तरशतंथिवनमालापवित्रकम् // 46 // कृत्वातानं जयेद्रंथीन्रोचनाकुंकुमादिभिः॥ वैणवेपटलेतानिसंछाद्यसितवाससा // 47 // स्थापयित्वाविनि मायादन्यान्यावरणार्चनम् // सप्तविंशत्यष्टिरविनवसूत्रीकृतानितु // 48 // अद्रिनेत्रमिताभिस्तुकुऱ्या द्वरुपवित्रकम् // तावतीभिःकृशानोस्तत्पड्विंशत्यातदात्मनः॥ 49 // तत्रग्रंथीन्यथाशोभंदत्त्वासरं जयेदपि // तानिपात्रांतरेन्यस्यकुर्याद्धपवित्रकम्॥५०॥द्वादशग्रंथितिग्मांशुनवसूत्रीविनिर्मितम् // निर्मायैवंपवित्राणिकुर्यात्पूजार्थमंडलम् // 51 // पंकजंपोडशदलंपूरयेदष्टवर्णकैः // नीलहारिद्र शोणाह्वमांजिष्ठश्वेतसंज्ञकैः // 52 // भिस्ताभिसप्तविंशत्यैतच्छुचेरग्नेस्तत्पवित्रम् ॥षडिंशत्यास्वपवित्रंचकुर्यात् तत्रग्रंथयःस्वेच्छयादेयाः॥४९॥ ॥५०॥तिग्मांशुादश // 51 // 52 // For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ND मं०म० // 53 // 54 // 55 // पात्रे देवपवित्रपात्रमावरणपवित्रपात्रंच // 56 // 57 // अधिवासनमाह // तत्रेति // 5 // सटीक // 21 // सिंदूरधूम्रकृष्णाख्यैस्तदहिर्मडलवयम् // सूर्यासोमाग्निसंज्ञंतत्सितपीतारुणंक्रमात् // 53 // तद्वा त०२३ ह्याष्टदलंकुर्य्यादरुणयदिवासितम् / / एवंमंडलमालिख्यपूजयेत्कुसुमादिभिः // 54 // तस्योपरिनिव धीयाद्वितानसमलंकृतम् // मंडलेस्थापयेदेवप्रतिमांयदिवाघटम् // 55 // तत्रेष्टदेवंसंपूज्यपायसविनि वेदयेत् // देवतापवित्राणांपात्रेन्यस्याधिवासयेत् // 56 // उक्तसंख्यस्यसूत्रस्यालाभेतानियथारुचि॥ ज्येष्ठादीनिपवित्राणिविदध्यात्सर्वथासुधीः // 7 // तत्रद्वाविंशतीन्देवानाहूयप्रतिपूजयेत् // ब्रह्मवि ष्णुमहेशानास्त्रिसूत्र्यादेवताःस्मृताः॥५८॥ॐकारचंद्रमोवहिब्रह्मनागशिखिध्वजाः। सूर्यःसदाशि वोविश्वेनवसूत्र्यधिदेवताः॥५९॥ क्रियाचपोरुपीवीराचतुर्थीत्वपराजिता // विजयाजययायुक्तामुक्ति दाचसदाशिवा // 6 // Sam216 // प्रशिखिध्वजाकार्तिकेयः॥विश्वविश्वेदेवाः // 59 // 60 // For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Wa Sam 61 // आवाहनीस्थापनीसंनिधापनीसंनिरोधिनीसंमुखीकरणीसकलीकरण्यवगुंठन्यमृतीकरणीपरमी करण्योनवावाहन्यादिमुद्राः॥ ताउक्ताः // ताभिस्तदाहानादिकंपवित्रदेवतानांब्रह्मादीनांपदार्थानुसमये नकांडानुसमयेनचा वाहनादिकृत्वागंधादिनार्चयेत् // 62 // 63 // 64 // 65 // 66 // केशव मनोन्मनीतुनवमीदशमीसर्वतोमुखी // एता पवित्रग्रंथीनांदेवता परिकीर्तिताः॥ 61 // आवाहन्यादि मुद्राभिर्नवभिःसाधकोत्तमः॥ तदाह्वानादिकंतत्रकृत्वाचेच्चंदनादिभिः // 12 // एवंपवित्राण्यभ्यर्च्य दद्याद्गंधपवित्रकम्॥त पयित्वातारणहृदयनाभिमंत्रयेत्॥६३॥प्रणम्यप्रार्थयेद्देवंश्लोकयुग्ममिदंपठन्॥ आमंत्रितोसिदेवेशसाईदेव्यागणेश्वरैः॥६॥मंत्रशैलोकपालेश्चसहितःपरिवारकैः // आगच्छभगवन्नी शविधिसंपूर्तिकारक // 65 // प्रातस्त्वांपूजयिष्यामिसान्निध्यकुरुकेशव // ततोगंधपवित्रंतत्पादयोर्विन्य सेत्प्रभोः॥६६॥केशवेतिपदस्थानेकार्याउहोन्यदैवते // भगवत्याःपदेष्वत्रलिंगोहोमंत्रवित्तमैः॥१७॥ पदस्थानेऊहाशंकरभास्करः॥विघ्नराइति // भगवत्यांपवित्रारोपणेतुपदेषुलिंगोहोपिकार्यः॥आमंत्रिता सिदेवेशिआगच्छेथाभवानी|विधिसंपूर्तिकारिके // सांनिध्यंकुरुपार्वतीत्यादिलिंगपदानामूहः॥६७॥ Pad For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie 1d मं०म० सटीक त०२३ // 216 // पकाए015 .. // 68 // कनिष्ठपवित्रारोपणेदेवश्वेतंध्यायेत् // मध्यमारोपणेरक्तम् // श्रेष्ठारोपणेपीतामति // 69 // 70 // अधिवासंविधायेत्थंनिशिजागरणंचरेत्॥देवस्यस्तुतिनामानिवदन्गायश्चतद्गुणान् ॥६८॥प्रातर्नित्यार्च नंकृत्वामूलेनाष्टोत्तरंशतम्॥कनिष्ठाख्यपवित्रंतद्गृहीत्वाचाभिमंत्रयेत् ॥६९॥घंटावादित्रवेदानांकारय न्धोषमुत्तमम् // जयशब्दांश्चदेवस्यकंठेमूलेनचार्पयेत् // 70 // एवमेवार्पयेदन्येपवित्रेमध्यमोत्तमे // श्वेतरक्तंकमात्पीतंध्यायेदेवंतदर्पणे // 71 // वनमालापवित्रंतुतावन्मूलेनमंत्रितम् // अपयेदिष्टदे वस्यमुकुटेमूलमुच्चरन् // 72 // ततःसुवर्णकुसुमैःपुष्पैःशतमितेःसह // मूलाभिमंत्रितंदेवमूर्ध्निमूले नचापयेत् // 73 // हृदान्यपटलस्थानिपवित्राण्यभिमंत्र्यच // तत्तन्नाम्नानमोंतेनपरिवारान्सुरान्य जेत् // 74 // एवंपवित्रैःसंपूज्यधूपादीनिप्रकल्पयेत् // पावकेदेवमावाह्यनित्यहोमंविधायच // 7 // मूलेनाग्निपवित्रंतदर्पयेदेवतांस्मरन् / मूर्तीदेवंसमुद्रास्यवद्भिसंयोज्यचात्मनि // 76 // // 71 // तावदष्टोत्तरशतम् // 72 // 73 // 74 // 75 // 76 // UCOSSESSE // 216 // For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 77 // 78 // 79 // 80 // 81 // सर्वथागुरुवंशाभावकंचिच्छिष्टंसंपूज्यतस्यपवित्रंसमHदक्षिणांचदत्त्वाप पुष्पांजलिंविधायेशेकर्मातेविनिवेदयेत् // मंत्रहीनक्रियाहीनंभक्तिहीनंकृपानिधे // 77 // पूजनंपूर्णता मेतुपवित्रेणार्पितेनते // इतिसंप्रार्थ्यदेवेशयोजयेद्धृदयेनिजे // 78 // गुवैतिकंततोगत्वादत्वापुष्पां जलिंगुरौ // स्वांगेपडंगविन्यस्यगुरुदेहेपिविन्यसेत् // 79 // पादत्त्वातथैवाय॑वस्त्रालंकारचंदनम् // पुष्पैःसंपूज्यमूलेनपवित्रंतद्गलेऽर्पयेत् // 80 // स्वशक्त्यादक्षिणांदत्त्वादंडवत्प्रणमेद्गुरुम् // अन्येभ्यः शिष्टवृद्धेभ्यःपवित्राणिददीतच // 81 // सर्वथैवगुरोःपूजाकर्तव्यामंत्रिणासदा // अपूजितेगुरौसर्वापू जाभवतिनिष्फला // 82 // गुरोरभावेतत्पुत्रंतदभावेतदात्मजम् // दौहित्रंतदभावेन्यपूजयेद्गुरुगोत्र जम् // 83 // ततोधृत्वापवित्रस्वंभोजयित्वाद्विजोत्तमान् // जीततदनुज्ञातोबंधुभिस्तनयैःसह॥८॥ यथाकथंचित्कुर्वीतपवित्राणिसुरार्चने // विधेरुक्तस्यचाशक्त्यापूजासंपूर्तिहेतवे // 85 // वित्रपूजापूर्णास्त्वितितद्वचनंप्रार्थयेत् // 82 // 83 // 84 // 85 // For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मं०म० 217 // यस्यामिति // उक्ततिथौकरणासंभवेसर्वथाश्रावणेपवित्रपूजा / / चैत्रेदमनार्चाचनित्यत्वेनावश्यकार्येत्यर्थः॥ // 86 // 87 // 88 // अन्येष्वपीति // उपरागश्चंद्रसूर्यग्रहणम् // अर्धोदयलक्षणंतु॥अमार्कःश्रवणपातोमध्ये चेत्पौषमाघयोः॥ अर्धोदयाभिधोयोगःकोटिसूर्यग्रहाधिकइति // सौम्यायनंमकरसंक्रांतिः॥ आदिशब्दा यस्यांकस्यांतिथौकुर्य्यात्तिथाबुक्तकृतंनचेत् // सर्वथाश्रावणेचैवपवित्रंतुनिवेदयेत् // 86 // प्रत्यब्दं यःपवित्रेणपूजांकुर्वीतदैवते॥ ऐश्वर्यारोग्यसंयुक्तोनेकवर्षाणिजीवति // 87 // संपूर्णहायनपूजादेवता नांकृतातुया // सर्वासंपूर्णतामेतिपवित्रदमनार्पणात् // 88 // अन्येष्वप्युपरागार्योदयसौम्यायनादि षु // कुर्यादलभ्ययोगेषुविशेषाद्देवतार्चनम् // 89 // यथायथेष्टदेवेषुनृणांभक्तिःसमेधते // प्राप्यतेत दयत्नेनमनोभीष्टंतथातथा // 90 // शुचौतत्तदहेकुर्य्यादेवप्रस्वापनोत्सवम् // उर्जेतथैवदेवानामुत्था पनविधिसुधीः // 91 // BOM217 // द्युगादयोमन्वादय श्रवणद्वादशीप्रमुखाग्राह्याः // तवेष्टदेवमहोत्सवोमहापूजाचविधेया // 89 // तत्रहेतु माह // यथेति // 90 // शुचावाषाढेतत्तदहेचतुर्थ्यादीगणेशादीनाम् // उर्जेकार्तिके // 91 // For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie माघकृष्णचतुर्दश्यांशुक्लपक्षादिमासाभिप्रायेणशिवरात्रौशिवपूजाप्रकार शिवागमाद्बोध्यः // नवरात्रेदुर्गा be Mr 4 . DOI माघकृष्णचतुर्दश्यांविशेषाच्छिवपूजनम् // आश्विनाद्यनवाहेषुदुर्गापूज्यायथाविधि // 92 // गोपा लंपूजयेद्विद्वान्नभःकृष्णाष्टमीदिने // रामचैत्रसितेपशेनवम्यामर्चयेत्सुधीः // 93 // वैशाखायचतुर्द श्यांनरसिंहप्रपूजयेत् // यजेच्छुक्कचतुतुगणेशंभाद्रमाघयोः // 94 // महालक्ष्मीयजेद्विद्वान्भा कृष्णाष्टमीदिने // माघस्यशुक्सप्तम्यांविशेषादिननायकम् // 95 // याकाचित्सप्तमीशुक्लारवि वारयुतायदि // तस्यांदिनेशंसंपूज्यदद्यादयपुरोदितम् // 96 // तत्तत्कल्पोदितानन्यान्दे वताप्रीतिवर्द्धनान् // विशेषनियमा ज्ञात्वाभजेद्देवमनन्यधीः // 97 // मार्चनविधिरपितदागमादेव॥एवमग्रेपिग्रंथगौरवभयानोच्यते // 92 // 93 // 94 // 95 // 96 // 97 // For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 218 आषाढीति // चातुर्मास्येऽवश्यंतत्तद्देशलभ्यस्वेष्टकिंचिद्वस्तुवर्जयेत् // योविनानियममयोव्रतवाजाप्यमे सटीक ववा // चातुर्मास्यनयेन्मूढोजीवन्नपिमृतोहिसइत्यादिनिंदाश्रवणात् // 98 // 99 // 100 // // इति / (त०२४ आषाढीकार्तिकीमध्येकिंचिनियममाचरेत् // देवसंप्रीतयेविद्वाञ्जपपूजादितत्परः॥ 