________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabalirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie मं०म० ॥६६॥६॥भृत्यवश्यकरत्रयोदशमाह॥चतुर्दलेति॥क्रियावशयति तातम्॥गौरीदेवता॥६८॥६९॥ दुष्टवश्य सटीक ममकरंचतुर्दशमाह // चतुरस्रइति // मायाबीजगतानामार्णाश्चतुरस्र विलिख्यदुष्टपादरजोयुक्तराजिकापिष्ट अजितेइत्यपिलिखेदक्षिणोत्तरपत्रयोः // भूजेगोरोचनाचंद्रेकेसरागुरुभिःपुनः // 66 // विदि / // 18 // त०१९ नंनियतोयंत्रसंपूज्याह्निचतुर्थके // एकंसंभोज्यविद्रयंत्रबाहौविधारयेत् // 67 // हेमा दिसंस्थितंभूयोवशकदर्शनादपि // चतुईलांतविलिखेद्धृत्यनामक्रियान्वितम् // 68 // दले घुमायावीजानिभूरोचनयासुधीः // दनिक्षिप्तेतुतयोभृत्यआज्ञाकरोभवेत् // 69 // चतुरस्रलिखे साध्यनामार्णागिरिजायुतान् // भूजैरोचनयामंत्रीदुष्टप्रभुवशीकृतौ // 70 // शत्रुप्रतिकृतेयंत्रंहद येतत्प्रविन्यसेत् // कृतायाराजिकापिष्टैःशत्रुपादरजोयुतैः // 71 // प्रतिमापूजयित्वातांचुलीपार्श्वे निखानयेत् // अजासृग्युक्तभोनकृष्णभूतेबलिंहरेत् // 72 // महाकालायदिक्पेभ्योऽरुणपुष्पाज्यसंयु तम् // एवंकृतभवेदश्योनृपोदुष्टोपितत्क्षणात् // 73 // कृततत्प्रतिमायांहदिन्यस्यतांचहींनिखायकृष्णचतुर्दश्यांमहाकालायारुणपुष्पाज्येनयुक्तमजायारक्तयु Milm18 // तभक्तेनबलिंदद्यात् // उक्तफलसिद्धिः॥ गौरीदेवता // 70 // 71 // 72 // 73 // For Private and Personal Use Only