________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie . |पंचांगमाह // आचक्रायहृत् // विचक्रायशिरः॥ सुचक्रायशिखा // त्रैलोक्यरक्षणचक्रायकवचम् ॥असुरां तकचक्रायअस्त्रम् // 54 // 55 // वर्णन्यासमाह // मस्तकइति // 56 // तारपुटानि // ॐगों ॐनमःमस्तके आचकायहृदाख्यातंविचक्रायशिरोपिच // सुचक्रायशिखापश्चात्रैलोक्यरक्षणंततः // 54 // चक्रायक वचंप्रोक्तमसरांतकशब्दतः॥ चक्रायास्त्रमिदंकुदिंगानांपंचकंमनोः॥५५॥ सर्वांगेत्रिमनुंन्यस्यवर्ण न्याससमाचरेत् ॥मस्तकेनेत्रयोःश्रुत्योर्नसोक्रेहदंबुजे // 56 // जठरेलिंगदेशेचजानुनोःपादयोरपि // वर्णीस्तारपुटान्यस्येद्विंद्वात्यानमसायुतान् // 27 // वृंदारण्यगकल्पपादपतलेसदनपीठेबुजेशोणाभे वसुपत्रकेस्थितमजंपीतांबरालंकृतम् // जीमूताभमनेकभूषणयुतंगोगोपगोपीवृतंगोविंदस्मरसुंदरंमुनि युतंवेणुंरणंतंस्मरेत्॥१८॥ एवंध्यात्वाजपेल्लशंदशांशंसरसीरुहैः॥ जुहुयात्पूजयेत्पीठेवैष्णवेनंदनंदनम् ॥१९॥अग्यादिकोणेष्वभ्यर्यहृदाचंगचतुष्टयम् // दिशास्वत्रंदलेष्वष्टोमहिषी परिपूजयेत्॥ 60 // // 57 ॥ध्यानमाह // वृंदेति // वृंदावनगतकल्पवृक्षतलेमणिपीठेरक्ताष्टपत्रेस्थितंध्यायेत् // जीमूता मे घश्यामस्मरादपिसुंदरम् // 58 // 59 // 6 // For Private and Personal Use Only