________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ललितायंत्रपंचदशमाह // दौर्भाग्येति // शुक्लत्रयोदश्यांभूर्जेरोचनाकस्तूरीकुंकुमैश्चतुष्कोणगर्भमष्टदलं कृत्वामायात्रयपुटितंभर्तृनामांतविलिख्यदिक्पवेषुमायात्रयंकोणदलेएकांकृत्वोत्तरदिग्वोरात्रावर्चेत् // दौर्भाग्यशमनभर्तृवशकृयंत्रमुच्यते // नारीणामीप्सितप्राप्तिकरंसौभाग्यवर्द्धनम् // 74 // कुर्याद ष्टदलंप चतुष्कोणाढ्यकर्णिकम् // चतुष्कोणलिखेन्मायावीजानांत्रितयंशुभम् // 75 // ततःस्वनाथ नामार्णान्मायावीजत्रयंपुनः // दिक्पत्रेत्रिगिरिसुतांविदिक्पत्रेष्वथैकशः // 76 // भूजेंसितत्रयोद श्यांरोचनानाभिकुंकुमैः // विलिख्योत्तरदिग्वक्रोनिश्यर्चेत्सप्तवासरान् // 77 // तदंतेभोजयेत्सप्तप तिपुत्रान्विताःस्त्रियः॥ ललिताप्रीतयेपश्चाद्यत्रंधातुगतंधृतम् // 78 // रूपसौभाग्यसंपत्तिकरांप्रियव शंवदम् // संप्रोक्तंललितायंत्रकामिनीनामभीष्टदम् ॥७९॥गोरोचनाकुंकुमाभ्यांभूर्जेष्टदलमालिखेत्॥ साकारपुटितनामकर्णिकायांदलेगिजा // 80 // दिनद्वयंनिशास्विष्ट्वाभोजयित्वांगनात्रयम् // कंठेधृ तंभर्तृवश्यकारकंयंत्रमुत्तमम् // 81 // ललितादेवता // 74 / 75 // 76 // 77 // 78 // 79 // षोडशमाह॥ गोरोचनेति // सादेवदत्तसाइतिमध्ये।।पत्रेषु Bहीं॥गौरीदेवता॥८०॥८१॥ For Private and Personal Use Only