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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुशासनव्याघ्रचर्मवस्त्राणामुपर्युपरिस्थापितानामुपरिअनंतासनायनमः॥ विमलासनायनमः॥ पद्मासना शायनमः॥इतिमंत्रत्रयेणत्रीन्द निदध्यात् // 72 // आधिदंमानसपीडाप्रदम्॥७३॥प्रागुदग्वा॥प्राङ्मुखउदङ्मु खोवा॥पाथोपद्मम् / स्वस्तिकासनपद्मासनवीरासनेष्वन्यतममासनंकुर्यात् // स्वस्तिकासनलक्षणंयथा॥ जानूर्वोरंतरेकृत्वासम्यक्पादतलेउभे // ऋजुकायोविशेद्योगीस्वस्तिकंतत्पचक्षते // पद्मासनंयथा // ऊर्वो रुपरिविन्यस्यसम्यक्पादतलेउभे // अंगुष्ठौचनिबध्नीयाद्धस्ताभ्यांव्युत्क्रमात्ततः // पद्मासनमितिप्रोक्तं अनंतविमलंप डेंतासननमोन्वितम् // जपन्निधायद स्त्रीन्कुशचीवराप्तने // 72 // काष्ठपल्लववं शाश्मगोशकृत्तृणमृन्मयम् // विषमंकठिनमंत्रीत्यजेदासनमाधिदम् // 73 // पृथित्वयतिमंत्रणप्रा गुदग्बासमाविशत् // कुय्योत्स्वस्तिकपाथोजवारादिष्वकमासनम // 74 // अर्घ्यपाद्याचमनीय | मधुपर्काचमस्यच // पंचपात्राणिपुष्पादीन्स्थापयत्स्वीयदक्षिणे // 7 // योगिनांहृदयंगममिति // अत्रहस्ताभ्यांपादांगुष्ठबंधनंतुयोगाभ्यासान्वितंबोध्यम् // योगिनांहृदयं गममितिविशेषणोपादानात् // जयादौतुपादतलयोरूर्वोरुपरिन्यासमात्रंपद्मासनम् // वीरासनलक्षणं यथा // एकंपादमधाकृत्वाविन्यस्योरौतथेतरम् // ऋजुकायोविशेद्योगीवीरासनमितीरितम् // इति शारदायांलक्षणानि // आदिशब्दात्षट्कमोक्तमपि // 74 // 75 // For Private and Personal Use Only
SR No.020473
Book TitleMantra Mahodadhi Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages545
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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