________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पात्रमानमाह बुध्नइति // बुधेमूले // ऊवचपात्रंकुर्यात् // कियत्तत्राह // अर्केति // मूलेऊव चद्वादशादिमानैरंगुलै कार्यम् // शरार्कपलभाजनम् // पंचविंशत्युत्तरशतपलमितपात्रम् // 70 // 71 // 72 // द्वीति // सहस्रद्वयमितेघृते शरशिवपंचदशोत्तरशतपलंताम्रपात्रम् // अक्षिशरसंख्यातं द्विपंचाशत्पल बुध्धेपूर्द्धसमानंतुपात्रंकुर्यात्प्रयत्नतः // अर्कदिग्वसुषट्पंचचतुराभांगुलैर्मितम् ॥७०॥आज्येपलसह स्त्रंतुपात्रंशतपलैःकृतम्॥आज्येयुतपलेपात्रंपलपंचशतीकृतम् // 71 // पंचसप्ततिसंख्येतुपात्रषष्टिपलं मतम् // त्रिसहस्रघृत पलेशरार्कपलभाजनम् // 72 // द्विसहस्रेशरशिवंशताःत्रिंशतामतम् ॥श तेक्षिशरसंख्यातमेवमन्यत्रकल्पयेत् // 73 // नित्यदीपेवह्निपलंपात्रमाज्यंपलंस्मृतम् // एवंपात्रंप तिष्ठाप्यवर्ती सूत्रोत्थिता क्षिपेत् // 74 // एकातिस्रोथवापंचसप्ताद्याविषमाअपि // तिथिमानाया सहस्रतंतुसंख्याविनिर्मिता // 75 // गोघृतंप्रक्षिपेत्तत्रशुद्धवस्त्रविशोधितम् // सहस्रपलसंख्यादि दुशांतंकार्यगौरवात् // 76 // मितम् // अन्यत्रैवमेवघृतानुसारेणपात्रंकल्प्यम्॥७३॥वद्विपलंत्रिपलम् // 74 // विषमवर्तिकाएकाद्याएकोत्तर शतान्ताज्ञेयाः // तिथीति // पंचदशादिसहस्रपर्यतं यातंतुसंख्यातयाविनिर्मिता कृताः // 75 // 76 // For Private and Personal Use Only