SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक त०७ // 56 // // 89 // 90 // 91 // बाणेशीमाह // सत्यइति // सत्योदः // अग्नियुक्तोरेफयुतः // अनंतेंदुसंयुतः॥ आबिंदुयुतश्चतेनद्रामित्यादिबीजं // सएवरेफयुतोदः // आस्थानेशांतिरीतेनयुतोद्रीं // इंद्रशांति मध्वक्तलोणरचितांपुत्तलींदक्षिणांघ्रितः॥ हूयादृष्टोत्तरशतंखादिरानौवशंनिशि॥८९॥शालिपिष्टमयींतां तुभक्षयेत्स्त्रीवशीकृतौ।कृष्णभूतनिशिध्वांक्षोदरेक्षित्वासमुद्रजम् // 90 // नीलसूत्रेणसंवेष्टयचिताग्नौपद हेदमुम्॥सहस्रजप्ततद्गमयस्मैदद्यात्सदासवत्॥९॥सत्योगियुक्तो तेंदुसंयुक्तबीजमादिमम् ॥एतस्या नंतसंस्थानेशांतियुक्तोद्वितीयकम् // 92 // ब्रह्मेन्द्रशांतिविद्वाव्यस्तृतीयंवजिमीरितम् // भूधरोवसुधा पीशचंद्राढयस्तत्तुरीयकम्।।९३॥सर्गीहंस पंचम स्यात्पंचवीजात्मकोमनुः।ऋषिःसम्मोहनश्छन्दोगा यत्रीदेवतापुनः॥९॥वाणेशीव्यस्तवर्णेनमंत्रेणोक्तंपडंगकम्।।मूर्भिपादेमुखेगुह्येहृदयेपंचदेवताः॥९॥ न्यस्तव्याःपंचवीजाद्याद्राविणीक्षोभिणीपुनः॥ वशीकरण्याकर्षण्यौसंमोहिन्यपिपंचमी // 96 // बिंद्वाढयोब्रह्मालईबिंदुयुतःकाक्लीं // वसुधाीशचंद्राढ्योलउ // बिंदुयुतोभूधरोवः // ब्लू // सर्गीहं। सःसः॥९२॥९३॥९४॥ व्यस्तसर्वेणपंचबीजैःपंचांगानिसर्वेणास्त्रम् // पञ्चबीजाद्याद्राविण्याद्यादेवतामूद्धा दौन्यस्याः॥ द्रांद्राविण्यैनमोमूीत्यादि // 95 // 96 // १द्रांद्रीक्लींब्र्सः 5 अस्यबाणेशीमंत्रस्यसंमोहनऋषिःगायत्रीछंदः बाणेशीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः / For Private and Personal Use Only
SR No.020473
Book TitleMantra Mahodadhi Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages545
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy