________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तारइति // सहनिद्रा॥इयुतोभः॥ भि॥भृगुःसः॥विषमः॥ सदीर्घमायुतं॥स्मृतिरोगकाररेफो|साक्षौइ युतौग्नि // भगान्वितोमहाकालः॥ एयुतोमः॥क्रोधोडं। अस्त्रंफट् ॥ॐयथागताभिषेकसमाग्निमेहुंफडितिपु प्पशोधनमंत्रः॥ तारइति // पाश // पराहीं // ॐआह्वीस्वाहेतिचित्तशोधनमंत्रः // 66 // 67 // अर्घस्था पनमाह // सेंदुभ्यामिति // मांसंलः॥ तोयंवः // सबिंदुभ्यांमाभ्यांभूमिसंशोध्यपूर्वोक्तेनमंडलमंत्रेणवृत्तत्रि तारोयथागतानिद्रासहक्षेकभृगुर्विषम् // सदीर्घस्मृतिरौसाक्षीमहाकालोभगान्वितः // 66 // क्रोधोत्रं मनुवर्णोयंमनुःपुष्पादिशोधने // तार पाशपरास्वाहापंचार्णश्चित्तशोधने॥६॥मनवोदशसंप्रोक्ताअर्ध्य स्थापनमुच्यते // सेंदुभ्यांमांसतोयाभ्यांभुवंसंमृज्यभूगृहम् // 68 // कोणचतुष्कोणात्मकंमंडलंकुर्यात् // तत्राधारशक्तिकूर्मशेषान्संपूज्य // ॐहींफडितिमंत्रेणााधारंस्थाप येत् // मंवहिमंडलायनमइतितत्संपूज्य // वामकर्णेदुयुक्तेनऊबिंदुयुतेनफडतेनविहायसा हकारेण // हुंफ डितिमंत्रेणप्रक्षालितंमहाशंखनरकपालं // दंडित्रिमूर्तीदुयुतंथईबिंदुयुक्तंभृगुंसकारं // स्थीमितिबीजंपठन् स्थापयदित्यन्वयः॥ 68 // कपालं // दंडित्रिमा विद्युतेनफडतेनविहायमा योधारस्थाप। For Private and Personal Use Only