________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जवनिकातिरस्करिणी तांधृत्वाशालीभक्तंब्रह्मेशाद्यैरितिपद्यद्वयंपठेत् // यथा // ब्रह्मेशाद्यैःपरितउरुभिःसूप, विष्टैःसमेतैर्लक्ष्म्यासिंजद्वलयकरयासादरंवीज्यमानः // नर्मक्ष्वेलीप्रहसनमुखैाप्नुवन्पंक्तिमध्यंभुक्तेपात्रे कनकघटितेषड्रसंश्रीरमेशः॥१॥ शालीभक्तंसुपक्वंशिशिरकरसितंपायसापूपसूपलेह्यपेयंचचोष्यंसितममृ तफलंपूरिका_सुखाद्यम् // आज्यप्राज्यसभोज्यनयनरुचिकरंराजिकैलामरीचस्वादीय शाकराजीपरिकर ततोजवनिकांकृत्वाब्रह्मेशायरिदंपठेत् // पद्यशालीभक्तामितिमूलमंत्रंचसप्तधा // 135 // प्रतिसीराम पाकृत्यदद्याच्छ्लोकंपठञ्जलम् / समस्तदेवदेवेशसर्वतृप्तिकरंपरम् // 136 // अखंडानंदसंपूर्णगृहाण जलमुत्तमम् // स्थंडिलेनिमुपाधायवैश्वदेवक्रियांचरेत् // 137 // मूलेनवीक्ष्यचास्त्रेणकृत्वाप्रोक्षणता डने / कुशैस्तद्धर्मणाभ्युक्ष्यपूर्ववत्स्थापयेच्छुचिम् / / 138 // तन्मंत्रेणतमभ्याहूयतवेष्टदेवताम् / / पूजयेद्धपुष्पैस्तांमहाव्याहृतिभिस्ततः // 139 // हुत्वाव्यस्तसमस्ताभिराहुतीनांचतुष्टयम् // अन्नर्मूलेनजुहुयात्पंचविंशतिसंख्यया // 14 // ममृताहारजोषजुषस्व॥इतिपद्यद्वयम् ॥रमेशपदेऽन्यदैवतेऊहाकार्यलक्ष्म्येतिपदेपिगौर्यापार्वतीशइत्यादि Helu 135 // प्रतिसीरांजवनिकाम् // 136 // 137 // शुचिंवह्निम्॥पूर्ववत्प्रथमतरंगोक्तविधिना // 138 // तन्मंत्रे वैश्वानरमंत्रेणपूर्वोक्तेन // 139 // 14 // ORH For Private and Personal Use Only