98 // एवंयोभ जतेविष्णुंरुद्रंदुर्गागणाधिपम् // भास्करंश्रद्धयानित्यंसकदाचिन्नसीदति // 99 // सधर्ममाचरन्नित्यं देवपूजापरायणः // जितेंद्रियोखिलान्भोगान्प्राप्येहानंततांब्रजेत् // 10 // इतिश्रीमंत्रमहोदधौद दमनपवित्रार्चननिरूपणंनामत्रयोविंशस्तरंगः // 23 // ॥साधकानांशीघ्रसिद्धयमंत्रशुद्धिमथोब्रुवे॥ साधकस्यतुनामादिवर्णमारभ्यशोधयेत् // 1 // मंत्राद्यक्षरपर्यंतंचक्रेसिद्धादिकेक्रमात् // जन्मों त्थंप्रसिद्धंवानामग्राह्यविशोधने // 2 // श्रीमंत्रमहोदधिनौकायांदमनपवित्रार्चनकथनंनामत्रयोविंशस्तरंगः // 23 // मंत्रशुद्धिवक्तुमाह साधकानामिति // 1 // 2 // नित L 91893RD -- For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकथहचक्रमाह(१)॥ उर्ध्वगाइति // षोडशकोष्ठान्विधायतत्रैकत्येकादशनवद्विचतुर्द्वादशदशषडष्टषोडश चतुर्दशपंचसप्तपंचदशत्रयोदशेषुकोष्ठेषुक्रमादकारादिवर्णान्पुनःपुनविलिख्य कोष्ठचतुष्कसिद्धसाध्यादि विचिंत्यपुनश्चतुष्केसिद्धादिगणनकार्यम् // तत्रप्रथमचतुष्केयस्यांविदिशिनामार्णाद्वितीयादिचतुष्केषुतद्वि ऊर्द्धगाःपंचरेखाःस्युःपंचतिर्यग्गताःपुनः॥ कोष्ठानितत्रजायतेषोडशैवात्रसंलिखत् // 3 // भूराम शिवनंदाक्षिवेदादिग्रसाष्टभिः // कलामनुशरैरदितिथिविश्वमितेषुच // 4 // कोष्ठेषुमातृकावर्णा स्तत्रनामादितःक्रमात् // सिद्धःसाध्यासुसिद्धोरिज्ञेयोमन्वक्षरावधिः॥६॥ यस्मिंश्चतुष्केनामार्णस्त तस्यात्सिद्धचतुष्टयम् // प्रादाक्षिण्याद्वितीयंस्यात्साध्याख्यंतत्तृतीयकम् // 6 // सुसिद्धाख्यंचतुर्थ तुसपत्नाख्यस्मृतंबुधैः // एककोष्ठेद्वयोर्वर्णसिद्धसिद्धःप्रकीर्तितः // 7 // तद्वितीयेमंत्रवर्णेसिद्धसाध्य उदाहृतः॥ तृतीयसिद्धसुसिद्ध सिद्धारिःस्याचतुर्थके // 8 // दिशमारभ्यसिद्धादिगणयेत // एवंगणनेसिद्धसिद्धः१सिद्धसाध्यः२ सिद्धसुसिद्धः३सिद्धारिः४॥३॥ // 4 // 5 // 6 // 7 // 8 // For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie वात०२४ मं०म० साध्यसिद्धः५ साध्यसाध्यः 6 साध्यसुसिद्धः७ साध्यारिः८ सुसिद्धसिद्धः 9 सुसिद्धसाध्यः 10 सुसिद्ध सटीक सुसिद्धः 11 सुसिद्धारिः 12 अरिसिद्धः 13 अरिसाध्यः 14 अरिसुसिद्धः 15 अर्यरीति 16 इतिषोडशभे २१दाभवति // 9 // 10 // 11 // 12 // तेषांफलमाह // सिद्धसिद्धोयथोक्तेनेत्यादि / यथोक्तेनकल्पोक्तेनजया नामादियुक्चतुःकोष्ठान्मन्वर्णश्चेद्वितीयक।चतुष्केतत्रपूर्वतयत्रनामाक्षरंस्थितम् // 9 // तत्रतत्कोष्ठमा रभ्यगणयेत्पूर्ववत्क्रमात्॥साध्यसिद्धःसाध्यसाध्यस्तत्सुसिद्धश्चतद्रिपुः॥३०॥एवंज्ञेयस्तृतीयेचेच्चतुष्के मंत्रकर्णकः॥ तदापूर्वोक्तयारीत्याक्रमाज्ज्ञेयाविचक्षणैः।।११॥सुसिद्धसिद्धस्तत्साध्यस्तत्सुसिद्धश्चतद्रि पुः॥चतुर्थेतुचतुष्केस्यादरिसिद्धारिसाध्यकः॥१२॥ तत्सुसिद्धोरिःपश्चादेवमंत्रविचारयेत्॥सिद्धसि दोयथोक्तनद्विगुणात्सिद्धसाध्यकः॥१३॥ सिद्धसुसिद्धोद्धजपात्सिद्धारिकृतिबांधवान् // साध्यसिद्धोद्वि गुणतःसाध्यसाध्योनिरर्थकः॥१४॥द्विगुणाजपात्सुसिद्धःसाध्यारिर्हतिगोत्रजान्॥सुसिद्धसिद्धोद्धजपात्त साध्योद्विगुणाजपात्॥१५॥तत्सुसिद्धग्रहादेवसुसिद्धारिःकुटुंबहा॥अरिसिद्धःसुतंहन्यादरिसाध्यस्तुक न्यकाम्॥१६॥तत्सुसिद्धस्तुपनीनस्तदार साधकापहःगानानोमंत्रस्यवर्णाश्चलिखित्वाप्रतिवर्णकम्॥१७॥Name दिनासिद्धोभवतीत्यर्थः॥ 13 // 14 // द्विगुणकल्पोक्तद्वैगुण्यात्तत्सुसिद्धःसाध्यसुसिद्धः // 15 // 16 // B219 // प्रकारांतरेणसिद्धादिशोधनमाह // नाम्न इति // 17 // For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 18 // व्युत्क्रमासिद्धसुसिद्धानांबहुत्वेसाध्यारीणामल्पत्वेशुभमित्यर्थः॥ 19 // इदंमतंप्राज्ञसंमतंबहुसंम सिद्धादिगणनाका-यावन्मंत्रसमापनम् // नाम्रोयदिसमाप्तिःस्यात्पुनर्नामलिखेत्सुधीः // 18 // एवं संशोधितेषुस्युर्भूरयःसाध्यवैरिणः / अल्पा-सिद्धसुसिद्धाश्चेदशुभंव्युत्क्रमाच्छुभम् // 19 // मतमि त्थंतुकेषांचित्तदपिप्राज्ञसंमतम् // अथवान्यत्प्रकारेणसिद्धादीनांविशोधनम् // 20 // द्वादशारेलि खेच्चक्रवर्णान्पूर्वोदितान्क्रमात् ॥ईशानांतमकाराद्यान्हातान्पंढविवर्जितान् // 21 // तत्रनामार्णमा रभ्यमंत्रावर्णावधिकमात् // गणयेत्सिद्धसाध्यादिफलंतेषांविनिर्दिशेत् // 22 // सिद्ध सिध्यतिकालेन साध्यस्तुजपहोमतः // सुसिद्धःप्राप्तिमात्रेणसाधकंभक्षयेदरिः॥ 23 // सिद्धोनवैकवाणेषुसाध्योरसदि शाक्षिषु // सुसिद्धस्त्रिमुनीशेषुरिपुर्वेदाष्टभानुषु // 24 // अन्योपीहप्रकारोस्तिसिद्धसाध्यादिशोधन॥ चतुःकोष्टेषुविलिखेदादिवर्णान्पुनःपुनः // 25 // नामार्णात्सिद्धसाध्यादिज्ञेयंमन्वक्षरावधि // चतुर्थों पिप्रकारोस्तिसिद्धादीनांविशोधने // 26 // तम् // 20 // अकडमचक्रमाह // द्वादशारइति // षंढाऋऋललइतितान् // 21 // 22 // जपहोमतः जपहो माधिक्येन // 23 // स्पष्टार्थमाह // सिद्धोनवैकादशबाणोष्विति // 24 // 25 // 26 // For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०२४ मै० म०प्रकारांतरमाह // नानइति // नाममंत्रयोर्वर्णानेकीकृत्यचतुर्भक्तएकशेषेसिद्धः॥ द्विशेषेसाध्यः॥ विशेषे| सुसिद्धः // शून्येऽरिः // फलंपूर्वोक्तम् // 27 // भशोधनंनक्षत्रशोधनम् // तत्रनक्षत्रेषुवर्णविभागमाह // नानोमंत्रस्यवोचतुर्भिविभजेत्सुधीः // एकादिशेषसिद्धादिक्रमाज्ज्ञेयंविचक्षणैः // 27 // सिद्धा दिशोधनंप्रोक्तमथवच्मिभशोधनम् // नेत्रभूगुणवेदक्ष्माधरानयनभूभुजाः॥२८॥ द्विचंद्रभुजबाह्वक्षि भूनेत्रत्रिधरागुणाः॥ एकैकंभूभुजेदक्षिरामचंद्रानुडुष्वथ // 29 // अश्विन्यादिषुविज्ञेयाआदिवर्णाक माद्रुधैः // क्षांताबिंदुविसर्गौतुपौष्णभागेव्यवस्थितौ // 30 // जन्मसंपद्विपत्क्षेमप्रत्यरि साधकोवधः॥ मैत्रपरममैत्रंचगणनीयस्वनामभात् // 31 // विपद्वधःप्रत्यरिश्चत्याज्याअन्यदुत्तमम् // अथर्णधनसं शुद्धिःकथ्यतेसिद्धिदायिनी // 32 // सप्ततिर्यग्लिखेदेखाद्वादशैवोर्द्धगा:पुनः // एवंकृतेतुजायतेको ठा षट्षष्टिसंमिताः // 33 // नेति // 28 // उदुषुनक्षत्रेषु // 29 // पौष्णभागेरेवत्यंशे // 30 // 31 // 32 // ऋणधनशोधनमाह // सप्तति // तिर्यक्सप्तरेखाऊर्ध्वद्वादशकृत्वा // 33 // માર For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie www.kobatirth.org आद्यपंक्तचतुर्दशाद्यंकाद्वितीयायाम् ।आईऊलहीनाःस्वराएकादश।तृतीयायांकादिठांताः // चतुर्थ्या ठादिफांताः॥ पंचम्यांबादिहांताः // षष्ठयांदशाद्यंकालख्याः // 34 // 35 // 36 // 37 // 38 // कोष्ठेया वतीति // यावतितमेकोष्ठेवर्णस्तमंकमुपर्यकेनगुणयेत् // यथा // प्रथमकोष्ठस्थअकारश्चतुर्दशगुणितश्चतुर्द आयपंक्तौलिखेदकांस्तेकथ्यतेयथाक्रमम् // मनुनक्षत्रनेत्रातिथिषड्वेदवेह्नयः // 34 // सायकावसवो नंदा कोष्टेषुक्रमतःस्थिताः॥द्वितीयपंक्तौसंलेख्या पंचदीघोज्झिताःस्वराः // 35 // तृतीयपंक्तौकाद्यर्णा ष्ठकारांता:शिवर्मिताः // ठादिफांताश्चतुर्थ्यातुपंचम्यांबादिहातिमाः // 36 // षष्ठयांपंक्तोक्रमाल्ले ख्याअंकाःकथ्यंतएवते // दिक्चंद्रमुनिवेदाष्टगुणसप्तेषुसागराः // 37 // रसाश्चरामसंख्याताएवम काउदीरिताः // मंत्रवर्णान्पृथकुर्यात्स्वरव्यंजनरूपतः // 38 // कोष्ठेयावतिवर्णःस्याद्गणयेत्ता वदंककम्॥कोष्ठोपरिस्थेनांकनसर्ववर्णेष्वयंविधिः॥३९॥ दीर्घाक्षराणामंकास्तुज्ञेयालघ्वक्षरस्थिताः॥ एकीकृत्याखिलानंकानष्टभिर्विभजेत्पुनः॥४०॥ शैव // द्वितीयकोष्ठस्थइकारःसप्तविंशत्यागुणितश्चतुःपंचाशत् // एवंतृतीयकोष्ठस्थःउकारःसद्वाभ्यांगुणितः षट् // एवमपि // साधकनामवर्णास्तुदिगादिभिरेवंगुणनीयाः // साध्यस्यांकानेकीकृत्याष्टभिर्भक्तशेषः साध्यराशिः // एवंसाधकांकान्गुणितानेकीकृत्याष्टभक्तेशेषःसाधकराशिः॥३९॥४०॥ For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DC मं०म० सटीक // 22 // U5Sex ॥४॥मंत्रराशिरधिकश्चेद्वाह्यः॥४२॥प्रकारांतरेणऋणधनशोधनमाह॥नामादीतिधिनिताऋणिताचपूर्ववत्॥ अधिकशेषऋणी // ऊनोधनीत्यर्थः // 43 // 44 // 45 // प्रकारांतरमाह // यद्वति॥तादृशैःस्वरव्यंजनरूपेणपृथक् शेषोंकोमंत्रराशिःस्यानामवर्णेष्वयंविधिः॥ अध:पंक्तिस्थितैरकैर्गुणनीयास्तुतेखिलाः॥४१॥ अध म!धिकोराशिरूनोराशिर्धनीस्मृतः॥ मंत्रोयदाधमर्णःस्यात्तदाग्राह्योधनीनतु // 42 // एवंधनर्ण संप्रोक्तमन्यथाप्रोच्यतेपुनः // नामाद्यक्षरमारभ्ययावन्मंत्रादिमाक्षरम् // 13 // गणयेन्मातृकाद्यर्ण क्रमेणगुणयेत्रिभिः // विभक्तेसप्तभिःशिष्टोनामराशिरुदीरितः॥