________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वर्णादिनिर्मितंकलशम् / / अस्त्रायफडितिप्रक्षाल्यतत्राधारेन्यसेत् // तंत्रिंशद्वर्णमंत्रेणार्चयेत् // तमुद्धरति॥ वियदिति ॥वियतहकारः॥ दीर्घत्रयाढचं // हांहींहूं // हमस्वरूप।मांसंलः // वरस्वरूपं॥अनिलोयः॥६॥ अर्धीशऊसेंदुखं // सबिंदुहः॥ वायुर्यः॥६५॥ मन्मथाकीं // स्पष्टमन्यत // यथा // अँहाहीहूंहमलव्यूंहंसू स्वर्णादिपात्रमस्त्रेणक्षालितंतत्रविन्यसेत् // वियदीर्घत्रयेंद्राव्यंहममांसंवरानिलः // 64 // अर्षी / शपिंदुसंयुक्त सेंदुखंसूर्यमंडला // वायुर्वसुप्रदांतेस्यावादशांतेकलात्मने // 6 // मन्मथः कलशायेतिनमोतःप्रणवादिकः // त्रिंशद्वर्णात्मकोमंत्र-कलशस्यार्चनेमतः // 66 // कलाद्वा दशसूर्य्यस्यकलशोपरिपूजयेत् // तपिनीतापिनीधूम्रामरीचिालिनीरुचिः // 67 // सुषुम्राभोग | दाविश्वाबोधिनीधारिणीक्षमा॥ अनुलोमविलोमाभ्यांकादिभाधणयुग्युताः॥६८ // र्यमंडलायवसुप्रदद्वादशकलात्मनेकींकलशायनमइति // 66 // सूर्यकलाआह // तपिनीति // कीदृश्यस्ताः॥ अनुलोमेति // क्रमोक्रमाभ्यांयेकादयोभादयश्चवर्णाः तेषांयुजोयुग्मानितैर्युताः // कंभंतपिन्यैनमः // खंबंतापिन्यनमः॥ गंफंधूम्रायैनमः॥ इत्यादि / 67 // 68 // For Private and Personal Use Only