________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंगुष्ठतर्जनीस्फोटंछोटिकामुद्रा॥वाममुष्टिंनिर्गततर्जनीकंकृत्वाशंखोपरिभ्रमणमवगुंठनमुद्रा // वर्मणाहुं| बीजेन // 13 // गोमुद्रांधेतुमुद्राम्॥सायथा।वामांगुलीनांमध्येषुदक्षिणांगुलीस्थानानिसंयोज्यतर्जनींदक्षा मध्यमयावामयातथादक्षमध्यमयावामांतर्जनींचनियोजयेत्॥ वामयानामयादक्षांकनिष्ठांचनियोजयेत् // दक्षयानामयावामांकनिष्ठांचनियोजयेत् ॥विहिताधोमुखीचैषाधेनुमुद्राप्रकीर्तितेति // अमृतबीजतम्वमि तिबीजेनसंरोधिन्यामुद्रया // सायथा // अंगुष्ठगर्भिणीसैवसंनिरोधेसमीरितेति // अंगुष्ठगर्भमुष्टिद्वयमि संरक्षेदत्रमंत्रणच्छोटिकामुद्रयाजलम्॥मुद्रयाचावगुंठन्यावर्मणात्ववगुंठयेत्॥१३॥अमृतीकृत्यगोमुद्रां कुर्वन्नमृतबीजतः // संरोधिन्यासंनिरुध्यतत्रमुद्रा प्रदर्शयेत् // 14 // शंखमौशलचक्राख्यापरमीकृत्य तत्पुनः॥ महामुद्रांविरचयन्योनिमुद्रांचदर्शयेत् // 15 // कृष्णमंत्रेगालिनींचरामेगरुडमुद्रिकाम् // शंखाद्दक्षिणदिग्भागेप्रोक्षणीपात्रपूरणम् // 16 // त्यर्थः। तत्राय॑मुद्रा शंखाद्याः॥ 14 // शंखमुशलचक्रमुद्राउक्ताः॥ महामुद्रांकुर्वन् // परमीकृत्यकरयोरंगु लीसंग्रंथ्यकरौवियोजयेदितिमहामुद्रोक्ता // 15 // करांगुल्यमाणिवक्रीकृत्यसंमुखंयोजितानिगालि नीमुद्रा॥ गरुडमुद्रायथा // संमुखौतुकरौकृत्वाग्रंथयित्वाकनिष्ठिक॥पुनश्चाधोमुखौकृत्वातजन्यौयोजयेत्त योः // मध्यमानामिकेद्वेतुपक्षाविवविचालयेत् // मुद्रषापक्षिराजस्यसर्वविघ्ननिवारिणीति // 16 // For Private and Personal Use Only