________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 66065-65165 न्यासानाहावागितिारत्यैनमःमूनि // ह्रींप्रीत्यैनमोहृदि / क्लींमनोभवायैनमः पादयोः॥ इच्छेतिएँइच्छा शक्तयैनमोमुखे // ह्रींज्ञानशक्त्यैनमःकंठे ॥क्लींक्रियाशक्त्यैनमोलिंगे // 4 // 5 // बाणेशीबीजानि // द्रांद्रीं क्लींब्लूसःइति // तत्पूर्वकान् ॥द्रावणाद्यान्वाणान् // कास्यहृद्गुह्यपादेन्यसेत् ॥द्रांद्रावणबाणायनमइत्या , दिकंशिरःआस्यंमुख॥६॥७॥षडङ्गमाह॥रामति॥मातृकान्यासमाह॥इति // दीर्घस्वराआद्यायस्येदृशंवि वाक्पूर्विकारतिमूर्ध्निप्रीतिमायादिकांहृदि॥४॥ पादयोर्विन्यसेन्मंत्रीकामपूर्वामनोभवाम् // इच्छाशक्तिं ज्ञानशक्तिक्रियाशक्तिंक्रमान्यसेत् // 5 // वाङ्मायाकामवीजाबामुखेकंठेशिवेतथा॥द्रावणंशोषणवाणं तापनंमोहनाभिधम् // 6 // उन्मादनक्रमातपंचवाणेशीबीजपूर्वकान् // कास्यहृद्गुह्यपादेषुन्यस्यकुऱ्या त्पडङ्गकम् // 7 // रॉमाग्निगुणरामांगनेत्रवर्मनूत्थितैः // नमोंतकन्यकांताबाहयाद्याअष्टमा | तरः॥८॥ दीर्घस्वराधदीर्घाक्षाद्यष्टकाद्याविलोमतःविन्यस्यमूनिवामांसंवामपार्थेषुनाभितः॥९॥ लोमतोदीर्घक्षादीनामष्टकमाद्यंयासांतामातरोमूर्द्धादिषुन्यस्याः॥ तथाकीदृश्योमातरः॥डेनमतकन्यका ताः॥चतुर्थीनमोतंकन्यकापदमंतेयासांताायथा।आंक्षांब्राह्मीकन्यकायैनमोमूनि // ईलांमाहेश्वरीकन्यका यैनमोवामांसे॥ऊहांकौमारीक वामपाधै|सवैिष्णवीक नाभौलंषांवाराहीक|दक्षपाऐंशांइंद्राणीक० दक्षांसे॥औंवांचामुंडाकन्यकायैककुदि॥अलांमहालक्ष्मीकन्यकायैहदि // सिद्धिन्यासमाहातारेति // 8 // 9 // 270700 For Private and Personal Use Only