________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रयोगोयथा // कृष्णचतुर्दश्यांशून्यग्रहेनीलवस्त्रावृतोमुक्तकच्छोमुक्तशिखोदक्षिणामुख कुक्कुटासनेचो पविश्यग्रंथियुक्तयामुंजरज्ज्वानिशिसहस्रद्वयममुंमंत्रजपेत् // मंत्रोयथा // अॅलंस्ट्म्लू क्ष्र्कालरात्रि महावाक्षिअमुकमाशूच्चाटय र छिंधि 2 भिंधिस्वाहाहौंकामाक्षिक्रोमिति // ततःशतद्वयमनेनैवमंत्रेणस पैर्हत्वातैलोदकयुतेनसर्षपपिण्याकेनतेनमतुनाबलिंदद्यात् // 84 // एवंसप्ताहंकृतेउच्चाटनसिद्धिः // 85 // जपांतेतदशांशेनसर्पपैर्जुहुयान्निशि // ततःसर्पपपिण्याकैस्तत्तैलोदकसंयुतैः // 84 // बलिंप्रदद्यात्ते नैवंमनुनाविशिखोभुवि // एवंकृतेसप्तरात्रंदेशादूरंव्रजेदरिः॥८॥ययोर्विद्वेषमन्विच्छेत्तयोर्जन्मतरूद्भ वम् // फलकद्वितयंकृत्वातत्राकारौतयोलिखेत् // 86 // विषाष्टकेनवालेयीदुग्धाक्तेनाभिधान्वितम् // तत्स्पृष्ट्वाप्रजपेन्मंसहस्रमधियामिनि // 87 // वियत्पावकमन्विंदुयुग्ग्लौंखमनुहंसयुक् // निद्रा निमनुबिंदुस्थाभगवत्यन्तेतिदंडधा // 88 // विद्वेषणमाह // ययोरिति // जन्मतरवोजन्मवृक्षाः॥ तेउक्ताः॥८६॥ विषाष्टकमंतवक्ष्यति॥वालेयीरास भी॥ अधियामिनिरात्रौ // 87 // मंत्रमाह॥ वियदिति // पावकमन्विदुयुक् रऔबिंदुयुतवियतहः // हौं // ग्लौं // बिंदुयुकूमतुरौंहंसासम्तैर्युक्तंखहंइसौं // अग्निमबिंदुस्थानिद्रामाभ्रौं // 8 // For Private and Personal Use Only