________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथवट्यक्षिणीमाह // पद्मनाभइति // पद्मनाभए // झिंटीशस्थोवियद्वायूएस्थिताहकारयकारोह्ये // सहवियाहि // 1 // यक्षीत्यादिस्वरूपं // सनासिकंतोयंऋतुयुतोवः // वृक्षेत्यादिस्वरूपस्पष्टम् // यथा // ऐोहियक्षियक्षिमहायक्षिवटवृक्षनिवासिनिशीघ्रमेसर्वसौख्यंकुरुकुरुस्वाहा // द्वात्रिंशदर्णः // अथसर्वेष्टसंसिद्धयैप्रवक्ष्येवटयक्षिणी // पद्मनाभोवियद्वायूझिंटीशस्थौसहकवियत् // 1 // य क्षियक्षिमहायक्षिवटतोयंसनासिकम् // क्षनिवासिनिशीघ्रमेसर्वसौख्यंकुरुद्वयम् // 2 // स्वाहाद्वात्रिं शदोयमंत्रोऽखिलसमृद्धिदः॥ ऋषिःस्याद्विश्रवाश्छंदोनुष्टुब्देवीत्यक्षिणी ॥३॥वह्निभि श्रुतिभिर्वेदे सुभिःसप्तंभीरसैः // प्रकुर्वीतपडंगानिमंत्रवर्णान्यसेत्तनौ // 4 // मस्तकेनेत्रेयोर्वकेनासोकांसंयुग्म तः॥ स्तनयो पार्श्वयोर्द्वन्द्वे«दिनाभौशिवोदरे // 5 // कैटयूरुनाभिजघांसुजानोमणिबंधयोः // ह स्तैयोर्मूभिविन्यस्यध्यायेद्देवींवटस्थिताम् // 6 // अरुणचंदनवस्त्रविभूषितांसजलतोयदतुल्यतनूरु चाम् // स्मरकुरंगदृशांवटयक्षिणींक्रमुकनागलतादलयुक्कराम् // 7 // // 2 // 3 // 4 // वर्णन्यासमाह // मस्तकइति // नेत्रयोौ // नासाकर्णासस्तनपार्श्वकटयूरुजंघाजानुमणि बंधहस्तेषुद्वौद्वौ // अन्यत्रैकः ॥शिवलिंगम् ॥५॥६॥ध्यानमाह // अरुणेति॥ क्रमुकंपूगीफलंदक्षे॥७॥ 1 अस्ययक्षिणीमंत्रस्यविश्रवाऋषिरनुष्टुपूछंदःयक्षिणीदेवताममाभीष्टसिद्ध्यर्थेजपविनियोगः // For Private and Personal Use Only