________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० मटीक रमाश्रीं // 89 // कवचंहुं॥ 90 // सैरिभोमहिषः // गंधर्वोऽश्वः॥९१॥ प्रयोगः // प्रीतिमतो योर्जन्म वृक्षोत्थंफलकद्वयांविधायतत्ररासमीक्षारमार्दितेनाविषाष्टकेनोपरिनामयुक्तमाकारद्वयविलिख्यतत्स्पृष्ट्वानि शिसहस्रममुंमंत्रजपेत्॥मंत्रोयथा॥ॐहौंग्लौंहसौंधौभगवतिदंडधारिणिअमुकममुकंशीघ्रविद्वेषय 2 रोधय रिण्यन्तेऽसुकममुकंशीघंविद्वेषयद्वयम् // रोधयद्वितयंपश्चाद्भजयद्वितयंरमा // 89 // मायाराज्ञीचतु र्थ्यताप्रणवंकवचत्रयम् // पंचाशदक्षरोमंत्रस्तारादि सर्वसिद्धिदः // 90 // जपतिफलकद्वंद्वंबद्धार ज्ज्वापरस्परम् // खरसैरिभगंधर्वपुच्छरोमसमुत्थया॥९१॥ वल्मीकरंधेनिखनेत्पुनस्तावजपेन्नरः / / सप्ताहाजायतेवैरंतयोःप्रीतिमतोरपि // 92 // मारणंतुप्रकुतिब्राह्मणेतरविद्विषम् // तच्छुद्धयथैजपे न्मूलमंत्रमष्टोत्तरंशतम् // 93 // कृष्णांगारचतुर्दश्यांगोपुरादाचतुष्पथात् // श्मशानाद्वासमानी यमृदंतत्रविनिःक्षिपेत् // 94 // EIR भंजय 2 श्रीमायाराज्यैहुहुहुमिति // ततःखरमाहिषाश्वपुच्छरोमकृतयारज्ज्वातत् फलकद्वयंमिथो बढ़ा वल्मीकरंध्रेनिखायपुनर्मत्रंसहनंजपेत् // एवंविद्वेषणसिद्धिः // 92 // मारणमाह // मारण मिति // तद्विप्रेनिषिद्धम् // 93 // 94 // // 16 For Private and Personal Use Only