४४॥ एवंमंत्रार्गमारभ्ययावन्नामादि माक्षरम् // गणयित्वात्रिभिहत्वाविभजेत्सप्तभिःसुधीः॥४६॥ मंत्रराशिःस्मृतःशिष्टःपूर्ववद्धनितर्णता // यद्वामंत्राक्षराणीहस्वरव्यंजनरूपतः // 46 // पृथकृत्यद्विगुणयेद्योजयेत्साधकाक्षरैः // तादृशैर एभिर्भतैमैत्रराशिरुदाहृतः॥४७॥ एवंनामार्णसंघोपिद्विगुणीकृत्ययोजितः // मंत्रवर्णैरष्टभक्तोना मराशिःस्मृतोबुधैः // 48 // ऋणिताधनिताचात्रपूर्ववत्परिकीर्तिता // उक्तान्यतममार्गेणशो धनीयमृणंधनैः // 49 // कृतैःसाधकनामाक्षरैयोजयेत् // 46 // 47 // 48 // ऋणिताधनिताचपूर्ववत् / अधिकऋणीत्यादि // 49 // ISSIOSSSSSSUSIL // 22 // For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रस्यऋणित्वेहेतुमाह // योमंत्रइति // पूर्वजन्मन्युपासनसमयेपापसद्भावात्पापक्षयंकुर्वन्नान्यत्फलंददौ // सततःपापक्षयेकृतेफलदानकाले // उपासितुरायुःक्षयो जातः समंत्राफलदानाजन्मांतरेऋणीजातः॥ सप्राप्ति योमंत्रःपूर्वजनुषिसेवितोनाददात्फलम् // पापात्पापक्षयेजातेफलावाप्तिरनेहसि // 50 // आयुःक्षया गतोनाशंसाधकोस्यभवांतरे // ऋणित्वात्प्राप्तिमात्रेणमंत्रोभीष्टंप्रयच्छति // 51 // समांकौयद्युभो राशीतदासंसेवनात्फलम् // धनीमंत्रस्तुसंप्राप्तःफलत्यधिकसेवया // 52 // मंत्राणांशोधनेभूयःप्रका रांतरमुच्यते // षट्कोणेविलिखेत्पूर्वकोणायकैकवर्णकान् // 53 // अकारादिहकारांतानपुंसकवि वर्जितान् // नामाद्यक्षरमारभ्यमंत्रार्णावधिशोधयेत् // 54 // प्रथमेसंपदांप्राप्तिद्धितीयेधनसंक्षयः॥ तृतीयेधनसंप्राप्तिश्चतुर्थेबंधुविग्रहः // 55 // पंचमेतुभवेदाधिःषष्ठेसर्वस्यसंक्षयः // एवंसंशोधितमंत्रं दद्याच्छिष्यायमांत्रिकः // 56 // येषांमनूनांसिद्धादिशोधनंनास्तितान्त्रुवे // एकवर्णस्त्रिवर्णोवा पंचागोरसवर्णकः // 17 // मात्रेणेष्टफलदोभवतीत्यर्थः // अनेहसिकाले // 50 // 51 // 52 // 53 // नपुंसकाललवर्णाः // 54 // // 55 // 56 // रसवर्णःषडणः // 57 // PRICRRORIGIaSCRIDAI.......EDIOR.DEO..... 19SMS For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir THAN सटीक त०२४ RSilene मं० म०रदनाक्षरोद्वात्रिंशदर्णः॥कूटोव्यंजनसमूहः॥ध्रुवाप्रणवः॥५८॥पराहीं॥५९॥पक्षिनायकोगरुडमंत्रः॥६०॥६१ // 222 // सप्तार्णोनववर्णश्चरुद्रार्णोरदनाक्षरः // अष्टाहिंसमंत्रश्वकूटोवेदोदितोधुवः // 18 // स्वप्नलब्धःस्त्रि याप्राप्तोमालामंत्रोनृकेसरी // प्रासादोरविमंत्रश्चवाराहोमातृकापरा // 59 // त्रिपुराकाममंत्रश्चाज्ञा सिद्धःपक्षिनायकः॥ बौद्धमंत्राजैनमंत्रानैवसिद्धादिशोधनम् // 60 // एतद्भिनेषुमंत्रेषुशुद्धिरावश्यकी मता // विद्यांमंत्रस्तवंसूक्तमरिभूतंत्यजेध्रुवम् // 61 // अरिमंत्रोगृहीतश्चेदज्ञानवशतस्तदा।तस्य त्यागःप्रकर्तव्यस्तत्प्रकारोधुनोच्यते॥२॥सुदिनेस्थापयेत्कुंभंसर्वतोभद्रमंडल।विलोमंसंजपन्मंत्रपूर येत्तंसुपाथसा // 63 // तत्रदेवंसमावाह्ययजेदावरणान्वितम् // तदनेस्थंडिलंकृत्वाप्रतिष्ठाप्यानलंत तः॥६४ // जुहुयान्मूलमंत्रेणविलोमेनशतंघृतैः॥दिक्पतिभ्योवलिंदद्यात्पायसान्नैप॒तान्वितैः॥६६।। पुनःसंपूज्यदेवेशंप्रार्थयेन्मनुनामुनाआनुकूल्यमनालोच्यमयातरलबुद्धिना // 66 // यदुपात्तंपूजितं चप्रभोमंत्रस्वरूपकम् // तेनममनस क्षोभमशेषंविनिवर्तय // 67 // Bal // 62 // अरिमंत्रत्यागप्रकारमाह // सुदिनइति // सुपाथसाशोभनोदकेन // 63 // 64 // 65 // 66 // 67 // ||222 // For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Ban68 // 69 // तंकुंभंजलैरापूर्यतत्रकुंभेमंत्रयुक्ततालपत्रंक्षिपेत् / / क्रमोत्क्रमगतयावर्णमालयारामायनमः आइत्यादिलांतंप्रजप्यततआरभ्यपुनरकारपर्यतंगणयेत् // एवंजप्तोरिमंत्रोपिसिद्धिदः // 70 // 71 // 72 / / पापंप्रतिहतंचास्तुभूयाच्छ्रेयःसनातनम् // तनोतुममकल्याणंपावनीभक्तिरस्तुते // 68 // एवंसंप्रार्थ्य देवेशंकर्पूरागरुचंदनैः॥ विलोमंविलिखेन्मंत्रंताडपत्रेतदर्चयेत् // 69 // प्रबध्यनिजमध्येतत्स्नायात्कुं भस्थितै लैः॥ पुनःसंपूर्यतंतोयैस्तस्यास्येमंत्रपत्रकम् // 70 // संपूज्यकुंभेसरितितडागेवाविनिक्षि पेत् // विप्रान्संभोज्यमुच्येतपीडयासौमनूत्थया // 71 // अनेकधाशोधनेचेच्छुद्धोनप्राप्यतेमनुः / / मायांकामंश्रियंचादौदद्यात्तदोषमुक्तये // 72 // यद्वादुष्टोमनुर्जप्तःसिध्येत्प्रणवसंपुटः // यदाक्रमोत्क मगयाप्रजप्तोवर्णमालया // 73 // मंत्रेयस्यभवेद्भक्तिविशेषःसमनूत्तमःवैरिकोष्ठमनुप्राप्तःसिद्धिदस्त स्यजायते॥७॥बीजमंत्रास्तथामंत्रामालामंत्रास्तथापरे।।त्रिधामंत्रगणाःप्रोक्ताबुधैरागमवेदिभिः॥७॥ बीजमंत्रादशाीतास्ततोमंत्रानखावधि // विंशत्यधिकवर्णायेमालामंत्रास्तुतेस्मृताः // 76 // // 73 // 74 // विविधान्मंत्रानाह॥ बीजेति // 75 // नखावधिविशत्यावधि // 76 // For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 223 // // 77 // 78 // 79 // वर्गगास्तृतीयाः गजडदवाः // कौँउऊ // ओललएतेभूवर्णाः // 80 // ऋऋऔसटीक घझढधभवसएतेजलवर्णाः // नेत्रेइति // इईखछठथफऐरक्षएतेआग्नेयाः॥ 81 // वर्गाद्याइति // अआएक -21 बाल्येवयसिसिद्धयतिबीजमंत्राउपासितुः॥ मंत्रा सिद्धायौवनेतुमालामंत्राश्चवार्द्धके॥७७॥ उक्तान्यस्या | मवस्थायामभीष्टप्राप्तयेसुधीः॥ बीजमंत्रादिमंत्राणांद्विगुणंजपमाचरेत् ॥७८॥स्वकुलान्यकुलाख्योथ मंत्राणांभेदउच्यते // प्रकृतिःपंचभूतात्माततोजातातुमातृका // 79 // तस्माद्वर्णास्तुपंचाशत्पंचभू | तमयायतः // तृतीयावर्गगाःकर्णावोलला पार्थिवामताः // 8 // नासयोवर्गतुर्याश्चवसौवर्णाःस्मृता अपाम् // नेत्रद्वितीयावर्गाणामैरक्षापावकात्मकाः // 8 // वर्गाद्यानंतझिंटीशाअयपामारुतामताः // वर्गातिमाकपोलौशोहोबिंदुश्चेतिनाभसाः॥ 82 // विसर्गस्तुप्रकृत्यात्मासर्वभूतमयोयतःप्राणेरितो विनिर्यातिकंठादिस्थानमस्पृशन् // 83 // Am223 // चटतपयषएतेवायवीयाः॥ वर्गातिमाइति // ञणनमललशहअंएतेनाभसाः॥८२॥ विसर्गस्यपंचभूतम यत्वमाह॥विसर्गइति॥अन्येवर्णाकंठादिस्थानानिस्पृशंतोनियतिविसर्गस्तुनतथेतिसर्वभूतमयत्वम्।।८३॥ For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org एषांस्वकुलान्यकुलत्वमाह // पार्थिवेति॥८४॥८५॥८६॥८७॥ 88 // 89 // फलमाह // स्वकुलेऽभीप्सिता पार्थिवादिकवर्णानांस्वकीयाःस्वकुलाभिधाः // पार्थिवस्यचवर्णस्यमित्रंवारुणमक्षरम् // 84 // तैजसं शत्रुभूतस्यादुदासीनंतुमारुतम् // जलोद्भवस्यवर्णस्यपार्थिवंमित्रमीरितम् // 85 // सपत्नवह्निसं भूतमुदासीनंतुवायवम् // तैजसस्याथवर्णस्यवायवंमित्रमुच्यते // 86 // विद्वेषीवारुणोवर्णउदासीन स्तुपार्थिवः॥ पवनोत्थितवर्णस्यमित्रवह्निसमुद्भवम् // 87 // शत्रुःपार्थिववर्णःस्यादुदासीनस्तु पाथजः // चतुणीपार्थिवादीनामाकाशार्णःसखासदा // 88 // मनोःसाधकनानोपियौवर्णावादिमौ तयोः // स्वकुलादिकभेदस्तुशोध्योमंत्रप्रदित्सता // 89 // स्वकुलेभीप्सितासिद्धिःसिद्धिर्मि।पिकी तिता॥ अमित्रमरणंरोगउदासीनेनकिञ्चन // 9 // उदासीनममित्रंचमंत्रंदूरेणवर्जयेत् // स्वकुलं मित्रभूतंचगृह्णीयादिष्टकामुकः॥९॥नक्षत्रैक्येपिसंप्रोक्तंस्वकुलंनाममंत्रयोः॥ पुंस्त्रीनपुंसकाःप्रोक्तामन वस्त्रिविधाबुधैः॥९२॥वषडताःफडताश्चपुमांसोमनवःस्मृताः // वौषट्स्वाहांतगानार्थीहूंनमोंतानपुंस काः॥९३॥वश्योच्चाटनरोधेषुपुमांसःसिद्धिदायकाःक्षुद्रकर्मरुजांनाशेस्त्रीमंत्रा शीघ्रसिद्धिदाः॥ 94 // सिद्धिरिति // 90 // 91 // पुनर्मत्रत्रैविध्यमाह // पुंस्त्रीति॥९२॥९३ // तेषांविनियोगमाह॥वश्येति // 9 // hoatbahekhbhhota For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 22 // त०२४ 95 // 96 // छिन्नत्वादीति // छिन्नोरुद्धःशक्तिहीनइत्यादयः पंचाशदोषास्तल्लक्षणानिचशारदातिलके द्वितीयपटलेउक्तानि // ग्रंथगौरवभयान्नलिख्यते॥सप्तकोटिमिता मंत्रासंतितेसर्वेपितदोषाक्रांताएव // 9 // जननाख्यंसंस्कारमाह // भूर्जपत्रेरोचनाकुंकुमचंदनैरात्माभिमुखंत्रिकोणकृत्वांत्रिभ्यापिकोणेभ्योमध्ये अभिचारेस्मृताःक्लीवाएवंतेमनवविधा नक्षत्रशोधनेजन्मनक्षत्रमितरत्रतु // 95 // शोधनेमंत्रिभिांप्र सिद्धजन्मनामता // दत्तःसंशोधितोमंत्रोभवेच्छिष्येष्टसिद्धये // 96 // छिन्नत्वादिकदोषायेपंचाशन्म वसंस्थिताः॥ तैदोपैःसकलाव्याप्तामनवःसप्तकोटयः // 97 // अतस्तदोपशांत्यर्थसंस्कारदशकंचरे त् // भूर्जपत्रेलिखेत्सम्यक्रिकोणंरोचनादिभिः // 98 // वारुणंकोणमारभ्यसप्तधाविभजेत्समम् // एवमीशाग्निकोणाभ्यांजायंतेतत्रयोनयः॥ 99 // नववेदमितास्तत्रविलिखेन्मातृकांक्रमात् // अका रादिहकारांतामाशादिवरुणावधि // 10 // देवीतत्रसमावाह्यपूजयेच्चंदनादिभिः॥ ततःसमुद्धरे न्मंत्रजननंतदुदीरितम् / / 101 // कृताभिःषषड़ेखाभिः समाभिर्मध्येनववेदमिता एकोनपंचाशत्रिकोणाःकोष्ठाजायते // तत्रेशानादि पश्चिमकोणोतमातृकांलिखित्वावाह्यसंपूज्यततएकैकमंत्रार्णमुद्धरेत् // ततःसंमाय॑पत्रांतरेलिखेदित्यर्थः॥ एतजननम् // 98 // 99 // 100 // 101 // Dd DO // 224 // For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपनमाह // जपइति // हंसमंत्रेणपुटितस्यमंत्रस्यसहस्रजपोदीपनम् // हंसरामायनमःसोह मिति // बोधनमाह // नभइति // नमोहः // वहीरः // इंदुबिंदुस्तैर्युक्तो(ऊः // तेनहूं // एतत्सं पुटितस्य मनोः पंचसहस्रजपोबोधनम् // ९रामायनमामिति // फदरामायनमःफडितिसहस्रजपस्तु जपोहंसपुटस्यास्यसहस्रंदीपनंस्मृतम् // नभोवह्नींदुयुक्तासिंपुटस्यजपोमनोः // 102 // सहस्र पंचकमितोबोधनंतत्स्मृतंबुधैः // सहस्रप्रजपेदत्रपुटितंताडनहितत् // 103 // वाकहंसतारै जप्तेनसहस्रंपाथसा मनुम् // अभिषिचेतवागाद्यैरभिषेकोयमीरितः // 104 // हरिवन्ह्यन्वितस्तारी वषडंतोध्रुवादिकः॥ सहस्रंतत्पुटंजप्याद्विमलीकरणेमनुः // 105 // ताडनम् // 102 // 103 // अभिषेकमाह // वागिति // ऐहसा*इतिमंत्रणसहस्राभिमंत्रितर्जलेस्तेनैवमंत्रे णताडपत्रीपरिलिखितमंभिषेचनमभिषेकः // 104 // विमलीकरणमाह // हरिरिति // हरिस्तः॥ वन्ह्य अन्वितारयुतः॥ तारीप्रणवयुतः॥त्रों॥ॐत्रोंवषट्रामायनमःवषत्रोंॐइतिसहस्रजपोविमलीकरणम्॥१०॥ For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org मं०म० जीवनमाह // स्वधेति // स्वधावषट्रामायनमःवषट्स्वधेति सहस्रजपोजीवनम् // तर्पणमाह // क्षीरोति // सटीक दुग्धघृतोदकैस्तेनैवमंत्रेणतस्मिन्नेवशतंतर्पयेदितितर्पणम् // 106 // गोपनमाह // जपदिति // ह्रींपुटस्यसहस्रन त०२४ जपोगोपनम् // आप्यायनमाह॥ बालेति॥बालायास्तायंसौगागगनंहः॥ तदाद्येनतेनहसौइतिबीजेनसं // 226 स्वधावषट्पुटंजप्यात्सहस्रंजीवनमनुम् ॥क्षीराज्ययुतपाथोभिस्तर्पणेतर्पयेन्मनुम्॥१०६॥जपेन्मायापु टंमंत्रसहस्रंगोपनहितत्॥वालातार्तीयबीजेनगगनायेनसंपुटम् // 107 // सहस्रप्रजपेन्मेत्रमेतदाप्यायनं मतम् // संस्कारदशकंप्रोक्तंमनूनांदोषनाशकम् // 108 // सिद्धिप्रदाकलियुगेयेमंत्रास्तान्वदाम्यतः॥ व्यर्णएकाक्षरोनुष्टुत्रिविधोनरकेसरी // 109 // पुटस्यसहस्रंजपआप्यायनम् / एकवर्णेनसंपुटत्वमादावंतेचोच्चारणमेव // एकस्यविलोमत्वाशक्तः // 107 // |108 ॥सिद्धमंत्रानाह // व्यर्णइति // वर्णादिस्त्रिविधोनरसिंहः॥ 109 // // 22 For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकार्णोद्विविधोहयग्रीवः॥ चिंतामाणिक्ष्मयोंइति // 110 // 111 // 112 // विप्रक्षत्रियविड्भ्योदेयान्मं / बानाह // अघोरइति // उमामहेश्वरः॥ॐहींहोंनमःशिवायेत्यादि // 113 // 114 // मंत्रराजोनरसिंहः // एकाक्षरोर्जुनोनुष्टुद्धिविधस्तुरगाननः॥ चिंतामणि क्षेत्रपालोभैरवोयक्षनायकः // 110 // गोपालो गजवक्रश्चचेटकायक्षिणीतथा // मातंगीसुंदरीश्यामाताराकर्णपिशाचिनी // 11 // शवयें कजटावामाकालीनीलसरस्वती // त्रिपुराकालरात्रिश्चकलाविष्टप्रदाइमे // 112 // अघोराद क्षिणामूर्तिरुमामाहेश्वरोमनुः // हयग्रीवोवराहश्चलक्ष्मीनारायणस्तथा // 113 // प्रणवाद्याश्चतुर्व वह्नमत्रास्तथारवेः॥प्रणवाद्योगणपतिर्हरिद्रागणनायकः।।११४॥सौराष्ट्राक्षरमंत्रश्चतथारामषडक्षरः॥ मंत्रराजोधुवादिश्चप्रणवोवैदिकोमनुः // 115 // वर्णत्रयायदातव्याएतेशूद्रायनोवुधैः // सुदर्श नंपाशुपतमानेयास्त्रंनृकेसरी // 116 // वर्णद्वयायदातव्यानान्यवर्णेकदाचन // छिन्नमस्ताचमातं गीत्रिपुराकालिकाशिवः // 117 // लघुश्यामाकालरात्रिर्गोपालोजानकीपतिः // उग्रताराभैरवश्चदेया वर्णचतुष्टये // 118 // ॥११॥विप्रक्षत्रदेयानाह॥सुदर्शनइति // 116 // वर्णचतुष्टयदेयान्मंत्रानाह॥छिन्नमस्तेति // 117 // 118 // For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० Bal // 119 // बीजेषुविशेषमाह // मायामिति // मायाकामश्रीवाग्बीजानिमुखजन्मनेविप्राय // 120 // काम सटीक श्रीवाचोबाइजेभ्यःक्षत्रियेभ्यः // श्रीवाचौऊरुजेभ्योविड्भ्यः ॥वाचंशूद्राय // अन्येभ्यःप्रतिलोमानुलोम // 226 // जेभ्योवर्मादयः॥ 121 // 122 // हयमारैःकरवीरैः // 123 // जातिभिर्जातिपुष्पहोमेनगिरोवाक्सिद्धिः॥ | त०२४ मृगीदृशांविशेषेणमंत्राएतेसुसिद्धिदाः // ब्राह्मणाःक्षत्रियावैश्या शूद्रानार्योंधिकारिणः // 119 // श्रद्धावंतोदेवगुरुद्विजपूजासुसर्वथा // मायांकामंश्रियंवाचंप्रदद्यान्मुखजन्मने // 120 // मायामृतेबाहु जेभ्यउरुजेभ्यःश्रियंगिरम्।।वाणीबीजंतुशूद्रेभ्योऽन्येभ्योवर्मवषण्नमः॥१२१॥सर्वसाधारणमथहोमद्रव्य मथोच्यते // फलैर्हतैःसुखावाप्तिःपालाशैरिष्टसिद्धय॥१२२॥हयमारैःस्त्रियोवश्यागुडूच्यारोगसंक्षयः / दूर्वयाबुद्धिवृद्धिःस्याद्गुडेनजनवश्यता // 123 // बिल्वपत्रैघृतैःपझैःपाटलैश्चंपकै श्रियः // सिद्धा थैमल्लिकाभिश्चकीर्तयेजातिभिर्गिरः॥ 124 // व्रीहिभिश्चयवैःप्लक्षोदुंबराश्वत्थजैधसा // तिलैस्त्रिम धुरैरिष्टाःसंपदःस्युर्नृणांहुतैः // 125 // किंशुकैःकासमर्दैश्चकृतमालैश्चपाटलैः // विप्रादयःक्रमाद्ध श्याःसौभाग्यंगंधवस्तुभिः // 126 // 226 // // 124 // लक्षादिजानिएधसासमिद्भिः // 125 // किंशुकादिभिर्हतैःक्रमाद्विप्रादयोवश्याः॥ कृतमालो राजवृक्षः॥ गंधवस्तुभिःकर्पूरादिभिः॥ 126 // For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie कलापैर्मयूरपिच्छेस्तेषामरीणांभयोत्पत्तिः॥ 127 // 128 // जन्मांतरोपार्जितपापबाहुल्यादेकपुरश्चरणकृते यदीष्टसिद्धिर्नभवेत्तर्हिपुनःपुरश्चरणकुर्यात् // 129 // संक्षेपपुरश्चरणप्रकारमाह // यद्वति // समुद्रगामिन्यां गंगादिकायाम् // विप्रान्संभोज्यहोमसमानसंख्यानेवेत्यर्थः // तद्दशांशतइत्युभयचापिसंबंधात् // कोद्रवैधियोरीणामुन्मत्तत्वंविभीतकैः // कलापैःसाध्वसोत्पत्तिसपस्तेषांतुमूकता // 127 // समिद्भिःशाल्मलै शोरिपूणामचिराद्भवेत् // किंभूरिणाददातीष्टदेवतासमुपासिता // 128 // पुर श्चरणएकस्मिन्कृतेजन्मांतराघतः॥ मंत्रोयदिनसिद्धःस्यात्तदातत्पुनराचरेत् // 129 // यद्वासमु द्रगामिन्यांनद्यामिदुरविग्रहे // स्पर्शान्मोक्षांतमाजप्यजुहुयात्तद्दशशितः // 130 // विप्रान्सभोज्यना नान्नमत्राणांसिद्धिमाप्नुयात् // शश्वजपपरस्यापिसिध्यंतिमनवोचिरात्॥१३१॥ // इतिमंत्रमहोदधौ मंत्रशोधननामचतुर्विशस्तरंगः // 24 // // कर्माणिषडयोवक्ष्यसिद्धिदानिप्रयोगतः॥शांतिवश्यंस्तं भनंचद्वेषमुच्चाटमारणे // 1 // तदशांशतोजपदशांशेनचजुहुयात् ॥विप्रान्संभोज्यचसिद्धिमवाप्नुयादितिसम्बन्धः॥१३०॥१३॥इतिश्रीमं त्रमहोदधिनौकायांमहीधरनिर्मितायांमंत्रशोधनंनामचतुर्विशस्तरंगः // 24 // // षट्कर्माणिवक्तुमुपक्र मते॥ कर्माणीति // तान्याह // शांतिरिति // 1 // For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म०म० लक्षणमाह // शांती रोगादिनाशनमिति // देवतायेकोनविंशतिपदार्थान् प्रतिकर्मभिन्नान् यथा सटीक स्वंज्ञात्वाषट्कर्माणिकुर्यादित्याह // देवतादेवतावइत्यादिना // 2 // 3 // 4 // 5 // उद्देशक्रमेणादौदेव २२७॥ता आह // रतिरिति // शांत्यादिकर्मारंभेक्रमाद्रत्यादिपूजा // देवतावर्णानाह // सितेति // रतिः०२८ उक्तानीमानिकर्माणिशांतीरोगादिनाशनम्॥वश्यवचनकारित्वंस्तम्भोवृत्तिनिरोधनम्॥२॥द्वेषोऽप्रीतिः प्रीतिमतोरुबाट स्थानतच्युतिः // मारणंप्राणहरणमितिपट्कर्मलक्षणम् // 3 // देवतादेवतावर्णाऋतु दिग्दिवसासनम् // विन्यासामंडलंमुद्राक्षरंभूतोदयःसमित् // 4 // मालाग्निर्लेखनद्रव्यंकुंडनुक्चुवले खनीषट्कर्माणिप्रयुंजीतज्ञात्वैतानियथायथम्॥५॥रतिर्वाणीरमाज्येष्ठादुर्गाकालीचदेवता। सितारुण हरिद्राभमिश्रश्यामलधूसराः॥६॥ प्रपूजयेतकर्मादौस्ववर्णैःकुसुमैःक्रमात् // ऋतुष्टकंवसंताद्यमहो राभवेत्क्रमात् // 7 // एकैकस्यऋतोर्मानंघटिकादशकंमतम् // हेमन्तंचवसंताख्यशिशिरंग्रीष्मतो यदौ॥ 8 // शरदकर्मणांषट्केयोजयेत्क्रमतःसुधीः॥ शिवसोमेंद्रनिक्रतिपवनाग्निदिशक्रमात् // 9 // सिता॥ वाणीअरुणेत्यादि // 6 // स्ववर्णैःसितादिवर्णैः॥