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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अत्रिर्दवायुर्यः॥ स्वरूपमन्यत् ॥७७॥७८॥७९॥चतुर्विशतिश्लोकैनिष्पन्नोमालामंत्रो यथा ॥ॐनमोहनुमते प्रकटपराक्रमआक्रांतदिङमंडलयशोवितानधवलीकृतजगत्रितयवजदेहज्वलदग्निसूर्यकोटिसमप्रमतनूरुह रुद्रावतारलंकापुरीदहनोदधिलंघनदशग्रीवशिरस्कृतांतकसीताश्वासनवायुसुतांजनीगर्भसंभूतश्रीरामल क्ष्मणानंदकरकपिसैन्यप्राकारमुग्रीवसख्यकारणवालिनिबर्हणकारणद्रोणपर्वतोत्पाटनाशोकवनविदारणा | क्षकुमारकच्छेदनवनरक्षाकरसमूहनिभंजनब्रह्मास्त्रब्रह्मशक्तिप्रसनलक्ष्मणशक्तिभेदनिवारणविशल्यौषधिस ममसर्वकार्य्यजातंसाधयद्वितयंततः // सर्वदुष्टदुर्जनांतेमुखानिकीलयद्वयम् // 77 // घेत्रयंहात्रयं वर्मत्रितयंफट्नयंततः // वह्निप्रियांतोमंत्रोयंमालासंज्ञोखिलेष्टदः // 78 // अष्टाशीत्युत्तराःपं चशतवर्णामनोःस्मृताः // महोपद्रवसंपातेस्मृतोयंदुःखनाशनः // 79 // मानयनबालोदितभानुमंडलप्रसनमेघनादहोमविध्वंसनइंद्रजिद्वधकारणसीतारक्षकराक्षसीसंघविदारणकुं भकर्णादिवधपरायणश्रीरामभक्तितत्परसमुद्रव्योमद्रुमलंघनमहासामर्थ्यमहातेजःपुंजविराजमानस्वामिव चनसंपादितार्जुनसंयुगसहायकुमारब्रह्मचारिन्गंभीरशब्दोदयदक्षिणाशामार्तडमरुपर्वतपीठिकार्चनसक लमंत्रागमाचार्यममसर्वग्रहविनाशनसर्वज्वरोच्चाटनसर्वविषविनाशनसर्वापत्तिनिवारणसर्वदुष्टनिबर्हणस For Private and Personal Use Only
SR No.020473
Book TitleMantra Mahodadhi Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages545
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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