________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 38 // त०५ उक्तानामष्टविद्यानामृष्याद्याह॥अमूषामिति ॥८॥गायत्रीछंदः॥ तारादेवता॥पूर्ववतषड़दीर्घाढयमायाबी जेनहांहीमित्यादि ॥९॥ध्यानमाह // श्वेतेति // कर्वीदक्षे // 10 // प्रयोगानाह॥मध्विति // 11 // 12 // 13 // नारायणोपासितेयंपंचासर्वसिद्धिदा // अमूषामष्टविद्यानामृषि शक्तिर्वसिष्ठजः॥८॥गायत्रीतारकेछं दोदेवतेपरिकीर्तिते॥न्यासंतुपूर्ववत्कृत्वाध्यायेत्तारांहृदंबुजे ॥९॥श्वेतांबरांशारदचन्द्रकांतिंसद्भूषणांचं द्रकलावतंसाम् // कींकपालान्वितपाणिपद्मांतारांत्रिनेत्रांप्रभजेखिल. // 10 // जपपूजादिकंसर्व मासांपूर्ववदाचरेत् // मधुयुपरमान्नेनहोमाद्विद्यानिधिर्भवेत् // 11 // रक्तांवश्येस्वर्णवर्णास्तंभने मारणेसिताम् // उच्चाटनेधूम्रवर्णीशांतोश्वेतांस्मरेदिमाम् // 12 // भूरिणाकिमिहोक्तेनविद्याएताःप्रसा धिताः॥ पूरयत्यखिलंनृणांमनोरथमिहध्रुवम् // 13 // मायाहृद्भगवत्येकजटेममजलंस्थिरा। वह्नया सनगतापुष्पंप्रतीच्छानलवल्लभा // 14 // एकजटामाह // मायेति // जलंवः // वह्नयासनगतास्थिरा // रेफयुतोजज // यथा // ॐहींनमोभगवत्येकज टेममवज्रपुष्पंप्रतीच्छस्वाहेति // 14 // 1 अष्टविद्यानांवसिष्ठऋषिःगायत्रीछंदतारकादेवताममाभीष्टसि द्धयर्थजपेवि० // // 38 // For Private and Personal Use Only