ऋतूनाह // ऋतुषट्कमिति // शांत्यादौवसंतादी SON227 // न्युंजीत॥प्रत्यहंसूर्योदयानाडीदशकंवसंतः॥ तदग्रिमंनाडीदशकंशिशिरइत्यादि ॥७॥८॥दिशआह॥ शिवेति // शिवादिगैशानी // 9 // SHEELESANEELAMSSSSSETTE For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिवसानाह // शुक्लपक्षेइति // 10 // 11 // 12 // 13 // तदंतगाशुक्ल प्रतिपत् // 14 // आसना न्याह // पद्ममिति // पद्मस्वस्तिकेउक्त // विकटलक्षणंयथा // जानुजंघांतरालेतुभुजयुग्मंप्रकल्पयेत् // a विकटासनमेतत्स्यादिति // कुक्कटासनंयथा // उपविश्योत्कटासने // कृत्वोत्कटासनपूर्वसम तत्तत्कर्मणिकुतिजपंतत्तदिशामुखः // शुक्लपक्षेद्वितीयाचसप्तमीपंचमीतथा // 10 // तृतीयाबुधजी वाभ्यांयुताशांतिविधीमता // चतुर्थीनवमीषष्ठीत्रयोदशीतिथिस्तथा // 11 // जीवसोमयुताशस्ताव शीकरणकर्मणि // एकादशीचदशमीनवमीचाष्टमीपुनः // 12 // शनैश्चरसितोपेताप्रोक्ताविद्वेपकर्म णि // कृष्णेचतुर्दश्यष्टम्यौभानुसूनुयुतेयदि // 13 // उच्चाटनाख्यंकर्मात्रकर्तव्यंफलसिद्धये // भूता एम्यौकृष्णगतेअमावास्यातदंतगा // 14 // भानुमंदकुजोपेताःस्तंभमारणयोःशुभाः॥ पद्मस्वस्ति | कविकटेकुक्कुटंवज्रभद्रके // 15 // पादद्वयंततः // अंतर्जानुकरद्वंद्वंकुकुटासनमीरितमिति // उर्वो पादौक्रमान्यस्येजान्वोःप्रत्यङ्मुखां गुली // करौनिदध्यादाख्यातंवज्रासनमनुत्तमामिति // सीवन्या पार्श्वयोय॑स्येद्गुल्फयुग्मंसुनिश्चलम् // वृषणाधःपादपाणीपाणिभ्यांपरिबंधयेत् // भद्रासनंसमुद्दिष्टंयोगिभिःपूजितंपरमितिच // 15 // For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक त०२५ म०म० शारीरमासनमुक्त्वोपवेशार्थमासनमाह // गोखनेति॥फेरुःशृगालः॥गवादीनांकृत्तौचर्मण्युपविश्यशांत्या दिविधेयम्॥१६॥१७॥विन्यासानाह॥ग्रंथनमिति॥१८॥ग्रंथनलक्षणमाह॥ एकइति॥१९॥विदर्भलक्षणमाह॥ // 228 // आदाविति // ग्रंथनविदर्भयोर्मत्रनामवर्णलेखनेऽन्यतरसमाप्तोपुनर्लेखनम् // 20 // संपुटलक्षणमाह // मंत्र शांत्यादिषुप्रकुर्वीतक्रमादासनमुत्तमम् // गोखड्गजफेरूणांमेषीमहिषयोस्तथा // 16 // कृत्तौनिवेश्य कुर्वीतजपंशांत्यादिकर्मणि // आसनान्येवसंकीयविन्यासःप्रोच्यतेधुना // १७॥ग्रंथनंचविदर्भाख्यः संपुटोरोधनंतथा // योगःपल्लवएतेषविन्यासाःकर्मसुस्मृताः॥१८॥ प्रत्येकमेषांपण्णांतुलक्षणंप्रणि गद्यते // एकोमंत्रस्यवर्णःस्यात्ततोनामाक्षरंपुनः॥१९॥ मंत्रा!नामवर्णश्चेत्येवंग्रंथनमीरितम् // आ दौमंत्राक्षरद्वंद्वमेकनामाक्षरंततः॥२०॥ एवंपुनःपुनःप्रोक्तोविदर्भोमंत्रवित्तमैः॥ मंत्रमादौसमुच्चार्य ततोनामाखिलंपठेत् // 21 // अंतेव्युत्क्रमतोमंत्रमेषसंपुटईरितः॥आदिमध्यावसानेषुनानोमंत्रस्तुरो धनम् // 22 // वामांतेतुमनुयोगोमंत्रांतेनामपल्लवः॥ अर्द्धचंद्रनिभंपार्श्वद्वयेपद्मद्वयांकितम् // 23 // मिति // 21 // रोधनमाह // आदीति ॥२२॥योगमाह // वामति // पल्लवमाह // मंत्रांतइति // मंडल माह // अर्द्धचंद्रेति // 23 // 228 // For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Bdm24 // तदृतंबिंदुषट्कांकितवायुमंडलम् // 25 // मुद्राआह // सरोरुहमिति // सरोरुहंपद्ममुद्रा॥ सायथा // करौद्वौसंमुखौकृत्वासंहतावुन्नतोपुनः // अंगुलीप्रसृतामध्ये गुष्ठौपद्मास्यमुद्रिकेति // पाशमुद्रायथा // तर्ज नीमध्यमेवामेऊर्ध्वमुख्यौविधायच // दक्षिणे द्वेअधोमुख्यौसंमुख्यौचपरस्परम् ॥पाशमुद्राभवेदेषामिथः संपीडनेतयोरिति // गदामुद्रायथा // अन्योन्याभिमुखौकृत्वाहस्तोतुग्रथितावुभौ // अंगुष्ठीमध्यमेतद्वत्संयु जलस्यमंडलंप्रोक्तंप्रशस्तंशांतिकर्मणि // त्रिकोणस्वस्तिकोपेतंवश्येवढेस्तुमंडलम् // 24 // चतुरस्त्रं वज्रयुक्तस्तंभेभूमेस्तुमंडलम् // वृतंदिवस्तद्विद्वेषविंदुषद्कांकितंतुतम् // 25 ॥वायुमंडलमुच्चाटेमा | रणेवह्निमंडलम् // सरोरुहपाशगदेमुशलंकुलिशंत्वसिः॥२६॥ क्तेसुप्रसारिते // गदामुद्रेयमुदितादर्शिताविघ्नहारिणीति // मुशलमुद्रोक्ता // कुलिशवजमुद्रा // साय था॥ कनिष्ठांगुष्ठयुङ्मुद्रात्रिकोणात्वशनेर्मतेति // अशनेर्वजस्यकनिष्ठांगुष्ठयोगादन्यासांप्रसारणात्रिकोणे Salत्यर्थः॥ असिम्खड्गमुद्रा // सायथा // ऊर्ध्वस्यवामहस्तस्यतर्जन्याचंगुलित्रयम् // प्रसार्ययोजयेदन्योमिथों गुष्ठकनिष्ठिके // खड्गमुद्रेयमुदितासर्वशत्रुनिकृतनीति // 26 // For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० सटीक // 229 // त०२५ होममुद्राआह // मृगीति // 27 // तासांलक्षणमाह // मध्यमेति // 28 // 29 // वर्णानाह // चंद्रेति // शांती चंद्रवर्णायंत्रेबीजत्वेनलेख्याः॥ वशीकरणादोजलादिवर्णाः॥३०॥ चंद्रवर्णानाह / स्वराइति // षोडशस्व राःसठएतेऽष्टादशचंद्रवर्णाः // सन्तितथापिवश्यादौपंचभूतवर्णास्तुप्राक्तरंगेस्वकुलान्यकुलभेदेउक्ताः // पण्मुद्राःकर्मषट्केस्युरथहोमेनिगद्यते // मृगीहंसीशूकरीतिहोमेमुद्रात्रयंमतम् // 27 // मध्यमानामि कांगुष्ठयोगमुद्रामृगीमता // हंसीकनिष्ठाहीनानांसर्वासांयोजनेमता // 28 // शूकरीकरसंकोचेमुद्राल क्षणमीरितम् // शांतौवश्येमृगोहंसीस्तंभनादिषुशूकरी // 29 // चंद्रतोयधराकाशपवनानलवर्णकाः॥ पट्सुकर्मसुयंत्रस्यबीजान्युक्तानिमंत्रिभिः॥ 30 // स्वराःसठौचंद्रवर्णाभूतवर्णाउदीरिताः॥ चंद्राणही नास्तेग्राह्यावशीकृत्यादिकर्मणि // 31 // केचित्सवलहान्यरमाहुश्चंद्रादिवर्णकान् // शांत्यादिकम सुज्ञेयाजातयःषडमू:क्रमात् // 32 // तत्रयंद्यपिचंद्रवर्णाअपिसंतितथापिवश्यादौतोयादिवर्णलेखनेचंद्रवर्णरहितानामेवजलादिवर्णानांलेखनम्॥ H|31 // केषांचिन्मतेसवलहयराक्रमाचंद्रांबुभूनभोनिलानलवर्णाः॥३२॥ B // 229 // For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जातिरूपान्वर्णानाह // नमइति // भूतोदयमाह // नासेति // नासाविवरयोरधस्तात्पाणगतौजलोदयः॥ नासामध्यदण्डाश्रितगमनेधरोदयःसस्तम्भनेज्ञेयः // नासाविवरमध्येप्राणगतोव्योमोदयः॥उपरिप्राणगतो वन्युदयः॥तिर्यग्गतौप्राणवायूदयः॥ 33 // 34 // 35 // 36 // समिधआह॥दूर्वायाइति॥दाडिमेति // नमःस्वाहावषड्वौषटुंफट्पणमंत्रवित्तमैः॥ नासापुटद्वयाधस्ताद्यदाप्राणगतिर्भवेत् // 33 // तोयोद यस्तथाज्ञेय शांतिकर्मणिसिद्धिदः।नासादंडाश्रितगतोप्राणेस्तंभेधरोदयः // 34 // पुटमध्यगतौत स्मिन्द्वेपेव्योमोदयःशुभः // पुटोपरिष्टाद्गमनेप्राणेस्यात्पावकोदयः // 35 // तदाकर्मद्वयेसिद्धिर्मार णेचवशीकृतौ // प्राणेतिर्यग्गतोज्ञेयउच्चाटेमारुतोदयः // 36 // दूर्वायाःसमिधःशांतीगोघृतेनसम न्विताः // दाडिमप्रसवोहोमेवश्येजाघृतसंयुताः॥३७ // मेपीघृताक्ताःसमिधःस्तंभेराजतरूद्भवाः॥ धत्तूरसमिधोद्वेपेअतसीतेलसंयुताः // 38 // चूतजाःकटुतैलाक्ताउच्चाटनविधौमताः॥ कटुतैलयुताः शस्तामारणेखदिरोद्भवाः // 39 // वश्यार्थहोमेअजाघृताक्तादाडिमसमिधः॥३७॥ स्तंभनेमेषीघृताक्ताराजवृक्षसमिधः // 38 // उच्चाटेसर्ष, पतैलाक्ताआम्रसमिधः॥३९॥ NDUSSODaya h thi65555MohothonetherShow HAMASHNEEMAMAZI DORamme CIALOSE For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक // 230 // त.२६ मालामाह // शंखजति // स्तंभनेनिंबफलजा // अरिष्टः फेनिलस्तत्फलजावामालाविधेया // उच्चा टने वाहरदोत्थाअश्वदंतजा // 40 // मालायांगणनाप्रकारमाह / मध्यमायामिति // ज्येष्ठेनांगुष्ठेनावर्तयेत् / भ्रामयेत् // 41 // 42 // 43 // मालामणिसंख्यामाह // अष्टोत्तरशतमिति // तदर्धचतुःपंचाशत् // तदर्धकं शंखजापद्मबीजोत्थानिंबारिष्टफलोद्भवाः // प्रेतदन्तभवावाहरदोत्थाखरदंतजाः // 10 // जपमालाःक्रमाज्ञयाःशांतिमुख्येषुकर्मसु // मध्यमायांस्थितांमालांज्येष्ठेनावर्तयेत्सुधीः // 11 // शान्तौवश्यतथापुष्टौभोगमोक्षार्थकेजपे // अनामांगुष्ठयोगेनस्तंभनादौजपेत्सुधीः // 42 // तर्जन्यं गुष्ठयोगेनद्वेषोच्चाटनयोःपुनः॥ कनिष्टांगुष्टसंयोगान्मारणेप्रजपत्सुधीः // 43 // अष्टोत्तरशतंसंख्या तदर्द्धचतदर्द्धकम् // मणीनांशुभकार्येस्यात्तिथिसंख्याभिचारके // 44 // शान्तिर्वश्यंलौकिकानौ स्तंभनंवटजेनले // द्वेष कलितरूत्पन्नशेषेपितृवनस्थिते // 45 // सप्तविंशतिः॥ एषात्रिविधामालाशुभकार्या // अभिचारस्तंभनादौपंचदशमाणियुक्तामाला // 44 // अग्नि माह // शांतिरिति // वटजेवटकाष्ठान्मथनोत्पादिते // कलितरूद्भवेबिभीतकजाते // शेषेउच्चाटनमारण कर्मणिश्मशानवहोहोमः॥४५॥ For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वहिप्रसंगात्काष्ठान्यायाह // शुभइति // शुभेशांतिपुष्टयादौकर्मणिबिल्वादिकाष्ठेरग्निंप्रज्वालयेत् // अशु भेस्तंभनादौविषवृक्षादिकाष्ठैः // विषवृक्षाकुचिलाइतिप्रसिद्धः // अक्षोबिभीतकः // शेलुःश्लेष्मातकः // // 46 // अग्निप्रसंगादेवकर्मविशेषेवह्रिजिह्वापूजामाह // वद्वेरिति // कनकाभिधाहिरण्या // 47 // 48 // शुभेकर्मणिविल्वार्कपलाशशीरवृक्षनैः // अशुभेविषवृक्षार्निम्बधत्तूरशेलुजैः // 46 // काष्ठैःप्रदीप येदनिहोमकर्मणिमंत्रवित् // वह्नर्जिबांसुप्रभाख्यांशांतिकर्मणिपूजयेत् // 47 // वश्यकायॆहिरक्ता ख्यांस्तंभनेकनकाभिधाम् // विद्वेषगगनांजिह्वामुच्चाटेप्यतिरक्तिकम् // 48 // कृष्णांतुमारणेचाचेंबहु रूपांतुसर्वतः॥ भोज्यसंख्याविशेषोपिज्ञेयःशांत्यादिकर्मसु // 19 // शांतौवश्येभोजयेतहोमाद्विप्रा न्दशांशतः॥ उत्तमंतद्भवेत्कर्मतत्वांशेनतुमध्यमम् // 50 // होमाच्छतांशतोविप्रभोजनंत्वधमंतुत त् // शांतेर्द्विगुणितंविप्रभोजनंस्तम्भनेमतम् // 11 // होमप्रसंगाद्विप्रभोजनसंख्यामाह // भोज्येइति // शांतिवश्ययोहोमादशांशेन द्विजानांभोजनमुत्तमम् // होमात्पंचविंशांशेनतन्मध्यमम् // शतांशेनाधमम् // 49 // 50 // 51 // For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं०म० विप्रस्वरूपमाह // अतिशुद्धति // 52 // उक्तबाह्मणभोजनेअभिचारोत्थमनःपापनश्यति // तस्मादुत्तमाद्वि जाभोज्याः॥ 53 // 54 // लेखनद्रव्यमाह // चंदनमिति ॥रात्रिहरिद्रासास्तंभनेलेखनद्रव्यम् // अष्टांव 231 // त्रिगुणद्वेषणोच्चाटेमारणेहोमसमितम् // अतिशुद्धकुलोत्पन्नाःसांगवेदविदोऽमलाः॥५२॥ सदाचारर ताविप्राभोज्याभोज्यैर्मनोहरैः॥ पूज्यास्तेदेवताबुयानमस्कार्याःपुनःपुनः॥५३॥ संतोष्यामधुरै क्यिौर्हिरण्यादिप्रदानतः॥ अचिराल्लभतेभीष्टंगृहीतायांतदाशिषि // 54 // एनोभिचारकर्मोत्थंन श्यतिद्विजवाक्यतः॥ चंदनंरोचनारात्रिगृहधूमश्चिताभवः // 55 // अंगारोष्ठविषाणीतिशांत्यादौयं त्रलेखने // पूर्वोक्तंलेखनद्रव्यंगृह्णीयात्तदपिध्रुवम् // 56 // पिप्पलीमरिचंशुंठीश्येनविष्टाचचित्रकः॥ गृहधूमोन्मत्तरसोलवणंचविषाष्टकम् // 17 // शांतावश्येलिखेद्भूर्जेस्तंभनेद्वीपिचर्मणि // खरचर्मणिवि द्वेषउच्चाटेध्वजवाससि // 28 // तषाणिमारणे // पूर्वोक्तंयंत्रतरंगोक्तंलेखनद्रव्यंतदपितत्तत्कामनयाग्राह्यम् // 55 // 56 // अष्टविषाण्याह / पिप्पलीति // 57 // लेखनद्रव्यप्रसंगाल्लेखनाधारमाह // शांताविति // 58 // For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 59 // कुंडान्याह // वृत्तामिति // शांतोवृत्तकुंडंपश्चिमायाम् // पद्माकारंवश्येउत्तरे // स्तंभनेचतुरांपूर्वे // द्वेषेत्रिकोणनैर्ऋत्ये // उच्चाटेषट्कोणवायव्याम् // मारणेऽर्द्धचंद्राकारंदक्षिणइत्यर्थः॥ 6 // सुक्खुवावाह // नरास्थिनिलिखेद्यंत्रमारणेमंत्रवित्तमः // येत्वाधाराःस्मृतायंत्रतरंगेतेपिसंमताः // 59 // वृत्तंप_चतु कोणंत्रिपदकोणंदलेंदुवत् // तोयेशसोमशकाणांयातुवाय्वोर्यमस्यच // 60 // आशासुकमतःकुंडं शांतिमुख्येषुकर्मसु // सौवर्णीयज्ञवृक्षोत्थौचुक्नुवौशांतिवश्ययोः // 61 // स्तंभनादिषुकार्येषु स्मृतौलोहमयौहितौ // हेमजारूप्यजाजातीसंभवालेखनीशमे / 62 // वश्येदूर्वाकुरोत्पन्नास्तंभनेग स्त्यवृक्षजा // राजवृक्षभवावास्याद्विवेपेतुकरंजजा // 63 // शुभेकर्मणिरम्याहेलेखनीरचयेत्सुधीः॥ विभीतकोत्थितोच्चाटेमारणेतुपुमस्थिजा // 64 // रिक्तातिथौकुजदिनविष्टौतामशुभेपुनः // भक्ष्यंच तर्पणंद्रव्यंतत्पात्रमथकीयते // 65 // सौवर्णाविति // 61 // लेखनीमाह // शमशांतौ॥ 62 // 63 // 64 // देवतायेकोनविंशतिवस्तूनिशा त्यादौनिरूप्यपुनरधिकंवक्तुंप्रतिजानीते // भक्ष्यमिति // 65 // For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 232 // परमानकंपायसम्॥स्थानाद्मेशनेउच्चाटने // 66 // 67 // 68 // 69 // 70 // 7 // 72 // एवंकाम्यंकर्मनिरूप्यतत्प्रस सटीक शांतौवश्येहविष्यानस्तंभनेपरमानकम् // माषामुद्गाश्वविद्वेषेगोधूमाझंशनेस्थलात् // 66 // मसूरा त. नंतथाश्यामाअजादुग्धोत्थपायसम् // मारणेप्रोदितंभक्ष्यमंत्रिणांकर्मकुर्वताम् // 67 // शांतौवश्येह रिद्राक्तंजलंतर्पणईरितम् // मरिचायंकवोष्णंतत्स्तंभनेमारणेतथा // 68 // मेषरक्तान्वितंतोयविद्वे षोच्चाटयोर्मतम् // स्वर्णपात्रतपणेस्याच्छांतौवश्येचकर्मणि // 69 // स्तम्भनेमृत्तिकापात्रविद्वेष खदिरोद्भवम् // लोहनिर्मितमुच्चाटेकुक्कुटांडतुमारणे // 70 // मृद्वासनेसमासीन शान्तौवश्येप्रतर्प येत् // जानुभ्यामुत्थितःस्तंभेद्वेषादावेकपास्थितः // 71 // षट्कर्मणांविधिःप्रोक्तएवंमंत्रज्ञतुष्टये॥ सम्यकृत्वान्यासजातमात्मरक्षांविधायच // 72 // काम्यंकर्मप्रकर्तव्यमन्यथाभिभवोभवेत् // शुभंवाप्यशुभंवापिकाम्यंकर्मकरोतियः॥ 73 // तस्यारित्वंव्रजेन्मंत्रोनतस्मात्तत्परोभवेत् // विष यासक्तचित्तानांसंतोषायप्रकाशितम् // 74 // पूर्वाचार्योंदितंकाम्यंकर्मनेतद्धितावहम् // काम्यक मप्रसक्तानांतावन्मात्रभवेत्फलम् // 79 // HaM232 // तिवारयति // शुभंवेति // 73 // एवंचेत्किमित्युक्तंतदित्यतआह // विषयति // पूर्वाचार्योक्तत्वादुक्तम् // तद्वस्तुगत्याहितनभवति // तत्रहेतुमाह॥काम्यति / / 74 // 75 // aro orl an For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 7 // निष्कामभजनेफलमाह ॥वेदेइति॥कर्मोपासनबोधनकर्मकांडंज्योतिष्टोमेनस्वर्गकामोयजेतेत्यादि। उपासनाकांडंसूर्योब्रह्मेत्युपासीतयोहवैज्येष्ठंचवेदेत्यादि।इदंकांडद्वयंसाधनंज्ञानस्य ॥तृतीयंज्ञानकांडअय मात्माब्रह्मेत्यादि।तस्मात्सायंफलभूतं // तस्माज्ज्ञानप्राप्तयेप्रयतितव्यमित्यर्थः // 77 // तत्रोपायमाह // तस्मादिति // निष्कारणवेदोक्ताचरणेदेवतोपासनेचांतःकरणशुद्धिस्ततोज्ञानप्राप्तिरित्यर्थः // 78 // ज्ञान निष्कामभजतांदेवमखिलाभीष्टसिद्धयः // प्रतिमंत्रसमुदितायेप्रयोगाःसुखाप्तये // तदासक्तिविहायैव निष्कामोदेवतांभजेत् // 76 // वेदेकांडवयंप्रोक्तंकर्मोपासनबोधनम् // साधनकांडयुग्मोक्तंतृतीये साध्यमीरितम् // 77 // तस्माद्वेदोदितंकुर्यादुपासीतचदेवताः // शुद्धांतःकरणस्तेनलभतेज्ञानमु त्तमम् // 78 // कार्यकारणसंघातंप्रविष्टश्चेतनात्मकनाजीवब्रह्मैवसंपूर्णमितिज्ञात्वाविमुच्यते॥७९॥ मनुष्यदेहसंप्राप्यउपासीतचदेवताः / / यत्रोमुच्येतसंप्तारान्महापापयुतोहिसः // 8 // स्वरूपमाह // कार्येति // कार्याणिकारणानिभूतानिचतत्संघातशरीरंतञ्चालनश्चेतनोजीवोवस्तुतोब्री वेति // साक्षात्कारोज्ञानंतस्मान्मुक्तिः॥ तत्त्वमसिश्वेतकेतोअहंब्रह्मास्मीत्यादिश्रुतेः // 79 // ज्ञानायाप्रय तमाननिंदति // मनुष्योति // 8 // For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० // 233 // + फलितमाह // आत्मज्ञानति ॥कामक्रोधलोभाअरयस्तेषांक्षयंकृत्वाकृतैःकर्मभिर्वेदिकैर्दैवोपासनादिभिश्च सटीक तःकरणशुद्धिद्वाराज्ञानाप्तिरित्यर्थः / / 81 // देवोपास्तिकुर्वताभविष्यद्विचार्यप्रवर्तितव्यमित्याह / चिकीर्षु| आत्मज्ञानाप्तयेतस्माद्यतितव्यंनरोत्तमैः॥ कर्मभिर्देवसेवाभिःकामाधरिगणक्षयात् // 81 // चिकी पुर्देवतोपास्तिमादौभाविविचारयेत् // नानदानादिकंकृत्वास्मृत्वाहरिपदाम्बुजम्।।८२॥शयीतकुशश य्यायांप्रार्थयेदृषभध्वजम् // भगवन्देवदेवेशशूलभृदृषवाहन // 83 // इष्टानिष्टेसमाचक्ष्वममसुप्त स्यशाश्वत // नमोजायत्रिनेत्रायपिंगलायमहात्मने // 84 // वामायविश्वरूपायस्वनाधिपतयेनमः // स्वप्नेकथयमेतथ्यंसर्वकार्येष्वशेषतः॥८६॥ क्रियासिद्धिविधास्यामित्वत्प्रसादान्महेश्वर // एभिमत्रैः शिवप्रार्थ्यनिद्रांकुनिराकुलः // 86 // स्वप्नंदृष्टंनिशिप्रातप्रवेविनिवेदयेत् // तमंतरेणमंत्रज्ञः स्वयंस्वप्नविचारयेत् // 87 // रिति // विचारप्रकारमाह // नानसंध्यादिकंकृत्वेत्यादिना // 82 // शिवप्रार्थनामंत्रमाह // भगवन्निति ||233 // // 83 // 84 // 85 // 86 // तमंतरेणगुरुविनाशुभाशुभंस्वप्नंस्वयमेवविचारयेत् // 87 // 205SOS SOL For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir E REASESENSEEMENSESecasusexmusnesssam amamainaaniiNSERIENC तत्रशुभस्वप्नानाह / लिंगमिति // 88 // शिखीति // मयूरयुक्तहंसयुक्तेचक्रयुक्तवारथेस्थितिमोहनंसुरतम्॥ निमगांनदीमात्रम् // 89 // स्यंदनोरथः // निम्नगाद्यप्सरोंतानदर्शनमेवशुभम् // 90 // हादीनामारो हणम् // 91 // मद्यमांसयोर्भक्षणम् // विष्ठयाशरीरेलेपः॥रुधिरेणस्नानम् // दधिभक्तभक्षः। राज्यप्राप्तिः॥ लिंगचन्द्रार्कयोर्विभारतीजाह्नवीं गुरुम् // रक्ताधितरणंयुद्धजयोनलसमर्चनम् / / 88 // शिखिहंसरथां गाब्येस्थेस्थानंचमोहनम् // आरोहणंसारसत्यधरालाभश्चनिम्नगाम् // 89 // प्रासादःस्यंदनःपमंत्रक च्याद्रुमःफली // नागोदीपोहयःपुष्पवृषभोश्वश्चपर्वतः // 90 // सुरावटंग्रहास्तारानारीसूर्योदयोप्स H // हHशैलविमानानामारोहोगगनेगमः॥ 91 // मद्यमांसादनविष्ठालेपोरुधिरसेवनम् // दध्योद नादनंराज्याभिषेकोगोवृषध्वजाः // 92 // सिंहसिंहासनशंखोवादिरोचनादधि // चंदनंदर्पणश्चैषां स्वप्नेसंदर्शनंशुभम् // 93 // तैलाभ्यक्त कृष्णवर्णोनग्नोनागर्तवायसौ // शुष्ककंटकिवृक्षश्चचांडालो दीर्घकंधरः॥९॥प्रासादस्तलहीनश्चनैतेस्वप्नेशुभावहानशांतिकुर्वीतदुःस्वप्नेजपेन्मंत्रमनन्यधीः॥९॥ अब्दत्रिकंजपंतस्यकुर्वतोविघ्नसंभवः॥ विघ्नसंघमनाहत्यतदाजपपरोभवेत् // 96 // एतानिशुभानि // गवादीनांदर्शनमेवशुभम् // 92 // 93 // अशुभस्वप्नानाह // तैलेति // तैलाभ्यक्तोना पुरुषः॥ ननादीनांदर्शनमशुभम् // 94 // 95 // 96 // Pos For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक मं० म. // 23 // त०२५ iiiiiibiliotichronाकाका मंत्रसिद्धर्लक्षणमाह // मनःप्रसादइति // 97 // 98 // 99 // 100 // आत्मसाक्षात्कारपर्यतमवमत्रापास्तिार त्याह / लब्धज्ञानइति // अहंब्रह्मेतिसाक्षात्कारोज्ञानमित्यर्थः॥ 101 // ग्रंथसमाप्तामंगलमाचति // तंवंदे इति // ब्रह्मैवनानादेवतारूपेणजनै सेव्यतइत्यर्थः॥ योयोयांयांतनुंभक्त श्रद्धयाचितुमिच्छति // तस्यतस्या सिद्धौविश्वस्तचित्तःसंस्तुरीयेन्देससिद्धिभाक // मनःप्रसादःसंतोषःश्रवणंदुंदुभिध्वनेः // 97 // गीत स्यतालशब्दस्यगंधर्वाणांसमीक्षणम् // स्वतेजसःमूर्यसाम्येक्षणनिद्राक्षुधाजपः॥९८॥ रम्यतारोग्य गांभीर्य्यमभावक्रोधलोभयोः॥ एवमादीनिचिह्नानियदापश्यतिमंत्रवित् // 99 // सिद्धिमंत्रस्यना नीयाद्देवतायाःप्रसन्नताम् // ततोनपेधिकंयनंप्रकुर्याज्ञानलब्धये // 100 // लब्धज्ञानःकृतार्थःस्या संसारात्प्रतिमुच्यते // ज्ञात्वात्मानंपरब्रह्मवेदतैिःप्रतिपादितम् // 101 // तंवंदेपरमात्मा सर्वव्यापि नमीश्वरम् // योनानादेवतारूपोनृणामिष्टंप्रयच्छति // 102 // चलांश्रद्धांतामेवविदधाम्यहम् // सतयाश्रद्धयायुक्तस्तस्याराधनमीहते // लभतेचततःकामान्मयैवविहिता न्हितानितिभगवद्वचनात् // 102 // // 23 // For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथकरणेहेतुमाह // विलोक्येति // ब्राह्मणप्रार्थनमेवहेतुः // 103 // बाणनेत्रमिताः पंचविंशतिः॥ 104 // अनुक्रमणीमाह // भूतशुद्धिरिति // लिपेर्मातृकायान्यसनंन्यासः॥ आद्यप्रथमतरंगेएतदीरितम् // 10 // द्वितीयोौद्वितीयतरंगे गणेशमंत्राः // काल्यादितृतीये // 106 // बंधनहारीतिबंदीविशेषणम् // विलोक्यनानातंत्राणिप्रार्थितोद्विजसत्तमैः॥ स्वमतरनुसारेणकार्योमंत्रमहोदधिः॥ 103 // बाणने त्रमितास्तस्मिस्तरंगाःसंतिनिर्मिताः // तत्रानुक्रमणींवक्ष्येमत्रिणांसुखवृद्धये // 104 // भूतशुद्धिस्त थाप्राणप्रतिष्टान्यसनंलिपेः॥ पुरश्चर्याहोमविधिस्तर्पणाद्याधईरितम् // 105 // द्वितीयोमौगणेश स्यमंत्राःसम्यक्सीरिताः॥ कालीकालीभिधानानांसुमुखीतितृतीयके // 106 // तारातुरीयेसंप्रो ताताराभेदास्तुपञ्चमे // षष्ठेतरङ्गेगदिताछिन्नमस्ताशवर्यापि ॥१०७॥स्वयंवरामधुमतीप्रमदाचप्रमो दया।बंदीवधनहारीतिसप्तमेवटयक्षणी // 108 // तस्याभेदाश्चवाराहीज्येष्ठाकर्णपिशाचिनी।।स्वप्नेश्वरी चमातंगीवाणेशीमदनेश्वरी ॥१०९।।अष्टमेविस्तरात्प्रोक्ताबालाबालाभिदाआपिानवमेत्वन्नपूर्णोक्तातने दामोहनाद्रिजा।११०।ज्येष्ठालक्ष्मीरनमंत्राउक्ताप्रत्यगिरारिहा।दशमेवगलावावाराहीद्वितयंतथा१११ छिन्नमस्तादिबंधतंषष्ठे // 107 // वाराहीवार्तालीवटयक्षिण्यादिकामेश्वर्यतंसप्तमे // 108 // 109 // मोहना द्विजामोहनगौरी // 110 // अरिहाशत्रुनाशकः // षोडशाणेः॥ बगलावाबगलामुखी // 111 // For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 23 // तदाबातःश्रावद्यायाआवरणपूजा // 112 // मुनिर्वेदव्यासः // 113 // 114 // चरणायुधाकुक्कुटमंत्रः // श्रीविद्यैकादशेप्रोक्ताद्वादशेतुतदावृतिः॥त्रयोदशेतुहनुमानविस्तरात्प्रतिपादितः॥११२॥चतुर्दशेनार त०२८ सिंहोगोपालोगरुडोपिच // अथपंचदशेसूर्योभौमोजीवासितोमुनिः॥११३॥ षोडशोर्मीमहामृत्युंज योरुद्रोधनेश्वरः // जाह्नवीमणिकर्णीचप्रोक्तासप्तदशेर्जुनः // 114 // अष्टादशेकालरात्रिश्चंडिकाया नवाक्षरः // एकोनविंशेचरणायुधःशास्तृसमन्वितः // 11 // पार्थिवार्चनकीनाशचित्रगुप्तासुरीवि धिः // विशेतरंगेयंत्राणिस्वर्णाकर्षणभैरवः // 116 // स्नानादिरंतर्यागांतएकविंशेर्चनाविधिः॥ द्वाविं शेऽयसमारभ्यपूजनंतद्भिदाअपि॥ 117 // त्रयोविंशेतुदमनै पवित्रैश्चसमर्चनम् // चतुर्विशेचभेदेन मंत्राणांपरिशोधनम् // 118 // तरंगेचरमेप्रोक्तंकर्मषट्कमनुक्रमात् // एवंमंत्रोदधावस्मिन्पञ्चविंश तिरूर्मयः // 119 // विशोधनीयाविद्वद्भिक्षितव्यंसाहसंमम // चापलंनिजबालानांक्षमतेजनकोयया ॥१२०॥अहिच्छत्रद्विजच्छत्रवत्सगोत्रसमुद्भवः।।आसीद्रत्नाकरोनामविद्वानख्यातोधरातले // 121 // Balike It // 115 // कीनाशोयमः // 116 // तद्भेदाःपूजाभेदाः / / 117 // 118 // चरमपंचविंशेतरंगे // शांत्यादिकर्म षट्रकमनुक्रमणीचेति // 119 // 120 // स्ववंशमाह // अहिच्छत्रेति // 121 // For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Salm 122 // 123 // 124 // 125 // ग्रंथातआशिषआह // अविच्छिन्नोति ॥१२६।।१२७॥श्लोकत्रयेणदेवंप्रार्थयते // नरसिंहइति॥नृसिंहोमेमुदेहर्षायास्तु // देवानामावरेणसमूहेननतः॥१२८॥नृसिंहइति / नृसिंहोमांसदाऽ तत्तनूजोरामभक्त फनूभट्टाभिधोऽभवत्।महीधरस्तदुत्पत्र संसारासारतांविदन् १२२निजदेशंपरित्यज्यग तोवाराणशीपुरीम्।सेवमानोनरहरितंत्रग्रंथमिमव्यधात्।१२३।कल्याणाभिधपुत्रेणतथान्यदिजसत्तमैः। अनेकानागमग्रंथाविलोकितृमुनीश्वरैः।१२४।एकग्रंथस्थितंसर्वमंत्राणांसारमिच्छुभिः।।संप्रार्थितःस्वम त्यासौनामामंत्रमहोदधिः।।१२५॥अविच्छिन्नान्वयाःसंतुनिजधर्मपरायणाः।।मंगलानिप्रपश्यतुसवेंद्रोहप राङ्मुखाः।।१२६॥हरिःकरोतुकल्याणंसर्वेषांजगदीश्वरः॥प्रवर्तयंत्विमंग्रंथयावद्वेदोरवि शशी॥ 127 // नरसिंहोमहादेवोमहादेवार्तिनाशनः // मुदेपरोमहालक्ष्म्यादेवावरनतोस्तुमे // 128 // नृसिंहउत्संग समुद्रजोमांसमुद्रजद्वीपगृहेनिषण्णः॥समुद्रगोहीनमतिःसदाव्यात्समुद्रभक्ताखिलसिद्धिदायी // 129 // व्यात् // कीदृशः // उत्संगेसमुद्रजालक्ष्मर्यिस्यसः // समुद्रजातंयच्छ्वतद्वीपंतत्रयद्गृहंतत्रोपविष्टः // समुत्सहर्षः॥रजोहीनमतिर्विरजाः॥ समुद्राअंजल्यादिमुद्राविदोयेभक्तास्तेषांसर्वसिद्धिदाता // 129 // For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजालक्ष्मीनासिंहइति // विभक्तिसप्तकेनहरिंस्तौति // नृहरिणामहांतोदैत्याधीशाअहसतहताः // Bal सटीक म०म० लाख हंतेलुङिकर्मणिचिण्वदिशावेरूपम् // श्रीनृसिंहाव श्रीनृसिंह भक्तम् अवरक्ष // 130 // देवान्स्मरति // // 23 // |विश्वेशइति॥ग्रंथनिष्पत्तिस्थानंकाशीस्थानम् // 131 // ग्रंथनिर्मितिकालमाह // अब्देविक्रमातइति // त०२५ राजालक्ष्मीनृसिंहोजयतिसुखकरंश्रीनृसिंहभनेयंदैत्याधीशामहांतोऽहसतनृहरिणाश्रीनृसिंहायनौमि // सेव्योलक्ष्मीनृसिंहादपरइहनहिश्रीनृसिंहस्यपादौसेवेलक्ष्मीनृसिंहेवसतुमममनःश्रीनृसिंहावभक्तम् 130 विश्वेशोगिरिजाविंदुमाधवोमणिकर्णिका // भैरवोजाह्नवीदंडपाणिर्मेतन्वतांशिवम् // 131 // अन्दे विक्रमतोजातेवाणवेदनृपर्मिते // ज्येष्टाष्टम्यांशिवस्याग्रेपू!मंत्रमहोदधिः // 132 ॥इतिश्रीमन्महीध रविरचितेमंत्रमहोदधौषट्कर्मादिनिरूपणंनामपंचविंशस्तरङ्गः // 25 // बाणवेदनृपैर्मितेवर्षेपंचचत्वारिंशदुत्तरषोडशशततमविक्रमनृपाद्गतेसति शिवस्यरामेश्वरस्याने मंत्रमहो BHदधिःसमाप्तिमगमत् // 132 // // इतिश्रीमन्महीधरविराचतायांमंत्रमहोदधिनौकार्याषट्कर्मनिरू // 23 // पणंनामपंचविंशस्तरंगः // समाप्तः // 25 // // For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org श्रीगणेशायनमः॥ // श्रीगणेशमहेशानभारतीमीश्वरंशिवम् // नत्वावक्ष्येमातृकाणांनिघण्टंबालबुद्धये | ॥१॥ॐ॥ध्रुवस्तारस्त्रिवृद्ब्रह्मवेदादिस्तारकोव्ययः॥ प्रणवश्चत्रिमात्रोपिओंकारोज्योतिरादितः॥२॥ अ॥श्रीकण्ठ केशवश्चापिनिवृत्तिश्चस्वरादिकः। अकारोमातृकाद्यश्चवातइत्यभिधीयते ॥३॥आ॥ना रायणस्तथानन्तोमुरवृत्तोगुरुस्तथा // विष्णुशय्यातथाशेषोदीर्घआकारएवच // 4 // माधवस्सूक्ष्म संज्ञश्वविद्यादक्षिणलोचनम् // गन्धर्वःपांचजन्यश्चइकारश्चमुकांकुरः॥५॥ई // गोविन्दश्चत्रिमूर्तीशःशां तिस्स्याद्वामलोचनम् // नृसिंहावंतथामायाईकारोपिसुरेश्वरः // 6 // उ॥अमरेशस्तथाविष्णुरिन्धि काचगजांकुशः॥ दक्षकर्णश्चविजयीउकारोमन्मथाधिपः॥ 7 // ॥अर्वाशोदीपिकावामश्रवणंमधुसूद नः // इंद्रचापष्षण्मुखश्चऊकारोरक्षणाधिपः // 8 // ऋदेिविकादशनासाचभारभूतिस्त्रिविक्रमः // देवमा तारिपुनश्चऋकारस्तपनस्तथा // 9 // ऋ॥अतिथीशोवामनश्चमोचिकावामनासिका // दैत्यमाताचदेव ज्ञऋकारस्त्रिपुरान्तकः // 10 // ल॥श्रीधरश्चपरास्थाणुर्दक्षगण्डत्रिवेदकः // एकांघ्रिर्वदण्डश्चव्योम For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काश. // 237 दिलस्वरस्स्मृतः // 11 // लादृषीकेशोहरस्सूक्ष्मोवामगण्डकुबेरदृक् // अर्द्धचोनीलचरणोलकारश्च विकूटकः॥१२॥ ए॥झिंटीशःपद्मनाभश्चशक्तिस्सूक्ष्मामृताभगः॥ ऊर्दोष्ठग:कामरूपएकारश्चत्रिको णकः॥ 13 // ऐ॥ज्ञानामृतोभौतिकश्चाधरोदामोदरस्तथा // वागीशोवर्मभयदऐकारस्त्रिपुरस्तथा // ॥१॥ओसद्योजातोवासुदेवऊर्ध्वदन्तस्त्रिमात्रकः॥आप्यायनीमन्त्रनाथओकारोनागसंज्ञकः // 16 // औ|संकर्षणोनुग्रहशोमुरारियापिनीतथा // अथोदंतगतोमायीनृसिंहांगस्तथौरसः॥१६॥॥अंकूरो व्योमरूपश्चप्रद्युम्नश्चन्द्रसंज्ञकः।अनुस्वारस्तथाबिन्दुरंकारश्चशिरोव्ययः॥१७॥अनन्तश्चमहासेनोऽ निरुद्धोरसवर्णकः // कन्यास्तननिभस्सर्गोविसर्गश्चांतिमस्स्वरः // 18 // कक्रोधीशोधातृसंज्ञश्चक्री सृष्टिश्चकरादिगः // वर्गादिगपादवेषःककार कामगस्स्मृतः // 19 // खदिगदिचण्डीशा खेटो दक्षिणकूर्परः // कैटभारिश्चमातंगःसंहारःखार्णकःस्मृतः॥२०॥ ग॥स्मृतिःपंचांतकश्शाीगणेशोम णिबन्धगः // गोमुखोगजकुंभश्चगकारःसिंहसंज्ञकः // 21 // ॥खड्गीशिवोत्तमोमेधादक्षिणाङ्गुलिमूल For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie गः // धनोपनस्वरश्चैवघकारोङादिमस्स्मृतः॥२२॥ ॥संज्ञाकोरुद्रकान्तिश्चदशांगुल्यासंस्थितः॥ क्लीववक्रश्चभद्रेशोङकारश्चानुनासिकः // 23 // च॥हलीकूर्मेश्वरोलक्ष्मीर्वामबाह्वादिगस्तथा // चित्र | धारीचंचलश्चचकारस्संस्मृतोबुधैः // 24 // छ॥ एकनेत्रश्चमुशलीवामकूपरगोद्युतिः // त्रिबिन्दुकस्त थाचारीछकार श्लेष्मकाभिधः // 26 // जा|स्थिराजपन्नौजपजश्शूलीचचतुराननः॥ मणिबन्धगतोवा मेजकारांजनकोत्तमः // 26 // झ॥स्थितिःपाशीतथाजेशोवामांगलितलस्थितः॥ स्वस्तिकस्स्थाणु संज्ञश्चझकारोजान्तसंज्ञकः // 27 // भावामामुल्यग्रतःसिद्धिरंकुशीसर्वसंज्ञकः॥ मातंगोह्यनुगास नश्चभकारश्वनिरंजनः ॥२८॥2॥जरामुकुंदस्सोमेशोदक्षपादादिगोमुखः // गजांकुशश्चबालेंदुरमृता द्यष्टकस्स्मृतः॥ 29 // ठ॥लांगलीशोनन्दजश्चपालिनीचकमण्डलुः // दक्षजानुगतस्स्थायीठकार स्स्थविरस्स्मृतः // 30 // ॥नंदीशांतिरिकश्चडामरोदक्षगुल्फगः // व्याघ्रपादश्शुभांत्रिश्चडकार स्तोमरोमतः // 31 // ढ॥ऐश्वरीचार्द्धनारीशोनरश्शाखांतराकृतिः // दक्षपादांगुलीमूलोढलोढकोढ For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मातृ 2 29999903Hamayantaruaamana कारकः॥ 32 // ण॥ उमाकांतोनरकजिद्रतिर्दक्षपदाग्रगः // निर्वाणस्त्रिगुणाकारंत्रिरेखोणस्समी रितः॥ 33 // तवामोरुमूलनिलयआषाढीकामिकाहरिः॥ तीव्रश्चतरलोनीलस्तकार कीर्तितोबुधैः ॥३॥थ।दण्डीशोवरदःकृष्णोवामजानुगतस्स्मरः।शोरीचापिविशालाक्षस्थकार परिकीर्तितः॥३५॥ द॥सत्योत्रीशोहादिनीचवामगुल्फगतस्तथा।।शूलीकुबेरोदाताचदकारोधादिःमस्मृतः॥३६॥धामीने शस्सात्वतप्रीतिर्वामपादांगुलीगतः॥ धनेशोधरणीशश्चधकारोदांतिमस्स्मृतः॥ 37 // न // शौरीमे पेश्वरीदीर्घावामपादारसंस्थितः॥ नरोनदीनोनादीचनकारश्चानुनासिकः॥३८॥ पातीक्ष्णाचलोहित शूरोदक्षपार्श्वश्वपार्थिवः॥ पद्मशोनान्तिमःफादिपकारोपिप्रकीर्तितः // 39 // फाजिनार्दनीशिखीरौ द्रीवामपार्श्वकृतालयः॥ फट्कारःप्रोच्यतेसद्भिःफकार पांतिमस्स्मृतः॥४०॥ व॥छलगण्डोभूधरश्च भयापृष्ठगतस्तथा // सुरसोवज्रमुष्टिश्चवकारोभादिमोमतः॥४१॥ भ ॥विश्वमूर्तिढिरण्डेशोनिद्राना भिगतोपिच॥ भ्रुकुटीचभरद्वाजाभकारश्चजयापहः // 42 // म // वैकुण्ठश्चमहाकालस्तन्द्रीजठरसंस्थि 8 // 238 // For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie तः॥ मन्त्रंशोमण्डलोमानीविषस्सूर्योमकारकः॥४३॥ य॥ क्षुधाबालाचवायुस्त्वग्धृतश्चपुरुषोत्तमः॥ यमुनोयामुनेयश्चयकारोमान्तिमस्स्मृतः॥४४॥ 2 // क्रोधिनीचभुजंगेशीज्वालीरुधिरपावको // रोचि ष्मान्दक्षिणांशश्वरुचिरोरेफईरितः॥४५॥ ल॥ क्रियाककुद्गतोमांसपिनाकीभूर्बलांनुजः॥ लंपटःशक संज्ञश्ववाद्योरांतोलकारकः // 46 // व॥ वालोवामांसनिलयोमेदोवारिदवारुणौ // उत्कारीजलसंज्ञश्च खड्गीशोपिवकारकः॥४७॥ श॥ मृत्युर्वकोवृषनश्चहृदोदक्षकरस्थितः॥ शंकुकर्णोस्थिसंज्ञश्वशकारो विद्भिरीरितः॥४८॥ष॥ वृषःश्वेतेश्वर पीतामजाद्वामबाहुगः // षडाननःषकारश्चकीर्तितश्चबुधैःखरः // 49 // स॥ भृगुःश्वतस्तथाहसोहृदोदक्षिणपादगासमयस्सामगश्शुक्रस्संगतिस्साकश्शशी॥५०॥ ह॥ नभोवराहोनकुलोहदोवामपदस्थितः॥ सदाशिवोरुणप्राणोहकारश्चहयाननः॥५१॥लु॥हृदयाना भिसंस्थानशिवेशोविमलोसितःलघुप्रयत्नश्चोपान्त्योलुंकार प्रोच्यतेबुधैः।।५२॥ क्ष॥ संवर्तकोनृसि श्चहृदयान्मुखसस्थितः अनन्तःपरमात्माचवज्रकायोऽन्तिमाक्षरः५३इतिहादिमतमातृकाकोशःसमाप्तः॥ For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इदं पुस्तकं मुम्बय्यां श्रीकृष्णदासात्मज खेमराजश्रेष्ठिना "श्रीवेङ्कटेश्वर" नामक वकीय मुद्रणागारे धावक्षरै रङ्कितम् संवत् 1952, शके 1817. पुस्तकमिलनेकाठिकाना-खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेंकटेश्वर" छापाखाना-मुंबई. For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुस्मृति। पं०केशवप्रसाद प्रोफेसर आगरा कालेज कृत भाषाटीकासहित / इस ग्रंथका सान्वय भाषाटीका अत्युत्तम हुआहै, यह पुस्तक प्राणीमात्रको परमोपयोगीहै, राजा महाराजाभी इसी के अनुसार धर्मपूर्वक शासन करते हैं यह ग्रंथ देखनेहीके योग्यहै भाषा अत्यन्त सुगम और रसीली है. कीमत ग्लेजकी 2 // रु. रफ् की 20 शुक्रनीति भाषाटीका। यह नीतिका परमोपयोगी ग्रंथ पं० मिहिरचन्दजीसे यथातथ्य अत्युतम भाषानुवाद कराय सुन्दर अक्षर पुष्ट कागजपर मुद्रितकी है और सुन्दर जिल्द बँधी है, यह ग्रंथ नीतिदर्शियों के देखनेही योग्य है मूल्य केवल 1 // रु० रक्खा है // For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाहि धूमावती, बगला शाक्तप्रमोद दशमहाविद्याओंका पञ्चाङ्ग। शाक्तप्रमोद अर्थात् दशमहाविद्या ( काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, वती, बगलामुखी, मातंगी कमलात्मिका) और पंचदेवताओं (दर्गा, शिव, गणेश, सर्य और विष्णु) के पंचांग अत्युत्तम चिकने मोटे विलायती कागजपर नवीन छपकर तय्यार हुआहै ग्रन्थकी रक्षाके निमित्त सुन्दर विलायती कपड़ेकी जिल्दभी बाँधी गई है, जिसपर अति चमकीले सुवर्णके 11 अक्षरोंसे ग्रंथका नाम लिखा गया है और उचित 2 स्थानोंपर चित्रभी यथातथ्य अतिस्वच्छ लगाये गये हैं यह शाक्तप्रमोद शाक्त जनोंको तो अतिही प्रमोदप्रद है, मू०५० पुस्तकमिलनेका-ठिकाना-खेमराज श्रीकृष्णदास-श्रीवेंकटेश्वर छापाखाना-मुम्बई. For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाहिगत। अत्र च महाभारतादीतिहासा:श्रीमद्भागवतादि पुराणानि सहस्रनामादि म्तोत्राणि तथा च व्याकरण न्यायादि शास्त्र नाटकाख्यायिकादि ग्रन्थाश्च सीमकोनम महलध्वनरेश मनोहरं मुद्रिताः योग्यमूल्येन क्रय्यास्सन्ति नत्तांश्च ग्राहका यथा सूचीपत्रं मूल्यप्रेषणेन प्राप्नुयुः / पुस्तकमिलनेकाठिकानाखेमगज श्रीकृष्णदास. "श्रीवेङ्कटेश्वर" छापाखाना-(मुंबई) For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAYERY // इति मन्त्रमहोदधिः सटीकः संपूर्णः॥ BHABRDABLE ift.tutntatatatetntstatutatutetstatstatutntatutntatute DAVM DOES JALA For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir lain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पसमा श्री उत्तराध्ययन सूत्र. मूळ, अर्थ, कथाओ सहित. विभाग 2 जो. अध्ययन 21. (16 थी 36) संपूर्ण. (गुरुणीजी लाभश्रीजीना सतत प्रयासथी मळेली सहायवडे) प्रकाशक, श्री जैन धर्म प्रसारक सभा-भावनगर. 2c202 For private and Personal use only