________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्रांतरमाह // कूर्चेति ॥कूर्चहं क्रीं ह्रीं दक्षिणेकालिकेपुनर्बीजानिस्वाहेतिद्वाविंशत्यावशीकृतौक्ष मइतिशेषः॥४३॥ मंत्रांतरमाह // मंत्रराजेइति॥क्री 3 हूंरहींरदक्षिणेकालिकेस्वाहेतिपंचदशार्णः॥४४॥मंत्रां तरं॥ ब्रह्मेति // ब्रह्माकः॥ वामनेत्रेई // क्रीं॥४५॥ षडर्णमाह // बीजमिति // बीजंक्रीं // दीर्घयुतश्चक्री कूर्चयंत्रयंकाल्यामायायुग्मंतुदक्षिणे // कालिकेपूर्ववीजानिस्वाहामंत्रोवशीकृतौ // 43 // मंत्रराजे पुनःप्रोक्तंबीजसप्तकमुत्सृजेत् // तिथिवर्णोमहामंत्रंउपास्तिःपूर्ववन्मता // 44 // ब्रह्मरेफौवामनेत्रचं द्रारूढौमनुर्मतः // एकाक्षरोमहाकाल्याःसर्वसिद्धिप्रदायकः॥ 45 // बीजंदीर्घयुतश्चक्रीपिनाकीनेत्रसं युतः॥ क्रोधीशोभगवान्स्वाहाषडोमंत्रईरितः॥४६॥ कीलीकूर्चतथालज्जाविवर्णोमनुरीरितः॥ हुंफडंतश्चपंचार्णःस्वाहांतःसप्तवर्णकः // 47 // एतेषांपूर्ववत्प्रोक्तंयजनंनारदादिभिः // निग्रहानुग्र हेशक्ताःकालीमंत्राःस्मृताइमे // 48 // dका॥ नेत्रयुतःपिनाकी लि // भगमेकारस्तातःक्रोधीशके // क्रीकालिकेस्वाहेति // 46 // मंत्रांतरं // कालीति // क्रीहूँह्रींहुंफडितिपंचार्णः॥क्रीहूंहींहुंफटस्वाहेतिसप्तार्णः॥४७॥४८॥ 1 हूँहूँक्रीक्रीक्री ह्रींहींदक्षिणकालिकेहूंहूँक्रीकाक्री हहि स्वाहा // 2 क्रीक्रीक्रीहूँहूँहीहींदक्षिणकालिकेस्वाहा // ap For Private and Personal Use Only