________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० सटीक // 17 // ततःआवरणदेवतानांनाममंत्रैस्तारादिस्वाहतिरेकैकामाहुतिंहुत्वापूर्णाहुतिंकृत्वादेवीकुंभस्थांसंपूज्यबलि | दानंविधायऋत्विग्भ्यःप्रत्येकनिष्कमअशक्तोसुवर्णमितंसुवर्णदद्यात् // 201 // 202 // तताविप्राःकलशोदके नयजमानंनिगमपुराणोक्तमंत्रैरभिषिचेयुराशिषश्चदाः // ततःशतंविप्रान्नानाविधान जयेत् // तेभ्योपित०१८ कृत्वावरणदेवानांहोमंतनाममंत्रतः // कृत्वापूर्णाहुतिसम्यग्देवमंनिविसऱ्याच // 201 // अभिषिचे चयष्टारविप्रौषःकलशोदकैः // निष्कंसुवर्णमथवाप्रत्येकंदक्षिणांदिशत् // 202 // भोजयेच्चशतविप्रा नभक्ष्यभोज्य पृथगविधैः // तेभ्योपिदक्षिणांदत्त्वागृह्णीयादाशिपस्ततः // 203 // एवंकृतेजगदृश्यं सर्वेनश्यत्युपद्भवाः ॥राज्यंधनंयशःपुत्रानिष्टमन्यल्लभेतसः // 204 // एतद्दशगुणंकु-चंडीसाहस्त्र जंविधिम् // विद्यावतःसदाचारान्ब्राह्मणान्वृणुयाच्छतम् // 205 // प्रत्येकंचंडिकापागन्विदध्युस्ते दिशामितान् // अयुतंप्रजपेयुस्तेप्रत्येकंनववर्णकम् // 206 // यथाशक्तिदक्षिणांदद्यात् // इतिशतचंडीविधिः॥ 203 // शतचंडीविधेःफलमाह // एवंकृतइति // 204 // सहनचंडीविधानमाह // एतद्दशगुणमिति // शतचंडीविधानंदशगुणसहस्रचंडीविधानमित्यर्थः // तत्र // 17 // शविप्रवरणम्॥२०५॥तेशतविप्राःप्रत्येकंदशदशसप्तशतीपाठान्कुर्युअयुतमयुतंनवार्णजपंचकुर्युः॥२०६॥ For Private and Personal Use Only