________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० cuu0SASAL. 5555 सटीक // 13 // त०१ दिकाअर्वक्तव्याः 192 // पश्चनेत्रसंख्या पंचविंशतिः // 293 // 194 // 195 // 196 तबेष्टदेवमावाह्यमुद्राआवाहनादिकाः।प्रदर्यवह्निरूपस्यदेवस्यवदनेपुनः॥१९२।।मूलेनजुहुयात्पंचने त्रसंख्याघृताहुतीः॥ वकीकरणंत्वग्निर्देवयोस्तेनजायते // 93 // नाडीसंधानसिद्धयथैवह्निदेवतयो स्ततः॥ जुहुयान्मूलमंत्रेणरुद्रसंख्याघृताहुतीः // 94 // इष्टदेवस्यावृतीनामेकैकामाहुतिंचरेत् // तत स्तुमूलमंत्रेणदशधाजुहुयाघृतम् // 95 // ततःकल्पोक्तद्रव्यणदशांशंजुहुयाजपात्॥होमंसमाप्यकु तिपूर्णाहुतिमनन्यधीः // 96 // होमावशिष्टेनाज्येनपूरयित्वानुचंसुधीः // पुष्पंफलंनिधायाग्रेजुवे णाच्छाद्यतांपुनः // 97 // उत्थितोवौषडतेनमूलेनजुहुयाद्वसौ // तद्रव्येणावृतीनांचजुहुयादाहु तिपृथक् // 98 // देवंविसृज्यस्वहदिवन्हेर्जिह्वांगमूर्तिभिः // जुहुयाध्याहृती त्वाप्रोक्षेत्तंप्रोक्षणी जलैः॥ 99 // संप्रार्थ्यानेनमनुनानत्वातंविसृजेद्धादि // भोभोवढेमहाशक्तेसर्वकर्मप्रसाधक // 20 // कर्मातरेपिसंप्राप्तेसान्निध्यंकुरुसादरम् // वह्नौपवित्रेनिक्षिप्यप्रणीतांबुभुविक्षिपेत् // 201 // // 197 // 198 // 199 // 200 // पवित्रादिप्रतिपत्तिमाह // वन्हाविति // विधिब्रह्माणंविसृज्यदक्षिणां दत्वेतिशेषः // सकुशान्परिस्तरणसहितानवसावग्नौ // 201 // | // 13 // For Private and Personal Use Only