________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org // 15 // 16 // नीलसरस्वतीमाह // रमेति // व्यापिन्यारूढौऔयुतौ // नीलस्वरूपं // भृगुःसः॥रस्वत्यै स्वरूपं ॥ठद्वयं॥ स्वाहा // यथा ॥*श्रींहींहूसौहुंफट्नीलसरस्वत्यैस्वाहा।।मनुवर्णश्चतुर्दशार्णः॥१७॥१८॥ द्वाविंशत्यक्षरोमंत्रस्तारादिःसर्वसिद्धिदः // ऋषिःपतंजलिश्छंदोगायत्र्येकजटापुनः // 15 // दे वतादीर्घषट्काढयमाययास्यात्पडंगकम् // ध्यानार्चनप्रयोगांस्तुकुर्यात्पूर्वोक्तमंत्रवत् // रमां मायाहसौव्यापिन्यारूढौसर्गसंयुतौ // वर्मास्त्रंनीभृगुरस्वत्यैठद्वयमीरितम् // 17 // प्रणवाद्योमनुः सर्वसिद्धिदोमनुवर्णकः // ऋष्यांद्याब्रह्मगायत्रीतथानीलसरस्वती // 18 // नेत्रचंद्रेदुनेत्रांगनेत्रीणैरं गकल्पना // मंत्रोत्थितैरथोध्यायेद्देवींसर्वेष्टसिद्धिदाम् // 19 // घंटाशिरःशूलमसिंकरात्रै संविभ्रती चंद्रकलावतंसाम् // प्रमश्नतींपादतलेपशुंतांभजेमुदानीलसरस्वतीशाम् // 20 // षडंगमाह // नेत्रेति // नेत्रशब्देनार्णद्वयंचंद्रएकः // अंगानिषट् // 19 // ध्यानमाह // घंटामिति // शुलासीदक्षयो॥घंटाशिरसीवामयोः // 20 // 1 अस्यश्रीमदेकजटामंत्रस्यपतंजलिर्ऋषिःगायत्रीछंदःएकजटादेवताममाभीष्टसिद्धयर्थे जपेविनियोगः // 2 अस्यनीलसरस्वतीमंत्रस्य ब्रह्माऋषिःगायत्रीछंदानीलसरस्वतीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः // For Private and Personal Use Only