________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० नवममाह // कुर्वीतेति॥३५॥शिरसापादांतमष्टवारंमूलंविन्यसेत् // एवंपादाच्छिरोंतमष्टशः॥एवंपुरोदक्षिसटीक णभागेपृष्ठेवामभागेप्येवंप्रत्यहमष्टशोमूलंन्यसेत् // एतत्फलंदेवत्वप्राप्तिः // 36 // दशममाह // मूलेति // मूलं मस्तकाचरणंयावच्चरणान्मस्तकावधि॥ पुरोदक्षेपृष्ठदेशेवामभागेऽष्टशोन्यसेत् // 35 // मूलमंत्रकृतो त०१८ न्यासोनवमोदेवताप्तिकृत् // ततःकुर्वीतदशमंषडंगन्यासमुत्तमम् // 36 // मूलमंत्रजातियुक्तंहृदयादि विन्यसेत् // कृतेस्मिन्दशमेन्यासेत्रैलोक्यंवशगंभवेत् // 37 // दशन्यासोक्तफलदकुर्यादेकादशं ततः // खङ्गिनीशूलिनीत्यादिपठित्वाश्लोकपंचकम् // 38 // आद्यकृष्णतरंबीजंध्यात्वासर्वागकेन्यसे त् // शूलेनपाहिनोदेवीत्यादिश्लोकचतुष्टयम् // 39 // पठित्वासूर्यसदृशंद्वितीयंसर्वतोन्यसेत् // स र्वस्वरूपेसर्वेशेइत्यादिश्लोकपंचकम् // 140 // पठित्वास्फटिकाभासंतृतीयस्वतनौन्यसेत् // ततःपडं गंकुर्वीतविभक्तैर्मूलवर्णकैः॥४१॥एकेनैकेनचैकेनचतुर्भिर्युगलेनच॥समस्तेनचमंत्रेणकुदिंगानिषत्सु धीः॥४२॥शिखायांनेत्रयोःश्रुत्योर्नसोर्वकेगुदेन्यसेत्॥मंत्रवर्णान्समस्तेनव्यापकंत्वष्टशश्चरेत् // 43 // // 166 // हृदयायनमः॥इत्यादिजातियुक्तंषडंगेषुन्यसेत्।।एतत्फलंजगदश्यत्वम्॥३७॥एकादशमाह॥खङ्गिनीति // 41 // षडंगमाह॥एकेनेति॥४२॥वर्णन्यासमाह॥शिखायामिति॥नेत्रश्रुतिनासासुद्वौद्वौ॥ अष्टशोऽष्टवारम्॥४३॥ For Private and Personal Use Only