________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतकन्याश्चभोज्या पूज्याः // एवंदशदिनेषुसंपाद्यएकादशेह्निसप्तशतीशतावृत्त्याप्रतिश्लोकंतल्लक्षसंख्यंन | र्वाणेनचहोमः // 207 // 208 // ऋत्विग्भ्योपिदश 2 निष्कमितंसुवर्णप्रत्येकंदद्यात् // शेषपूर्वोक्तवत् // इति सहस्रचंडीविधिः॥२०९ // एतत्फलमाह // एवंसहस्रसंख्याकभिति // एतदयुतचंडीविधानलक्षचंडीविधान पूर्वोक्ताःकन्यकाः पूज्या पूर्वमंत्रैःशतंशुभाः // एवंदशाहसंपाद्यहोमंकुर्युःप्रयत्नतः॥२०७ // सप्तश त्याशतावृत्त्याप्रतिश्लोकंविधानतः॥ लक्षसंख्यंनवार्णेनपूर्वोक्तैर्द्रव्यसंचयैः // 208 // होतृभ्योदक्षिणां दत्त्वापूर्वोक्तान्भोजयेद्विजान् // सहस्रसंमितान्साधून्देव्याराधनतत्परान् // 209 // एवंसह स्रसंख्याककृतेचंडीविधौनृणाम् // सिद्धयत्यभीप्सितंसर्वदुःखौघश्चविनश्यति // 210 // मारीदु भिक्षरोगाद्यानश्यतिव्यसनोच्चयाः // नेमविधिवदेइष्टेखलेचौरेगुरुद्वहि // 211 // साधौजितेंद्रिये दांतेवदेविधिमिमंपरम् // एवंसाचंडिकातुष्टावक्तृञ्छोतॄश्चरक्ष्यति // 212 // इतिमंत्रमहोदधौकाल रात्रिचंडीमंत्रकथनंनामाष्टादशस्तरंगः॥ 18 // योरुपलक्षणंसहस्रचंडीदशगुणोऽयुतचंडीविधिः // सदशगुणोलक्षचंडीविधिः // जपेहोमेदक्षिणायांकन्या सुविप्रभोजनेचदशगुणत्वम् // 210 // 211 // 212 // इतिमंत्रमहोदधिनौकाटीकायामष्टादशस्तरंगः // 18 // For Private and Personal Use Only