________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 25 // 26 // फलमाह // कृतेति // 27 // षष्ठमाह // मध्यमिति // अष्टादशभुजामहालक्ष्मीर्मममध्यंपा त्वित्यादिप्रयोगः॥२८॥२९॥३०॥ सप्तमन्यासमाह // मूलेति // ॐनमःब्रह्मरंध्रेइत्यादिप्रयोगः // 31 // विशुद्धब्रह्मरंध्रांतंपातुरुद्रस्त्रिलोचनः॥हंसःपातुपदद्वंद्वंवैनतेयःकरद्वयम् // 25 // चक्षुषीवृषभःपातुस वांगानिगजाननः॥ परापरौदेहभागौपात्वानंदमयोहरिः // 26 // कृतेऽस्मिन्पंचमेन्यासेसर्वान्कामा नवाप्नुयात् // षष्ठंन्यासंततःकुर्यान्महालक्ष्म्यादिसंयुतम् // 27 // मध्यंपातुमहालक्ष्मीरष्टादशभुजा न्विता // ऊर्द्धसरस्वतीपातुभुजैरष्टाभिरूर्जिता // 28 // अधःपातुमहाकालीदशबाहुसमन्विता // सिंहोहस्तद्वयंपातुपरहंसोक्षियुग्मकम् // 29 // महिषंदिव्यमारूढोयम पातुपदद्वयम् ॥महेशचंडिका युक्त सर्वांगानिममावतु // 130 // षष्ठेस्मिनविहितेन्यासेसद्गतिप्राप्नुयानरः // मूलाक्षरन्यासरूपन्यासं कुतिसप्तमम्॥३॥ब्रह्मरंधेनेत्रयुग्मेश्रुत्यो सिकयोर्मुखे॥पायौमूलमनोर्वर्णास्ताराद्यान्नमसान्वितान // 32 // विन्यसेत्सप्तमेन्यासेकृतरोगक्षयोभवेत् // पायुतोब्रह्मरंध्रांतंपुनस्तानेवविन्यसेत् // 33 // कृतेस्मिन्नष्टमेन्यासेसर्वदुःखविनश्यति॥ कुर्वीतनवमंन्यासमंत्रव्याप्तिस्वरूपकम् // 34 // ॥३२॥एतन्न्यासफलंरोगक्षयः॥पायुमारभ्यब्रह्मरंध्रांतंवर्णन्यासोष्टमः॥ 33 // एतत्फलंदुःस्वपनाशः // 34 // For Private and Personal Use Only