________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं० म. . // 21 // 141 // // 142 // उच्छिष्टभोजिनआह // विष्वक्सेनइत्यादिना // विकर्तनस्यरवेः // 143 // 144 // पुनर्व्याहृतिभिर्तृत्वामूर्तीदेवनियोजयेत् // वह्निविसृज्यदेवायदद्यादाचमनोदकम् // 141 // तेजःसंयोज्यदेवस्यनिर्गतदेववक्रतः॥ नैवेद्यांशंतदुच्छिष्टभोजिनेविनिवेदयेत् // 142 // विष्वक्सेनो हरेरुक्तश्चंडेश्वरउमापतेः। विकर्तनस्यचंडांशुवक्रतुंडोगणोशितुः // 143 // शक्तरुच्छिष्टचांडालीस्मृ ताउच्छिष्टभोजिनः // ततोलवणमुत्ता>कुर्यादारात्रिकंसुधीः॥१४४॥अथोनिवेद्यतांबूलंदर्शयेच्छर चामरे // पठेद्देवमनाभूत्वासार्द्धश्लोकचतुष्टयम् // 145 // बुद्धिःसवासनातृप्तादर्पणमंगलानिच // मनोवृत्तिर्विचित्रांतेनृत्यरूपेणकल्पिता // 146 // ध्वनयोगीतरूपेणशब्दावाद्यप्रभेदतः॥ छत्राणिन वपद्मानिकल्पितानिमयाप्रभो // 147 // सुषुम्नाध्वजरूपेणप्राणाद्याश्चामरात्मना // अहंकारोगजत्वे नवेगःक्लृप्तोरथात्मना / / 148 // इंद्रियाण्यश्वरूपाणिशब्दादिरथवर्मना // मनःप्रग्रहरूपेणबुद्धिःसार थिरूपतः।।१४९॥सर्वमन्यत्तथास्कृप्तंतवोपकरणात्मना॥श्लोकानेतान्पठित्वातुमूलमंत्रमनन्यधीः१५०२१०॥ सार्धश्लोकचतुष्टयंशिवोक्तम् // 145 // तदेवाह॥बुद्धिरिति // 146 // 147 // 148 // 149 // 150 // LOVEILL For Private and Personal Use Only